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व्याख्यान

धर्म: साधना

स्वामी विवेकानंद

अनुक्रम मुक्ति का मार्ग पीछे     आगे

(मार्च 12, 1600 ई. सोमवार को ओकलैंड में दिए गए

भाषण की रिपोर्ट: 'ओकलैंड एन्‍क्‍वायरर' की संपादकीय टिप्‍प्‍णी सहित)

कल शाम फ़र्स्‍ट यूनिटेरियन चर्च का वेंड्ट हाँल उन बहुसख्‍यक श्रोताओं से भरा हुआ था, जो वहाँ हिंदू उपदेशक स्‍वामी विवेकानंद के दृष्टिकोण से मुक्ति का मार्ग सुनने को एकत्र हुए थे। स्‍वामी ने इस माला में जो तीन भाषण दिए हैं, उनमें यह अंतिम था। उन्‍होंने अंशत: कहा: एक मनुष्‍य कहता है कि ईश्‍वर स्‍वर्ग में है, दूसरा कहता है कि वह प्रकृति में और सब जगह विद्यमान है। पर जब कोई संकट उपस्थित होता है, तो हम पाते हैं कि लक्ष्‍य एक है। हम सब विभिन्‍न योजनाओं के अनुसार कार्य करते हैं, पर हमारे लक्ष्‍य भिन्‍न नहीं हैं।

प्रत्‍येक महान धर्म के दो महान बीज शब्‍द हैं, त्‍याग और आत्‍म-बलिदान हम सभी सत्‍य को चाहते हैं ओर हम जानते हैं कि वह आएगा, चाहे हम उसे चाहें या न चाहें। एक प्रकार से हम सब उस अभीष्‍ट के लिए काम कर रहे हैं। और हमें उसे प्राप्‍त करने से कौन रोकता है? हम स्‍वयं ही। तुम्‍हारे पूर्वज उसे शैतान कहते थे; पर वह स्‍वयं हमारा मिथ्‍या अहं है।

हम दासता में रहते हैं और यदि हम इससे बाहर निकलें,तो मर जाएं। हम उस मनुष्‍य के समान हैं, जो नब्बे वर्ष तक पूर्ण अंधकार में रहा और जब उसे बाहर प्रकृति की उष्‍ण धूप में लाया गया, तो उसने विनती की कि मुझे फिर मेरी अँधेरी कोठरी में पहुँचा दो। तुम इसे पुराने जीवन को छोड़कर एक विस्‍तृत खुले नवीनतर जीवन और महत्तर स्‍वतंत्रता में नहीं जाना चाहोगे।

वस्‍तुओं के कर्म तक पहुँचना बहुत कठिन है। यह उस जैक-अमुक के छोटे हेय भ्रम हैं, जो सोचता है कि उसकी आत्‍मा अनंत है, चाहे वह अपने विभिन्‍न धर्मों सहित कितना ही छोटा क्‍यों न हो। एक देश में एकदम धर्म के ही कारण एक पुरुष की बहुत सी पत्नियाँ होती हैं, दूसरे देश में एक नारी के बहुत से पति होते हैं। इस प्रकार कुछ मनुष्‍यों के दो देवता, कुछ के एक ईश्‍वर और कुछ के ईश्‍वर भी नहीं होता।

पर मुक्ति कर्म और प्रेम में है। तुम कोई वस्‍तु पूर्णतया अवगत कर लो। कुछ समय बाद यह हो सकता है कि वह तुमको याद न आए। फिर भी वह ज्ञान तुम्‍हारी अंतर्चेतना में बैठ जाता है और तुम्‍हारा एक भाग बन जाता है। इसी प्रकार तुम जैसे कर्म करते हो, चाहे वे भले हों या बुरे, उनसे तुम अपने जीवन का भावी मार्ग बनाते हो। यदि तुम कर्म के विचार से-कर्म के लिए कर्म-भला कर्म करते हो, तो तुम अपनी कल्‍पना और अपने स्‍वप्‍न के स्‍वर्ग में जाओगे।

संसार का इतिहास इसके महान पुरुषों, इसके उपदेवताओं का इतिहास नहीं है, वरन् वह समुद्र के उन छोटे द्वीपों के समान है, जो समुद्र में प्रवहमान पदार्थों के एकत्र होने से विशाल महाद्वीप बन जाते हैं। तो संसार का इतिहास बलिदान के उन छोटे-छोटे कार्यों का इतिहास है, जो घर-घर में किए जाते हैं। मनुष्‍य धर्म को इसलिए स्‍वीकार करता है कि वह स्‍वयं अपनी विवेक-बुद्धि के सहारे खड़ा होना नहीं चाहता। वह उसे एक बुरी स्थिति से निकलने का सर्वोत्‍तम मार्ग समझता है।

मनुष्‍य की मुक्ति उस प्रेम की महानता में है, जिससे वह अपने ईश्‍वर को प्‍यार करता है। तुम्‍हारी पत्‍नी कहती है, "अरे, जॉन,मैं तुम्‍हारे बिना नहीं रह सकती।" कुछ मनुष्‍यों को, जब उन्‍हें धन की हानि हो जाती है, पागलखाने भेजना पड़ता है। क्‍या तुम ईश्‍वर के प्रति उस प्रकार की भावना अनुभव करते हो? जब तुम धन, मित्र, पिता और माता, भाइयों और बहनों को, इस संसार में जो कुछ है, उस सबको, छोड़ सकोगे और केवल ईश्‍वर से प्रार्थना करोगे कि वह तुमको अपने प्रेम का एक अंश दे, तब तुमको मुक्ति प्राप्‍त हो जाएगी।


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