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कविता

नया जन्म

फ़रीद ख़ाँ


1

एक नया जन्म लेना चाहता हूँ, पर शिशु के रूप में नहीं। उतना ही वयस्क, जितना अभी हूँ, हो कर जन्म लेना चाहता हूँ।

मन को, जिसने बाँध रखा है इस जन्म में,
उसे छोड़ कर लेना चाहता हूँ जन्म।

जो कुछ अमानवीय है, वे सब छूट जाएँ उस नए जन्म में।
चाहता हूँ कि खो जाएँ सारी भूलें।
कोई न पुकारे पीछे से।
रफू कर सकें जो कुछ फटा पुराना है।
इसलिए,
जन्म लेना चाहता हूँ फिर से असल में स्वतंत्र।


2

नया जन्म गर्भ से निकलना नहीं होगा।
न ही होगा किसी की निगरानी में पलना।

गंगा में एक डुबकी लगा कर निकलना, होगा नया जन्म।
निकलते ही हम लेंगे धूप की पहली सेंक अपनी तरह से।
और कपड़े पहनेंगे अपने करघे के।


3

मेरे साथ इस नए जन्म में मेरे दोस्त हाथ बढ़ाओ।
यह नया जन्म इंसाफ के संघर्ष का होगा। यकीन मानो।
मतभेद के साथ अहिंसक, अस्तित्व और सम्मान का होगा।


जो भी होगा अच्छा ही होगा,
क्यों कि अभी जो भी अच्छा नहीं है, उसे ही डुबोने के लिए लगाएँगे डुबकी गंगा में।
फिर निकलेंगे होकर शुद्ध,
बनकर गंगा पुत्र।

 


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