हिंदू धर्म के सिद्धांतों का प्रसार करने और पाश्चात्य देशों में अत्यधिक
निंदित अपने धार्मिक विश्वासों के लिए कुछ आदर भाव उत्पन्न करने के
प्रयत्न में श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्यों को जो सफलता मिली है, उससे यह
आशा उत्पन्न हुई है कि कुछ युवा संन्यासियों को देश के भीतर और बाहर
धर्म-प्रचार का कार्य करने की प्रशिक्षा दी जा सकती है। और प्रयत्न किया जा
रहा है कि गुरु-शिष्य संपर्क के वैदिक सिद्धांत के अनुसार कुछ युवकों को
शिक्षित किया जाए।
कुछ यूरोपीय और अमेरिकी मित्रों की कृपा से कलकत्ता के निकट गंगा-तट पर एक मठ
पहले ही स्थापित किया जा चुका है।
अल्प समय में कुछ प्रत्यक्ष कार्य कर दिखाने के लिए इस अनुष्ठान को धन की
आवश्यकता है; और इसीलिए यह अपील उन लोगों से की जा रही है, जिन्हें हमारे इस
अनुष्ठान से सहानुभूति है।
मठ के कार्य-क्षेत्र को इस प्रकार विस्तृत करने का विचार है कि, हमारे कोष के
सामर्थ्य के अनुसार, अधिकाधिक युवकों को पाश्चात्य विज्ञान और भारतीय
अध्यात्म-शास्त्र दोनों की शिक्षा दी जाए, ताकि विश्वविद्यालय की शिक्षा से
होने वाले लाभों के साथ-साथ उन्हें, अपने गुरुजनों के संपर्क में रहकर, एक
पुरुषोचित अनुशासन की भी शिक्षा मिले ।
कलकत्ता के समीप का केंद्रीय मठ, जैसे जैसे साधन और साधक उपलब्ध होते जाएंगे
देश के अन्य भागों में, क्रमश: अपनी शाखाएँ स्थापित करता जाएगा।
यह एक ऐसा काम है, जिसका कोई स्थायी परिणाम निकलने में समय लगेगा; और हमारे
युवकों को और जिनके पास सहायता के साधन हैं, उनको काफी बलिदान करना पड़ेगा।
हमारा विश्वास है कि साधक उपलब्ध हैं, इसलिए हमारी प्रार्थना उनसे है,
जिन्हे अपने धर्म और अपने देश से प्रेम है और जिनके पास इस उद्देश्य मे सहायक
बनकर अपनी सहानुभूति को व्यावहारिक रूप से व्यक्त करने के साधन हैं।
विवेकानन्द।