वसूली अमीन की कड़क मिजाजी और बैंक के व्यवहार ने शरद के माथे की लकीरें बढ़ा
दीं। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे इस आर्थिक संकट से उबर पायेगा।
गाँव में बैंक वालों के साथ कुर्की अमीन के आने से शरद की साख को बट्टा तो लग
ही गया था, किन्तु उससे भी अधिक अपमानजनक बात यह थी कि सारे गाँव के लोगों के
बीच उसे अपमान का घूंट पीना पड़ा था। कम से कम उस अपमानबोध से निकल पाना शरद
जैसे संकोची व विनम्र स्वभाव के व्यक्ति के लिए कतई आसान न था।
बैंक से बीस हजार का ऋण लेकर जब शरद अपने पड़ोसी तुला सिंह और जगपाल के साथ
भैंस खरीदने गुलाबराय गया था, तो उस दिन उसके घर में उत्सव जैसा माहौल था। घर
की चहल-पहल देखकर ऐसा प्रतीत होता था कि कोई बहुत बड़ी खुशी इस घर को मिल गयी
हो। शाम को जब कानों में टोकन लगी दो भैंस लेकर वह घर पहुँचा था, तो पूरा गाँव
भैंस देखने उसकी गौशाला में इकट्ठा हो गया था।
शरद ने भैंस की पीठ पर हाथ फेरते हुए अपनी पत्नी से कहा, 'एक बार में पाँच
किलो दूध देती है एक भैंस। चलो, अब तो अच्छा हो गया, दूध बेचकर कम से कम घर के
नमक तेल का खर्चा तो निकल जायेगा। मास्टर जी, बैंक मैनेजर व डॉक्टर साहब के
यहाँ दो-दो किलो दूध लगाने की बात पहले ही पक्की हो चुकी है, जबकि बाकी का दूध
सुमेरपुर के बाजार की दुकानों में बेच देंगे। घर के लिए केवल एक किलो दूध ही
रखना। पूरे इलाके में दूध की माँग तो बहुत है। सचमुच दूध नहीं अमृत है ये,
पुष्पा!'
उस दिन शरद अपनी पत्नी से दूध के हिसाब-किताब की बात करता हुआ आत्मविश्वास से
भरा था और दोनों पति-पत्नी रात भर करवटें बदल-बदल कर अपने सुखी भविष्य का
ताना-बाना बुनते हुए जाने कब सो गये, पता ही नहीं चला।
सुबह पास के नारंगी व नासपाती के पेड़ों से चिड़ियों के चहचहाने की आवाज सुनकर
शरद की आँखें खुली, तो उसी पल खड़े होकर उसने पत्नी को भी जगा दिया। पुष्पा को
लगा जैसे कोई मीठे स्वप्नलोक से उसे वापस धरती पर ला रहा हो।
गहरी नींद से जागी पुष्पा का मन करता था कि उनसे कहकर कुछ देर और सो जाऊँ
परन्तु दो भैसों की याद आते ही वह तुरन्त गौशाला की ओर निकल पड़ी। उस दिन
पुष्पा के कदमों में एक स्फूर्ति थी, नव जीवन का एक उत्साह था, भविष्य की
सतरंगी कल्पनाओं का उफान था जिनके बीच उसके कदम रोके नहीं रुक रहे थे।
शरद की भैंस की चर्चा गाँव में ही नहीं, वरन पूरे इलाके में हो रही थी। बैंक
से .बीस हजार का ऋण लेकर दस-दस हजार में दो भैंस खरीदने का साहस जो दिखाया था
उसने। भैंस को देखते ही नजरें फिसल जाती। दोनों भैंस थी भी कबूतर जैसी शोख और
खरगोश जैसी चंचल। गाँव में सभी लोग कहते, 'भैंस हों तो शरद जैसी, लोन लेकर ली
हैं, लेकिन दोनों ही भैंसों का पूरे इलाके में कोई दूसरा जोड़ नहीं हैं। कुछ
लोग कहते, 'लगता है बैंक वालों की मेहरबानी से अब शरद की दरिद्रता इन भैंसों
से पार हो जायेगी।
पहली ही सुबह शरद की दोनों मैंस ने अच्छा दूध दिया और लगभग दस-बारह किलो दूध
मिल गया। आठ किलो दूध तो गाँव में ही बंट गया। दो किलो मास्टर जी, दो किलो
डॉक्टर साहब, दो किलो पतरोल व दो किलो प्रधान जी के यहाँ, सभी घरों में शरद ने
सुबह ही दूध पहुँचा दिया। उस दिन बाकी दूध बच्चे पीते रहे, फिर भी चार किलो
दूध में से काफी दूध बच गया, तो पुष्पा ने परोठे में जमाने के लिए रख दिया।
पुष्पा! हम चौदह रुपये किलो के भाव से दूध बेचेंगे क्योंकि हमारा दूध शुद्ध
है। डॉक्टर साहब कह भी रहे थे कि उन्हें तो शुद्ध दूध ही चाहिए, चाहे वह कितने
रुपये किलो भी क्यों न हो।
'लोग तो पानी मिलाकर भी पन्द्रह रुपये किलो दूध बेच रहे हैं। फिर हम तो शुद्ध
दूध ही दे रहे हैं।' पुष्पा ने शरद से कहा।
'तुम सही कह रही हो। हम अगर दो रुपये और बढ़ाकर भी बेचेंगे तो भी गलत नहीं
होगा। आखिर हम लोगों ने बैंक की किश्त भी तो हर माह चुकानी है। मैनेजर साहब
बता रहे थे कि ब्याज सहित दो हजार रुपये के करीब मासिक किश्त है। बैंक से ऋण
लिया है, तो जितना लिया है ब्याज लगाकर लगभग डेढ गुना चुकाना है।' शरद ने
समझाया।
दो दिन के अन्दर ही शरद का दूध सुमेरपुर के बाजार तक पहुँच गया और दूध से उसको
हर माह लगभग छः हजार के करीब रुपया मिलने लगा, जिसमें से बैंक की किश्त व घर
का खर्चा आराम से चलने लगा। शरद की देखा-देखी गाँव के अन्य काश्तकार और
बेरोजगार भी पास के बैंक से लोन लेकर इसी तरह का व्यवसाय अपनाकर स्वावलम्बी
बनने की सोचने लगे।
कुछ दिनों बाद पुष्पा भैंस को पानी पिलाने व नहलाने खालीधार ले गयीं। तभी बगड़
में सामने से आ रहे ट्रक की आवाज सुन सड़क पार कर रही भैंस बिदक कर भागती हुई
खड़पतिया की ढ़ांग से नीचे गिर गयी। यह सब कुछ इतनी जल्दी घटित हुआ कि पुष्पा
हक्की-बक्की देखती ही रह गयी और वहीं पर बेहोश होकर गिर पड़ी।
दुर्घटना की जानकारी पाकर जब तक गाँव के लोग नीचे पहुँचते, तब तक वहाँ
चील-कौवे मडराने लगे थे। उस दिन शरद बैंक की किश्त जमा करने चोपता गया था।
भैंस के गिरने की खबर उसे सतेराखाल बाजार में लग गयी थी। हाँफते-काँपते वह
तुरन्त किसी तरह घर पहुँचा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और मैंस खाई में
गिरकर अपनी जान गंवा चुकी थी। मैंस को गिरते देख पुष्पा तो बगड़ में ही बेहोश
हो गयी। बगड़ में ताश खेलते युवाओं ने उसे बेहोशी की हालत में घर पहुँचाया।
किसी ने उसकी दूसरी भैंस को गौशाला तक पहुँचाकर उसके कीले में बांध दिया, तो
कुछ ने गाँव में शरद की मैंस गिरने की आवाज देकर सारे गाँव वालों को इकट्ठा कर
दिया।
शरद की भैंस गिरने की खबर से पूरे गाँव में मातम छा गया। गाँव की महिलाएँ
पुष्पा के घर में इकट्ठा हो कर उसे किसी तरह ढाढस बन्धाती रही, किन्तु पुष्पा
का तो रो-रोकर हाल-बेहाल था। एक भैंस के गिरने से पुष्पा उस सदमे से उबर नहीं
पायी और सोचती कि इतनी मेहनत करने से उन्हें क्या मिला?
कुछ लोग कानाफूसी करते कहते कि गुलाबराय से भैंस लाते ही शरद ने 'भूमाल्य
देवता की पूजा नहीं की, जिस कारण यह दुर्घटना हुई। कुछ कहते कि बैंक से लोन
लेकर क्या किसी का कोई काम सुफल हुआ है? सभी अपनी सोच के अनुसार अलग-अलग तरह
की बातें करते, जबकि शरद व पुष्पा तो अब हर समय इसी सोच में डूबे रहते कि
मात्र एक भैंस के दूध से परिवार के खर्च के साथ बैंक की किश्त कैसे चुकायी
जायेगी?
बेहतर देखभाल व चारा-पानी की व्यवस्था न होने से शरद की दूसरी भैंस भी बीमार
रहने लगी। शरद व पुष्पा का उत्साह अब पहले जैसा नहीं था। बीमारी व कुपोषण के
कारण शरद की भैंस ने दिन प्रतिदिन दूध देना कम कर दिया और कुछ ही समय बाद वह
इतनी अस्वस्थ हो गयी कि उसने दूध देना पूरी तरह बन्द कर दिया, जिससे दूध के
नाम पर अब तक की थोड़ी बहुत आमदनी भी बन्द हो गयी।
पिछले छः माह से बैंक की एक भी किश्त न गयी, तो बैंक वालों ने पहले तो शरद को
नोटिस भेजा और प्रत्युत्तर में जब शरद की ओर से बैंक से सम्पर्क कर किश्त जमा
कराने हेतु कोई प्रयास नहीं किया गया, तो बैंक वालों ने एकतरफा कार्यवाई करते
हुए बकाया बचे लोन की एकमुश्त वसूली हेतु तहसील में शरद के विरुद्ध वसूली न हो
पाने का प्रमाण पत्र दाखिल कर दिया था।
आज सुबह-सुबह ही जब वसूली अमीन होमगार्ड के दो जवानों के साथ शरद के घर पर आ
धमका, तो शरद को जैसे साँप सूंघ गया हो। उसके पाँवों तले की जमीन खिसक गयी।
वसूली कर्मियों के दुर्व्यवहार से शरद अत्यधिक लज्जित होकर सोचने को मजबूर हो
गया था कि जैसे बैंक से लोन लेकर उसने कोई बहुत बड़ा अपराध किया हो। वह यह
नहीं समझ पा रहा था कि आखिर उसका कसूर क्या है?
गाँव वालों के समक्ष अपने अपमान को देख उसे लगा कि काश धरती फट जाती और वह
पूरे परिवार सहित उसी में समा जाता! शरद और पुष्पा को इस बात का मलाल था कि
लोन के रूप में पहाड़ के हर परिवार व नौजवानों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाकर
स्वावलम्बी बनाने का ढिंढोरा पीटने वाले बैंकवालों ने एक बार भी उनके घर आकर
यह जानने का तनिक भी प्रयास नहीं किया कि पहले डेढ साल में बिना किसी चूक के
प्रतिमाह समय से पहले ही किश्त चुका रहे शरद ने आखिर किन परिस्थितियों के
वशीभूत अनायास किश्त चुकानी बन्द कर दी? बैंक कर्मियों के व्यवहार ने आज उनकी
संवेदनहीनता को उजागर कर दिया था। कल तक बैंक से लोन लेकर स्वावलम्बी बनने का
सपना पाले गाँव वाले कानाफूसी करते कहने को विवश थे कि इन बैंक वालों और वसूली
वालों से तो भगवान ही बचाये!
अमीन के माध्यम से जब बैंकवालों को वस्तुस्थिति की जानकारी हुई, तो शरद को
बुलवाकर उन्होंने बताया कि उसकी भैंस का तो बैंक ने बीमा करवा रखा है। यदि वह
मरी हुई भैंस का पशु डॉक्टर से पोस्टमार्टम रिपोर्ट व टैग नम्बर लगा कान काटकर
ले आये, तो बीमे की रकम प्राप्त हो सकती है जिससे लोन बन्द हो सकता है।
'मरी हुई भैंस का टैग लगा हुआ कान काटकर लाना होगा।' बैंक मैनेजर की बेरुखी
भरी आवाज सुनकर शरद मानो आसमान से धरती पर आ गिरा हो!
मरी हुई भैंस का कान? कहाँ से लायेगा वह अब दस माह पूर्व मरी भैंस का कान और
उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट? वह तो कब का गल-सड़ गया होगा। टैग भी न जाने कहाँ
होगा। चील, गिद्ध अथवा सियार के पेट में। शाम को शरद घर आ पहुँचा। हताश, खामोश
और परेशान! आते ही उसने दरांती उठाई और गौशाला की तरफ जाने लगा।
'दरांती लेकर कहाँ चले इस वक्त? पहले यह तो बताओ क्या कहा बैंकवालों ने?'
पुष्पा ने पूछना चाहा।
भैंस का कान काटने। शरद ने विक्षुब्ध होकर चिल्लाते हुऐ कहा। पुष्पा विस्फोटित
नजरों से उसे ऐसे घूर रही थी जैसे वह अभी अभी किसी पागलखाने से छूटकर आया हो।
आज जब सारे गाँव के सामने वसूली अमीन होमगार्ड के दो जवानों के दम पर घर की
कुर्की करने पर आमादा था, तो शरद और पुष्पा अश्रुपूरित नेत्रों से यह सोचने का
विवश थे कि काश! बैंकवालों ने लोन देते समय इतनी जानकारी दे दी होती कि इस
प्रकार की दुर्घटना में भैंस की मृत्यु होने पर उन्हें ये औपचारिकताएँ पूरी
करने पर बीमा क्लेम मिल सकता है, तो आज उन्हें यह दुर्दिन कदापि नहीं देखने
पड़ते आखिर बीमा करवाने का पैसा तो संवेदनहीनता की सारी सीमाएँ लांघ चुके इन
बैंकवालों ने उनसे ही वसूला था...!