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कहानी संग्रह

कथाएँ पहाड़ों की

रमेश पोखरियाल निशंक

अनुक्रम आखिर क्यों? पीछे     आगे

कहते हैं ममत्व से भरे आत्मीय रिश्ते, अपनी ममता पर आसन्न अनिष्ट की पहले ही आहट दे देते हैं। जाने क्यों आज मासूम चिंकी का मन भी ऐसी ही किसी अनहोनी की आहट दे रहा था। बड़ी बेचैन सी वह सुबह से ही माँ के साथ लिपटी पड़ी थी। कहाँ खुद ही उठकर वह तैयार हो जाया करती। तबियत ठीक न भी होती तो भी स्कूल का वह नागा हरगिज नहीं करती। पर आज सुबह से ही वह स्कूल न जाने की जिद पर अड़ी थी। चेहरे का रंग भी न जाने कहाँ उड़ गया था।

'आज मैं स्कूल नहीं जाऊँगी।

चार वर्षीय चिंकी मम्मी के पैरों से जाकर लिपट गयी।

'अरे! मेरा प्यारा बच्चा, स्कूल के लिए तो यह कभी ना नहीं करता था। आज क्या हो गया?' निशा ने उसे दुलारते हुए पूछा। मन शंकित भी था, जबसे स्कूल जाना शुरू किया था, उसने कभी कोई बहाना नहीं किया। खुशी-खुशी स्कूल जाती थी। पर आज जाने क्या बात हो गयी।

'कुछ नहीं मम्मी, बस यूँ ही।'

माँ के पैरों का आलिंगन सा किया। चिंकी उसे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी।

'चलो बेटा, ऐसा नहीं कहते, तुम्हारी बस आने वाली होगी। मैं तुम्हें छोड़ आती हूँ। और वह चिंकी की उँगली थामे बाहर निकल आयी।

बिल्कुल अनमने मन से माँ को बाय-बाय कह चिंकी बस में बैठ गयी।

दिन में लगभग एक बजे चिंकी स्कूल बस से उतरी तो नजरें बाहर ही थी, मम्मी को तलाशती। पर वह दिखी नहीं। इधर-उधर देखा फिर आगे नजर दौड़ाई, लेकिन मम्मी दूर-दूर तक नजर नहीं आयी।

निराश हो चिंकी खुद ही धीरे-धीरे घर की ओर चल दी, पीठ पर बस्ता लादे हुए। सुबह से पहने कपड़े अस्त-व्यस्त हो चले थे। आज सुबह ही पालिश किये हुए चमचमाते जूते धूल जमा होने से अपना असली रंग खो बैठे थे।

पर ये क्या! घर में तो ताला लगा है, लगता है मम्मी उसे ही लेने गयी है, और ये सोच चिंकी फिर बस स्टाप की ओर ही चल दी। लेकिन यह कहीं नहीं मिली। थक हार कर चिंकी बन्द दरवाजे के आगे ही बैठ गयी। भूख भी लग रही थी। क्या करे। ध्यान मम्मी की ओर ही था।

कुछ देर चिंकी यूँ ही बन्द दरवाजे के आगे बैठी रही। किसी का भी शान उसकी ओर नहीं गया। एक तो भूख-प्यास ऊपर से मम्मी की चिन्ता। उसकी आँखें डबडबा आयीं।

उसने बस्ते से एक कापी निकाली और फिर कुछ चित्र बनाने लगी। लेकिन उसमें भी मन नहीं लगा तो कॉपी वापस बस्ते में रख दी।

ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ। चिंकी की बस आने से पहले ही माँ उसे लेने बस स्टाप पर खड़ी होती।

चिंकी के बस से उतरते ही वो उसका बस्ता हाथों में ले उसकी उँगली थाम लेती। नन्ही चिंकी उछलती कूदती स्कूल के दिन भर के किस्से माँ को सुनाते-सुनाते घर पहुँचती। माँ भी हँसती-मुस्कराती उसकी बातों में खूब रुचि लेती। पर आज माँ को क्या हो गया, उसे अकेला छोड़ वह कहाँ चली गयी! क्या उसे यह भी याद नहीं कि वह भूखी होगी!

वह यादों में खो गयी, कैसे घर पहुँचते ही माँ उसके कपड़े बदलती, हाथ मुँह धुलाती और खाना खाने बिठा देती। उत्साहवश कभी वह बस्ते से कोई कॉपी निकाल दिखाने लगती, तो माँ उसे पहले खाना खा लेने को कहती।

लेकिन चिंकी, कहाँ मानने वाली थी। जब तक स्कूल की सारी बातें माँ को न बता दे उसे चैन नहीं आता। भाव विह्वल माँ उसे अपने हाथ से खाना खिला देती।

आज भी तो उसे माँ को स्कूल की ढेर सारी बातें बतानी थीं। बताना था कैसे आज उसकी ड्रॉइंग की मैम ने उसे शाबाशी दी।

लेकिन किससे कहे? माँ तो है ही नहीं। इस सबको याद कर चिंकी कुछ देर रोती रही। बाद में अपने बस्ते पर सिर रखकर वहीं सो गयी।

'मैं तुम्हारी जान ले लूँगा। समझती क्या हो अपने आप को?' पापा माँ पर बरस रहे थे। 'प्लीज चुप हो जाइये, इस समय चिंकी सो रही है, जाग जायेगी' मौं करुण क्रन्दन के साथ गुजारिश कर रही थी।

पर पापा और बिफर उठे-

चिंकी का बहाना करती है। तुझे तो मैं जिस दिन इस घर से निकाल दूँगा, तभी मझे चैन आयेगा। रहना फिर अपनी चिंकी के साथ अपने बाप के घर।' उन्होंने माँ को जोर से धक्का दिया, माँ का सिर पलंग से जा टकराया।

'मम्मी s s s!' जोर की चीख के साथ चिंकी की नींद खुल गयी। ओह! ये तो सपना था, लेकिन कितना भयानक। उसे ध्यान आया कल रात माँ और पापा के बीच भी तो ऐसा ही झगड़ा हुआ था।

चिंकी उस वक्त सोई थी। इसीलिए उसे ज्यादा कुछ तो याद नहीं पर पापा की कर्कश आवाज से उसकी नींद खुल गयी।

'मम्मी तो बड़ी अच्छी है, पर पापा उन्हें क्यों पीटते हैं!'

नन्हीं चिंकी के यह समझ से बाहर था। पर वह महसूस करती कि पापा के सामने मम्मी अक्सर गुम-सुम ही रहती। वह बड़े गुस्सैल थे। इसलिए उनके घर आने पर वह भी सहमी सी बैठी रहती। पापा की उपस्थिति में उसकी सारी बाल सुलभ शरारतें स्वतः दम तोड़ जाती।

'अरे चिंकी, तू ऐसे क्यों बैठी है? तेरी माँ कहाँ गयी आज?' तभी पड़ोस की आंटी किसी काम से बाहर निकली तो उन्होंने चिंकी को देखकर सवाल किया।

पर चिंकी गुम-सुम बैठी रही, कुछ भी नहीं बोली।

'अरे बेटा, जब घर पर ताला था तो तू आंटी के पास क्यों नहीं आ गयी। बेटे को भूख लगी होगी ना।' आंटी ने प्यार से चिंकी के सिर पर हाथ फेरा तो ममत्व भरे इस दुलार से चिंकी की अश्रुधारा बहने लगी।

लेकिन निशा तो कभी ऐसा नहीं करती, आज क्या हो गया उसे! खुद भी हैरान आंटी खुद से सवाल कर रही थी।

'चल बेटा उठ, मेरे साथ चल, मुँह-हाथ धोकर खाना खा ले। तब तक तेरी मम्मी भी आ जायेगी। आंटी ने चिंकी का हाथ पकड़कर उसे उठाया।

लेकिन चिंकी का जरा भी मन नहीं था। वह वहीं बैठी रही। 'चल बेटा' आंटी ने दोबारा पुकारा तो उसने इनकार में सिर हिला दिया। फिर सहमी सी बोली 'मम्मी आयेगी तो मुझे ढूँढ़ेगी। मुझे कुछ नहीं खाना, मैं तो यहीं बैठूँगी।'

आंटी ने थक हार कर पड़ोस में निशा के बारे में जानने की कोशिश की तो कोई भी कुछ नहीं बता पाया।

थोड़ी देर में पड़ोस के कुछ लोग भी इकट्ठा हो गये। भीड़-भाड़ से चिंकी और सहम गयी।

कोई रास्ता न देख किसी ने उसके पिता के ऑफिस फोन कर उन्हें सूचित करने की सलाह दी। चिंकी की स्कूल-डायरी में उनका नम्बर मिल गया।

थोड़ी देर में वह ऑफिस से घर आ पहुँचे। ताला तोड़ा गया। वे अन्दर घुसे तो वहाँ का दृश्य देखकर सबके होश उड़ गये।

जमीन पर निशा की लाश पड़ी थी। हाथ पीछे बँधे हुए, गले पर नीला निशान। चिंकी समझ नहीं पायी क्या हुआ। क्यों मम्मी जमीन पर पड़ी है?

कुछ ही देर में पुलिस भी आ गयी। इधर-उधर तलाशी ली गयी। सारा सामान व्यवस्थित था। लूट-पाट का कहीं कोई निशान नहीं। अलबत्ता निशा के हाथों और गले पर खरोंच के निशान थे। साफ लगता था, अपने आप को बचाने के लिए उसने अच्छा-खासा संघर्ष किया है।

चिंकी के पिता पुलिस के साथ भागदौड़ में ही लगे रहे। मासूम चिंकी सहमी सी आंटी के सीने से चिपकी रही।

पुलिस वाले अपनी तहकीकात कर जाने लगे तो आंटी बोली

'चलो बेटा आपको पापा के पास छोड़ देती हैं।'

इतना सुनते ही चिंकी उनसे और चिपट गयी। बोली, 'नहीं आंटी, मैं आपके पास ही रहूँगी, पापा के पास नहीं जाना। वो हमेशा मम्मी को डांटते हैं, वो गन्दे...।'

और सुबकते हुए उसने अपना मुँह आंटी की गोद में छुपा लिया।

चिंकी की बात सुनकर पुलिस इंस्पेक्टर के कान खड़े हो गये। वह चुपचाप घर से बाहर निकल गया। मामले का एक अहम सुराग मिल गया था।

पड़ोसियों के लाख कहने और समझाने पर भी चिंकी पिता के पास जाने को कतई तैयार नहीं हुई।

निशा के माता-पिता और सास-ससुर पहाड़ के सुदूरवर्ती गाँव में रह रहे थे। वहाँ फोन की सुविधा भी नहीं थी। किसी तरह नजदीकी स्थान पर फोन से सूचित कर उन्हें आगे सन्देशा भिजवाने को कह दिया गया।

चिंकी के दादी-दादा, नानी-नाना अभी पहुँच भी न पाये थे कि एक और वज्रपात हो गया। दो दिन बाद ही पुलिस सन्देह के आधार पर चिंकी के पापा को गिरफ्तार कर ले गयी।

कानूनन अब चिंकी किसी और के घर में नहीं रह सकती थी। जब तक उसके नजदीकी रिश्तेदार नहीं आ जाते, उसे बाल संरक्षण गृह के हवाले करने का फैसला किया गया।

पिता पर लगा आरोप अभी साबित भी नहीं हुआ था किन्तु इधर चिंकी की सजा शुरू हो चुकी थी। सब हैरान थे ये क्या हो गया। पहले माँ का साया छिना, अब पिता से भी जुदा हो गयी। आखिर इस बेचारी नन्ही जान का क्या कसूर, जो उसे यह सजा भोगनी पड़ी है! यह सवाल सब को अन्दर तक झकझोर गया और उसके पापा को कठघरे में खड़ा कर गया...।


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