कविता
अज्ञेय की कविता ए. अरविंदाक्षन
किरीटि तरु की तरह सबके लिए बसेरा बनकर हवा में झूलती रहती है एक प्रेम-तरु है वह।
हिंदी समय में ए. अरविंदाक्षन की रचनाएँ