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कविता

सूखी नदी

नरेंद्र जैन


यहाँ से करीब ही
बहती है
सूखी हुई नदी

यहाँ बैठे-बैठे सुनता हूँ
सूखी नदी की लहरों का शोर

देखता हूँ एक नौका
जो सूखी नदी की लहरों में बढ़ी जा रही

एक सूखी नदी
जीवंत नदी की स्मृति बनी हुई है

एक
सूखी नदी के किनारे
जल से भरा खाली घड़ा लिए
वह स्त्री
घर की ओर लौट रही है।


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