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पतझर के ठगों की सभा
ठगों के पतझर के विचार
चोटियाँ बनाती हुई हवा के बीच
किरणों की नींद।
हवा में आर्तनाद फेंकते
विवेक के होठ।
नदी के पानी का रुकना
बिछना मोटे कपड़े के जैसे बर्फीले रास्ते का।
अनुमान लगाती तीन लड़कियाँ -
कौन-सा छोकरा
किसका ?
उड़ते हुए कबूतर
आखिर उनकी उम्र भी क्या !
हर जगह क्षीण पड़ती छाया,
मेरी ओर बढ़ती आती बाड़,
ओ नहीं !
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