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कविता

प्रिय लिली को

ब्लादीमिर मायकोव्स्की

अनुवाद - वरयाम सिंह


(चिट्ठी के बदले)

निगल डाली है हवा तंबाकू के धएँ ने।
और कमरा हो गया है जैसे क्रुचोनिख के 'नर्क' का अध्‍याय।
याद करो -
जब पहली बार
इन खिड़कियों के पीछे
तुम्‍हारे उत्‍तेजित हाथ सहलाये थे मैंने।
आज बैठी हो
लोहे का-सा हृदय लिए।
संभव है एक और दिन
फेंक दोगी बाहर गालियाँ बकते हुए।
धुआँ भरे कमरे में देर तक
आस्‍तीनों में समा नहीं पायेगा काँपता हाथ।
भाग जाऊँगा
बाहर फेंक दूँगा शरीर।
पाशविक
निराशाओं का काटा हुआ
पागल हो जाऊँगा मैं।
कोई नहीं इसकी जरूरत
मेरी प्रिये,
आओ कर दें क्षमा हम एक दूसरे को।
यों विकल्‍प नहीं कोई दूसरा -
भारी वजन-सा मेरा प्रेम
लटका रहेगा तुम पर
जिधर भी चाहो भागना।
अंतिम चीख तक निकालने दो मुझे
अपमानित शिकायतों की आग।
जब कठिन हो जाता है
बैल के लिए जुते रहना
वह भाग जाता है
और टाँगें पसार कर लेट जाता है पानी में।
तुम्‍हारे प्‍यार के सिवा
कोई और समुद्र नहीं है मेरे लिए,
और तुम्‍हारा प्‍यार है
कि रोने पर भी
नहीं देता थोड़ा-सा आराम।
जब आराम करना चाहता है थका हाथी
शाही ठाठ से लेट जाता है वह गर्म रेत पर।
तुम्‍हारे प्‍यार के सिवा
कहीं नहीं है मेरे लिए धूप,
मालूम नहीं मुझे, तुम कहाँ हो और किसके साथ?
यदि प्रेयसी ने इसी तरह दी होती यंत्रणा कवि को
वह उसक बजाय स्‍वीकार करता ख्‍याति और धन,
पर मेरे लिए
एक भी गूँज नहीं है मधुर
तुम्‍हारे प्रिय नाम की गूँज के सिवा।
आत्‍महत्‍या नहीं करूँगा मैं खाई में कूद कर,
न ही पिऊँगा कोई जहर
और न ही दबा सकूँगा बंदूक का घोड़ा।
मेरे ऊपर
तुम्‍हारी नजर के सिवा
वश नहीं तेज से भी तेज खंजर का।

कल तक भूल जाओगी तुम
मैंने ही तो किया था तुम्‍हारा राज्‍याभिषेक,
कि जला डाला प्‍यार से खिलता हुआ हृदय,
और रिक्‍त दिनों का यह उत्‍सव
पन्‍ने बिखेर देता है मेरी पुस्‍तकों के
क्‍या सूखे पनने
ठीक से साँस लेने न देंगे
मेरे शब्‍दों को?
और नहीं
इतना करने की इजाजत तो दो
कि बिछा सकूँ मैं अपनी शेष बची कोमलता
प्रस्‍थान के लिए उठे तुम्‍हारे पाँवों के नीचे!

 


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