मनवर को पुलिस पकड़ कर ले गयी तो गाँव में हड़कम्प मच गया। हर सायं कच्ची शराब
को हलक में उतारने वालों के लिए यह बुरी खबर थी। देखते ही देखते यह खबर पूरे
इलाके में जंगल की आग की तरह फैल गयी। करछूना गाँव की महिला पंचायत की यह हाल
के दिनों में सबसे बड़ी सफलता थी और उस रात गाँव की महिलाओं ने पधान काका के
बड़े चौक में 'झुमैलो' लगाकर अपनी खुशी का इजहार किया था।
गाँव में इस शराब विरोधी मुहिम को परवान चढ़ते देख, इर्द-गिर्द के दारू
प्रेमियों की बेचैनी बढ़ गयी थी और उन्होंने शराब विरोधी आंदोलन को हवा देने
वाली महिलाओं को सबक सिखाने की ठान ली।
सीमंध के सेरे वाली खेतों की हरियाली इसी कच्ची शराब की भेंट चढ़ गयी थी। वहाँ
के सोना उगलते खेतों के बासमती चावल की खुशबू पूरे इलाके में फैली थी। लहलहाते
धान के खेतों को देखते ही मन प्रफुल्लित हो जाता और लोग कहते न थकते कि
'बासमती हो तो सीमंध जैसी।'
सीमंध के उपजाऊ खेतों के हक-हकूकों को लेकर गडूना और करछूना के काश्तकारों में
कई बार मुकदमें चले, कोर्ट कचहरी तक जाते-जाते गाँववालों की एड़ियाँ घिसती
रहीं।
गृहणियों ने अपने मंहगे जेवरात तक बेच डाले, लेकिन दोनों गाँव की इस पुश्तैनी
जमीनी लड़ाई में एक भी पक्ष हार मानने को तैयार न था। कोर्ट ने इस जमीन के
मालिकाना हक पर यथास्थिति का निर्णय दे दिया। फलतः करछूना के काश्तकारों की
फसलें इन खेतों में कई वर्षों से लहलहा रही थीं। दोनों गाँवों के बीच की यह
लड़ाई किसी से छिपी न थी। पिछले साल जब से गडूना के ग्रामीणों ने रातों रात
सीमंघ की खड़ी फसल को कटवा दिया, तब से दोनों गाँव के सामान्य होते सम्बन्धों
को फिर ग्रहण लग गया और दोनों गाँवों के लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो
गये।
मनवर की बनाई हुई शराब की इस इलाके में खासी माँग थी। लगभग एक दर्जन से अधिक
गाँवों के नशेड़ियों की विचित्र हरकतों और रातों की सैरगाह बना करछूना गाँव
आखिर कब तक मूकदर्शक बना रहता। इन दोनों गाँवों में एक पारस्परिक समानता भी
थी। जिस प्रकार शराब पीने के लिए दोनों गाँवों एक ही अड्डे पर जाते थे, उसी
प्रकार शराब विरोधी मुहिम को लेकर दोनों गांदाही महिलाएँ एकजुट होकर अपने
पुराने पुस्तैनी झगड़ों को भूलकर 'महिला पंचायत बैनर तले अपनी लड़ाई में खुलकर
सामने आ जातीं। कुन्ती के नेतृत्व में महिला की शराब विरोधी मुहिम परवान चढ़
चुकी थी, किन्तु एक सायं शौच के लिए गयी कुन्ती की आबरू को वहशी भूखे भेड़ियों
ने तार-तार कर दिया।
इस घटना ने सारे इलाके में लोगों के रोंगटे खड़े कर दिये। लोग समझ गये थे कि
कुन्ती की इज्जत से खेलने वाले दरिंदों को शराब विरोधी मुहिम में उसकी अगुवाई
खटक गयी थी और कुन्ती के साथ हुआ बलात्कार उसी प्रतिशोध की भावना का परिणाम
था। कुन्ती का नेतृत्व-कौशल इतना प्रखर था कि उसने विरोधी गाँव की महिलाओं को
भी एक मंच पर लाकर यह साबित कर दिया कि ग्रामीण महिलाओं की समस्याओं की एक ही
जड़ है, और वह है, 'शराब ! जब तक शराब का उन्मूलन नहीं होगा, तब तक महिलाओं की
समस्याओं का अन्त नहीं होगा। शराब का कारोबार जब तक गाँवों में चलता रहेगा तब
तक महिलाएँ बलात्कार जैसे कलंक को दोती रहेंगी, जिससे समाज का ताना-बाना ही
छिन्न-भिन्न हो जायेगा और नयी पीढ़ी भी इस अभिशाप से बच न सकेगी।
कोई और महिला होती, तो अपनी इज्जत के नाम पर जान दे बैठती। उस घटना के बाद
कुन्ती के मन में भी कई बार आत्महत्या करने का विचार आया, लेकिन फिर वह सोचती
कि इज्जत भी मेरी लुटी और जान भी मैं ही गवाऊँगी? कुन्ती का कठोर मन इस बात को
स्वीकारने के लिए कतई तैयार न था कि बलात्कार के कलंक को धोने के लिए उसे
आत्महत्या कर लेनी चाहिए।
उस रात वह एक पल के लिए भी झपकी तक न ले सकी थी।
सुबह होते ही उसने मनवर के चौक से सटे खेत की मिट्टी उठाकर, धरती माँ की
सौगन्ध खाते हुए, चिल्ला-चिल्ला कर कहा, 'मैंने तुझे आत्महत्या के लिए मजबूर न
किया, तो मेरा नाम भी कुन्ती नहीं।' प्रतिशोध की ज्वाला में जल रही कुन्ती की
आँखें आग उगल रही थीं और चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। कुन्ती के रणचण्डी रूप
को देख सभी लोग सहम गये थे।
गाँव की दो-चार महिलाओं को साथ लेकर कुन्ती ने अपने साथ हुए बलात्कार की
रिपोर्ट राजस्व पुलिस में दर्ज करवानी चाही, तो पटवारी ने रिपोर्ट दर्ज करने
से ही साफ मना कर दिया। फिर तो कुन्ती व उसकी साथी महिलाओं के गुस्से का
ठिकाना न रहा और उन्होंने मन बना लिया था कि ये अब रिपोर्ट रेगुलर पुलिस को
करेंगी। गाँव से दस मील दूर नागधार के बाजार जाकर कुन्ती ने अपने साथ हुए
बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करायी।
रेगूलर पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए करछूना में दबिश दी और बलात्कार के
लिए नामजद मनवर पुत्र रणवीर सिंह व बबलू पुत्र डूंडा सिंह को गाँव जाकर
गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
मनबर और बबलू को जेल की सलाखों के पीछे करने के बाद भी कुन्ती के मन में जल
रही आग शान्त न हुई। कुन्ती ने अब संकल्प ले लिया था कि वह बलात्कारियों व
शराबियों का नामो निशां मिटा कर ही दम लेगी।
मनबर को पुलिस पकड़ कर ले गयी, तो उसने सरेआम कुंती को जलील करना चाहा, लेकिन
कुन्ती के दृढ़ आत्म विश्वास एवं इच्छा शक्ति के सामने उसकी एक न चली। उसकी
हरकतों को देखकर कुन्ती कह उठी, 'तुझे तो भगवान भी कभी माफ नहीं करेगा! तूने
सारे इलाके के लोगों को जहर बाँट कर कई हँसते-खेलते घरों को उजाड़ दिया, पापी!
तुझे नर्क में भी जगह नसीब न होगी' कुन्ती के मन का जैसे गुबार फूट चुका था।
मनबर भले ही जेल चला गया था, परन्तु उसके साथी फिर भी उन्हीं हरकतों को अंजाम
देने में लिप्त थे। वे गाँव की फिजा को खराब करना चाहते थे। वे जानते थे कि
यदि गाँव व इलाके का माहौल अच्छा हुआ तो उनकी दुकानदारी ही बन्द हो जायेगी।
उन्होंने गाँव में कुन्ती के खिलाफ अनर्गल दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया।
कुन्ती जैसी महिला की भावनाओं को ठेस पहुँचाने एवं उसे हतोत्साहित करने के लिए
उन्होंने उसी रास्ते को चुना, जो सदियों से महिलाओं के विरुद्ध पुरुष प्रधान
समाज अपनाता रहा है, किन्तु कुन्ती अपने ऊपर लगे कलंक से डरने वाली नहीं थी।
उसने पूरे क्षेत्र की महिलाओं को एकजुट कर शराब-विरोधी अभियान को पूरी गति दी
और उसे पूरे अंजाम तक पहुँचाकर ही दम लिया।
करछुना गाँव की अशान्त वादियों में अब फिर से अमन-चैन लौट आया है। सीमंध के
सेरे वाली खेतों की हरियाली और भी गहरा गयी है। जमीन को लेकर दो गाँवों के बीच
का वर्षो पुराना जो टकराव था, वह अब समाप्त हो गया है। गाँव व पूरे इलाके में
शराब की थैलियों की जगह दूध-घी की नदियाँ फिर से बहने लगी हैं। यह सब देख आज
कुन्ती सुकून महसूस कर रही थी।
कुन्ती को लग रहा था कि उसके जीवन भर का व्रत अब सफल हो रहा है और जब
गाँववालों ने उसे निर्विरोध गाँव का प्रधान चुना, तो उसके संकल्प को और ताकत
मिल गयी। उसकी गहरी नीली आँखों में जो सपने तैर रहे थे, वे वास्तव में एक
आदर्श व समृद्ध गाँव की कल्पनाओं से कहीं ऊपर थे।
गाँवों में 'नशा उन्मूलन' के संकल्प की चमक कुन्ती के चेहरे पर दमक रही थी।