वर्ष, लोग ओर राष्ट्र दूरे चले जाते हैं सदा के लिए जैसे बहता हुआ पानी। प्रकृति के लचीले दर्पण में तारे जाल हैं, और मछलियाँ - हम और देवता - अंधकार में प्रेतात्माएँ।
हिंदी समय में वेलिमीर ख्लेब्निकोव की रचनाएँ