अपनी हकीकत पर मुझे इत्मिनान था
क्योंकि मेरी नजरों में आसमान था
खुली फिजा में होंगी राहत की बस्तियाँ
भटकती राहों को ऐसा कुछ गुमान था
मंजिल यूँ ही नहीं मिली इन नुमाइंदों को
कई रतजगे, कई मशवरे, कड़ा इम्तिहान था
उगा डाली सूखी दरारों में नमी की पत्तियाँ
पत्थरों में कहाँ ऐसा हौंसला - ईमान था