औ
हिंदी वर्णमाला का स्वर वर्ण। उच्चारण की दृष्टि से यह निम्नतर-मध्य, पश्च, गोलित, दीर्घ स्वर है, जैसे- और। 'आ' या 'व्' के पूर्व संध्यक्षर [अउ] के रूप में भी
उच्चरित होता है, जैसे- कौआ/कौवा, हौआ/हौवा। कुछ शब्दों में इसका उच्चारण [अव्] भी है, जैसे- गौरव, सौरभ।
औंटन
(सं.) [सं-पु.] 1. लकड़ी का ठीहा जिसमें पशुओं को चारा दिया जाता है 2. वह ठीहा जिसपर ऊख या गन्ने की गड़ेरी काटी जाती है। [सं-स्त्री.] औंटन की क्रिया।
औंठ
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. परती पड़ी हुई ज़मीन; बंजर ज़मीन 2. कपड़े, बर्तन आदि का किनारा।
औंधा
(सं.) [वि.] 1. जिसका सिर या मुँह नीचे की ओर हो गया हो; पट; उलटा; नीचे की ओर झुका 2. पेट के बल लेटा हुआ 3. घड़े, पतीले आदि बरतनों का मुँह नीचे और पेंदा ऊपर
होने की स्थिति।
औंधाना
[क्रि-स.] उलटा कर देना; उलटना; झुकाना।
औंस
(इं.) [सं-पु.] वज़न की अँग्रेज़ी माप जो सवा दो तोले के समतुल्य होती है; (आउंस)।
औकात
(अ.) [सं-पु.] 1. समय; 'वक्त' का बहुवचन 2. वर्तमान समय की परिस्थितियाँ 3. {ला-अ.} शक्ति; सामर्थ्य; बिसात।
औकारांत
[वि.] ऐसे शब्द जिनका अंत औकार से हो।
औखा
[सं-पु.] 1. गाय का चर्म 2. गाय के चमड़े से बना चरसा या मोठ जो कुएँ से जल निकालने के काम आता है।
औगाहना
[क्रि-अ.] नहाना; जल में डुबकी लगाना। [क्रि-स.] 1. देखना 2. पार करना 3. बिलोड़ना; हलचल करना 4. ग्रहण करना।
औगी
[सं-स्त्री.] 1. पशुओं को हाँकने के काम आने वाली पैनी; छड़ी 2. रस्सी बटकर बनाया हुआ कोड़ा जो फटकारने पर आवाज़ करता है; चाबुक 3. कारचोबी जूते के ऊपर का चमड़ा
4. जंगली जानवर को पकड़ने के लिए खोदा हुआ गड्ढा।
औघ
(सं.) [सं-पु.] पानी का भराव या प्लावन; बाढ़।
औघड़
(सं.) [सं-पु.] 1. अघोर मत का अनुयायी; अवधूत; अघोरी 2. फ़कीर; मनमौजी। [वि.] 1. बेडौल; अनगढ़; अटपटा 2. विलक्षण; अजीबोगरीब; विचित्र स्वभाव का।
औचक
[सं-पु.] 1. अकस्मात कुछ घटित होने का भाव 2. मुश्किल 3. असमंजस की अवस्था। [वि.] अचानक; बिना सूचना के, जैसे- औचक निरीक्षण। [क्रि.वि.] एकदम से; अचानक।
औचट
[सं-स्त्री.] विकट स्थिति; कठिनाई। [क्रि-अ.] अचानक; संयोग से; हैरत में पड़कर।
औचित्य
(सं.) [सं-पु.] उचित होने की अवस्था या भाव; प्रासंगिकता।
औचित्य-स्थापन
(सं.) [सं-पु.] 1. उचित अवस्था या भाव की स्थापना करना 2. किसी विचार या मत की तर्कसंगत स्थापना।
औजस
(सं.) [सं-पु.] स्वर्ण; सोना।
औजसिक
(सं.) [वि.] ओज से युक्त; ओजस्वी; उत्साही; कार्य में मुस्तैद। [सं-पु.] वीर पुरुष।
औज़ार
(अ.) [सं-पु.] कार्य में सहायक उपकरण जिससे कार्य सरलता व शीघ्रता से पूर्ण होता है; लुहार, बढ़ई आदि कामगारों के उपकरण, जैसे- आरी, हथौड़ा, फावड़ा, खुरपी,
कैंची इत्यादि।
औझड़
[वि.] जो मूर्खतापूर्ण काम या बात करे; झक्की; मनमौजी; अक्खड़। [क्रि.वि.] लगातार; निरंतर।
औटना
[क्रि-स.] दूध, रस या किसी तरल पदार्थ को आँच पर चढ़ाकर गाढ़ा करना; खौलाना; देर तक उबालना। [क्रि-अ.] उबलना; खौलना; गाढ़ा होना।
औटनी
(सं.) [सं-स्त्री.] औटाने के लिए आँच पर चढ़ाए गए दूध या रस इत्यादि तरल पदार्थ को चलाने-हिलाने की कलछी; चमचा।
औटा
[परप्रत्य.] वह प्रत्यय जो कुछ शब्दों के अंत में लगकर उनके पात्र या आधान की जानकारी देता है, जैसे- काजल से कजलौटा, लाख से लखौटा। यह प्रत्यय इसी तरह
अल्पार्थक का भाव भी प्रकट करता है और पशु के बच्चे का वाचक भी होता है, जैसे- बिल्ली से बिलौटा।
औटाना
[क्रि-स.] दूध या रस जैसे किसी तरल पदार्थ को आँच पर खूब उबालकर गाढ़ा करना; दूध को आँच पर रखकर खोआ या मावा बनाने की प्रक्रिया।
औटी
[सं-स्त्री.] 1. पानी में गुड़, अजवायन और हल्दी वगैरह डालकर पकाया गया घोल जो गाय और भैंस को बच्चा जनने के बाद कमज़ोरी दूर करने के लिए दिया जाता है 2. ईख का
औटाया हुआ रस।
औढर
(सं.) [वि.] 1. मनमाने तरीके से किसी भी तरफ़ झुक जाने या लुढ़क पड़ने वाला 2. ज़रा-सा ख़ुश होने पर कुछ भी दे देने वाला व्यक्ति; आशुतोष 3. मनमौजी।
औढरदानी
[वि.] याचक को मनचाही चीज़ देकर निहाल कर देने वाला। [सं-पु.] शिव।
औतरना
[क्रि-अ.] दे. अवतरना।
औतिक
(सं.) [वि.] ऊतक से संबंधित; जिसका संबंध ऊतक से हो।
औतिकी
(सं.) [सं-स्त्री.] विज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवधारियों एवं वनस्पतियों का संघटन करने वाले सूक्ष्म ऊतकों का विश्लेषण-विवेचना होता है; (हिस्टोलॉजी)।
औत्सुक्य
(सं.) [सं-पु.] उत्सुकता; जिज्ञासा; उत्सुक होने की अवस्था या भाव।
औदरिक
(सं.) [वि.] 1. पेट या उदर संबंधी; उदर का 2. जो बहुत खाता है; पेटू।
औदार्य
(सं.) [सं-पु.] 1. उदारता; सात्विक नायक का एक गुण 2. श्रेष्ठता; महत्ता 3. अर्थगांभीर्य।
औदीच्य
(सं.) [वि.] उत्तर दिशा का; उत्तरी। [सं-पु.] गुजराती ब्राह्मणों में एक कुलनाम या सरनेम।
औदुंबर
(सं.) [सं-पु.] 1. यज्ञपात्र जो गूलर की लकड़ी से बना होता है 2. (पुराण) चौदह यमों में से एक। [वि.] 1. उदुंबर या गूलर का बना हुआ 2. ताँबे का बना हुआ।
औद्धत्य
(सं.) [सं-पु.] 1. उद्धत होने की अवस्था या भाव; अक्खड़पन; धृष्टता 2. चंचलता; छिछोरापन 3. उजड्डपन।
औद्योगिक
(सं.) [वि.] उद्योग संबंधी; जिसका संबंध किसी उद्योग से हो; (सामग्री) जो उद्योगों में काम आती है; (इंडस्ट्रियल)।
औद्योगिकी
(सं.) [सं-स्त्री.] उद्योगों का विकास करने तथा उन्हें सही तरीके से चलाने की रीति-नीति।
औद्योगीकरण
(सं.) [सं-पु.] व्यवस्था को उद्योग प्रधान बनाने की प्रक्रिया; उद्योगों की वृद्धि।
औद्वाहिक
(सं.) [सं-पु.] विवाह में उपहार स्वरूप मिला धन एवं आभूषण। [वि.] विवाह से संबद्ध।
औने-पौने
[क्रि.वि.] तीन-चौथाई या उससे भी कुछ कम; अत्यंत कम मूल्य पर। [मु.] -करना : जितना दाम मिले, उतने पर बेच डालना।
औपक्रमिक
(सं.) [वि.] 1. उपक्रम विषयक या उपक्रम संबंधी 2. उपक्रम की तरह होने वाला।
औपचारिक
(सं.) [वि.] 1. उपचार के रूप में होने वाला 2. उपचार संबंधी 3. मात्र दिखावे के लिए किया जाने वाला (नियम, रीति या शिष्टाचार)।
औपचारिकता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. औपचारिक होने की अवस्था, गुण या भाव 2. बँधे हुए सामाजिक नियमों, विधियों का ऐसा आचरण या पालन जिसमें अपनापा न हो और जो केवल दिखाने के
लिए हो।
औपदेशिक
(सं.) [वि.] 1. उपदेश संबंधी 2. उपदेश एवं शिक्षा देकर जीविका चलाने वाला। [सं-पु.] 1. वह जो दूसरों को उपदेश, शिक्षा आदि देकर अपनी जीविका चलाता हो 2. उक्त
प्रकार की जीविका से प्राप्त किया हुआ धन।
औपनिधिक
(सं.) [वि.] 1. उपनिधि या धरोहर से संबंध रखने वाला 2. धरोहर संबंधी 3. धरोहर के रूप में रखा हुआ।
औपनिवेशिक
(सं.) [सं-पु.] उपनिवेश में रहने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. उपनिवेश संबंधी 2. उपनिवेश का; (कॉलॉनिअल)।
औपनिवेशिक स्वराज्य
(सं.) [सं-पु.] वह स्वराज या स्वायत्तता जो साम्राज्य के अधीनस्थ उपनिवेशों को प्राप्त होती है, जैसे- आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि में।
औपनिवेशीकरण
(सं.) [सं-पु.] 1. किसी देश द्वारा अन्य देशों को उपनिवेश बना लेना 2. उपनिवेश स्थापित करने की क्रिया।
औपनिषदिक
(सं.) [वि.] 1. उपनिषद संबंधी 2. उपनिषदों के समान।
औपन्यासिक
(सं.) [वि.] 1. उपन्यास से संबंधित 2. उपन्यास के लिए आवश्यक विशेषताओं से युक्त।
औपन्यासिकता
(सं.) [सं-स्त्री.] उपन्यास के लिए आवश्यक गुण या विशेषताएँ।
औपपत्तिक
(सं.) [वि.] 1. तर्क या युक्ति के द्वारा सिद्ध होने वाला 2. उपपत्ति संबंधी।
औपम्य
(सं.) [सं-पु.] 1. बराबरी या समानता का भाव 2. समता; सादृश्य।
औरंग
(फ़ा.) [सं-पु.] 1. बुद्धिमत्ता; दानाई 2. राजसिंहासन; तख़्तेशाही।
औरंग-उटांग
(मल.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का वनमानुष जो जावा, सुमात्रा आदि द्वीपों में पाया जाता है 2. बंदर की तरह का एक वनमानुष।
औरंगज़ेब
(फ़ा.) [वि.] राजसिंहासन की शोभा। [सं-पु.] 1. वह जिससे राजसिंहासन की शोभा हो 2. एक प्रसिद्ध मुगल सम्राट।
और
[वि.] अधिक। [अव्य.] तथा। [सर्व.] अन्य; गैर।
औरत
(अ.) [सं-स्त्री.] 1. महिला; नारी; स्त्री 2. पत्नी; भार्या; जोरू।
औरस
(सं.) [सं-पु.] धर्मपत्नी से उत्पन्न पुत्र; वैध पुत्र।
औरेब
(सं.) [सं-पु.] 1. वक्र या टेढ़ी गति 2. कपड़े की तिरछी काट 3. उलझन; संकट; झंझट 4. चाल; पेंच।
औलाद
(अ.) [सं-स्त्री.] संतान; वंश; पुत्र; पुत्री; बेटा; बेटी।
औला-दौला
[वि.] 1. जिसे किसी बात की चिंता या ध्यान न हो; लापरवाह; मौजी 2. जो उदारता दिखाने के समय कुछ भी सोच-विचार न करे।
औलिया
(अ.) [सं-पु.] 1. 'वली' का बहुवचन 2. संत; महात्मा; सिद्ध पुरुष 3. पहुँचा हुआ फ़कीर।
औषध
(सं.) [सं-पु.] 1. वह द्रव्य जिससे रोग का नाश हो; दवा 2. रोग दूर करने वाली वस्तु; (मेडिसिन)।
औषधशाला
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह स्थान जहाँ दवाएँ बनती हैं; दवाख़ाना; (फ़ार्मेसी)।
औषधालय
(सं.) [सं-पु.] वह स्थान जहाँ दवाओं का निर्माण अथवा बिक्री होती है, दवाख़ाना।
औषधि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. चिकित्सा के काम आने वाली जड़ी-बूटी या वनस्पति 2. रोगी के रोग का इलाज करने के लिए विधिपूर्वक बनाए हुए पदार्थों का मिश्रण।
औषधि-वर्ग
(सं.) [सं-पु.] आयुर्वेद में औषधियों का निर्धारित वर्ग, जैसे- रस, भस्म, अरिष्ट, अवलेह, वटी, चूर्ण आदि।
औषधीय
(सं.) [वि.] 1. दवा संबंधी 2. जिसमें रोग दूर करने के गुण हों (वनस्पति आदि)।
औषधोपचार
(सं.) [सं-पु.] 1. दवा द्वारा चिकित्सा 2. ऐसा उपचार जिसमें औषधि का इस्तेमाल हो।
औसत
(अ.) [सं-पु.] 1. कुछ संख्याओं का माध्य; मध्यमान 2. बराबर का परता 3. सामान्य; समष्टि का सम विभाग। [वि.] 1. सामान्य; मामूली; मध्यम 2. दरमियानी; बीच का;
साधारण; (ऐवरिज)।
औसतन
(अ.) [क्रि.वि.] अनुपात या औसत के हिसाब से।
औसान
(फ़ा.) [सं-पु.] हवास; होश, संज्ञा; बुद्धि।
औसाफ़
(अ.) [सं-पु.] 1. खासियत 2. गुण; खूबियाँ।