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कविता

तुम तूफान समझ पाओगे?

हरिवंश राय बच्चन


तुम तूफान समझ पाओगे?
 

गीले बादल, पीले रजकण,
सूखे पत्ते, रूखे तृण घन
ले कर चलता करता 'हरहर' - इसका गान समझ पाओगे?
तुम तूफान समझ पाओगे?

गंध-भरा यह मंद पवन था,
लहराता इससे मधुवन था,
सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?
तुम तूफान समझ पाओगे?

तोड़-मरोड़ विटप-लतिकाएँ,
नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएँ,
जाता है अज्ञात दिशा को! हटो विहंगम, उड़ जाओगे !
तुम तूफान समझ पाओगे?

 


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