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कविता

तटस्थ

प्रतिभा चौहान


मेरी पाँवों के नीले निशानों में बसती है
तुम तक पहुँचने की कीमत
मैंने इंद्रधनुष से शायद नीला रंग उधार लिया
और कुछ उधार सतरंगी दुनिया
कर लो जज्ब मेरे नीले रंग को
और दे दो मुझे मुक्ति नीले रंग से...
शायद यही मेरी प्रार्थना है
और मेरे प्रेम का रंग भी
यूँ भी
ठहरे हुए पानी में
तुम्हारी चुप्पी के बावस्ता
हजार हजार लहरों का बल
और दाँतों तले दबी कोई सिसकी
यह तटस्थता समय की है या तुम्हारी
नहीं मालूम।


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