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विमर्श

जीने की कला

एपिक्टेटस

अनुवाद - राजकिशोर


हर घटना का एक अच्‍छा पहलू होता है

दूसरों की पीड़ा से कैसे जुड़ें

अपना बचाव न करें

दोषारोपण से ऊपर उठें

अपनी भूमिका सर्वोत्तम ढंग से निभाएँ

वाणी पर नियंत्रण

बड़बोलेपन से बचें

अतिरेक के प्रति सतर्क रहें

सहने की ताकत

प्रसिद्ध होने की चिंता न करें

आशा में बँधना

आशा की राह

कामना की सीमा

कोई शिकायत नहीं

जीवन मानो एक दावत हो

हर घटना का एक अच्‍छा पहलू होता है

आप जैसा सोचते हैं, वैसा ही हो जाते हैं। किसी रूढि़वश घटनाओं में वह शक्ति या अर्थ न देखें जो उनमें नहीं है। दिमाग को शांत रखें। हमारा निरंतर क्रियाशील मस्तिष्‍क हमेशा ऐसे निष्‍कर्षों की ओर भागता रहता है और ऐसे संकेतों की रचना और व्‍याख्‍या करता रहता है जिनका अस्तित्‍व ही नहीं है।

इसके बजाय यह मान कर चलें कि जो भी आपके साथ घटित हो रहा है, वह अच्‍छे के लिए ही हो रहा है। सभी घटनाओं में आपके लिए फायदे की कोई बात निहित होती है-अगर आप उसकी तलाश करें।


दूसरों की पीड़ा से कैसे जुड़ें

दूसरे लोगों के विचार और मुश्किलें संक्रामक हो सकती हैं। दूसरों के जीवन में जो घटित हो रहा है, उसके प्रवाह में न बहें। अगर आप ऐसा करते हैं, तो अनजाने में ही नकारात्‍मक तथा अनुत्‍पादक दृष्टिकोण आप पर हावी हो सकता है।

अगर आपकी मुलाकात किसी भग्‍नहृदय मित्र, शोकग्रस्‍त माँ या पिता या किसी ऐसे सहकर्मी से हो जाए जिसे अभी-अभी दुर्भाग्‍य का झटका लगा है, तो उनकी यह बदकिस्‍मती आप पर हावी न हो जाए-इसका ध्‍यान रखें। घटनाओं और उनकी जो व्‍याख्‍या आप कर रहे हैं, इन दोनों के बीच फर्क करना है-यह आपको हमेशा याद रहना चाहिए। अपने को याद दिलाएँ : 'जो चीज आदमी को आघात पहुँचाती है, वह कोई घटना खुद नहीं है, क्‍योंकि संभव है कोई दूसरा आदमी ऐसी ही घटना से बिल्‍कुल पीड़ित न हो।' आदमी को जो चीज आघात पहुँचाती है, वह है उस घटना पर उसकी अविचारित प्रतिक्रिया।

हम जिन व्‍यक्तियों के प्रति लगाव का अनुभव करते हैं, उनकी बदगुमानी या उनकी नकारात्‍मक भावनाओं में हमारा खुद का डूब जाना उनके प्रति उदारता या मित्रता का प्रदर्शन नहीं है। तटस्‍थ और अतिनाटकीय प्रतिक्रियाओं से दूर रह कर हम अपने प्रति ही नहीं, दूसरों के प्रति भी ज्‍यादा सहृदयता दिखाते हैं। जब आप किसी उदास, आहत या कुंठित व्‍यक्ति के साथ बात करें, तो उसके प्रति उदारता दिखाएँ और उसकी बातों को सहानुभूति से सुनें। लेकिन अपने को धराशायी होने से रोकें। विनम्रता और संयम का यही नजरिया अपनी संतान, पति या पत्‍नी, कैरियर और वित्त के प्रति भी बनाए रखें। चाहत, ईर्ष्‍या और छीन-झपट की कोई जरूरत नहीं है। जब आपका समय आएगा, आपको अपना वाजिब हिस्‍सा मिलेगा।


अपना बचाव न करें

अपनी आलोचना या अपने बारे में बुरा-भला कहे जाने से चिंतित न हों।

जो नैतिक रूप से कमजोर होते हैं, वही दूसरों के सामने अपना बचाव करने या अपनी सफाई देने की बाध्‍यता का अनुभव करते हैं। आप अपने कामों की गुणवत्ता को आपकी ओर से बोलने दें। दूसरे हमारे बारे में क्‍या राय बनाते हैं, यह हमारे वश की बात नहीं है। इस दिशा में कोई भी कोशिश हमारे चरित्र को मलिन ही करेगी।

इसलिए अगर कोई आपको यह बताए कि अमुक व्‍यक्ति आपकी आलोचना कर रहा था, तो न तो अपना बचाव करें, न कोई बहाना बनाएँ। सिर्फ मुस्‍करा दें और कुछ इस तरह जवाब दें, 'लगता है उस व्‍यक्ति को मेरी दूसरी कमियों का पता नहीं है। नहीं तो वह सिर्फ इन्‍हीं का जिक्र न करता।'


दोषारोपण से ऊपर उठें

यदि चीजें नहीं, उनके बारे में हमारी भावनाएँ हमें अशांत करती हैं, तो इसका मतलब यही है कि दूसरों को दोष देना बेवकूफी है, इसलिए जब हमें झटका लगता है, हम क्षुब्‍ध होते हैं या दुख में पड़ते हैं, तो हमें इसके लिए दूसरों को दोषी नहीं ठहराना चाहिए। दोष तो हमारे नजरिये का है।

छोटे दिमाग के व्‍यक्ति अपनी बदकिस्‍मती के लिए, आदतन, दूसरों की निंदा करते हैं। औसत व्‍यक्ति अपने को ही जिम्‍मेदार ठहराते हैं। जो बुद्धिमत्तापूर्ण जीवन के प्रति समर्पित हैं, वे समझते हैं कि किसी और चीज या व्‍यक्ति को दोषी करार देना नासमझी है, कि किसी को भी-स्‍वयं को या दूसरों को- दोषी करार देने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है।

नैतिक प्रगति के चिह्नों में एक है, दोषारोपण की भावना का क्रमिक लोप यानी किसी की ओर उँगली उठाने की व्‍यर्थता की समझ। हम अपने नजरिये का जितनी बारीकी से परीक्षण करते हैं और अपने को जितना निखारते हैं, तूफानी भावनात्‍मक प्रतिक्रियाओं में हमारे बह जाने की संभावना उतना ही कम हो जाती है।


अपनी भूमिका सर्वोत्तम ढंग से निभाएँ

हम किसी नाटक के पात्रों की तरह हैं। प्राकृतिक विधान ने हमसे पूछे बिना जीवन में हमारी भूमिकाएँ तय कर दी हैं। हममें से कुछ कम अवधि के नाटक में अभिनय करेंगे, तो कुछ के नाटक की अवधि लंबी होगी। हमें कोई भी भूमिका दी जा सकती है-गरीब आदमी की, विकलांग की, प्रसिद्ध व्‍यक्ति की, नेता की या सामान्‍य नागरिक की।

यद्यपि यह तय करना हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं है कि हमें कौन-सी भूमिका दी जाएगी, पर यह तो हम कर ही सकते हैं कि हमें जो भूमिका मिली है, उसे हम पूरी योग्‍यता लगा कर सर्वोत्तम रूप में अभिनीत करें ओर उसके बारे में शिकायत करते रहने से बचें। आप अपने को जहाँ भी और जिस परिस्थिति में भी पाएँ, आपका अभिनय पूरी तरह से त्रुटिहीन होना चाहिए।

उदाहरण के लिए, अगर आपको पाठक की भूमिका मिली है, तो अच्‍छी चीजें पढ़ें। अगर आपको लेखक की भूमिका मिली है, तो अच्‍छी चीजें लिखें।


वाणी पर नियंत्रण

सम्‍यक् वाणी नैतिक जीवन के सुस्‍पष्‍टतम चिह्नों में एक है।

सर्वप्रथम, बोलने के पहले सोचिए, ताकि आपका बोलना अच्‍छे उद्देश्‍य से ही हो। लापरवाही से बातचीत करना दूसरों का अनादर करना है। बिना कुछ सोचे-विचारे अपने भीतर की बातें बताते जाना स्‍वयं अपना असम्‍मान करना है। ढेर सारे लोग अपने मन में आने वाली हर भावना, हर विचार या हर प्रतिक्रिया को प्रकट करने के लिए अधीर पाए जाते हैं। वे परिणामों की चिंता किए बगैर, जो कुछ भी उनके दिमाग में है, उसे बाहर फेंकते जाते हैं। यह व्‍यावहारिक और नैतिक, दोनों ही दृष्टियों से खतरनाक है। अनुशासनहीन वाणी उस वाहन की तरह है जो अनियंत्रित भागी जा रही है और किसी गड्ढे में गिरने के लिए अभिशप्‍त है।

जरूरत पड़े तो ज्‍यादातर मौन रहें या कभी-कभी ही बोलें। दिन भर चपर-चपर करने से यह कहीं बेहतर है। सामाजिक या व्‍यावसायिक अवसरों की माँग हो तो जरूर बोलें, विचार-विमर्श में खुल कर हिस्‍सा लें, पर ध्‍यान रखें कि आप निरर्थक बकबक तो नहीं कर रहे हैं।

हमेशा बड़े-बड़े और उच्‍च विषयों पर बातचीत करना जरूरी नहीं है। पर तुच्‍छ चीजों में रस ले कर बातचीत करने से आप भी तुच्‍छ होते जाएँगे। दूसरे व्‍यक्तियों के बारे में ज्‍यादा चर्चा करने से हमारे क्षुद्र हो जाने का खतरा होता है। खास तौर से, दूसरों को दोषी ठहराने, उनकी प्रशंसा करने अथवा दो व्‍यक्तियों की तुलना करने से बचें।

विनोद भाव न त्‍यागें। उपयुक्‍त मौका हो, तो जी खोल कर हँसें। लेकिन पियक्‍कड़ों के बीच देखी जाने वाली उस अनियंत्रित ठहाकेबाजी से बचें, जो दुर्भावना और अश्‍लीलता से घिरी रहती है। लोगों के साथ हँसें, लोगों पर नहीं।

और, जहाँ तक हो सके, कोई ऐसा वादा न करें, जिसे पूरा करने के प्रति आप गंभीर नहीं हैं।


बड़बोलेपन से बचें

अपना महत्‍व जताना सच्‍चे विचारकों का लक्षण नहीं है। शेखी बघारने वाले का साथ किसी को अच्‍छा नहीं लगता। अपनी बहादुरी के नाटकीय किस्‍से सुना कर किसी पर अत्‍याचार न करें। आपने कितने बड़े-बड़े कारनामे किए हैं, कहाँ कब कितने साहस का परिचय दिया, इसमें किसी की दिलचस्‍पी क्‍यों हो? यह और बात है कि लोग नम्रतावश आपको कुछ देर तक सहन करते रहें। अपनी उपलब्धियों का अकसर और बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन करना दूसरों के धीरज की परीक्षा लेना है।

आप अपने बारे में बता कर अपने को जितना श्रेष्‍ठ साबित करने की कोशिश करते हैं, अपने श्रोताओं की नजर में उतना ही गिरते हैं।


अतिरेक के प्रति सतर्क रहें

निरंतर सतर्कता से ही हम अतिरेक की आदत से अपने को बचाए रख सकते हैं। आपकी संपत्ति आपके शरीर की आवश्‍यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए, जैसे जूता पाँव के नाप के बराबर होना चाहिए।

नैतिक प्रशिक्षण के बगैर हम अतिरेक के शिकार हो सकते हैं। जूतों का ही उदाहरण लें। हमें आरामदेह, सही नाप के और टिकाऊ जूतों की जरूरत है। लेकिन बहुत-से लोग तरह-तरह के सुंदर, अलंकृत, महँगे जूते खरीदते जाते हैं।

आत्‍मसंयम हमने बस एक बार, चाहे जितने ही सामान्‍य मामले में, खो दिया, वह अपनी गति पकड़ लेता है और हम तृष्‍णा के गुलाम बन कर रह जाते हैं।


सहने की ताकत

जिनका शरीर तंदुरुस्‍त है, उनमें गर्मी और जाड़ा, दोनों को सहने की शक्ति होती है। इसी तरह, जिनकी आत्‍मा स्‍वस्‍थ है, वे ही क्रोध, दुख, अतिशय आनंद तथा अन्‍य संवेगों का भार उठा सकते हैं।


प्रसिद्ध होने की चिंता न करें

इस तरह की चिंताओं से कभी परेशान होने की जरूरत नहीं है कि 'मेरे बारे में लोगों की राय अच्‍छी नहीं है' या 'मेरी कोई हैसियत नहीं है'। अगर आपकी प्रतिष्‍ठा सचमुच कुछ मायने रखती है, तब भी आप इसके लिए जिम्‍मेदार नहीं है कि दूसरे आपके बारे में क्‍या सोचते हैं। आप एक ताकतवर पद पर आसीन हैं या नहीं अथवा आपको बड़ी-बड़ी दावतों में आमंत्रित किया जाता है या नहीं, इससे आपके चरित्र और सुखी होने में क्‍या सचमुच कोई फर्क पड़ता है? बिल्‍कुल नहीं, अतएव सत्ताधारी या प्रसिद्ध व्‍यक्ति न होने से आपकी बदनामी कैसे हो सकती है और, आप एक महत्‍वहीन व्‍यक्ति हैं, यह सोच कर फिक्र में क्‍यों पड़ जाएँ, जबकि असली महतव की बात ऐसे क्षेत्रों में महत्‍वपूर्ण व्‍यक्ति होने की है जिन पर आपका नियंत्रण है और जहाँ आप सचमुच कुछ खास कर सकते हैं।


आशा में बँधना

जहाज को किसी छोटे-से लंगर से नहीं बाँधना चाहिए-न ही जीवन को किसी एक आशा से।

आशा की राह

हमारे पैर वहीं तक जा सकते हैं जहाँ तक राह होने की संभावना है। क्‍या यही सिद्धांत हमारी आशाओं पर भी लागू नहीं होता?


कामना की सीमा

जब हमें कहीं खाने-पीने पर आमंत्रित किया जाता है, तो वहाँ जो कुछ उपलब्‍ध होता है, हम उसका आनंद उठाते हैं। अगर वहाँ केक या मछली नहीं है और कोई इसकी फरमाइश करने लगता है, तो इस आचरण को बेतुका माना जाता है।

फिर भी, हम उन चीजों की कामना करते रहते हैं जो हमारे पास नहीं हैं-इसके बावजूद कि हमारे पास ढेर सारी चीजें मौजूद हैं।


कोई शिकायत नहीं

अगर लोग आपके साथ सम्‍मानपूर्ण ढंग से पेश नहीं आते या आपके बारे में उलटी-पुलटी बातें करते हैं, तो याद रखें कि वे ऐसा इसलिए करते हैं क्‍योंकि उन्‍हें लगता है कि यही उचित है।

दूसरों से यह उम्‍मीद करना यथार्थपरक नहीं है कि वे भी आपको उसी तरह देखेंगे जैसे आप अपने आपको देखते हैं। अगर कोई गलत आधार पर किसी निष्‍कर्ष पर पहुँचता है, तो इससे क्षति उसी की होगी-आपकी नहीं, क्‍योंकि अज्ञान का शिकार वह हुआ है-आप नहीं। आपने यह बात एक बार साफ-साफ समझ ली, तो दूसरों के द्वारा आपके आहत होने की संभावना बहुत कम हो जाएगी-भले ही वे आपका तिरस्‍कार कर रहे हों। वैसी स्थिति में आप अपने आपसे कह सकते हैं : 'उस आदमी को ऐसा ही लग रहा होगा! लेकिन यह उसकी अपनी समझ है!'


जीवन मानो एक दावत हो

जीवन को इस तरह ग्रहण करें मानो वह एक दावत हो जिसमें आपको शालीनता के साथ पेश आना है। जब तश्‍तरियाँ आपकी ओर बढ़ाई जाएँ, अपना हाथ बढ़ाएँ और थोड़ा-सा उठा लें। अगर कोई तश्‍तरी आपके पास से गुजर कर चली गई, तो आपकी प्‍लेट में जो कुछ मौजूद है, उसका स्‍वाद लेते रहें। अगर कोई तश्‍तरी अभी तक आपके पास नहीं लाई गई है, तो धीरज के साथ अपनी पारी की प्रतीक्षा करें।

नम्रता, संयम और कृतज्ञता के इसी दृष्टिकोण के साथ अपने बच्‍चों, पति या पत्‍नी, कैरियर और आर्थिक स्थिति के साथ पेश आएँ। कामना से अधीर होने की, ईर्ष्‍या करने की और हड़पने के लिए झपटने की कोई जरूरत नहीं है। जब आपका समय आएगा, आपका प्राप्‍त आपको मिल जाएगा।


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