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जिंदा है मरा नहीं
मेरे भीतर का राक्षस!
मेरी देह में जैसे किसी जहाज के अंदर
अपने अंदर जैसे किसी जेल में।
दुनिया बस सिलसिला है दीवारों का।
बाहर निकलने का रास्ता-सिर्फ एक खंजर
(दुनिया एक मंच है
तुतलाया है अभिनेता)
छल कपट नहीं किया कोई
लँगड़े विदूषक ने।
जैसे ख्याति में,
जैसे चोगे में
वह रहता है अपनी देह में।
वर्षों बाद!
जिंदा हो - ख्याल रखो!
(केवल कवि
बोलते हैं झूठ, जैसे जुए में!)
ओ गीतकार बंधुओ,
हमारी किस्मत में नहीं है टहलना
पिता के चोगे की तरह
इस देह में।
हम पात्र है इससे कहीं अधिक श्रेष्ठ के
मुरझा जायेंगे इस गरमी में।
खूँटे की तरह गड़ी हुई इस देह में
और अपने भीतर जैसे बॉयलर में।
जरूरत नहीं बचाकर रखने की
ये नश्वर महानताएँ
देह में जैसे दलदल में!
देह में जैसे तहखाने में।
मुरझा गये हम
अपनी ही देह में निष्कासित,
देह में जैसे किसी षड्यंत्र में
लोहे के मुखौटे के शिकंजे में।
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