hindisamay head


अ+ अ-

व्याख्यान

धर्म: साधना

स्वामी विवेकानंद

अनुक्रम मन्‍त्र और मन्‍त्र-चैतन्‍य पीछे     आगे

मंत्रशास्त्रियों का विश्‍वास है कि कुछ शब्‍द ऐसे हैं जो गुरु और शिष्‍य-परंपरा से चले आए हैं, उनका जप मात्र करने से ही उन्‍हें किसी प्रकार के साक्षात्‍कार की उप‍लब्‍धी हो जाएगी। मंत्र-चैतन्‍य शब्‍द के दो भिन्‍न अर्थ हैं। कुछ लोगों के मतानुसार,यदि तुम किसी मंत्र के जप का अभ्‍यास करते हो, तो तुम्‍हें उस इष्‍ट देवता के दर्शन हो जाएंगे, जो उस मंत्र का साध्‍य अथवा देवता है। पर दूसरों के अनुसार, इस शब्‍द का अर्थ है कि यदि तुम अयोग्‍य गुरु से प्राप्‍त किसी मंत्र का जप करो, तो तुम्‍हारा जप उस समय तक सिद्ध न होगा,जब तक तुम विशेष अनुष्‍ठान करके उन मंत्रों को चेतन अर्थात जीवंत न कर लो। विभिन्‍न मंत्र जब इस प्रकार 'जीवंत' होते हैं, उनमें विभिन्‍न्‍ लक्षण पाए जाते हैं, पर सामान्‍य लक्षण यह है कि मनुष्‍य उन्‍हें बिना किसी प्रकार का कष्‍ट अनुभव किए बहुत देर तक जप सकता है और यह कि उसका मन बहुत शीघ्र एकाग्र हो जाता है। यह तांत्रिक मंत्रों के बारे में हैं।

वेदों के समय से मंत्रों के विषय में दो भिन्‍न मत रहे हैं। यास्‍क और दूसरे लोग कहते हैं कि वेदों का अर्थ है, पर पुरातन मंत्रशास्‍त्री कहते हैं कि उनका कोई अर्थ नहीं है; और यह कि उनका उपयोग इसी में है कि कुछ यज्ञों में उनका पाठ किया जाए। तब वे निश्‍चय ही फल के रूप में पार्थिव सुख अथवा आध्‍यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं। आध्‍यात्मिक ज्ञान उपनिषदों के वचनों से प्रसूत होता है।


>>पीछे>> >>आगे>>