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कहानी संग्रह

कथाएँ पहाड़ों की

रमेश पोखरियाल निशंक

अनुक्रम ‘आनन्द’ मरते नहीं पीछे     आगे

जीवन के इस कुदरती रंगमंच में भी कुछ किरदार ऐसे होते हैं, जो बेरंग जिन्दगी में भी रंग भर जाते हैं। दिलों में गहरे उतर कर न सिर्फ पोर-पोर पुलकित कर जाते हैं बल्कि जिन्दगी को जिन्दादिली से जीने का जज्बा भी जगा जाते हैं।

शरत भी इन्हीं जीवंत किरदारों में एक था। हर पल ताजगी से भरा, जीवन को जी भर कर जीने वाला। काँटों की सेज में भी फूल सा खिला। बीहड़ जीवट का धनी। जिन्दगी इम्तहान पर उतर आयी तो भी माथे पर जरा सा बल नहीं। उलटा समझाने लगता-

'यार, कितनी लाख योनियों की जद्दोजहद से मिलता है ये मानुस जीवन! उसे भी हम ढंग से न जी पायें, तो लानत है। इसलिए जितना भी जीओ, जी भर कर जीओ।'

गजब का जज्बा था उसमें। यह जानते हुए भी कि पता नहीं कब मौत दस्तक दे दे। उसे कुछ फर्क ही नहीं। रात भर यही सब सोच मैं करवटें बदलता रहा।

कल ही ऑफिस में राजीव मिलने आया था। बातों-बातों में पुराने दिन याद हो आये। हम दोनों गहरे मित्र थे। सालों बाद यह मिलना हो रहा था। एक-एक कर सब साथियों की कुशल-क्षेम पूछी, तो भला शरत कैसे छूट सकता था। वह भी बहुत ही करीबी था हम लोगों का। काफी दिनों से उससे भी मुलाकात नहीं हो पायी थी।

'तू शरत से कब से नहीं मिला!' अचानक कुछ भारी पन सा आ गया राजीव की आवाज में।

'यार, बहुत दिन हो गये उससे मिले। आज ही उसे फोन करता हूँ। इस बार का सप्ताहान्त उसी के नाम।'

शरत का जिक्र आते ही उसका प्रफुल्लित चेहरा आँखों में उतर आया। क्या मस्त बन्दा था। जहाँ भी जाता उसी के चर्चे रहते। खूब हँसमुख व जिन्दादिल। महफिलों की तो वह रौनक रहता। सब उसके चहेते थे।

पर मैं कुछ आगे बोलता, वह कुछ गम्भीर सा होकर बोला-'इस सप्ताहांत में तो शायद वह नहीं मिल पाये। लेकिन फोन पर पता कर लेना, यह दिल्ली से कब लोट रहा है। यार वह बहुत बीमार है, उसे कैंसर हो गया है।

मेरा तो जैसे दिमाग का 'फ्यूज' ही उड़ गया। कुछ देर तो कुछ समझ ही नही आया। 'क्या कह रहा है, यार तू!'

कुछ बोले बगैर उसने हल्के से सिर हिलाते हुए संकेत दिया मतलब, सही है।

थोड़ी देर हम दोनों के बीच खामोशी पसरी रही। फिर धीरे-धीरे राजीव व्यथा-कथा सुना डाली।

'उसे एक दो बार फेफड़ों में पानी भरने की शिकायत हुई, अपने लापरवाह स्वभाव के चलते उसने उसे हल्के से लिया। लेकिन जब परेशानी बार-बार सर उठाने लगी, तो पत्नी ने दिल्ली जाकर दिखाने पर जोर दिया। टेस्ट में पता चला दोनों फेफड़े कैंसर से बुरी तरह ग्रस्त हो चुके हैं। एक बार तो कीमियोथेरेपी भी हो चुकी है, लेकिन कैंसर बहुत फैल चुका है। लगभग अन्तिम अवस्था में है।'

कुछ देर फिर मौन पसरा रहा। मन बहुत खराब हो गया। बाकी औपचारिक बातें निपटा कर राजीव चल दिया। मैं फिर वहीं कुर्सी पर आकर निढाल सा पड़ गया। शरत और मैं कालेज के जमाने से दोस्त थे। बड़े जिगरी। उसके मस्तमौला स्वभाव का मैं मुरीद था। पढ़ने में वह काफी तेज था। किन्तु भविष्य को लेकर बिल्कुल ही बेफिक्र। हर पल वह बिन्दास जीना चाहता था। कभी-कभार नौकरी को लेकर मुझे तनाव में देख वह झिड़क देता-

'यार तू तो बेकार ही टेंशन करता है, जिसने पेट दिया है वो खाना भी देगा, इससे ज्यादा और क्या चाहिए जिन्दगी में। बस मस्त रहो'

वह ठहाका लगाकर पीठ ठोंकता, चलो अभी आते हैं। फिर हम एकान्त में कहीं टहलने निकल जाते। वह घूमने का बेहद शौकीन था। इसी शौक के चलते उसने पर्यटन में डिप्लोमा किया और फिर पर्यटन विभाग में ही नौकरी पा गया।

अब तो रोजगार भी हो गया। उम्र बढ़ती जा रही है। माँ-बाप को उसकी शादी की चिन्ता सताने लगी। लेकिन वह टालता रहा। नौकरी से जितना भी समय मिलता वह घूमने में ही निकल जाता। अति हो गयी तो माँ-बाप की बात माननी ही पड़ी। जब उसकी शादी हुई, तब तक मैं दो बच्चों का बाप बन चुका था।

वह जितना लापरवाह था, पत्नी उतनी ही समझदार। उसने शरत का बिखरा घर ही नहीं जीवन भी संभाल लिया। अब वह दो बच्चों का पिता था। पर अचानक यह आसमान कैसा टूट पड़ा! घरवालों का लो बुरा हाल होगा। सम्पर्क करने पर पता चला, वह दो दिन बाद आ रहा है। कुछ दिन यहाँ रहकर फिर कीमियोथेरेपी के लिए दिल्ली चला जायेगा।

दो दिन बाद मुझे शरत से मिलने जाना था। समझ में नहीं आ रहा था, कैसे सामना करूँगा उसका। भाभी तो और भी टूट गयी होगी। मेरे पास तो उसे सात्वना देने के लिए शब्द भी नहीं थे।

जिस दिन उससे मिलने जाना था, उससे पहली रात मैं सो नहीं पाया। क्या कहूँगा, कैसे कहूँगा, कुछ समझ नहीं पा रहा था।

उसका भी क्या हाल होगा। मैं सिहर उठता। मन ही मन ईश्वर को कोसता कि भगवान तू भी ऐसे इंसानों का ही इम्तहान लेता है। आखिर उसे किस किये की सजा दे रहा है तू?

बड़े भारी मन से अगले दिन शाम को मैं पत्नी के साथ शरत के घर जा पहँचा। देखा बाहर अजीब सी खामोशी पसरी है। न बच्चों का शोर-शराबा न किसी के बोलने की कोई आवाज।

घण्टी बजने के थोड़ी देर बाद शरत के बहनोई ने दरवाजा खोला। भाभी जी वहाँ पर नहीं थी। शरत हमारी ओर पीठ किये कुछ लिख रहा था। मुझे जैसे लकवा मार गया। मैं गूंगा हो गया हूँ, मुँह से कुछ शब्द ही नहीं निकल पा रहे थे।

इतने में शरत पीछे मुड़ा और मुझे देखते ही खड़ा हो गया।

'अरे तू कब आया? उसने सवाल किया और फिर मुझे मौन देखकर उसने चुटकी ली।

'अबे कुछ तो बोल। ऐसा लग रहा है, जैसे मैं मर गया हूँ।

'कैसा है तू?' कहते हुए मैं उसके गले लग गया।

'कैसा दिख रहा हूँ तुझे? पहले से भी ज्यादा स्मार्ट और चुस्त। है ना?' वह बोला और फिर अपने उसी चिरपरिचित अन्दाज में उसने जोर का ठहाका लगाया।

हमारी आवाज सुनकर भाभी जी किचन से बाहर निकल आयी।

मैं और शरत बातों में मशगूल हो गये। उसका बेफिक्र अन्दाज देख मुझे अन्देशा हुआ कि कहीं उसे कैंसर की बात छुपाई तो नहीं गयी है। या फिर कहीं राजीव से ही उसकी बीमारी को समझने में कोई भूल हुई हो।

मेरी पत्नी उठकर शरत की पत्नी के साथ दूसरे कमरे में चली गयी, तो शरत ने अपनी बीमारी के बारे में बात करना शुरू किया।

'देख यार, एक न एक दिन तो सबको मरना ही है। अब जितना भी जीना है, अगर वो दिन भी मर-मर कर का, तो अपने साथ सबको तिलतिल कर मारूँगा। इसलिए जितने दिन बचे हैं उन्हें जिन्दादिली से जियो।'

वह बोले जा रहा था और मैं तो किसी दूसरी ही सोच में डूब गया था। किस माटी का बना है यार तू। इतना बड़ा खतरा और तुझ पर शिकन नहीं। मैं तो सान्त्वना देने आया था और तू है कि उल्टे मुझे हिम्मत बँधा रहा है।

वह मुझे समझा रहा था, वह तो बहुत भाग्यशाली है कि उसे पता है, कितने दिनों बाद मरना है। इसलिए जो भी दिन बचे हैं, उन्हें भरपूर जीओ। वो लोग तो बककूफ हैं जो उस एक दिन के डर से उसी पल जिन्दगी जीना छोड़ देते हैं। फिर मेरे कन्धे झकझोर कर मेरी तन्द्रा तोड़ते हुए बोला-

'यार! सुना है कीमियोथेरेपी से बाल उड़ जाते हैं? लेकिन गंजा होकर भी स्मार्ट लगूँगा मैं, क्यों?' फिर उसका ठहाका गूँजा।

कुछ देर रुक कर हम दोनों वापस चले आये। रास्ते भर वही चर्चा। पत्नी ने मुझे भाभी जी के बारे में बताया, तो मैं उनका और भी कायल हो गया।

उसका कद मेरी नजरों में शरत से भी बड़ा लगने लगा। शरत तो महान था ही। वह अपनी बीमारी का रोना किसी के आगे नहीं रोना चाहता था। पर भाभी जी उसका दिल रखने को अपने कलेजे पर पत्थर रखे थी।

अपने अन्दर उमड़ते भावनाओं के सागर की एक-एक बूंद अन्दर ही जज्ब किये थी। वह मन ही मन रोती। पीड़ा असह्य हो जाती तो मन हल्का करने को घर के किसी कोने में चुपचाप आँसू बहा आती।

लेकिन शरत के सामने वह चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट बिखेरे रहती। उसे देख तो लगता ही नहीं था कि उसका पति इतना गम्भीर बीमार भी है। यहाँ तक कि आने-जाने वाले तो यह भी कहने से नहीं चूकते कि उसे देखकर तो लगता ही नहीं कि उसका पति इतना बीमार है। यह पीड़ा उसने स्वयं से जताई भी।

'घर-परिवार वाले टूटेंगे, तो मरीज और टूट जाता है। हरदम रोते-बिलखते रहेंगे, तो क्या हालत होगी उनकी! इसलिए हम उन्हें महसूस ही नहीं होने देते कि वह हमारी वजह से और टूटे। उसे हर पल खुश रखने की जी तोड़ कोशिश में ही लगे रहते हैं हम, तो लोगों को क्यों परेशानी है?'

महान हैं भाभी जी भी। शरत के घर जाने से पहले मैं जितने तनाव में था, वापस लौटते हुए उतना ही हल्का महसूस कर रहा था। मुझे तो फख्र था, लेकिन आज मामी के लिए कितना जिन्दादिल है मेरा दोस्त।

आज शरत से मिलकर मुझे अनायास ही आनन्द फिल्म के हीरो की यादी गयी। वह हमारे काल्पनिक जीवन के रंगमंच का पात्र था। पर यह आनन्द तो जिन्दगी के असली रंगमंच का पात्र है, जो हमेशा हमारे दिलों में धड़कता रहेग।


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