(१८ मार्च, १९०० को अलामेडा, कैलिफ़ोर्निया में दिया गया भाषण)
हम बहुत सी पुस्तकें पढ़ते हैं, पर उससे हमें ज्ञान नहीं प्राप्त होता। हम
संसार के सारे धर्मग्रंथ भले ही पढ़ डालें, पर उससे हमें धर्म की प्राप्ति
नहीं होगी। सैद्धांतिक धर्म को पाना काफ़ी सरल हे, उसे कोई भी पा सकता है। हम
जो चाहते हैं वह है व्यावहारिक धर्म।
व्यावहारिक धर्म के संबंध में ईसाई धारणा है भले काम करना--सांसारिक
उपयोगिता। उपयोगिता का लाभ क्या है? उपयोगिता के दृष्टिकोण से देखने पर धर्म
एक असफलता है। प्रत्येक अस्पताल में इस बात की प्रार्थना है कि वहाँ और अधिक
मनुष्य आयें। दया का अर्थ क्या है? दया मौलिक वस्तु नहीं है। यह वास्तव
में संसार के दु:ख को बढ़ाते जाना है, उसका उन्मूलन करना नहीं। मनुष्य नाम
और यश चाहता है, और उन्हें प्राप्त करने के अपने प्रयत्नों को दया तथा भले
कामों से लेप से ढकता है। वह दूसरों के लिए काम करने के बहाने अपने लिए काम
करता है। तथाकथित दयाजन्य प्रत्येक कार्य, जिस बुराई के विरुद्ध कार्य करने
का दावा करता है, उसी को प्रोत्साहन देता है।
नर और नारियाँ किसी अस्पताल या अन्य दातव्य संस्था के सम्मान में नाचघर
में जाते हैं, सारी रात नाचते हैं, तब घर लौटते हैं, पशुवत् आचरण करते हैं, और
जेलों, पागलख़ानों, तथा अस्पतालों को भरने के लिए शैतानों को संसार में लाते
हैं। इस प्रकार यह चक्र चलता रहता है और यह सब, अस्पताल आदि बनवाना, भले काम
कहे जाते हैं। भले कामों का लक्ष्य यह है कि संसार के दु:ख को कम अथवा उसका
नाश किया जाए। योगी कहता है कि संसार के सब दु:ख मन के नियंत्रण में सफल न हो
पाने के कारण आते हैं। योगी का लक्ष्य प्रकृति से मुक्ति है। प्रकृति की विजय
उसके कार्य का प्रतिमान है। योगी कहता है कि संपूर्ण शक्ति आत्मा में है, और
मन तथा तन का नियंत्रण करके मनुष्य आत्मा की शक्ति से प्रकृति पर विजयी होता
है।
मनुष्य के शरीर में शारीरिक कार्यों के निमित्त जितनी मांसपेशियाँ आवश्यक
हैं, उससे वे जितने तोले अधिक होती हैं, उतना ही मस्तिष्क कम होता है।
अत्याधिक व्यायाम मत करो; वह हानिकारी है। जो कठोर परिश्रम नहीं करता, वह
सबसे अधिक जियेगा। कम भोजन करो और कम काम करो। मस्तिष्क का आहार संचित करो।
स्त्रियों के लिए घर का काम काफ़ी है।
दीपक को तेज़ मत जलाओ; उसे मंद मंद जलने दो।
युक्ताहार का अर्थ है सादा भोजन, जिसमें बहुत अधिक मसाले न हों।