hindisamay head


अ+ अ-

कविता

वह एक जो जा चुका है

नरेंद्र जैन


एक अँधेरे घिरे कमरे में
शोकगीत गाती हैं औरतें
रोज यहाँ से गुजरते समय
मैं महसूस करता हूँ
पकाये गए चमड़े की बू
यह घर जो आज नहीं तो
कल जरूर गिर पड़ेगा
वह एक जो जा चुका है
अपनी लंबी बीमारी के बाद
एक निश्चित राहत सबको बाँटता हुआ
सब कुछ यहाँ वैसा ही है
झूलती चरमराती खाट
खाली शीशियाँ, पुराने वस्त्र
राशनकॉर्ड पर दर्ज उसका नाम
जात बिरादरी की स्त्रियाँ
आ रही हैं लगातार इस अंधकार में
याद करती अपने पारंपरिक शोकगीत
वह एक जो अब जा चुका है
लगातार उसके लिए यहाँ
छाती पीटती हैं स्त्रियाँ


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में नरेंद्र जैन की रचनाएँ



अनुवाद