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कविता

मैं पानी हूँ

बसंत त्रिपाठी


मैं पानी हूँ
तरल     बहूँगा तो बजूँगा
जैसे संतूर

लेकिन अभी तो रिसता हूँ
रंध्रों से बेआवाज

पहुँचता हूँ  दूर   दूर   दूर
भीतर ही भीतर
वहाँ    सदियों की नींद टूटती है जहाँ

मैं धरती के भीतर का पानी हूँ
नदियों झरनों या समुद्र में नहीं
धरती के भीतर रहता हूँ
मिट्टी और चट्टानों का लिहाफ ओढ़

मैं पानी हूँ
मैं तुम्हारी प्यास ढूँढ़ता हूँ।

 


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