मुझे उम्मीद है कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिए, बाघ बन जाएगा कवि, जैसे डायनासोर बन गया छिपकली, और कवि कभी कभी बाघ। वह पंजा ही है जो बाघ और कवि को लाता है समकक्ष। दोनों ही निशान छोड़ते हैं। मारे जाते हैं।
हिंदी समय में फ़रीद ख़ाँ की रचनाएँ