hindisamay head


अ+ अ-

कविता

वह कर गया पार

फ़रीद ख़ाँ


उसके पूरे परिवार का अपहरण कर लिया गया। उसने बेगार से कर दिया था इनकार।
थोड़ा बहुत पढ़ लिया था नजर बचा के।

वह गाँव से लगी सड़क पर,
जहाँ बस आकर रुकती है थोड़ी देर,
खोलना चाहता था मोची की एक दुकान।

उसके घर के सामने नीम के पेड़ से उसे बाँध कर,
उसके ही सामने
घर वालों को घर में बंद कर,
कर दिया गया उनका दाह संस्कार।

सदियों से नंगे पैर रहने वाले अपने लोगों को,
रास्ते के काँटों से बचाने के लिए जूते चप्पल देने के उसके अरमान को आग अपनी जीभ से पकड़ पकड़ निगल रही थी।
उन्हें रफ्तार देने की उसकी कोशिश धू धू कर जल रही थी।

राख के बाद उसे छोड़ दिया गया।

वह राख के बीच बैठा था,
और राख उड़ उड़ कर उसके कंधे पर बैठ रही थी,
हाथों पर, होठों पर, सिर के बालों पर बैठ रही थी।
मानो उसकी बेटी कंधे पर चढ़ कर हुमक रही हो।
बीवी ने हाथ थाम कर होठों को चूमा हो।
विधवा माँ ने सिर पर हाथ फेरा हो।
और वह कर गया पार
गाँव की सीमा को पहली बार।

पर वह शहर नहीं गया,
जंगल गया।

सरकार के स्वर में स्वर मिलाते हुए,
अब रोज पत्रकार उसकी खबर छापते हैं।

 


End Text   End Text    End Text