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व्याख्यान

धर्म

स्वामी विवेकानंद

अनुक्रम भगवत्प्राप्ति ही धर्म है पीछे     आगे

मनुष्‍य के द्वारा दिये गये ईश्‍वर के नामों में श्रेष्‍ठ नाम सत्‍य है। सत्‍य भगवत्‍प्राप्ति का फल है; अत: उसे आत्‍मा के भीतर खोजो। सभी पुस्‍तकों और औपचारिकताओं से परे हो जाओ और अपनी आत्‍मा को अपना स्‍वरूप देखने दो। श्रीकृष्‍ण ने कहा है कि 'पुस्‍तकें' हमें विक्षिप्‍त तथा विमूढ़ बनाती हैं। प्रकृति के द्वन्‍द्वों से परे हो जाओ। जिस क्षण तुम संप्रदाय, औपचारिकता तथा कर्मकांड को ही सर्वस्‍व समझ लेते हो, उसी क्षण तुम बंधन में बँध जाते हो। दूसरों की सहायता के लिए इनका उपयोग करो, परंतु इस बात से सावधान रहो कि ये सब बंधन न बन जाएं। धर्म एक ही है, परंतु इसकी साधना में अनेकता होनी ही चाहिए। अतएव, सभी अपना अपना धार्मिक संदेश तो दें, परंतु दूसरे धर्मों में कोई त्रुटि न देखें। यदि उस प्रकाश का दर्शन चाहते हो, तो औपचारिकता से परे जाना होगा। भगवान के ज्ञानामृत को ख़ूब छककर पियो। जो मनुष्‍य यह जान लेता है कि 'मैं वही हूँ, वह चिथड़ों में लिपटे रहने पर भी सुखी रहता है। उस शाश्‍वत तत्व में प्रवेश करो और शाश्‍वत शक्ति के साथ वापस आ जाओ। दास सत्‍य का अन्‍वेषण करने जाता है और स्‍वंतत्र होकर लौटता है।


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