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(एक)
मालूम नहीं - कहाँ तुम हो और कहाँ मैं।
पर गीत हैं वही पुराने और चिन्ताएँ भी वही पुरानी।
उसी तरह के तुम्हारे साथ दोस्त!
उसी तरह के तुम्हारे साथ अनाथ!
बेघर, अनाथ, अपनी नींद खोये हुए
हम दोनों बहुत प्रिय लगता है होना साथ
दो पक्षी हम उठते ही गाने लगते हैं
दो घुमक्कड़ दुनिया के हाथों पलते हुए।
(दो)
छोटे-बड़े हर तरह के गिरजाघरों में
भटकती आ रही हैं हम दोनों
हम दोनों भटकती आ रही हैं
दरिद्र, धनी हर तरह के घरों में।
क्रेमलिन की दीवारों को देखकर
कहा था मैंने कभी - इसे खरीद डाल!
सोयी रह निश्चिंत,
ओ मेरी ज्येष्ठ डरावनी संतान,
जन्म से ही तेरा अधिकार है क्रेमलिन पर।
( तीन)
जिस तरह मिट्टी के नीचे
कच्ची धातु से दोस्ती रखती है घास -
सब कुछ दिखायी देता है दो उजले गढ़ों को
इस विराट अथाह आकाश में।
सिबिल्ल! बताओं, मेरी संतान को
क्यों मिली है नियति इस तरह की? क्यों मिली है नियति इस तरह की
आखिर उसे पूरी शताब्दी क्यों लगेगी
रूसी धरती और रूसी नियति प्राप्त करने में? रूसी धरती और रूसी नियति प्राप्त करने में
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