चौराहे पर खड़ा रिक्शा इंतजार करता रह गया
सिटी बस सर्विस ने यही तोहफा दिया है उसे
धीमे-धीमे अपनी ही मौत का इंतजार
हिंदी समय में बसंत त्रिपाठी की रचनाएँ