hindisamay head


अ+ अ-

कविता

बर्फीली धुंध में काला कव्वा

अलेक्सांद्र ब्लोक

अनुवाद - वरयाम सिंह


बर्फीली धुंध में काला कव्‍वा
साँवले कंधों पर काली मखमल
एक थकी कोमल आवाज
दक्षिण की रातों के सुना रही है गीत।

मौज-मस्‍ती है तनावमुक्‍त हृदय में
समुद्र से जैसे कोई संकेत मिला हो
अथाह गह्वर के ऊपर से उड़ता
अनंत की ओर चल दिया घोड़ा एक।

बर्फीली हवा, तुम्‍हारी साँस,
मदोन्‍मत मेरे होठ...
वालेंतीना, वह तारा, वह सपना !
कितना अच्‍छा गाती है तुम्‍हारी कोयल।

डरावनी यह दुनिया तंग पड़ रही है तुम्‍हारे हृदय के लिए,
तुम्‍हारे चुंबनों का सन्निपात है उसमें,
जिप्‍सी गीतों का काला अंधकार है
और है पुच्‍छलतारों की तेज उड़ान।

 


End Text   End Text    End Text