जासौं जाति विषय-विषाद की विवाई बेगि
चोप-चिकनाई चित चारु गहिबौ करै।
कहै रतनाकर कवित्त-बर-व्यंजन मैं
जासौ स्वाद सौगुनौ रुचिर रहिबौ करै॥
जासौं जोति जागति अनूप मन-मंदिर मैं
जड़ता - विषम - तम - तोम - दहिबौ करै।
जयति जसोमति के लाड़िले गुपाल, जन
रावरी कृपा सौं सो सनेह लहिबौ करै॥