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कविता

कविताएँ

पाब्लो नेरूदा

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ताकि तुम सुन सको मुझे

मेरे शब्दों को
कभी-कभी वे होते विरल

समुद्री चिड़ियों के पदचिन्हों-से समुद्र-तटों पर

यह गलहार मदमस्त घंटी

छैलकड़ी तुम्हारे अंगूरी नरम हाथों के लिए

और मैं देखता हूँ अपने शब्दों को एक लम्बी दूरी से

मुझ से बहुत अधिक वे तुम्हारे हैं,

लता की तरह मेरी पुरानी पीड़ाओं पर वे करते आरोहण

जो चढ़ती सीलन-भरी दीवारों पर इसी तरीक़े से,

इस निष्ठुर क्रीड़ा के लिए दोषी हो तुम,

वे निकल भागते मेरे उदास-अंधेरे बिछौने से,

सब कुछ भर देती हो, तुम भर देती हो सब कुछ

तुमसे पहले आबाद कर देते हैं मेरे शब्द

उस एकान्त को, जहाँ तुम जगह लेती हो,

और तुम्हारी बनिस्बत मेरी उदासी में अधिक काम के हैं वे !

अब मैं उन्हें कहना चाहता हूँ जो मैं चाहता रहा हूँ तुम्हें कहना

सुनने के लिए तैयार करते हुए कि; मैं चाहता हूँ तुम सुनो मुझे

व्यथा की हवाएँ चुपचाप खींच ले जाती हैं हमेशा की तरह

कभी-कभी सपनों के तूफ़ान निश्शब्द खटखटाते हैं उन्हें

तुम ध्यान देती हो दूसरी आवाज़ों पर मेरी दुख भरी अभिव्यक्ति के बीच

जैसे पुराने सुने शोकगीत, पुरानी प्रार्थनाओं के स्वभाव, कुल-गोत्र

प्यार करो मुझे मेरे साथी, यूँ त्यागो नहीं,

अनुसरण करो मेरा, मेरी मित्र, दुख की इस तेज़ लहर में ।

पर मेरे शब्द तो तुम्हारे प्रेम से रंगे हैं

घेर लिया है सब कुछ तुमने, तुमने घेर लिया सभी कुछ

रच रहा हूँ उन्हें एक अन्तहीन माला में


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