hindisamay head


अ+ अ-

कविता

बापू

फ़रीद ख़ाँ


बापू!
मूर्ख मुझे मुसलमान समझते हैं।
उससे भी ज्यादा मूर्ख खुश होते हैं कि एक मुसलमान राम भजता है।
सच बताता हूँ तो मेरा मुँह ताकते हैं।

सीधी बात से वे चकरा जाते हैं।
टेढ़ी बात पर तरस खाने लगते हैं मुझ पर।

बापू!
मैं क्या करूँ अपने निर्दोष मित्रों का?

 


End Text   End Text    End Text