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कविता

मनुष्य जब करते हैं प्यार

वेलिमीर ख्लेब्निकोव

अनुवाद - वरयाम सिंह


मनुष्‍य जब प्‍यार करते हैं
वे अपनी आँखें फैलाते हैं
और आहें भरते हैं।
जानवर जब प्‍यार करते हैं
उड़ेल देते हैं उदासी आँखों में
और झाग से बनाते हैं लगाम का दहाना।
सूर्य जब प्‍यार करते हैं
ढक देते हैं रातों को पृथ्‍वी से बने वस्‍त्र से
और जाते हैं मित्रों के पास नृत्‍य करते हुए।
देवता जब प्‍यार करते हैं
कीलित कर देते हैं ब्रह्मांड के कंपन को
जैसे पूश्किन ने किया था वोल्‍कीन्‍स्‍कल की नौकरानी की प्रेमाग्नि को।

 


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