(प्राक्कथन)
कविताओं से भरी खोपड़ी
जाम की तरह उठाता हूँ मैं
तुम सबकी सेहत के लिए
जो मुझे पसंद रहे और आज भी हैं
जिन्हें अपने हृदय की गुफाओं में
देव प्रतिमाओं की तरह सजाए रखा है मैंने।
अक्सर सोचता हूँ मैं -
अच्छा नहीं होगा क्या
अपने अंत में लगाना गोलियों का पूर्ण विराम।
कुछ भी हो
आज दे रहा हूँ मैं
अपने संगीत का कार्यक्रम आखिरी बार।
इकट्ठी करो दिमाग के सभागार में,
प्रियजनों की अंतहीन कतारें।
हँसियों के ठहाके उँडेलो आँखों से आँखों में,
शाही शादियों से सजाओ
इस रात को,
खुशियों से भरो जिस्मों को
भूले न कोई यह रात,
आज मैं बजाऊँगा बाँसुरी -
अपनी रीढ़ की हड्डी।
(1)
पाँवों के पंखों से लाँघता कोसों लंबी सड़कें
कहाँ जाऊँगा मैं यह नरक छोड़ कर।
किस दिव्य हॉफ़्मान की
अभिशप्त तुम आयीं कल्पनाओं में?
तंग पड़ गयी हैं सड़कें
खुशियों के तूफानों को,
नजर नहीं आता अंत कहीं
सजे-धजे लोगों के त्योहार का।
सोचने लगता हूँ जब
बीमार और तपे हुए खून के लोंदों की तरह
टपकने लगते हैं विचार खोपड़ी से।
त्योहारों का रचयिता मैं
किसी का भी ढूँढ नहीं पाता साथ
त्योहारों में शामिल होने के लिए।
गिर पहूँगा इसी पल धड़ाम से पीठ के बल,
फोड़ दूँगा सिर निवा की चट्टानों पर।
हाँ, मैंने ही नकारा था खुदा को,
कहा था - खुदा है नहीं।
पर खुदा नारकीय गहराइयों से
निकाल लाया बाहर उसे
थरथराने लगते हैं पहाड़ भी जिसके सामने।
और हुक्म दिया मुझे -
ले, कर प्यार अब इसे।
संतुष्ट है खुदा।
आसमान के नीचे ढलान पर
पागलों की तरह चिल्लाता रहा दुखी इंसान।
खुदा पोंछता है हथेलियाँ।
सोचता है वह -
'ठहर तू, ब्लादीमिर!'
उसे ही तो आया था खयाल
तुम्हारे लिए पति ढूँढ़ निकालने का।
अब यदि चुपके से पहुँच जाऊँ
तुम्हारे शयन-कक्ष में
महकने लगेंगे ऊनी कंबल
धुआँ उठने लगेगा शैतान के मांस का।
ऐसा नहीं किया मैंने
बलिक थरथराता रहा गुस्से में सुबह तक
कि तुम्हें ले गये प्यार करने के लिए
मैं बस खरोंचता रह गया चीखें कविताओं में।
खराब होने लगा मेरा दिमाग।
क्यों न खेली जाय ताश
क्यों न शराब में सहलाई जाए
मरे हुए दिल की गर्दन।
मुझे जरूरत नहीं अब तेरी।
कुछ फर्क नहीं पड़ने का,
मालूम है मुझे
दम तोड़ दूँगा कुछ ही क्षणों में।
ओ खुदा,
सचमुच है तू अगर
तूने ही बुना है अगर तारों का आकाश
तूने ही भेजी है अगर
मुझे परखने कि लिए
दिन-ब-दिन बढ़ती यह तकलीफ
तो पहन न्यायाधीशों का पहरावा।
मेरे आने का तू इंतजार करना!
मैं आ जाऊँगा ठीक वक्त पर
एक भी दिन की देर किए बिना।
सुनो, ओ उच्चतम अन्वेषणाधिकारी
बंद कर लूँगा मुँह।
कटे होठों से निकलने न दूँगा एक भी चीख।
बाँध दो मुझे घोड़े की पूँछ की तरह पुच्छल तारे से,
और निकाल फेंकों
अपनी दाँतों की तरह।
या
जब मेरी आत्मा छोड़ दे यह शरीर
और हाजिर हो जाए तुम्हारे दरबार में,
नाराज तुम
फाँसी के फंदे की तरह
झुलाना आकाश-गंगा
और झकझोर डालना
मुझ अपराधी को।
चाहो तो टुकड़े-टुकड़े कर डालना मेरे
ओ खुदा,
मैं स्वयं पोंछूँगा तेरे हाथ।
सुन इतनी-सी बात
ले जा मेरे पास से इस औरत को
बनाया है जिसे तूने मेरी प्रेमिका?
पाँव के पंखों से लाँघता कोसों लंबी सड़कें
कहाँ जा पाऊँगा मैं यह नरक छोड़!
किस दिव्य हाफ्मान की
अभिशप्त तुम आयीं कल्पनाओं में?
(2)
और आसमान
धुएँ के बीच भूल गया अपना रंग,
और बादल हैं जैसे फटीचर शरणार्थी
मैं उदित हूँगा अपने अंतिम प्यार में चमकता हुआ
क्षय रोगी के गालों की लाली की तरह।
ढँक दूँगा खुशियों से
उन लोगों की भीड़ के शोर को
जो भूल गये हैं स्वाद अपने घर और आराम का।
सुनो, लोगो,
निकल आओ खाइयों से बाहर।
लड़ लेना बाद में।
अगर विवेकहीन लड़ाई हो भी रही हो
खौलते खून में
बाखुस की तरह
क्षीण नहीं पड़ेंगे प्रेम के शब्द।
प्रिय जर्मन लोगों,
मुझे मालूम है - तुम्हारे होठों पर
ग्रेटखन है गोयटे की
संगीन पर मुस्कराते हुए
मरता है फ्रांसीसी।
मुस्कान खिली रहती है
घायल बेहोश यानचालक के होठों पर।
ओ त्रावियाता
याद आता है चुंबन में डूबा तुम्हारा चेहरा।
मुझे मतलब नहीं उस गुलाबी गोश्त से
नोंचती आ रही हैं जिसे शताब्दियाँ।
आज लेट जाओ नये पाँवों के पास।
ओ सुर्खी किए लाल गालों वाली
गा रहा हूँ मैं आज तुम्हें।
संभव है जब दाढ़ी पर सफ़ेद रंग फेरेंगी शताब्दियाँ
संगीन की धार की तरह
बाकी बचोगी
तुम
और एक शहर से दूसरे शहर भगाया जाता हुआ
मैं।
ले जायेंगे समुद्रपार तुम्हें
रात की खोह में छुपी होगी तुम।
लंदन की धुंध चीरते हुए
तुम्हें भेजे हुए मेरे चुंबन
स्पर्श करेंगे मशालों के होठों का
मरुस्थलों की लौ में
फैलाऊँगा मैं कारवाँ
जहाँ पहरा दे रहे होंगे शेर,
तुम्हारे लिए
हवाओं द्वारात्रस्त धूल के नीचे
सहारा की तरह
रख दूँगा अपे दहकते गाल।
होठों पर बिठाए मुस्कान
तुम देखती हो -
कितना हैं सुंदर वृषयोद्धा।
और मैं ईर्ष्या को बैल की आँख की तरह
निकला फेंक दूँगा दर्शक दीर्घा पर।
घसीट लाओगी पुल तक अपने भुलक्कड़ कदम।
सोचोगी -
कितना अच्छा है नीचे।
यह मैं दूँगा सीन की तरह
पुल के नीचे बहता हुआ।
पुकारूँगा, हँस दूँगा, सड़े दाँत दिखाते हुए।
दुलत्ती चलते घोड़े पर बैठी
किसी दूसरे के साथ
तुम लगा दोगी आग
स्त्रेल्का या स्कोलिनिकी में
नग्न और प्रतीक्षारत
यह मैं हूँगा चाँद की तरह तरसाता हुआ।
उन्हें जरूरत पड़ेगी
मुझ ताकतवर की।
आदेश मिलेगा :
जा, मार आ अपने को युद्ध में,
तेरा नाम होगा
बम से टुकड़ा-टुकड़ा हुए अंतिम होठों पर।
मैं मिट जाऊँगा मुकुट
या सेंट हेलेन की तरह।
जिंदगी के तूफान पर लगाम लगाए
मैं हूँ बराबरी का उम्मीदवार
कैद के लिए या ब्रम्हांड के सम्राट पद के लिए।
सम्राट होना
लिखा है मेरे भाग्य में-
मैं हुक्म दूँगा प्रजा को
सोने के सिक्कों पर तुम्हारा मुखड़ा कुरेदने का।
और वहाँ
जहाँ टूंड्रा की तरह फीकी पड़ जाती है दुनिया,
जहाँ उत्तरी हवाओं से
चलता है नदियों का व्यापार -
हाथों पर खरोंचूँगा लिली का नाम
और चूमूँगा उन्हें कारगार के अंधकार में।
सुनों लोगो,
तुम जो भूल गये हो आकाश का नीला रंग,
तुम जो बिदक गये हो ढोरों की तरह,
संभव है यह
क्षयरोगी के गालों की सुर्खी की तरह
चमक उठा हो इस दुनिया में अंतिम प्यार।
(3)
भूल जाऊँगा मैं - साल, दिन, तारीख,
बंद कर दूँगा स्वयं को अकेला कागज के पन्ने के साथ,
दिखाओ अपने करिश्मे, ओ अमानवीय जादू,
यातनाओं से आलोकित शब्दों के।
आज प्रवेश ही किया था मैंने
कि महसूस हुआ
सब कुछ ठीक नहीं है इस घर में।
तुम कुछ छिपा रही थी अपे रेशमी वस्त्रों में,
फैल रही थी खुशबू हवा में धूप की।
'खुश हो क्या? '
उत्तर में ठंडा 'बहुत'।
'भय ने तोड़ दी है विवेक की बाड़।
दहकता हुआ बुखार में
मैं लगा रहा हूँ निराशाओं के ढेर।
सुनो, तुम छिपा नहीं सकोगी यह लाश,
ज्वालामुखी के सिर पर ये भयानक शब्द।
कुछ भी हो
तुम्हारी हर मांसपेशी
भोंपू की तरह दे रही है आवाज -
मर गयी, मर गयी, मर गयी।
नहीं, जवाब दो!
झूठ मत बोलो!
कैसे जाऊँगा मैं वापिस इस तरह?
दो कब्रों के गढ़ों की तरह
खुद आयी हैं आँखें तुम्हारे चेहरे पर।
गहरी होती जा रही है कब्रें।
दिखाई नहीं देता कोई तला।
लगता है
गिर पडूँगा दिनों के फाँसी के तख्ते से
रस्सियों की तरह टाँग दिया है मैंने अपना हृदय,
मैं झूल रहा हूँ उन पर
शब्दों के करतब दिखाता।
मालूम है मुझे
प्यार ने घिसा दिया है उसे।
सैकड़ौ लक्षणों के आधार पर
लगा सकता हूँ मैं ऊब का अनुमान।
मेरे हृदय में
प्राप्त करो अपना यौवन!
शरीर के उत्सव से
परिचय कराओ अपने हृदय का।
मालूम है मुझे -
हर कोई चुकाता है औरत की कीमत।
कोई फर्क नहीं पड़ेगा
अगर पेरिस के फैशनेबल कपड़ों के बजाए
तुम्हें पहनाऊँ मैं धुआँ तंबाकू का।
प्राचीन पैगंबर की तरह
हजारों राहों से ले जाऊॅंगा अपना प्यार।
जिस मुकुट को बनने में लगे हैं हजारों वर्ष
इंद्रधनुष की तरह अंकित है उसमें मेरी पीड़ा के शब्द।
जिस तरह वजन उठाने के खेल में
पिर की जीत हासिल की हाथियों ने,
प्रतिभाशाली व्यक्ति की तरह
मैंने कदम-ताल किया है तुम्हारे दिमागों पर।
लेकिन व्यर्थ है यह सब
तुम्हें तो तोड़ नहीं पाऊॅंगा मैं।
खुश हो लो,
हाँ, खुश हो लो,
तुमने कर डाला है अंत।
अब दुख हो रहा है इतना
कि बस जा सकूँ अगर नहर तक
पूरा सिर दे डालूँगा पानी में।
तुमने दिए होठ।
कितने भद्दे ढंग से पेश आती हो तुम अपने होठों से -
छुआ नहीं उन्हें कि ठंडा पड़ जाता हूँ मैं
जैसे कि तुम्हें नहीं
चूम रहा होऊँ मंदिर की ठंडी चट्टानों को।
खड़ाक खुले किवाड़।
उसने किया प्रवेश,
सड़कों की खुशी से भीगा हुआ मैं
विलाप में टूट गया दो हिस्सों में।
मैं चिल्लाया उस पर।
'ठीक है चला जाऊँगा।
तेरी जीत हुई,
चीथड़े पहना उसे!
कोमल पंखों जैसे जिस्म पर भर गयी है रेशम की चर्बी।
सावधान, कहीं उड़ न जाए तेरी बीवी
बाँध दे उसके गले में हीरों के हार।'
उफ यह रात।
स्वयं ही कसता गया और अधिक निराशाओं को।
थरथराने लगा है कमरे का थोबड़ा
मेरे हँसने और रोने से।
और पिशाच की तरह
तुम से दूर ले जाया गया चेहरा उठा।
उसके गालों पर आँखों की तरह चमक उठीं तुम।
किसी नये ब्यालिक की कल्पनाओं में
आयी हो जैसे यहूदी सिओना-साम्राज्ञी।
टेक दिए घुटने यातनाओं के आगे।
सम्राट अल्बेर्त
सारा शहर भेंट कर
उपहारों से लदे जन्म-दिन की तरह खड़ा है मेरे साथ।
सोना हो जाओ धूप, फूल और घास में
बहार हो जाओ, ओ सब तत्तवों के जीवन।
मैं चाहता हूँ एक ही नशा
कविताओं को पीते रहने का।
ओ प्रिये,
तुम तो चुरा चुकी हो हृदय
हर चीज से वंचित कर उसे,
बहुत दुख दे रही हो तुम मुझे।
स्वीकार करो मेरा उपहार।
इससे अधिक, संभव है, सोच न पाऊँ कुछ और।
आज की तारीख पर फेरी त्योहारों के रंग।
दिखाओ, सूली से अपना करिश्मा, ओ जादू,
देखो -
शब्दों की कीलों से
कागज पर ठुका पड़ा हूँ मैं।
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