मैं कितने भी अप्रभावी तरीके से मगर कहता हूँ चुप नहीं रहता हूँ
तुम कितने भी आरोप लगाओ मगर सुनते बिल्कुल नहीं हो
और देखो तुम ही दिखाई पड़ते हो चमकदार!
हिंदी समय में बसंत त्रिपाठी की रचनाएँ