अगस्त्यमुनि का फुटबाल मैदान। हजारों लोगों की भीड़ इकट्ठा थी आज यहाँ पर
किन्तु फटबाल मैच देखने के लिए नहीं, वरन अपनी धरती और माटी के पास की रक्षा
के लिए!
'अगर पर्यावरण संरक्षण की बात करते हैं, तो सब पर समान रूप से काम लागू होना
चाहिए। क्या बड़े लोगों के सामने कानून की धाराएँ, उपधाराएँ बौनी पड़ जाती
हैं? अगर नहीं तो उनको सजा क्यों नहीं होती? वे क्यों बिना रोक-टोक पर्यावरण
को जब-तब क्षति पहुँचाते रहते हैं? मैं तो साफ तौर कहना चाहता हूँ कि अगर इस
देवभूमि के पर्यावरण को बचाना है, तो सबसे पहले यहाँ आने वाले धनकुबेरों पर
नकेल कसनी होगी।' पुरुषोत्तम प्रसाद ने अपने सम्बोधन में जब ये बातें कहीं, तो
अगस्त्यमुनि का मैदान उपस्थित हजारों महिलाओं और पुरुषों की तालियों की
गड़गड़ाहट से गूँज उठा।
इस बीच केदारनाथ तक हैलीकॉप्टर चलाने वाली दो कम्पनियों के शीर्ष अधिकारी तथा
पर्यटन और जिला प्रशासन के आला अधिकारी मौके पर पहुँच चुके थे और आते ही
उन्होंने अगस्त्यमुनि के मैदान में पिछले सात दिनों से तम्बू गाड़कर आमरण अनशन
पर बैठे युवा नेता पुरुषोत्तम प्रसाद को जबरन उठाकर बेस हॉस्पिटल में दाखिल
करने की नाकाम कोशिश प्रारम्भ कर दी थी, जिसका वहाँ एकत्रित हजारों-हजार जनता
ने यह कह कर विरोध कर दिया कि 'इस देवभूमि में सैकड़ों श्रीदेव सुमन पैदा
होंगे, जो अपनी जान की बाजी लगाकर भी इस देवभूमि के पर्यावरण और उसकी अस्मिता
को खतरा किसी भी कीमत पर पैदा नहीं होने देंगे। पहाड़ हमारे सरोकारों के
प्रतीक हैं। पहाड़ हमारे स्वाभिमान एवं प्रतिष्ठा के मूलाधार हैं, पहाड़ हमारे
चरित्र एवं आचरण की पवित्रता और कर्मठता के प्रतीक हैं। पहाड़ों के पर्यावरण
से खिलवाड़ करने वालों को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।'
और पुरुषोत्तम को जबरिया उठाने वालों को जन-बल ने बैरंग लौटा दिया था। अपनी
माटी के प्रति लोगों के उत्साह के आगे पुलिस बल को मुँह की खानी पड़ी थी।
दूसरे दिन समाचार पत्रों में खबर छपी थी 'हवाई सेवा का विरोध करन वालों को
पुलिस ने खदेड़ा।' पुरुषोत्तम ने जब एक स्थानीय दैनिक में काले मोटे अक्षरों
में छपे इस समाचार को पढ़ा, तो वह दंग रह गया। 'बिक गये हराम जादे ! इन
अखबारों का कोई ईमान धर्म नहीं। पैसे और विज्ञापन के लिए अपने बाप का ही सर
कलम कर दें। अरे! कोई बताए कि हवाई सेवा का विरोध करने वालों को पुलिस ने
खदेड़ा अथवा यहाँ एकत्रित जनमानस ने पुलिस को? अब तो खाकी रंग का कोई परिंदा
भी यहाँ आयेगा, तो उसकी भी खैर नहीं।'
दूसरे दिन पुरुषोत्तम के नेतृत्व में हजारों आंदोलनकारियों ने उस हैलीपैड को
ही खोद डाला। 'जंगल हमारा, जमीन हमारी और हक किसी और का? पहाड़ हमारा,
पर्यावरण हमारा, इसे ऐशगाह कैसे बनने देंगे?' लोगों में जबरदस्त आक्रोश पनप
चुका था, जो किसी भी क्षण ज्वालामुखी बनकर फूट पड़ने को बेसब्र था।
'पैसों के दम पर पहाड़ खरीदने चले हैं। यहाँ के पर्यावरण को तहस-नहस करना
चाहते हैं? ऐसा हम जीते जी हरगिज होने न देंगे।'
डी.एम. ने आंदोलनकारियों को वार्ता के लिए बुलाकर कहा, 'पुरुषोत्तम जी! अगर
केदारनाथ के दर्शन लोग हवाई-सेवा से करना चाहते हैं तो इसमें आपको आपत्ति क्या
है? अच्छा ही तो है कि लोग हवाई-सेवा से भगवान के दर्शन करना चाहते हैं।'
'सर, बहुत फर्क पड़ता है और तो और लोगों की गाय भैंसों ने दूध देना बन्द कर
दिया है। हवाई जहाज की तीखी और कर्कश आवाज से स्थानीय बेजुबान पशुओं को कितना
नुकसान उठाना पड़ रहा है, इसका आकलन किया है कभी आप ने? आपको तो केवल उच्च
क्रय-क्षमता वाले पर्यटकों की सुविधाओं की फिक्र हैं। पहाड़ के गरीब लोगों की
चिन्ताओं से आपका क्या सरोकार?
यह भूमि चिपको आंदोलन की भूमि रही है। यहाँ के लोगों ने पर्यावरण को अपनी जान
से भी अधिक तवज्जो दी है और हम किसी भी हालत में यहाँ हवाई सेवा शुरू होने
नहीं देंगे। सरकार चाहती है कि एक तरफ हवाई सेवा से यात्रियों को इन तीर्थो तक
पहुँचाया जाये, दूसरी तरफ इस देवभूमि की संस्कृति एवं परम्पराओं को तहस-नहस
करने की साजिश रची जा रही हैं, ताकि इस क्षेत्र की कोई पारम्परिक पहचान जीवित
न रह जाये और यहाँ के लोगों का वजूद ही समाप्त हो जाये।
पुरुषोत्तम की बातों से डी.एम. साहब तैश में आकर झल्ला पड़े और कह उठे, 'तुम
लोग कूप-मण्डूक बने रहना चाहते हो। अरे नेता जी! कुछ दिनों के लिए इधर-उधर
जाकर बाहरी दुनिया भी देखो, लोग कितने एडवांस हो गये हैं? आपको केवल अपनी
परम्पराओं की लगी हुई है। परम्पराएँ समय के साथ-साथ बनती बिगड़ती रहती हैं और
सच मानें तो परम्पराओं में कोई स्थायित्व भी नहीं होता है। जो लोग अपनी रूढ़
परम्पराओं को होते रहते हैं, यकीन मानिये, वे कभी भी विकास की दौड़ में शामिल
नहीं हो सकते हैं। अगर पर्यटक केदारनाथ तक हवाई-सेवा से आना चाहते हैं, तो
इससे इस पहाड़ी क्षेत्र की संस्कृति पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा? ऐसी दकियानूसी
बातों को आप लोग रहने दीजिये और थोड़ा प्रगतिशील बनकर देखिए, आपको सब कुछ
अच्छा ही अच्छा नजर आयेगा। सच कहूँ, तो परम्परा और परिवर्तन मेरी नजरों में
एक-दूसरे के पूरक हैं।
'ये उपदेश आप किसी और को देना।' हमारी संस्कृति और परम्पराओं की चिन्ता आपको
हो भी कैसे सकती है? क्योंकि आप जैसे अधिकारियों की आँखों पर भौतिकवादी सोच का
चश्मा जो लगा है? जरा ये चश्मा उतार कर तो देखिए, फिर आप भी समझ जायेंगे।' तैश
में आकर पुरुषोत्तम बोले।
'आप हर मंच से दावा करते फिरते हैं कि पर्यटन को रोजगारोन्मुखी बनायेंगे,
किन्तु तनिक बता पायेंगे कि हेलीकाप्टर से केदारनाथ आने वाले यात्रियों से
यहाँ के स्थानीय बेरोजगारों को कैसे रोजगार प्राप्त हो सकता है? अरे!
हेलीकाप्टर में आने वाले तो सारी चीजें अपने साथ बाहर से लाकर उसके अवशिष्ट को
यहाँ फेंक कर न सिर्फ यहाँ की वादियों तथा फेनिल झरनों को प्रदूषित कर रहे
हैं, बल्कि महानगरों की गन्दगी को यहाँ तक लाकर इस देवभूमि की माटी तथा यहाँ
की समृद्ध परम्पराओं का सरासर अपमान भी कर रहे हैं। यहाँ की जब वे एक चाय तक
नहीं पी रहे हैं, तो उनके यहाँ आने से क्या लाभ? उल्टे इन जंगलों के दुर्लभ
जीवों और स्थानीय काश्तकारों के पालतू जानवरों के भी जान के लाले पड़ गये हैं
जब से ये हवाई सेवाएँ शुरू हुई हैं।'
पुरुषोत्तम के नेतृत्व में हेलीकॉप्टर सेवा का विरोध पूरे चरम पर था। लोगों ने
मन पक्का कर लिया था कि वे अब किसी भी कीमत पर अपनी धरती के ऊपर हेलीकॉप्टर
उड़ने नहीं देंगे। अन्ततः शासन-प्रशासन को आंदोलनकारियों के अडिग निश्चय के
सम्मुख घुटने टेकने ही पड़ गये और उन्हें हवाई सेवा स्थगित करने को बाध्य होना
पड़ा।
हवाई-सेवा स्थगन का आदेश जारी होने पर पुरुषोत्तम तथा वहाँ पर एकत्रित हजारों
लोगों की भीड़ ने चैन की सांस ली। अगस्त्यमुनि के उस ऐतिहासिक मैदान में
उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति के मन में इस बात की खुशी थी कि अब पहाड़ का
पर्यावरण, सुविधाओं के नाम पर भौतिकता की अन्धी दौड़ में शामिल इन धनकुबेरों
की अय्याशी के साधन स्वरूप सरेआम नीलाम न होगा।
जय बद्री विशाल! जय बाबा केदार! के उदघोष से पूरा वातावरण गुंजायमान हो गया
था।