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वर्धा हिंदी शब्दकोश

संपादन - राम प्रकाश सक्सेना


क़ उच्चारण की दृष्टि से यह अलिजिह्वीय, अघोष, अल्पप्राण स्पर्श है। अरबी-फ़ारसी से आगत शब्दों में इस ध्वनि का प्रयोग किया जाता है। हिंदी वर्णमाला में यह अभी तक सम्मिलित नहीं किया गया है।

क ख ग [सं-पु.] {ला-अ.} किसी बात का आरंभिक या शुरुआती ज्ञान, जैसे- मुझे शास्त्रीय गायन का 'क ख ग' भी नहीं आता।

क1 हिंदी वर्णमाला का व्यंजन वर्ण। उच्चारण की दृष्टि से यह कोमल तालव्य, अघोष, अल्पप्राण स्पर्श है। संस्कृत में इसे कंठ्य माना गया है।

क2 [परप्रत्य.] यह प्रत्यय तत्सम क्रियाओं के बाद लगकर 'करने वाला' अर्थ देता है, जैसे- चालक, पालक, पाठक आदि।

कँकड़ीला [वि.] 1. कंकड़ों से भरा हुआ; पथरीला 2. जहाँ कंकड़ फैले हों (जगह या रास्ता) 3. किरकिरा; रेतीला।

कँकरीला [वि.] 1. कँकरी से युक्त; कँकड़ीला 2. जहाँ कंकड़ फैले हों।

कँखवारी [सं-स्त्री.] 1. काँख में होने वाली फुंसी; कँखौरी 2. बगल।

कँखौरी [सं-स्त्री.] 1. काँख; कुक्षि; बगल 2. काँख या बगल में होने वाला एक प्रकार का फोड़ा; कँखवारी।

कँगना [सं-पुं.] 1. कलाई में पहना जाने वाला एक गहना; कंगन; कड़ा 2. विवाह में कंगन बाँधते समय गाया जाने वाला एक लोकगीत। [सं-स्त्री.] खरपतवार या घास।

कँगला [वि.] 1. अत्यंत निर्धन; कंगाल 2. भुखमरी से पीड़ित; दुर्भिक्ष-पीड़ित 3. जिसका सब कुछ लुट गया हो 4. पराश्रित; परावलंबी।

कँगूरा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. शिखर; चोटी 2. इमारत की दीवार पर बने हुए छोटे-छोटे बुर्ज 3. कँगूरे की तरह की नक्काशी, छपाई जो इमारतों आदि में की जाती है।

कँगूरेदार (फ़ा.) [वि.] जिसमें शिखर के आकार की बनावट; जिसमें कँगूरे या शिखर बने हों।

कँघेरा [सं-पुं.] कंघी बनाने वाला कारीगर। [सं-स्त्री.] कंघेरिन।

कँचेरा [सं-पुं.] 1. काँच की चूड़ियाँ आदि बेचने वाला व्यक्ति 2. काँच की चीज़ें बनाने वाला व्यक्ति।

कँटबाँस [सं-पुं.] पतला और मज़बूत काँटेदार बाँस जिससे लाठी बनाई जाती है।

कँटिया [सं-स्त्री.] 1. छोटी कील 2. काँटा 3. मछली फँसाने वाली नुकीली अँकुसी या बंसी 4. कुएँ में गिरी हुई चीज़ों (बाल्टी आदि) को निकालने के लिए बनाया गया अँकुसियों का गुच्छा। [मु.] -लगाना : मुख्य तार में कँटिया फँसाकर चोरी से या अवैध रूप से बिजली का उपयोग करना।

कँटीला [वि.] 1. जिसमें काँटे लगे हुए हों, जैसे- कँटीला तार 2. जो काँटों से युक्त हो, जैसे- कँटीला पेड़।

कँटेरी (सं.) [सं-स्त्री.] भटकटैया नामक कँटीला पौधा।

कँडुवा [सं-पु.] अनाज की बालियों में होने वाला रोग; कंजुआ।

कँदैला [वि.] 1. गंदा; कीचड़ से लथपथ; गंदला 2. मलिन।

कँपकँपी [सं-स्त्री.] 1. क्रोध, भय या शीत आदि के कारण शरीर में होने वाला कंपन; काँपने की क्रिया, अवस्था या भाव; काँपना 2. संचलन 3. थरथराहट।

कँपना [क्रि-अ.] 1. काँपना 2. डरना 3. अकुलाना; थरथराना।

कँपाना [क्रि-स.] 1. काँपने के लिए प्रवृत्त करना 2. हिलाना; झकझोरना 3. डर दिखाना 4. कंप उत्पन्न करना 5. दहलाना 6. आंदोलित करना।

कँवल [सं-पुं.] 1. कमल 2. जल में पाया जाने वाला एक पौधा और उसका फूल; पद्म।

कँसुआ [सं-पु.] ईख के नए पौधों में लगने वाला एक कीड़ा जिससे उसकी कोंपलें सूखने लगती हैं।

कँसुला [सं-पु.] सुनारों द्वारा खोरिया (कटोरीनुमा) बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला काँसे का चौकोर टुकड़ा।

कंक (सं.) [सं-पु.] 1. सफ़ेद रंग की चील; वह शिकारी पक्षी जिसके पंख तीर में लगाए जाते थे 2. बगुला; 3. यमराज; मृत्यु 4. अज्ञातवास के दौरान युधिष्ठिर इसी नाम से राजा विराट के महल में रहे थे 5. कंस का भाई।

कंकट (सं.) [सं-पु.] 1. शरीर का कवच; बख़्तर 2. अंकुश 3. हद; सीमा।

कंकड़ [सं-पुं.] 1. ज़मीन पर मिलने वाले या चट्टान से टूटकर गिरे कठोर मिट्टी या पत्थर के नुकीले टुकड़े 2. सड़क बनाने की गिट्टी 3. पकी हुई ईंट या मिट्टी के बरतनों के टुकड़े 4. नदियों या झीलों के तल में मिलने वाले पत्थर के छोटे टुकड़े 5. सूखा हुआ तंबाकू का पत्ता जिसे गाँजे की तरह पिया जाता है।

कंकड़ी [सं-स्त्री.] 1. छोटा कंकड़; अँकटी; छर्री; रोड़ी 2. कण; छोटा टुकड़ा।

कंकड़ीला [वि.] 1. जिसमें कंकड़ पड़े या बिछे हुए हों 2. कंकड़ों से बना हुआ 3. कंकड़ों से भरा हुआ; कंकड़युक्त।

कंकण (सं.) [सं-पु.] 1. कलाई में पहनने का गोल आभूषण जो धातु का बना होता है; कंगन; सोने या चाँदी का कड़ा जो कलाई और टखने में पहना जाता है 2. वर- वधू के हाथ में विवाह के समय किसी देवी-देवता को मानते हुए बाँधा जाने वाला कलावा जिसमें गिरह के साथ लोहे का छल्ला, जायफल, सुपारी आदि बँधे होते हैं।

कंकणी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कमर में पहनने का घुँघरूदार गहना 2. चील नामक पक्षी।

कंकत (सं.) [सं-पु.] 1. एक ज़हरीला जीव 2. एक वृक्ष 3. कंघी।

कंकपत्र (सं.) [सं-पु.] 1. कंक पक्षी का पंख 2. ऐसा बाण जिसमें कंक पक्षी का पंख लगा हो।

कंकमुख (सं.) [वि.] बगुले के मुँह जैसा। [सं-पु.] एक प्रकार की चिमटी जिससे चुभा हुआ काँटा निकाला जा सके।

कंकाल (सं.) [सं-पु.] 1. मृत जीव-जंतुओं के शरीर का ढाँचा जो मांस के न रहने के बाद बचता है; ठठरी 2. अस्थिपंजर; हड्डियों का ढाँचा।

कंकालशेष (सं.) [वि.] 1. जो हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया हो 2. अतिकृश; अतिदुर्बल।

कंकालास्त्र (सं.) [सं-पु.] हड्डियों से बनाया जाने वाला एक प्राचीन अस्त्र।

कंकालिनी (सं.) [सं-स्त्री.] (पुराण) 1. काली माता 2. दुर्गा का एक रूप। [वि.] बुरे स्वभाव की या झगड़ालू; कर्कशा (स्त्री)।

कंकाली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कंकालिनी 2. प्रेतिनी 3. एक देवी; दुर्गा। [सं-पु.] भिक्षा माँगकर जीविका चलाने वाली जाति।

कंकु (सं.) [सं-पु.] एक अनाज; कँगनी (कम गुणवत्ता वाला अनाज)।

कंकूष (सं.) [सं-पु.] 1. भीतरी देह 2. शरीर का अंदरूनी भाग।

कंकेर [सं-पु.] 1. कड़ुवापन लिए हुए पान की एक किस्म या प्रजाति 2. एक प्रकार का कौआ।

कंकेलि (सं.) [सं-पु.] अशोक का पेड़।

कंख (सं.) [सं-पु.] 1. कर्मफल; फल का भोग 2. किए हुए अच्छे-बुरे कर्मों का परिणाम; पापभोग।

कंगन (सं.) [सं-पु.] कलाई में पहना जाने वाला सोने-चाँदी, काँच व अन्य धातु से निर्मित आभूषण; कड़ा।

कंगारू (अ.) [सं-पु.] 1. ऑस्ट्रेलिया, न्यूगिनी आदि देशों में पाया जाने वाला एक जानवर जो अपने छोटे बच्चों को पेट के पास बनी थैली में रखता है 2. {ला-अ.} ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम व खिलाड़ियों के लिए प्रयुक्त संबोधन।

कंगाल (सं.) [वि.] 1. जिसके पास धन न हो; निर्धन 2. जिसके पास कुछ खाने को न हो; भुक्खड़ 3. दरिद्र।

कंगाली [सं-स्त्री.] 1. कंगाल होने का भाव; दरिद्रता 2. गरीबी; निर्धनता; मुफ़लिसी।

कंगु [सं-स्त्री.] साँवा की जाति का एक मोटा अन्न।

कंघा (सं.) [सं-पु.] 1. सिर के बाल झाड़ने-सँवारने का दाँतेदार आला; प्रसाधनी; शाना 2. तागा कसने के लिए जुलाहों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला एक औज़ार।

कंघी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटे आकार का कंघा 2. एक पौधा जिसकी पत्तियाँ औषधि बनाने के काम आती हैं; अतिबला 3. जुलाहों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला एक उपकरण।

कंघीसाज़ (फ़ा.) [सं-पु.] कंघी बनाने वाला कारीगर।

कंचन (सं.) [सं-पु.] 1. स्वर्ण; सोना 2. धन-दौलत; धन-संपत्ति 3. लाल कचनार। [वि.] 1. स्वस्थ; निरोग 2. सुंदर और स्वच्छ; मनोहर 3. निर्मल 4. सोने के रंग का।

कंचनिया [सं-स्त्री.] 1. कचनार का पौधा 2. सोने का गहना या चीज़। [वि.] 1. कंचन या सोने से बना हुआ 2. कंचन या स्वर्ण के रंग का; पीली आभा वाला।

कंचनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कंचन जाति की स्त्री 2. देह व्यापार करने वाली स्त्री; वेश्या 3. अप्सरा।

कंचिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. फुंसी; फुड़िया 2. बाँस की डाली या टहनी।

कंचुक (सं.) [सं-पु.] 1. घुटनों तक रहने वाला पुराना पहनावा; जामा; अचकन 2. स्त्रियों की चोली; अँगिया 3. अँगरखा; कवच 4. भूसा; ऊपरी परत; छिलका 5. साँप की केंचुली।

कंचुकित (सं.) [वि.] 1. कवच या वस्त्रों से ढका हुआ 2. बख़्तरदार; कवचित।

कंचुकी (सं.) [सं-स्त्री.] अँगिया; चोली। [सं-पु.] 1. प्राचीन काल में राजमहल के रनिवास के दास-दासियों का मुखिया 2. अंतःपुर का अध्यक्ष या रक्षक 3. द्वारपाल 4. संस्कृत नाटकों का एक वृद्ध पात्र जो कंचुक धारण करता था तथा राजा का विश्वस्त होता था और रनिवास में बेरोक-टोक आ-जा सकता था।

कंचुली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चोली; अँगिया 2. साँप की केंचुली।

कंछा [सं-पु.] 1. नई कोंपल वाली पतली डाल 2. पौधे का कल्ला; कोंपल।

कंज (सं.) [सं-पु.] 1. ब्रह्मा 2. कमल 3. अमृत 4. केश 5. पैर के तलवे में पाया जाने वाला एक चिह्न। [वि.] जल से पैदा होने वाला।

कंज़ंप्शन (इं.) [सं-पु.] 1. उपभोग करने की क्रिया या भाव; खपत; ख़र्च; व्यय 2. उपभोग की वस्तु।

कंजई [वि.] 1. कंजे की फली अथवा धुएँ के रंग का 2. गहरा ख़ाकी।

कंजका (सं.) [सं-स्त्री.] कुँआरी लड़की; कुमारिका; कुमारी।

कंजकी (सं.) [वि.] कमल के समान; कमल जैसा।

कंजड़ [सं-पु.] एक घुमंतू जाति या समुदाय।

कंजड़ख़ाना (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. कंजरों के रहने का स्थान 2. {ला-अ.} अशिष्टतापूर्ण शोरगुल से युक्त परिवेश; अनुशासनहीन स्थान।

कंजर (सं.) [सं-पु.] 1. हाथी 2. सूर्य 3. ब्रह्मा।

कंजल (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का पक्षी।

कंजा (सं.) [सं-पु.] एक कँटीली झाड़ी जिसकी फली से औषधि बनाई जाती है। [वि.] 1. जिसकी आँखें कंजी हों 2. ख़ाकी रंग का, कंजे की फली के रंग का 3. गहरा ख़ाकी।

कंजाभ (सं.) [सं-पु.] कमल जैसी आभा। [वि.] कमल के समान कांति वाला।

कंजावलि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक वर्णिक छंद 2. पंकजवाटिका 3. एकावली।

कंजिका (सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार का पौधा जिसकी पत्तियाँ दवा बनाने में प्रयुक्त होती हैं; भारंगी।

कंजियाना [क्रि-अ.] 1. कंजई रंग का होना; कुछ नीलापन लिए काला हो जाना 2. अंगारों का बुझ जाना; झँवाना 3. मुरझाना 4. ठंडा होना।

कंजी (सं.) [वि.] गहरे ख़ाकी रंग का।

कंजूस (सं.) [वि.] 1. धन होने पर भी ज़रूरत के समय ख़र्च न करने वाला व्यक्ति 2. जो हीन अवस्था में रहकर धन का संचय करता हो 3. कृपण 4. सूम 5. ख़सीस |

कंजूसी [सं-स्त्री.] 1. कृपणता 2. कंजूस होने का गुण, भाव या अवस्था।

कंज़्यूमर कल्चर (इं.) [सं-पु.] उपभोक्ता संस्कृति; सुख-सुविधाओं की वस्तुओं का अधिकाधिक उपभोग करने की प्रवृत्ति या संस्कृति।

कंज़्यूमरिज़म (इं.) [सं-पु.] उपभोक्तावाद।

कंट (सं.) [सं-पु.] काँटा। [वि.] कँटीला।

कंटक (सं.) [सं-पु.] 1. काँटा 2. नुकीला तार; सुई 3. {ला-अ.} बाधा; विघ्न उत्पन्न करने वाली वस्तु या बात; त्रासद चीज़ 4. दुश्मन 5. मछली पकड़ने का काँटा।

कंटक द्रुम (सं.) [सं-पु.] काँटेदार वृक्ष, जैसे- सेमल वृक्ष।

कंटक फल (सं.) [सं-पु.] काँटेदार फल, जैसे- गोखरू, कटहल, धतूरा, सिंघाड़ा आदि।

कंटकाकीर्ण (सं.) [वि.] 1. काँटों से भरा हुआ (मार्ग); कँटीला 2. {ला-अ.} बाधाओं से युक्त; मुश्किल।

कंटकी (सं.) [सं-पु.] 1. काँटेदार वनस्पति 2. खैर का पेड़ 3. बेर का पेड़ 4. बाँस 5. गोखरू 6. एक प्रकार की छोटी मछली। [वि.] 1. कँटीला 2. काँटेदार; काँटों से युक्त 3. {ला-अ.} कष्टप्रद।

कंटर (इं.) [सं-पु.] काँच की बनी हुई सुराही जिसमें शरबत, शराब या गुलाबजल रखा जाता है; कनस्तर।

कंटल (सं.) [सं-पु.] बबूल वृक्ष।

कंटाप [सं-पु.] ऐसी चीज़ जिसका ऊपरी या सामने वाला सिरा भारी हो।

कंटालु (सं.) [सं-पु.] 1. कँटीला बाँस 2. कीकर 3. बबूल 4. भटकटैया।

कंटिका (सं.) [सं-स्त्री.] स्टील का नुकीला तार जिसका एक सिरा घुंडीदार या गोलाई में मुड़ा होता है और जो कागज़ या कपड़े में लगाया जाता है; (आलपीन)।

कंटिकाधार (सं.) [सं-पु.] लकड़ी आदि का बना वह गद्दीदार या स्पंजी ढाँचा जिसमें कंटिका या आलपीन खोंसकर रखी जाती है; पिनगद्दा; शूकधानी; (पिनकुशन)।

कंटेंट (इं.) [सं-पु.] 1. अंतर्वस्तु अंश 2. सारांश 3. अवयव 4. तत्व। [सं-स्त्री.] 1. विषयवस्तु 2. परितृप्ति 3. संतुष्टता।

कंटेंपरेरी (इं.) [वि.] समकालीन; समसामयिक।

कंटोप [सं-पु.] ऐसी टोपी जिससे सिर और दोनों कान ढके रहते हैं।

कंट्रेक्चुअल (इं.) [वि.] संविदात्मक; संविदा संबंधी।

कंट्रैक्टर (इं.) [सं-पु.] ठेके पर कार्य करवाने वाला; ठेकेदार।

कंट्रोल (इं.) [सं-पु.] अंकुश; नियंत्रण; निर्बंध; प्रभुत्व; अधिकार; शासन; संयम।

कंठ (सं.) [सं-पु.] 1. गला; गरदन; गले का भीतरी हिस्सा; टेंटुआ 2. गले की वे नलियाँ जिससे आवाज़ निकलती है तथा भोजन निगला जाता है 3. गले से निकली आवाज़ अथवा स्वर। [मु.] -फूटना : मुँह से शब्द निकलना।

कंठगत (सं.) [वि.] 1. गले में आया हुआ 2. गले में स्थित या अटका हुआ।

कंठद्वार (सं.) [सं-पु.] मुख में स्वर रज्जुओं के बीच का स्थान।

कंठमणि (सं.) [सं-पु.] 1. गले में पहना गया रत्न 2. घोड़े की एक भँवरी जो कंठ के पास होती है 3. अत्यंत प्रिय वस्तु 4. टेंटुआ।

कंठमाला (सं.) [सं-स्त्री.] गले का एक रोग जिसमें जगह-जगह गाँठें या गिल्टियाँ निकलती हैं।

कंठरोध (सं.) [सं-पु.] 1. कंठ रुँधना; गला अवरुद्ध होना 2. साँस रुकना 3. मरणासन्न अवस्था।

कंठशालुक (सं.) [सं-पु.] गले के भीतर का फोड़ा।

कंठशोष (सं.) [सं-पु.] गले का संक्रमण; गला सूखना।

कंठश्री (सं.) [सं-स्त्री.] 1. गले में सुशोभित होने वाला जड़ाऊ हार 2. कंठी; माला।

कंठसंगीत (सं.) [सं-पु.] 1. मानव कंठ से निकलने वाली ध्वनि या संगीत 2. व्यक्ति द्वारा गाया जाने वाला गायन या आलाप।

कंठस्थ (सं.) [वि.] 1. गले में आकर ठहरा या रुका हुआ 2. ज़बानी याद किया हुआ 3. कंठगत; कंठाग्र।

कंठहार (सं.) [सं-पु.] 1. गले का हार या गहना 2. {ला-अ.} ऐसी वस्तु जो सदा साथ रहे और जिसका साथ कभी नहीं छोड़ने की इच्छा हो; बहुत प्रिय चीज़।

कंठा [सं-पु.] 1. बड़ी कंठी जिसमें बड़े-बड़े मनके होते हैं 2. सोने आदि के मनकों वाला गले का एक आभूषण 3. अँगरखे या कुरते आदि का गले के पास का भाग 4. कंठी की तरह पक्षियों के गले को घेरने वाली रेखाएँ, जैसे- तोता या कबूतर का कंठा।

कंठाग्र (सं.) [वि.] जो ज़बानी याद हो; कंठस्थ; बरज़बान।

कंठावरोध (सं.) [सं-पु.] गले में उत्पन्न होने वाली बाधा; श्वासरोध; दुख या पीड़ा से गला रुँधने की अवस्था।

कंठिका (सं.) [सं-स्त्री.] एक लड़ी से बनी माला; हार; कंठी।

कंठी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटे मनके या गुरियों की माला; छोटा कंठा 2. वैष्णवों द्वारा धारण की जाने वाली तुलसी के छोटे दानों की माला 3. कंठ; हँसली; पक्षियों के गले की धारी 4. घोड़े के गले में बाँधी जाने वाली रस्सी।

कंठील (सं.) [सं-पु.] 1. मथने का पात्र 2. ऊँट।

कंठ्य (सं.) [सं-पु.] (व्याकरण) ऐसे वर्ण जिनका उच्चारण कंठ से हो, संस्कृत में क्, ख्, ग्, घ, ङ, ह और विसर्ग को कंठ्य माना गया है, हिंदी में ये कोमल तालव्य हैं। [वि.] 1. कंठ संबंधी; गले से उत्पन्न 2. कंठ से उच्चरित 3. गले के लिए हितकारी औषधि।

कंडक्ट (इं.) [सं-पु.] 1. संचालन; परिचालन 2. नेतृत्व; मार्गदर्शन 3. चरित्र; आचरण; आचार; व्यवहार। -करना [क्रि-स.] 1. संचालित करना; निर्देशित करना 2. प्रबंध करना; बंदोबस्त करना।

कंडक्टर (इं.) [सं-पु.] 1. संवाहक; चालक; परिचालक 2. अधिनायक; पथ-प्रदर्शक 3. प्रबंधकर्ता; व्यवस्थापक 4. तड़ित चालक; विद्युत-संवाहक।

कंडनी (सं.) [सं-स्त्री.] धान, बाजरा आदि अन्न कूटने के लिए प्रयुक्त उपकरण; ओखली और मूसल।

कंडरा [सं-स्त्री.] 1. रक्त का संचरण करने वाली मोटी नाड़ी 2. महास्नायु 3. मांस तंतुओं के गुच्छे जो मांसपेशियों को हड्डी से जोड़ते हैं।

कंडा [सं-पु.] 1. गोबर को पाथकर बनाए गए गोल या तिकोने पिंड; गोयठा 2. उपला; गोसा 3. सूखा या सुखाया हुआ गोबर जो ईंधन आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है।

कंडारी (सं.) [सं-पु.] जहाज़ का माँझी; नाव खेने वाला।

कंडाल1 (सं.) [सं-पु.] 1. पानी भरकर रखने का पीतल या लोहे का गोल मुँह वाला गहरा बरतन 2. कैंची की तरह का जुलाहों का औज़ार।

कंडाल2 (फ़ा.) [सं-पु.] तुरही जैसा एक वाद्य यंत्र।

कंडिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वेद की ऋचाओं का समूह 2. नियमावली 3. वैदिक ग्रंथों का एक छोटा खंड या परिच्छेद 4. अनुच्छेद; (पैरा)।

कंडी [सं-स्त्री.] 1. गोबर के छोटे-छोटे कंडे; उपला; पथकनी 2. गोटा।

कंडील [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार का आधान जिसमें दीपक जलाया जाता है 2. दीपाधार 3. कंदील; लालटेन 4. कागज़ अथवा मिट्टी का बना लालटेन के आकार का वह लटकन जिसमें दिया जलाकर रखा जाता है या (वर्तमान में) बल्ब आदि लगाया जाता है।

कंडीशन (इं.) [सं-स्त्री.] 1. परिस्थिति; स्थिति; अवस्था; दशा 2. उपबंध; प्रतिबंध; शर्त।

कंडीशनर (इं.) [सं-पु.] 1. अनुकूलक 2. अवस्थापक 3. किसी वस्तु को अच्छी दशा में रखने वाला पदार्थ।

कंडु (सं.) [सं-पु.] सफ़ेद सरसों। [सं-स्त्री.] 1. खुजलाहट 2. खाज; खुजली।

कंडुर (सं.) [सं-पु.] सरकंडा। [वि.] खुजली पैदा करने वाला।

कंडूया (सं.) [सं-स्त्री.] खुजली का रोग।

कंडूल (सं.) [सं-पु.] एक खाद्य कंद; सूरन; ओल; ज़मींकंद। [वि.] खाज या खुजली पैदा करने वाला।

कंडेरा (सं.) [सं-पु.] प्राचीन काल में तीर-कमान बनाने वाली एक जाति जो अब रुई धुनने का काम करती है; धुनिया।

कंडोम (इं.) [सं-पु.] परिवार नियोजन तथा सुरक्षित यौन संबंध के लिए पुरुषों व स्त्रियों द्वारा प्रयोग की जाने वाली एक तरह की थैली; एक गर्भनिरोधक उपकरण।

कंडोल (सं.) [सं-पु.] 1. बेंत या बाँस का बना टोकरा 2. भंडारघर।

कंडोलेंस (इं.) [सं-पु.] 1. शोकसभा; सहानुभूति; श्रद्धांजलि 2. दूसरों के दुख पर शोक प्रकट करना।

कंडौरा [सं-पु.] 1. कंडा या उपला पाथने की जगह; पथवारा 2. कंडों की ढेरी 3. सूखे हुए कंडे या उपले रखने की जगह।

कंत (सं.) [सं-पु.] 1. प्रियतम; स्वामी; किसी स्त्री का पति; नाथ 2. (रहस्य संप्रदाय में) ईश्वर। [वि.] 1. सुंदर; मनोहर 2. प्रिय।

कंतु (सं.) [सं-पु.] 1. अन्न का भंडार 2. कामदेव; मानव हृदय। [वि.] उल्लसित; प्रसन्न।

कंथा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कथरी; पुराने वस्त्रों को सिलकर बनाई गई ओढ़ने की चादर; गुदड़ी 2. योगियों का परिधान।

कंथाधारी (सं.) [सं-पु.] कंथा धारण करने वाला योगी या तपस्वी।

कंथारी (सं.) [सं-स्त्री.] कंथा; कथरी; गुदड़ी।

कंद1 (सं.) [सं-पु.] गूदेदार और बिना रेशे की गाँठदार जड़ जो ज़मीन के अंदर या कभी-कभी बाहर भी निकली रहती है तथा खाने में प्रयोग होती है, जैसे- आलू, गाजर, मूली, शलजम आदि।

कंद2 (फ़ा.) [सं-पु.] सफ़ेद शक्कर; जमाई हुई चीनी; मिस्री।

कंदक (सं.) [सं-पु.] पालकी।

कंदन (सं.) [सं-पु.] क्षय; विनाश; ध्वंस।

कंदमूल (सं.) [सं-पु.] 1. ऐसा पौधा जिसकी जड़ को भूनकर या उबालकर खाया जाता है; वन के यायावरों का भोजन 2. आलू; शकरकंद इत्यादि।

कंदरा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ज़मीन या पहाड़ में मानव निर्मित अथवा प्राकृतिक रूप से बना हुआ कोई बड़ा और गहरा गड्ढा 2. गुफा; खोह 3. घाटी 4. पर्वत की सुरंग।

कंदराकर (सं.) [सं-पु.] पर्वत; पहाड़।

कंदर्प (सं.) [सं-पु.] 1. कामदेव 2. संगीत में रुद्रताल का एक प्रकार।

कंदल (सं.) [सं-पु.] 1. विवाद; झगड़ा; कलह 2. अंकुर; अँखुआ 3. स्वर्ण; सोना 4. युद्ध 5. एक तरह का केला 6. कपाल 7. कलध्वनि; मधुर ध्वनि।

कंदला (सं.) [सं-पु.] 1. सोने या चाँदी का तार 2. चाँदी की छड़ या गुल्ली जिससे धातु को खींचकर तार बनाए जाते हैं 3. कचनार वृक्ष की एक प्रजाति 4. पासा।

कंदलित (सं.) [वि.] 1. अंकुरित 2. प्रस्फुटित।

कंदली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. केला 2. पताका 3. कमलगट्टा; कमल का बीज 4. एक हिरन 5. एक पौधा जिसमें सफ़ेद रंग के पुष्प लगते हैं।

कंदसार (सं.) [सं-पु.] नंदन वन।

कंदा (सं.) [सं-पु.] 1. अरुई 2. शकरकंद 3. कंद।

कंदालु [सं-पु.] जंगली कंद।

कंदु (सं.) [सं-पु.] 1. ईंट का भट्ठा 2. भाड़।

कंदुक (सं.) [सं-पु.] 1. गेंद 2. गोलाकार तकिया 3. सुपारी 4. कंद नाम का एक वर्णवृत्त।

कंदुपक्व (सं.) [वि.] भाड़ में भुनी हुई चीज़ या अनाज।

कंदूरी1 (सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की बेल जिसमें परवल के आकार के फल लगते हैं; कुँदरू।

कंदूरी2 (फ़ा.) [सं-पु.] मुस्लिम धर्म में वह भोजन जो सामने रखकर फ़ातिहा पढ़ने के बाद बाँटा जाता है।

कंदोट (सं.) [सं-पु.] सफ़ेद रंग का कमल; नीलोत्पल; कंदोत।

कंदोरा [सं-पु.] कमर में पहनने का तागा; करधनी; कटिडोरा।

कंधर (सं.) [सं-पु.] 1. गरदन 2. मोथा (एक जड़ी); मुस्तक 3. बादल; मेघ 4. एक प्रकार का शाक।

कंधा (सं.) [सं-पु.] 1. मानव शरीर में बाँह का वह ऊपरी भाग या जोड़, जो गरदन के नीचे धड़ से जुड़ा रहता है 2. स्कंध; मोढ़ा 3. बैल अथवा भैंसे की गरदन का ऊपरी भाग जिसपर जुआ रखा जाता है। [मु.] -लगना : जुए की रगड़ से बैल आदि के कंधे पर घाव हो जाना।

कंधावर [सं-स्त्री.] 1. कंधे पर डाला जाने वाला छोटा दुपट्टा 2. जुए का वह हिस्सा, जो गाड़ी या हल में जोते जाने वाले बैलों के कंधे पर रखा जाता है 3. ताशे (वाद्ययंत्र) की वह रस्सी जिसके सहारे वह गले में लटकाई जाती है।

कंप (सं.) [सं-पु.] 1. शीत, क्रोध, भय आदि के कारण शरीर में उत्पन्न होने वाला कंपन 2. थर्राहट; प्राकृतिक कारणों से पृथ्वी के अंदर उत्पन्न हलचल; भूकंप।

कंपति (सं.) [सं-पु.] समुद्र; सागर; जलधि।

कंपन (सं.) [सं-पु.] 1. काँपने या थरथराने की क्रिया या भाव 2. कँपकँपी; कंप; थरथराहट 3. तरंगों की प्रवृत्ति 4. एक प्राचीन अस्त्र 5. भूचाल; भूडोल; (वाइब्रेशन)।

कंपनी (इं.) [सं-स्त्री.] 1. व्यापारियों या व्यवसायियों का समूह जो मिलकर व्यापार करता हो; समवाय 2. मंडली 3. व्यापारिक संस्था 4. सेना का एक विभाग।

कंपमापी (सं.) [सं-पु.] 1. कंपन की तरंगों को मापने का यंत्र 2. भूकंप मापक यंत्र।

कंपलीट (इं.) [वि.] 1. पूर्ण; संपूर्ण; पूरा 2. समाप्त 3. मुकम्मल; उत्कृष्ट 4. पक्का।

कंपा [सं-पु.] 1. वह फंदा जो शिकारियों द्वारा चिड़िया इत्यादि पकड़ने के लिए बाँस की तीलियों में गोंद या लेई लगाकर बनाया जाता है 2. {ला-अ.} वह फंदा या जाल जिसमें कोई फँसाया जाए।

कंपाउंड (इं.) [सं-पु.] 1. प्रांगण; घेरा; अहाता 2. मिश्रण; यौगिक।

कंपाउंडर (इं.) [सं-पु.] चिकित्सक का वह सहायक जो रोगियों के परीक्षण तथा दवा देने-मिलाने में मदद करता है; औषधयोजक; सम्मिश्रक।

कंपायमान (सं.) [वि.] 1. जो काँप रहा हो; काँपता हुआ 2. हिलती-डुलती (चीज़) 3. डरा हुआ; भयभीत 4. थरथराता हुआ।

कंपार्टमेंट (इं.) [सं-पु.] 1. संविभाग; विभाग; उपखंड 2. रेलगाड़ी का डिब्बा, कक्ष अथवा कमरा।

कंपास (इं.) [सं-स्त्री.] 1. दिशा का ज्ञान कराने वाला यंत्र; दिग्दर्शक यंत्र; दिक्सूचक यंत्र; कुतुबनुमा 2. वृत्त खींचने का परकार।

कंपित (सं.) [वि.] 1. हिलता हुआ; काँपता हुआ 2. कँपाया हुआ 3. डरा हुआ; भयभीत।

कंपिल (सं.) [सं-पु.] 1. सफ़ेद नौसादर 2. रोचनी 3. उत्तर प्रदेश में स्थित फ़र्रूख़ाबाद जनपद का एक पुराना नगर जो पहले पांचाल (बुद्ध कालीन सोलह महाजनपदों में से एक) की राजधानी था तथा लोक मान्यताओं के अनुसार द्रौपदी का स्वयंवर यहीं हुआ था।

कंपेटिटर (इं.) [वि.] प्रतिस्पर्धी; प्रतियोगी; मुकाबला करने वाला; प्रतिद्वंद्वी; बराबरी करने वाला।

कंपेयर (इं.) [सं-पु.] 1. तुलना; समानता 2. उपमा।

कंपैक्ट (इं.) [वि.] 1. चुस्त; घना; गठा हुआ; ठोस 2. सुसंबद्ध 3. संक्षिप्त।

कंपोज़ (इं.) [सं-पु.] अक्षरांकन; अक्षरयोजन; छापने हेतु टाइप के अक्षरों का जोड़ (छापेख़ाने की पुरानी तकनीक)। -करना [क्रि-स.] 1. गीतबद्ध करना; स्वरलिपि तैयार करना; राग बनाना; शब्दों को संगीत में सजाना 2. व्यवस्थित करना; संघटित करना 3. प्रणयन करना 4. संकलित करना; एकत्र करना।

कंपोज़र (इं.) [सं-पु.] 1. ग्रंथकर्ता; रचयिता; लेखक 2. संगीतकार 3. अक्षर योजन करने वाला; कंपोजिंग का काम करने वाला।

कंपोज़िंग (इं.) [सं-स्त्री.] 1. छपाई की पुरानी तकनीक में अक्षर जोड़ने का काम; मुद्रायोजन 2. एक-एक अक्षर को लेकर ठीक जगह पर स्टिक में रखना; जोड़ना।

कंपोज़ीटर (इं.) [सं-पु.] 1. लिखित सामग्री को मुद्राक्षरों में संयोजित करने वाला; अक्षर योजक 2. किसी प्रेस में कंपोज़िंग का कार्य करने वाला व्यक्ति।

कंपोज़ीशन (इं.) [सं-पु.] (फ़िल्म) फ़्रेम में दिखाई देने वाली सेटसज्जा; कलाकार और प्रकाश आदि को संतुलित रूप से दिखाने की कला।

कंपोस्ट (इं.) [सं-स्त्री.] किसी गड्ढे में हरी पत्तियों, पशुओं का गोबर एवं मूत्र तथा कूड़ा इत्यादि सड़ाकर बनाई गई खाद; वानस्पतिक खाद।

कंप्यूटर (इं.) [सं-पु.] 1. एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जो निर्देशों के अनुसार अथवा इनपुट डाटा और सूचनाओं के आधार पर तथ्यों को क्रमबद्ध करके अर्थपूर्ण और उपयोगी आँकड़ों में रूपांतरित करता है 2. परिकलक; परिकलित्र 3. संगणक।

कंप्यूटर लिटरेसी (इं.) [सं-स्त्री.] कंप्यूटर साक्षरता।

कंप्लेंट (इं.) [सं-स्त्री.] शिकायत। -करना [क्रि-स.] 1. शिकायत करना; परिवाद करना; अभियोग करना; अनुयोग करना 2. फ़रियाद करना; विलाप करना।

कंब (सं.) [सं-स्त्री.] छड़ी या छोटा डंडा।

कंबल (सं.) [सं-पु.] 1. ऊनी धागों से बुना हुआ मोटा चादर; कामरी; कमली 2. एक कीड़ा जो बरसात में दिखाई देता है; कमला 3. गाय या बैल के गले में नीचे की ओर लटकने वाली मोटी खाल; गलकंबल।

कंबलक (सं.) [सं-पु.] कंबल; ऊन से बने वस्त्र।

कंबली (सं.) [वि.] 1. कंबल धारण करने वाला; कंबल वाला 2. कंबल से ढकी हुई चीज़।

कंबु (सं.) [सं-पु.] 1. शंख 2. शंख से बनी हुई चूड़ी 3. सीपी; घोंघा।

कंबुकंठी (सं.) [सं-स्त्री.] शंख जैसी सुंदर-सुडौल गरदन वाली स्त्री।

कंबुक (सं.) [सं-पु.] 1. घोंघा; सीपी 2. शंख; शंख की बनी हुई चूड़ियाँ।

कंबुकाष्ठा (सं.) [सं-स्त्री.] अश्वगंधा; एक आयुर्वेदिक औषधि।

कंबुपुष्पी (सं.) [सं-स्त्री.] शंखपुष्पी; एक स्मृतिवर्धक औषधि।

कंबोज (सं.) [सं-पु.] 1. अफ़गानिस्तान का एक पुराना जनपद (बुद्धकालीन सोलह महाजनपदों में से एक) जो गांधार के पास था; सोवियत रूस के एक क्षेत्र का प्राचीन नाम जिसमें अब पामीर और बदख्शाँ हैं 2. कंबोज का निवासी 3. एक प्रकार का राग।

कंभारी (सं.) [सं-स्त्री.] गँभारि नामक वृक्ष जिसकी छाल व फल दवा के काम आते हैं।

कंस (सं.) [सं-पु.] 1. काँसा 2. कटोरा 3. प्राचीन भारत में आढ़क नामक तौल या माप 4. सुराही 5. मँजीरा; झाँझ 6. (पुराण) प्राचीन काल में मथुरा के राजा उग्रसेन का पुत्र, जिसका वध श्रीकृष्ण ने किया था।

कंसक (सं.) [सं-पु.] 1. काँसा 2. काँसे का बरतन।

कंस-ताल (सं.) [सं-पु.] मँजीरा; झाँझ।

कंसर्ट (इं.) [सं-पु.] 1. किसी कार्यक्रम आदि में वाद्य यंत्रों की एक साथ होने वाली संगत; सांगीतिक प्रस्तुति 2. समूह वादन 3. गाने और बजाने वालों के सुर-ताल का साम्य 4. संगीत समारोह 5. साथी; संगी।

कंसल्ट (इं.) [सं-पु.] 1. परामर्श; मंत्रणा 2. हिदायत। -करना [क्रि-अ.] चिंतन करना; ध्यान करना।

कंसल्टेंट (इं.) [सं-पु.] सलाहकार; परामर्शदाता, जैसे- चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सक, विधि एवं कानून के क्षेत्र में वकील।

कंसिक (सं.) [सं-पु.] काँसे का पात्र। [वि.] काँसे से संबंधित; काँसे का।

कंसेशन (इं.) [सं-पु.] रियायत; अनुमोचन; छूट; सुविधा।

कई [वि.] 1. एक से अधिक 2. अनेक; कुछ 3. अनिश्चित किंतु अल्प मात्रा या छोटी संख्या का सूचक।

ककड़ी [सं-स्त्री.] 1. ग्रीष्म ऋतु में ज़मीन पर फैलने वाली एक बेल जिसपर खीरे की प्रजाति का एक लंबा फल लगता है 2. उक्त बेल का फल।

ककराली [सं-स्त्री.] कँखौरी; काँख में होने वाली फुंसी या फोड़ा।

ककरेजा [सं-पु.] 1. काकरेज रंग का कपड़ा 2. गहरे काले रंग में नीला रंग मिला हुआ; ककरेजी रंग।

ककरौल [सं-पु.] एक प्रकार की सब्ज़ी; ककोड़ा; खेखसा।

ककहरा [सं-पु.] 1. हिंदी वर्णमाला में 'क' से 'ह' तक के वर्णों का समूह 2. बारहखड़ी 3. वर्णमाला 4. किसी विषय का आरंभिक या ज़रूरी ज्ञान।

ककाटिका (सं.) [सं-स्त्री.] सिर का पिछला हिस्सा।

ककुंजल (सं.) [सं-पु.] चातक पक्षी; पपीहा; सारंग (ऐसी किंवदंती प्रचलित है कि चातक केवल स्वाति नक्षत्र में होने वाली वर्षा का ही जल ग्रहण करता है।

ककुंदर (सं.) [सं-पु.] नितंबों का गड्ढा; जघन-कूप।

ककुद (सं.) [सं-पु.] 1. पर्वत शिखर; पर्वत की चोटी 2. साँड़ या बैल के कंधे का डिल्ला; कूबड़ 3. राज-चिह्न। [वि.] 1. श्रेष्ठ; सर्वोत्तम 2. मुख्य; प्रधान।

ककुद्मान (सं.) [वि.] कूबड़वाला। [सं-पु.] 1. बैल 2. ऋषभ नामक दवा 3. एक प्राचीन पर्वत।

ककूना [सं-पु.] कीटों द्वारा सुरक्षा के लिए बनाया गया महीन धागों का खोल या कोया जिसमें रेशम कीट बंद रहता है; कृमि कोश।

ककेरुक (सं.) [सं-पु.] आमाशय-कृमि; उदर-कृमि।

ककैया [सं-स्त्री.] लखौरिया ईंट। [वि.] कंघी के आकार की प्राचीन ईंट।

ककोड़ा [सं-पु.] 1. एक प्रकार की लता एवं उस पर लगने वाली तरकारी या फल 2. ककोड़ा की सब्ज़ी 3. ककेड़ा; खेखसा।

ककोरा [सं-पु.] दे. ककोड़ा।

कक्कड़ [सं-पु.] 1. सुखाई गई सुरती या तंबाकू का चूरा, जिसे चिलम में सुलगाकर पिया जाता है 2. पंजाबी समाज में एक कुलनाम या सरनेम।

कक्का [सं-पु.] 1. कश्मीर राज्य में स्थित प्राचीन केकय प्रदेश, जिसके निवासी कक्कड़ कहलाते हैं 2. सिख जो पाँच ककार- कंघा, कृपाण, केश, कड़ा और कच्छ (जाँघिया) रखते हैं।

कक्कुल (सं.) [सं-पु.] बकुल वृक्ष; मौलसिरी वृक्ष।

कक्कोल (सं.) [सं-पु.] कनखजूरा। [सं-स्त्री.] एक फलदार पेड़; कक्कोली।

कक्खट (सं.) [वि.] 1. ठोस; कठोर 2. जटिल; मुश्किल; कठिन।

कक्खटी (सं.) [सं-स्त्री.] खड़िया मिट्टी; सफ़ेद एवं मुलायम मिट्टी जिसका प्रयोग लिखने के लिए किया जाता है।

कक्ष (सं.) [सं-पु.] 1. किसी इमारत का भीतरी कमरा; घर; कोठरी 2. रनिवास; अंतःपुर 3. जंगल का अंदरूनी भाग 4. सूखी घास 5. नाव का एक भाग 6. काँख; काँछ 7. कखौरी 8. तराज़ू का पलड़ा 9. पाप; दोष 10. धोती, चादर, दुपट्टा आदि का आँचल 11. दलदली ज़मीन 12. कमरबंद 13. काछ; कछोटा; लाँग 14. कछार।

कक्षपट (सं.) [सं-पु.] 1. कौपीन 2. कमर में पहनने का वस्त्र 3. लाँग।

कक्षा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. परिधि; घेरा; दायरा 2. अंतरिक्ष में ग्रहों के परिभ्रमण का गोलाकार पथ; (ऑरबिट) 3. विद्यार्थियों का वर्ग या श्रेणी जिसमें एक साथ बैठाकर शिक्षा दी जाती है; दर्जा 4. घर की दहलीज़ 5. नाभिक की परिक्रमा करने वाले इलेक्ट्रॉन का परिभ्रमण मार्ग।

कक्षीय (सं.) [वि.] कक्षा से संबंधित; कक्षा का।

कक्षोत्था (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक सुगंधित जड़ी; नागरमोथा।

कखवाली [सं-स्त्री.] काँख; काँख में होने वाली फुंसी या फोड़ा।

कगार [सं-पु.] 1. ऊँचा किनारा 2. कोई ऊँचा और ढलुवाँ भू-खंड 3. नदी का किनारा।

कगिरी [सं-पु.] एक वृक्ष जिसके तने से निकले तरल पदार्थ से रबर बनता है।

कघुती [सं-स्त्री.] अरैली; वह झाड़ी जिसके डंठलों और पत्तियों से कागज़ बनाया जाता था।

कच (सं.) [सं-पु.] 1. केश; सिर के बाल 2. किसी नाज़ुक चीज़ में कुछ धँसने या चुभने का शब्द, जैसे- चाकू या कील चुभना 3. मल्लयुद्ध या कुश्ती का दाँव 4. (पुराण) एक पात्र जो देवताओं के गुरु बृहस्पति के पुत्र माने जाते हैं।

कचकच [सं-स्त्री.] 1. आपस में तू-तू मैं-मैं होना 2. व्यर्थ का विवाद, कलह या झगड़ा 3. परिवार में होने वाली कहासुनी।

कचकड़ा [सं-पु.] 1. कछुए का खोपड़ा या बाह्य आवरण 2. कछुए या ह्वेल की हड्डी जिससे चीन व जापान में खिलौने बनते हैं।

कचकना [क्रि-अ.] 1. किसी अंग या चीज़ का कुचल जाना या दबना 2. दरार पड़ना 3. फूटना 4. ठेस लगना 5. मुकरना; फिरना।

कचकोल (फ़ा.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का भिक्षापात्र 2. दरियाई नारियल का बना एक पात्र।

कचनार (सं.) [सं-पु.] एक वृक्ष जिसकी कलियाँ सब्ज़ी बनाने तथा फूल और तने की छाल औषधि के काम आती है।

कचपच [सं-स्त्री.] 1. कम जगह में बहुत-सी वस्तुओं या व्यक्तियों का भर जाना 2. गिचपिच 3. अशांति 4. लड़ाई-झगड़ा।

कचपेंदिया [वि.] 1. जिसका भरोसा न किया जा सके; बात का कच्चा 2. {ला-अ.} निष्ठाहीन; विचलनशील 3. कच्ची तली या पेंदी का 4. ओछा; ढुलमुल।

कचरघान [सं-पु.] 1. कई तरह की छोटी-छोटी वस्तुओं का ढेर 2. छोटे बच्चों का समूह 3. अनेक वस्तुओं के इकट्ठा होने से गड़बड़ी होना 4. घमासान; जमकर होने वाली लड़ाई या मार-पीट; कोलाहल; कचपच 5. कीचड़।

कचरना [क्रि-स.] 1. दबाना; पैरों से कुचलना; मसलना या रगड़ना 2. रौंदना।

कचर-पचर [सं-पु.] 1. कोलाहल; शोर-शराबा 2. किचकिच; गिचपिच।

कचरा [सं-पु.] 1. सफ़ाई के बाद फेंकी गई गंदगी; कूड़ा-करकट; कबाड़ 2. कपास का बिनौला 3. फूट का कच्चा फल 4. समुद्र में पाई जाने वाली एक प्रकार की सेवार।

कचरापेटी [सं-स्त्री.] बेकार वस्तुओं को रखने का पात्र; कूड़ा डालने का पात्र।

कचरी [सं-स्त्री.] 1. ककड़ी की प्रजाति की बेल तथा उसका फल, जिसे सुखाकर, तलकर खाया जाता है तथा सब्ज़ी भी बनाई जाती है 2. पेंहटा या पहुँटा के सुखाए टुकड़े 3. सूखी कचरी की सब्ज़ी।

कचलहू [सं-पु.] घाव से निरंतर निकलने वाला रक्त।

कचलोन [सं-पु.] एक तरह का नमक; काला नमक।

कचवाँसी [सं-स्त्री.] खेत नापने की एक इकाई; ज़मीन के माप बिस्वांसी का बीसवाँ हिस्सा।

कचहरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. न्यायालय; अदालत; इजलास; दरबार; वह स्थान जहाँ न्यायाधिकारी बैठकर वाद-विवादों पर निर्णय लेते हैं 2. {ला-अ.} गोष्ठी; जमावड़ा।

कचाई [सं-स्त्री.] 1. कच्चे होने की अवस्था; कच्चापन; अनुभवहीनता 2. अपरिपक्वता; अपूर्णता 3. दोष; ख़ामी; कमी; त्रुटि।

कचाकु (सं.) [सं-पु.] साँप। [वि.] 1. बुरे स्वभाव का; कुटिल; दुष्ट 2. असाध्य 3. असह्य 4. दुष्प्राप्य।

कचाटुर (सं.) [सं-पु.] जंगली मुरगा; बनमुरगा; बनमुरगी।

कचाना [क्रि-अ.] 1. साहस छोड़ना; पीछे हटना; कमतर सिद्ध होना 2. कचियाना।

कचायँध [सं-स्त्री.] 1. कच्चेपन की गंध 2. किसी फल अथवा अन्य खाद्य-पदार्थ के कच्ची अवस्था में रहने पर निकलने वाली गंध अथवा महक।

कचायन [सं-स्त्री.] 1. विवाद; झगड़ा 2. किचकिच।

कचालू [सं-पु.] 1. एक प्रकार की सब्ज़ी; बंडा (अरवी); कंद 2. उबले हुए आलू, अमरूद, बंडा आदि पर नमक और मसाला लगाकर बनाया जाने वाला एक व्यंजन।

कचाहट [सं-स्त्री.] कच्चेपन का भाव; कचाई।

कचु (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार का खाद्य कंद 2. घुइयाँ 3. बंडा।

कचूमर [सं-पु.] 1. किसी वस्तु का कुचला हुआ रूप 2. मलीदा; घुटा हुआ खाद्य 3. भरता; भुरता 4. कच्चे आम के गूदे को कुचलकर बनाया हुआ अचार। [मु.] -निकलना : दुर्दशा होना। -निकालना : बुरी तरह पीटना, दुर्दशा करना।

कचूर (सं.) [सं-पु.] हल्दी की जाति का एक पौधा जिसकी जड़ औषधि के काम आती है। [वि.] उक्त जड़ की तरह गहरा हरा या लाल।

कचेल (सं.) [सं-पु.] 1. वह डोरी जिसमें किसी ग्रंथ के पन्ने बँधे हों 2. ग्रंथ को लपेटने का कागज़।

कचोका [सं-पु.] किसी नुकीली चीज़ को गड़ाने या चुभाने की क्रिया।

कचोट [सं-स्त्री.] 1. कचोटने का भाव 2. रह-रह कर मन में दुख का अनुभव होना; टीस पहुँचना। [मु.] -उठना : व्यथित हो उठना।

कचोटना [क्रि-अ.] 1. चुभना; पीड़ा देना; गड़ना 2. किसी दुखद घटना का बार-बार स्मरण होना 3. टीस उठना 4. किसी की याद में तड़पना।

कचोना [क्रि-स.] 1. चुभाना 2. गड़ाना 3. धँसाना।

कचौड़ी [सं-स्त्री.] मसालेदार आलू, बेसन या उड़द दाल की पीठी भरकर बनाई गई पूड़ी; आटे या मैदे की छोटी-छोटी लोई के अंदर विभिन्न मसालों को भरकर बनाई गई पूड़ी जैसी खाद्य वस्तु ; कचौरी।

कच्चर (सं.) [वि.] 1. बुरी प्रकृति का इंसान; दुष्ट 2. मैला-कुचैला; गंदा।

कच्चा (सं.) [वि.] 1. जो पका न हो; अधपका, हरा (फल) 2. जो आँच पर पूरी तरह पका या पकाया न गया हो 3. प्राकृतिक या मूल रूपवाला 4. अपरिपक्व; अनुभवहीन; अर्धविकसित; अनाड़ी 5. जिसमें धैर्य, दृढ़ता, साहस आदि का अभाव हो 6. असुरक्षित; अस्थिर 7. अप्रशिक्षित। [मु.] -चिट्ठा खोलना : असलियत प्रकट करना या खोलना। -होना : किसी विद्या, हुनर आदि में निपुण न होना।

कच्चा कागज़ (हिं.+अ.) [सं-पु.] 1. वह लेख या दस्तावेज़ जिसका पंजीकरण (रजिस्ट्री) न हुआ हो; मसौदा; प्रालेख 2. तेल आदि तरल पदार्थ छानने का कागज़।

कच्चा काम [सं-पु.] 1. किसी चीज़ या काम हेतु खड़ा किया हुआ आरंभिक ढाँचा 2. कच्चे गोटे या कलाबत्तू (रेशम पर सुनहले तार लपेटकर बनाया हुआ डोरा या फ़ीता) इत्यादि का काम।

कच्चा घड़ा [सं-पु.] 1. मिट्टी का घड़ा जो आँवें पर पका न हो, केवल धूप में सुखाया गया हो 2. {ला-अ.} नौसिखिया; जिसे अनुभव न हो; अकुशल 3. {ला-अ.} संस्कार लेने वाला बालक। [मु.] कच्चे घड़े में पानी भरना : श्रम और अर्थ दोनों व्यर्थ जाना, दोहरी हानि होना।

कच्चा चिट्ठा [सं-पु.] 1. वह विवरण या वृत्तांत जिसमें किसी के बारे में गोपनीय तथ्य या किसी कमज़ोरी का पता चलता हो; किसी के दोषों का उद्घाटन 2. वह ब्योरा जिसमें सब कुछ ज्यों-का-त्यों कह दिया जाए; संपूर्ण विवरण; सत्य-कथा 3. किसी संस्थान के आय-व्यय का बिना सत्यापित किया हुआ लेखा।

कच्चा टाँका [सं-पु.] 1. राँगे या मुलायम धातु का जोड़; कच्चा जोड़ 2. धागे से हाथ द्वारा की गई सिलाई।

कच्चा तागा [सं-पु.] 1. वह धागा जो बटा न हो 2. {ला-अ.} कमज़ोर या नाज़ुक चीज़।

कच्चा-पक्का [वि.] 1. जल्दबाज़ी में किया गया काम 2. सिझा-अनसिझा (अन्न, सब्ज़ी आदि) 3. आधा-अधूरा (कार्य)।

कच्चा माल [सं-पु.] वे कृषि उत्पाद या खनिज पदार्थ जो अपने आरंभिक या प्राकृतिक रूप में हों और जिनसे मशीनी या औद्योगिक प्रक्रिया के पश्चात कोई उत्पाद बनाया जाता हो।

कच्चा लोहा [सं-पु.] 1. वह लोहा जिससे अन्य वस्तुएँ बनाई जाती हैं 2. वह अपरिष्कृत लोहा जिससे इस्पात और पिटवाँ लोहा बनाया जाता है।

कच्चा हाथ [सं-पु.] अप्रशिक्षित या अनभ्यस्त व्यक्ति।

कच्ची कली [सं-स्त्री.] 1. अनखिली कली 2. वह स्त्री जो पूर्णरूप से युवा न हुई हो; किशोरी।

कच्ची कुर्की (हिं.+तु.) [सं-स्त्री.] किसी मुकदमे का फ़ैसला होने से पहले की जाने वाली कुर्की (कब्ज़ा) ताकि प्रतिवादी अपना सामान हटा न ले।

कच्ची गोटी [सं-स्त्री.] चौसर के खेल में वह गोटी जिसने अभी आधा रास्ता पार न किया हो; कच्ची गोली। [मु.] -खेलना : गैर समझदारी से किया गया काम जिसमें आगे चलकर धोखा खाना पड़े।

कच्ची चीनी [सं-स्त्री.] गन्ने के रस या राब (गाढ़ी चाशनी) से बनाई जाने वाली चीनी; थोड़े गहरे रंग की चीनी; अशुद्ध शक्कर; खाँड़।

कच्ची नकल [सं-स्त्री.] किसी कार्यालय या विभाग के किसी दस्तावेज़ की वह प्रतिलिपि जो अनाधिकारिक या व्यक्तिगत तौर पर ली गई हो तथा जिसपर सक्षम अधिकारी के हस्ताक्षर या मुहर इत्यादि न लगे हों।

कच्ची पेशी [सं-स्त्री.] किसी अभियोग की वह पहली पेशी जिसमें निर्णय नहीं होता।

कच्ची बही [सं-स्त्री.] 1. वह बही जिसमें कच्चा हिसाब लिखा जाता है 2. याददाश्त के लिए लिख कर रखा गया हिसाब।

कच्ची रसोई [सं-स्त्री.] केवल पानी में पका हुआ भोजन; वह व्यंजन जो दूध, घी, तेल आदि में न पकाया गया हो।

कच्ची सड़क [सं-स्त्री.] 1. वह सड़क जो कंकड़-पत्थर, गिट्टी आदि से बनी हुई न हो; ऊबड़-खाबड़ सड़क 2. निर्माणाधीन मार्ग।

कच्ची सिलाई [सं-स्त्री.] 1. बखिया करने से पहले के अस्थायी टाँके जो कपड़े के जोड़ के लिए लगाए जाते हैं और बाद में खोल दिए जाते हैं 2. पुस्तकों की जिल्दसाज़ी के पहले की गई सिलाई।

कच्छ (सं.) [सं-पु.] 1. कछार; बड़े जलस्रोत के किनारे की ज़मीन; दलदल ज़मीन 2. भारत के गुजरात प्रदेश का प्रसिद्ध अंतरीप अर्थात भूमि का सँकरा विस्तार जो समुद्र में दूर तक गया हो 3. तुन का पेड़ जिसकी लकड़ी शीघ्रता से जलती है।

कच्छप (सं.) [सं-पु.] 1. कछुआ 2. (पुराण) विष्णु के दस अवतारों में से एक 3. कुबेर की नौ निधियों में से एक 4. वह भबका अर्थात अर्क खींचने का यंत्र जिससे शराब बनाई जाती है 5. छंद का एक भेद जिसमें आठ गुरु और बत्तीस लघु होते हैं 6. एक रोग जिसमें तालु में गाँठ निकल आती है; बतौड़ी।

कच्छपी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मादा कछुआ 2. सरस्वती की वीणा।

कच्छा (सं.) [सं-पु.] 1. जाँघिया; निकर; (अंडरवियर) 2. वह चौड़ी और बड़ी नाव जिसमें दो पतवारें लगती हैं 3. कई बड़ी नावों को एक साथ जोड़कर बनाया गया बेड़ा।

कच्छार (सं.) [सं-पु.] कच्छ प्रदेश।

कच्छी [सं-पु.] 1. कच्छ देश का निवासी 2. कच्छ देश के घोड़े की वह प्रजाति जिसकी पीठ मध्य में कुछ गहरी होती है। [सं-स्त्री.] कच्छ क्षेत्र की भाषा। [वि.] कच्छ देश का या उससे संबंधित।

कच्छु (सं.) [सं-स्त्री.] खुजली की बीमारी; खारिश।

कच्छुमती (सं.) [सं-पु.] खुजली पैदा करने वाले पौधे; केवाँच।

कच्छुर (सं.) [वि.] 1. जिसे खुजली का रोग हो 2. कंगाल 3. लंपट।

कच्छुरा (सं.) [सं-स्त्री.] शुकशिवी और दुरालभा आदि वनस्पतियाँ।

कछनी [सं-स्त्री.] 1. घुटने तक या उससे ऊपर बाँधी जाने वाली धोती जिसमें दोनों तरफ़ लाँग, काँछ अर्थात चुन्नट बनाया हुआ पट्टा होता है 2. छोटी धोती 3. घुटने तक रहने वाला घाघरा या लहँगा।

कछरा [सं-पु.] कमोरा; चौड़े मुँह वाला मटका; घड़े जैसा मिट्टी का पात्र जिसमें पानी, दूध-दही आदि रखा जाता है।

कछराली [सं-स्त्री.] काँख में होने वाला एक प्रकार का फोड़ा; कँखौरी; कखराली।

कछरी [सं-स्त्री.] कमोरी; छोटा कछरा।

कछवाहा [सं-पु.] 1. क्षत्रिय समाज में एक कुलनाम या सरनेम 2. राजस्थान में माली समाज में एक कुलनाम या सरनेम।

कछार [सं-पु.] 1. नदी या समुद्र के किनारे की नम और उपजाऊ ज़मीन; (ऐल्युवियल लैंड) 2. असम राज्य का एक प्रदेश।

कछारी [सं-स्त्री.] छोटा कछार। [वि.] कछार से संबंधित; कछार की।

कछियाना [सं-पु.] 1. वह क्षेत्र जहाँ काछी जाति के लोग रहते हैं 2. वह खेत जिसमें सब्ज़ियाँ बोई जाती हैं।

कछुआ (सं.) [सं-पु.] कच्छप; एक जल जंतु जो जल और स्थल दोनों में समान रूप से रह सकता है; कूर्म।

कछुआ चाल [सं-स्त्री.] 1. कछुए के चलने की गति 2. {ला-अ.} धीमी गति; मंद गति।

कछुआ धर्म [सं-पु.] 1. कछुए की वह आंगिक स्थिति जिसमें वह अपने मुख, गरदन, पैरों को अपनी पीठ के नीचे अंदर की ओर सिकोड़ लेता है 2. {ला-अ.} बचाव की मुद्रा में रहना 3. {ला-अ.} विपत्ति काल में स्वयं की रक्षा या तटबंदी करने की स्थिति।

कछौटा [सं-पु.] 1. कमर में बाँधने का काछा 2. स्त्री की कछनी की तरह पहनी जाने वाली धोती 3. धोती पहनने का एक ढंग।

कज (फ़ा.) [सं-पु.] 1. वक्रता; टेढ़ापन 2. त्रुटि; कमी; दोष; ऐब 3. छल; धोखा। [वि.] वक्र; झुका हुआ; टेढ़ा।

कज अदा (फ़ा.) [वि.] बेमुरौवत; बेवफ़ा।

कजक (फ़ा.) [सं-पु.] 1. हाथी को काबू करने वाला अंकुश 2. नियंत्रण; रोक।

कजकोल (फ़ा.) [सं-पु.] 1. मुस्लिम फ़कीरों द्वारा भिक्षायाचन के लिए प्रयुक्त भिक्षापात्र; भिक्षाग्रहण के लिए भिक्षुओं द्वारा प्रयोग किया जाने वाला खप्पर या कपाल 2. वह पुस्तक जिसमें दूसरों की उक्तियों या उपदेशों का संग्रह हो।

कजनी [सं-स्त्री.] ताँबा या पीतल के बरतन को खुरचकर साफ़ करने का उपकरण; खरदनी।

कजफ़हम (फ़ा.) [वि.] 1. मूर्ख; नासमझ 2. उलटे दिमाग का; हर बात का उलटा अर्थ लगाने वाला; वक्रबुद्धिवाला।

कजबहस (फ़ा.+अ.) [सं-स्त्री.] बेमतलब की बहस या हुज्जत। [वि.] 1. बिना मतलब की बहस या हुज्जत करने वाला; मूर्खतापूर्ण बहस करने वाला 2. कठहुज्जती; कुतर्की।

कजमिज़ाज (फ़ा.+अ.) [वि.] टेढ़े मिज़ाज या स्वभाव वाला; सीधी बात में भी शंका करने वाला।

कजरफ़्तार (फ़ा.) [वि.] वक्र गति वाला; टेढ़ी चाल चलने वाला; कुटिल।

कजरफ़्तारी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] वक्र गति; टेढ़ी-मेढ़ी चाल।

कजरा [सं-पु.] काजल; सुरमा। [वि.] 1. काली आँखोंवाला; 2. काजल के रंग का; कजरारा।

कजराई [सं-स्त्री.] कालापन; काजल या काले रंग का होने का भाव, अवस्था अथवा गुण।

कजरारा [वि.] 1. जिसमें काजल लगा हो या जो काजल युक्त हो; अंजनयुक्त, जैसे- कजरारी आँखें 2. काजल के रंग का; काला।

कजरियाना [क्रि-स.] 1. बच्चों को बुरी नज़र से बचाने के लिए उनके माथे पर काजल का टीका लगाना 2. नेत्रों में काजल लगाना 3. चित्रकला में अँधेरा या रात दिखाने के लिए चित्र में काला रंग लगाना 4. काला करना।

कजरी [सं-पु.] धान की एक प्रजाति जिसका रंग हलका काला होता है।

कजरौटा [सं-पु.] 1. काजल रखने का डंडीदार लोहे का पात्र 2. गोदने की स्याही रखने का पात्र।

कजरौटी [सं-स्त्री.] छोटा कजरौटा; काजल रखने की डंडीदार छोटी डिबिया।

कजलबाश (तु.) [सं-पु.] मुगलों की एक बेहद लड़ाकू जाति।

कजला [सं-पु.] 1. काजल 2. काले रंग का पक्षी; मटिया 3. खरबूजे की एक जाति 4. वह बैल जिसकी आँखों पर काला घेरा हो। [वि.] 1. जिसकी आँखों में काजल लगा हो 2. काली आँखोंवाला।

कजलाना [क्रि-अ.] 1. काला पड़ना या होना; स्याह होना 2. आग या अंगारों का बुझना या झँवाना। [क्रि-स.] 1. काजल लगाना 2. काला करना।

कजली [सं-स्त्री.] 1. दीपक जलाकर उसके ऊपर किसी पात्र आदि में जमाई गई कालिख जो काजल बनाने के काम आती है 2. काजल के रंग की आँखों वाली गाय 3. ऐसी भेड़ जिसकी आँखों के चारों ओर काले बालों का घेरा होता है 4. हिंदी प्रदेशों खासकर उत्तर प्रदेश या बिहार में चौमासे या वर्षा ऋतु में गाया जाने वाला एक लोकगीत 5. भादों कृष्णपक्ष की तीज को मनाया जाने वाला एक त्योहार 6. जौ के नए हरे अंकुर जो उक्त त्योहार पर स्त्रियाँ सखियों तथा रिश्तेदारों में बाँटती हैं।

कजली तीज [सं-स्त्री.] भादों कृष्णपक्ष की तीज को होने वाला सुहागन स्त्रियों का त्योहार जिसमें रात में नाच-गाना होता है।

कजलौटा [सं-पु.] दे. कजरौटा।

कज़ा (अ.) [सं-स्त्री.] 1. मृत्यु; मौत 2. न्याय; इनसाफ़ 3. आदेश 4. नियति; भाग्य 5. जो इबादत अपने ठीक समय पर अदा न की गई हो।

कज़ाक (तु.) [सं-पु.] दे. कज्ज़ाक।

कजावा (फ़ा.) [सं-पु.] ऊँट की पीठ पर रखी जाने वाली काठी जो बैठने अथवा सामान लादने के उपयोग में लाई जाती है; ऊँट का हौदा जिसमें दोनों ओर आदमी बैठते हैं।

कज़िन (इं.) [सं-पु.] 1. चचेरा भाई या बहन 2. फुफेरा भाई या बहन 3. ममेरा भाई या बहन 4. मौसेरा भाई या बहन। विशेष- भारतीय परिप्रेक्ष्य में 'कज़िन' शब्द अकेला पर्याप्त नहीं समझा जाता, अतः कज़िन ब्रदर, कज़िन सिस्टर शब्द प्रचलन में हैं।

कज़िया (अ.) [सं-पु.] विवाद; झगड़ा; लड़ाई; बखेड़ा।

कजी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. तिरछापन; टेढ़ेपन का भाव 2. त्रुटि; कमी 3. ऐब; दोष।

कज्जल (सं.) [सं-पु.] 1. काजल; सुरमा 2. दीये की कालिख 3. बादल 4. (काव्यशास्त्र) चौदह मात्राओं का एक छंद जिसके अंत में एक गुरु और एक लघु होता है।

कज्जल ध्वज (सं.) [सं-पु.] दीया; चिराग; दीपक।

कज्जल रोचक (सं.) [सं-पु.] दीपक रखने का आधार; दीवट।

कज्जलित (सं.) [वि.] 1. काजल या कज्जल से युक्त; आँजा हुआ 2. काला; कालिख पुता हुआ।

कज्जली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक तरह की मछली 2. पारे और गंधक के योग से बना पदार्थ 3. रोशनाई; स्याही।

कज्ज़ाक (तु.) [सं-पु.] 1. कज़ाकिस्तान की एक तुर्क जाति 2. उक्त जाति का व्यक्ति 3. {ला-अ.} लूटमार करने वाला; डाकू; लुटेरा।

कज्ज़ाकी (तु.) [सं-स्त्री.] 1. राहजनी 2. छल-कपट; धोखेबाज़ी। [वि.] 1. कज्ज़ाक का; कज्ज़ाक से संबंधित 2. लुटेरों जैसा।

कटंब (सं.) [सं-पु.] 1. संगीत का एक वाद्य 2. तीर; बाण।

कटंभर (सं.) [सं-पु.] कटभी पेड़।

कटंभरा (सं.) [सं-स्त्री.] रोहिणी, मूर्वा और नागबला आदि वनस्पतियाँ।

कट1 (सं.) [सं-पु.] 1. हाथी का गंडस्थल 2. श्रोणी; कमर; कटिप्रदेश 3. नरकट, सरकंडा आदि वनस्पति एवं उनसे निर्मित चटाई। [वि.] उग्र; उत्कट। [परप्रत्य.] काटने वाला, जैसे- गिरहकट।

कट2 (इं.) [सं-पु.] 1. किसी चीज़ को दो भागों में बाँटने या काटने की क्रिया, ढंग या भाव; काट, जैसे- कुरते का कट 2. कटौती करना; कम करना; घटाना 3. रोकना (फ़िल्म निर्माण में)।

कट आउट (इं.) [सं-पु.] 1. किसी चीज़ से उसका कुछ अंश काट देना; हटाना 2. किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की प्रचार इत्यादि कार्य के लिए लकड़ी या कार्ड बोर्ड से बनाई गई आदमकद या बहुत बड़ी तस्वीर।

कटक (सं.) [सं-पु.] 1. राजा का शिविर; सैनिक छावनी; फ़ौज 2. स्वर्ण; सोने का कड़ा 3. पहाड़ का मध्य भाग 4. समुद्री नमक 5. ओडिशा राज्य का एक शहर 6. शृंखला; ज़ंजीर 7. पैर का कड़ा 8. गाड़ी का पहिया 9. चटाई 10. कंकड़ 11. हाथी के दाँत पर लगाया जाने वाला छल्ला।

कटकई [सं-स्त्री.] 1. फ़ौज; सेना 2. सेना का अभियान; दलबल के साथ चलने की तैयारी।

कट-कट [सं-स्त्री.] 1. सरदी या डर या किसी अन्य कारण से दाँतों के आपस में बजने से उत्पन्न शब्द 2. दो पक्षों में होने वाली लड़ाई या तू-तू मैं-मैं; मनमुटाव; अनबन।

कटकटाना [क्रि-अ.] क्रोध में दाँतों का भींचना या पीसना; दाँत पीसते हुए कटकट की आवाज़ करना।

कटकटिया [वि.] 1. लड़ाई-झगड़ा करने वाला 2. 'कट-कट' आवाज़ करने वाला। [सं-स्त्री.] बुलबुल विशेष।

कटकीना [सं-पु.] चालाकी से युक्त कोई तरकीब; हथकंडा।

कटखना [वि.] 1. काट खाने वाला; अक्सर काटने वाला, जैसे- कोई कुत्ता, मुरगा आदि 2. उग्र; चिड़चिड़ा; क्रोधी 3. {ला-अ.} खीजा हुआ; बात-बात पर भड़क उठने वाला।

कटखादक (सं.) [वि.] खाद्य-अखाद्य या भक्ष्याक्ष्य का विचार न करने वाला; अशुद्ध वस्तु को भी खा लेने वाला; सर्वभक्षी।

कट चाय (इं.+हिं.) [सं-स्त्री.] दुकानों पर चाय की प्रचलित मात्रा में कटौती करके दी जाने वाली चाय; आधा कप चाय।

कटड़ा [सं-पु.] भैंस का नर बच्चा; पाड़ा।

कटत [सं-स्त्री.] 1. कटने या कम होने की स्थिति 2. किसी चीज़ की बाज़ार में होने वाली खपत या बिक्री।

कटती [सं-स्त्री.] 1. कटौती; कमी 2. बिक्री; खपत 3. छँटाई।

कटन [सं-स्त्री.] 1. कटने अथवा काटे जाने की क्रिया या भाव 2. मकान की छत।

कटना [क्रि-अ.] 1. धारदार अस्त्र से किसी चीज़ का दो या अधिक भागों में विभाजित होना; काटा जाना 2. फ़सल की कटाई होना 3. समय का गुज़रना, बीतना या समाप्त होना 4. मिट जाना; नष्ट होना 5. दुराव रखना 6. किसी से मिलने से बचना या किसी का सामना न करना।

कटनास [सं-पु.] नीलकंठ; एक पक्षी जिसके डैने और कंठ नीले होते हैं।

कटनी [सं-स्त्री.] 1. काटने का यंत्र 2. फ़सल, वृक्ष, लकड़ी आदि काटने का पारिश्रमिक।

कटपीस (इं.) [सं-पु.] दाग या किसी अन्य ख़राबी के कारण कपड़े के नए थान में काँट-छाँट करने से थान से अलग हुए छोटे-छोटे नए टुकड़े।

कट पेस्ट (इं.) 1. कंप्यूटर में किसी सूचना या चित्र को एक फ़ाइल से काटकर दूसरी फ़ाइल में पेस्ट करने की तकनीक 2. {ला-अ.} तिकड़म; युक्ति।

कटफ़्लैश (इं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) पत्र-पत्रिकाओं में पृष्ठ के छोरों तक छपा चित्र।

कटभी (सं.) [सं-स्त्री.] ज्योतिष्मती अर्थात मालकँगनी नामक लता जिसके दानों का तेल दवा के काम आता है।

कटर1 (सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की घास।

कटर2 (इं.) [सं-पु.] 1. छोटी नाव; पनसुइया 2. जिससे कुछ काटा जाता हो 3. छोटा चाकू; हँसिया। [वि.] काटने वाला, जैसे- नेलकटर (नाख़ून काटने का उपकरण)।

कटरा [सं-पु.] 1. कोई छोटा चौकोर बाज़ार 2. भैंस का नर बच्चा; कटड़ा।

कटरिया [सं-पु.] धान की एक प्रजाति। [सं-स्त्री.] छोटी कटार या कटारी।

कटरी [सं-स्त्री.] 1. नदी के किनारे की वह दलदल जिसमें नरकट अर्थात पतली लंबी पत्तियों और गाँठयुक्त डंठल वाले पौधे उत्पन्न होते हैं 2. धान की फ़सल का एक रोग।

कटलरी (इं.) [सं-स्त्री.] चाकू, छुरी, काँटा आदि वस्तुएँ।

कटलेट (इं.) [सं-पु.] 1. तले हुए मांस के टुकड़े 2. मांस के कीमे का बना हुआ कबाब 3. मछली की टिकिया 4. उबले आलू में प्याज़, धनिया, हरी मिर्च आदि डालकर तवे पर थोड़े तेल में बनाई जाने वाली टिकिया।

कटवा [सं-पु.] 1. गले का गहना 2. एक तरह की मछली।

कटवाँ [वि.] 1. जो किसी पदार्थ या वस्तु से कटकर बना हो; जिसमें कटाई का काम हुआ हो; वह चीज़ जिसमें कटाव हो 2. वह सूद या ब्याज जो मूलधन देने पर शेष राशि पर लगे।

कटवाना [क्रि-स.] (सकर्मक क्रिया का द्वितीय प्रेरणार्थक रूप); किसी दूसरे को कोई चीज़ काटने को प्रेरित करना; कटाना।

कटशर्करा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटी चटाई या चटाई का टुकड़ा 2. एक तरह का पौधा।

कटसरैया [सं-स्त्री.] अड़से की प्रजाति का वह कँटीला पौधा जिसपर रंग-बिरंगे फूल लगते हैं।

कटहल [सं-पु.] 1. एक प्रसिद्ध वृक्ष जिसपर लगने वाले फल लंबे गोलाईदार होते हैं तथा उनका छिलका कड़ा और काँटेदार होता है 2. उक्त वृक्ष का फल जिससे सब्ज़ी और अचार बनाया जाता है।

कटहा [वि.] 1. कटखना; जिसे काटने की आदत हो (जानवर) 2. काटने वाला 3. {ला-अ.} जल्दी भड़क उठने वाला (व्यक्ति)।

कटा [सं-स्त्री.] 1. काटने की क्रिया या भाव 2. हत्या; वध 3. हमला; चोट; मारकाट 4. आपस की भयंकर लड़ाई 5. सामूहिक नरसंहार।

कटाई [सं-स्त्री.] 1. पकी हुई फ़सल को काटने की क्रिया 2. काटने की मज़दूरी 3. किसी चीज़ के कटने या काटने का भाव।

कटाकट [सं-पु.] 'कटकट' की ध्वनि या आवाज़।

कटाकटी [सं-स्त्री.] 1. आपस की मार काट 2. हत्या; ख़ूनख़राबा।

कटाकु (सं.) [सं-पु.] पक्षी विशेष।

कटाक्ष (सं.) [सं-पु.] 1. तिरछी नज़र से देखने का भाव; चितवन 2. किसी के संदर्भ में कही जाने वाली व्यंग्योक्ति; आक्षेप; तंज़; 3. आँखों के नीचे सुंदरता के लिए खींची जाने वाली काली धारियाँ।

कटाक्षिक (सं.) [वि.] कटाक्ष से युक्त; कटाक्षपूर्ण; जिसमें कटाक्ष हो।

कटाग्नि (सं.) [सं-स्त्री.] कट या सरकंडे की अग्नि; तिनके या घास-फूस की आग।

कटान [सं-स्त्री.] 1. काटने की क्रिया; कटाई 2. काटने का ढंग।

कटाना [क्रि-स.] 1. किसी को कोई वस्तु काटने के काम में प्रवृत्त करना; काटने का कार्य किसी और से कराना।

कटाफटा [वि.] 1. जो कटा भी हो और फटा भी हो 2. बहुत पुराना और जर्जर; जीर्ण-शीर्ण।

कटार (सं.) [सं-स्त्री.] छोटी तलवार; कृपाण; दुधारा हथियार; खंजर।

कटारी (सं.) [सं-स्त्री.] कृपाण; छोटी कटार।

कटाव [सं-पु.] 1. किसी वस्तु के कटने या काटे जाने की अवस्था, ढंग, भाव या रूप 2. काट-छाँट; कतर-ब्यौंत 3. किसी नदी आदि के पानी से भूमि के कट जाने की अवस्था; क्षरण; काट 4. विलगाव; विसंयोग 5. पच्चीकारी, कसीदाकारी आदि में बेल-बूटे बनाने के लिए की जाने वाली काट-छाँट।

कटावदार [वि.] 1. जिसके किनारे कटे हुए हों 2. जिसपर कटाव का काम किया हुआ हो; बेलबूटेदार 3. आरी के दाँतों की शक्ल का।

कटास [सं-पु.] एक प्रकार का बनबिलाव। [सं-स्त्री.] काटने की इच्छा, रुचि या प्रवृत्ति।

कटाह (सं.) [सं-पु.] 1. कड़ाहा; बड़ी कड़ाही 2. कछुए की पीठ का कठोर आवरण 3. भैंस का बच्चा जिसके सींग निकलने लगे हों 4. टूटे हुए घड़े का टुकड़ा।

कटिंग (इं.) [सं-स्त्री.] 1. कटाई; कटाव 2. कतरन (कपड़े आदि) 3. बाल कटवाने का कार्य। -करना [क्रि-स.] बाल काटना।

कटि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मानव शरीर का वह भाग जो पेट और नितंब के मध्य में होता है; कमर 2. हाथी का गंडस्थल 3. पीपल 4. देव-मंदिर का द्वार 5. किसी वस्तु का मध्य भाग।

कटिबंध (सं.) [सं-पु.] 1. कमरबंद; नाड़ा 2. करधनी; कमर पर बाँधा जाने वाला आभूषण 3. जलवायु या गरमी-सरदी के विचार से किए गए पृथ्वी के पाँच भागों में से एक, जैसे- उष्ण कटिबंध; (ट्रॉपिक)।

कटिबंधीय (सं.) [वि.] कटिबंध से संबंधित; कटिबंध का।

कटिबद्ध (सं.) [वि.] 1. (किसी कार्य को करने के लिए) तैयार; तत्पर; उद्यत; मुस्तैद; उतारू; आमादा 2. सन्नद्ध; कृतसंकल्प; प्रतिबद्ध।

कटिबद्धता (सं.) [सं-स्त्री.] कटिबद्ध होने की अवस्था या भाव; किसी कार्य को करने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ होना; वचनबद्धता; प्रतिबद्धता; सन्नद्धता।

कटिभाग (सं.) [सं-पु.] कटि का भाग या अंग; कमर के पास का भाग या स्थल; नितंब; चूतड़।

कटिया [सं-स्त्री.] 1. रत्नों, नगीनों आदि को काट-छाँट कर सुडौल करने वाला शिल्पी; कारीगर 2. स्त्रियों का एक आभूषण 3. भैंस का मादा बच्चा; पड़िया; कटड़ी 4. छोटे-छोटे टुकड़ों में कटा हुआ पशुओं का चारा।

कटिसूत्र (सं.) [सं-पु.] 1. नाड़ा; कमरबंद 2. सूत की डोरी जो कमर में पहनी जाती है; सूत करधनी 3. कमर का एक आभूषण; तगड़ी।

कटी-फटी [वि.] जर्जर; क्षतिग्रस्त।

कटीला [वि.] 1. गड़ने या चुभने वाला 2. काटने वाला 3. धारदार; तेज़ 4. अच्छी काट, तराश, बनावट या सज्जावाला।

कटु (सं.) [वि.] 1. तीक्ष्ण; तीखा; कड़वा; चरपरा 2. अप्रिय; बुरा लगने वाला 3. कटुभाषी; कर्कश; कुभाषी 4. दुखद; कष्टकारी। [सं-पु.] कड़वापन।

कटुआ [वि.] 1. जिसे काटकर टुकड़े किए गए हों 2. जिसके किनारे कटे हुए हों 3. जिसका कुछ अंश काटकर निकाल लिया गया हो 4. काटने वाला।

कटुक (सं.) [वि.] 1. कड़वा; कटु 2. जो चित्त को न भाए; जो बुरा लगे।

कटुता (सं.) [सं-पु.] 1. कटु होने की अवस्था या भाव 2. वैमनस्य, विरोध आदि के कारण एक दूसरे के प्रति होने वाली दुर्भावना।

कटुभाषी (सं.) [वि.] कड़वी बात बोलने वाला; अप्रिय बात बोलने वाला; कष्टदायक बातें कहने वाला।

कटुवचन (सं.) [सं-पु.] अप्रिय वचन; कड़वी बात; तीखी बात।

कटुवादी (सं.) [वि.] कटु वचन कहने वाला; दुर्वचनी।

कटुव्यवहार (सं.) [सं-पु.] बुरा व्यवहार या बरताव।

कटुशब्द (सं.) [सं-पु.] कठोर वचन; अप्रिय बात।

कटूक्ति (सं.) [सं-स्त्री.] ऐसी उक्ति या कथन जो सुनने में कष्टदायक हो; अप्रिय कथन; कड़वी बात; कटु वचन।

कटोरदान [सं-पु.] एक ढक्कनदार बरतन जिसमें तैयार भोजन आदि रखा जाता है; ढक्कन युक्त कटोरा; डिब्बा।

कटोरा [सं-पु.] 1. चौड़े पेंदे और खुले मुँह वाला वह पात्र जिसका किनारा थोड़ा उठा होता है; प्याला; संपुट 2. काँसे, पीतल आदि धातु का बना प्यालेनुमा पात्र; ख़ासतौर से तरल पदार्थों को हिफ़ाज़त से रखने के लिए मिट्टी, पत्थर, लकड़ी, धातु आदि का बना विभिन्न आकार-प्रकार का पात्र।

कटोरी [सं-स्त्री.] 1. खुले मुँह और चौड़ी पेंदी का एक छोटा बरतन; छोटा कटोरा 2. ब्लाउज़ का वह भाग जिसमें स्तन रहते हैं 3. (वनस्पति विज्ञान) हरी पत्तियों का कटोरी के आकार का वह भाग जिसमें फूलों के दल या पत्तियाँ निकलती रहती हैं 4. तलवार, कटार आदि की मूठ का ऊपर का गोल भाग 5. घुटने के जोड़ पर ऊपर की गोल चपटी हड्डी।

कटौती [सं-स्त्री.] 1. काटे जाने या कटने की क्रिया या भाव 2. किसी धनराशि, वेतन आदि में से किसी कारणवश कुछ अंश कम करना 3. उक्त प्रकार से काटा गया धन 4. घटोत्तरी; कमी।

कट्टर [वि.] अपने मत या विश्वास पर दृढ़ रहने वाला और उसके विरुद्ध कोई बात न सुनने वाला; दुराग्रही, रूढ़िवादी; मतांध; अनुदार विचारवाला।

कट्टरपंथी [वि.] जो किसी मत या विचारधारा के प्रति बहुत अधिक आग्रही हो; जो किसी तर्क को स्वीकार न करते हुए अपने ही पंथ को श्रेष्ठ मानने की हठधर्मिता पालता हो।

कट्टरपन [सं-स्त्री.] कट्टर होने की अवस्था या भाव; असहिष्णुता; हठधर्मिता, मतांधता।

कट्टा [सं-पु.] 1. छोटी देसी पिस्तौल; तमंचा 2. अनाज की छोटी बोरी। [वि.] 1. बलवान; बलिष्ठ; बली 2. मोटा-ताज़ा (हट्टा के साथ प्रयुक्त, जैसे- हट्टा-कट्टा)।

कट्ठा [सं-पु.] 1. खेत या ज़मीन नापने हेतु एक इकाई जिसकी लंबाई और चौड़ाई पाँच हाथ चार अंगुल की होती है 2. धातु गलाने की भट्ठी; दबका 3. अन्न कूटने का एक बरतन जिसमें पाँच सेर अन्न आता है 4. एक पेड़ जिसकी लकड़ी बहुत कड़ी होती है 5. लाल रंग का गेहूँ जो मध्यम श्रेणी का माना जाता है।

कठंगर [वि.] 1. काठ की तरह मोटा और कड़ा 2. {ला-अ.} मज़बूत, दृढ़ अंगोंवाला।

कठ (सं.) [सं-पु.] 1. एक ऋषि 2. एक यजुर्वेदीय उपनिषद जिसमें यम और नचिकेता के संवाद हैं 3. कृष्ण यजुर्वेद की एक शाखा 4. कठ का अनुगामी और शिष्य वर्ग 5. काठ; लकड़ी 6. एक पुराना बाजा जो काठ का बना होता है।

कठगुलाब [सं-पु.] एक प्रकार का जंगली गुलाब जिसके फूल छोटे-छोटे होते हैं।

कठघरा [सं-पु.] 1. काठ का जँगलेदार घेरा; कटहरा; (बैरियर) 2. जंगली पशुओं या कैदियों को रखने के लिए बनाया गया लकड़ी या लोहे का बना हुआ मज़बूत पिंजड़ा 3. न्यायालय में बना हुआ काठ का वह घेरा जिसमें वादी, प्रतिवादी, अपराधी या कैदी को खड़ा किया जाता है।

कठजीवी (सं.) [वि.] काठ की तरह शुष्क हृदयवाला; निष्ठुर; निर्मम।

कठपुतला [सं-पु.] 1. काठ का पुतला 2. {ला-अ.} ऐसा व्यक्ति जो दूसरों के निर्देश पर चलता हो।

कठपुतली [सं-स्त्री.] 1. काठ की पुतली या गुड़िया जो डोरे या तार की सहायता से नचाई जाती है; (पपेट) 2. {ला-अ.} ऐसा व्यक्ति जो दूसरे के इशारे पर नाचता हो; जिसे अपनी कोई सूझ-बूझ न हो।

कठफोड़वा [सं-पु.] मैना के आकार की एक छोटी चिड़िया; ख़ाकी रंग की चिड़िया जिसकी चोंच नुकीली और लंबी होती है।

कठफोड़ा [सं-पु.] दे. कठफोड़वा।

कठमलिया [सं-पु.] कंठी पहनने का दिखावा करने वाला साधु; बनावटी या ढोंगी साधु। [वि.] कंठी (काठ की माला) धारण करने वाला।

कठमस्त [वि.] 1. वह व्यक्ति जो आस-पास की बातों के प्रति उदासीन रहता है 2. मस्तमौला; संडमुसंड 3. बलिष्ठ।

कठमुल्ला [सं-पु.] 1. वह मुल्ला या मौलवी जो काठ के मनकों की माला फेरता हो 2. दुराग्रही व्यक्ति 3. {ला-अ.} मूर्ख, अनपढ़ और कट्टर मुल्ला या मौलवी। [वि.] 1. मूर्ख 2. अल्पज्ञ 3. रूढ़िवादी; अंधविश्वासी।

कठमुल्लापन [सं-पु.] 1. रूढ़िवाद; कट्टरपन 2. अंधविश्वास; दुराग्रह।

कठरा [सं-पु.] 1. चौड़े मुँह तथा ऊँची दीवार वाला काठ का बना एक बड़ा पात्र; कठौता 2. काठ का संदूक।

कठरी [सं-स्त्री.] छोटे आकार का कठरा।

कठरेती [सं-स्त्री.] काठ या लकड़ी रेतने का औज़ार।

कठला (सं.) [सं-पु.] 1. सोने-चाँदी के बूँदे या मनके जड़ा हुआ गले में पहनने का आभूषण 2. बच्चों की वह माला जिसमें चाँदी की चौकियाँ, छोटा-सा बघनखा (बाघ के नख), बजरबट्टू (एक पेड़ के फल का काला गोल बीज) और तावीज़ आदि पिरो दिए जाते हैं।

कठवाना [क्रि-अ.] शरीर के किसी अंग का शीत आदि से कड़ा, संवेदनहीन या सुन्न हो जाना।

कठारी [सं-स्त्री.] काठ या लकड़ी का बरतन; कमंडल।

कठिका [सं-स्त्री.] सफ़ेद खड़िया; एक प्रकार का चूना पत्थर जो लिखने और सफ़ेदी के काम आता है; खड़िका।

कठिन (सं.) [वि.] दुरूह; मुश्किल; जटिल; विकट; क्लिष्ट; चुनौतीपूर्ण; जोखिम से भरा हुआ; पेचीदा; अबोधगम्य।

कठिना (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चीनी से बनाई गई मिठाई 2. भोजन पकाने का मिट्टी का बरतन।

कठिनाई (सं.) [सं-स्त्री.] कठिन होने का भाव; जटिलता; झंझट; दिक्कत; संकट; परेशानी; बाधा।

कठिनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छिगुनी; हाथ की सबसे छोटी उँगली; कानी उँगली 2. खड़िया मिट्टी।

कठिया [सं-पु.] लाल रंग का गेहूँ। [सं-स्त्री.] भाँग की एक किस्म। [वि.] काठा; कड़े छिलके वाली चीज़।

कठुआना [क्रि-अ.] 1. कड़ापन आना 2. सूखकर काठ जैसा कड़ा और संवेदनहीन हो जाना 3. क्षीण होना। [क्रि-स.] लकड़ी की तरह कड़ा करना।

कठूमर [सं-पु.] गूलर की जंगली प्रजाति।

कठेर [सं-पु.] निर्धन; रंक; मुफ़लिस। [वि.] संकटग्रस्त; पीड़ित; मुसीबत में फँसा हुआ।

कठेल [सं-पु.] 1. धुनियों की वह कमान जिसमें रुई आदि धुनते समय धुनकी को बाँधकर लटकाया जाता है; धुनकी 2. कसेरों अर्थात पीतल के बरतन बनाने वालों का एक उपकरण।

कठैला [सं-पु.] काठ का पात्र; कठौता।

कठोदर (सं.) [सं-पु.] पेट का कड़ा होकर फूल जाना; एक प्रकार का उदर रोग।

कठोपनिषद (सं.) [सं-पु.] आचार्य कठ द्वारा रचित कृष्ण यजुर्वेद शाखा का एक उपनिषद, दो अध्याय वाले इस उपनिषद के प्रथम अध्याय में प्रसिद्ध यम-नचिकेता संवाद मिलता है।

कठोर (सं.) [वि.] 1. कड़ा; ठोस; सख़्त 2. निष्ठुर; दयाहीन 3. जिसका अनुसरण या पालन करना कठिन हो, जैसे- कठोर नियम।

कठोर जल (सं.) [सं-पु.] (रसायन विज्ञान) ऐसा पानी जिसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन आदि यौगिकों की मात्रा साधारण पानी से अधिक होती है तथा जो साबुन के साथ कठिनाई से घुलता या झाग देता है।

कठोरता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कठोर होने का गुण, भाव या अवस्था 2. व्यवहार में सख़्ती; कड़ापन; कड़ाई।

कठोरतावाद (सं.) [सं-पु.] प्रोटेस्टैंट ईसाइयों का कठोर जीवन को श्रेष्ठ एवं आदर्श मानने का सिद्धांत; शुद्धाचारवाद; (प्युरिटैनिज़म)।

कठोरपन [सं-पु.] कठोरता; कड़ापन; निर्दयता।

कठौत [सं-स्त्री.] लकड़ी का कटोरे जैसा बड़ा और चौड़ा बरतन जिसमें खाने की चीज़ें रखी जाती हैं; कठरा; कठैला; कठौता; काष्ठपात्र; कूँड़ा।

कठौता [सं-पु.] लकड़ी का कटोरे जैसा कम गहरा एवं चौड़ा बरतन जिसमें खाने की चीज़ें रखी जाती हैं; कठैला; कठौत; काष्ठपात्र; कूँड़ा।

कठौती [सं-स्त्री.] लकड़ी का एक पात्र; कठैती; छोटा कठौता।

कडंगर [सं-पु.] 1. तिनका; तृण 2. मूँग आदि के थोड़े कड़े डंठल।

कडंगा [वि.] 1. मज़बूत अंगोंवाला; हट्टा-कट्टा 2. उद्दंड; अक्खड़ स्वभाव का।

कड़क [वि.] 1. कठोर; सख़्त 2. करारा, जैसे- कड़क पराँठा 3. तेज़, जैसे- कड़क चाय 4. {ला-अ.} रोबदार या सख़्त मिजाज़ (व्यक्ति)। [सं-स्त्री.] कड़-कड़ की ध्वनि; कड़कड़ाहट, जैसे- बिजली की कड़क। [सं-पु.] लड़ाई में दुश्मन को ललकारने वाला योद्धा।

कड़कड़ [सं-पु.] 1. कड़ी चीज़ के टूटने-फूटने या जलने आदि से उत्पन्न ध्वनि 2. दो वस्तुओं के टकराने से होने वाला शब्द 3. लकड़ी के चिटकने का शब्द 4. गरम तेल में पानी की बूँद गिरने पर उत्पन्न आवाज़।

कड़कड़ाना [क्रि-अ.] 1. किसी चीज़ का 'कड़-कड़' शब्द उत्पन्न करना, जैसे- बिजली का कड़कड़ाना 2. किसी वस्तु को इस प्रकार तोड़ना कि वह 'कड़-कड़' ध्वनि करने लगे 3. घी-तेल का बहुत अधिक गरम होने पर 'कड़-कड़' करना।

कड़कड़ाहट [सं-स्त्री.] कड़कड़ाने की क्रिया या भाव; कड़-कड़ की आवाज़।

कड़कदार [वि.] रोबदार; दमदार।

कड़कना [क्रि-अ.] 1. 'कड़-कड़' की ध्वनि होना 2. किसी चीज़ का चिटकना या टूटना-फूटना 3. बिजली कौंधने की ध्वनि होना 4. क्रोध में गरजकर बोलना; डाँटना 5. रेशमी वस्त्र का तह से फट जाना।

कड़कनाल [सं-स्त्री.] पुराने समय की चौड़े मुँह वाली वह तोप जो दागे जाने पर ज़ोर से आवाज़ करती थी।

कड़का [सं-पु.] वस्तुओं के आपस में टकराने या टूटने-फूटने से उत्पन्न तेज़ ध्वनि; कड़ाके की आवाज़।

कड़खा [सं-पु.] 1. युद्ध के दौरान योद्धाओं को उत्साहित करने के लिए गाया जाने वाला ओजस्वी गीत; विजय-गान 2. (काव्यशास्त्र) सैंतीस मात्राओं का एक छंद।

कड़खैत [सं-पु.] युद्ध में कड़खा गाने वाला; भाट; चारण।

कड़छी [सं-स्त्री.] सब्ज़ी या दाल चलाने वाला लंबी डंडी की गहरी चम्मच; कलछी।

कड़बड़ा [सं-पु.] ऐसा व्यक्ति जिसकी दाढ़ी के कुछ बाल सफ़ेद हो गए हों। [वि.] चितकबरा।

कड़वा [वि.] 1. कटु और अप्रिय स्वाद का 2. {ला-अ.} नागवार; अप्रिय; जो भला न लगे, जैसे- कड़वा वचन। [मु.] -लगना : अप्रिय लगना। -घूँट [सं-पु.] कष्टप्रद बात; अप्रिय वचन; कोई बुरा अनुभव। -तेल [सं-पु.] सरसों का तेल।

कड़वापन [सं-पु.] 1. कड़वा होने का गुण या भाव; कड़वाहट 2. वैमनस्य; कटुता।

कड़वाहट [सं-स्त्री.] 1. कड़वा होने का गुण; कड़वापन; कसैलापन; कटु स्वादवाला 2. {ला-अ.} वैमनस्य; कटुता; दुश्मनी; वैर; रंजिश।

कड़वी [सं-स्त्री.] पशुओं का एक प्रकार का चारा; ज्वार के पौधे या डंठल जो पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग में लाए जाते हैं।

कड़वी रोटी [सं-स्त्री.] (प्रथा) मृत व्यक्ति के परिजनों या कुटुंबियों के लिए उनके निकट संबंधियों द्वारा भेजा जाने वाला खाना।

कड़हन [सं-स्त्री.] 1. एक तरह का मोटा धान 2. उक्त धान का चावल।

कड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. हाथ या पैर में पहनने का एक वृत्ताकार आभूषण 2. कड़ाही, कंडाल (लोहे, पीतल आदि से बना बड़ा गहरा पात्र) आदि को उठाने और पकड़ने के लिए उसमें लगा हुआ छल्ला 3. एक प्रकार का कबूतर। [वि.] 1. सख़्त; मज़बूत 2. जिसमें नमी या लचीलापन न हो 3. जो नरम न हो, जैसे- कड़ा आटा। [मु.] -पड़ना : कठोरता बरतना या अपनाना।

कड़ाई [सं-स्त्री.] 1. कड़ा होने की अवस्था, गुण या भाव 2. सख़्ती; कड़ापन; कठोरता।

कड़ाका [सं-पु.] 1. किसी कठोर चीज़ के टूटने से उत्पन्न होने वाला तीव्र शब्द 2. उपवास; फ़ाका।

कड़ाकेदार (हिं.+फ़ा.) [वि.] बहुत ही बढ़िया या अच्छा; ज़बरदस्त।

कड़ापन [सं-स्त्री.] 1. कड़ा होने की अवस्था, गुण या भाव; सख़्ती; कठोरता; ठोसपन 2. किसी वस्तु के अधिक सूखकर कठोर हो जाने की स्थिति।

कड़ाह (सं.) [सं-पु.] गोल आकार तथा चौड़े खुले मुँह वाला लोहे, पीतल आदि का बना एक बड़ा पात्र, जो अधिक मात्रा में भोज्य सामग्री पकाने या तलने के काम आता है; लोहे की बनी हुई बड़ी कड़ाही; कड़ाहा।

कड़ाहा (सं.) [सं-पु.] दे. कड़ाह।

कड़ाही (सं.) [सं-स्त्री.] लोहे, पीतल आदि धातु का छोटे आकार का कड़ाहा।

कड़ियल [वि.] 1. कड़ा; हट्टा-कट्टा 2. साहसी; कठोर।

कड़ी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ज़ंजीर या करधनी की लड़ी का एक छल्ला 2. छोटा छल्ला जो किसी वस्तु को लटकाने के काम आता है 3. छत में लगने वाली लकड़ी जिसे आधार बनाकर छप्पर अथवा खप्पर की छत बनाई जाती है 4. {ला-अ.} क्रम से घटित कुछ घटनाओं में से प्रत्येक 5. {ला-अ.} जोड़ने वाली बात।

कड़ुआ [सं-पु.] कड़वा।

कढ़ना [क्रि-अ.] 1. बाहर निकलना 2. उदय होना 3. अन्य की अपेक्षा आगे निकल जाना; बढ़ जाना 4. दूध आदि तरल पदार्थों का खौलकर गाढ़ा होना।

कढ़ाई [सं-स्त्री.] 1. कपड़े पर बेल-बूटे (कसीदा) काढ़ने की क्रिया, ढंग या भाव 2. काढ़ने की मज़दूरी।

कढ़ाव [सं-पु.] कशीदे या बेलबूटे का काम; कपड़े पर कढ़े हुए बेल-बूटों का उभार।

कढ़ी [सं-स्त्री.] बेसन, दही, पानी आदि को उबालकर बनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध हलका गाढ़ा व्यंजन।

कढ़ुआ [सं-पु.] बड़े तथा गहरे पात्रों में से चीज़ें निकालने के लिए प्रयुक्त बरतन। [वि.] 1. काढ़ा या निकाला हुआ 2. कढ़ा या औटाया हुआ 3. जिसपर बेल-बूटे आदि काढ़े या बनाए गए हों।

कढ़ुई [सं-स्त्री.] किसी बड़े तथा गहरे पात्र में से चीज़ें निकालने के लिए प्रयुक्त मिट्टी का छोटा पात्र; पुरवा।

कण (सं.) [सं-पु.] 1. किसी पदार्थ का अंश या दाना 2. प्राणी शरीर में किसी जैविक संरचना का सूक्ष्म अंश, जैसे- रक्तकण 3. अनाज़ का छोटा दाना।

कणाद (सं.) [सं-पु.] वैशेषिक दर्शन के प्रणेता उलूक मुनि (कणाद के नामकरण के विषय में यह मान्यता है कि वे खेत से अन्न कणों को चुनकर जीवन निर्वाह करते थे इसीलिए इन्हें कणाद या कणभुक कहते हैं)।

कणाद सूत्र (सं.) [सं-पु.] वैशेषिक दर्शन का आधार ग्रंथ ('वैशेषिक सूत्र' को ही कणाद सूत्र कहते हैं)।

कणिक (सं.) [सं-पु.] 1. कण 2. गेहूँ का आटा 3. अनाज की बाली।

कणिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. बहुत छोटा कण; कनी 2. रक्त में प्रसरणशील छोटे कण जो लाल और सफ़ेद रंग के होते हैं।

कणिकामय (सं.) [वि.] कणमय; दानेदार।

कणिकायित (सं.) [वि.] कण से युक्त।

कणिश (सं.) [सं-पु.] अनाज (जैसे- जौ, गेहूँ आदि) की बाल।

कण्व (सं.) [सं-पु.] 1. ऋग्वेद के आठवें मंडल में उल्लिखित तथा शुक्ल यजुर्वेद की एक शाखा के प्रवर्तक वैदिक ऋषि 2. शकुंतला के धर्मपिता।

कत (सं.) [सं-पु.] 1. रीठे या निर्मली का पेड़ 2. सरकंडे की कलम का वह भाग जो लिखने के लिए तिरछा काटा जाता है।

कतई (अ.) [क्रि.वि.] बिलकुल; कदापि; हरगिज़।

कतना [क्रि-अ.] सूत आदि का काता जाना। [क्रि-स.] कातना।

कतरन [सं-स्त्री.] 1. कागज़, कपड़े आदि को काटने के उपरांत शेष बचे अनुपयोगी टुकड़े; धज्जियाँ।

कतरना (सं.) [क्रि-स.] कैंची या सरौते आदि से किसी चीज़ को काटना; काट-छाँट करना।

कतरनी (सं.) [सं-स्त्री.] कतरने का औज़ार; कैंची।

कतरब्योंत [सं-स्त्री.] 1. अपनी आवश्यकता के अनुसार किसी चीज़ में काट-छाँट करने की क्रिया या भाव 2. हेरफेर; उलटफेर 3. सोच-विचार; उधेड़बुन 4. जोड़-तोड़; युक्ति।

कतरवाँ [वि.] 1. जो कतरकर या काटकर बनाया गया हो 2. घुमाव-फिराव वाला; तिरछा।

कतरवाना [क्रि-स.] किसी को कोई चीज़ काटने में प्रवृत्त करना।

कतरा (अ.) [सं-पु.] किसी भी तरल अर्थात द्रव पदार्थ की बूँद, जैसे- ख़ून का क़तरा, पानी का क़तरा।

क़तरा (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कतरा)।

कतराना [क्रि-अ.] 1. किसी कार्य को करने से बचना 2. किसी की निगाह बचाकर चुपके से निकल जाना।

कतला [सं-पु.] किसी खाद्य पदार्थ का कटा हुआ तिकोन या चौकोर टुकड़ा, जैसे- बरफ़ी का कतला।

कतली [सं-स्त्री.] 1. चीनी की चाशनी में खोआ, गरी के बुरादे, खरबूजे के बीज, बादाम आदि डालकर जमाई हुई मिठाई; बरफ़ी 2. उक्त प्रकार से निर्मित मिठाई या पकवान का कटा हुआ चौकोर टुकड़ा।

कतवार (सं.) [सं-पु.] 1. घर से निकलने वाला कूड़ा-करकट 2. {ला-अ.} अनुपयोगी या व्यर्थ वस्तुओं का जमघट।

कता (अ.) [सं-स्त्री.] 1. किसी वस्तु के बनने-बनाने का ढंग; तर्ज़; बनावट; आकार; शैली; तराश; काट 2. पहनने के कपड़ों की कतर-ब्योंत; काट-छाँट 3. अरबी, फ़ारसी या उर्दू का कोई छोटा पद्य अथवा उसका चरण।

कताई [सं-स्त्री.] 1. कातने की क्रिया, ढंग या भाव 2. कातने का पारिश्रमिक या मज़दूरी 3. सूत्रकर्म।

कतान (फ़ा.) [सं-पु.] 1. उच्च कोटि का रेशमी कपड़ा जिससे साड़ियाँ या दुपट्टे आदि बनाए जाते हैं 2. प्राचीन काल में अलसी के रेशे या छाल से बनाया जाने वाला एक प्रकार का मुलायम कपड़ा।

कतार (अ.) [सं-स्त्री.] 1. पंक्ति; श्रेणी; पाँत 2. शृंखला; क्रम; सिलसिला 3. समूह; झुंड।

क़तार (अ.) [सं-स्त्री.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कतार)।

कतारा (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का लंबा एवं मोटा गन्ना जो लाल रंग का होता है 2. इमली की फली।

कतिधा (सं.) [वि.] अनेक प्रकार का; भाँति-भाँति का; कई क़िस्म का। [क्रि.वि.] कई तरह से; अनेक प्रकार से; भाँति-भाँति से।

कतिपय (सं.) [वि.] कुछ; थोड़े से; जिनकी संख्या कम हो।

कतीरा (अ.) [सं-पु.] गूल नामक वृक्ष की गोंद जो औषधि के रूप में प्रयुक्त होती है।

कत्ता (सं.) [सं-पु.] 1. एक औज़ार जिससे लोग बाँस वगैरह काटते या चीरते हैं; बाँका; बाँक 2. छोटी टेढ़ी तलवार 3. पासा।

कत्ती (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटे आकार की तलवार; कटार 2. चाकू; छुरी 3. सुनारों की कतरनी 4. बत्ती की तरह बटकर अर्थात लपेटकर बाँधी जाने वाली एक प्रकार की पगड़ी।

कत्थई (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का रंग। [वि.] कत्थे अथवा खैर के रंग का; खैरा।

कत्थक (सं.) [सं-स्त्री.] उत्तर भारत की एक शास्त्रीय नृत्यशैली; कथक।

कत्था (सं.) [सं-पु.] 1. खैर की लकड़ियों को उबालकर निकाला हुआ गाढ़ा और सुखाया गया अर्क या सार जो पान में खाया जाता है 2. खैर का वृक्ष।

कत्ल (अ.) [सं-पु.] हत्या; वध।

क़त्ल (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कत्ल)।

कत्लगाह (अ.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] वधस्थल; कसाईख़ाना; बूचड़ख़ाना।

कत्लेआम (अ.) [सं-पु.] जनसंहार; सार्वजनिक हत्या; जनसाधारण की हत्या; बड़े पैमाने पर किया जाने वाला जुनूनी कत्ल।

क़त्लेआम (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कत्लेआम)।

कथक (सं.) [सं-पु.] 1. उत्तर भारत का एक प्रकार का शास्त्रीय नृत्य; कत्थक 2. किस्से-कहानियाँ सुनाने का काम करने वाला व्यक्ति; किस्सागो 3. रंगमंच का वह पात्र जो नाटक के आरंभ में उसकी पूरी कथा का वर्णन करता है; कथा उद्घोषक या सूत्रधार।

कथकली (मल.) [सं-पु.] दक्षिण भारत की एक नृत्यशैली; केरल का एक लोकनृत्य।

कथन (सं.) [सं-पु.] 1. कोई बात कहने की क्रिया या भाव; कहना; बोलना 2. वह जो कहा गया हो; कही गई बात; उक्ति; वचन; वाक्य 3. वर्णन 4. उपन्यास का एक भेद।

कथनी (सं.) [सं-स्त्री.] कोई बात, कथन या उक्ति; कहने की क्रिया या भाव।

कथनीय (सं.) [वि.] 1. कहे जाने योग्य 2. वर्णन किए जाने योग्य; वर्णनीय।

कथरी (सं.) [सं-स्त्री.] पुराने चिथड़े कपड़ों को जोड़कर तथा सिलकर बनाया गया बिछावन; गुदड़ी।

कथा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कहानी; बीते हुए जीवन की घटनाओं का क्रम; वर्णन; किस्सा 2. वह जो कही जाए, जैसे- धर्मविषयक आख्यान, किसी घटना की चर्चा 3. हाल; ख़बर।

कथांतर (सं.) [सं-पु.] किसी कथा के अंतर्गत की गई अन्य गौण कथा।

कथांश (सं.) [सं-पु.] कथा का अंश, खंड या भाग।

कथाकार (सं.) [सं-पु.] कथा लिखने वाला; कहानीकार; उपन्यासकार; कथावाचक।

कथानक (सं.) [सं-पु.] छोटी कथा, कहानी या उपन्यास की आधारकथा; कथावस्तु; (प्लॉट)।

कथामुख (सं.) [सं-पु.] 1. कथा की भूमिका 2. पत्रकारिता के क्षेत्र में पहले के सभी आमुखों के बदले दिया गया एक नया आमुख।

कथावस्तु (सं.) [सं-पु.] किसी रचना, लेख आदि में कार्य-व्यापार की योजना; विषयवस्तु; (प्लॉट)।

कथावाचक (सं.) [सं-पु.] 1. कथा कहने या सुनाने वाला; कथा-उद्घोषक 2. पूजा आदि में कथा सुनाने वाला।

कथा वार्ता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पौराणिक और धार्मिक कथाओं की चर्चा 2. किसी समसामयिक विषय पर होने वाली चर्चा या बात-चीत।

कथाशिल्प (सं.) [सं-पु.] कथा लिखने का कलात्मक पक्ष; उपन्यासकार या कथाकार के लिखने की शैली।

कथाशिल्पी (सं.) [सं-पु.] कथा लिखने वाला; शिल्प वैविध्य के साथ कथा लिखने वाला; कथाकार; उपन्यासकार।

कथित (सं.) [वि.] जो कहा गया हो; कहा हुआ; भाषित; जिसका उल्लेख या कथन हुआ हो। [सं-पु.] (संगीत) मृदंग के बारह प्रबंधों में से एक प्रबंध।

कथीर (सं.) [सं-पु.] राँगा नामक धातु।

कथोपकथन (सं.) [सं-पु.] 1. वार्तालाप; बातचीत; संवाद 2. किसी कथा, कहानी, उपन्यास आदि के पात्रों का आपस में होने वाला संवाद।

कथ्य (सं.) [वि.] कही जाने वाली कोई बात।

कदंब (सं.) [सं-पु.] 1. कदम नामक वृक्ष 2. कदम के फल 3. समूह; झुंड 4. राशि; ढेर।

कदंश (सं.) [सं-पु.] बुरा या निकृष्ट अंश।

कद (फ़ा.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु या व्यक्ति की लंबाई या ऊँचाई 2. पद; ओहदा 3. {ला-अ.} प्रतिष्ठा; हैसियत।

क़द (फ़ा.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कद)।

कदक्षर (सं.) [सं-पु.] बुरी लिखावट या लिपि।

कदन (सं.) [सं-पु.] 1. वध; हिंसा 2. युद्ध 3. विनाश 4. पाप 5. दुख।

कदन्न (सं.) [सं-पु.] मोटा या घटिया किस्म का अनाज।

कदम (अ.) [सं-पु.] 1. पैर; पाँव; डग 2. {ला-अ.} कोई काम करने की पहल; कोशिश। [मु.] -उठाना : किसी काम को करने के लिए आगे बढ़ना। -बढ़ाना : उन्नति करना। -चूम लेना : पूरा मान-सम्मान देना। -पर क़दम रखना : पूरी तरह नकल करना; अनुकरण करना।

क़दम (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कदम)।

कदमताल (अ.+सं.) [सं-पु.] कदम से कदम मिलाकर चलने की स्थिति।

कदमबोसी (अ.) [सं-स्त्री.] बड़ों के पैर चूमना; सम्मान प्रकट करने का भाव; गुरुजनोचित सम्मान-प्रदर्शन; सम्मानित व्यक्तियों की मुलाकात।

कदर (अ.) [सं-स्त्री.] 1. मान; सम्मान; आदर; प्रतिष्ठा 2. महत्व।

कदरदाँ (अ.+फ़ा.) [वि.] कदर जानने, करने या समझने वाला; महत्व समझने वाला; गुणग्राहक; कद्रदान।

कदरदान (अ.+फ़ा.) [वि.] कदरदाँ।

कदर्थ (सं.) [वि.] 1. बुरे अर्थवाला 2. निकम्मा; निर्रथक; रद्दी 3. कुत्सित; बुरा।

कदर्थना (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सताना; कष्ट या पीड़ा पहुँचाना 2. हीन दशा 3. दुर्गति; दुर्दशा 4. निंदा; तिरस्कार।

कदर्थित (सं.) [वि.] जिसकी बुरी दशा की गई हो; दुर्गतिप्राप्त; पीड़ित।

कदर्य (सं.) [वि.] 1. जो धन का भोग या व्यय न करे और न ही किसी को दे; कंजूस 2. जिसके मन में डर हो या जो कोई काम आदि करने से डरता हो; कायर; डरपोक 3. बुरा; ख़राब; निकृष्ट।

कदल (सं.) [सं-पु.] कदली वृक्ष; केला।

कदली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. केला 2. हाथी पर रखा जाने वाला झंडा 3. हिरन की एक प्रजाति।

कदलीवन (सं.) [सं-पु.] 1. केले का जंगल 2. असम का वह वन क्षेत्र जहाँ हाथी बहुत पाए जाते हैं।

कदा (फ़ा.) [परप्रत्य.] यौगिक शब्दों के अंत में आलय के अर्थ में प्रयुक्त होने वाला एक प्रत्यय, जैसे- मैकदा (मदिरालय), बुतकदा (मंदिर)।

कदाकार (सं.) [वि.] बुरे या भद्दे आकारवाला; कुरूप; बेडौल; भोंड़ा; बेढब।

कदाख्य (सं.) [वि.] जिसे लोग बुरा कहते हों या जिसे कुख्याति मिली हो; कुख्यात; बदनाम।

कदाचार (सं.) [सं-पु.] कुत्सित आचार; दूषित अथवा बुरा आचार; ख़राब चाल-चलन; बदचलनी।

कदाचारी (सं.) [वि.] 1. जिसे बुरा आचरण करने के लिए अपराधी माना गया हो; बुरा आचरण करने वाला; दुराचारी; अपराधी; दुर्जन 2. घोटालेबाज़; भ्रष्टाचारी 3. पापी 4. लंपट।

कदाचित (सं.) [अव्य.] 1. संभवतः; शायद; कभी 2. किसी कार्य या बात की संभावना को अनिश्चित रूप से सूचित करने वाला एक अव्यय।

कदापि (सं.) [क्रि.वि.] किसी कार्य के संबंध में निषेध के रूप में प्रयुक्त; कभी (नहीं); हरगिज़; किसी भी अवस्था में।

कदाशय [वि.] अनुचित आशयवाला; अनुचित उद्देश्यवाला; बुरे इरादेवाला।

कदाशयता [सं-स्त्री.] कदाशय होने की अवस्था या भाव; बुरा आशय, उद्देश्य या इरादा।

कदाहार (सं.) [सं-पु.] 1. दूषित या निकृष्ट भोजन 2. अनियमित समय का भोजन; जब-तब किया गया भोजन।

कदीम (अ.) [वि.] 1. जो आदि से हो; अनादि 2. पुरातन; प्राचीन; पुराना।

क़दीम (अ.) [वि.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कदीम)।

कदीमी (अ.) [वि.] पुराना; प्राचीन; पारंपरिक; पुरातन; पुराने समय का; कदीम।

कदीर (अ.) [सं-पु.] 1. मज़बूत; ताकतवर; शक्तिशाली; बलवान 2. सर्वशक्तिमान; ईश्वर 3. समर्थ।

कदुष्ण (सं.) [वि.] इतना गरम कि जिसको छूने से त्वचा न जले; थोड़ा गरम; कुनकुना।

कदूरत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. मैलापन; गंदापन 2. दुर्भाव; वैमनस्य; मनमुटाव।

कद्दावर (हिं.+फ़ा.) [वि.] लंबे-चौड़े आकारवाला; बड़े डील-डौल का; विशालकाय।

कद्दू (फ़ा.) [सं-पु.] लौकी की तरह का प्रसिद्ध गोल फल जिसकी सब्ज़ी बनती है।

कद्दूकश (फ़ा.) [सं-पु.] 1. एक उपकरण जिससे कद्दू आदि के छोटे-छोटे लच्छे बनाते हैं 2. कद्दू कसने, घिसने का एक उपकरण।

कद्र (अ.) [सं-स्त्री.] 1. गुण की परख; आदर 2. कीमत; मूल्य 3. आदर-सत्कार 4. इज़्ज़त; प्रतिष्ठा; सम्मान 5. महत्व।

क़द्र (अ.) [सं-स्त्री.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कद्र)।

कद्रदाँ (अ.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] कद्र या मान बढ़ाने वाला; इज़्ज़त करने वाला; गुणग्राहक।

कन [सं-पु.] 1. कान का संक्षिप्त रूप जो कुछ यौगिक शब्दों के आरंभ में लगता है, जैसे- कनकटा, कनफटा 2. अनाज के दाने का छोटा टुकड़ा।

कनक (सं.) [सं-पु.] 1. स्वर्ण; सोना 2. धतूरा 3. टेसू 4. पलाश; ढाक 5. नागकेसर 6. खजूर 7. गेहूँ का आटा 8. अनाज।

कनकना [वि.] 1. हलके आघात से भी टूट जाने वाला 2. चुनचुनाने वाला; हलकी खुजली उत्पन्न करने वाला 3. तुनकमिज़ाज; चिड़चिड़ा।

कनकनाना [क्रि-अ.] 1. किसी पदार्थ विशेष के स्पर्श से शरीर में खुजली या चुनचुनाहट होना 2. अरुचिकर या अप्रिय लगना; नागवार लगना 3. चौकन्ना या सतर्क होना 4. रोमांचित होना।

कनका (सं.) [सं-पु.] 1. कोई छोटा कण; कनकी 2. किसी अनाज के दाने का छोटा टुकड़ा।

कनकी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चावलों के टूटे हुए छोटे-छोटे टुकड़े 2. छोटा कण।

कनकूत (सं.) [सं-पु.] 1. आँकने या अनुमान करने की क्रिया या भाव 2. खेत में खड़ी फ़सल को देखकर उपज के विषय में किया जाने वाला अनुमान।

कनकौआ [सं-पु.] 1. कागज़ की बड़ी पतंग; गुड्डी 2. एक प्रकार की घास जो बारिश के मौसम में होती है।

कनखजूरा [सं-पु.] 1. एक ज़हरीला कीड़ा जिसके अनेक पैर होते हैं 2. रेंगकर चलने वाला एक जीव; गोजर।

कनखा (सं.) [सं-पु.] 1. कोंपल 2. छोटी शाखा; टहनी 3. डाल।

कनखियाना [क्रि-स.] 1. कनखियों से देखना; तिरछी नज़र से देखना 2. आँख से इशारा करना; कनखी मारना।

कनखी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. आँख की कोर 2. दूसरों की निगाह बचाकर किया जाने वाला संकेत 3. तिरछी निगाह से देखने की क्रिया 4. आँख का इशारा। [मु.] -मारना : आँख से इशारा करना।

कनखोदनी [सं-स्त्री.] कान का मैल साफ़ करने के लिए प्रयुक्त एक छोटा और तार के जैसा पतला उपकरण।

कनछेदन [सं-पु.] हिंदुओं के सोलह संस्कारों में से एक जिसमें बालक के कान में छेद किया जाता है; कर्णवेध।

कनटोप [सं-पु.] एक ऐसी टोपी जिससे सिर के साथ-साथ दोनों कान भी पूरी तरह ढक जाते हैं।

कनपटी [सं-स्त्री.] 1. मनुष्य के शरीर का वह अंग जो माथे के छोर पर कान के आगे स्थित है; कान और आँख के बीच का स्थान 2. गंडस्थल।

कनपेड़ा [सं-पु.] एक रोग जिसमें कान के नीचे सूजन होती है तथा गिल्टियाँ निकल आती हैं; गलसुआ।

कनफटा [सं-पु.] गोरखपंथी साधु जिनके कान बिल्लौर के बाले पहनने के लिए फाड़े जाते हैं।

कनफुँका [वि.] 1. कान में मंत्र फूँककर दीक्षा देने का व्यवसाय करने वाला 2. जिसने उक्त प्रकार के व्यक्ति से दीक्षा ली हो।

कनफूल [सं-पु.] 1. कान में पहनने वाला फूल के आकार का एक आभूषण; तरवन 2. कर्णफूल।

कनमनाना [क्रि-अ.] 1. किसी की आहट मिलने पर शरीर में अचानक हरकत होना 2. किसी बात के विरुद्ध हलका प्रतिकार करना या करने की चेष्टा करना 3. सोने की अवस्था में कुछ हिलना-डुलना।

कनरस [सं-पु.] 1. एकाग्रचित्त होकर गीत-संगीत या भाषण आदि सुनने की प्रवृत्ति 2. उक्त से प्राप्त आनंद।

कनरसिया [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जिसे गीत-संगीत सुनने का शौक हो 2. गीत-संगीत प्रिय व्यक्ति।

कनसार [सं-पु.] ताम्रपत्र पर बेल-बूटे या लेख आदि खोदने वाला व्यक्ति।

कनसाल [सं-पु.] चारपाई के पायों के वे छेद जो छेदते समय कुछ तिरछे हो जाएँ और जिनके तिरछेपन के कारण चारपाई में कनेव या तिरछापन आ जाए।

कनस्तर (इं.) [सं-पु.] टीन का बना हुआ चौकोर आकार का एक पात्र जिसमें घी, तेल, आटा आदि रखा जाता है; पीपा।

कनागत (सं.) [सं-पु.] अश्विन (क्वार) माह का कृष्णपक्ष जिसमें हिंदू अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं; पितृपक्ष।

कनात (तु.) [सं-स्त्री.] मोटे कपड़े का वह परदा जिससे किसी स्थान को ढका और घेरा जाता है।

कनिक (सं.) [सं-स्त्री.] 1. गेहूँ 2. गेहूँ का आटा।

कनियाना [क्रि-अ.] 1. आँख बचाकर निकल जाना; कतराना 2. पतंग का एक ओर झुकना; कन्नी खाना। [क्रि-स.] शिशु को गोद में लेकर उसका सिर अपने कंधे से लगाना।

कनिष्क [सं-पु.] कुषाण वंश के एक प्रसिद्ध राजा।

कनिष्ठ (सं.) [वि.] 1. वय या उम्र में छोटा 2. पद, मर्यादा आदि में छोटा; (जूनियर) 3. 'ज्येष्ठ' का विलोम 4. तुच्छ; हीन।

कनिष्ठा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कानी उँगली; हाथ की सबसे छोटी उँगली 2. कई पत्नियों में से वह जो सबसे अंत में ब्याही गई हो।

कनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी चीज़ का बहुत छोटा टुकड़ा; कणिका 2. हीरे का छोटा टुकड़ा 3. चावल का टुकड़ा 4. पकाए हुए चावल का वह अंश जो पूरी तरह से पका न हो।

कनीज़ (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. दासी; लौंडी 2. परिचारिका; सेविका; नौकरानी।

कनेक्शन (इं.) [सं-पु.] 1. दो वस्तुओं या तारों का संयोजन बिंदु; जोड़ 2. दो या अधिक व्यक्तियों या वस्तुओं में संबंध; मेल; संयोजन।

कनेठी [सं-स्त्री.] 1. कान मरोड़ने की क्रिया या भाव 2. कान मरोड़ने की सज़ा।

कनेर (सं.) [सं-पु.] 1. नुकीली तथा लंबी पत्तियों वाला एक प्रसिद्ध वृक्ष 2. उक्त वृक्ष में लगने वाले सफ़ेद, पीले, लाल आदि रंग के फूल।

कनोखा [वि.] कुछ तिरछा देखने वाला; कनखियों से देखने वाला।

कनौजिया [सं-पु.] 1. कन्नौज का रहने वाला व्यक्ति; कन्नौज का निवासी 2. कान्यकुब्ज ब्राह्मण। [वि.] कन्नौज का; कन्नौज से संबंधित।

कनौड़ [सं-स्त्री.] 1. खंडित होने की अवस्था या भाव 2. संकोच; लज्जा 3. कलंक 4. तुच्छता; हीनता।

कनौड़ा [वि.] 1. जिसकी एक आँख ख़राब हो; काना 2. जिसका कोई अंग खंडित हो; अपंग 3. कलंकित; निंदित 4. लज्जित; संकुचित 5. अहसानमंद; दबैल 6. तुच्छ; हीन 7. दुर्बल; असमर्थ।

कनौती [सं-स्त्री.] 1. कान में पहनने की बाली 2. पशुओं के कान 3. घोड़ों के कान उठाए रखने का ढंग।

कन्ना (सं.) [सं-पु.] 1. छोर; किनारा; कोर 2. पतंग के बीच में बाँधा जोने वाला डोरा 3. चावल के बहुत छोटे टुकड़े 4. पौधों में लगने वाला एक रोग।

कन्नी [सं-स्त्री.] 1. सिरा; किनारा 2. पतंग का किनारा 3. पतंग में बाँधी जाने वाली धज्जी 4. कोंपल; पेड़ों का नया कल्ला। [मु.] -खाना : उड़ते समय पतंग का एक ओर झुकते जाना।

कन्नौजी [सं-स्त्री.] कन्नौज में बोली जाने वाली भाषा का नाम। [वि.] कन्नौज संबंधी; कन्नौज की।

कन्फ़र्म (इं.) [सं-पु.] 1. पक्का; पुष्ट 2. निश्चित; प्रमाणित।

कन्फ़्यूज़्ड (इं.) [सं-पु.] भ्रमित; दुविधाग्रस्त; चकराया हुआ; उलझा हुआ; अस्पष्ट।

कन्या (सं.) [सं-स्त्री.] 1. क्वाँरी या अविवाहित लड़की 2. बेटी; पुत्री 3. बारह राशियों में से छठी राशि विशेष।

कन्याकुमारी (सं.) [सं-स्त्री.] दक्षिण का रामेश्वरम के निकट का एक अंतरीप; कुमारी अंतरीप।

कन्यादान (सं.) [सं-पु.] 1. (हिंदू) विवाह में वर को कन्या देने की एक रीति, रस्म या प्रथा 2. माता-पिता द्वारा विवाह में वर को कन्या सौंपना।

कन्वर्जेंस (इं.) [सं-पु.] मीडिया अभिशरण/सम्मिलन।

कन्हाई (सं.) [सं-पु.] 1. कृष्ण 2. कन्हैया; कान्हा।

कन्हैया (सं.) [सं-पु.] 1. कृष्ण 2. बहुत सुंदर व्यक्ति 3. प्रिय व्यक्ति 4. एक पहाड़ी वृक्ष।

कप (इं.) [सं-पु.] 1. प्याला; चषक 2. काँच, चीनी-मिट्टी आदि का बना हुआ चाय, दूध और कॉफ़ी आदि पीने का प्याला 3. खात; कोटर 4. प्रतियोगिता या स्पर्धा में खिलाड़ी या टीम को दिया जाने वाला प्रतीक चिह्न, जैसे- विश्वकप।

कपट (सं.) [सं-पु.] 1. मन में होने वाला दुराव; छिपाव 2. छिपाने की दूषित मनोवृत्ति 3. छल; दंभ; धोखा 4. मिथ्या और छलपूर्ण आचरण 5. मन का वह कलुषित भाव जिसमें धोखा देने या हानि पहुँचाने का विचार छिपा रहता है।

कपटजाल (सं.) [सं-पु.] वह काम जो किसी को धोखे में रखकर कोई स्वार्थ साधने के लिए किया जाए; जालसाज़ी।

कपटवेश (सं.) [सं-पु.] 1. छद्मवेश 2. बनावटी वेश 3. दूसरों को छलने के लिए बनाया गया नकली वेश; कृत्रिम वेश।

कपटशील (सं.) [वि.] कपट करने वाला; कपटी; छली; धोखेबाज़; धूर्त।

कपटा (सं.) [सं-पु.] 1. तंबाकू के पत्तों में लगने वाला एक प्रकार का कीड़ा 2. धान की फ़सल को नुकसान पहुँचाने वाला एक कीड़ा।

कपटी (सं.) [वि.] 1. जिसके मन में कपट हो 2. कपट करने वाला 3. बुरे विचारवाला 4. छली; धोखेबाज़ 5. धूर्त; दगाबाज़।

कपड़-कोट [सं-पु.] तंबू; खेमा; डेरा।

कपड़गंध [सं-स्त्री.] कपड़ा जलने से होने वाली दुर्गंध।

कपड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. रुई, रेशम, ऊन आदि से बना हुआ वस्त्र 2. पोशाक; पहनावा 3. पट; वस्त्र। [मु.] -लत्ता : पहनने के वस्त्र; व्यवहार में लाए जाने वाले कपड़े।

कपर्दक (सं.) [सं-पु.] 1. शिव की जटा; जटाजूट 2. घोंघे की तरह के एक समुद्री कीड़े का कड़ा अस्थि आवरण; कौड़ी; काकिणी।

कपल (इं.) [सं-पु.] 1. विवाहित युग्म; जोड़ा; दंपति 2. किसी वस्तु का जोड़ा 3. संपूरक होना।

कपाट (सं.) [सं-पु.] 1. दरवाज़ा; किवाड़ 2. दरवाज़े में लगे हुए पल्ले।

कपाल (सं.) [सं-पु.] 1. खोपड़ी; सिर 2. मस्तक; ललाट; माथा 3. भिक्षुओं का मिट्टी का बना भिक्षा-पात्र; खप्पर 4. वह पात्र जिसमें यज्ञ का पुरोडाश (खीर) पकाया जाता है 5. मिट्टी के घड़े का टूटा हुआ अर्धगोलाकार भाग; खपड़ा 6. एक प्रकार का कोढ़ 7. ढाल 8. {ला-अ.} भाग्य।

कपाल-क्रिया (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हिंदू रीति के अनुसार शवदाह में शव का अधिकांश भाग जल चुकने के उपरांत खोपड़ी को बाँस या लकड़ी से तोड़ने-फोड़ने की क्रिया 2. {ला-अ.} किसी वस्तु को पूरी तरह नष्ट करना।

कपालभाती (सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्राणायाम का एक प्रकार 2. एक प्रकार की श्वाँसक्रिया।

कपालिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. खोपड़ी 2. घड़े का टूटा हुआ भाग 3. एक प्रकार का दंतरोग जिसमें दाँत पर पपड़ी जम जाती है 4. रणचंडी; काली।

कपाली (सं.) [सं-पु.] 1. महादेव; शिव 2. भैरव 3. कपाल या ठीकरा लेकर भीख माँगने वाला भिक्षुक।

कपास (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार का पौधा जिसके फल से रुई निकलती है 2. इस पौधे के फल के तंतुओं से सूत काता जाता है।

कपिंजल (सं.) [सं-पु.] 1. पपीहा; चातक 2. गौरा या चटक 3. भरदूल; भरुही 4. तीतर 5. एक प्राचीन मुनि।

कपि (सं.) [सं-पु.] 1. बंदर; मर्कट 2. हाथी 3. करंज; कंजा 4. सूर्य 5. शिलारस नामक सुगंधित औषधि 6. एक ऋषि।

कपित्थ (सं.) [सं-पु.] 1. कैथ का पेड़ और उसका फल 2. नृत्य में एक प्रकार की मुद्रा।

कपिल (सं.) [सं-पु.] 1. सांख्य दर्शन के प्रणेता मुनि 2. महादेव 3. अग्नि 4. सूर्य। [वि.] 1. भूरा; बादामी 2. ताँबे जैसे रंग का 3. भोला-भाला।

कपिला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. भूरे या सफ़ेद रंग की गाय 2. सीधी गाय 3. अग्निकोण अर्थात दक्षिण-पूर्व के दिग्गज पुंडरीक की पत्नी 4. दक्ष प्रजापति की एक कन्या 5. रेणुका नामक गंधद्रव्य 6. जोंक 7. एक प्रकार का चींटा; माटा।

कपिश (सं.) [सं-पु.] 1. भूरा या बादामी रंग 2. धूप। [वि.] 1. जिसमें काला-पीला रंग मिला हुआ हो; मटमैला; भूरा 2. भूरा रंग जिसमें कुछ लाली हो।

कपीश (सं.) [सं-पु.] 1. कपि अर्थात बंदरों के राजा; कपींद्र 2. बाली; सुग्रीव; हनुमान।

कपूत (सं.) [वि.] 1. चरित्रहीन पुत्र; नालायक बेटा; बुरे चाल-चलन वाला पुत्र 2. कुल को कलंकित करने वाला पुत्र।

कपूती [सं-स्त्री.] 1. कपूत होने की अवस्था; नालायकी; कपूतपन 2. वह स्त्री जिसका पुत्र दुश्चरित्र हो।

कपूर (सं.) [सं-पु.] सफ़ेद रंग का एक सुगंधित पदार्थ जिसे जलाने पर लौ निकलती है; कर्पूर; काफ़ूर; (कैंफ़र)।

कपूर-कचरी [सं-स्त्री.] एक सुगंधित लता जिसकी जड़ औषधि बनाने के काम आती है; गंधमूली; गंधपलाशी।

कपूरा [सं-पु.] 1. एक प्रकार का धान और उसका चावल 2. बकरे का अंडकोश। [वि.] सफ़ेद (चौपायों के रंग के लिए)।

कपूरी [सं-पु.] 1. एक रंग जो कुछ हलका पीला होता है 2. एक प्रकार का पान जो बहुत लंबा और चौड़ा होता है। [सं-स्त्री.] एक प्रकार की बूटी जो पहाड़ों पर होती है। [वि.] 1. कपूर का बना हुआ 2. हलके पीले रंग का।

कपैसिटी (इं.) [सं-स्त्री.] 1. क्षमता; योग्यता; सामर्थ्य 2. धारिता; ग्रहणशक्ति 3. हैसियत; दर्ज़ा; स्थिति 4. अधिकार।

कपोत (सं.) [सं-पु.] 1. कबूतर 2. पंडुक; परेवा 3. चिड़िया; पक्षी 4. भूरे रंग का कच्चा सुरमा।

कपोती (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कबूतरी 2. पेंडुकी 3. कुमरी। [वि.] 1. कपोत के रंग का; ख़ाकी; फाख्तई 2. कबूतर की शकल का 3. कबूतर रखने वाला।

कपोल (सं.) [सं-पु.] 1. गाल 2. नाट्य एवं नृत्य में एक भाव-भंगिमा।

कपोल-कल्पना (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मन से गढ़ी हुई बात जिसका वास्तविकता से कोई संबंध न हो 2. बनावटी बात।

कपोल-कल्पित (सं.) [वि.] 1. मनगढ़ंत; बनावटी 2. कल्पनाधारित।

कप्तान (इं.) [सं-पु.] 1. खिलाड़ी दल का नायक; नेता; अधिपति; (कैप्टिन) 2. सेनानायक 3. जहाज़ का प्रधान अधिकारी।

कफ़ (फ़ा.) [सं-पु.] 1. फेन; झाग 2. हथेली; तलवा; पंजा।

कफ1 (सं.) [सं-पु.] गाढ़ा और लसीला तरल पदार्थ जो खाँसने पर मुँह से बाहर निकलता है; बलगम।

कफ2 (इं.) [सं-पु.] कमीज़ की आस्तीन का अगला भाग जिसमें बटन लगते हैं।

कफ़न (अ.) [सं-पु.] मृतक को लपेटने वाला सफ़ेद कपड़ा; शववस्त्र; शवाच्छादन; मृतचेल। [मु.] -फाड़कर बोल उठना : अचानक ज़ोर से चिल्लाने लगना। -को कौड़ी न होना : अत्यंत गरीब होना।

कफ़न-खसोट (अ.) [वि.] 1. शव के ऊपर डाला गया कपड़ा तक उतार लेने वाला 2. {ला-अ.} अत्यंत लोभी; दूसरे के माल पर जबरदस्ती अधिकार करने वाला।

कफ़नी (अ.) [सं-स्त्री.] 1. वह कपड़ा जो इस्लाम धर्म में मुर्दे के गले में डाला जाता है 2. बिना सिला कपड़ा जिसे साधुओं द्वारा पहना जाता है।

कफ़श (फ़ा) [सं-पु.] नालदार जूता।

कफ़स (अ.) [सं-पु.] 1. पिंजरा जिसमें पक्षी रखे जाते हैं; वितंस 2. कारागार; कैदख़ाना 3. तंग जगह 4. देह का पिंजर 5. {ला-अ.} देह; शरीर।

कफ़ालत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. किसी कार्य, विषय या बात का लिया जाने वाला भार; ज़िम्मेदारी 2. किसी व्यक्ति या कार्य की वह ज़िम्मेदारी जो ज़बानी, कुछ लिखकर अथवा कुछ रुपए जमा करके अपने ऊपर ली जाती है; ज़मानत।

कफ़ील (अ.) [सं-पु.] 1. ज़मानत करने वाला व्यक्ति; ज़ामिन 2. जिसपर कोई उत्तरदायित्व हो; ज़िम्मेदार।

कबंध (सं.) [सं-पु.] 1. बिना सिर का धड़; रुंड 2. (पुराण) राहु नामक ग्रह जिसका सिर कट चुका था 3. बादल; धूमकेतु 4. उदर; पेट 5. जल 6. पीपा; कंडाल 7. (पुराण) एक दानव जो देवी का पुत्र था और जिसका मुँह उसके पेट में था तथा जिसको राम ने दंडक वन में मारा था।

कब (सं.) [क्रि.वि.] 1. काल संबंधी प्रश्नवाची शब्द 2. किस समय; कदा।

कबड्डी [सं-स्त्री.] 1. एक प्रसिद्ध भारतीय खेल जिसमें दो दल होते हैं 2. शक्ति, साहस और फुर्ती से भरा एक खेल।

कबरिस्तान (फ़ा.) [सं-पु.] 1. वह स्थान जहाँ मृत शरीर अथवा शव गाड़े या दफ़नाए जाते हैं 2. जहाँ अनेक कब्रें हों।

कबरी (सं.) [सं-स्त्री.] दे. कवरी।

कबर्ड (इं.) [सं-पु.] 1. अलमारी 2. आधरण; फलक 3. धानी।

कबाड़ [सं-पु.] 1. व्यर्थ वस्तुओं का ढेर 2. रद्दी चीज़ें 3. अंगड़-खंगड़ 4. तुच्छ वस्तुएँ।

कबाड़ख़ाना (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. कबाड़ रखने का स्थान 2. वह स्थान जहाँ अनेक प्रकार की बहुत-सी व्यर्थ वस्तुएँ रखी हों 3. ऐसा स्थान जहाँ तमाम वस्तुएँ बिखरी पड़ी हों 4. कबाड़घर।

कबाड़घर [सं-पु.] 1. वह घर जहाँ बेकार की वस्तुएँ रखी जाती हों 2. रद्दी चीज़ों के रखने का स्थान 3. कबाड़ख़ाना।

कबाड़ा [सं-पु.] 1. कूड़ा-करकट 2. बखेड़ा; झंझट 3. व्यर्थ का काम।

कबाड़ी [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जिसका व्यवसाय कबाड़ बेचने और ख़रीदने का हो 2. पुरानी, रद्दी या टूटी-फूटी वस्तुएँ ख़रीदने तथा बेचने वाला आदमी।

कबाब (अ.) [सं-पु.] 1. सीकों पर भूनकर पकाया हुआ मांस 2. मांस की तली हुई टिकिया। [मु.] -होना : क्रोध से जल-भुन जाना।

कबाबी (अ.) [वि.] 1. कबाब बनाने तथा बेचने वाला 2. कबाब खाने वाला; मांसाहारी।

कबायली (अ.) [सं-पु.] 1. कबीलों या फिरकों में रहने वाले लोग 2. किसी कबीले का सदस्य 3. पश्चिमी पाकिस्तान में कुछ फिरकों या समुदाय के लोग। [वि.] कबीले में रहने वाले।

कबाला (अ.) [सं-पु.] 1. वह दस्तावेज़ जिसके द्वारा किसी की ज़ायदाद पर दूसरे को अधिकार मिलता हो 2. बैनामा 3. विक्रय-पत्र 4. अधिकार-पत्र।

कबाहत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. बुराई; ख़राबी 2. अनिष्ट 3 आपत्ति 4. कठिनता; दिक्कत; मुश्किल; झंझट 5. बाधा; ख़लल।

कबीर (अ.) [सं-पुं.] 1. एक प्रसिद्ध निर्गुण ज्ञानमार्गी संत 2. होली में गाया जाने वाला एक प्रकार का अश्लील गीत। [वि.] 1. श्रेष्ठ; उत्तम; महान; सम्मानित 2. बड़ा; बुज़ुर्ग।

कबीर-पंथ (अ.+सं.) [सं-पु.] कबीर द्वारा चलाया गया पंथ या संप्रदाय।

कबील (अ.) [सं-पु.] 1. मनुष्य 2. समुदाय; जाति; वर्ग; दल; गिरोह।

कबीला (अ.) [सं-पु.] 1. जनजातीय या आदिवासी लोगों का समूह या झुंड जिसका कोई सर्वसम्मत मुखिया होता है 2. किसी एक कुल के समस्त सदस्य 3. कुटुंब; परिवार 4. वंश; गोत्र; ख़ानदान।

कबुलवाना [क्रि-स.] 1. दबाव डालकर किसी से कोई बात कहलवाना 2. किसी को कोई बात स्वीकार करने या कबूलने में प्रवृत्त करना 3. किसी से कोई बात स्वीकार कराना।

कबूतर (फ़ा.) [सं-पु.] 1. झुंड में रहने वाला एक पक्षी 2. परेवा की एक जाति 3. कपोत 4. पारावत।

कबूतरख़ाना (फ़ा.) [सं-पु.] 1. कबूतर रखने या पालने का स्थान; कावुक 2. वह अड्डा जहाँ कबूतर पाले और उड़ाए जाते हैं 3. एक प्रकार की कई ख़ानों का दरबा जिसमें बहुत से कबूतर पाले या रखे जाते हैं।

कबूतरबाज़ी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कबूतर पालने, उड़ाने तथा लड़ाने का शौक; कपोत-क्रीड़ा 2. गैरकानूनी तरीके से व्यक्तियों को विदेश भेजने की क्रिया।

कबूतरी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. मादा कबूतर 2. कपोती 3. {ला-अ.} सुंदर स्त्री; नर्तकी 4. एक प्रकार की गाली।

कबूद (फ़ा.) [वि.] नीला; आसमानी। [सं-पु.] 1. नीला रंग 2. बंसलोचन का एक भेद; नीलकंठी।

कबूदी (फ़ा.) [वि.] नीले रंग का; आसमानी।

कबूल (अ.) [सं-पु.] 1. कबूलने की क्रिया या भाव; स्वीकार; स्वीकृत; मंजूर।

कबूलना (अ.) [क्रि-स.] स्वीकार करना; इकरार करना; मान लेना।

कबूलसूरत (अ.) [वि.] 1. सुमुख; सुंदर चेहरे-मोहरे वाला 2. लावण्यानन; प्रियदर्शन 3. निर्दोष रूप; मान्य रूप से सुंदर।

कबूलियत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. स्वीकृति; मंजूरी 2. वह दस्तावेज़ जो पट्टा लेने वाला पट्टा देने वाले को उसकी शर्तों की स्वीकृति के रूप में देता है।

कबूली (अ.) [सं-स्त्री.] 1. चने की दाल और चावल से बनी हुई खिचड़ी 2. काजू, किशमिश और हरी सब्ज़ियाँ डालकर बनाया गया पुलाव।

कब्ज़ (अ.) [सं-पु.] 1. अधिकार 2. अवरोध 3. पकड़ 4. मल का आँतों में रुकना; पेट साफ़ न होना; कोष्ठबद्धता 5. अजीर्ण; अनाह।

कब्ज़ा (अ.) [सं-पु.] 1. अधिकार; दख़ल 2. पकड़; काबू; वश 3. दस्ता; मूठ 4. बाज़ू 5. कुश्ती का एक पेंच 6. लोहे या पीतल का वह पुरज़ा जिससे किवाड़ चौखट या इसी तरह की दो चीज़ें आपस में जोड़ी जाती हैं, फिर भी जोड़ के बिंदु से इधर-उधर घूम सकती हैं।

कब्ज़ादारी (अ.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] कब्ज़े में होने की अवस्था।

कब्ज़ाना (अ.) [क्रि-स.] 1. किसी दूसरे की संपत्ति आदि पर अधिकार करना; इख़्तियार करना 2. किसी को अपने वश में करना; काबू में करना 3. किसी को पकड़ना; गिरफ़्तार करना।

कब्ज़ियत (अ.) [सं-स्त्री.] कब्ज़ होने की अवस्था; पेट साफ़ न होने की स्थिति; कोष्ठबद्धता।

कब्ज़ुलवसूल (अ.) [सं-पु.] वह कागज़ जिसपर वेतन पाने वाले की भरपाई लिखी हुई हो; प्राप्तिपत्र; रसीद।

कब्र (अ.) [सं-स्त्री.] 1. वह गड्ढा जो शव को गाड़ने के लिए खोदा जाता है 2. उक्त गड्ढे के ऊपर स्मृति स्वरूप बनाया गया चबूतरा 3. समाधि भवन। [मु.] -में पैर लटके होना : मृत्यु के समीप होना।

कब्रगाह (अ.) [सं-स्त्री.] 1. वह स्थान जहाँ शव गाड़े जाते हैं; कब्रिस्तान 2. समाधि स्थल।

कब्रघर (अ.+हिं.) [सं-पु.] 1. ऐसा घर जहाँ अनेक कब्रें हों 2. शवों को रखने का स्थान; कब्रगाह 3. कब्रिस्तान।

कब्रिस्तान (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. जहाँ बहुत से मुर्दे गड़े हों अथवा गाड़े जाते हों 2. समाधि स्थल अथवा क्षेत्र 3. श्मशान।

कभी-कभार [अव्य.] यदा-कदा; कभी-कभी; एकाध-बार।

कभी-कभी [अव्य.] रह-रह कर; किसी समय; किसी अवसर पर; कुछ समयांतराल पर।

कमंगर (फ़ा.) [सं-पु.] 1. कमान या धनुष बनाने वाला कारीगर; कमानसाज़ 2. खिसकी हुई हड्डियों को बैठाने वाला 3. चित्रकार; चितेरा; मुसौवर।

कमंगरी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कमान बनाने का पेशा या हुनर 2. खिसकी हुई हड्डियों को बैठाने का काम 3. चित्रकारी; मुसौवरी 4. कार्यकुशलता; कारीगरी।

कमंचा (फ़ा.) [सं-पु.] बढ़ई के कमान की तरह का एक टेढ़ा औज़ार जिसमें बँधी रस्सी को बरमे में लपेटकर घुमाया जाता है।

कमंडल (सं.) [सं-पु.] ताँबे, पीतल आदि का बना ऐसा लोटेनुमा पात्र जिसे साधु-संन्यासी जल भरने के लिए प्रयोग करते हैं।

कमंडली [वि.] कमंडल रखने वाला; साधु; वैरागी 2. पाखंडी; आडंबरी।

कमंद (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. फंदा; पाश 2. एक फंदेदार रस्सी जिसे फेंककर जंगली जानवर फँसाए जाते हैं 3. वह रस्सी जिसके सहारे चोर ऊँचे मकानों पर चढ़ते हैं।

कम (फ़ा.) [वि.] 1. अल्प; थोड़ा; जो अधिक न हो 2. न्यून; तनिक।

कमअक्ल (फ़ा.) [वि.] जो अक्ल से कमज़ोर हो; बुद्धिहीन; बेवकूफ़; नासमझ; अल्पबुद्धि; मूर्ख; निर्बुद्धि।

कमअसल (फ़ा.) [वि.] 1. कमीना; नीच 2. दोगला।

कमउम्र (फ़ा.) [वि.] अल्पवयस्क; कम उम्र का।

कमकर [सं-पु.] 1. एक जाति 2. वह जो दूसरों के लिए शारीरिक श्रम का कार्य करके अपना पेट पालता हो; श्रमिक 3. वह जो कोई विशेष कार्य करता है; कार्यकर्ता।

कमकस [वि.] 1. काम से जी चुराने वाला; काहिल; कामचोर 2. सुस्त।

कमकीमत (फ़ा.) [वि.] कम कीमत का; अल्पमूल्य; सस्ता।

कमख़ाब (फ़ा.) [सं-पु.] सिल्क या रेशम के कपड़े पर किया जाने वाला सोने-चाँदी के तारों या कलाबत्तू से बेलबूटाकारी का काम। इसे ज़री का काम भी कहते हैं।

कमची (तु.) [सं-स्त्री.] 1. बाँस आदि की पतली लचीली धज्जी या तीली जिससे टोकरी बनाई जाती है 2. पतली लचदार छड़ी; साँटी 3. लकड़ी आदि की पतली फट्टी 4. कच्चे लोहे या टीन आदि से निर्मित तलवार जो खेल-तमाशे में प्रयोग की जाती है 5. कोड़ा; चाबुक।

कमज़ात (फ़ा.) [सं-पु.] 1. नस्ली या वर्ण-व्यवस्था वाली हिकारत की दृष्टि से दी जाने वाली एक गाली; अपशब्द 2. नीच और कमीना व्यक्ति।

कमज़ोर (फ़ा.) [वि.] अशक्त; दुर्बल; बलहीन; शक्तिहीन; कम ताकत वाला।

कमज़ोरी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. शक्ति, बल और ज़ोर के कम हो जाने कि स्थिति या भाव 2. दुर्बलता; अशक्तता।

कमठ (सं.) [सं-पु.] 1. कछुआ 2. बाँस 3. साधुओं का तूँबा 4. कमंडल 5. सलई का पेड़ 6. चमड़े में मढ़ा हुआ पुराने प्रकार का एक वाद्य यंत्र।

कमठा (सं.) [सं-पु.] 1. कछुआ; कच्छप 2. बड़ी छड़ी या लाठी 3. बाँस का धनुष।

कमठी (सं.) [सं-स्त्री.] बाँस की पतली लचीली फट्टी जिससे टोकरी या पंखे आदि बनाए जाते हैं।

कमतर (फ़ा.) [वि.] 1. अपेक्षाकृत अधिक कम; अधिक छोटा; लघुतर 2. अल्पतर।

कमतरीन (फ़ा.) [वि.] 1. कम से कम; अल्पतम 2. छोटे से छोटा; लघुतम।

कमनसीब (फ़ा.+अ.) [वि.] नसीब का खोटा; अभागा; बदनसीब।

कमनीय (सं.) [वि.] 1. जिसकी कामना की जाए; काम्य 2. सुंदर; आकर्षक; मनोहर; चाहने योग्य 3. कामना योग्य।

कमफ़हम (फ़ा.+अ.) [वि.] कमअक्ल; नासमझ; मूर्ख; अल्पबुद्धि।

कमबख़्त (फ़ा.) [वि.] भाग्यहीन; अभागा; हतभाग्य; बदकिस्मत।

कमबख़्ती (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. बदकिस्मती; भाग्यहीनता 2. शामत 3. बदनसीबी।

कमर (फ़ा.) [सं-स्त्री.] पेट और पेड़ू के मध्य का भाग; कटि; लंक; मध्यदेश। [मु.] -कसना : तैयार होना; तैयारी करना। -टूटना : कुछ करने के योग्य न रहना।

क़मर (अ.) [सं-पु.] चाँद; चंद्रमा; चंद्र; शशि; राकेश।

कमरकस (फ़ा.) [सं-पु.] 1. करधनी 2. पेटी; कमरबंद 3. फेंटा 4. पलाश का गोंद; चुनिया गोंद।

कमरख (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का वृक्ष जिसमें पीले लंबोतरे खट्टे फल लगते हैं; कमरंग 2. उक्त वृक्ष में लगने वाले फल।

कमरतोड़ (फ़ा.+हिं.) [सं-पु.] 1. कुश्ती का एक दाँव या पेंच 2. एक प्रकार की औषधि। [वि.] 1. कमर तोड़ देने वाला 2. {ला-अ.} श्रमसाध्य; कष्टसाध्य।

कमरबंद (फ़ा.) [सं-पु.] 1. कमर पर बाँधने का कपड़ा; पटुका 2. पेटी 3. इज़ारबंद; नाड़ा।

कमरबल्ला (फ़ा.+हिं.) [सं-पु.] 1. खपरैल की छाजन के मध्यभाग में रहने वाली लकड़ी; कमरबडेरा; कमरबस्ता 2. किला आदि के ऊपर निर्मित वह छोटी दीवार जिसमें कँगूरे और झरोखे होते हैं 3. किसी बड़ी और ऊँची दीवार के सहारे के लिए उसके निचले भाग में सटाकर बनाई गई छोटी ढालू दीवार; पुश्ता।

कमरा [सं-पु.] चारों ओर से दीवारों से घिरी छायादार बड़ी कोठरी; कक्ष।

कमरी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. छोटा कंबल 2. साधु-फ़क़ीरों का ओढ़ने वाला लबादा 3. औरतों की कमर तक पहुँचने वाली ख़ास तरह की कुरती।

कमल (सं.) [सं-पु.] 1. जल में पाया जाने वाला एक पौधा और उसका फूल; पद्म 2. ब्रह्मा 3. सारस 4. औषधि।

कमलककड़ी (सं.) [सं-स्त्री.] कमल का डंठल जो तरकारी के रूप में खाया जाता है; भसींडा।

कमलनयन (सं.) [वि.] 1. जिसकी आँखें कमल की पंखुड़ी जैसी सुंदर हों; कमल की तरह आँखों वाला 2. {ला-अ.} जिसके नेत्र बहुत सुंदर हों।

कमलनयनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह स्त्री जिसकी आँखें कमल की पंखुड़ी जैसी सुंदर हों 2. सुंदर नेत्रों वाली स्त्री।

कमलनाभ (सं.) [सं-पु.] विष्णु।

कमलनाल (सं.) [सं-स्त्री.] कमल की नाल या डंडी जिसकी सब्ज़ी बनती है; भसींड; मृणाल।

कमला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. विष्णु की पत्नी; लक्ष्मी 2. उत्तम स्त्री 3. गंगा। [सं-पु.] 1. संतरा; नारंगी 2. एक प्रकार का रेंगने वाला रोएँदार कीड़ा जिसके काटने से खुजली होती है 3. अनाज या सड़े फल आदि में पड़ने वाला लंबा सफ़ेद रंग का कीड़ा; ढोला।

कमलाकर (सं.) [सं-पु.] 1. कमलों से भरा हुआ जलाशय 2. कमलों का समूह।

कमलाकांत (सं.) [सं-पु.] विष्णु; नारायण।

कमलाकार (सं.) [सं-पु.] छप्पय नामक छंद का एक भेद। [वि.] कमल के आकार का।

कमलाक्ष (सं.) [वि.] जिसकी आँखें कमल के समान हों; कमलनयन।

कमलानाथ (सं.) [सं-पु.] कमला अर्थात लक्ष्मी के पति; विष्णु।

कमलासन (सं.) [सं-पु.] 1. ब्रह्मा 2. एक योगासन; पद्मासन।

कमलिनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटा कमल 2. कमल का पौधा।

कमवाना [क्रि-स.] 1. किसी को कमाने में प्रवृत्त करना 2. कमाने का काम किसी दूसरे से कराना।

कमसिन (फ़ा.) [वि.] 1. अवयस्क; नाबालिग; सुकुमार 2. कम आयुवाला; अल्पवयस्क।

कमसुख़न (फ़ा.) [वि.] कम बोलने वाला; अल्पवादी; मितभाषी।

कमांड (इं.) [सं-पु.] 1. प्रभुत्व; वश; शक्ति; अधिकार 2. हुक्म; समादेश; आदेश; आज्ञा 3. सैन्य आदेश।

कमांडर (इं.) [सं-पु.] उच्च सैन्य अधिकारी; सेनानायक; प्रधान सेनापति।

कमांडेंट (इं.) [सं-पु.] 1. विशेष सैनिक दल का प्रमुख अधिकारी 2. सैन्य छावनी का सर्वोच्च अधिकारी।

कमाई [सं-स्त्री.] 1. कार्य के बदले प्राप्त होने वाला धन; पारिश्रमिक 2. श्रम-फल 3. उद्यम से अर्जित द्रव्य 4. करतूत 5. पैसा कमाने का धंधा।

कमाऊ [वि.] धनोपार्जन करने वाला; कमाने वाला; कमासुत।

कमाच [सं-पु.] एक प्रकार का रेशमी कपड़ा।

कमाची (तु.) [सं-स्त्री.] 1. झुकी हुई तीली 2. छोटी पतली छड़ी 3. सारंगी बजाने की कमानी।

कमान (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. धनुष 2. इंद्रधनुष 3. क्षितिज से किसी तारे की ऊँचाई नापने अथवा दो तारों के कोणांश नापने का यंत्र 4. मेहराब 5. मालखंभ की एक कसरत 6. तोप 7. बंदूक। [मु.] -चढ़ना : क्रोध में होना।

कमाना [क्रि-स.] 1. अर्जित करना; उपार्जित करना 2. कुछ उद्योग करके लाभ प्राप्त करना जिससे जीविका चले 3. पत्थर, चमड़े आदि को सुडौल बनाना 4. सेवा संबंधी छोटे कार्य करना।

कमानिया (फ़ा.+हिं.) [सं-पु.] कमान या धनुष चलाने वाला व्यक्ति; तीरंदाज़। [वि.] कमानीदार; कमानी से युक्त।

कमानी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. तार, लोहा, पत्थर आदि की कोई लचीली वस्तु जो दाब पड़ने पर दब जाए और दाब हटने पर ऊपर उठ जाए 2. वह वस्तु जिसका रूप कमान की तरह हो 3. झुकाई हुई लोहे की लचीली तीली 4. रोगी की कमर में बाँधने की एक पेटी; (स्प्रिंग)।

कमानीदार (फ़ा.) [वि.] 1. जिसमें कमानी लगी हो; कमानी वाला 2. कमानीयुक्त।

कमाल (अ.) [सं-पु.] 1. अनोखापन; अद्भुत; चमत्कारक कार्य 2. कौशल; निपुणता 3. समाप्ति; पूर्णता 4. पराकाष्ठा 5. गुण; जौहर 6. कबीर का बेटा। [वि] 1. अतिशय; अत्यधिक 2. सर्वोत्तम 3. पूर्ण।

कमालियत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. अनोखे काम या चमत्कार करने का भाव 2. दक्षता; पूर्णता।

कमिटमेंट (इं.) [सं-पु.] 1. वचन; वादा; प्रतिज्ञा 2. वचनबंधन; वचनबद्धता; प्रतिबद्धता 3. सुपुर्दगी 4. पाबंदी।

कमिया (फ़ा.+हिं.) [सं-पु.] मज़दूरी करने वाला व्यक्ति; मज़दूर; श्रमिक।

कमिशनर (इं.) [सं-पु.] 1. आयुक्त; मंडल का अधिकारी 2. वह अधिकारी जिसके अधिकार में कई जिले हों 3. वह अधिकारी जिसको कोई कार्य करने का अधिकार मिला हो।

कमिशनरी (इं.) [सं-स्त्री.] 1. मंडल 2. वह भूभाग जो किसी आयुक्त के अधीन हो 3. कमिशनर की कचहरी 4. कमिशनर का काम या पद; (डिवीज़न)।

कमी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कम होने की अवस्था, गुण या भाव 2. अभाव 3. त्रुटि 4. न्यूनता; अल्पता 5. हानि; घाटा; नुकसान 6. कोताही 7. कम किए जाने की क्रिया या भाव; ह्रास।

कमीज़ (अ.) [सं-स्त्री.] 1. आगे से खुला हुआ कुरते की तरह का कालरदार पहनावा 2. कफ़ और कालरदार कुरता 3. एक पहनावा जिसमें कुरते से भिन्न कॉलर और सामने पूरी लंबाई में बटन लगे होते हैं; (शर्ट)।

कमीन (अ.) [सं-पु.] घात, शिकार या वार के लिए ओट।

कमीनगाह (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] वह स्थान जिसकी ओट में खड़े होकर तीर या बंदूक चलाई जाती है; आड़; गुप्त स्थान।

कमीनगी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कमीना होने की अवस्था या भाव 2. नीचता; दुष्टता।

कमीना (फ़ा.) [वि.] 1. नीच; खोटा; क्षुद्र 2. तुच्छ या हीन विचारों वाला 3. दूसरों से अशिष्ट व्यवहार करने वाला।

कमीनापन (फ़ा.) [सं-पु.] नीचता; क्षुद्रता; ओछापन; घटियापन।

कमी-बेशी [सं-स्त्री.] 1. कमी और अधिकता 2. मात्रात्मक परिणाम जो घट या बढ़ सकता है।

कमीशन (इं.) [सं-पु.] 1. आयोग 2. दलाली; दस्तूरी; आढ़त 3. जनसमूह; दल 4. कार्यभार 5. शासन-पत्र; आदेश।

कमून (अ.) [सं-पु.] जीरा; जीरक; अजाजी।

कमेंट (इं.) [सं-पु.] 1. भाष्य; टीका; वृत्ति 2. उक्ति; टिप्पणी 3. आलोचना; समालोचना 4. समीक्षा; विवेचना।

कमेंटेटर (इं.) [सं-पु.] 1. भाष्यकार; टीकाकार; वृत्तिकार 2. व्याख्याकार; समालोचक 3. समीक्षक; कमेंट करने वाला व्यक्ति।

कमेटी (इं.) [सं-स्त्री.] 1. आयोग; समिति 2. सभा।

कमेला [सं-पु.] पशुओं के वध करने का स्थान; कसाईबाड़ा; बूचड़ख़ाना।

कमोड (इं.) [सं-पु.] मल-मूत्र त्याग का पात्र; शौचासन।

कमोडोर (इं.) [सं-पु.] नौसेना का एक उच्च अधिकारी।

कमोबेश (फ़ा.) [वि.] थोड़ा-बहुत; कम-अधिक।

कमोरा [सं-पु.] मिट्टी का बना वह बड़ा पात्र जिसमें दूध, दही, पानी या आवश्यकता पड़ने पर अनाज आदि रखा जाता है।

कम्युनिकेशन (इं.) [सं-पु.] 1. संप्रेषण; संचारण 2. संसर्ग; संगमन 3. पत्र; संदेश 4. संचार; संवहन 5. आवागमन; यातायात।

कम्युनिज़म (इं.) [सं-पु.] 1. साम्यवाद 2. सामाजिक समता का सिद्धांत या विचारधारा 3. मार्क्सवाद।

कम्युनिस्ट (इं.) [वि.] 1. साम्यवादी 2. साम्यवाद का समर्थक; साम्यवाद का अनुयायी 3. मार्क्सवादी।

कम्यून (इं.) [सं-पु.] 1. किसी संपत्ति में समान और संयुक्त अधिकार रखने वाले मनुष्यों का समुदाय 2. यूरोप के कुछ देशों में स्थानीय शासन के अंतर्गत सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई या क्षेत्र।

कम्यूनिकेशन गैप (इं.) [सं-पु.] संवादहीनता।

कम्यूनिटी मीडिया (इं.) [सं-स्त्री.] किसी ख़ास समुदाय द्वारा, किसी ख़ास समुदाय के दायरे में संचालित मीडिया।

कम्यूनिटी रेडियो (इं.) [सं-पु.] सामुदायिक रेडियो (किसी ख़ास समुदाय की ज़रूरतों के अनुसार, उस समुदाय के द्वारा संचालित रेडियो)।

कयाम (अ.) [सं-पु.] 1. किसी स्थान पर रुकने, ठहरने या विश्राम करने का भाव 2. ठहरना; ठहराव 3. ठिकाना; ठौर-ठिकाना 4. पड़ाव; डेरा; ठहरने की जगह 5. निश्चय; स्थिरता 6. खड़ा होना; उठना।

कयामत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों के विश्वास के मुताबिक सृष्टि का आखिरी दिन जब प्राणियों के कर्मों का लेखा-जोखा किया जाएगा 2. प्रलय 3. हलचल; हंगामा; खलबली 4. {ला-अ.} विपत्ति; आफ़त।

कयास (अ.) [सं-पु.] 1. अनुमान; अटकल 2. कल्पना 3. सोच-विचार; ध्यान।

कयासी (अ.) [वि.] 1. कयास के आधार पर निर्धारित किया हुआ; अनुमानित 2. काल्पनिक; कल्पित; माना हुआ 3. अटकलपच्चू।

कय्यूम (अ.) [वि.] 1. स्थायी; दृढ़ 2. पक्का; मज़बूत 3. ख़ुदा का एक विशेषण।

करंक (सं.) [सं-पु.] 1. सिर का ऊपरी और सामने वाला भाग; मस्तक 2. संन्यासियों का जलपात्र जो धातु, लकड़ी या दरियाई नारियल आदि का होता है 3. शरीर के अंदर हड्डियों का ढाँचा; अस्थि-पंजर।

करंज (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार की वनस्पति जिसका फल औषधि बनाने के काम आता है; कंजा 2. एक जंगली झाड़ी 3. मुरगा 4. आतिशबाज़ी।

करंजा [सं-पु.] 1. करंज की फली; सोमवल्क 2. एक रंग; करंजोई 3. एक कँटीली झाड़ी जिसकी फलियाँ औषधि के काम आती हैं; करंजास। [वि.] भूरे या सामान्य से हलके रंग की आँखोंवाला।

करंजुआ (सं.) [सं-पु.] खाकी रंग; करंज जैसा रंग। [वि.] 1. करंज के रंग का 2. खाकी रंगवाला।

करंट (इं.) [सं-पु.] 1. विद्युत प्रवाह; विद्युत धारा 2. बहाव; धारा; प्रवाह 3. वेग; गति; रुख। [वि.] वर्तमान; प्रचलित; विद्यमान; आधुनिक।

करंड (सं.) [सं-पु.] 1. मधुमक्खी का छत्ता 2. तलवार 3. कारंडव नामक हंस 4. बाँस की बनी हुई टोकरी या पिटारी 5. यकृत 6. एक तरह की चमेली 7. कुरुल पत्थर जिसपर रगड़कर हथियार आदि की धार को तेज़ किया जाता है।

करंडक (सं.) [सं-पु.] बाँस की पट्टियों का बना टोकरा जिसमें साँप रखे जाते हैं।

करंब (सं.) [सं-पु.] मिश्रण; मिलावट।

करंबित (सं.) [वि.] 1. मिश्रित; मिला हुआ 2. बना हुआ; गढ़ा हुआ 3. सजा कर पिरोया या बाँधा हुआ।

करंसी (इं.) [सं-स्त्री.] 1. मुद्रा 2. प्रत्येक देश में व्यापक रूप से प्रचलित मुद्रा।

कर (सं.) [सं-पु.] 1. हाथ 2. सूर्य, चंद्रमा आदि की किरण 3. हाथी की सूँड़ 4. राज्य द्वारा उगाहा गया धन; राजस्व; महसूल; मालगुजारी; (टैक्स) 5. हस्त नक्षत्र 6. ओला। [वि.] देने, करने या बनाने वाला। [क्रि.वि.] 1. करके 2. पूर्वकालिक क्रिया की पूर्णता का सूचक।

करई [सं-स्त्री.] 1. छोटा करवा 2. एक छोटी चिड़िया जो गेहूँ के पौधों को काट-काट कर गिराया करती है।

करकच [सं-पु.] समुद्री पानी से तैयार किया गया नमक।

करकट [सं-पु.] 1. कूड़ा; कचरा; घास-फूस 2. रद्दी और टूटी-फूटी चीज़ें।

करकरा (सं.) [सं-पु.] सारस की जाति की एक चिड़िया। [वि.] 1. जो छोटे-छोटे महीन कणों के रूप में हो 2. खुरदरा 3. करारा 4. कड़ा 5. दृढ़।

करकराना [क्रि-अ.] 1. 'करकर' ध्वनि उत्पन्न होना 2. पीड़ा होना; चुभना; कड़कना।

करकराहट [सं-स्त्री.] 1. करकरा या कड़क होने की अवस्था, गुण या भाव 2. आँख में किरकिरी पड़ने की-सी पीड़ा 3. कोई करारी चीज़ खाने से होने वाली 'करकर' की ध्वनि।

करका (सं.) [सं-पु.] ओला; पत्थर।

करख़्त (फ़ा.) [वि.] कठोर; कड़ा; सख़्त; कर्कश।

करगत (सं.) [वि.] हाथ में आया हुआ; हस्तगत।

करगता (सं.) [सं-स्त्री.] कमर में पहना जाने वाला एक आभूषण; करधनी।

करगी (सं.) [सं-पु.] चीनी के कारखाने में जमी हुई चीनी को खुरचने वाला एक उपकरण; खुरचनी।

करघा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. हाथ से कपड़ा बुनने का एक प्रसिद्ध यंत्र 2. खड्डी; (हैंडलूम)।

करचंग [सं-पु.] करताल की तरह का एक वाद्य यंत्र।

करछिया [सं-स्त्री.] पानी के किनारे रहने वाली एक सफ़ेद चिड़िया जिसकी चोंच और पैर काले होते हैं।

करछुल [सं-स्त्री.] 1. कलछुल 2. बड़ी कलछुल; दाल, सब्ज़ी आदि चलाने वाली चम्मच।

करछुली [सं-स्त्री.] लंबी डंडी वाला बड़े चम्मच के आकार का एक पात्र जिससे व्यंजन चलाए एवं निकाले जाते हैं।

करज (सं.) [सं-पु.] 1. नाखून 2. उँगली 3. करंज; कंजा 4. नख नामक सुगंधित द्रव्य। [वि.] कर से उत्पन्न होने वाला।

करट (सं.) [सं-पु.] 1. कौआ 2. हाथी की कनपटी 3. केसर का फूल 4. निम्न कोटि का व्यवसाय या धंधा करने वाला व्यक्ति 5. नास्तिक 6. मृत व्यक्ति के दसवें दिन किया जाने वाला श्राद्ध 7. एक वाद्य यंत्र।

करटक (सं.) [सं-पु.] 1. कौआ 2. कर्णीरथ, जिन्होंने चोरी की कला और उसके शास्त्र का प्रवर्तन किया।

करण (सं.) [सं-पु.] 1. कोई काम करने की क्रिया, आचरण या कुछ करना 2. काम को पूरा करना 3. कार्य; वह जो किया जाए 4. काम करने के साधन 5. व्याकरण का एक कारक, जिसमें 'से' परसर्ग जुड़ता है 6. विधिक क्षेत्र में वह लेख जो किसी कार्य, प्रक्रिया, संविदा आदि का सूचक हो; साधन-पत्र 7. गणित में वह संख्या जिसका पूरे अंकों में वर्गमूल न निकलता हो 8. देह 9. इंद्रिय 10. स्थान 11. हेतु।

करणाधिप (सं.) [सं-पु.] 1. इंद्रियों का स्वामी; आत्मा 2. कार्याधिकारी।

करणी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. करण नामक जाति की स्त्री 2. (गणित) वह संख्या जिसका पूरा-पूरा वर्गमूल न निकल सके।

करणीय (सं.) [वि.] 1. जो किए जाने योग्य हो 2. जो किया जाना हो 3. जो कर्तव्य स्वरूप हो।

करतब (सं.) [सं-पु.] 1. कार्य; कर्म; काम 2. कमाल; कौशल; करामात 3. कला; गुण; हुनर 4. {व्यं-अ.} दूषित कार्य; निंदनीय कार्य; करतूत।

करतबी [वि.] 1. अच्छा काम करने वाला; गुणी; निपुण 2. कठिन कार्य को संपादित करने वाला; पुरुषार्थी 3. भिन्न-भिन्न करतब दिखाने वाला।

करतल (सं.) [सं-पु.] 1. हाथ की हथेली 2. मात्रिक छंदों में चार मात्राओं के गण का एक रूप 3. छप्पय छंद का एक भेद।

करतलध्वनि (सं.) [सं-स्त्री.] ताली; थपोड़ी।

करतार (सं.) [सं-पु.] 1. इस संसार का सृजन करने वाला 2. सृष्टिकर्ता 3. ब्रह्मा; विधाता 4. रचयिता; कर्ता।

करतारी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हाथ से बजाई जाने वाली ताली; थपोड़ी 2. कर-ताल।

करताल (सं.) [सं-पु.] 1. दोनों हथेलियों के टकराने या आघात से उत्पन्न ध्वनि; ताली 2. लकड़ी, काँसे आदि का बना हुआ एक वाद्य; मजीरा; झींका; झाँझ।

करतूत [सं-स्त्री.] 1. कर्म; काम; करनी 2. {ला-अ.} निंदनीय काम 3. कला; गुण; हुनर।

करतूती [वि.] करतूत करने वाला।

करद (सं.) [सं-पु.] 1. अपने से बड़े राजा या राज्य को कर देने वाला राजा या राज्य; करदाता 2. कर या मालगुज़ारी अदा करने वाला किसान। [वि.] 1. कर अदा करने वाला 2. सहायता देने वाला।

करदा [सं-पु.] 1. बिक्री के अनाज आदि में मिला हुआ कूड़ा-करकट 2. कूड़ा-करकट के कारण उक्त प्रकार की वस्तुओं के मूल्य में होने वाली कमी; कटौती 3. वस्तु की वह मात्रा जो ग्राहक को तौल से कुछ अधिक दी जाती है 4. किसी वस्तु को कूटने या पीसने पर बचे हुए कुछ मोटे रवे 5. बट्टा।

करदाता (सं.) [सं-पु.] 1. राज्य या सरकार को कर देने वाला व्यक्ति; (टैक्स पेई) 2. मालगुज़ारी देने वाला किसान।

करधनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सोने-चाँदी आदि से निर्मित एक आभूषण जो कमर में पहना जाता है 2. सूत या रेशम से बनी मेखला।

करन (सं.) [सं-पु.] 1. करने की क्रिया या भाव 2. करने योग्य काम; कर्तव्य।

करनफूल (सं.) [सं-पु.] कान में पहनने का फूल जैसा एक आभूषण; कर्णफूल; लौंग; काँप; तरौना।

करना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी कार्य या क्रिया को आगे बढ़ाना; समाप्त करना 2. किसी कार्य में सक्रिय होना 3. भोजन पकाना 4. सजाना; सँवारना 5. पति या पत्नी के रूप में ग्रहण करना 6. भाड़े पर सवारी ठहराना 7. एक रूप से दूसरे रूप में लाना; बनाना।

करनाई (अ.) [सं-स्त्री.] फूँककर बजाया जाने वाला एक प्रकार का लंबा बाजा; तुरही।

करनाल [सं-पु.] 1. हाथ से चलाई जाने वाली तोप 2. भोंपा 3. बड़ा ढोल।

कर-निर्धारण (सं.) [सं-पु.] किसी संपत्ति के मूल्य या उससे होने वाली आय आदि के आधार पर निर्धारित किया जाने वाला कर।

करनी [सं-स्त्री.] 1. वह जो कुछ किया गया हो; कर्म; कार्य; करतब 2. कार्य करने की कला, विद्या या शक्ति 3. अंत्येष्टि क्रिया 4. {ला-अ.} अनुचित या हीन आचरण; करतूत 5. राजमिस्त्री का दीवार पर गारा लगाने का औज़ार; कन्नी।

करपल्लवी (सं.) [सं-स्त्री.] उँगलियों के संकेत से भाव प्रकट करने की कला या विद्या।

करप्ट (इं.) [वि.] भ्रष्ट; खोटा; आचारहीन।

करप्शन (इं.) [सं-पु.] भ्रष्टाचार; रिश्वतख़ोरी; व्यभिचार।

करफ़्यू (इं.) [सं-पु.] विशेष प्रकार की राजकीय निषेधाज्ञा जिसमें घर से बाहर निकलना या किसी विशेष मार्ग या स्थान पर जाना निषिद्ध होता है।

करबला (अ.) [सं-स्त्री.] 1. अरब का वह मैदान जहाँ इमाम हुसैन अपने साथियों सहित मारे और दफनाए गए थे 2. वह स्थान जहाँ मुहर्रम में ताजिए दफ़न किए जाते हैं 3. ऐसी उजाड़ जगह जहाँ पानी भी न मिले।

करबूस [सं-पु.] घोड़े की जीन में लगी हुई रस्सी या तसमा जिसमें हथियार लटकाए जाते हैं।

करभ (सं.) [सं-पु.] 1. हथेली का पिछला हिस्सा 2. हाथी का बच्चा 3. ऊँट का बच्चा 4. कमर 5. नख नामक सुगंधित द्रव्य।

करभीर (सं.) [सं-पु.] शेर; सिंह।

करभोरु (सं.) [सं-पु.] हाथी की सूँड़ जैसी सुडौल जाँघ। [वि.] जिसकी जाँघ हाथी की सूँड़ जैसी सुडौल एवं सुंदर हो; सुंदर जाँघोंवाली।

करम1 (सं.) [सं-पु.] 1. कर्म; काम 2. कर्मफल 3. भाग्य; किस्मत। [मु.] -फूटना : भाग्य का साथ न देना। -भोगना : अपने किए हुए कर्मों का फल पाना।

करम2 (अ.) [सं-पु.] 1. कृपा; अनुग्रह; दया; मेहरबानी 2. क्षमा 3. उदारता।

करमकल्ला (अ.+हिं.) [सं-पु.] एक प्रकार की गोभी जिसमें केवल कोमल पत्तों का बँधा हुआ संपुट होता है और जिसकी सब्ज़ी बनती है; बंदगोभी; पत्तागोभी; पातगोभी।

करमजला [वि.] अभागा; दुर्भाग्यशाली।

करमभोग (सं.) [सं-पु.] 1. किए हुए कर्मों का फल; कर्मफल 2. कर्मफल के रूप में मिलने वाला सुख-दुख; प्रारब्ध।

करमाला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह माला जिसे हाथ में लेकर जप किया जाता है 2. उँगलियों के पोर जिन पर उँगली रखकर जप की गिनती करते हैं।

करमाली (सं.) [सं-पु.] सूर्य।

करमुक्त (सं.) [वि.] कर से मुक्त; (टैक्स-फ़्री)।

करवंचन (सं.) [सं-पु.] शासन को उचित कर से वंचित करना; कर की चोरी; करापवंचन।

करवट (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हाथ या पार्श्व के बल सोने या लेटने की एक स्थिति 2. बाज़ू 3. पहलू। [सं-पु.] 1. लकड़ी चीरने का आरा 2. एक वृक्ष जिसका गोंद विषैला होता है; जसूँद। [मु.] -बदलना : बिस्तर पर बेचैन तड़पना; नींद न आना। -लेना : किसी चीज़ का एक तरफ़ झुकना या लुढ़कना।

करवा (सं.) [सं-पु.] 1. धातु या मिट्टी का बना हुआ लोटे के आकार का एक पात्र; टोंटीदार लोटा 2. जहाज़ में लगाने की लोहे की कोनिया 3. एक प्रकार की मछली।

करवाचौथ (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कार्तिक कृष्ण चतुर्थी; करक चतुर्थी 2. उक्त तिथि को विवाहित स्त्रियाँ अपने सौभाग्य की वृद्धि हेतु व्रत रखती हैं 3. करवा चतुर्थी व्रत।

करवानक (सं.) [सं-पु.] गौरैया या चटक नामक पक्षी; चिड़ा।

करवाना [क्रि-स.] 1. किसी को किसी कार्य में प्रवृत्त करना 2. कोई कार्य किसी अन्य से कराना।

करवाल (सं.) [सं-पु.] नाखून; तलवार।

करवीर (सं.) [सं-पु.] 1. कनेर का पेड़ एवं उसका फूल 2. तलवार।

कर-व्यवस्था (सं.) [सं-स्त्री.] 1. राजस्व, कर या टैक्स की व्यवस्था 2. जनता से राजस्व के रूप में धन वसूलने की व्यवस्था।

करसंपुट (सं.) [सं-पु.] 1. हथेली की अंजुली 2. विनीत भाव से हाथ जोड़ने की मुद्रा।

करसपांडेंट (इं.) [सं-पु.] संवाददाता; समाचार दाता; विभिन्न क्षेत्रों और गतिविधियों की सूचनाएँ इकट्ठी कर समाचार भेजने वाला व्यक्ति।

करसर (इं.) [सं-पु.] कंप्यूटर, मोबाइल आदि की स्क्रीन पर दिखाई देनेवाला एक छोटा चिह्न जो यह दिखाता है कि प्रयोगकर्ता किस स्थान बिंदु पर है; प्रसंकेतक।

करसी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उपला; कंडा 2. सूखा गोबर 3. उपले की आग 4. उपले की राख।

करह (सं.) [सं-पु.] पुष्पकलिका; फूल की कली।

करहाट (सं.) [सं-पु.] 1. कमल की नाल; भसींड़ 2. कमल का छत्ता।

कराँकुल (सं.) [सं-पु.] जलाशयों के किनारे रहने वाला कूँज नामक पक्षी; क्रौंच पक्षी।

कराँत [सं-पु.] लकड़ी चीरने का आरा।

कराँती [सं-पु.] कराँत या आरा चलाने वाला व्यक्ति। [सं-स्त्री.] लकड़ी चीरने की छोटी आरी।

कराई [सं-स्त्री.] 1. काम करने या कराने की क्रिया या भाव 2. पारिश्रमिक 3. अरहर, उड़द आदि की भूसी।

कराघात (सं.) [सं-पु.] हाथ से किया हुआ आघात; हाथ का प्रहार; वार।

करात (इं.) [सं-पु.] चार ग्रेन की एक तौल जो सोना या जवाहरात आदि तौलने के काम आती है; (कैरेट)।

कराधिकारी (सं.) [सं-पु.] कर वसूलने वाला अधिकारी।

कराना [क्रि-स.] 1. किसी से कोई काम लेना 2. ऐसा उपाय करना जिससे कि कोई व्यक्ति कुछ काम करे 3. निपटाना; करवाना।

कराबत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. नज़दीकी; समीपता 2. नाता; रिश्ता; संबंध।

कराबा (अ.) [सं-पु.] 1. काँच का बना हुआ सुराही के आकार का पात्र जिसमें अर्क आदि तरल पदार्थ रखे जाते हैं 2. शराब की सुराही 3. बहुत बड़ी बोतल।

कराबीन (तु.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की छोटी बंदूक।

करामत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. बड़प्पन; बुज़ुर्गी; प्रतिष्ठा 2. महत्ता 3. अनुग्रह; कृपा; नवाज़िश 4. चमत्कार; सिद्धि।

करामात (अ.) [सं-स्त्री.] 1. कोई अद्भुत या अलौकिक कार्य; अचरज भरी बात; सिद्धि 2. चमत्कार।

करामाती (अ.) [सं-पु.] 1. जादूगर; ऐंद्रजालिक 2. सिद्ध पुरुष। [वि.] 1. करामात संबंधी 2. करामात दिखलाने वाला; चमत्कार करने वाला 3. जिसमें करामात हो।

करायल (सं.) [सं-पु.] तेल मिली हुई राल। [सं-स्त्री.] कलौंजी; किरायता; मँगरैला। [वि.] जिसका रंग थोड़ा काला हो।

करार (अ.) [सं-पु.] 1. ठहराव; स्थिरता 2. प्रतिज्ञा; वायदा; इकरार 3. धीरज; तसल्ली; संतोष 4. चैन; आराम।

क़रार (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. करार)।

करारा [वि.] 1. तेज़; तीक्ष्ण 2. कड़ा; कठोर, जैसे- करारा जवाब 3. तीखा 4. दृढ़ 5. अधिक सिका हुआ; कुरकुरा।

करारी (अ.) [वि.] जिसके संबंध में करार हुआ हो, जैसे- मकान ख़रीदने या बेचने की करारी।

करारोप (सं.) [सं-पु.] कर या टैक्स लगाना।

कराल (सं.) [सं-पु.] 1. राल मिला हुआ तेल 2. दाँतों का एक रोग। [वि.] 1. बड़े-बड़े दाँतों वाला 2. भीषण और डरावनी आकृति वाला 3. बहुत ऊँचा।

कराला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (पुराण) दुर्गा या चंडी का एक नाम 2. अनंत मूल; सारिवा।

करालिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कराला 2. चंडी या दुर्गा।

कराली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. दुर्गा; चंडी 2. अग्नि की एक जिह्वा।

कराव [सं-पु.] विधवा स्त्री से किया जाने वाला विवाह; विधवा विवाह।

करावल (तु.) [सं-पु.] 1. घुड़सवार सैनिक 2. पहरेदार; संतरी 3. विपक्षी का भेद लाने वाला सैनिक या सैन्य दल।

करावा [सं-पु.] एक प्रकार का विवाह या सगाई; विधवा स्त्री से किया जाने वाला विवाह।

कराह [सं-स्त्री.] 1. कराहने की क्रिया या भाव 2. कराहने से उत्पन्न होने वाली ध्वनि 3. पीड़ा में निकलने वाली तीखी आह।

कराहत (अ.) [सं-स्त्री.] वीभत्स दृश्य या वस्तु को देखने के उपरांत होने वाली नफ़रत; घृणा।

कराहना [क्रि-अ.] 1. आंतरिक पीड़ा में मुँह से ध्वनि का निकलना 2. आह-आह करना।

करिका (सं.) [सं-स्त्री.] नाखून की खरोंच से शरीर में होने वाला घाव।

करिक्यलम (इं.) [सं-पु.] 1. किसी व्यक्ति की शैक्षिक योग्यता एवं कार्य अनुभव आदि का विवरण 2. महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में पढ़ाए जाने वाले विषयों की सूची 3. पाठ्यक्रम; पाठ्यचर्या; पाठ्यविषय।

करिणी (सं.) [सं-स्त्री.] मादा हाथी।

करियर (इं.) [सं-पु.] व्यक्ति की नौकरी या रोज़गार संबंधी स्थिति।

करिवदन (सं.) [सं-पु.] हाथी के समान जिसका मुख हो; गणेश; अष्टविनायक।

करिश्मा (फ़ा.) [सं-पु.] विलक्षण कार्य; अद्भुत कृत्य; चमत्कार; करामात।

करी1 [सं-पु.] हाथी। [सं-स्त्री.] चौपाई नामक छंद।

करी2 (सं.) [वि.] 1. करने वाली 2. प्राप्त करने वाली 3. उत्पन्न करने वाली।

करीन (अ.) [वि.] 1. पास का; निकट का; साथ बैठने वाला 2. संगत 3. मिला हुआ 4. समान; तुल्य।

करीना (अ.) [सं-पु.] 1. तरतीब; क्रम 2. ढंग; तर्ज़; तरीका; कायदा 3. सलीका; शऊर 4. मेल; समानता।

करीब (अ.) [क्रि.वि.] 1. निकट; पास; समीप; नज़दीक 2. लगभग; प्रायः।

करीब-करीब (अ.) [क्रि.वि.] लगभग; तकरीबन।

करीबी (अ.) [वि.] 1. नज़दीकी या निकट संबंधी 2. पास या निकट का।

करीम (अ.) [वि.] 1. कृपालु; दयालु 2. करम करने वाला 3. उदार; नेक; क्षमाशील।

करीर (सं.) [सं-पु.] 1. बाँस का नया कल्ला या अँखुआ 2. घड़ा।

करील (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार की काँटेदार झाड़ी।

करीश (सं.) [सं-पु.] बहुत बड़ा हाथी; गजराज; गजेंद्र।

करीष (सं.) [सं-पु.] बिना पाथा हुआ सूखा गोबर; कंडा; उपला।

करुण (सं.) [वि.] 1. करुणायुक्त 2. करुणा उत्पन्न करने वाला। [सं-पु.] (काव्यशास्त्र) काव्य के शृंगार, वीर, रौद्र आदि नौ रसों में एक जिसका स्थायी भाव शोक है।

करुणा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मन में उत्पन्न वह भाव जो दूसरों का कष्ट देखकर उसे दूर करने हेतु उत्पन्न होता है 2. दया; अनुकंपा; रहम।

करुणाकर (सं.) [वि.] 1. अति दयालु 2. करुणा से भरा हुआ।

करुणानिधि (सं.) [वि.] 1. करुणा या दया से परिपूर्ण 2. जिसका हृदय करुणा से भरा हो; दयालु।

करुणामय (सं.) [वि.] 1. जिसमें बहुत अधिक करुणा हो 2. दयावान 3. करुणा से भरा हुआ।

करुणार्द्र (सं.) [वि.] जिसका हृदय करुणा से आर्द्र या द्रवित हो जाता है।

करुवार [सं-पु.] नाव खेने का एक प्रकार का डाँड़; पतवार।

करेंट (इं.) [सं-पु.] 1. विद्युत धारा का वह प्रवाह जो किसी विद्युत संचालक से प्रवाहित होता है; विद्युत धारा प्रवाह 2. विद्युत की प्रवाहित धारा।

करेंट अफ़ेयर्स (इं.) [सं-पु.] समसामयिकी या ताज़ा घटनाचक्र।

करेंसी (इं.) [सं-पु.] 1. मुद्राचलन; प्रचलित मुद्रा; सिक्का 2. किसी देश विशेष में प्रचलित मुद्रा या धन व्यवस्था।

करेक्ट (इं) [वि.] 1. शुद्ध; विशुद्ध 2. ठीक; सटीक; सही; उचित 3. यथातथ्य; यथार्थ 4. संशोधित।

करेक्शन (इं) [सं-पु.] 1. शोधन; संशोधन 2. शुद्धि; संशुद्धि 3. पाठ-शोधन।

करेज (इं.) [सं-पु.] 1. साहस 2. निर्भयता 3. शौर्य 4. धैर्य।

करेणु (सं.) [सं-पु.] 1. हाथी 2. कर्णिकार का पेड़; कनेर।

करेणुका (सं.) [सं-स्त्री.] हथिनी; मादा हाथी।

करेब (इं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार का महीन झीना कपड़ा; चिकना और झीनी बुनावट का रेशमी कपड़ा; (क्रेप)।

करेल [सं-पु.] 1. एक प्रकार का बड़ा मुगदर जो दोनों हाथों से घुमाया जाता है 2. करेल घुमाने की कसरत।

करेला (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रसिद्ध लता जिसके फलों से सब्ज़ी बनाई जाती है 2. उक्त लता के लंबे आकार के फल।

करेवा [सं-पु.] कुछ जातियों में विधवा स्त्री को पत्नी के रूप में रखने की प्रथा; धरेवा; धरीचा।

करैत [सं-पु.] एक प्रकार का बहुत जहरीला काला साँप।

करैल1 [सं-स्त्री.] 1. काली मिट्टी जो गीली होने पर लसदार हो जाती है 2. काली मिट्टी की भूमि।

करैल2 (सं.) [सं-पु.] 1. बाँस का नरम कल्ला 2. डोम कौआ।

करोड़ (सं.) [सं-पु.] 1. सौ लाख की संख्या 2. उक्त संख्या का सूचक अंक (10000000)। [वि.] 1. जो गिनती में सौ लाख हो 2. {ला-अ.} असंख्य या अत्यधिक का आभास देने वाला।

करोड़पति [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जिसके पास कई करोड़ की संपत्ति हो 2. धनपति। [वि.] बहुत बड़ा धनी।

करोड़ी [सं-पु.] 1. करोड़पति 2. रोकड़िया 3. मध्य काल में लगान आदि एकत्र करने वाला अधिकारी।

करौंदा (सं.) [सं-पु.] 1. एक कँटीला पौधा जिसमें गोल आकार के छोटे और खट्टे फल लगते हैं 2. उक्त पौधे का फल।

करौत1 [सं-स्त्री.] ऐसे स्त्री-पुरुष जिन्होंने एक-दूसरे को बिना शादी किए अपने साथ रख लिया हो।

करौत2 (सं.) [सं-पु.] लकड़ी चीरने का आरा।

करौली (सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की सीधी मूठदार छुरी।

कर्क (सं.) [सं-पु.] 1. कर्कट; केकड़ा 2. (ज्योतिष) बारह राशियों में एक राशि; (कैंसर) 3. अग्नि; आग 4. घड़ा 5. दर्पण।

कर्कट (सं.) [सं-पु.] 1. आठ पैरों वाला एक जलीय जंतु; केकड़ा 2. कमल नाल; भसींड 3. सारस की एक प्रजाति; करकरा 4. किसी वृत्त की त्रिज्या 5. कर्क राशि 6. सँड़सी 7. तराज़ू की डंडी का कोई छोर 8. काँटा 9. एक रतिबंध 10. नृत्य में एक प्रकार का हस्तक।

कर्कटी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक बेल जिसमें लंबे फल लगते हैं; ककड़ी 2. मादा कछुआ 3. एक बेल जिसके लंबे फलों की सब्ज़ी बनाई जाती है; तुरई 4. सेमल का फल 5. काकड़ा सिंगी; एक फल या सब्ज़ी।

कर्कर (सं.) [सं-पु.] 1. कंकड़ 2. कुरंड पत्थर 3. एक प्रकार का नीलम 4. दर्पण; आईना 5. अस्थि 6. खोपड़ी का टुकड़ा 7. चमड़े की पट्टी 8. हथौड़ा।

कर्करेखा (सं.) [सं-स्त्री.] पृथ्वी पर उत्तरी अक्षांश की एक कल्पित रेखा।

कर्कश (सं.) [वि.] 1. कर्णकटु (ध्वनि) 2. कटु एवं अप्रिय बोलने वाला; झगड़ालू प्रवृत्ति का 3. खुरदरा; कठोर; तीव्र 4. निर्दय; दुराचारी 5. अचिंत्य।

कर्कशता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कर्कश होने की अवस्था, गुण या भाव 2. कड़ापन; खुरदरापन।

कर्कशा (सं.) [वि.] 1. झगड़ालू; झंझटी 2. कटुभाषिणी; झगड़ा करने वाली।

कर्केतन (सं.) [सं-पु.] एक मणि जो लाल, पीली, हरी, श्वेत या काले रंग की होती है; घृतमणि।

कर्ज़ (अ.) [सं-पु.] ऋण; उधार लिया हुआ धन; कर्ज़ा। [मु.] -पाटना/पाट देना : कर्ज़ चुकाना। -उतारना : ऋण चुकाना।

कर्ज़ख़्वाह (अ.) [वि.] कर्ज़ लेने वाला; ऋणेच्छुक।

कर्ज़दार (अ.+फ़ा.) [वि.] कर्ज़ लेने वाला; जिसपर कर्ज़ या ऋण हो; जो उधार लिए हुए हो; ऋणी।

कर्ज़दारी (अ.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] कर्ज़दार होने की अवस्था या भाव।

कर्टन (इं.) [सं-पु.] परदा; टाट; किसी वस्तु को दृष्टि से ओझल करने के लिए लगाया जाने वाला कपड़ा।

कर्ण (सं.) [सं-पु.] 1. सुनने की इंद्रिय; कान 2. नाव की पतवार 3. (पुराण) कुंती का बड़ा पुत्र जो सूर्य के अंश से उत्पन्न हुआ था 4. (ज्यामिती) एक रेखा जो चतुर्भुज के आमने-सामने के कोणों को मिलाती हो 5. (काव्यशास्त्र) छप्पय छंद का एक भेद।

कर्णकटु (सं.) [वि.] 1. जो कानों को अप्रिय या कटु प्रतीत हो 2. कानों में खटकने वाला।

कर्णकुहर (सं.) [सं-पु.] कान का छेद।

कर्णगुहा (सं.) [सं-स्त्री.] कान का आंतरिक छेद।

कर्णगूथ (सं.) [सं-पु.] कान का मैल या गंदगी; खूँट।

कर्णगोचर (सं.) [वि.] कान को सुनाई देने वाला।

कर्णधार (सं.) [सं-पु.] 1. सूत्रधार 2. पार लगाने वाला; पतवार पकड़ने वाला; माँझी; मल्लाह 3. सहायता करने वाला 4. सहारा 5. काम सँभालने वाला। [वि.] दुख, संकट आदि को दूर करने वाला।

कर्णनाद (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कान में सुनाई देने वाली नाँद या गूँज 2. आवाज़ जो कानों में गूँजे 3. कान का एक रोग।

कर्णपटल (सं.) [सं-पु.] 1. कान का परदा 2. कान की नली के अंत में स्थित एक चमकदार परदा।

कर्णपटह (सं.) [सं-पु.] कान का परदा; कर्णमृदंग।

कर्णपल्लव (सं.) [सं-पु.] कान का बाहरी भाग; बाह्यकर्ण।

कर्णपाली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कान का एक रोग; जंबुल; कर्णपाल 2. कान में पहनने का एक गहना; बाली 3. कान के नीचे का लटकता हुआ भाग; कर्णलता; कर्णलतिका।

कर्णपुटी (सं.) [सं-स्त्री.] कान का सुराख़; कर्ण कोष्ट।

कर्णप्रिय (सं.) [वि.] 1. जो कानों को प्रिय लगे 2. सुनने में प्रिय या अच्छा लगने वाला।

कर्णफूल (सं.) [सं-पु.] 1. कान का एक आभूषण 2. करनफूल।

कर्णभेदी (सं.) [वि.] कान को भेदने वाला।

कर्णमृदंग (सं.) [सं-पु.] कान के भीतर की चमड़े की वह झिल्ली जो मृदंग के चमड़े की तरह हड्डियों पर कसी रहती है; कान का परदा; कर्णपटह।

कर्णलता (सं.) [सं-स्त्री.] कान के नीचे का लटकता हुआ भाग; कर्णपाली; कर्णलतिका।

कर्णवेध (सं.) [सं-पु.] हिंदुओं में प्रचलित सोलह संस्कारों में से एक; कान में आभूषण पहनने तथा स्वास्थ्य रक्षा के लिए किया जाने वाला एक संस्कार जिसमें कान छेदा जाता है; कर्णछेदन।

कर्णहीन (सं.) [वि.] जो बिना कानों का हो; कर्णरहित। [सं-पु.] साँप।

कर्णातीत (सं.) [वि.] जिसे सुना न जा सके।

कर्णाभूषण (सं.) [सं-पु.] कान में पहना जाने वाला आभूषण; कुंडल।

कर्णावर्त (सं.) [सं-पु.] कान के अंदर का एक अंग जो सर्पाकार होता है।

कर्णिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कान में पहनने का एक आभूषण; कर्णफूल 2. हाथ के बीच की उँगली 3. कमल का छत्ता 4. लेखनी; कलम 5. अरनी का पेड़ 6. सफ़ेद गुलाब; सेवती 7. हाथी की सूँड़ की नोक 8. एक प्रकार का योनि रोग।

कर्णिकार (सं.) [सं-पु.] 1. कनकचंपा का पेड़ और फूल 2. एक तरह का अमलतास।

कर्णी (सं.) [सं-स्त्री.] फल वाला बाण या तीर। [वि.] 1. कान वाला 2. बड़े-बड़े कान वाला 3. जिसमें पतवार लगी हो।

कर्णेजप (सं.) [सं-पु.] 1. चुगली करने वाला व्यक्ति; चुगलख़ोर 2. भेद बताने वाला।

कर्तक (सं.) [सं-पु.] किसी चीज़ को काटने का उपकरण। [वि.] काटने या कतरने वाला।

कर्तन (सं.) [सं-पु.] 1. काटने या कतरने की क्रिया या भाव; काटना या कतरना 2. सूत कातना 3. किसी समाचार को आवश्यकतानुरूप काटना अथवा छोटा करना; (क्लिप)।

कर्तनी (सं.) [सं-स्त्री.] काटने या कतरने का उपकरण; कतरनी; कैंची।

कर्तरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कतरनी; कैंची 2. छुरी 3. कटार 4. नृत्य का एक प्रकार 5. ताल देने का एक प्रकार का पुराना वाद्य यंत्र 6. (ज्योतिष) एक प्रकार का योग 7. बाण का वह भाग जहाँ पंख लगाया जाता है।

कर्तव्य (सं.) [सं-पु.] 1. वह कार्य जो किया जाना चाहिए; करने योग्य कार्य 2. कार्य जो नैतिक और धार्मिक रूप से आवश्यक हो 3. कानून या विधि की दृष्टि से आवश्यक कार्य 4. उचित कर्म; फ़र्ज़।

कर्तव्यच्युत (सं.) [वि.] 1. कर्तव्य नहीं करने वाला 2. जो अपने कर्तव्य से हट चुका हो।

कर्तव्यनिष्ठ (सं.) [वि.] 1. कर्तव्य करने में निपुण 2. कर्तव्य निभाने की निष्ठावाला।

कर्तव्यपरायण (सं.) [वि.] कर्तव्य के प्रति आदर-भाव।

कर्तव्यपालन (सं.) [सं-पु.] 1. ज़िम्मेदारी का निर्वाह करना 2. कर्तव्य पूरा करना।

कर्तव्यविमूढ़ (सं.) [वि.] 1. जिसे अपने कर्तव्य का ज्ञान न हो 2. जो घबराहट या उलझन के कारण अपना कर्तव्य निश्चित न कर पा रहा हो।

कर्ता (सं.) [सं-पु.] 1. काम करने वाला 2. सब कुछ रचने वाला 3. ईश्वर; विधाता। [वि.] 1. करने या बनाने वाला 2. क्रिया करने वाला; जिससे क्रिया का संबंध हो।

कर्ताधर्ता (सं.) [सं-पु.] 1. सब कुछ करने-धरने वाला व्यक्ति 2. सब कुछ करने के लिए अधिकार प्राप्त व्यक्ति 3. किसी कार्य का पूर्ण ज़िम्मेदारी से संचालन करने वाला व्यक्ति।

कर्तार (सं.) [सं-पु.] 1. कर्ता 2. ईश्वर; विधाता 3. करतार।

कर्तित (सं.) [वि.] 1. कटा हुआ 2. विसंयुक्त; वियुत 3. वियोजित 4. संक्षिप्त।

कर्तृक (सं.) [सं-पु.] कर्मचारियों या कार्यकर्ताओं का समूह; (स्टाफ़)। [वि.] 1. निर्मित किया हुआ 2. पूर्ण या संपादित किया हुआ।

कर्तृत्व (सं.) [सं-पु.] 1. कर्ता होने की अवस्था, गुण, धर्म या भाव 2. कार्य 3. क्रिया।

कर्तृवाचक (सं.) [वि.] (व्याकरण) कर्ता का बोध कराने वाला (शब्द या पद)।

कर्तृवाच्य (सं.) [सं-पु.] व्याकरण में क्रिया के विचार से वाच्य के तीन रूपों में से एक जो इस बात का सूचक है कि जो कुछ कहा गया है, वह कर्ता की प्रधानता के विचार से है; (ऐक्टिव वॉयस), जैसे- राम पुस्तक पढ़ता है।

कर्दम (सं.) [सं-पु.] 1. कीच; कीचड़ 2. मैल; कूड़ा 3. {ला-अ.} पाप 4. छाया।

कर्दमित (सं.) [वि.] कीचड़युक्त; कीचड़ से लथपथ।

कर्नल (इं.) [सं-पु.] 1. सेना का एक बड़ा अफ़सर 2. सैनिक अधिकारी का एक पद।

कर्पट (सं.) [सं-पु.] 1. पुराना, चिथड़ा या फटा हुआ कपड़ा 2. कपड़े का टुकड़ा या पट्टी 3. मटीला या लाल रंग का परिधान 4. (पुराण) एक पर्वत।

कर्पटी (सं.) [सं-पु.] 1. जो फटे-चिथड़े कपड़े पहनता हो 2. भिखारी।

कर्पर (सं.) [सं-पु.] 1. खोपड़ी; कपाल 2. कछुए की खोपड़ी 3. खप्पर 4. गूलर 5. कड़ाह; कड़ाही 6. ठीकरा 7. प्राचीन कालीन एक हथियार।

कर्पूर (सं.) [सं-पु.] 1. कपूर; काफ़ूर 2. एक सुगंधित पदार्थ जो जलने के बाद वायु में विलीन हो जाता है।

कर्फर (सं.) [सं-पु.] दर्पण; आरसी; शीशा; आईना।

कर्फ़्यू (इं.) [सं-पु.] 1. ऐसा राजकीय आदेश, जिसके अंतर्गत जनता को घर से बाहर निकलने आदि की मनाही होती है; घरबंदी 2. निषेधाज्ञा 3. धार्मिक या सांप्रदायिक दंगों के समय शहर में पुलिस या प्रशासन के द्वारा लगाया जाने वाला प्रतिबंध जिसमें लोग घर के बाहर नहीं निकल सकते।

कर्बुर (सं.) [सं-पु.] 1. स्वर्ण; सोना 2. धतूरा 3. जल 4. पाप 5. राक्षस 6. कचूर। [वि.] जो कई रंग से रँगा हो; रंग-बिरंगा; चितकबरा।

कर्म (सं.) [सं-पु.] 1. कार्य; काम 2. आचरण 3. भाग्य 4. ऐसे धार्मिक कार्य जिन्हें करने का शास्त्रीय विधान हो 5. मृतात्मा की शांति हेतु किया गया कार्य। [मु.] -ठोंकना : भाग्य को कोसना। -फूटना : भाग्य का साथ न देना।

कर्मकांड (सं.) [सं-पु.] 1. शास्त्रविहित धार्मिक कर्म 2. वेद का वह भाग जिसमें नित्य-नैमित्तिक आदि कर्मों का विधान है 3. वह शास्त्र जिसमें यज्ञ, संस्कार आदि कर्मों का विधान हो 4. उक्त विधानों के अनुरूप होने वाला धार्मिक कृत्य।

कर्मकांडी (सं.) [सं-पु.] 1. कर्मकांड का विद्वान 2. यज्ञ, पूजा आदि धार्मिक कृत्य संपन्न करने वाला; पुरोहित 3. कर्मकांड के अनुसार पूजा आदि कराने वाला ब्राह्मण।

कर्मकार (सं.) [सं-पु.] 1. कारीगर 2. जिससे बलपूर्वक और बिना पारिश्रमिक दिए काम कराया जाए; बेगार 3. सेवक; नौकर 4. लुहार।

कर्मक्षेत्र (सं.) [सं-पु.] 1. कार्य करने का स्थान; कार्य-क्षेत्र 2. कर्मभूमि 3. ऐसा स्थान जहाँ कर्म किया जाए।

कर्मगुण (सं.) [सं-पु.] 1. कौटिल्य मत से काम की अच्छाई-बुराई 2. कार्यक्षमता।

कर्मचारी (सं.) [सं-पु.] 1. किसी काम के लिए नियमित वेतन या मज़दूरी पर नियुक्त व्यक्ति 2. कार्य संपादन के लिए नियुक्त व्यक्ति; कार्यकर्ता 3. काम करने वाला।

कर्मजन्य (सं.) [सं-पु.] कर्मफल; अच्छा या बुरा फल। [वि.] कर्म से उत्पन्न।

कर्मठ (सं.) [वि.] 1. कुशलतापूर्वक काम करने वाला; कर्मनिष्ठ 2. शास्त्रविहित कर्मों को ठीक प्रकार से करने वाला 3. जिसने कई प्रशंसनीय और स्तुत्य कार्य किए हों।

कर्मणि प्रयोग (सं.) [सं-पु.] (व्याकरण) वह अवस्था जिसमें किसी वाक्य में क्रियापद कर्म के लिंग-वचन के अनुसार निर्धारित होता है।

कर्मणि-वाच्य (सं.) [वि.] (व्याकरण) वह कार्य जो कर्म से संबंधित हो।

कर्मधारय (सं.) [सं-स्त्री.] (व्याकरण) समास का एक भेद जिसके दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध होता है।

कर्मनाशा (सं.) [सं-स्त्री.] उत्तर भारत की एक नदी का नाम।

कर्मनिष्ठ (सं.) [वि.] 1. कर्तव्यपालन में लगा रहने वाला; कर्तव्य का पालन करने वाला 2. कर्म में आस्था रखने वाला 3. सक्रिय; कर्मशील।

कर्मप्रधान (सं.) [वि.] 1. जिसमें कर्म की प्रधानता हो 2. भौतिक पदार्थों, उनके कार्यों तथा उनसे होने वाली अनुभूतियों से संबंध रखने वाला।

कर्मफल (सं.) [सं-पु.] 1. किए हुए कर्मों का फल 2. पूर्वजन्म में किए हुए कर्मों का फल; दुख-सुख आदि।

कर्मबंध (सं.) [सं-पु.] अच्छे बुरे कर्मों के अनुसार जन्म और मृत्यु का बंधन या चक्र।

कर्मभूमि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कर्म करने का स्थान; कर्म-क्षेत्र 2. कर्मों या कृत्यों के लिए उपयुक्त भूमि।

कर्मभोग (सं.) [सं-पु.] किए हुए कर्मों का फल; कर्मफल; प्रारब्ध।

कर्ममार्ग (सं.) [सं-पु.] विहित कर्मों द्वारा मोक्षप्राप्ति का मार्ग।

कर्ममास (सं.) [सं-पु.] वर्षा ऋतु का श्रावण मास जो तीस दिनों का होता है; सावन मास।

कर्मयुग (सं.) [सं-पु.] चार युगों में से अंतिम और वर्तमान युग जिसमें पाप और अनीति की प्रधानता मानी जाती है; तिष्य; कलियुग।

कर्मयोग (सं.) [सं-पु.] 1. फलाफल का विचार किए बिना अपने कर्तव्य-पालन में सदैव लगे रहने का नियम अथवा व्रत 2. चित्त शुद्ध करने वाला शास्त्रविहित कर्म 3. कर्म-पथ की साधना।

कर्मयोगी (सं.) [सं-पु.] 1. कर्म मार्ग की साधना करने वाला व्यक्ति 2. निष्काम भाव से कर्म करने वाला व्यक्ति।

कर्मरेख (सं.) [सं-स्त्री.] कर्म या भाग्य की रेखा; कर्मलेख; तकदीर; किस्मत।

कर्मवाच्य (सं.) [सं-स्त्री.] (व्याकरण) क्रिया की दृष्टि से वाक्य का वह रूप जिसमें कर्म की प्रधानता हो।

कर्मवाद (सं.) [सं-पु.] (मीमांसा दर्शन) ऐसा सिद्धांत जिसमें कर्म ही प्रधान माना गया है।

कर्मवान (सं.) [वि.] 1. अच्छा या प्रशंसनीय कार्य करने वाला 2. शास्त्रविहित कर्मों में निष्ठा रखने वाला; संध्या, अग्निहोत्र आदि करने वाला; कर्मनिष्ठ।

कर्मवीर (सं.) [वि.] 1. कर्मशील; कर्मवान; मेहनती; परिश्रमी 2. लोकहित में कर्म करने में निपुण 3. विघ्न-बाधाओं को नष्ट करते हुए कर्तव्य-पालन करने वाला; कर्मठ; पुरुषार्थी 4. जिसने स्तुत्य कार्य किए हों 5. काम करने में बहादुर।

कर्मशाला (सं.) [सं-स्त्री.] वह स्थान जहाँ कारीगर या शिल्पी किसी वस्तु का निर्माण करते हैं; कारख़ाना; (वर्कशॉप)।

कर्मशील (सं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जो फल की अभिलाषा छोड़कर स्वाभाविक रूप से कार्य करे; कर्मवान 2. सदैव अच्छे कामों में लगा रहने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. परिश्रमी 2. उद्योगी।

कर्मशूर (सं.) [वि.] वह जो साहस और दृढ़ता के साथ कर्म करने में प्रवृत्त हो; उद्योगी; कर्मवीर।

कर्मसाक्षी (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) वे देवता जो प्राणियों के कर्मों को देखते रहते हैं और उनके साक्षी रहते हैं 2. चश्मदीद गवाह। [वि.] कर्मों को देखने वाला।

कर्महीन (सं.) [वि.] 1. जिससे कोई अच्छा कार्य न हो या न कर सकता हो 2. अभागा; हतभाग्य; भाग्यहीन।

कर्मांत (सं.) [सं-पु.] 1. कार्य का अंत; काम की समाप्ति 2. जोती हुई धरती 3. अन्न भंडार।

कर्मा (सं.) [वि.] यौगिक शब्दों के अंत में जुड़कर 'करने वाला' अर्थ देता है, जैसे- पुण्यकर्मा, विश्वकर्मा।

कर्मार (सं.) [सं-पु.] 1. कारीगर 2. कर्मकार; लुहार 3 कमरख 4. एक प्रकार का बाँस।

कर्मिष्ठ (सं.) [वि.] 1. कार्य करने में निपुण; कर्मकुशल 2. कर्मनिष्ठ।

कर्मी (सं.) [वि.] 1. कर्म करने वाला 2. क्रियाशील; सक्रिय 3. यज्ञादि कर्म करने वाला। [सं-पु.] 1. कारीगर 2. मज़दूर।

कर्मीर (सं.) [सं-पु.] 1. नारंगी रंग; किर्मीर 2. चितकबरा रंग।

कर्मेंद्रिय (सं.) [सं-स्त्री.] शरीर के वे अंग जिनसे कोई कार्य किया जाता है- हाथ, पैर, वाणी, गुदा और उपस्थ।

कर्वट (सं.) [सं-पु.] 1. बाज़ार; मंडी; पैठ 2. जिले का मुख्य स्थान 3. नगर; गाँव 4. पहाड़ की ढाल।

कर्ष (सं.) [सं-पु.] 1. खींचना 2. जोतना 3. लकीर खींचना 4. मनमुटाव 5. रोष; क्रोध 6. सोलह माशे की एक प्राचीन तौल 7. एक प्राचीन सिक्का।

कर्षक (सं.) [सं-पु.] किसान; खेतिहर। [वि.] 1. खींचने वाला 2. घसीटने वाला 3. हल जोतने वाला।

कर्षण (सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु को घसीटने, खींचने की क्रिया या भाव 2. खिंचाई 3. खरोंचकर लकीर बनाना 4. हल जोतना; जुताई 5. खेती-किसानी का काम; कृषि कर्म।

कर्षफल (सं.) [सं-पु.] 1. बहेड़ा; विभीतक 2. आँवला।

कर्षिणी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. खिरनी का पेड़; क्षीरिणी वृक्ष 2. घोड़े की लगाम।

कर्षित (सं.) [वि.] 1. खींचा हुआ; आकृष्ट किया हुआ 2. सताया हुआ; पीड़ित 3. क्षीण किया हुआ 4. जोता हुआ।

कर्षी (सं.) [सं-पु.] 1. किसान 2 हल चलाने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. खींचने वाला; कर्षक 2. खेत जोतने वाला।

कलंक (सं.) [सं-पु.] 1. लांछन; अपयश; बदनामी 2. धब्बा; दाग 3. त्रुटि; दोष 4. ऐसा कार्य जिससे मर्यादा, प्रतिष्ठा या ख्याति धूमिल हो। [मु.] -धोना/धो डालना : अपयश का कुप्रभाव दूर करना।

कलंकित (सं.) [वि.] 1. जिसपर कलंक लगा हो 2. अपयशी; कुख्यात 3. बदनाम 4. कलंकी।

कलंकुर (सं.) [सं-पु.] पानी का भँवर।

कलंदर (अ.) [सं-पु.] 1. मुसलमान साधुओं की एक जमात या उस जमात का कोई सदस्य 2. मस्त; फ़क्कड़; आज़ाद-तबियत व्यक्ति 3. रीछ, बंदर नचाने वाला मदारी।

कलंदरी (अ.) [वि.] कलंदर से संबंधित; कलंदर का।

कलंब (सं.) [सं-पु.] 1. कदंब का पेड़ 2. सरपत 3. साग का डंठल।

कल (सं.) [सं-पु.] 1. आने वाला दिन 2. बीता हुआ दिन 3. [पूर्वप्रत्य.] जब सामासिक शब्द के प्रत्यय के रूप में आता है, तो इसका अर्थ 'यंत्र', 'मशीन' आदि होता है, जैसे- कलपुरज़ा, कल-कारख़ाना।

कलई (अ.) [सं-स्त्री.] 1. राँगा 2. राँगे का वह लेप जो ताँबा-पीतल आदि से निर्मित वस्तुओं-बरतनों पर लगाया जाता है 3. मुलम्मा 4. लेप 5. छत, दीवार आदि पर होने वाली चूने की पुताई 6. {ला-अ.} वास्तविक तथ्य को छिपाने के लिए उस पर चढ़ाया हुआ आकर्षक मिथ्यावरण; दिखावटी आवरण। [मु.] -खुलना : भेद खुलना।

कलईगर (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. पीतल आदि की वस्तुओं पर कलई करने वाला कारीगर 2. जो राँगे का लेप या मुलम्मा चढ़ाता हो।

कलईदार (अ.+ फ़ा.) [वि.] जिसपर कलई की गई हो।

कलकंठ (सं.) [सं-पु.] 1. कोयल 2. कबूतर 3. हंस। [वि.] 1. जिसका गला सुंदर हो 2. जिसका स्वर मधुर हो।

कलक (अ.) [सं-पु.] 1. दुख; तकलीफ़ 2. अफ़सोस 3. घबराहट।

कल-कल (सं.) [सं-पु.] 1. नदी या झरने के प्रवाह की कोमल और मधुर ध्वनि 2. मृदुल और मिठासभरी ध्वनि या आवाज़।

कलकलाना [क्रि-अ.] 1. कलकल की आवाज़ होना 2. शरीर में गरमी की अनुभूति होना 3. कुलबुलाना (शरीर का)।

कलकांक (सं.) [सं-पु.] 1. जिस व्यक्ति के अंग में दाग लगा हो 2. चाँद में लगा धब्बा।

कलकूजक (सं.) [वि.] जो मीठा बोलता है; मधुरभाषी; मृदुभाषी।

कलगा (तु.) [सं-पु.] मरसे की तरह का एक पौधा; मुर्गकेश; जटाधारी।

कलगी (तु.) [सं-स्त्री.] 1. कुछ पक्षियों के सिर पर बने परों, बालों आदि का गुच्छा 2. टोपी, पगड़ी या ताज पर लगाए जाने वाले सुंदर एवं कोमल गुच्छे 3. मुरगे या मोर के सिर पर की चोटी 4. मोती और सोने से बना सिर पर का गहना 5. ऊँची इमारत का शिखर 6. (नृत्य) लावनी का एक प्रकार।

कलघोष (सं.) [सं-पु.] कोयल। [वि.] प्रिय तथा मधुर बोलने वाला।

कलछा (सं.) [सं-पु.] 1. बड़ी कलछी 2. लोहे आदि धातुओं का बना हुआ करछुल; बड़ी डाँडी या चम्मच।

कलछी [सं-स्त्री.] लंबी डंडी वाला बड़े चम्मच के आकार का एक पात्र जो भोजन चलाने एवं परोसने के काम आता है।

कलत्र (सं.) [सं-पु.] 1. पत्नी; भार्या 2. दुर्ग; किला।

कलदार (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] वह रुपया जो टकसाल की कल में बना हो; सरकारी रुपया। [वि.] जिसमें कल हो; पेंचदार।

कलधूत (सं.) [सं-पु.] एक सफ़ेद, चमकीली धातु जिसके सिक्के, गहने, बरतन आदि बनते हैं; चाँदी।

कलध्वनि (सं.) [सं-पु.] 1. कबूतर 2. मोर। [सं-स्त्री.] 1. मधुर और कोमल आवाज़ 2. सुरीली ध्वनि।

कलन (सं.) [सं-पु.] 1. गणना करना; हिसाब लगाना 2. ग्रहण करना 3. जानना; समझना 4. व्यवस्थित रूप से स्थापित करना 5. गर्भ में प्रथम बार शुक्रशोणित संयोग के ठीक बाद की अवस्था 6. संबंध 7. आचरण।

कलना (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ग्रहण करने या धारण करने की क्रिया या भाव 2. ज्ञान 3. सुंदर रचना।

कलनाद (सं.) [वि.] 1. मधुर स्वर वाला 2. मंद स्वर वाला। [सं-पु.] 1. मधुर ध्वनि; कोमल ध्वनि 2. हंस।

कलप (सं.) [सं-पु.] 1. कलफ़; माँड़ी 2. ख़िज़ाब 3. कल्प।

कलपना (सं.) [सं-स्त्री.] अत्यधिक दुख होने पर तड़पने या विकल होने की अवस्था या भाव। [क्रि-अ.] 1. किसी प्रिय के वियोग में विलाप करना 2. मनस्ताप या अंतर्वेदना को शब्दों में व्यक्त करते हुए रोना 3. दुखी होकर चुपचाप रोना; बिसूरना।

कलपाना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी के कलपने का कारण होना 2. किसी को कलपने में प्रवृत्त करना 3. किसी के साथ निर्दयतापूर्ण व्यवहार करना; सताना; रुलाना।

कल-पुरज़ा [सं-पु.] मशीन और उसके पुरज़े।

कलफ़ (अ.) [सं-पु.] धुले कपड़े में इस्त्री से पहले कड़ापन और चिकनाई लाने के लिए लगाई जाने वाली लेई या माँड़ी।

कलबूत (फ़ा.) [सं-पु.] 1. वह साँचा जिसपर चढ़ाकर जूता, टोपी या पगड़ी आदि तैयार किए जाते हैं।

कलभ (सं.) [सं-पु.] 1. हाथी का बच्चा 2. किसी पशु का बच्चा।

कलम (अ.) [सं-स्त्री.] 1. लेखनी 2. किलक; सरकंडे; नरसल आदि का टुकड़ा जो लिखने के काम आता है 3. चित्र बनाने या रंग भरने की कूँची 4. पेड़ की डालियाँ काट कर तैयार किए गए नए पौधे। [मु.] -चलाना : लिखना। -तोड़ना : रचना कौशल की पराकाष्ठा कर देना।

क़लम (अ.) [सं-स्त्री.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कलम)।

कलमकश (अ.+फ़ा.) [वि.] 1. लिखने वाला; कलम से काम करने वाला 2. लेखन से जीविकोपार्जन करने वाला 3. काट देने वाला; मिटा देने वाला 4. कलम के बूते जीने वाला; मसिजीवी।

कलमकार (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. लेखक 2. चित्रकार 3. नक्काशी करने वाला 4. चित्रों की रेखाओं में रंग भरने वाला 5. एक प्रकार का बुना या नक्काशी किया हुआ कपड़ा; बाफ़ता।

कलमकारी (अ.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कलम से नक्काशी करना; कलम की कारीगरी 2. बेल-बूटे बनाना 3. लेखन।

कलमज़द (अ.+फ़ा.) [वि.] 1. कलम से रद्द किया हुआ 2. काटा हुआ 3. निरस्त।

कलमतराश (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] कलम बनाने एवं तराशने का चाकू।

कलमदस्त (अ.+फ़ा.) [वि.] 1. कलम से काम करने वाला; लिखने वाला 2. चित्रकार।

कलमदान (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] कलम-दवात रखने के लिए लकड़ी; पीतल आदि की बनी छोटी संदूकची या खुला स्टैंड।

कलमबंद (अ.+फ़ा.) [वि.] 1. लिखित; लिपिबद्ध 2. दर्ज 3. पूरा; ठीक 4. चित्र की कूँची बनाने वाला।

कलमबंदी (अ.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. किसी पौधे में दूसरे पौधे की कलम लगाने का काम करना 2. कलम से लिखना; लेखबद्ध करना 3. एक प्रकार की हड़लात जिसमें कर्मचारी लिखने-पढ़ने का काम बंद कर देते हैं; (पेन-डाउन स्ट्राइक)।

कलमा (अ.) [सं-पु.] 1. सार्थक शब्द; वचन; बात 2. वाक्य; उक्ति 3. इस्लाम धर्म का मूल मंत्र।

कलमी (अ.) [वि.] 1. कलम से लिखा हुआ; लिखित; दर्ज 2. कलम काट कर लगाया गया (पौधा)।

कलमुँहा [वि.] 1. जिसे कलंक या लांछन लगा हो 2. अशुभ या अमांगलिक बातें कहने वाला 3. काले मुँह वाला।

कलयिता [सं-पु.] हिसाब लगाने वाला; गणना करने वाला; गणित संबंधी सवालों को हल करने वाला।

कलर (इं.) [सं-पु.] 1. वर्ण; रंग 2. ध्वजा; झंडा 3. बहाना; ढोंग; दिखावा।

कलरव (सं.) [सं-पु.] 1. मधुर शब्द; मधुर और मंद ध्वनि 2. चिड़ियों, पक्षियों के चहकने की आवाज़।

कलल (सं.) [सं-पु.] 1. रज और वीर्य के संयोग से गर्भाशय में बनने वाली पतली झिल्ली।

कलवरिया [सं-स्त्री.] कलवार की दुकान; वह स्थान जहाँ मदिरा की बिक्री होती है; मदिरालय।

कलवार (सं.) [सं-पु.] 1. एक जाति विशेष जिसका व्यवसाय शराब बनाना और बेचना है; कलाल 2. उक्त जाति का व्यक्ति।

कलश (सं.) [सं-पु.] 1. मिट्टी या किसी धातु का बना घड़ा; गगरा 2. मंदिर आदि का शिखर; कँगूरा 3. सर्वोच्च सिरा; चोटी 4. नृत्य की एक भंगिमा।

कलशी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटी कलसी; गगरी 2. छोटा कलश 3. एक पुराना बाजा।

कलसा (सं.) [सं-पु.] 1. पानी रखने का बड़ा घड़ा; जो मिट्टी या धातु का बना होता है 2. कँगूरा।

कलसी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटा घड़ा 2. कलश का छोटा रूप 3. वास्तुशिल्प आदि में छोटे-छोटे कँगूरों आदि की बनावट।

कलहंस (सं.) [सं-पु.] 1. हंस; राजहंस 2. परमात्मा; ईश्वर 3. एक समवर्णिक छंद 4. श्रेष्ठ राजा।

कलह (सं.) [सं-पु.] 1. विवाद; लड़ाई; झगड़ा 2. युद्ध 3. तलवार की म्यान।

कलहकारी (सं.) [वि.] 1. दूसरों से अनायास लड़ाई-झगड़ा करने वाला 2. झगड़ालू।

कलहांतरिता (सं.) [सं-स्त्री.] (काव्यशास्त्र) नायक या पति का अपमान करने के बाद पछताने वाली नायिका।

कलहार [वि.] झगड़ालू; लड़ाका; कलही; उपद्रवी।

कलहिनी (सं.) [सं-स्त्री.] शनि की पत्नी का नाम। [वि.] लड़ने वाली; झगड़ालू।

कलही (सं.) [वि.] कलह करने वाला; झगड़ा-झंझट करने वाला; झगड़ालू; लड़ाकू।

कलाँ (फ़ा.) [वि.] 1. आकार आदि में बड़ा; दीर्घाकार; वृहत 2. उम्र या वय में बड़ा।

कलांतर (सं.) [सं-पु.] 1. सूद; ब्याज 2. दूसरी या अन्य कला 3. लाभ।

कला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चित्रकारी; चित्रकला; (आर्ट) 2. किसी कार्य को अच्छी तरह से करने का कौशल; हुनर; निपुणता 3. अभिनय; लेखन; खेल; करतब 4. शिल्प; कलाकृति 5. खंड; अंश; घटक; भाग 6. चंद्रमंडल का सोलहवाँ भाग 7. संस्कृति; साहित्य; लीला 8. काल या समय का एक छोटा मान।

कलाई (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हथेली से कोहनी के बीच का वह भाग जिसमें घड़ी या चूड़ी आदि पहनी जाती है; पहुँचा; मणिबंध 2. सिले हुए कपड़े का वह भाग जो कलाई पर पड़ता है 3. सूत का लच्छा 4. घास आदि का पूला।

कलाकंद (फ़ा.) [सं-पु.] 1. खोए की बरफ़ी 2. एक प्रसिद्ध मिठाई।

कला-कर्म (सं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) आवरण, चित्रांकन, सज्जा और शीर्षकों की कलात्मक प्रस्तुति।

कलाकार (सं.) [सं-पु.] 1. किसी कला में निपुण व्यक्ति 2. कलाकर्मी; कलावंत; कला-मर्मज्ञ 3. किसी कला से अपनी जीविका चलाने वाला व्यक्ति 4. कला और संस्कृति के क्षेत्र से जुड़े लोग 5. कृति सृजन करने वाला लेखक; रचनाकार; चित्रकार 6. चालाक; चतुर; निपुण 7. अभिनेता; नट; (आर्टिस्ट)।

कलाकारिता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कलाकार का काम अथवा भाव; कलाकारी; कला; अभिनय।

कलाकृति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ऐसी रचना जो कलापूर्ण हो; कलामयी कृति 2. रचना; कला 3. सर्जना 4. वस्तु; चीज़ 5. सृष्टि।

कला-कौशल (सं.) [सं-पु.] 1. कला विशेष में निपुणता; दक्षता; कारीगरी 2. हुनर 3. शिल्प।

कलात्मक (सं.) [वि.] 1. कला से युक्त; कला संबंधी; कलापूर्ण 2. कलामय; अच्छा; अलंकारपूर्ण 3. उत्तम; उत्कृष्ट 4. कल्पनापूर्ण; अभिरूप 5. ललित; सरस 6. मनोरम; मनोहर; सुंदर 7. सौंदर्यात्मक; सुनिर्मित; सुगढ़।

कलात्मक लिपि (सं.) [सं-पु.] 1. अक्षरों को सुंदर लिखने की कला 2. प्राचीन काल में पत्थरों, धातुपत्रों, पांडुलिपियों आदि पर ऐसे ही कलात्मक ढंग से अक्षर लिखे या उत्कीर्ण किए जाते थे।

कलादक (सं.) [सं-पु.] सोने के आभूषण बनाने वाली एक जाति; सुनार; स्वर्णकार। [वि.] सोने के आभूषण बनाने वाला।

कलादर्श (सं.) [सं-पु.] कला का प्रारूप या नमूना।

कलाधर (सं.) [सं-पु.] 1. चंद्रमा 2. शिव 3. कलाओं का ज्ञाता; कलाविद।

कलानाथ (सं.) [सं-पु.] 1. कलाकार; कला का स्वामी 2. कला का ज्ञाता; कलाधर 3. चंद्रमा।

कलानिधि (सं.) [सं-पु.] 1. अनेक कलाओं का ज्ञाता या भंडार; कलाकार 2. चंद्रमा 3. गुणज्ञ।

कलाप (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार की वस्तुओं, बातों का समूह या समुदाय, जैसे- कार्यकलाप, केशकलाप 2. गट्ठा; गट्ठर 3. मोर की पूँछ 4. तरकश; तूणीर 5. बाण 6. चंद्रमा 7. कमरबंद; करधनी 8. कलावा 9. वेद की एक शाखा।

कलापक (सं.) [सं-पु.] 1. समूह 2. पूला; गट्ठा 3. हाथी के गले का रस्सा 4. चार श्लोकों का समूह जिनका अन्वय एक में होता है 5. वह ऋण जो मयूरों के नाचने पर अर्थात वर्षा ऋतु में चुकाया जाए 6. मोतियों की लड़ी 7. मेखला; करधनी।

कलापिनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. रात; रात्रि 2. नागरमोथा (एक जड़ी)।

कलापी (सं.) [सं-पु.] 1. मोर 2. कोयल 3. बरगद; वटवृक्ष 4. मोरों के नृत्य का समय। [वि.] 1. प्रायः समूह में रहने वाला 2. तरकशधारी।

कलाबत्तू (तु.) [सं-पु.] 1. रेशम के धागे पर चढ़ाया या लपेटा जाने वाला महीन सुनहला तार या ज़री 2. रेशम पर सुनहले तार लपेटकर बनाया हुआ फ़ीता या डोरा।

कलाबाज़ (हिं.+फ़ा.) [वि.] 1. कलाबाज़ी करने वाला 2. नट-क्रिया करने वाला; नट; करतब दिखाने वाला; बाज़ीगर 3. कलैया लगाने वाला।

कलाबाज़ी (हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. किसी कलाबाज़ की कोई क्रिया या खेल 2. सिर नीचे और पैर ऊपर करके उलट जाना; ढेकली; कलैया; लौटनियाँ 3. नट-विद्या; (स्टंट)।

कलाभिरुचि (सं.) [सं-स्त्री.] कला के प्रति मन की अभिरुचि; इच्छा।

कलाम (अ.) [सं-पु.] 1. वाणी; बोली; वाक्य; वचन 2. कथन 3. वार्तालाप; बातचीत; गुफ़्तगू 4. उज़्र; एतराज़; आपत्ति 5. वादा; प्रतिज्ञा 6. मीमांसा; इल्मेकलाम 7. रचना।

कलामुल्लाह (अ.) [सं-पु.] कुरान; ईश्वर की वाणी; ख़ुदा का कलाम; कुरानशरीफ़।

कलामे पाक (अ.) [सं-पु.] कुरान शरीफ़; कलामे मजीद।

कलार [सं-पु.] कलाल।

कलाल [सं-पु.] शराब बनाने और बेचने वाली एक प्रसिद्ध जाति; कलवार; मंडहारक; शौंडिक; आबकार। [वि.] जो मद्य बनाता और बेचता हो।

कलावंत (सं.) [सं-पु.] 1. किसी कला विशेष का विशेषज्ञ 2. कलापूर्ण ढंग से काम करने वाला व्यक्ति 3. विधिवत शिक्षा प्राप्त गायक; गवैया 4. गाने-बजाने का काम करने वाली एक प्राचीन जाति। [वि.] कला मर्मज्ञ; कलाविद; कलाकार।

कलावती (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कलाकार स्त्री 2. कलाओं की ज्ञाता; विदुषी 3. गंधर्व की वीणा का नाम 4. गंगा का एक नाम। [वि.] शोभावाली और छविवाली।

कलावा (सं.) [सं-पु.] 1. सूत का लच्छा 2. ऐसा सूत का लच्छा जो मांगलिक अवसरों पर कलाई पर बाँधा जाता है 3. हाथी के गले में पड़ी रस्सी जिससे महावत हाथी को काबू में करता है 4. हाथी की गरदन।

कलावान (सं.) [वि.] विविध कलाओं का ज्ञाता; कला-कुशल।

कलाविद (सं.) [सं-पु.] 1. कला का जानकार 2. एक अथवा एकाधिक कलाओं का मर्मज्ञ।

कलासी [सं-पु.] 1. दो तख़्तों के जोड़ की लकीर 2. जोड़-तोड़ बैठाने या करने की युक्ति।

कलिंग (सं.) [सं-पु.] 1. एक मटमैले रंग की चिड़िया; कुलंग 2. आधुनिक आंध्रप्रदेश का प्राचीन नाम जो समुद्र के किनारे कटक से चेन्नई तक फैला हुआ है 3. उक्त प्रदेश का निवासी 4. सिरिस और पीपल का पेड़ 5. कुटज; कुरैया 6. तरबूज़।

कलिंद (सं.) [सं-पु.] 1. यमुना नदी का उद्गम स्थल; यमुनोत्री 2. सूर्य 3. बहेड़ा 4. तरबूज़।

कलिंदजा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कलिंद पर्वत से निकली हुई; यमुना नदी 2. (पुराण) सूर्य की पुत्री।

कलिंदी (सं.) [सं-स्त्री.] कालिंदी; यमुना नदी; सूर्य पुत्री।

कलि (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) चार युगों में से अंतिम युग 2. (पुराण) क्रोध का पुत्र 3. (पुराण) गंधर्व जाति।

कलिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कली; कोंपल; मुकुल; (बड) 2. कला; अंश 3. एक छंद 4. वीणामूल।

कलिकाल (सं.) [सं-पु.] (पुराण) चार युगों में चौथा युग; कलियुग।

कलित (सं.) [वि.] 1. विदित; ख्यात; उक्त 2. प्राप्त; गृहीत 3. सजाया हुआ; सुसज्जित; शोभित; युक्त 4. सुंदर; मधुर।

कलिप्रिय (सं.) [सं-पु.] 1. नारद मुनि 2. बंदर 3. बहेड़े का पेड़। [वि.] झगड़ालू; दुष्ट।

कलिमल (सं.) [सं-पु.] पाप; कलुष।

कलिया (अ.) [सं-पु.] पकाया हुआ रसदार मांस; सालन।

कलियाना [क्रि-अ.] 1. पौधों में नई कली लगना; कलियों से युक्त होना 2. चिड़ियों के नए पंख निकलना।

कलियुग (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) भारतीय काल गणना में चार युगों (सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग) में चौथा युग 2. वर्तमान युग 2. यंत्रों का युग।

कलिल (सं.) [सं-पु.] समूह; ढेर; राशि। [वि.] 1. मिला-जुला; ओत-प्रोत; मिश्रित 2. गहन; घना 3. दुर्गम।

कलींदा (सं.) [सं-पु.] 1. तरबूज़ 2. कलिंद।

कली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. फूल का आरंभिक स्वरूप जिसमें पंखुड़ियाँ अभी पूरी तरह खिली न हों 2. बिना खिला फूल; कलिका; बोंड़ी 3. वैष्णवों का एक प्रकार का तिलक जो कली के आकार-प्रकार का होता है 4. चिड़ियों के नए निकले हुए छोटे पंख 5. वह तिकोना कटा हुआ कपड़ा जो कुरते, अँगरखे और पायजामे आदि में लगाया जाता है।

कलीग (इं.) [सं-पु.] सहयोगी; सहकर्मी।

कलीम (अ.) [सं-पु.] 1. बात करने वाला; वक्ता 2. घायल; जख़्मी 3. हज़रत मूसा की उपाधि।

कलीमुल्लाह (अ.) [सं-पु.] ख़ुदा से बातें करने वाला; हज़रत मूसा की उपाधि।

कलील (अ.) [सं-पु.] 1. थोड़ा; कम 2. छोटा।

कलीसा (ग्री.) [सं-पु.] ईसाइयों और यहूदियों का प्रार्थना मंदिर या उपासना-गृह; गिरजाघर।

कलीसिया (फ़ा) [सं-पु.] 1. ईसाई संप्रदाय या मत 2. मसीही लोगों का धार्मिक समुदाय।

कलुआ [वि.] 1. काले रंग का; काला 2. गंदा; मलिन 3. निंदित।

कलुष (सं.) [सं-पु.] 1. दूषित अथवा मलिन होने की अवस्था या भाव; मैल; मलिनता; गंदगी 2. पाप; पातक 3. गुस्सा; क्रोध 4. कलंक; अपयश; बदनामी 5. अपवित्रता 6. कालिमा 7. विकार। [वि.] 1. मैला; गंदा 2. पापी 3. निंदनीय; गर्हित; बुरा 4. क्रुद्ध।

कलुषित (सं.) [वि.] 1. कलुष से युक्त; गंदा; मैला 2. अपवित्र 3. निंदित; बुरा; ख़राब 4. दुखी 5. क्षुब्ध 6. काला।

कलुषी (सं.) [वि.] 1. पापी 2. दोषी 3. मलिन।

कलूटा [वि.] जिसका वर्ण काला हो; अत्यंत काले रंग का; अधिक काला।

कलेंडर (इं.) [सं-पु.] 1. तिथिपत्र; पंचांग 2. सत्र।

कलेक्ट (इं.) [सं-पु.] संगृहीत; संग्रह; एकत्र; जमा; वसूल; उगाही। -करना [क्रि-स] इकट्ठा करना।

कलेक्टर (इं.) [सं-पु.] 1. ज़िलाधीश 2. समाहर्ता 3. संग्राहक; संग्राही; अभिग्राहक; 4. संकलनकर्ता; संकलक।

कलेक्टरी (इं.+हिं.) [सं-स्त्री.] 1. ज़िले में माल के मुकदमों की कचहरी या न्यायालय 2. कलेक्टर का पद। [वि.] कलेक्टर से संबंध रखने वाला।

कलेक्ट्रेट (इं.) [सं-पु.] 1. कलेक्टर का कार्यालय; ज़िलाधिकारी का कार्यालय 2. ज़िले की कचहरी 3. कलेक्टरी।

कलेक्शन (इं.) [सं-पु.] 1. संग्रह; चयन; एकत्रित या इकट्ठा की हुई वस्तुएँ 2. कविताओं, कहानियों, लेखों आदि का संग्रह।

कलेजा [सं-पु.] 1. प्राणियों के शरीर का वह भीतरी अवयव जो छाती के अंदर बाईं ओर रहता है और जिसका काम शरीर में रक्त संचार करना है; जिगर; हृदय; दिल 2. छाती; वक्षस्थल; उर 3. {ला-अ.} हिम्मत; साहस; जीवट 4. अतिप्रिय व्यक्ति या वस्तु। [मु.] -फटना : अत्यंत कष्ट होना। -मुँह को आना : बहुत घबरा जाना। कलेजे पर साँप लोटना : बहुत ज़्यादा दुख अनुभव करना। -काँपना : बहुत डर लगना। -जलना : बहुत अधिक कष्ट होना। -जलाना : कष्ट पहुँचाना। -ठंडा होना : इच्छा पूर्ण होने पर तृप्त या संतुष्ट होना। -धड़कना : भय या शंका से साँस तेज़ होना। कलेजे से लगाना : गले लगाना। कलेजे का टुकड़ा होना : बहुत प्रिय होना।

कलेजी [सं-स्त्री.] 1. कलेजे का मांस 2. पशु-पक्षियों के कलेजे का मांस जो खाया जाता है 3. उक्त मांस का बना हुआ सालन।

कलेवर (सं.) [सं-पु.] 1. देह; शरीर; चोला 2. आकार; डील; ढाँचा।

कलेवा (सं.) [सं-पु.] 1. सुबह का जलपान; नाश्ता; उपाहार 2. यात्रा के दौरान खाने के लिए लिया गया खाद्य पदार्थ; पाथेय 3. विवाह की एक रस्म।

कलैया [सं-स्त्री.] 1. मणिबंध; कलाई 2. सिर नीचा करके उलट जाना; कलाबाज़ी 3. गुलाँटी।

कलोर (सं.) [सं-स्त्री.] जवान बछिया; (गाय) जो गाभिन न हुई हो।

कलोल (सं.) [सं-स्त्री.] 1. क्रीड़ा; केलि; आमोद-प्रमोद 2. लहर; तरंग।

कलौंछ [सं-स्त्री.] 1. कालिमा; कालापन 2. कलंक 3. धुएँ की कालिख 4. स्याही। [वि.] जो कालापन लिए हो।

कलौंजी [सं-स्त्री.] 1. करेला, बैगन, परवल आदि सब्ज़ी में मसाला भरकर तथा उसे तेल में तल कर निर्मित व्यंजन 2. मँगरैला नाम का मसाला जो अचार आदि में डाला जाता है; किरायता।

कलौंस [सं-स्त्री.] 1. हलकी कालिमा; हलका कालापन 2. स्याही 3. धुएँ की कालिख 4. कलंक। [वि.] जो कालापन लिए हो।

कल्क (सं.) [सं-पु.] 1. किसी चीज़ का महीन चूर्ण; बुकनी 2. तेल आदि के नीचे जमने वाला मैल; तलछट 3. अवलेह; चटनी 4. पीठी 5. गूदा।

कल्कि (सं.) [सं-पु.] (पुराण) विष्णु का दसवाँ अवतार जो कलियुग में होगा।

कल्चर (इं.) [सं-स्त्री.] 1. संस्कृति 2. कर्षण; जुताई; उपज; उत्पादन 3. संवर्धन 4. उत्कर्ष साधन 5. अनुशीलन।

कल्प (सं.) [सं-पु.] 1. मांगलिक और शुभ कर्मों का विधि-विधान 2. वेद के छह अंगों में से एक जिसमें यज्ञ, बलि आदि संस्कारों की विधियाँ बताई गई हैं 3. ब्रह्मा की काल संकल्पना का एक दिन जो चौदह मन्वंतरों वाला काल विशेष या चार अरब बत्तीस करोड़ मानव वर्ष का कहा गया है 4. ग्रंथ आदि का प्रकरण 5. (आयुर्वेद) ऐसी चिकित्सा जिसमें शरीर या उसके किसी अंग को पुनः नया व निरोग करने की युक्ति हो, जैसे- काया कल्प, केश कल्प।

कल्पक (सं.) [सं-पु.] 1. नाई; हज्जाम 2. कचूर 3. एक संस्कार। [वि.] 1. कल्पना संबंधी 2. कल्पना करने वाला 3. रचने वाला 4. काटने वाला।

कल्पतरु (सं.) [सं-पु.] 1. कल्पवृक्ष; कल्पद्रुम 2. पारिजात।

कल्पद्रुम (सं.) [सं-पु.] 1. कल्पवृक्ष 2. कल्पतरु।

कल्पना (सं.) [सं-स्त्री.] 1. रचनाशीलता की मानसिक शक्ति; कल्पित करने का भाव 2. मन की वह शक्ति जो अप्रत्यक्ष विषयों का रूप, चित्र उसके सामने ला देती है; उद्भावना 3. एक वस्तु में दूसरी का आरोप 4. सोचना 5. मान लेना।

कल्पनातीत (सं.) [वि.] 1. जिसकी कल्पना न की जा सके; कल्पना से परे 2. अगणनीय 3. आश्चर्यजनक; चमत्कारपूर्ण 4. वर्णनातीत।

कल्पनालोक (सं.) [सं-पु.] ख़याली दुनिया; कल्पना का संसार।

कल्पनाशील (सं.) [वि.] 1. नई-नई कल्पनाएँ करने वाला 2. भविष्यवादी 3. सृजनशील 4. भावुक।

कल्पनाश्रित (सं.) [वि.] 1. कल्पना पर निर्भर; कल्पना पर आधारित; मायावी 2. कल्पना पर आश्रित।

कल्पनीय (सं.) [वि.] जिसकी कल्पना की जा सके; कल्पना किए जाने योग्य; (इमेजिनेबल)।

कल्पलता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कल्पवृक्ष 2. कल्पवृक्ष की शाखा।

कल्पवास (सं.) [सं-पु.] पूरे माघ मास (महीने) भर गंगा के तट पर संयमपूर्वक निवास करना।

कल्पवृक्ष (सं.) [सं-पु.] 1. इच्छा पूरी करने वाला वृक्ष; काल्पनिक वृक्ष; कल्पतरु; कल्पद्रुम; पारिजात 2. एक वृक्ष जो ऊँचा, घेरदार और दीर्घजीवी होता है 3. {ला-अ.} उदार पुरुष; बहुत बड़ा दानी।

कल्पांत (सं.) [सं-पु.] कल्प का अंत जिसमें सृष्टि नष्ट हो जाती है; प्रलय।

कल्पित (सं.) [वि.] 1. जिसकी कल्पना की गई हो; जो वास्तविक न हो 2. अनुमानित; मन से गढ़ा हुआ; मनगढ़ंत; तथ्यहीन 3. असत्य; मिथकीय 4. बनावटी; नकली।

कल्पितार्थ (सं.) [सं-पु.] 1. परिकल्पना; (हाइपोथीसिस) 2. केवल तर्क के उद्देश्य से किसी बात को कुछ समय के लिए मानना।

कल्ब (अ.) [सं-पु.] 1. हृदय; दिल 2. मन 3. सेना का मध्य भाग 4. सत्रहवाँ नक्षत्र 5. खोटी चाँदी या सोना।

कल्बी (अ.) [वि.] 1. हृदय संबंधी 2. नकली; झूठा; खोटा।

कल्मष (सं.) [सं-पु.] 1. ऐसा कार्य जिससे किसी कार्य की महत्ता नष्ट हो; अघ; पाप 2. मैल; गंदगी 3. बुराई; दोष; पाप 4. मवाद; पीब 5. एक नरक। [वि.] 1. पापी 2. दुष्ट 3. गंदा।

कल्माष (सं.) [सं-पु.] 1. राक्षस 2. अग्नि का एक रूप 3. एक प्रकार का सुगंधित चावल। [वि.] 1. चितकबरा; चित्तवर्ण 2. काला रंग।

कल्य (सं.) [सं-पु.] 1. प्रातःकाल 2. आने वाला कल 3. बीता हुआ कल 4. शुभ समाचार; सुसंवाद 5. बधाई; शुभकामना 6. स्वास्थ्य 7. उपाय 8. प्रशंसा 9. मधु 10. शराब 11. क्षेपण। [वि.] 1. स्वस्थ; निरोग 2. तैयार; प्रस्तुत 3. चतुर 4. शुभ; मंगलकारक।

कल्यपाल (सं.) [सं-पु.] मदिरा बेचने वाला व्यक्ति; मद्यव्यवसायी; कलवार।

कल्यब्द (सं.) [सं-पु.] कलियुग।

कल्यवर्त (सं.) [सं-पु.] प्रातःकाल का लघु भोजन; जलपान; कलेवा।

कल्या (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह बछिया जो बरदाने (माँ बनने) के योग्य हो गई हो; कलोर 2. मदिरा; शराब 3. हरीतकी 4. बधाई; शुभकामना।

कल्याण (सं.) [सं-पु.] 1. भलाई; इष्ट; क्षेम; कुशलता 2. अभ्युदय 3. मंगल; लाभ 4. शुभ कर्म 5. अक्षति; सलामती; ख़ैर 6. सुख; श्रेय; 7. बेहतरी 8. एक राग।

कल्याणकारी (सं.) [वि.] शुभ या कल्याण करने वाला; कल्याणकारक; कल्याणकर।

कल्याणी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कामधेनु 2. गौ; गाय 3. एक देवी का नाम 4. जंगली उड़द। [वि.] 1. कल्याण या मंगल करने वाली 2. सुंदरी; रूपवती 3. भाग्यशालिनी।

कल्ला1 (सं.) [सं-पु.] 1. अंकुर; अँखुआ 2. नई टहनी 3. वह कुआँ जिसके पानी से पान का भीटा सींचा जाता है।

कल्ला2 (फ़ा.) [सं-पु.] 1. जबड़ा; गाल का भीतरी भाग 2. जबड़े से गले तक का भाग 3. दाढ़।

कल्लातोड़ (फ़ा.+हिं.) [वि.] 1. प्रबल रूप से प्रहार या आघात करने वाला 2. मुँहतोड़ जवाब देने वाला 3. पूरी तरह से दबा लेने वाला; प्रबल; विकट; ज़बरदस्त।

कल्लादराज़ (फ़ा.) [वि.] 1. बहुत बढ़-चढ़ कर बोलने वाला 2. जिसकी ज़बान तेज़ी से चले; मुँहज़ोर 3. लड़ाका 4. वाचाल।

कल्लू [वि.] 1. जिसका रंग काला हो 2. किसी साँवले व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाने वाला उपेक्षापूर्ण एवं व्यंग्यात्मक शब्द।

कल्लोल (सं.) [सं-पु.] 1. जल की ऊँची और आवाज़ करने वाली लहर; तरंग; हिलोर 2. मन की लहर; आमोद-प्रमोद; मौज़ 3. क्रीड़ा।

कल्लोलित (सं.) [वि.] लहराता हुआ; तरंगित।

कल्लोलिनी (सं.) [सं-स्त्री.] वह नदी जिसमें लहरें या तरंगें ख़ूब उठती हों।

कल्हण (सं.) [सं-पु.] 1. संस्कृत के प्रसिद्ध पंडित और इतिहासकार; कश्मीरी कवि 2. राजतरंगिणी के लेखक।

कल्हार (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का पौधा और उसके फूल 2. पीले रंग का कमल पुष्प।

कवक (सं.) [सं-पु.] 1. भोजन का कौर; ग्रास 2. कुकुरमुत्ता; छत्रक; फफूँद; (फंगस)।

कवच (सं.) [सं-पु.] 1. बाह्य आक्रमण से सुरक्षा हेतु बना पहनावा 2. युद्ध के दौरान सैनिकों द्वारा पहना जाने वाला लोहे आदि का बना आवरण 3. बख़्तर; बर्म 4. फल, वनस्पति आदि का छिलका 5. तांत्रिक साधना में आपत्तियों में स्वरक्षार्थ पढ़े जाने वाले मंत्र 6. उक्त मंत्र से बना ताबीज़; यंत्र।

कवचधारी (सं.) [वि.] 1. जिसने कवच धारण किया हो; कवच धारण करने वाला 2. कवची; बख़्तरबंद; बख़्तरपोश 3. कवचयुक्त।

कवचित (सं.) [वि.] जो कवच धारण करता हो या किया हो; कवचधारी।

कवची (सं.) [सं-पु.] 1. शिव 2. धृतराष्ट का एक पुत्र। [वि.] 1. कवच धारण करने वाला 2. कवचयुक्त।

कवयित्री (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह स्त्री जो कविताएँ रचती हो 2. स्त्री-कवि।

कवर1 (सं.) [सं-पु.] 1. केशपाश; बालों का गुच्छा 2. फूलों का गुच्छा। [वि.] 1. मिला हुआ; गुथा हुआ 2. चितकबरा; रंगबिरंगा।

कवर2 (इं.) [सं-पु.] 1. आवरण; मुखड़ा 2. क्षेत्र विशेष में फैलाव 3. आच्छादन; बेठन; परदा 4. पुस्तक का आवरण-पृष्ठ 5. लिफ़ाफ़ा 6. बचाव। -करना [क्रि-स.] ढकना; फैलाना; शामिल करना।

कवरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. बालों को गूँथकर बनाई हुई चोटी 2. वन तुलसी।

कवरेज़ (इं.) [सं-पु.] 1. किसी क्षेत्र के समाचारों का संग्रह कर बनाई गई रिपोर्ट 2. किसी पूरे क्षेत्र में समाचारपत्र की प्रतियाँ पहुँचाने की क्रिया 3. किसी बात या सूचना का विस्तार।

कवल (सं.) [सं-पु.] 1. कौर; निवाला; ग्रास 2. जल की उतनी मात्रा जितनी एक बार कुल्ला करने के लिए मुँह में ली जाती है 3. कौआ नामक मछली 4. कर्ष नामक एक प्राचीन तौल।

कवलन (सं.) [सं-पु.] 1. किसी चीज़ को खाने या चबाने की क्रिया; ग्रसन 2. निगलना।

कवलिका (सं.) [सं-स्त्री.] कपड़े या पत्ते की वह गद्दी जो घाव या फोड़े के ऊपर बाँधी जाती है।

कवलित (सं.) [वि.] 1. जिसे खाने, चबाने के लिए मुँह में रख लिया गया हो 2. जो खाया या निगला गया हो; भक्षित 3. गृहीत।

कवाट (सं.) [सं-पु.] 1. कपाट; दरवाज़े का पल्ला 2. दरवाज़ा।

कवाम (अ.) [सं-पु.] 1. पकाकर शहद की तरह गाढ़ा किया हुआ रस; किमाम 2. चाशनी; शीरा 3. सुरती का रस।

कवायद (अ.) [सं-पु.] 1. कार्यविधि; नियमावली; (कायदा का बहुवचन) 2. (किसी काम या बात के) विविध नियम या कायदे 3. व्याकरण 4. पुलिस अथवा सेना को कराया जाने वाला युद्ध-नियमों का अभ्यास; (ड्रिल)।

कवि (सं.) [सं-पु.] 1. कविता रचने वाला; काव्य-सर्जक; काव्यकार 2. ललित साहित्य का रचयिता 3. छंदकार; शायर 4. गीतकार।

कविकर्म (सं.) [सं-पु.] 1. काव्यरचना की क्रिया; काव्योद्भावन 2. कविता का सृजन।

कविका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. लगाम; नियंत्रण का साधन; अवरोध 2. केवड़ा 3. कवई मछली।

कविता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. भावपूर्ण रसात्मक तथा लयात्मक रचना; छंदबद्ध रसात्मक रचना 2. काव्य; शायरी; गीत।

कविताई (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कविता; काव्य 2. कविता की रचना।

कवित्त (सं.) [सं-पु.] 1. कविता; काव्य 2. इकतीस अक्षरों का एक वृत्त; घनाक्षरी छंद का एक नाम 3. {ला-अ.} कल्पना या अतिशयोक्तिपूर्ण कथन।

कवित्व (सं.) [सं-पु.] 1. काव्य रचना की क्रिया, गुण या शक्ति 2. काव्य का गुण या विशिष्ट रूप।

कविराज (सं.) [सं-पु.] 1. कवियों का राजा अर्थात श्रेष्ठ कवि 2. चारण या भाट 3. वैद्यों की एक उपाधि।

कवींद्र (सं.) [सं-पु.] कवियों का राजा अर्थात जो कवियों में श्रेष्ठ हो; कविश्रेष्ठ।

कवेला1 [सं-पु.] कौए का बच्चा।

कवेला2 (अ.) [सं-पु.] दिग्दर्शक यंत्र की वह कील जिसपर सुई रहती है।

कवोष्ण (सं.) [वि.] हलका गरम; गुनगुना; कुनकुना; कोसा।

कव्य (सं.) [सं-पु.] 1. (कर्मकांड) वह अन्न जो पितरों को दिया जाए 2. वह द्रव्य जिससे पिंडदान, पितृयज्ञ आदि किया जाए।

कव्वाल (अ.) [सं-पु.] कव्वाली गाने वाला।

कव्वाली (अ.) [सं-स्त्री.] 1. मज़ार आदि पर विशिष्ट शैली में गाए जाने वाले सूफ़ियाना गज़ल या गीत 2. इस धुन में गाई जाने वाली कोई अन्य गज़ल 3. संगीत में एक ताल।

कश1 (सं.) [सं-पु.] चाबुक; कशा।

कश2 (फ़ा.) [सं-पु.] 1. तंबाकू; सिगरेट आदि के धुएँ का घूँट; दम; फूँक; खींच 2. खींचने की क्रिया या भाव। [परप्रत्य.] 1. खींचने वाला, जैसे- दिलकश 2. सहन करने वाला, जैसे- सितमकश 3. करने वाला, जैसे- मेहनतकश।

कशमकश (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. खींचा-तानी; आपाधापी 2. धक्कमधक्का; भीड़-भाड़ 3. आंतरिक संघर्ष; असमंजस; दुविधा; सोच-विचार; पसोपेश 4. दौड़-धूप 5. वैमनस्य; कशीदगी 6. प्रतिस्पर्धा।

कशा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चाबुक; कोड़ा 2. रस्सी।

कशाघात (सं.) [सं-पु.] 1. कोड़े और चाबुक से किया जाने वाला आघात; चाबुक की मार। 2. {ला-अ.} ऐसी तीव्र प्रेरणा जो कोई काम करने को विवश कर दे।

कशिश (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. आकर्षण; खिंचाव 2 खींचने की शक्ति 3. प्रवृत्ति; झुकाव; मनोवृत्ति; रुझान।

कशीदगी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] मनमुटाव; तनाव; वैमनस्य; नाराज़गी।

कशीदा (फ़ा.) [सं-पु.] सुई-धागे से कपड़े पर की जाने वाली बारीक कढ़ाई; बेल-बूटे का काम; गुलकारी।

कशीदाकारी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] कपड़े पर कढ़ाई करना की क्रिया; सुई धागे से बेल-बूटे बनाना या काढ़ना।

कशेरु (सं.) [सं-पु.] 1. (शरीर रचना विज्ञान) रीढ़ की हड्डी 2. एक प्रकार की घास 3. जंबू-द्वीप के नौ खंडों में से एक।

कशेरुका (सं.) [सं-स्त्री.] (शरीर रचना विज्ञान) मेरुदंड की हड्डी की गुर्री; हड्डी का खंड या मनका (जो मनके लंबाई में एक के ऊपर एक जुड़कर रीढ़ की हड्डी की रचना करते हैं)।

कशेरुकी (सं.) [सं-पु.] ऐसे प्राणी जिनके शरीर में कई खंडों वाला मेरुदंड पाया जाता है; रीढ़ वाले जीव-जंतु।

कश्का (अ.) [सं-पु.] चंदन आदि से माथे पर बनाया जाने वाला तिलक; चित्रक।

कश्ती (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. नाव; नौका; डोंगी; तरणी 2. पान या मिठाई (बायन) बाँटने का छिछला पात्र जो लकड़ी या धातु का बना होता है।

कश्तीबान (फ़ा.) [सं-पु.] नाव चलाने वाला; नाविक; मल्लाह; कर्णधार।

कश्तीबानी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. नाव खेना; नाव चलाना 2. मल्लाही का पेशा।

कश्मल (सं.) [सं-पु.] 1. बेहोशी 2. मोह; आसक्ति 3. उत्साहहीनता 4. पाप। [वि.] गंदा; मलिन।

कश्मीर (सं.) [सं-पु.] भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक राज्य, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विश्वप्रसिद्ध है।

कश्मीरी (सं.) [सं-पु.] कश्मीर का निवासी। [सं-स्त्री.] कश्मीर की भाषा। [वि.] 1. कश्मीर संबंधी; कश्मीर का 2. कश्मीर में उत्पन्न।

कश्य (सं.) [सं-पु.] चाबुक मारने के योग्य; जहाँ चाबुक मारा जाए। [सं-स्त्री.] शराब; मदिरा।

कश्यप (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) एक प्रजापति का नाम 2. एक वैदिककालीन ऋषि का नाम 3. एक वंश; गोत्र; कुलनाम; सरनेम 4. कच्छप; कछुआ 5. सप्तर्षि मंडल के एक तारे का नाम।

कष (सं.) [सं-पु.] 1. परीक्षण के लिए कसने की क्रिया; परीक्षा 2. कसौटी 3. सान चढ़ाने का पत्थर; कुरुंड।

कषाय (सं.) [वि.] 1. कसैले स्वाद वाला; कसैला 2. गंधयुक्त 3. गंदा 4. गेरू के रंग वाला 5. मधुर स्वर वाला। [सं-पु.] 1. कसैला स्वाद 2. गेरुआ रंग 3. अंगराग; लेप 4. क्वाथ; काढ़ा 5. सोनापाढ़ा नामक वृक्ष 6. वे दुष्प्रवृत्तियाँ जो आत्मा को बंधन में डालती हैं- क्रोध, मान, माया और लोभ।

कषित (सं.) [वि.] 1. जिसे आघात लगा हो; जिसे कष्ट पहुँचा हो 2. कसौटी पर कसा हुआ; रगड़ा हुआ; क्षतिग्रस्त 3. खींचा हुआ।

कष्ट (सं.) [सं-पु.] 1. पीड़ा; तकलीफ़; वेदना 2. दुख; व्यथा; क्लेश 3. मन में होने वाला अप्रिय अनुभव 4. आपत्ति; मुसीबत।

कष्टकर (सं.) [वि.] 1. कष्ट देने वाला; तकलीफ़देह; पीड़ादायी; दुखदायी 2. जिसे करने में कष्ट हो।

कष्टकारक (सं.) [वि.] तकलीफ़ या कष्ट देने वाला; दुखदायी; कष्टकर; तकलीफ़देह।

कष्टसाध्य (सं.) [वि.] जिसे करना कठिन हो; मुश्किल से होने वाला; श्रमसाध्य।

कष्टार्तव (सं.) [सं-पु.] स्त्री को कष्ट से रजोधर्म (आर्तव) का होना।

कष्टार्थ (सं.) [सं-पु.] (साहित्य) उक्ति का वह दोष (काव्य-दोष) जिसके कारण शब्दों में स्थित अर्थ जल्दी प्रकट या स्पष्ट नहीं ही पाता; ऐसा अर्थ जिसे जानने या समझने में विशेष कष्ट या परिश्रम करना पड़ता है; क्लिष्टत्व दोष।

कस (सं.) [सं-पु.] 1. ज़ोर; बल 2. सार; तत्व 3. अर्क; आसव।

कसक (सं.) [सं-स्त्री.] 1. दुखद अनुभव के स्मरण से होने वाली पीड़ा; टीस 2. खटक 3. हलका मीठा दर्द 4. पुराना द्वेष; वैर।

कसकना [क्रि-अ.] 1. पीड़ा होना 2. टीसना; कसक होना; सालना।

कसकुट [सं-पु.] ताँबे और जस्ते के मिश्रण से बनी एक प्रसिद्ध धातु जिससे बरतन आदि बनाए जाते हैं; काँसा।

कसगर (फ़ा.) [सं-पु.] एक जाति जिसका पारंपरिक व्यवसाय मिट्टी के छोटे-छोटे बरतन बनाना है।

कसन [सं-स्त्री.] 1. कसने की क्रिया 2. कसने के उपरांत आया कसाव 3. कसने के लिए प्रयुक्त रस्सी 4. कसने का ढंग 5. घोड़े की जीन कसने का तस्मा।

कसना [क्रि-स.] 1. अधिक खींचकर बाँधना; मज़बूती से जकड़कर बाँधना 2. स्थिर करना 3. पेंच या पुरज़ों को दृढ़ करके बैठाना 4. पहनना; बाँधना 5. परखने के लिए सोना आदि धातुओं को कसौटी पर घिसना 6. किसी फल या सब्ज़ी आदि को कद्दूकस पर रगड़कर लच्छे बनाना 7. कटाक्ष करना; ताना देना। [क्रि-अ.] 1. तंग या चुस्त होना 2. बंधन, फंदे आदि का कड़ा होना 3. खिंचना 4. कसा या जकड़ा जाना।

कसनी [सं-स्त्री.] 1. कसने की क्रिया या भाव 2. जिससे कोई चीज़ कसी या बाँधी जाए; रस्सी 3. वह कपड़ा जिसमें कोई चीज़ बाँधी जाती है; बेठन 4. अँगिया; चोली 5. कसौटी 6. कसेरों की एक प्रकार की हथौड़ी।

कसब (अ.) [सं-पु.] 1. हुनर; कौशल 2. मेहनत; परिश्रम 3. पेशा; धंधा; व्यवसाय 4. कमाना; अर्जन 5. वेश्यावृत्ति।

कसबाती (अ.) [वि.] 1. कसबे का रहने वाला; नगरवासी; नागरिक 2. कसबे के रहन-सहन वाला।

कसबी (अ.) [सं-स्त्री.] देह-व्यापार से जीविका निर्वाह करने वाली स्त्री; वेश्या।

कसम (अ.) [सं-स्त्री.] 1. शपथ; सौगंध 2. शपथपूर्वक की गई प्रतिज्ञा।

कसमसाना (अ.) [क्रि-अ.] 1. बंधनमुक्त होने के लिए नाम-मात्र का हिलना-डुलना; कुलबुलाना 2. घबराना; बेचैन होना 3. किसी कार्य हेतु थोड़ी-सी चेष्टा करना; हिचकना; किसी कार्य के लिए थोड़ा उत्सुक या सक्रिय होना।

कसमसाहट [सं-स्त्री.] 1. कुलबुलाहट; जुंबिश 2. बेचैनी; व्याकुलता; घबराहट।

कसर (अ.) [सं-पु.] 1. त्रुटि; कमी; न्यूनता 2. किसी चीज़ या बात में होने वाला अभाव या कमी जिसकी पूर्ति आवश्यक हो 3. घाटा; टोटा 4. द्वेष; वैर 5. ऐब; दोष।

कसरत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. व्यायाम; वर्जिश 2. मेहनत; परिश्रम।

कसरती (अ.) [वि.] 1. व्यायाम या कसरत करने वाला 2. कसरत करने से पुष्ट; कसरत करके बनाया हुआ (बदन)।

कसरहट्टा [सं-पु.] कसेरों का बाज़ार जहाँ बरतन बनते और बिकते हैं।

कसहँड़ी [सं-पु.] काँसे का बना हुआ चौड़े मुँह का एक पात्र।

क़साई (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कसाई2)।

कसाई1 [सं-स्त्री.] 1. कसने की क्रिया या भाव 2. कसने की मज़दूरी।

कसाई2 (अ.) [सं-पु.] 1. बकरा, गाय, भैंस आदि जानवरों का वध करके मांस बेचने वाला व्यक्ति; बूचड़। [वि.] {ला-अ.} बेरहम; निर्दय; निष्ठुर।

कसाईख़ाना (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. वह स्थान जहाँ मांस विक्रय के उद्देश्य से पशुओं को मारा जाता है; कसाईघर; बूचड़ख़ाना।

कसाना [क्रि-अ.] 1. स्वाद कसैला होना 2. धातु का कसाव मिल जाने से स्वाद कसैला होना। [क्रि-स.] कसवाना (किसी से कुछ कसने का काम करवाना)।

कसाफ़त (अ.) [सं-स्त्री.] 1. मैलापन; गंदगी 2. गाढ़ापन 3. मोटाई; स्थूलता।

कसाबा (अ.) [सं-पु.] स्त्रियों का सिर पर बाँधने वाला रूमाल।

कसार (सं.) [सं-पु.] 1. घी में भुना हुआ चीनी मिश्रित आटा; पँजीरी; चूरन 2. घी में भुने हुए चावल के आटे में शक्कर एवं मेवा आदि मिलाकर तैयार किया हुआ लड्डू।

कसालत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. आलस्य; शैथिल्य 2. थकावट 3. काम करने में अनुत्साह; काहिली।

कसाला (सं.) [सं-पु.] 1. परिश्रम; मेहनत; कठिनाई 2. कष्ट; तकलीफ़ 3. वह खटाई जिसमें रखकर सुनार गहने साफ़ करते हैं।

कसाव [सं-पु.] 1. कसे जाने की क्रिया, भाव या स्थिति 2. तनाव; खिंचाव 3. कसैलापन।

कसावट [सं-स्त्री.] 1. कसने, कसाने या कसे हुए होने की अवस्था या भाव; तनाव; खिंचाव 2. अच्छी गठन और बनावट 3. शक्ति; कस-बल।

कसीदा (अ.) [सं-पु.] उर्दू या फ़ारसी की क्रमिक रूप से सत्रह चरणों वाली कविता या गज़ल जिसमें किसी की प्रशंसा, निंदा अथवा उपदेश का भाव हो। [वि.] 1. खिंचा हुआ; आकृष्ट 2. अप्रसन्न।

कसीदाख़्वाँ (अ.+फ़ा.) [वि.] 1. कसीदा पढ़ने वाला 2. भाट; बंदी 3. {ला-अ.} चापलूस; ख़ुशामदी।

कसीदागो (अ.+फ़ा.) [वि.] कसीदा लिखने वाला।

कसीर (अ.) [वि.] 1. मात्रा, संख्या आदि के विचार से बहुत अधिक 2. प्रचुर (मात्रा)।

कसीस (सं.) [सं-पु.] एक खनिज पदार्थ जो लोहे का विकारी रूप होता है; लोहे से उत्पन्न एक पदार्थ।

कसूर (अ.) [सं-पु.] 1. त्रुटि; भूल; गलती 2. दोष; अपराध।

क़सूर (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कसूर)।

कसूरवार (अ.+फ़ा.) [वि.] जिसने कसूर किया हो; अपराधी; दोषी।

कसेरा [सं-पु.] काँसे आदि के बरतन बनाने एवं बेचने का व्यवसाय करने वाला व्यक्ति।

कसेरू (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार की घास 2. एक प्रकार के मोथे की गाँठदार जड़ जो मीठी तथा स्वादिष्ट होने के कारण खाई जाती है 3. एक औषधीय वनस्पति।

कसैया [सं-पु.] 1. कसकर बाँधने वाला; जकड़ने वाला 2. कसौटी आदि पर कसने वाला; जाँच या कठिन परीक्षा करने वाला; परखने वाला।

कसैला (सं.) [वि.] 1. जिसका स्वाद आँवले और सुपारी जैसा हो 2. कषाय स्वादवाला 3. जो खाने में अच्छा न हो।

कसैलापन [सं-पु.] 1. कसैला अथवा कड़वा होने की अवस्था 2. {ला-अ.} किसी के व्यवहार या परस्पर संबंधों में आई कटुता।

कसैली [सं-स्त्री.] सुपारी; पुंगी फल।

कसोरा [सं-पु.] 1. काँसे का बना हुआ चौड़े मुँह का छिछला कटोरा या प्याला 2. पकाकर बनाया गया मिट्टी का कटोरी जैसा पात्र; मिट्टी का प्याला।

कसौटी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. काला पत्थर जिसपर सोने को रगड़कर जौहरी उसकी शुद्धता की परख करता है; निकष 2. {ला-अ.} किसी वस्तु को जाँचने-परखने का मानदंड।

कस्टडी (इं.) [सं-पु.] 1. हिरासत; कैद; गिरफ़्तारी 2. संरक्षण; परिरक्षा; निगरानी; पालन; रखवाली।

कस्टम (इं.) [सं-पु.] 1. प्रथा; रीति- रिवाज; दस्तूर; आचार; रूढ़ि; रूढ़ाचार 2. चुंगी; आयातकर; जकात; सीमाकर; सीमा शुल्क।

कस्टमर (इं.) [सं-पु.] ग्राहक; क्रेता; ख़रीददार; ख़रीदने वाला।

कस्टर्ड (इं.) [सं-पु.] मकई या गेहूँ के निशास्ते (स्टार्च) से बना रबड़ी जैसा एक व्यंजन जिसे फल, मेवे आदि मिलाकर तैयार किया जाता है।

कस्तूर (सं.) [सं-पु.] वह हिरण जिसकी नाभि में कस्तूरी होती है; कस्तूरी-मृग।

कस्तूरा (सं.) [सं-पु.] 1. कस्तूरी मृग 2. कबूतर से कुछ छोटा एक काला पक्षी जिसके सिर, कंधों और बाकी शरीर में भी कहीं-कहीं नीले रंग की चमक होती है 3. लोमड़ी जैसा एक पशु।

कस्तूरिया [सं-पु.] कस्तूरी मृग। [वि.] 1. कस्तूरी से युक्त 2. कस्तूरी के रंग का; मुश्की।

कस्तूरी (सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रसिद्ध सुगंधित पदार्थ जो हिरन की जाति के एक पशु की नाभि में पाया जाता है तथा औषधि बनाने में प्रयुक्त होता है।

कस्तूरी मृग (सं.) [सं-पु.] 1. मध्य एशिया में पाया जाने वाला एक प्रकार का बिना सींग वाला हिरन जिसकी नाभि में कस्तूरी पैदा होती है; (मस्क डीयर) 2. गंध मार्जार; मुश्क बिलाव।

कस्द (अ.) [सं-पु.] 1. इरादा; संकल्प; निश्चय 2. कामना; इच्छा; ख़्वाहिश।

कस्दन (अ.) [क्रि.वि.] इरादतन; जानबूझकर; सोच-समझकर; निश्चयपूर्वक।

कस्बा (अ.) [सं-पु.] 1. छोटा शहर या नगर 2. नगर से छोटी और गाँव से बड़ी बस्ती।

क़स्बा (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कस्बा)।

कस्साब (अ.) [सं-पु.] मांस-विक्रेता; कसाई; पशुवध करने वाला।

कहकशाँ (फ़ा.) [सं-स्त्री.] आकाश में दूरस्थ तारों का ऐसा समूह जो धुँधले बादल जैसा दिखाई देता है; आकाशगंगा; छायापथ; (मिल्की वे)।

कहकहा (अ.) [सं-पु.] अट्टहास; ठहाका; खिलखिलाकर हँसना; ज़ोर की हँसी।

कहगिल (फ़ा.) [सं-स्त्री.] दीवार में लगाने का मिट्टी का गारा जो मिट्टी में घास फूस सड़ाकर बनाया जाता है।

कहत (अ.) [सं-पु.] 1. अकाल; दुर्भिक्ष; सूखा 2. किसी चीज़ का बहुत अधिक अभाव; दुष्प्राप्यता; टोटा।

कहन [सं-स्त्री.] 1. कथन; उक्ति; वचन 2. कहनूत; कहावत 3. लोक प्रसिद्ध कोई पद्य या पद्य का चरण।

कहना [क्रि-स.] 1. संबोधित करना; बोलना 2. अपने भाव, विचार या उद्देश्य को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करना 3. सूचना या समाचार देना 4. बताना या बयान करना 5. आज्ञा देना 6. पुकारना 7. कविता रचना। [सं-पु.] 1. कथन; उक्ति; बात 2. आदेश; आज्ञा 3. प्रार्थना; अनुरोध।

कहर (अ.) [सं-पु.] 1. आफ़त; विपत्ति; आपत्ति; संकट 2. प्रकोप। [मु.] -ढाना : अत्याचार करना।

कहरवा [सं-पु.] आठ मात्राओं की एक ताल, जो तबला आदि वाद्यों पर बजाई जाती है।

कहलवाना [क्रि-स.] 1. किसी अन्य को कुछ कहने के लिए प्रेरित करना 2. संदेश भेजना 3. उच्चारण कराना।

कहलाना [क्रि-स.] 1. कहने का काम किसी दूसरे से कराना 2. किसी के द्वारा संदेश भेजना। [क्रि-अ.] किसी नाम से पुकारा जाना, जैसे- वे नेताजी कहलाते हैं।

कहवा (अ.) [सं-पु.] चाय की तरह का एक पेय पदार्थ; एक झाड़ी का बीज जिसके चूरे को चाय की तरह इस्तेमाल किया जाता है; कॉफ़ी।

कहवाघर (अ.+हिं.) [सं-पु.] वह स्थान जहाँ कहवा बिकता हो; कहवाख़ाना; (कॉफ़ी हाउस)।

कहवैया [वि.] जो किसी से कुछ कहे या सुनाए; कहने वाला; सुनाने वाला।

कहाँ [अव्य.] 1. स्थान विषयक प्रश्नवाचक अव्यय 2. अवधि, सीमा या स्थिति विषयक प्रश्नवाचक अव्यय 3. तिरस्कार, उपेक्षा आदि के प्रसंगों में किसी अज्ञात या अनिश्चित स्थान का वाचक अव्यय।

कहानी [सं-स्त्री.] 1. कथा; किस्सा; (स्टोरी) 2. कोई काल्पनिक (झूठी या मनगढ़ंत) बात 3. वृत्तांत 4. लिखित या मौखिक गद्य या गद्य-पद्य रूप में प्रस्तुत कोई वास्तविक या काल्पनिक घटना जिसका उद्देश्य पाठकों या श्रोताओं का मनोरंजन करना अथवा कोई शिक्षा देना या किसी वस्तु-स्थिति से परिचित कराना होता है।

कहानीकार [सं-पु.] किस्सागो; कथाकार; किस्साख़्वाँ। [वि.] कहानी कहने या लिखने वाला।

कहार [सं-पु.] परंपरा से पानी भरने तथा डोली या पालकी आदि ढोने वाली एक जाति।

कहारिन [सं-स्त्री.] कहार का स्त्रीवाची रूप; पानी भरने वाली स्त्री; कहारी; किसी समय महरी या घरेलू नौकरानी के लिए प्रयुक्त शब्द।

कहाल [सं-पु.] एक प्रकार का वाद्य यंत्र।

कहावत [सं-स्त्री.] 1. जन सामान्य में प्रचलित लोकोक्ति; मसल; कहनूत 2. कथन; उक्ति 3. संबंधियों को मृतक कर्म आदि की सूचना देने के लिए भेजा जाने वाला संदेशा अथवा पत्र।

कहासुनी [सं-स्त्री.] वाद-विवाद; उत्तर-प्रत्युत्तर; तकरार; कहा-कही; परस्पर अनुचित एवं अशिष्ट बातों का प्रयोग।

कहीं [अव्य.] 1. अनजान या अनिश्चित जगह 2. अन्यत्र; दूसरी जगह 3. नहीं; कदापि नहीं; कभी नहीं, जैसे- ऐसा भी कहीं होता है? 4. शायद; संभवतः।

काँइया [वि.] बहुत अधिक चालाक; धूर्त; शातिर; काइयाँ।

काँख (सं.) [सं-स्त्री.] धड़ और बाँह के बीच का गड्ढेनुमा स्थान; भुजामूल के नीचे का गड्ढा; कखरी; बगल।

काँखना [क्रि-अ.] 1. किसी कष्ट या आह के कारण गले से खाँसने जैसी कराहने की ध्वनि निकलना 2. भारी वस्तु उठाने पर या कुश्ती में गले से निकलने वाली ध्वनि 3. बहुत कठिन परिश्रम करने, ज़ोर लगाने या पीड़ा की स्थिति में कराहना।

काँखासोती [सं-स्त्री.] दुपट्टा लेने का एक तरीका जिसमें उसे बाएँ कंधे के ऊपर एवं दाहिनी बगल के नीचे से ले जाकर पुनः बाएँ कंधे पर डालते हैं।

काँगड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. भारत के हिमाचल प्रदेश प्रांत का एक जिला 2. उक्त क्षेत्र में में ज्वाला देवी का प्रसिद्ध मंदिर है 3. काँगड़ा अपनी चित्र शैली के लिए प्रसिद्ध है 4. मटमैले रंग का एक पक्षी जिसकी चोटी काले रंग की होती है।

काँगड़ी [सं-स्त्री.] एक प्रकार की कश्मीरी अँगीठी जिसे गले में लटकाया जाता है।

काँग्रेस (इं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी विषय पर विचार-विमर्श के लिए बुलाई गई बड़ी सभा जिसमें विभिन्न स्थानों के प्रतिनिधि सम्मिलित होते हैं; संगठन 2. भारत का एक राजनीतिक दल 3. संयुक्त राज्य अमेरिका की संसद।

काँच (सं.) [सं-पु.] 1. अकार्बनिक पदार्थों से बना हुआ वह पारदर्शक अथवा अपारदर्शक पदार्थ जिससे शीशी बोतल आदि बनती हैं; वे ठोस पदार्थ जो द्रव अवस्था से ठंडे होकर ठोस अवस्था में आने पर क्रिस्टलीय संरचना नहीं प्राप्त करते; एक प्रकार का मिश्र धातु; शीशा; (ग्लास) 2. आईना; दर्पण। [सं-स्त्री.] 1. धोती का वह छोर जिसे दोनों जाँघों के बीच में से निकालते हुए कमर में खोंसा जाता है; काछ; लाँग 2. गुदेंद्रिय का भीतरी भाग; गुदावर्त; गुदाचक्र 3. गुदा संबंधी एक रोग।

काँचू [वि.] 1. काँच जैसा भंगुर 2. काँच का रोगी 3. {ला-अ.} विकट स्थिति में काँच खोल देने वाला; डरपोक; कायर।

काँजी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पानी, गन्ने के रस या सिरके में राई, नमक, जीरा, मिरची आदि मिलाकर तैयार किया गया एक खट्टा एवं पाचक पेय पदार्थ 2. मठ्ठे या छाछ में राई, नमक आदि मिलाकर बनाया गया पेय पदार्थ।

काँजीहौद [सं-पु.] वह सरकारी बाड़ा जिसमें लावारिस पशु बंद किए जाते हैं; सरकारी मवेशीख़ाना।

काँटा (सं.) [सं-पु.] 1. वृक्ष की टहनियों, पत्तों आदि पर उगने वाली सुई जैसी पैनी नुकीली चीज़; नुकीला भाग या शूल; कंटक 2. लोहे की नोकदार कील 3. अँकुसों का गुच्छा जिससे कुएँ में गिरे हुए सामान, बालटी आदि को निकाला जाता है 4. मछली पकड़ने की कँटिया 5. मछली की पतली हड्डियाँ जो खाते समय गले में चुभती हैं 6. तराज़ू के डंडे के मध्य में लटकती हुई कील जैसी काँटी 7. सोना, चाँदी, हीरा जवाहरात आदि तौलने का छोटा तराज़ू 8. घड़ी की सुई 9. किसानों का एक पंजे के आकार का औज़ार जिससे वे घास-भूसा इधर-उधर करते हैं 10. उक्त प्रकार का धातु का बना चम्मच जिससे उठाकर खाना खाया जाता है 11. पेड़ से फल आदि तोड़ने की अँकुसी। [मु.] -निकालना : बाधा दूर करना। काँटे बोना : अड़चन डालना। काँटों में घसीटना : परेशानी में घसीटना।

काँटी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. शूल; छोटा काँटा 2. अँकुड़ी; छोटी कँटिया 3. साँप पकड़ने के लिए प्रयुक्त अँकुड़ी युक्त लकड़ी।

काँटेदार [वि.] जिसमें काँटे लगे हों; कंटकयुक्त।

काँठा (सं.) [सं-पु.] 1. गला 2. गले में पहना जाने वाला एक आभूषण; कंठा 3. नदी आदि का किनारा; तट 4. बगल; पार्श्व 5. जलाने की लकड़ी; ईंधन 6. तोते के गले की मंडलाकार रेखा।

काँड़ी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छाजन आदि में प्रयुक्त बाँस या बल्ली 2. अरहर की सूखी लकड़ी 3. हाथी के तलवे में होने वाला एक रोग 4. मछलियों का झुंड 5. जहाज़ों या नावों आदि के लंगर में लगने वाला लंबा डंडा 6. भारी वस्तुओं को ढकेलने में प्रयुक्त किया जाने वाला डंडा।

काँदला [वि.] मैला; गँदला; गंदा। [सं-पु.] कीचड़; मैल।

काँदू [सं-पु.] बनियों की एक उपजाति।

काँधना [क्रि-स.] 1. कंधे पर उठाना 2. ठानना; मचाना 3. सँभालना 4. {ला-अ.} अंगीकार करना; ग्रहण करना 5. {ला-अ.} सहन करना।

काँप (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कान का एक आभूषण; कर्णफूल 2. बाँस की लचीली तीली 3. सुअर का बाहर निकला हुआ दाँत; खाँग 4. हाथी का दाँत 5. कलई का चूना।

काँपना (सं.) [क्रि-अ.] 1. हिलना 2. शीत, ठंड आदि के कारण शरीर के अंगों का हिलना 3. भय या क्रोध आदि से थर्राना 4. बहुत भयभीत होना; डरना।

काँव-काँव [सं-पु.] 1. कौए के बोलने का शब्द 2. अप्रिय और कर्कश ध्वनि; काँय-काँय; व्यर्थ या बेकार की बातें 3. {ला-अ.} झगड़ा; विवाद। [मु.] -करना : शोर करना।

काँवर [सं-स्त्री.] बाँस का फट्टा जिसे कंधे पर रखकर तथा उसके दोनों सिरों पर बँधी पिटारियों में सामान रखकर ढोया जाता है; उक्त प्रकार के बाँस के फट्टे में बँधी छोटी पिटारियों में तीर्थयात्री गंगाजल आदि लेकर तीर्थ-यात्रा के लिए निकलते हैं; बहँगी।

काँवरिया [सं-पु.] 1. काँवर लेकर चलने वाला व्यक्ति 2. कामना पूर्ति के उद्देश्य से कंधे पर काँवर उठाकर तीर्थयात्रा के लिए जाने वाला व्यक्ति।

काँवाँरथी (सं.) [सं-पु.] 1. अपनी मनोकामना पूरी कराने के उद्देश्य से कंधे पर काँवर लेकर तीर्थयात्रा पर जाने वाला शिवभक्त 2. काँवरिया; बहँगिया।

काँस (सं.) [सं-पु.] वर्षा ऋतु में उगने तथा शरद ऋतु में फूलने वाली एक प्रकार की लंबी घास जिसे बटकर टोकरे, रस्सियाँ आदि बनाए जाते हैं; काश; कास।

काँसा (सं.) [सं-पु.] 1. ताँबे और जस्ते या ताँबे और टीन के योग से बनी हुई एक मिश्र धातु; कसकुट 2. भीख माँगने का खप्पर या ठीकरा; भिक्षापात्र।

काँसार [सं-पु.] काँसे का बरतन बनाने वाला; कसेरा; ठठेरा।

कांक्रीट (इं.) [सं-स्त्री.] पत्थर के छोटे टुकड़ों या कंकड़ों के साथ सीमेंट और रेत मिलाकर बनाया गया मिश्रण जो मकान के स्तंभ, फ़र्श या छत; (लिंटर) आदि बनाने के काम आता है; कंकरीट।

कांचन (सं.) [सं-पु.] 1. सोना; स्वर्ण 2. धन-संपदा 3. दीप्ति; चमक 4. वैभव; ऐश्वर्य 5. धतूरा 6. कचनार का वृक्ष 7. चंपा का वृक्ष 8. गूलर का वृक्ष 9. नागकेसर नामक वृक्ष तथा उसके फूल। [वि.] 1. स्वर्ण निर्मित 2. सुंदर; सुनहरा 3. श्रेष्ठ।

कांचनार (सं.) [सं-पु.] कचनार का वृक्ष तथा पुष्प।

कांचनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हल्दी 2. गाय के पित्त से उत्पन्न एक सुगंधित पीला पदार्थ; गोरोचन।

कांची (सं.) [सं-स्त्री.] 1. स्त्रियों द्वारा कमर में धारण की जाने वाली करधनी; मेखला 2. प्राचीन भारत की सप्तपुरियों में से एक; कांजीवरम 3. घुँघची; गुंजा 4. कपड़ों पर टाँका जाने वाला गोटा-पट्टा।

कांजिक (सं.) [सं-पु.] 1. काँजी 2. चावल का ऐसा माँड़ जिससे ख़मीर उठने लगा हो। [वि.] सिरका, काँजी आदि से संबंध रखने वाला; खट्टा।

कांट्रैक्ट (इं.) [सं-पु.] 1. ठेका; अनुबंध; करार 2. संविदा; संधि; इकरारनामा 3. वचनबद्धता 4. पूर्वनिर्धारित शर्तों पर काम करने का अनुबंध-पत्र।

कांट्रैक्टर (इं.) [सं-पु.] 1. ठेकेदार; संविदाकार 2. किसी काम का अनुबंध करने वाला; अनुबंधी।

कांड (सं.) [सं-पु.] 1. बड़ी दुर्घटना; कोई अप्रिय या अशुभ घटना 2. किसी पुस्तक का कोई अध्याय, प्रकरण अथवा परिच्छेद 3. ईख, नरकट आदि की पोर 4. वृक्ष का तना; वृक्ष-स्कंध 5. किसी कार्य या विषय का विभाग या अंश 6. प्रपंच 7. धनुष के मध्य का मोटा भाग।

कांडिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार का अन्न 2. कुम्हड़ा 3. अनुच्छेद; पैराग्राफ़ 4. ग्रंथ का खंड।

कांत (सं.) [सं-पु.] 1. जो व्यक्ति किसी के प्रति प्रेम या अनुराग रखता हो; प्रेमी 2. पति; शौहर। [वि.] 1. मनोहर; सुंदर 2. रुचिकर; प्रिय।

कांता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पत्नी; भार्या 2. प्रेमिका 3. सुंदर स्त्री।

कांतार (सं.) [सं-पु.] 1. घना वन या जंगल; भयानक स्थान 2. दुरूह या विकट पथ 3. ईख; गन्ना 4. बाँस 5. छिद्र; छेद, दरार।

कांति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छवि; शोभा; सौंदर्य 2. दीप्ति; चमक; आभा 3. आंतरिक प्रसन्नता तथा स्वास्थ्य से बढ़ा-चढ़ा शारीरिक सौंदर्य 4. चंद्रमा की सोलह कलाओं में से एक 5. सुंदर स्त्री।

कांतिमान (सं.) [वि.] 1. कांतियुक्त; चमकीला; दीप्तिमान 2. सुंदर।

कांतिसार (सं.) [सं-पु.] एक अच्छी किस्म का लोहा।

कांदविक (सं.) [सं-पु.] भाड़ या भट्टी पर काम करने वाला; भड़भूजा, हलवाई, रोटीवाला, नानबाई आदि।

कांस्टेंट (इं.) [सं-पु.] 1. स्थिर; स्थायी; नियत 2. नियतांक; स्थिरांक 3. ध्रुव; अपरिवर्तनीय; अचल; अचर; अटल; दृढ़।

कांस्टेबल (इं.) [सं-पु.] पुलिस विभाग में एक पद; सिपाही; आरक्षी; आरक्षक।

कांस्य (सं.) [सं-पु.] ताँबे तथा टीन के मिश्रण से निर्मित एक धातु; काँसा; कसकुट। [वि.] 1. काँसे का बना हुआ; काँसे का 2. काँसे से संबंधित।

कांस्यकार (सं.) [सं-पु.] काँसे के बरतन बनाने और बेचने वाला; कसेरा; ठठेरा।

कांस्य युग (सं.) [सं-पु.] इतिहास का वह युग जिसमें मनुष्य हथियार, बरतन आदि के लिए काँसे का प्रयोग करने लगा था; पाषाण युग तथा लौह युग के मध्य का युग।

का (सं.) [पर.] संबंध सूचक परसर्ग जो पुल्लिंग एकवचन के साथ संबंध का द्योतन करता है, जैसे- मीरा का घर।

काइनेटोस्कोप (इं.) [सं-पु.] गतिशील चित्रों को दिखाने का एक प्रारंभिक उपकरण।

काइयाँ [वि.] चंट; चालाक और धूर्त; चतुर और कुटिल।

काई (सं.) [सं-स्त्री.] 1. जल और सीलन में उत्पन्न होने वाली एक वनस्पति 2. स्थिर अथवा अवरुद्ध पानी के ऊपर उगने वाली गोल पत्तियों की एक घास 3. ऐसा मैल जो जम गया हो 4. {ला-अ.} मन में उत्पन्न एवं एकत्रित दुर्भाव, पाप, कलुष आदि।

काउंट (इं.) [सं-पु.] संख्या; तादाद। -करना [क्रि-स.] गिनना।

काउंटर (इं.) [सं-पु.] 1. शुल्क अदा करके किसी मद या मनोरंजन आदि के लिए टिकट या कूपन ख़रीदने की खिड़की 2. गणक; गणनाकार 3. गणना करने की मशीन; गणित्र 4. दुकान या बैंक आदि व्यापारिक स्थानों में वह समतल पटल जहाँ ग्राहकों से व्यवहार होता है 5. तख़ता। [वि.] 1. प्रतिकूल; विपरीत; विरुद्ध; विरोधी 2. दोहरा; द्विगुणित; दूना।

काउंटिंग (इं.) [सं-पु.] गणना; हिसाब।

काउंसिल (इं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी विषय पर विचार-विमर्श के लिए निर्मित सभा; परिषद 2. विचार सभा; परामर्श-सभा।

काक (सं.) [सं-पु.] 1. कौआ नामक पक्षी 2. माथे पर एक विशेष आकृति का तिलक 3. {ला-अ.} अधिक चालाक और धूर्त व्यक्ति।

काक-गोलक (सं.) [सं-पु.] कौए की आँख की पुतली।

काकपक्ष (सं.) [सं-पु.] कनपटियों पर लटकने वाले बालों के पट्टे; लट; जुल्फ़; गलमुच्छे।

काकपद (सं.) [सं-पु.] 1. किसी वाक्य में छूटे हुए शब्द का स्थान बताने के लिए पंक्ति के नीचे बनाया जाने वाला चिह्न; हंसपद; त्रुटिका (^) 2. कौए के पद का परिमाण जो शिखा का शास्त्रविहित परिमाण है 3. एक रतिबंध 4. हीरे का एक दोष।

काकभुशुंडि (सं.) [सं-पु.] (रामायण) एक राम भक्त जो लोमश ऋषि के शाप से कौआ हो गए थे।

काकरेज़ (फ़ा.) [सं-पु.] बैंगनी, लाल एवं काले रंग के मेल से बना रंग।

काकरेज़ा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. काकरेज़ रंग का कपड़ा; नीलापन और लाली लिए हुए काले रंग का कपड़ा 2. काकरेज़ी रंग।

काकरेज़ी (फ़ा.) [सं-पु.] लाल और काले रंग के मिश्रण से बना एक प्रकार का रंग जिसमें नीलेपन की झलक मिलती है; काकरेज़ रंग। [वि.] काकरेज़ रंग का।

काकल (सं.) [सं-पु.] 1. गले के अंदर की घंटी; कौआ; अलिजिह्वा 2. पहाड़ी कौआ।

काकली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मधुर ध्वनि; अस्फुट ध्वनि; कुहुक 2. (संगीत) ऐसा मंद तथा मधुर स्वर जो यह जानने के लिए उत्पन्न किया जाता है कि कोई जाग रहा है या सो रहा है 3. एक वाद्य 4. कैंची 5. गुंजा या घुँघुची का पौधा।

काकल्य स्वरतंत्रियों के मध्य स्थित वायुमार्ग 'काकल' कहलाता है तथा 'काकल' स्थान से उच्चारित ध्वनि काकल्य कहलाती हैं, जैसे- विसर्ग (ः) तथा 'ह्'।

काका [सं-पु.] 1. चाचा; पिता का छोटा भाई 2. छोटा बच्चा 3. घर के बड़े-बूढ़े सेवक या अपरिचित-अल्पपरिचित बुज़ुर्गों के लिए सम्मानसूचक संबोधन।

काकातुआ [सं-पु.] एक प्रकार का बड़ा तोता जिसके सिर पर चोटी होती है; किंकिरात।

काकी [सं-स्त्री.] चाची; चाचा या काका की पत्नी; कुछ बड़ी उम्र की अपरिचित-अल्पपरिचित महिलाओं के लिए सम्मान जनक संबोधन।

काकु (सं.) [सं-पु.] 1. कंठ ध्वनि विशेष; भाव या अर्थ भेद से ध्वनि में भेद होना 2. (काव्यशास्त्र) वक्रोक्ति अलंकार का एक भेद जिसमें कहने का ढंग बदलने से अर्थ बदल जाता है; व्यंग्यपूर्ण कथन 3. नकार का ऐसा प्रयोग जिससे 'हाँ' का भाव या अर्थ निकलता है।

काकुद (सं.) [सं-पु.] मुख विवर के अंदर ऊपर की दंतपंक्ति से लेकर अलिजिह्वा या काकल तक का भाग; तालु।

काकुल (फ़ा.) [सं-स्त्री.] बालों की लट; केशपाश; माथे या कनपटी पर लटकते हुए बाल; ज़ुल्फ़; अलक।

काकोल (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का विष 2. सर्प; साँप 3. काला कौआ 4. सुअर 5. कुम्हार 6. एक नरक।

काकोलूकीय (सं.) [सं-पु.] कौवे तथा उल्लू का सामान्य वैर।

काग (सं.) [सं-पु.] 1. कौआ; वायस 2. श्राद्ध आदि में कौओं के लिए निकाला जाने वाला अंश।

कागज़ (अ.) [सं-पु.] सन, पटुए, रुई, बाँस आदि की लुगदी से बना महीन पत्र जिसपर लिखावट या छपाई की जाती है। [मु.] -काला करना : बेकार में लिखना।

कागज़ात (अ.) [सं-पु.] 1. ('कागज़' का बहुवचन) कागज़पत्र; दस्तावेज़ 2. किसी विषय से संबंधित लिखित सामाग्री।

कागज़ी (अ.) [वि.] 1. कागज़ का बना हुआ 2. लिखत-पढ़त में किया गया 3. कागज़ से संबंधित 4. जिसका छिलका कागज़ की तरह पतला हो, जैसे- कागज़ी नीबू, कागज़ी बादाम 5. अव्यावहारिक; उलझाने वाला; औपचारिक मात्र, जैसे- कागज़ी योजना। [मु.] -घोड़े दौड़ाना : विशेष प्रयास न करके केवल लिखा-पढ़ी करना।

कागरी [वि.] 1. कागज़ के समान पतला और हलका 2. तुच्छ; हेय; निम्न।

कागा [सं-पु.] काग का संबोधन कारक में होने वाला रूप; कौआ।

कागारोल [सं-पु.] कौओं की तरह मचाया जाने वाला शोर; हो-हल्ला; हुल्लड़; शोरगुल।

काच (सं.) [सं-पु.] 1. शीशा; काँच 2. काला नमक 3. आँख की एक बीमारी 4. मोम।

काछ (सं.) [सं-पु.] 1. पेड़ू, जाँघ तथा उसके नीचे का स्थान 2. परिधान; पहनावा 3. धोती की लाँग 4. कच्छा; जाँघिया 5. अभिनय में नटों का धारण किया हुआ वेश। [मु.] -काछना : वेष (भेष) बनाना (अभिनय में)। -लगना : जाँघों के चमड़े का रगड़ कर छिल जाना।

काछना [क्रि-स.] 1. वस्त्र पहनना; वेश धारण करना 2. सजाकर तैयार करना 3. बनाना; सँवारना 4. धोती की लाँग पीछे खोंसना 5. शोभित होना; शोभा देना।

काछनी [सं-स्त्री.] 1. घुटनों तक कसकर धोती पहनने का एक ढंग जिसमें दोनों ओर की लाँगें पीछे की ओर खोंसी जाती हैं 2. उक्त प्रकार से पहनी गई धोती 3. घाघरे की तरह का एक प्रकार का पहनावा जो प्रायः घुटनों तक का होता है।

काछा [सं-पु.] 1. काछ 2. पेड़ू और जाँघ का जोड़ 3. घुटनों तक कस कर धोती पहनने का एक तरीका जिसमें दोनों ओर की लाँगें पीछे की ओर खोंसी जाती हैं; लाँग।

काछी [सं-पु.] सब्ज़ी उगाने तथा बेचने का व्यापार करने वाला समुदाय; कोयरी; मरार।

काज (सं.) [सं-पु.] 1. कार्य; काम; रोज़गार; धंधा; व्यापार; व्यवसाय 2. कारण; प्रयोजन; हेतु 3. विवाह आदि कोई शुभ कार्य 4. कपड़े में बटन लगाने का छेद।

काजल (सं.) [सं-पु.] आँखों में लगाई जाने वाली वह कालिख जो तेल, घी के दीपक से निकले धुएँ को जमाकर तैयार की जाती है; अंजन। [मु.] -चुराना : अति चतुराई से चोरी करना।

काज़ी (अ.) [सं-पु.] 1. मुस्लिम धर्म अर्थात शरीअत के मुताबिक धर्म-अधर्म संबंधी विवादों पर न्याय करने वाला; न्यायकर्ता; मुंसिफ; विचारक 2. निकाह पढ़ाने वाला मौलवी।

क़ाज़ी (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. काज़ी)।

काजू [सं-पु.] 1. एक वृक्ष जिसके फलों की गणना सूखे मेवों में होती है 2. उक्त वृक्ष के फल का एक भाग जो बादाम के आकार का किंतु सफ़ेद रंग का होता है तथा उसकी गिरी मेवे के तौर पर खाई जाती है।

काट [सं-स्त्री.] 1. काटने की क्रिया या भाव 2. काटने का काम 3. कपड़े को सिलाई के लिए काटने का प्रकार; कटाव 4. किसी के प्रहार या षड्यंत्र को विफल करने के लिए किया जाने वाला उपाय; पेंच का तोड़; चाल 5. कपट; विश्वासघात 6. गणित में कलम या लकीर से कोई अंक, लेख आदि काटने की क्रिया 7. अंक, लेख आदि को रद्द करने के लिए खींची जाने वाली लकीर।

काटकपट [सं-पु.] 1. कपटपूर्ण युक्ति 2. गलत ढंग से काटना।

काटकूट [सं-स्त्री.] 1. लिखावट में संशोधन, परिवर्तन 2. काटना; मार-काट।

काट-छाँट [सं-स्त्री.] 1. काटने और छाँटने की क्रिया या ढंग; कतर-ब्योंत 2. किसी चीज़ के निर्माण का वह तरीका जिसमें अनावश्यक अंश काट या छाँट कर अलग कर लिए जाते हों तथा आवश्यक अंश को रख लिया जाता हो।

काटन [सं-स्त्री.] कपड़े की कतरन या कटा हुआ अंश।

काटना (सं.) [क्रि-स.] 1. शस्त्र आदि से किसी वस्तु के दो या अधिक भाग करना 2. घाव या ज़ख़्म करना 3. किसी कड़ी या भारी चीज़ को नया रूप देने के लिए उस पर आघात करना, जैसे- गुफा या मंदिर बनाने के लिए पहाड़ काटना 4. युद्ध में मारना; वध करना 5. किसी वस्तु में दाँत गड़ाना; कुतरना 6. दूर करना 7. रास्ता पार करना 8. खंडन करना 9. किसी छोटी संख्या से बड़ी संख्या में भाग देना।

काटू [वि.] 1. काटने वाला; काट खाने वाला; कटखना; कटहा 2. जल्दी क्रोधित होने वाला; चिड़चिड़ा 3. तीक्ष्ण; तीखा; तेज़।

काठ (सं.) [सं-पु.] 1. वृक्ष का कोई स्थूल अंग जो कटकर सूख गया हो; लकड़ी; काष्ठ 2. जलाने की लकड़ी; ईंधन 3. लकड़ी की बेड़ी; कलंदरा। [मु.] -का उल्लू : बहुत बड़ा मूर्ख। -मार जाना : चकित या हतप्रभ होना; बहुत हैरान होना।

काठ कबाड़ [सं-पु.] 1. लकड़ी की बनी हुई परंतु टूटी-फूटी या अनावश्यक सामग्री 2. काठ से बनी रद्दी या बेकार चीज़ें।

काठ-कोयला [सं-पु.] लकड़ियाँ जलाकर तैयार किया जाने वाला कोयला।

काठघर (सं.) [सं-पु.] काष्ठ निर्मित घर; लकड़ी का बना मकान।

काठा [वि.] 1. लकड़ी या काठ से निर्मित 2. जिसका छिलका मोटा और कड़ा हो 3. जिसका गूदा कड़ा हो।

काठी [सं-स्त्री.] 1. ऊँट, घोड़े आदि की पीठ पर कसने की जीन जिसमें नीचे लकड़ी लगी होती है 2. देह की गठन या बनावट 3. काठ का बना म्यान 4. काष्ठ; लकड़ी।

काडर (इं.) [सं-पु.] 1. कार्यकर्ता 2. किसी संस्था का आम सदस्य।

काढ़ना (सं.) [क्रि-स.] 1. आधार या पात्र से कोई चीज़ बाहर निकालना 2. सुई-धागे से किसी कपड़े पर बेल-बूटे बनाना 3. तेल, घी आदि में कोई चीज़ तलना 4. आवरण हटाकर दिखाना; सामने लाना।

काढ़ा [सं-पु.] औषधीय वनस्पतियों को उबालकर निकाला गया सत्त; क्वाथ; जोशाँदा।

काण (सं.) [सं-पु.] कौआ। [वि.] 1. काना; एकाक्ष 2. छेद किया हुआ।

कात (सं.) [सं-पु.] 1. भेड़ों के बाल काटने की क़ैंची 2. मुरगे के पैर में निकलने वाला काँटा।

कातना (सं.) [क्रि-स.] 1. चरखे, तकली आदि से ऊन या रुई से धागा तैयार करना 2. धागा बटना 3. मूँज, सन आदि से रस्सी बनाना।

कातर (सं.) [वि.] 1. व्याकुल; अधीर; परेशान; उद्विग्न 2. कष्ट से आकुल; आर्त; दुखी 3. डरा हुआ; भयभीत 4. भीरु; डरपोक 5. विवश। [सं-पु.] 1. कोल्हू की कतरी या पाट 2. घड़े आदि को बाँधकर बनाया हुआ बेड़ा; घड़नैल; घड़नई।

कातरता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कातर होने की अवस्था अथवा भाव; अधीरता 2. दुख या कष्ट में होने वाली बेचैनी; विकलता; व्याकुलता।

कातरोक्ति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कष्ट या दुख में कही गई बात 2. दुखसूचक आग्रह; दीनतापूर्वक की जाने वाली प्रार्थना।

कातल (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार की मछली; कतला मछली।

काता [सं-पु.] 1. बाँस छीलने की अर्धचंद्राकार छुरी; बाँक 2. काता हुआ सूत; डोरा; तागा 3. एक मिठाई, जो कते हुए सूत के लच्छे जैसी होती है।

कातिब (अ.) [सं-पु.] 1. लेख आदि की प्रतिलिपि करने वाला व्यक्ति 2. लिखने वाला; लेखक 3. मुंशी; मुहर्रिर 4. लीथो प्रेस पर छपने के लिए एक विशेष कागज़ पर विशेष स्याही से लिखने का काम करने वाला व्यक्ति।

कातिल (अ.) [वि.] कत्ल करने वाला; वध करने वाला; वधिक; हत्यारा।

क़ातिल (अ.) [वि.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कातिल)।

कातिलाना (अ.+फ़ा.) [वि.] जानलेवा; बहुत अधिक घातक।

काती (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कैंची 2. चाकू; छुरी 3. छोटी तलवार।

कात्यायनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (पुराण) दुर्गा का एक रूप 2. कत गोत्र में उत्पन्न कन्या 3. ऋषि याज्ञवल्क्य की पत्नी।

कादंबरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कोयल; कोकिल 2. मैना पक्षी 3. कदंब के फूलों की शराब; मदिरा 4. वाणी, विद्या की देवी; सरस्वती 5. बाणभट्ट की लिखी हुई प्रसिद्ध कथा 6. उक्त कथा की नायिका।

कादंबिनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. बादलों का समूह; मेघमाला 2. (संगीत) मेघ राग की एक रागिनी।

कादर (सं.) [वि.] 1. भीरु; डरपोक 2. उद्विग्न; व्याकुल; परेशान 3. आर्त 4. अधीर 5. विवश।

कान (सं.) [सं-पु.] 1. श्रवणेंद्रिय; कर्ण; श्रुति 2. श्रवण-शक्ति; सुनने की शक्ति 3. चारपाई का टेढ़ापन; कनेव 4. तराज़ू का पसँगा 5. सितार आदि की खूँटी 6. बंदूक की रंजकदानी जिसमें बारूद रखी जाती है 7. नाव की पतवार। [मु.] -उमेठना : सावधान या दंडित करने के लिए किसी का कान मसलना। -पर जूँ न रेगना : कुछ भी परवाह न करना। -फूँकना : दीक्षा देना; सिखाना। -भरना : किसी के विरुद्ध किसी के मन में कोई बात बैठा देना। -में डाल देना : जानकारी देना। कानों कान ख़बर न होना : किसी को पता न चलना।

कानक (सं.) [वि.] 1. सोने का बना हुआ 2. कनक संबंधी; कनक का 3. सुनहरा। [सं-पु.] जमालगोटा नामक बीज जो विरेचक होता है।

कानन (सं.) [सं-पु.] 1. वन; जंगल 2. घर; मकान; निवासस्थान।

काना (सं.) [वि.] 1. जिसकी कोई आँख ख़राब या विकृत हो गई हो; एकाक्ष 2. टेढ़ा; तिरछा 3. दोषयुक्त 4. कीड़े आदि के द्वारा खाया गया या दागी (फल)।

काना-कानी [सं-स्त्री.] कानाफूसी; बात का एक कान से दूसरे कान तक पहुँचना; कर्णपरंपरा।

कानाफूसी [सं-स्त्री.] 1. किसी के कान में धीरे से कही जाने वाली बात जो किसी अन्य को न सुनाई दे 2. उक्त प्रकार से की जाने वाली बातचीत; फुसफुसाहट।

कानी [वि.] 1. एक आँखवाली 2. छिद्रयुक्त; दोषयुक्त, जैसे- कानी भिंडी।

कानी-उँगली [सं-स्त्री.] हाथ या पैर की सबसे छोटी उँगली; कनिष्ठिका; छिगुनी।

कानी-कौड़ी [सं-स्त्री.] 1. ऐसी कौड़ी जिसके बीच में माला पिरोने के लिए छेद किया गया हो; फूटी कौड़ी 2. {ला-अ.} नगण्य या नाम मात्र का धन।

कानीन (सं.) [सं-पु.] अविवाहित स्त्री के गर्भ से उत्पन्न पुत्र, जैसे- पुराणों में उल्लिखित वेद व्यास, कर्ण आदि।

कानून (अ.) [सं-पु.] 1. देश में व्यवस्था कायम करने के लिए शासन द्वारा बनाए गए नियम जिनका पालन करना उस देश के सभी नागरिकों के लिए अनिवार्य होता है; राजनियम; विधि; विधान; आईन; (लॉ) 2. सामान्य व्यवस्थागत नियम; कायदा-कानून 3. उक्त प्रकार से निर्मित नियमों का सामूहिक रूप।

क़ानून (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कानून)।

कानूनगो (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] माल या राजस्व महकमे का वह क्षेत्रीय अधिकारी जो पटवारियों या लेखपालों के कागज़ात एवं काम-काज की जाँच करता है।

कानूनदाँ (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. विधिवेत्ता; कानून का जानकार; विधिज्ञ; विधानज्ञ 2. अभिभाषक; अभिवक्ता; वकील।

कानूनन (अ.) [क्रि.वि.] कानून के मुताबिक; विधान के अनुसार; नियमतः।

कानूनी (अ.) [वि.] 1. कानून संबंधी; कानून का 2. बात-बात पर कायदे-कानून की दुहाई देने वाला; कानून बघारने वाला; नुक्स निकालने वाला; हुज्जती।

कान्यकुब्ज (सं.) [सं-पु.] 1. वर्तमान कन्नौज के आस-पास विस्तृत एक प्राचीन प्रांत 2. कान्यकुब्ज क्षेत्र का निवासी 3. उक्त क्षेत्र में रहने वाले ब्राह्मणों का एक वर्ग।

कापटिक (सं.) [वि.] 1. कपटी; दुष्ट 2. जालसाज; बईमान।

कापालिक (सं.) [सं-पु.] 1. शैव संप्रदाय की एक शाखा 2. उक्त शाखा का अनुयायी 3. भैरव या शक्ति के उपासक; एक प्रकार के तांत्रिक जो अपने हाथ में कपाल या मनुष्य की खोपड़ी लिए रहते हैं 4. बंगाल में रहने वाली एक पुरानी वर्ण संकर जाति। [वि.] कपालसंबंधी; खोपड़ी का।

कापिल (सं.) [वि.] 1. कपिल संबंधी 2. कपिल द्वारा प्रतिपादित सांख्य मत का अनुयायी 3. भूरा रंग।

कापुरुष (सं.) [सं-पु.] 1. कायर या भीरु व्यक्ति 2. तुच्छ या हीन पुरुष।

कापोत (सं.) [वि.] 1. कबूतर के रंग जैसा; धूसर रंग का 2. कबूतर संबंधी।

काफ़ (अ.) [सं-पु.] 1. उर्दू वर्णमाला का एक व्यंजन जो 'क' ध्वनि के लिए प्रयुक्त होता है 2. पश्चिमी एशिया का कॉकेशस नामक एक पर्वत।

काफ़िया (अ.) [सं-पु.] तुक; अंत्यानुप्रास।

काफ़िर (अ.) [सं-पु.] 1. ऐसा व्यक्ति जो इस्लाम का अनुयायी न हो 2. ख़ुदा या ईश्वर को न मानने वाला; नास्तिक 3. दुष्ट; उत्पाती व्यक्ति 4. अफ़गानिस्तान की सरहद पर बसने वाली एक जाति 5. अफ़्रीका के मूल निवासियों का एक कबीला। [वि.] 1. ईश्वर को न मानने वाला; नास्तिक 2. उपद्रवी 3. दुष्ट; निर्दय।

काफ़िराना (फ़ा.) [वि.] काफ़िरों की तरह के व्यवहारवाला; काफ़िरों का-सा।

काफ़िरी (अ.) [सं-स्त्री.] 1. काफ़िर होने की अवस्था या भाव; काफ़िरपन 2. काफ़िर जाति की बोली या भाषा। [वि.] 1. काफ़िर संबंधी 2. काफ़िरों जैसा।

काफ़िरे नेमत (अ.) [सं-पु.] अहसान फ़रामोश; कृतघ्न; अकृतज्ञ।

काफ़िला (अ.) [सं-पु.] 1. एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में माल आदि ले जानेवाले व्यापारियों का समूह 2. मुसाफ़िरों की जमाअत; यात्रियों का समूह; यात्रीदल।

काफ़ी (अ.) [वि.] 1. जितना ज़रूरी हो उतना; पूरा; पर्याप्त 2. अत्यधिक; बहुत ज़्यादा।

काफ़ूर (फ़ा.) [सं-पु.] कपूर; कर्पूर। [मु.] -होना : गायब हो जाना; अदृश्य होना।

काफ़ूरी (फ़ा.) [वि.] 1. कपूर संबंधी; कपूर का 2. कपूर के रंग का; कपूरी; सफ़ेद 3. कपूर की बनी हुई या कपूर पड़ी हुई (वस्तु)।

काबर [सं-स्त्री.] एक प्रकार की भूमि जिसकी मिट्टी में रेत भी मिली रहती है; दोमट मिट्टी; खाभर।

काबा (अ.) [सं-पु.] 1. अरब के मक्का शहर की वह चौकोर इमारत जिसकी नींव इब्राहीम के द्वारा रखी हुई मानी जाती है और उक्त इमारत को मुसलमान ईश्वर का घर मानते हैं; पवित्र तीर्थस्थल 2. उक्त जगह जहाँ मुसलमान लोग हज करने जाते हैं 3. चौकोर चीज़ 4. पासा।

काबिज़ (अ.) [वि.] 1. कब्ज़ा या अधिकार रखने वाला; (व्यक्ति या संस्था) जिसका कब्ज़ा हो 2. कब्ज़ पैदा करने वाला; मलरोधक।

काबिल (अ.) [वि.] 1. काबिलियत या योग्यता रखने वाला; योग्य; लायक 2. किसी विषय का विशेषज्ञ; विद्वान; ज्ञाता; पंडित; इल्मदाँ 3. उचित; मुनासिब 4. दक्ष; निपुण; होशियार 5. पढ़ा-लिखा; सुयोग्य 6. मुस्तहक; (उन्नति का) अधिकारी।

क़ाबिल (अ.) [वि.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. काबिल)।

काबिलीयत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. काबिल होने का भाव; योग्यता; पात्रता; कुशलता 2. विद्वता; पांडित्य 3. महारत; दक्षता; निपुणता; होशियारी।

काबिलेतारीफ़ (अ.) [वि.] प्रशंसा के योग्य; प्रशंसनीय; श्लाघ्य; तारीफ़ के काबिल।

काबिस [सं-पु.] 1. एक प्रकार का लाल रंग जिससे मिट्टी के कच्चे बरतन रँगे जाते हैं 2. लाल रंग की मिट्टी।

काबीना (अ.) [सं-पु.] मंत्रिमंडल; मंत्रिपरिषद; वज़ीरों की मजलिस; (कैबिनेट)।

काबुक (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कबूतरों के रहने का दरबा; कपोत पालिका 2. वह गद्देदार कपड़ा जिसपर रोटियाँ रखकर तंदूर में डालते हैं।

काबुली [सं-पु.] एक तरह का चना जो सफ़ेद और आकार में बड़ा होता है। [वि.] 1. काबुल का 2. काबुल संबंधी 3. काबुल का रहने वाला 4. काबुल में उत्पन्न।

काबू (तु.) [सं-पु.] 1. इख़्तियार; वश; ज़ोर; नियंत्रण 2. अधिकार; कब्ज़ा।

काबूची (तु.) [वि.] 1. दरबान; द्वारपाल 2. ख़ुदगर्ज़; स्वार्थ-साधक।

काम1 [सं-पु.] 1. वह जो किया जाए; कार्य; कर्म 2. वेद विहित अथवा धार्मिक दृष्टि से किए जाने वाले कार्य; कृत्य 3. प्रयोजन; गरज़ 4. रोज़गार; आजीविका; नौकरी 5. उपयोग 6. (कपड़ों पर) बेलबूटे; (लकड़ी, पत्थर आदि पर) नक्काशी। [मु.] -आना : उपयोग में आना; मारा जाना। -निकालना : अपना उद्देश्य पूरा करना। -से काम रखना : मात्र अपने प्रयोजन से संबंध रखना। -में लाना : व्यवहार (प्रयोग) में लाना।

काम2 (सं.) [सं-पु.] 1. इच्छा; कामना; मनोरथ; ख़्वाहिश 2. इंद्रिय या विषय-सुख की कामना; वासना 3. चार पुरुषार्थ में से एक 4. संभोग की इच्छा 5. कामदेव; प्रद्युम्न।

कामकला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पूर्ण संभोग या रति सुख प्राप्त करने की कला 2. कामदेव की पत्नी; रति 3. काम का उद्दीपन 4. एक तंत्रविद्या।

कामकाज [सं-पु.] 1. विभिन्न प्रकार के कार्य 2. जीविका के साधन; कारोबार; काम-धंधा; कार्य-कलाप।

कामकाजी [वि.] काम-काज अथवा उद्योग-धंधे में लगा रहने वाला; जिसके हाथ में अनेक काम रहते हों; उद्यमी।

काम क्रीड़ा (सं.) [सं-स्त्री.] संभोग; रतिक्रीड़ा; कामकेलि।

कामगार (फ़ा.) [सं-पुं.] 1. मज़दूर; श्रमिक 2. कामदार; कार्याधिकारी। [वि.] जिसकी इच्छा पूर्ण हो गई हो; सफलमनोरथ; कामयाब; प्राप्तकाम; सफल।

कामचलाऊ [वि.] 1. जिससे फ़िलहाल आवश्यकता की पूर्ति हो जाए; जैसे-तैसे कुछ काम चला देने वाला; काम चलाने भर का 2. ऐसी वस्तु जो टिकाऊ न होने पर भी कुछ समय तक काम में आ सके।

कामचोर [वि.] आलसी; अपने काम या कर्तव्य से जी चुराने वाला।

कामज (सं.) [वि.] काम या वासना से उत्पन्न; कामजन्य। [सं-पु.] 1. यौन मनोविकार ​2. व्यसन।

कामत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. आकार; कद 2. शरीर; जिस्म।

कामतरु (सं.) [सं-पु.] 1. कल्पवृक्ष; सुरद्रुम; अमरपुष्प 2. बंदाल या बाँदा नामक एक लता।

कामद (सं.) [वि.] कामना पूरी करने वाला; इच्छाओं की पूर्ति करने वाला; इच्छापूरक।

कामदानी [सं-स्त्री.] 1. कपड़े आदि पर ज़री के बेल-बूटों का काम 2. वह कपड़ा जिसपर ज़री, कलाबत्तू आदि से सितारे आदि काढ़े गए हों।

कामदार (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. प्रधान कर्मचारी; कारिंदा 2. जायदाद का प्रबंध करने वाला अधिकारी; प्रबंधकर्ता; व्यवस्थापक। [वि.] जिस परिधान पर कलाबत्तू, सलमा, सितारे, कशीदे आदि का काम किया गया हो, जैसे- कामदार टोपी, कामदार जूता।

कामदी (ग्री.) [सं-पु.] (काव्यशास्त्र) पाश्चात्य काव्यशास्त्र के अनुसार वह नाटक जो सुखांत हो; सुखांतकी; (कॉमेडी)।

कामदेव (सं.) [सं-पु.] एक पौराणिक देवता जो काम और वासना के उत्प्रेरक माने जाते हैं; कंदर्प; मदन; अनंग; मन्मथ।

काम-धंधा [सं-पु.] रोज़गार; व्यवसाय; कारोबार; कामकाज।

कामधेनु (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (पुराण) एक प्रसिद्ध चमत्कारी गाय जो समुद्र से निकले चौदह रत्नों में से एक थी, जिसमें दैवीय शक्तियाँ थीं और जिसके दर्शन मात्र से ही लोगों के दुख व पीड़ा दूर हो जाते थे 2. वशिष्ठ की शबला या नंदिनी नाम की गाय 3. दान के लिए सोने की बनाई गई गौ मूर्ति।

कामना (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हार्दिक इच्छा; मनोरथ 2. ऐसी इच्छा जिसकी पूर्ति होने पर आनंद की प्राप्ति होती हो।

काम-पिपासा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. संभोग की तीव्र इच्छा; यौन-तृप्ति की आकांक्षा; कामवासना 2. विषय-भोग की इच्छा या कामना।

कामभाव (सं.) [सं-पु.] सहवास या मैथुन की इच्छा; कामेच्छा।

कामयाब (फ़ा.) [वि.] 1. जिसका अभिप्राय या मनोरथ सिद्ध हो गया हो; सफल; बामुराद 2. परीक्षा में उत्तीर्ण।

कामयाबी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] वांछित लक्ष्य की प्राप्ति; सफलता; उद्देश्य की सिद्धि; (सक्सेस)।

कामरान (फ़ा.) [वि.] जिसे अपने उद्देश्य में सफलता मिल चुकी हो; सफल; कामयाब।

कामरिपु (सं.) [सं-पु.] कामदेव के शत्रु अर्थात शिव।

कामरूप (सं.) [सं-पु.] 1. एक देवता 2. असम प्रांत का प्राचीन नाम 3. एक प्राचीन अस्त्र, जिससे शत्रु के फेंके हुए अस्त्र विफल हो जाते हैं 4. बरगद के वृक्ष जैसा एक बड़ा पेड़। [वि.] इच्छानुकूल रूप धारण करने वाला।

कामरेड (इं.) [सं-पु.] 1. साथी; सहयोगी; दोस्त 2. किसी संगठन (साम्यवादी दल) का सदस्य।

कामला (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का रोग जिसमें मनुष्य की आँखें और शरीर का रंग पीला हो जाता है; पीलिया; (जॉन्डिस)।

कामलिप्सा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कामभावना का विकृत या असंयमित रूप; कामोन्माद 2. कामुकता; विषयासक्ति; विषयवासना 3. देहासक्ति।

कामवासना (सं.) [सं-स्त्री.] 1. संभोग की तीव्र इच्छा 2. विषय भोग की कामना।

कामशास्त्र (सं.) [सं-पु.] काम कला की शिक्षा देने वाला शास्त्र; रतिशास्त्र; ऐसा शास्त्र जिसमें स्त्री-पुरुष के संभोग के प्रकारों और आसनों-रीतियों का वर्णन हो।

कामाक्षी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (पुराण) दुर्गा का एक नाम 2. तमिलनाडु के कांचीपुरम (काँजीवरम) में स्थित मंदिर में पूजित रूप।

कामाग्नि (सं.) [सं-स्त्री.] उत्कट या तीव्र काम-वासना; प्रबल विषय-भोग की कामना; संभोग की प्रबल इच्छा।

कामातुर (सं.) [वि.] काम-वासना के कारण जो बहुत विकल हो; काम-पीड़ित; कामांध।

कामायनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कामगोत्र में उत्पन्न स्त्री 2. वैवस्वत मनु की पत्नी; श्रद्धा 3. जयशंकर प्रसाद विरचित एक प्रसिद्ध हिंदी महाकाव्य।

कामित (सं.) [वि.] अभिलषित; इच्छित।

कामिनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह सुंदर स्त्री जिसकी कामना की जाए 2. प्रेम करने वाली स्त्री 3. स्नेहमयी स्त्री 4. ऐसी स्त्री जिसके मन में कामवासना हो; कामवती 5. रसिक व कामी नारी।

कामिल (अ.) [वि.] 1. पूरा; पूर्ण; कुल; सब; समूचा; संपूर्ण 2. पूर्ण ज्ञाता; दक्ष; निपुण; होशियार।

कामी (सं.) [वि.] 1. जिसके मन में कोई कामना हो 2. कामना-युक्त 3. इच्छुक; अभिलाषी 4. कामासक्त; विषयी। [सं-पु.] 1. विष्णु का एक नाम 2. चंद्रमा 3. सारस 4. चकवा पक्षी।

कामुक (सं.) [वि.] 1. कामना या इच्छा करने वाला 2. चाहने वाला 3. कामी; विषयी 4. लंपट। [सं-पु.] 1. अशोक वृक्ष 2. माधवीलता 3. गौरैया पक्षी।

कामुकता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कामुक होने की अवस्था या भाव 2. कामासक्ति 3. लंपटता 4. विषयासक्ति।

कामेच्छा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. काम या रति की प्रबल इच्छा 2. मैथुन या सहवास की इच्छा।

कामोद्दीपक (सं.) [वि.] 1. सहवास की इच्छा बढ़ाने वाला 2. कामभावना को तीव्र करने वाला; कामवर्धक।

कामोद्दीपन (सं.) [सं-पु.] काम-वासना को तीव्र या उद्दीप्त करना।

कामोद्दीप्त (सं.) [वि.] जिसकी वासना की उत्तेजना भड़काई गई हो।

कामोन्मत्त (सं.) [वि.] 1. कामपीड़ित 2. कामोन्माद से ग्रस्त 3. विषय-भोग में उन्मत्त।

कामोन्माद (सं.) [सं-पु.] वह अवस्था जिसमें रति की प्रबल इच्छा हो; कामातुर; कामोन्मत; कामोत्तेजित।

काम्य (सं.) [वि.] 1. जिसकी कामना की जाए; जो कामना के योग्य हो 2. जो इच्छा के अनुकूल हो 3. कमनीय; सुंदर 4. जो कामना की सिद्धि के लिए हो।

काम्या (सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रयोजन; उद्देश्य 2. कामना; इच्छा।

काम्येष्टि (सं.) [सं-स्त्री.] वह यज्ञ जिसे अपनी इच्छानुसार फल प्राप्ति के लिए किया जाता है।

काय (सं.) [सं-पु.] 1. शरीर; देह; काया; जिस्म 2. बाहरी ढाँचा; बाह्य रूप 3. संघ; समुदाय 4. वृक्ष का तना 5. मूल धन।

कायक (सं.) [वि.] 1. शरीर संबंधी 2. कायिक।

काय-चिकित्सा (सं.) [सं-पु.] आयुर्वेद में उल्लिखित चिकित्सा के आठ प्रकारों में से तीसरा जिसमें सर्वांगव्यापी रोगों का विवेचन और उनकी चिकित्सा का विधान है।

कायज़ा (अ.) [सं-पु.] 1. घोड़े की लगाम में बँधी हुई वह डोरी जो दुम में फँसाई जाती है 2. डोरी आदि का फंदा जिसे कहीं भी फँसाया जा सकता है।

कायदा (अ.) [सं-पु.] 1. तौर-तरीका; ढंग; रीति-रिवाज; दस्तूर; चाल 2. नियम; कानून; विधि; विधान 3. क्रम; व्यवस्था 4. सलीका; करीना।

कायदादाँ (अ.+फ़ा.) [वि.] कायदा या नियम जानने वाला।

कायदे-आज़म (अ.) [वि.] 1. महान नेता 2. बड़ा नेता।

क़ायदे-आज़म (अ.) [वि.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कायदे-आज़म)।

कायनात (अ.) [सं-स्त्री.] 1. सृष्टि 2. जगत; ब्रह्मांड; संसार; विश्व।

कायफल (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रसिद्ध वृक्ष जिसकी मटमैली भूरी छाल औषधि बनाने के काम आती है 2. एक उत्तेजक, संकोचक, कृमिनाशक, छाती में जमे हुए वात व कफ को दूर करने वाली तथा अतिसार एवं नपुंसकता को दूर करने वाली औषधि; (बाक्स मर्टल)।

कायम (अ.) [वि.] 1. नियत स्थान पर ठहरा हुआ; स्थिर 2. निश्चित; मुकर्रर; निर्धारित 3. स्थायी; दृढ़; बरकरार 4. स्थापित; प्रचलित; निर्मित 5. यथावत।

कायम मिज़ाज (अ.) [वि.] जिसका मिज़ाज शांत हो; शांत स्वभाववाला; जिसके स्वभाव में चंचलता का अभाव हो; स्थिरचित्त।

कायम मुकाम (अ.) [वि.] किसी के स्थान पर अस्थायी रूप से काम करने वाला; स्थानापन्न।

कायर (सं.) [वि.] 1. डरपोक; भीरु 2. जिसमें उत्साह, बल या साहस का अभाव हो 3. सामर्थ्य होने पर भी किसी बड़े काम से पीछे हटने वाला।

कायरता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कायर होने की अवस्था या भाव; भीरुपन 2. साहसहीनता।

कायल (अ.) [वि.] 1. तर्क-वितर्क से सिद्ध बात को मान लेने वाला; कबूल करने वाला 2. किसी सिद्धांत या मत को मानने वाला 3. मुरीद; प्रशंसक 4. उत्तर देने में असमर्थ होने पर चुप हो जाने वाला।

कायस्थ (सं.) [सं-पु.] 1. एक हिंदू जाति, जो ख़ुद को चित्रगुप्त का वंशज मानती है 2. उक्त जाति का व्यक्ति। [वि.] शरीर अथवा काया में रहने वाला।

कायांतरण (सं.) [सं-पु.] 1. रूपांतरण 2. रचनापरिवर्तन 3. देहपरिवर्तन।

काया (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी जीव का शरीर; तन; देह; (बॉडी) 2. किसी वस्तु का बाह्य रूप 3. वृक्ष का तना 4. संघ; समुदाय 5. विधानानुसार निर्मित संस्था।

कायाकल्प (सं.) [सं-पु.] 1. शरीर का पूर्णरूप से निरोगी हो जाना 2. वैद्यक में इस तरह से प्रयोग की गई विधि या औषधि जिससे वृद्ध शरीर में भी नई शक्ति या नया यौवन आ जाता है 3. व्यर्थ पड़ी वस्तु का मरम्मत के बाद कार्य योग्य हो जाना।

कायापलट [सं-पु.] 1. आकार-प्रकार में होने वाला बड़ा परिवर्तन; रूपांतरण 2. किसी व्यक्ति या संस्था की संरचना में होने वाला मूलभूत परिवर्तन; कायाकल्प।

कायिक (सं.) [वि.] 1. काया या शरीर में होने वाला; शरीर से संबंधित 2. शरीर के द्वारा किया जाने वाला 3. शारीरिक; दैहिक।

कायिका (सं.) [सं-स्त्री.] मूलधन अर्थात काय पर मिलने वाला सूद या ब्याज।

कायिकी (सं.) [सं-स्त्री.] जीव विज्ञान की एक शाखा जिसमें जीवों के विभिन्न अंगों की आंतरिक क्रियाओं एवं उनके परिणामों का अध्ययन किया जाता है; (फ़िज़ियोलॉजी)।

कारंड (सं.) [सं-पु.] हंस या बत्तख की जाति का एक पक्षी।

कारंधमी (सं.) [सं-पु.] रासायनिक क्रिया द्वारा ताँबे, लोहे आदि को सोने में परिवर्तित करने वाला व्यक्ति; कीमियागर; कीमियासाज़।

कार1 [परप्रत्य.] फ़ारसी, संस्कृत आदि भाषाओं के शब्दों के अंत में जुड़ने वाला प्रत्यय जो 'करने वाला' अर्थ देता है, जैसे- पेशकार, कशीदाकार, काश्तकार, ग्रंथकार, चित्रकार आदि।

कार2 (इं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार का आरामदायक सवारी वाहन 2. मोटरगाड़ी।

कारआमद (फ़ा.) [वि.] काम में आने वाला; उपयोगी; उपयुक्त।

कारक (सं.) [सं-पु.] संज्ञा या सर्वनाम की वह स्थिति जो वाक्य में क्रिया के साथ उसके संबंध को स्पष्ट करती है। [वि.] करने वाला (प्रायः समासांत में प्रयुक्त)।

कारकीय (सं.) [वि.] कारक संबंधी; कारक का।

कारकुन (फ़ा.) [सं-पु.] 1. किसी के प्रतिनिधि के रूप में काम करने वाला व्यक्ति; अभिकर्ता; गुमाश्ता; (एजेंट) 2. किसी की संपत्ति का प्रबंध करने वाला अधिकारी; प्रबंधकर्ता; इंतज़ामकार; कारिंदा 3. कार्यकर्ता; काम करने वाला 4. ओहदेदार; कर्मचारी।

कारख़ाना (फ़ा.) [सं-पु.] 1. वह स्थान या इमारत जहाँ व्यापार के लिए किसी वस्तु का उत्पादन होता हो; (फ़ैक्टरी) 2. कारबार; व्यवसाय 3. कार्यालय 4. मामला; घटना; दृश्य 5. क्रिया।

कारख़ानादार (फ़ा.) [सं-पु.] कारख़ाने का मालिक।

कारगर (फ़ा.) [वि.] 1. ठीक ढंग से काम करके अपना गुण, प्रभाव या परिणाम दिखाने वाला; प्रभावकारी; प्रभावी; गुणकारी; परिणामकारी; असरअंदाज़ 2. लाभदायक; उपयोगी; फलप्रद।

कारगाह (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कारख़ाना 2. करघा 3. जुलाहों का बैठकर कपड़ा बुनने का स्थान।

कारगुज़ार (फ़ा.) [वि.] 1. अपने कर्तव्य का अच्छी तरह पालन करने वाला; कार्यकुशल; काम में चतुर; कार्यपटु 2. दुष्कर एवं दुःसाध्य कार्य को भी संपन्न करने वाला; कार्यक्षम।

कारगुज़ारी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कर्तव्यपालन 2. किसी कठिन कार्य को भी मुस्तैदी और होशियारी से पूरा करना; कार्यपटुता; कर्मठता; कर्मण्यता; कार्य-कौशल 3. उक्त प्रकार से संपन्न कार्य 4. कारनामा 5. किसी महत्वपूर्ण कार्य का सरंजाम 6. किसी वांछित-अवांछित काम की ज़िम्मेदारी।

कारचोब (फ़ा.) [सं-पु.] 1. लकड़ी का ढाँचा जिसपर कपड़ा कसकर कशीदे, ज़रदोज़ी या गुलकारी का काम किया जाता है 2. उक्त प्रकार के चौखटे पर तैयार होने वाला काम 3. ज़रदोज़ी का काम करने वाला; ज़रदोज़।

कारचोबी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कशीदा; गुलकारी 2. ज़रदोज़ी 3. कशीदे का काम; कशीदाकारी। [वि.] ज़रदोज़ से संबंधित; ज़रदोज़ का।

कारटून (इं.) [सं-पु.] दे. कार्टून।

कारटूनिस्ट (इं.) [सं-पु.] 1. हास्य चित्र बनाने वाला; कारटून बनाने वाला 2. व्यंग्यचित्रकार।

कारण (सं.) [सं-पु.] 1. वजह; सबब; हेतु 2. काम; कार्य 3. साधन 4. मूल तत्व 5. प्रमाण।

कारणमाला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कारणों अथवा हेतुओं की शृंखला 2. (साहित्य) एक अर्थालंकार जिसमें किसी कारण से उत्पन्न कार्य का स्वयं कारण की भूमिका में आने का वर्णन होता है।

कारणवश (सं.) [क्रि.वि.] वजह; कारण से।

कारणिक (सं.) [सं-पु.] 1. जो किसी विषय पर विचार करता हो; विचारक 2. जो किसी विषय की परीक्षा करता हो; परीक्षक 3. विधिक क्षेत्र में प्रार्थनापत्र या आवेदन आदि लिखने वाला लिपिक; अर्ज़ीनवीस; मुहर्रिर। [वि.] 1. कारण से संबंधित; कारण का 2. कारण के रूप में घटित होने वाला।

कारणिकता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कारण होने की अवस्था या भाव 2. कारण-कार्य संबंध (कॉजेलिटी) 3. कारणभूतता; हेतुता 4. उपलक्ष्यता; निमित्तता; उद्देश्यता।

कारतूस (पुर्त.) [सं-पु.] बंदूक, रिवाल्वर या तमंचे आदि में रखकर चलाई जाने वाली धातु, दफ़्ती आदि की बनी हुई खोली जिसमें बारूद एवं धातु की गोली भरी होती है; (कारट्रिज)।

कारनामा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. अदभुत कार्य; किया हुआ कोई बड़ा और अच्छा कार्य; यादगार काम 2. किसी के किए हुए अच्छे कार्यों का उल्लेख अथवा लिखित विवरण।

कारनिस (इं.) [सं-स्त्री.] दीवार के ऊपरी भाग में सुंदरता के लिए बाहर की ओर निकाला हुआ थोड़ा सा अंश; दीवार का नुकीला कोना; कँगनी; कगार।

कारपेंटर (इं.) [सं-पु.] 1. बढ़ई; तक्षक; सुतार (सुथार); वर्धकि 2. तिरखान 3. लकड़ी का काम करने वाला व्यक्ति।

कारपोरल (इं.) [सं-पु.] फ़ौज का एक छोटा अधिकारी।

कारबन (इं.) [सं-पु.] दे. कार्बन।

कारबाइन (इं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की बंदूक।

कारबार (फ़ा.) [सं-पु.] कामकाज; रोज़गार; पेशा; धंधा; व्यापार; व्यवसाय।

कारबारी (फ़ा.) [वि.] 1. कामकाजी; व्यवसायी; व्यापारी; रोज़गारी 2. किसी धंधे या पेशे में लगा हुआ; जो कुछ काम करता हो; काम-धंधा करने वाला; कारिंदा।

कारबोनिक (इं.) [वि.] कार्बन का; कार्बन संबंधी।

कारवाँ (फ़ा.) [सं-पु.] 1. वाहनों या व्यक्तियों का समूह जो किसी यात्रा या प्रवास पर हो 2. चलता हुआ काफ़िला; देशांतर जाने वाले यात्रियों या व्यापारियों का दल।

कारसाज़ (फ़ा.) [वि.] 1. काम बनाने अथवा सवाँरने वाला 2. युक्तिपूर्वक काम करने वाला।

कारसाज़ी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. काम बनाना या सँवारना; सलीके से काम संपन्न करना 2. छिपी हुई कार्रवाई; चालबाज़ी; कारस्तानी।

कारसेवक (सं.) [सं-पु.] किसी संस्था आदि के लिए बिना पारिश्रमिक लिए काम करने वाला व्यक्ति; स्वयंसेवक; कार्यकर्ता; (वालंटियर)।

कारसेवा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी धार्मिक या सामाजिक कार्य में किया जाने वाला निशुल्क शारीरिक श्रम 2. समाजसेवा।

कारस्तानी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] दे. कारिस्तानी।

कारा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. बंधन; कैद 2. कैदख़ाना; कारागार; कारागृह।

कारागार (सं.) [सं-पु.] जेल; बंदीगृह; कारागृह; कैदख़ाना।

कारागृह (सं.) [सं-पु.] वह स्थान जहाँ अपराधियों को सजा की अवधि समाप्त होने तक रखा जाता है; बंदीगृह; जेलख़ाना; कारागार।

कारादंड (सं.) [सं-पु.] कारागार में बंद रखने के रूप में दी गई सजा; कारावास की सजा।

काराबंदी (सं.) [सं-पु.] जो कैद में हो; कैदी; बंदी; कारावासी।

कारामद (फ़ा.) [वि.] 1. उपयोगी 2. उपादेय; अर्थकर 3. जो काम का हो।

कारावास (सं.) [सं-पु.] 1. कारागार में रहने की अवस्था, क्रिया अथवा भाव 2. कैद या बंदी होने की स्थिति; (इंप्रिज़नमेंट)।

कारिंदा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. कर्मचारी; कारकुन; गुमाश्ता; सेवक; नौकर 2. वह व्यक्ति जो किसी के प्रतिनिधि के रूप में उसका काम करता हो।

कारिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी सूत्र की श्लोकबद्ध व्याख्या 2. नाचने वाली स्त्री; नर्तकी 3. व्यवसाय; व्यापार 4. (संगीत) एक प्रकार का राग।

कारिणी (सं.) [परप्रत्य.] करने वाली, जैसे- कार्यकारिणी।

कारिता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सूद की वह दर जो उचित या विधिक दर से अधिक हो 2. ब्याज की वह दर जिसे ऋणी ने देना स्वीकार किया हो।

कारिस्तानी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. किसी के साथ छलपूर्वक चली गई चाल; चालबाज़ी 2. कार्रवाई 3. अनुचित काम।

कारी (सं.) [परप्रत्य.] शब्दों के अंत में जुड़ने वाला प्रत्यय जो कार्य करने वाले का अर्थ देता है, जैसे- आज्ञाकारी, विध्वंसकारी आदि।

कारीगर (फ़ा.) [सं-पु.] 1. लकड़ी, पत्थर, धातु आदि से विभिन्न वस्तुओं का निर्माता या किसी मशीनरी के मरम्मत कार्य में निपुण व्यक्ति; शिल्पकार; दस्तकार; शिल्पी 2. दक्ष; कुशल; होशियार 3. हुनरमंद; गुणवान।

कारीगरी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कारीगर का पेशा; दस्तकारी; शिल्पकर्म 2. बारीक एवं सुंदर काम करने की कला; निर्माण-कला 3. हुनरमंदी; दक्षता; होशियारी 4. मनोहर रचना।

कारु (सं.) [सं-पु.] 1. शिल्पकार; शिल्पी; कारीगर; दस्तकार 2. विश्वकर्मा 3. शिल्प। [वि.] 1. निर्माण करने वाला; बनाने वाला।

कारुणिक (सं.) [वि.] 1. करुणा से भरा हुआ; करुणा युक्त 2. जिसमें करुणा हो; जिसमें दया हो; दयावान; दयाशील 3. जिसे देखकर मन में दया या करुणा उत्पन्न हो; करुणा उत्पन्न करने वाला।

कारुण्य (सं.) [सं-पु.] करुण होने की अवस्था या भाव; दया; करुणा।

कारूँ (अ.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जो धनवान के साथ-साथ कंजूस भी हो 2. मुसलमानी कथाओं में एक धनवान और कंजूस मिथकीय चरित्र जो हजरत मूसा का चचेरा भाई था।

कारूती (अ.) [सं-स्त्री.] हकीमों द्वारा बनाया जाने वाला एक प्रकार का मलहम।

कारूनी [सं-स्त्री.] घोड़ों की एक जाति।

कारूरा (अ.) [सं-पु.] 1. रोगी का पेशाब जो चिकित्सक को दिखाने के लिए शीशी में रखा जाता है 2. मूत्र; पेशाब 3. शत्रु पर फेंकी जाने वाली बारूद की कुप्पी।

कारोंछ [सं-स्त्री.] 1. कलौंछ 2. वह काला अंश जो धुएँ के जमने से बन जाता है; कालिख।

कारोनर (इं.) [सं-पु.] लाश का परीक्षण करने वाला अधिकारी।

कारोबार (फ़ा.) [सं-पु.] कामकाज; रोज़गार; पेशा; धंधा; व्यापार; व्यवसाय।

कारोबारी (फ़ा.) [वि.] 1. कामकाजी; व्यवसायी; व्यापारी; रोज़गारी 2. किसी धंधे या पेशे में लगा हुआ; जो कुछ काम करता हो; काम-धंधा करने वाला; कारिंदा।

कार्क (इं.) [सं-पु.] 1. बोतल, शीशी आदि की डाट; काग; ढक्कन 2. बलूत की जाति का एक पेड़।

कार्टून (इं.) [सं-पु.] 1. हास्य चित्र; व्यंग्य चित्र 2. किसी ऐतिहासिक पात्र या घटना अथवा समसामयिक घटना या व्यक्ति को हास्यजनक रूप में प्रस्तुत करने वाला चित्र या फ़िल्म 3. बच्चों को गुदगुदाने के लिए जीव-जंतुओं या मानव को हँसते-बोलते और विभिन्न करतबों के साथ प्रदर्शित करने वाला चित्र।

कार्टून पट्टी (इं.+हिं.) [सं-स्त्री.] एक पूरी कथा का बोध कराने वाली व्यंग्यात्मक या हास्यप्रद रेखाचित्रों की पट्टी।

कार्टेल (इं.) [सं-पु.] 1. उत्पादक-संघ 2. मूल्य-संघ 3. कैदियों को बदलने का इकरारनामा।

कार्ड (इं.) [सं-पु.] 1. दफ़्ती; गत्ता; मोटे कागज़ का टुकड़ा 2. आमंत्रण या निमंत्रण पत्र; सूचना पत्र 3. ताश का पत्ता।

कार्डियोग्राम (इं.) [सं-पु.] हृदयगति लेख।

कार्डियोलॉजिस्ट (इं.) [सं-पु.] हृदयरोग विशेषज्ञ; हृदय विशेषज्ञ।

कार्डियोलॉजी (इं.) [सं-स्त्री.] हृदयरोग विज्ञान।

कार्तयुगीन (सं.) [सं-पु.] सतयुग; कृतयुग। [वि.] कृतयुग से संबंध रखने वाला।

कार्तिक (सं.) [सं-पु.] 1. एक चंद्र मास जो क्वार और अगहन के बीच पड़ता है 2. वह संवत्सर जिसमें बृहस्पति कृत्तिका और रोहिणी नक्षत्र में हों।

कार्तिकी (सं.) [सं-स्त्री.] कार्तिक माह की पूर्णिमा।

कार्तिकेय (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) कृत्तिका नक्षत्र में उत्पन्न शिव के बड़े पुत्र जो युद्ध के देवता कहे जाते हैं 2. स्कंद; षडानन; मयूरकेतु; क्रौंचारि।

कार्तूस (फ़ा.) [सं-पु.] बंदूक की गोली; कारतूस।

कार्दमिक (सं.) [वि.] 1. कीचड़ से संबंधित 2. कीचड़ से सना हुआ।

कार्नफ़्लोर (इं.) [सं-पु.] मकई का आटा जिसे प्रायः चटनी, रस आदि को गाढ़ा करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

कार्नर (इं.) [सं-पु.] 1. कोना; कोण 2. गुप्त स्थान 3. मोड़ 4. नुक्कड़।

कार्पण्य (सं.) [सं-पु.] 1. कृपण होने की अवस्था या भाव 2. कंजूसी; कंजूसपन; तंगदिली।

कार्पास (सं.) [सं-पु.] सूती कपड़ा। [वि.] कपास का; कपास संबंधी।

कार्पेट (इं.) [सं-स्त्री.] बड़ा कालीन; बिछावन का मोटा डिज़ाइनदार कपड़ा; दरी; जाजिम; गलीचा।

कार्बन (इं.) [सं-पु.] 1. भौतिक जगत का एक मूलभूत तत्व; कारबन 2. यह कार्बोनिक एसिड, कोयला, हीरा आदि में होता है 3. प्रांगार; अंगारक।

कार्बन डेटिंग (इं.) [सं-पु.] किसी मृत जैविक पदार्थ में विद्यमान कार्बन की मात्रा के आधार पर उस वस्तु का काल निर्धारण करना।

कार्बनिक (इं.) [वि.] अंगारसंबंधी; कार्बनसंबंधी; प्रांगारिक।

कार्बोरेटर (इं.) [सं-पु.] 1. अंतःदहन-इंजिन का एक भाग 2. मोटर गाड़ियों का एक उपकरण।

कार्बोहाइड्रेट (इं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का कार्बनिक यौगिक 2. भोजन के लिए ऊर्जा का आधार तत्व।

कार्म (सं.) [वि.] कर्मशील; परिश्रमी; मेहनती।

कार्मिक (सं.) [सं-पु.] 1. काम करने वाला व्यक्ति 2. वह वस्त्र जिसकी बुनावट में ही शंख, चक्र, स्वस्तिक आदि के चिह्न बनाए गए हों। [वि.] जो काम या कर्म में लगा हुआ हो।

कार्मुक (सं.) [सं-पु.] 1. धनुष 2. किसी वृत्ताकार परिधि का कोई भाग; चाप 3. रुई धुनने का उपकरण; धुनकी 4. धनुराशि 5. योगसाधना में एक प्रकार का आसन 6. बाँस 7. एक प्रकार का शहद। [वि.] 1. लकड़ी या बाँस से निर्मित 2. काम करने योग्य; भलीभाँति काम करने वाला; कर्मशील।

कार्य (सं.) [सं-पु.] 1. वह जो कुछ किया जा चुका है या किया जाना है; काम; कर्म 2. जीविकोपार्जन आदि के उद्देश्य से किया जाने वाला काम 3. किसी उद्देश्य विशेष की पूर्ति के लिए किया जाने वाला प्रयत्न 4. परिणाम 5. कर्तव्य।

कार्यकर्ता (सं.) [सं-पु.] 1. किसी संस्था, सभा आदि का प्रबंध अधिकारी 2. किसी कार्य में विशेष रूप से अग्रसर होकर काम करने वाला कर्मचारी।

कार्यकलाप (सं.) [सं-पु.] 1. सक्रियता 2. बहुत से कार्य।

कार्यकारिणी (सं.) [सं-स्त्री.] किसी संस्था आदि का काम चलाने वाली या काम करने वाली समिति।

कार्यकारी (सं.) [वि.] किसी पदाधिकारी के अवकाश के अवसर पर उसके स्थान पर अस्थायी रूप से काम करने के लिए नियुक्त (व्यक्ति)।

कार्यकाल (सं.) [सं-पु.] 1. काम करने का समय 2. किसी पद पर रहने की नियत अवधि; पदावधि 3. कार्य का उपयुक्त समय; सुअवसर।

कार्यकुशल (सं.) [वि.] कार्य को करने में दक्ष; कुशल; चतुर; काम करने में होशियार; कार्य-निपुण।

कार्यकुशलता (सं.) [सं-स्त्री.] कार्य करने की निपुणता।

कार्यक्रम (सं.) [सं-पु.] 1. संपन्न होने वाले कार्यों की क्रमिक सूची 2. उक्त सूची के अनुरूप संपन्न कार्यक्रम 3. मनोविनोद के लिए आयोजित गतिविधियाँ।

कार्यक्षम (सं.) [वि.] 1. जो किसी निर्दिष्ट कार्य को करने में सक्षम हो 2. जो किसी उत्तरदायित्व के निर्वहन के योग्य एवं समर्थ हो।

कार्यक्षमता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कार्यक्षम होने की अवस्था, गुण या भाव 2. किसी कार्य को ठीक ढंग से संपन्न करने की योग्यता या सामर्थ्य 3. कार्यकुशलता।

कार्यक्षेत्र (सं.) [सं-पु.] 1. कार्य करने की अधिकार सीमा 2. (पत्रकारिता) किसी समाचारदाता के लिए निर्धारित कार्यस्थल जहाँ वह समाचार एकत्र करने के लिए नियमित रूप से जाता है।

कार्यदिवस (सं.) [सं-पु.] 1. काम का दिन 2. दिन का वह भाग जिसमें कर्मियों को कार्य करना पड़ता है; (वर्किंग डे)।

कार्यनीति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी कार्य के संपादन के संबंध में अपनाई गई नीति; (पॉलिसी) 2. योजना; युक्ति; (प्लान)।

कार्यपद्धति (सं.) [सं-स्त्री.] कार्य करने का सलीका या ढंग; कार्य प्रणाली।

कार्यपालिका (सं.) [सं-स्त्री.] शासन का वह अंग जिसका संबंध विधि और राजकीय आदेशों को कार्यान्वित करने से है; (एक्ज़क्यूटिव)।

कार्यप्रणाली (सं.) [सं-स्त्री.] किसी कार्य के संपादन का स्वीकृत ढंग या प्रणाली; कार्यपद्धति; कार्यविधि।

कार्यभार (सं.) [सं-पु.] 1. काम का बोझ 2. किसी कार्य या पद का उत्तरदायित्व 3. प्रभार; (चार्ज)।

कार्यभारी (सं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जिसपर किसी कार्य आदि के निर्वहन का उत्तरदायित्व हो 2. प्रभारी 3. भारसाधक; (इनचार्ज)।

कार्यवाह (सं.) [वि.] 1. कार्यवाहक 2. स्थानापन्न; कार्यकारी।

कार्यवाहक (सं.) [वि.] किसी पदाधिकारी के अवकाश आदि पर होने की स्थिति में उसके स्थान पर अस्थायी रूप से काम करने वाला; कार्यकारी।

कार्यवाही (सं.) [सं-स्त्री.] कार्य संपादन में की जाने वाली आवश्यक क्रियाएँ।

कार्यविधि (सं.) [सं-स्त्री.] किसी काम को करने का तरीका; कार्यप्रणाली; कार्यपद्धति; (प्रोसिज़र)।

कार्यविवरण (सं.) [सं-पु.] 1. किसी सभा या समिति द्वारा निष्पादित कार्यों का विवरण या लेखा; (प्रोसीडिंग) 2. बैठक विवरण 3. कार्रवाई।

कार्यवृत्त (सं.) [सं-पु.] किसी बैठक या अधिवेशन में जो कुछ हुआ हो उसका विवरण; (मिनट्स)।

कार्यवृत्त पंजी (सं.) [सं-स्त्री.] वह रजिस्टर या पंजी जिसमें किसी सभा आदि में हुई कार्रवाई का संक्षिप्त विवरण अर्थात कार्यवृत्त लिखा जाता है; विवरणपंजी; (मिनट्स बुक)।

कार्यशाला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी यंत्र आदि की मरम्मत करने वाला संस्थान या स्थान; कारख़ाना; शिल्पशाला 2. अकादमिक गतिविधियों को व्यवहारिक रूप से संपन्न करने हेतु बुलाई गई संगोष्ठी; (वर्कशॉप)।

कार्यशैली (सं.) [सं-स्त्री.] काम करने की शैली; काम करने का ढंग या तरीका।

कार्यसमय (सं.) [सं-पु.] 1. किसी कार्यालय या विद्यालय आदि के खुले रहने हेतु निर्धारित अवधि 2. वह अवधि जिसमें कोई कर्मचारी या अधिकारी नियोक्ता द्वारा निर्देशित कार्यों को करता है; (वर्किंग आवर्स)।

कार्यसमिति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी विशिष्ट कार्य के निर्वहन या संचालन हेतु बनाई गई समिति 2. किसी संस्था या सभा की प्रबंधकारिणी या कार्यकारिणी समिति; (वर्किंग कमेटी)।

कार्यसूची (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी सभा, समिति आदि की बैठक के लिए उन विषयों की सूची जिन पर चर्चा या निर्णय करना हो 2. किए जाने वाले कार्यों की सूची 3. विचारणीय विषयसूची; (एजेंडा)।

कार्याक्षम (सं.) [वि.] जिसमें किसी कार्य को करने की शक्ति या योग्यता का अभाव हो।

कार्याधिकारी (सं.) [सं-पु.] किसी विशेष कार्य के निर्वहन एवं संचालन के लिए नियुक्त अधिकारी; (फ़ंक्शनरी)।

कार्याध्यक्ष (सं.) [सं-पु.] 1. किसी संस्था का प्रधान अधिकारी जो प्रशासनिक कार्यों की देख-रेख करता है; प्रबंधकर्ता 2. कार्यान्वयक 3. सभापति 4. विभागाध्यक्ष।

कार्यानुक्रम (सं.) [सं-पु.] किसी कार्य का क्रमबद्ध ब्योरा।

कार्यानुसार (सं.) [वि.] कार्य के अनुसार या हिसाब से।

कार्यान्वयन (सं.) [सं-पु.] 1. कार्य के रूप में परिणत करने की क्रिया 2. किसी आदेश या प्रस्ताव आदि का कार्यरूप में परिणत किया जाना अथवा उन पर अमल किया जाना।

कार्यान्वित (सं.) [वि.] 1. कार्य रूप में लाया हुआ; क्रियान्वित 2. जो कार्य रूप में परिणत किया जा चुका हो; निष्पादित; निर्वाहित।

कार्यार्थी (सं.) [वि.] 1. कार्य की सिद्धि चाहने वाला 2. नियुक्ति के लिए आवेदन करने वाला; निवेदन करने वाला 3. मुकदमें की पैरवी करने वाला।

कार्यालय (सं.) [सं-पु.] वह स्थान या भवन जहाँ प्रशासनिक, व्यावसायिक आदि कार्य होते हैं; दफ़्तर।

कार्यालयाध्यक्ष (सं.) [सं-पु.] कार्यालय का मुख्य अधिकारी।

कार्यावधि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कार्यकाल 2. पदावधि।

कार्यावली (सं.) [सं-स्त्री.] किसी सभा या समिति के किसी अधिवेशन में विचारार्थ रखे जाने वाले कार्यों की सूची; कार्यसूची; (एजेंडा)।

कार्यावस्था (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कार्य करने की स्थिति 2. (नाट्यशास्त्र) नायक द्वारा आरंभ किए गए कार्य की पाँच अवस्थाओं में प्रत्येक- आरंभ, यत्न, प्राप्त्याशा, नियताप्ति और फलागम।

कार्येक्षण (सं.) [सं-पु.] कार्य का निरीक्षण; काम की निगरानी या देखभाल।

कार्रवाई (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कृत्य; काम; करतूत 2. कर्मण्यता; कार्यतत्परता 3. चाल; गुप्त प्रयत्न या गुप्त हरकत 4. किसी घटना या किसी व्यक्ति की हरकत पर आधिकारिक तौर पर कदम उठाना; विधिक प्रक्रिया।

कार्षापण (सं.) [सं-पु.] प्राचीन भारत में प्रचलित एक प्रकार का सिक्का जो ताँबे, सोने या चाँदी से बनता था।

कार्ष्ण (सं.) [वि.] 1. कृष्ण का; कृष्ण संबंधी 2. कृष्णमृग संबंधी 3. काला।

काल (सं.) [सं-पु.] 1. दो घटनाओं के मध्य का अवकाश जिसकी गणना वर्ष, मास, दिन, घंटा आदि के द्वारा की जाती है; समय; अवधि; (टाइम) 2. अवसर 3. अंतसमय 4. मृत्यु 5. यमराज 6. महाकाल; शिव 7. शनि। [मु.] -के गाल में जाना (समाना) : मर जाना।

काल-कवलित (सं.) [वि.] जो काल का ग्रास बन चुका हो; मृत; मरा हुआ।

कालका (सं.) [सं-स्त्री.] (पुराण) दक्ष प्रजापति की एक कन्या जिसका विवाह कश्यप से हुआ था।

कालकूट (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) समुद्र मंथन के समय निकला हुआ विष जिसका शिव ने पान किया था 2. हलाहल; विष 3. विषाक्त जड़वाला सींगिया जाति का एक पौधा 4. उत्तर भारत का एक पर्वत 5. उक्त पर्वत के समीपवर्ती क्षेत्र जिसमें वर्तमान में देहरादून एवं कालसी आदि क्षेत्र आते हैं।

कालकोठरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. संगीन अपराधियों को रखने के लिए कारावास में बनी बहुत छोटी और अँधेरी कोठरी 2. {ला-अ.} बहुत छोटा और अँधेरा कमरा।

कालक्रम (सं.) [सं-पु.] 1. काल या समय की गति 2. घटनाओं, तथ्यों आदि का क्रम; (क्रोनोलॉजी)।

कालक्रमिक (सं.) [वि.] जो कालक्रम के अनुसार हो; कालक्रम संबंधी।

कालक्षेप (सं.) [सं-पु.] काल या समय बिताना; दिन काटना या गुज़ारना।

कालखंड (सं.) [सं-पु.] समय का कोई अंश अथवा भाग; अवधि।

कालगति (सं.) [सं-स्त्री.] समय का उलटफेर; कालचक्र; भाग्य चक्र।

कालचक्र (सं.) [सं-पु.] 1. समय का बराबर पलटते या बदलते रहना जो एक पहिए के घूमने के समान है 2. समय का फेर; जीवन का उतार-चढ़ाव 3. युग।

कालजयी (सं.) [वि.] 1. शाश्वत 2. जो काल को जीत चुका हो 3. जो काल की सीमा में बद्ध न हो 4. जो सदैव प्रासंगिक हो।

कालज्ञ (सं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जिसे भूत, वर्तमान एवं भविष्य तीनों काल का ज्ञान हों; ज्योतिषी 2. वह व्यक्ति जो समय की गति, स्थिति आदि ठीक तरह से पहचानता हो; समय विज्ञानी 3. मुरगा।

कालज्ञान (सं.) [सं-पु.] 1. काल की गति, स्थिति आदि की जानकारी और उसकी पहचान 2. अनुकूल-प्रतिकूल समय की पहचान।

कालदोष (सं.) [सं-पु.] 1. तथ्यों या घटनाओं को सही कालक्रम में न रखने का दोष 2. किसी तथ्य या घटना को उसके वास्तविक समय से पूर्व या पश्चात रखने से उत्पन्न दोष; कालदूषण; कालभ्रम।

काल-निरपेक्ष (सं.) [वि.] जो काल से परे हो।

कालपुरुष (सं.) [सं-पु.] 1. ईश्वर का विराट रूप 2. कालरूप ईश्वर; कालदेवता; काल 3. आकाश का एक नक्षत्र मंडल।

काल-बंजर (सं.) [सं-पु.] 1. वह भूमि जिसपर लंबे समय से कृषि न की गई हो 2. उक्त कारण से जिसपर सहजता से कृषि नहीं की जा सकती हो।

कालबेल (इं.) [सं-पु.] 1. घंटी 2. बुलावे की घंटी।

काल-यापन (सं.) [सं-पु.] 1. समय व्यतीत करना; समय गुजारना; दिन काटना 2. जान-बूझ कर किसी कार्य के संपादन में विलंब करना।

कालरात्रि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अँधेरी एवं भयावह रात 2. प्रलय की रात 3. मृत्यु की रात 4. दीपावली की रात 5. दुर्गा का एक नाम 6. यमराज की बहन।

कालवाची (सं.) [वि.] 1. जिससे समय का बोध हो 2. समय बताने वाला; समय का ज्ञान कराने वाला; समय का प्रबोधक।

कालसर्प (सं.) [सं-पु.] 1. अत्यधिक ज़हरीला साँप जिसके काटने से प्राणी की तुरंत मृत्यु हो जाती है 2. {ला-अ.} ऐसा व्यक्ति जो अपने विरोधियों को बहुत हानि पहुँचा सकता है।

कालांतर (सं.) [सं-पु.] 1. उल्लिखित समय के बाद का समय; कुछ समय के उपरांत 2. अंतराल 3. अन्य काल; दूसरा समय।

कालांतरित (सं.) [वि.] 1. पुराना 2. वह वस्तु जिसकी उपयोग तिथि गुजर गई हो 3. बीता हुआ समय।

काला [वि.] 1. काले रंग का 2. काजल या कोयले के रंग का; स्याह; श्याम; कृष्ण 3. कलुषित 4. जिसमें प्रकाश न हो; प्रकाशरहित 5. कपटी 6. निंदनीय; अनुचित; बुरा 7. जिसपर कोई लांछन लगा हो 8. मलिन; अस्वच्छ 9. विकट; भीषण; अनर्थकारी। [मु.] -अक्षर भैंस बराबर : अनपढ़।

कालाअज़ार [सं-पु.] एक घातक ज्वर जो मक्खियों से फैलता है; काला-ज्वर।

कालाकलूटा [वि.] जिसका रंग बहुत अधिक काला हो; कुरूप।

कालाक्षर (सं.) [सं-पु.] 1. जो पढ़ने योग्य न हो 2. जो पढ़ा न जा सके; अपाठ्य।

कालाक्षरी (सं.) [वि.] वह व्यक्ति जो रहस्यपूर्ण, गुप्त या अस्पष्ट आलेख आदि पढ़कर अर्थ समझ लेता हो।

कालाग्नि (सं.) [सं-स्त्री.] प्रलयकाल की अग्नि; सृष्टि का नाश करने वाली अग्नि। [सं-पु.] 1. अग्नि के अधिष्ठाता देवता रुद्र; शिव 2. पंचमुखी रुद्राक्ष।

काला चोर [सं-पु.] 1. बहुत बड़ा और चालाक चोर; कुख्यात चोर 2. बहुत बुरा आदमी; निकृष्ट आदमी।

कालातिक्रमण (सं.) [सं-पु.] 1. निश्चित समय का बीतना 2. देर; विलंब 3. गुज़रा हुआ समय।

कालातीत (सं.) [वि.] 1. जो काल से परे हो; कालनिरपेक्ष 2. जिसका समय बीत गया हो 3. जिसकी अवधि बीत गई हो और जिसकी वैधता समाप्त हो गई हो।

कालात्मा (सं.) [सं-पु.] 1. परमात्मा 2. ईश्वर।

काला नमक [सं-पु.] एक प्रकार का पाचक नमक जो काले रंग का होता है।

काला नाग [सं-पु.] 1. विषधर; सर्प; काला साँप 2. {ला-अ.} दुष्ट व्यक्ति; कुटिल; धूर्त।

कालापन [सं-पु.] काला होने का भाव।

कालापानी [सं-पु.] 1. अंडमान नामक द्वीप जहाँ ब्रिटिश शासन काल में वे कैदी रखे जाते थे जिन्हें आजीवन कारावास का दंड मिला हो 2. देश-निकाले या द्वीपांतरवास का दंड।

कालाबाज़ार (हिं.‌+फ़ा.) [सं-पु.] वह व्यापार जिसमें अनुचित लाभ उठाने के उद्देश्य से वस्तुओं का क्रय-विक्रय उचित या निर्धारित मूल्य से अधिक मूल्य पर लुक-छिपकर किया जाता है।

काला भुजंग [वि.] बहुत अधिक काला; अत्यंत काला। [सं-पु.] काला नाग।

कालावधि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी कार्य के संपादन हेतु निर्धारित अवधि 2. दो घटनाओं के मध्य की अवधि 3. किसी एक नियत समय से दूसरे नियत समय तक के बीच का काल; समयकाल; (पीरियड)।

कालास्त्र (सं.) [सं-पु.] वह बाण जिसके प्रहार से प्राणी की मृत्यु निश्चित है; काल के मुख में पहुँचाने वाला बाण।

कालिंग (सं.) [सं-पु.] 1. कलिंग देश का राजा या प्रजा 2. साँप 3. हाथी। [वि.] कलिंग का; कलिंग से संबंधित।

कालिंदी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कलिंद पर्वत से निकली यमुना नदी 2. संगीत में ओड़व जाति की एक रागिनी। [सं-पु.] ओडिशा का एक वैष्णव संप्रदाय।

कालिक (सं.) [सं-पु.] 1. क्रौंच पक्षी 2. काला चंदन 3. नाक्षत्र मास। [वि.] 1. किसी विशिष्ट काल से संबंधित 2. नियत या उपयुक्त समय पर होने वाला; सामयिक 3. एक निश्चित अंतराल पर होने वाला; मौसमी; (पीरिऑडिक)।

कालिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (पुराण) दुर्गा का एक रूप; कंकालिनी; चंडकाली 2. चार वर्ष की बालिका जो कुमारी पूजन में दुर्गा रूप मानी जाती है 3. कालापन 4. कालारंग 5. काली स्याही 6. मेघ-माला 7. काली मिट्टी 8. आँख के बीच का काला भाग 9. मादा कौवा 10. एक छोटा काला पक्षी; श्यामा; कृष्णसारिका 11. जटामासी।

कालिख (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी चीज़ पर धुआँ आदि के जमने से निर्मित काला मैल; स्याही 2. {ला-अ.} बदनामी; कलंक।

कालिब (अ.) [सं-पु.] 1. किसी चीज़ का साँचा या ढाँचा 2. शरीर; देह।

कालिमा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. काला होने की अवस्था, गुण या भाव; कालापन 2. अँधेरा; अंधकार 3. {ला-अ.} लांछन; कलंक 4. कालिख।

कालिय (सं.) [सं-पु.] 1. यमुना नदी में रहने वाला एक भीषण साँप जिसका दमन कृष्ण ने किया था 2. कलियुग। [वि.] काल या समय संबंधी; सामयिक।

काली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. दुर्गा; चंडी; कालिका 2. हिमालय से निकली एक नदी का नाम 3. दस महाविद्याओं में से एक 4. अँधेरी रात।

काली ज़बान (हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] ऐसी ज़बान जिससे निकली हुई अमांगलिक या अशुभ बातें प्रायः सत्य घटित होती हैं।

कालीदह (सं.) [सं-पु.] लोकमान्यता के अनुसार वृंदावन में यमुना का एक कुंड जिसमें कालिया नाग रहता था।

कालीन (अ.) [सं-पु.] 1. ऊन, सूत आदि का बना हुआ मोटा बिछावन जिसमें बेलबूटे बने होते हैं 2. गलीचा।

काली मिर्च [सं-स्त्री.] एक लता जिसके तिक्त, काले, छोटे तथा गोल दाने व्यंजनों में मसाले की तरह उपयोग होते हैं; गोल मिर्च।

काली रात [सं-स्त्री.] 1. कृष्ण पक्ष की रात जिसमें चारों तरफ़ अँधेरा छाया रहता है 2. अंधरात्रि; तमिस्रा; अँधेरी रात 3. {ला-अ.} वह समय जब कोई घोर विपत्ति आ जाए।

काली सूची [सं-स्त्री.] 1. ऐसे लोगों की सूची जिन्होंने कुछ अवैधानिक, नियम विरुद्ध या निंदनीय कार्य किए हों 2. ऐसे लोगों की सूची जो किसी दृष्टि या विचार से परित्यक्त माने गए हों 3. अपराधी या दंडित व्यक्तियों की सूची; (ब्लैक लिस्ट)।

कालुष्य (सं.) [सं-पु.] 1. काले होने की अवस्था या भाव 2. कालिख 3. मलिनता 4. गंदगी।

कालौंछ [सं-स्त्री.] कालिख; कालिमा; कालापन।

काल्पनिक (सं.) [वि.] 1. कल्पना से संबंधित 2. जो हकीकत न हो; कल्पित; मनगढ़ंत।

कावा (फ़ा.) [सं-पु.] घोड़े का एक वृत्त अथवा दायरे में चक्कर देने की क्रिया या भाव।

काव्य (सं.) [सं-पु.] 1. (साहित्य) कविता; कवि-कर्म 2. ऐसी वाक्य रचना जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो जाए 3. पद्यात्मक और लयात्मक साहित्यिक रचना 4. सरस रचना 5. सर्जनात्मक ललित साहित्य 6. रोला छंद का एक भेद।

काव्यत्व (सं.) [सं-पु.] काव्यगुण।

काव्यदोष (सं.) [सं-पु.] 1. काव्यास्वाद के विघातक तत्व 2. वह दोष जिससे काव्य के रसास्वादन में बाधा उत्पन्न होती हो।

काव्यप्रयोजन (सं.) [सं-पु.] 1. काव्य का उद्देश्य 2. कविता लिखने के पीछे निहित उद्देश्य, जैसे- यशप्राप्ति, धनप्राप्ति, व्यवहार ज्ञान आदि।

काव्यमय (सं.) [वि.] काव्यगुण से परिपूर्ण।

काव्यरस (सं.) [सं-पु.] किसी काव्य से उत्पन्न रस; गीत एवं कविता से उत्पन्न ख़ुशी; काव्य को पढ़ने से मन में होने वाली रसानुभूति।

काव्यरसिक (सं.) [वि.] जो काव्य पढ़कर, सुनकर आनंद की अनुभूति करे; काव्य रस में तल्लीन रहने वाला; काव्य प्रेमी; काव्य अनुरागी।

काव्यशास्त्र (सं.) [सं-पु.] 1. वह शास्त्र जिसमें काव्यांगों का विवेचन किया गया है 2. ऐसा शास्त्र जिसमें भावपक्ष व कलापक्ष का विस्तृत विवेचन हो; काव्य की समीक्षा।

काव्यांग (सं.) [सं-पु.] काव्य के अंग, जैसे- रस, छंद, अलंकार, रीति, गुण आदि।

काव्याचार्य (सं.) [सं-पु.] काव्य का विद्वान; काव्य का ज्ञाता।

काव्यात्मक (सं.) [वि.] काव्यगुण से परिपूर्ण; काव्यगत।

काव्यादर्श (सं.) [सं-पु.] 1. काव्य का प्रतिमान 2. उत्कृष्ट रचना के मानदंड 3. दंडी द्वारा रचित एक ग्रंथ।

काव्यानुवाद (सं.) [सं-पु.] काव्य के रूप में किया जाने वाला अनुवाद।

काव्यास्वादन (सं.) [सं-पु.] 1. काव्यरस का आस्वाद करना; काव्य रस में मग्न होना 2. गीत एवं कविता का सस्वर आनंद लेना।

काश (फ़ा.) [अव्य.] 1. इच्छा आदि की सूचना के लिए प्रयुक्त शब्द, जैसे- 'यदि ऐसा करता या होता' का व्यंजक, 'ख़ुदा करता या करे' आदि 2. दुख और चाह व्यक्त करने वाला शब्द।

काशिक (सं.) [वि.] 1. प्रकाश से युक्त; प्रदीप्त; प्रकाशमान 2. प्रकाश करने वाला।

काशिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. काशीपुरी 2. काशी की भाषा 3. पाणिनीय व्याकरण पर लिखी गई एक वृत्ति।

काशी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उत्तर भारत की एक प्रसिद्ध धार्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी जिसे वाराणसी अथवा बनारस के नाम से भी जाना जाता है।

काशी फल (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का फल जिसकी तरकारी बनाई जाती है; कुम्हड़ा; कद्दू; सीताफल; कुष्मांड।

काश्त (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. खेती-बाड़ी का काम; कृषि; खेती 2. खेती की भूमि; जोत।

काश्तकार (फ़ा.) [सं-पु.] 1. किसान; खेतिहर; कृषक 2. वह जिसने ज़मींदार को लगान देकर उसकी ज़मीन पर खेती करने का अधिकार प्राप्त किया हो।

काश्तकारी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. किसानी; खेती-बाड़ी 2. वह ज़मीन जिसपर काश्तकार का हक हो 3. काश्तकार का उक्त अधिकार। [वि.] 1. काश्तकार का; काश्तकार संबंधी 2. खेती-बाड़ी से संबंधित।

काश्मीरा [सं-पु.] 1. एक प्रकार का ऊनी कपड़ा 2. एक प्रकार का अंगूर।

काश्मीरी [वि.] कश्मीर से संबंधित; कश्मीर का। [सं-स्त्री.] कश्मीर देश की भाषा।

काषाय (सं.) [वि.] 1. कसैला 2. गेरू के रंग में रँगा हुआ; गेरुआ।

काष्ठ (सं.) [सं-पु.] 1. लकड़ी; काठ 2. लट्ठा; शहतीर 3. ईंधन।

काष्ठवत (सं.) [वि.] काठ के समान; कड़ा।

काष्ठा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मार्ग; रास्ता; पथ 2. दिशा; ओर; तरफ़ 3. चरम सीमा या स्थिति; उत्कर्ष 4. ऊँचाई।

काष्ठागार (सं.) [सं-पु.] काठ का मकान; लकड़ी का घर।

काष्ठीय (सं.) [वि.] काठ या लकड़ी का बना हुआ; जिसका संबंध काठ से हो।

काष्ठोत्कीर्ण (सं.) [वि.] काठ पर खुदा हुआ।

काष्णर्य (सं.) [सं-पु.] कालापन।

कास (सं.) [सं-पु.] 1. खाँसी 2. छींक 3. सहिजन (शोभांजन) का पेड़।

कासनी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. एक पौधा 2. उक्त पौधे के बीज जो दवा के काम आते हैं। [वि.] कासनी के फूल के रंग जैसा (नीला)। [सं-पु.] 1. नीला रंग 2. नीले रंग का कबूतर।

कासा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. कटोरा; प्याला 2. भिक्षापात्र 3. भोजन; आहार 4. थाली; काँसे का पात्र।

कासार (सं.) [सं-पु.] तालाब; झील; सरोवर; ताल।

कासिद (अ.) [वि.] 1. इरादा या विचार करने वाला 2. सीधे रास्ते जाने वाला 3. अप्रचलित; खोटा। [सं-पु.] 1. हरकारा; पत्रवाहक; एलची; (पोस्टमैन) 2. दूत।

कासिम (अ.) [वि.] 1. बाँटने वाला या तकसीम करने वाला; वितरक 2. विभाजन करने वाला; विभाजक; विभाजनकर्ता।

कासिर (अ.) [वि.] 1. कसर रखने वाला; कमी करने वाला; जिसमें कोई कमी या कमज़ोरी हो; त्रुटि 2. अक्षम; असमर्थ; नाकाम।

कास्टिक (इं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का अम्ल 2. त्वचा को नुकसान पहुँचाने वाला अम्ल।

काह (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. तिनका 2. सूखी हुई घास; तृण।

काहकशाँ (फ़ा.) [सं-स्त्री.] कहकशाँ; आकाशगंगा; छायापथ।

काहिर (अ.) [सं-पुं.] विजयी; विजेता। [वि.] कहर ढाने वाला; प्रकोप करने वाला; बहुत बड़ा अत्याचारी; अत्यधिक क्रोध करने वाला।

काहिल (अ.) [वि.] कामचोर; आलसी; सुस्त; मंद।

काहिली (अ.) [सं-स्त्री.] 1. काहिल होने की अवस्था अथवा भाव; आलस्य; सुस्ती; ढिलाई 2. कामचोरी।

काही (फ़ा.) [वि.] 1. घास से निर्मित; घास का 2. हरी घास के रंग का; कालिमा लिए हुए हरा।

किंकर (सं.) [सं-पु.] 1. सेवक; नौकर; गुलाम; दास 2. राक्षसों की एक जाति या वर्ग 3. रोगियों की सेवा करने वाला अस्पताल का कर्मी; (वार्ड ब्वाय)।

किंकर्तव्यविमूढ़ (सं.) [वि.] 1. दुविधा भरी स्थिति; पसोपेश या असमंजस में पड़ना; भौचक या अवाक हो जाना 2. जो यह न समझ सके कि उसे अब क्या करना चाहिए।

किंकिणी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. करधनी; ज़ेवर 2. छोटी घंटी 3. एक प्रकार का खट्टा अंगूर 4. कंटाय का वृक्ष।

किंकिरात (सं.) [सं-पु.] 1. कामदेव 2. अशोक का पेड़ 3. तोता 4. कोयल 5. कटसरैया।

किंग (इं.) [सं-पु.] राजा; नरेश; नरपति; बादशाह।

किंग मेकर (इं.) [वि.] 1. राजा बनाने वाला 2. महत्वपूर्ण पद पर किसी को प्रतिष्ठित करने की क्षमता रखने वाला, जैसे- चाणक्य।

किंगरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सारंगी जैसा एक छोटा बाजा जिसे बजाकर जोगी भीख माँगते हैं; छोटा चिकारा 2. रहस्य संप्रदाय में काया या शरीर।

किंचन (सं.) [सं-पु.] पलाश; असाकल्य।

किंचित (सं.) [वि.] थोड़ा; अल्प; कुछ। [क्रि.वि.] कम या अल्प मात्रा में; कुछ ही; बहुत थोड़ा।

किंचिन्मात्र (सं.) [वि.] बहुत ही थोड़ा; अल्प मात्रा में; अत्यल्प।

किंजल्क (सं.) [सं-पु.] 1. कमल का केसर; पद्मकेसर 2. नागकेसर 3. कमल का पराग। [वि.] कमल के केसर के रंग का; पीला।

किंडरगार्डन [सं-स्त्री.] बच्चों को खेल-कूद के साथ शिक्षा देने की प्रणाली; बाल विद्यालय; बालबाड़ी; बालोद्यान।

किंतु (सं.) [अव्य.] लेकिन; परंतु; वरन; बल्कि।

किंपुरुष (सं.) [सं-पु.] 1. मनुष्यों की एक प्राचीन जाति 2. उक्त जाति के रहने का स्थान; जंबूद्वीप का एक खंड 3. किन्नर 4. नीच व्यक्ति। [वि.] वर्णसंकर; दोगला।

किंभूत (सं.) [वि.] 1. किस प्रकार या किस ढंग का; कैसा 2. विलक्षण; अद्भुत 3. भद्दा; भौंडा।

किंवदंती (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ऐसी बात जिसे परंपरा से सुनते चले आए हों 2. जनश्रुति; लोकापवाद।

किंवा (सं.) [अव्य.] या; या तो; अथवा।

किंशुक (सं.) [सं-पु.] 1. पलाश का पौधा 2. उक्त पौधे का लाल फूल जो चैत्र माह में खिलता है।

कि (फ़ा.) [अव्य.] 1. एक योजक शब्द 2. या; अथवा।

किक (इं.) [सं-स्त्री.] पैर से मारना; पैर से ठुकराना।

किकर (इं.) पाठकों के ध्यानाकर्षण हेतु तैयार की गई समाचार संक्षिप्तिका।

किकियाना [क्रि-अ.] 1. कीं-कीं या कें-कें शब्द करना 2. रोना 3. चिल्लाना।

किचकिच [सं-स्त्री.] 1. वाद-विवाद; तू-तू मैं-मैं 2. व्यर्थ की बातें; बकवाद 3. झगड़ा 4. उलझने की स्थिति 5. अशांति।

किचकिचाना [क्रि-अ.] 1. क्रोध में आकर दाँत पीसना 2. अधिक बल लगाने के उद्देश्य से दाँत पर दाँत रखना।

किचकिचाहट [सं-स्त्री.] 1. किचकिचाने का भाव 2. खिन्न 3. झुँझलाहट; खिजलाहट।

किचड़ना [क्रि-अ.] कीचड़ युक्त होना; आँख आदि में कीचड़ का भरना।

किचन (इं.) [सं-स्त्री.] रसोईघर; पाकशाला; बावर्चीख़ाना; रसवती; रंधनशाला; महानस।

किचपिच [सं-स्त्री.] 1. कीचड़; फिसलन 2. भीड़-भाड़ 3. उलझन; दुविधा 4. व्यर्थ का विवाद। [वि.] क्रमविहीन; क्रमरहित; अस्पष्ट।

किचर-पिचर [सं-स्त्री.] 1. फिसलन 2. गिचपिच। [वि.] 1. अस्पष्ट 2. क्रम के बिना; क्रमविहीन।

किट (इं.) [सं-स्त्री.] 1. खेल या किसी गतिविधि के लिए उपकरणों, औज़ारों या कपड़ों का सेट 2. वस्तुएँ बनाने में प्रयुक्त पुरज़ों का बंडल।

किट-किट [सं-स्त्री.] 1. विवाद; झगड़ा 2. किचकिच।

किटकिटाना [क्रि-अ.] 1. क्रोध से दाँत पीसना 2. किसी कारण से निचले और ऊपरी दाँतों के स्पर्श से किटकिट या कटकट शब्द उत्पन्न होना 3. व्यर्थ की बहस।

किट्ट (सं.) [सं-पु.] 1. तलछट के रूप में जमा मैल; गाद 2. धातु का मैल; कीट 3. किसी व्यक्ति या वस्तु के ऊपर जमा मैल 4. पुराने ढंग का एक प्रकार का ऊनी कपड़ा।

किड़कना [क्रि-अ.] 1. चुपके से गायब होना 2. खिसक लेना।

किडनी (इं.) [सं-पु.] गुर्दा; वृक्क।

किण्व (सं.) [सं-पु.] 1. ख़मीर 2. शराब में ख़मीर उठाने वाला एक बीज।

किण्वन (सं.) [सं-पु.] 1. कार्बनिक पदार्थों में बैक्टीरिया आदि से हुआ रासायनिक परिवर्तन 2. ख़मीर उठना; उबाल आना।

कितना (सं.) [वि.] संज्ञाओं के पूर्व लगने वाला परिमाण विषयक प्रश्नवाचक सार्वनामिक विशेषण, जैसे- किस मात्रा का, किस दरजे का।

कितव (सं.) [सं-पु.] 1. जुआरी 2. चालाक; धूर्त 3. दुष्ट; पाजी 4. पागल; बावला; उन्मत्त; सनकी 5. धतूरा 6. गोरोचन 7. एक प्राचीन जाति।

किता (अ.) [सं-पु.] 1. टुकड़ा; खंड 2. ज़मीन का टुकड़ा 3. ज़मीन के किसी टुकड़े पर बना मकान 4. मकान आदि की संख्या बताने वाला शब्द; अदद 5. कम से कम दो चरणों का एक उर्दू पद्य जिसमें मतला न हो और सम चरणों में अनुप्रास हो।

किताब (अ.) [सं-स्त्री.] 1. पुस्तक; ग्रंथ 2. धर्मग्रंथ 3. बहीख़ाता।

किताबत (अ.) [सं-स्त्री.] लिखने की क्रिया अथवा भाव।

किताबी (अ.) [वि.] 1. किताब संबंधी; पुस्तकीय; किताब जैसी 2. किताब में लिखी हुई 3. किताब के आकार या रंग रूप का।

किताबी कीड़ा [सं-पु.] सदैव पुस्तकों के अध्ययन में लगा रहने वाला व्यक्ति।

किधर [क्रि.वि.] किस ओर; किस दिशा में; किस तरफ़।

किन [सर्व.] 'किस' का बहुवचन।

किनका [सं-पु.] 1. कण 2. अनाज का टुकड़ा।

किनारदार (फ़ा.) [वि.] जिसमें किनारी बनी हो; किनारी से युक्त।

किनारा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. तट; छोर 2. तीर 3. किसी बहुत लंबी और कम चौड़ी वस्तु के वे दोनों भाग जहाँ चौड़ाई समाप्त होती है; (बॉर्डर) 4. किसी ओर का अंतिम सादा सिरा 5. बगल; पार्श्व 6. हाशिया। [मु.] किनारे लगना : समाप्त होना। किनारे लगा देना : ख़तम कर देना। -करना : पृथक हो जाना; दूर हो जाना।

किनाराकश (फ़ा.) [वि.] 1. किनारा कर लेने वाला; अलग या दूर रहने वाला; कोई संबंध न रखने वाला 2. एकांत में रहने वाला; एकांतवासी।

किनाराकशी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] किनारा कर लेना; संबंध तोड़ लेना।

किनारी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] रुपहला-सुनहला गोटा जो कपड़ों के किनारे पर लगाया जाता है।

किन्नर (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) देवलोक का एक उपदेवता जो एक प्रकार का गायक था और उसका मुँह घोड़े के समान होता था 2. वर्तमान समय में 'हिजड़ा' के लिए शिष्टोक्ति।

किन्नरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किन्नर जाति की स्त्री 2. छोटे आकार का तंबूरा 3. छोटी सारंगी; किंगरी।

किफ़ायत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. कमख़र्ची 2. मितव्यय 3. थोड़े या अल्प में काम चलाने की क्रिया 4. बचत। [क्रि.वि.] 1. थोड़े या अल्प व्यय से 2. कम मूल्य पर।

किफ़ायती (अ.) [वि.] 1. कम ख़र्च करने वाला; सँभल कर ख़र्च करने वाला 2. कम मूल्य पर मिलने वाला।

किबला (अ.) [सं-पु.] 1. मक्का में वह स्थान जहाँ हजरे अस्वद (काला पत्थर) स्थापित है और जिसकी ओर (पश्चिम दिशा) मुँह करके मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं 2. बाप-दादा एवं अन्य प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्तियों के लिए संबोधन का शब्द।

क़िबला (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. किबला)।

किबलानुमा (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] एक दिशासूचक यंत्र जिसकी सुई सदैव पश्चिम दिशा की ओर रहती है; कुतुबनुमा; दिग्दर्शक यंत्र।

किमपि (सं.) [क्रि.वि.] 1. कुछ भी; तनिक भी 2. किसी सीमा तक; किसी हद तक।

किमाकार (सं.) [वि.] 1. अनिश्चित आकार या रूपवाला 2. जिसका रूप बदलता रहता हो; बहुरूपिया 3. भद्दा; भोंडा; कुरूप।

किमाम (अ.) [सं-पु.] 1. शहद के समान गाढ़ा किया हुआ शरबत 2. गाढ़ा किया गया रस; अवलेह, जैसे- सुरती का किमाम 3. ख़मीर।

किमार (अ.) [सं-पु.] जुआ, शर्त आदि का खेल।

किमाश (अ.) [सं-पु.] ढंग; तर्ज़; नियम।

कियत (सं.) [वि.] 1. कितना 2. जो गुण, मर्यादा, सीमा आदि के विचार से बहुत बड़ा हो।

किया [क्रि-स.] 'करना' का भूतकालिक रूप।

कियाह (सं.) [सं-पु.] 1. लाल रंग का घोड़ा 2. किरमिजी रंग।

किरका [सं-पु.] 1. कंकड़ 2. छोटा टुकड़ा 3. किरकिरी।

किरकिटी [सं-स्त्री.] किरकिरी; छोटा टुकड़ा।

किरकिन [सं-पु.] घोड़े या गधे का चमड़ा। [वि.] पशुओं के चमड़े से बना हुआ।

किरकिरा [सं-पु.] लोहे में छेद करने के लिए प्रयुक्त लुहारों का बरमा। [वि.] बालू के कण और कंकड़ मिला हुआ; कंकरीला।

किरकिराना [क्रि-अ.] 1. खाद्य पदार्थ में धूल या रेत के कण मिलने से मुँह में किरकिराहट का आभास होना 2. आँख में किरकिरी पड़ने से पीड़ा होना 3. अप्रिय शब्द कहना।

किरकिराहट [सं-स्त्री.] 1. किरकिरा होने का गुण, भाव या अवस्था 2. किरकिरी पड़ने का अहसास; ककड़ीलापन।

किरकिरी [सं-स्त्री.] 1. किसी वस्तु, जैसे- कंकड़, धूल आदि का बहुत छोटा टुकड़ा या कण 2. {ला-अ.} अप्रिय अनुभव; हेठी; अपमान।

किरकिल [सं-पु.] गिरगिट।

किरच [सं-स्त्री.] 1. नोंक की ओर से भोंकी जाने वाली सीधी तलवार; बरछी 2. किसी कड़ी चीज़ का छोटा नुकीला टुकड़ा।

किरण (सं.) [सं-स्त्री.] प्रकाश की लकीर या रेखा; ज्योति की वे अति सूक्ष्म रेखाएँ जो प्रवाह के रूप में सूर्य, चंद्र, दीपक आदि प्रज्वलित पदार्थों में से निकलकर फैलती हुई दिखाई देती हैं; रश्मि।

किरणमाली (सं.) [सं-पु.] सूर्य; अंशुमाली।

किरदार (अ.) [सं-पु.] 1. किसी रचना का वह पात्र जिसके लिए अभिनय किया जाए 2. कार्य; काम 3. शैली; ढंग 4. चरित्र; आचरण।

किरनारा [वि.] 1. जिससे किरणें निकलती हों या निकल रहीं हों 2. किरणोंवाला; किरणों से युक्त।

किरम [सं-पु.] 1. कीड़ा; कीट 2. किरमिज नामक कीड़ा।

किरमिच [सं-पु.] रुई, पटसन आदि से बना एक प्रकार का मोटा और अच्छा कपड़ा जिससे जूते, बैग आदि बनाए जाते हैं; (कैनवस)।

किरमिची [वि.] चिकने मोटे कपड़े का बना हुआ।

किरमिज़ (अ.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का मटमैला लाल रंग 2. मटमैले रंग का घोड़ा 3. किरिमदाने का चूर्ण; बुकनी किया हुआ किरिमदाना।

किरमिज़ी (अ.) [वि.] 1. किरमिज़ के रंगवाला 2. मटमैले लाल रंगवाला।

किरराना [क्रि-अ.] 1. किर्र-किर्र की आवाज़ निकालना 2. दाँत पीसना 3. क्रोध दिखाना।

किराँची [सं-स्त्री.] 1. सामान ढोने वाली बैलगाड़ी 2. बड़ी बैलगाड़ी।

किराएदार (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] किराया देने वाला; किसी वस्तु या स्थान के उपयोग के बदले उसका मूल्य अदा करने वाला।

किराएदारी (अ.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. किराएदार होने की अवस्था या भाव; भाड़ेदारी 2. किराए पर लिए गए स्थान या किसी चीज़ का प्रयोग करना।

किराएनामा (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] किसी वस्तु या स्थान आदि को किराए पर लेने से संबंधित इकरारनामा; भाटकपत्र।

किरात1 (सं.) [सं-पु.] 1. पूर्वी हिमालय तथा उसका समीपवर्ती क्षेत्र 2. उक्त प्रदेश में रहने वाली एक प्राचीन जाति 3. बौना 4. (पुराण) शिव।

किरात2 (अ.) [सं-स्त्री.] 1. लगभग चार जौ के बराबर की एक तौल जो जवाहरात आदि तौलने के काम आती है 2. प्राचीन काल में प्रचलित एक छोटा सिक्का।

किराना [सं-पु.] 1. पंसारी की दुकान पर मिलने वाली वस्तुएँ 2. दाल, चावल, मेवा, मसाले आदि जो बनिए या व्यापारी के यहाँ बिकते हों। [क्रि-स.] 1. किसी वस्तु को बिखेरना या गिराना 2. सूप में चावल, दाल आदि के दानों को हिला-हिलाकर नीचे गिराना।

किरानी (इं.) [सं-पु.] 1. ईसाई; मसीही 2. जिसके माता-पिता में से कोई एक भारतीय और दूसरा यूरोपियन हो 3. कार्यालय में काम करने वाला लिपिक।

किराया (अ.) [सं-पु.] 1. भाड़ा; वह धन जो किसी की कोई वस्तु काम में लाने के बदले उस वस्तु के मालिक को दिया जाए; (रेंट) 2. रेल, बस आदि में यात्रा करने से पहले चुकाया जाने वाला भाड़ा; (फ़ेयर)।

किरावल (तु.) [सं-पु.] 1. सेना की वह टुकड़ी जो सेना के आगे-आगे चलती है तथा शत्रु सेना के आगमन की टोह लेती है 2. वह सैन्य टुकड़ी जो युद्ध का मैदान साफ़ करने के लिए सेना के आगे-आगे जाती है 3. बंदूक से शिकार खेलने वाला शिकारी 4. दूसरों को शिकार खिलाने वाला व्यक्ति।

किरीट (सं.) [सं-पु.] 1. राजा या विजेता के माथे पर बाँधा जाने वाला एक आभूषण; मुकुट 2. (काव्यशास्त्र) एक वर्णवृत्त (छंद), जिसके प्रत्येक चरण में आठ-आठ भगण होते हैं 3. व्यापारी।

किरीटी (सं.) [सं-पु.] 1. अर्जुन 2. इंद्र 3. राजा। [वि.] जिसके सिर पर किरीट (मुकुट) हो।

किरोलना [क्रि-स.] 1. कुरेदना 2. खुरचना।

किल (इं.) [क्रि.वि.] किसी मैटर (सामग्री) को नष्ट कर देना।

किलक [सं-स्त्री.] 1. किलकने की क्रिया या भाव 2. हर्षध्वनि; आनंदसूचक शब्द; किलकार।

किलकना [क्रि-अ.] बच्चों या बंदरों आदि का प्रसन्न होने पर ज़ोर-ज़ोर से की-की शब्द करना; किलकारना; किलकारी मारना।

किलकार [सं-पु.] 1. बहुत प्रसन्न होकर चिल्लाने की क्रिया 2. बंदरों के द्वारा प्रसन्न होने पर की-की शब्द करना 3. ज़ोर की हर्ष ध्वनि।

किलकारना [क्रि-अ.] हर्ष या आनंद की स्थिति में ज़ोर से किंतु अस्पष्ट ध्वनि करना; हर्षध्वनि करना; किलकारी मारना; किलकना; किलकिलाना; चहचहाना।

किलकारी [सं-स्त्री.] अत्यंत हर्षित होने की अवस्था में बच्चों एवं बंदरों के मुख से निकलने वाली अस्पष्ट ध्वनि अथवा चीख।

किलकिंचित (सं.) [सं-पु.] (साहित्य) संयोग शृंगार के अंतर्गत ग्यारह भावों में से एक जिसमें नायिका की एक ही भावभंगिमा से कई भाव एक साथ प्रकट होते हैं।

किलकिल [सं-स्त्री.] 1. झगड़ा; कलह; तकरार 2. बेकार की किचकिच। [सं-पु.] 1. किलकारी 2. ख़ुशी की ध्वनि।

किलकिला (सं.) [सं-पु.] 1. जलाशय के आस-पास रहने वाला एक मध्यम आकार का, बड़े सिर और छोटी पूँछ वाला पक्षी जो मछलियाँ आदि पकड़कर खाता है; कौड़िल्ला; जलवायस; चित्तल 2. समुद्र की लहरों के टकराने से उत्पन्न शब्द 3. प्राचीन कवियों के अनुसार एक समुद्र का नाम।

किलकिलाना [क्रि-अ.] 1. आनंदसूचक अस्पष्ट शब्द करना; की-की करना 2. ज़ोर से चिल्लाना या आवाज़ करना।

किलना (सं.) [क्रि-अ.] 1. कीला जाना; कीलों से जकड़ा जाना 2. वश या नियंत्रण में किया जाना 3. गति अवरुद्ध किया जाना 4. प्रभाव को रोका या समाप्त किया जाना।

किलनी [सं-स्त्री.] 1. पशुओं के शरीर में चिपटने वाला छोटे आकार का एक कीड़ा; किल्ली; (टिक) 2. बड़ा जूँ।

किलवाई [सं-स्त्री.] 1. लकड़ी का बना कुदाल 2. फरुई।

किलवाना [क्रि-स.] 1. कीलने का काम किसी और से कराना 2. कील ठुकवाना।

किला (अ.) [सं-पु.] 1. बड़ी इमारत जो ऊँची दीवारों और गहरी खाइयों आदि से घिरी रहती है, जिसमें सेनाएँ सुरक्षित रहकर युद्ध लड़ा करती थीं; दुर्ग; गढ़; (फ़ोर्ट) 2. {ला-अ.} बहुत बड़ी, मज़बूत और सुरक्षित इमारत।

क़िला (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. किला)।

किलाबंदी (अ.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. शत्रुओं के आक्रमण के समय की जाने वाली किले की व्यवस्था, सुरक्षात्मक कार्रवाई 2. व्यूह रचना; मोरचाबंदी 3. किसी आक्रमण से रक्षा की योजना।

किलावा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. चरखा या तकली पर लिपटा हुआ सूत का लच्छा 2. हाथी के गले में पड़ी हुई रस्सी जिसमें पैर फँसाकर महावत हाथी को चलाता है 3. हाथी के शरीर का वह भाग जहाँ महावत बैठता है 4. सुनारों का एक औज़ार।

किलिक (फ़ा.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार का नरकट का पौधा जिसकी देशी कलम बनाई जाती है।

किलेदार (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. किले का मालिक; गढ़पति; दुर्गपति 2. क़िले में रहने वाली सेना का प्रधान नायक; दुर्ग-रक्षक।

किलोग्राम (इं.) [सं-पु.] 1. तौल की एक अंतरराष्ट्रीय माप 2. एक हज़ार ग्राम की तौल।

किलोमीटर (इं.) [सं-पु.] 1. लंबाई या दूरी मापने की एक अंतरराष्ट्रीय माप 2. एक हज़ार मीटर की माप।

किलोल (सं.) [सं-पु.] 1. आमोद-प्रमोद 2. ख़ुशी का भाव; उल्लास।

किलोलीटर (इं.) [सं-पु.] 1. तरल पदार्थ का आयतन मापने की एक अंतरराष्ट्रीय माप 2. एक हज़ार लीटर की माप।

किलोवाट (इं.) [सं-पु.] 1. बिजली मापने की एक अंतरराष्ट्रीय माप 2. एक हज़ार वाट की माप।

किल्लत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. किसी वस्तु के कम होने या कम मिलने की अवस्था या भाव 2. अभाव; कमी 3. तंगी; कष्ट 4. कठिनाई; दिक्कत।

किल्ला (सं.) [सं-पु.] 1. ज़मीन में गाड़ा हुआ लकड़ी, लोहे आदि का खूँटा जिसमें गाय, भैंस आदि बाँधे जाते हैं; कीला 2. लकड़ी की वह मेख जो जाँते के बीच में गड़ी रहती है।

किल्ली [सं-स्त्री.] 1. कीला; मेख 2. दीवारों में गाड़ी हुई खूँटी 3. सिटकिनी 4. किसी कल या पेंच का मुठिया। [मु.] -घुमाना : कोई तरकीब लगाना।

किल्विष (सं.) [सं-पु.] 1. पाप 2. दोष; अपराध 3. धोखा 4. रोग 5. विपत्ति।

किल्विषी (सं.) [वि.] 1. छली 2. पापी 3. दोषयुक्त 4. दोषी; अपराधी।

किवाड़ (सं.) [सं-पु.] 1. लकड़ी, लोहा, शीशा या टिन का बना हुआ दरवाज़े का पल्ला जो चौखट के साथ कब्ज़े से जकड़ा होता है 2. कपाट; द्वार-पट 3. दरवाज़ा।

किशन (सं.) [सं-पु.] कृष्ण; श्याम।

किशमिश (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. सुखाया हुआ अंगूर; दाख 2. एक प्रकार का मेवा।

किशमिशी (फ़ा.) [वि.] किशमिश के रंग का। [सं-पु.] किशमिश जैसा रंग।

किशोर (सं.) [सं-पु.] 1. ऐसा बालक जिसकी अवस्था अभी अठारह वर्ष से कम हो 2. बाल और युवा अवस्थाओं के बीच की अवस्था।

किशोर न्यायालय (सं.) [सं-पु.] वह न्यायालय जो बच्चों के द्वारा किए गए गैरकानूनी कार्यों पर सुनवाई करता है।

किशोरावस्था (सं.) [सं-स्त्री.] बारह से अठारह वर्ष तक की आयु; किशोर होने की अवस्था या आयु।

किशोरी (सं.) [वि.] 1. बारह से अठारह वर्ष की अवस्था की बालिका 2. बालिका; बेटी; लड़की।

किश्त (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. ऋण या देय का उतना अंश जितना किसी एक अवधि में चुकाया या दिया जाए; पैसा आदि जमा करने की किश्त 2. खेती; कृषिकर्म।

किश्तज़ार (फ़ा.) [सं-पु.] खेती; हरा-भरा खेत; कृषि योग्य भूमि।

किश्ती (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. नाव; नौका; डोंगी 2. एक प्रकार की छिछली तश्तरी।

किश्तीनुमा (फ़ा.) [वि.] जो किश्ती की तरह लंबोतर हो और जिसके दोनों सिरे नुकीले हों।

किष्किंध (सं.) [सं-पु.] किष्किंध प्रदेश की एक पर्वतश्रेणी।

किष्किंधा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मैसूर एवं उसके समीपवर्ती क्षेत्र का प्राचीन नाम 2. किष्किंध प्रदेश की राजधानी।

किस (सं.) [सर्व.] 'कौन' का तिर्यक रूप, जो व्यक्ति, काल, स्थान, घटना आदि विषयक एकवचन प्रश्न का बोध कराता है।

किसबत (अ.) [सं-स्त्री.] कई खानों वाली वह थैली जिसमें नाई अपने औज़ार रखते हैं।

किसलय (सं.) [सं-पु.] 1. पौधों में निकलने वाले नए पत्ते; कोंपल; नवपल्लव; कल्ला 2. अँखुआ; अंकुर।

किसान (सं.) [सं-पु.] 1. वह जो खेती-बारी का काम करता हो; खेतिहर; कृषक; काश्तकार 2. खेतों को जोतने, बीज बोने तथा फ़सल काटने वाला व्यक्ति।

किसानी [सं-स्त्री.] खेती; कृषि कार्य।

किस्त (अ.) [सं-स्त्री.] 1. अंश; भाग 2. खंड; टुकड़ा 3. ऋण आदि के भुगतान का निश्चित अवधि के अंतर पर चुकाया जाने वाला निश्चित अंश; (इंस्टालमेंट)।

किस्तबंदी (अ.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. किस्त के रूप में ऋण चुकाना तथा प्रत्येक किस्त के लिए समय निश्चित करना 2. कई बार में थोड़ा-थोड़ा करके निर्धारित समय पर धन आदि चुकाने या वसूल करने की प्रणाली।

किस्तवार (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] पटवारियों का लेखा-बही या खाता जिसमें खेतों के क्षेत्रफल आदि का विवरण लिखा रहता है।

किस्म (अ.) [सं-स्त्री.] 1. प्रकार; कोटि 2. नस्ल; जाति 3. तर्ज़; ढंग; चाल; तरीका 4. भेद; भाँति।

किस्मत (अ.) [सं-स्त्री.] भाग्य; तकदीर; नसीब; प्रारब्ध।

किस्मत आज़माई (अ.) [सं-स्त्री.] 1. भाग्य की परीक्षा लेना 2. किसी कठिन परीक्षा की तैयारी।

किस्मतवर (अ.+फ़ा.) [वि.] भाग्यशाली; भाग्यवान; ख़ुशनसीब।

किस्सा (अ.) [सं-पु.] 1. कथा; आख्यान; दास्ताँ; कहानी 2. हाल; समाचार; वृत्तांत 3. मामला; प्रसंग 4. तकरार; कांड; झगड़ा।

क़िस्सा (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. किस्सा)।

किस्सागो (अ.+फ़ा) [सं-पु.] 1. किस्से-कहानियाँ सुनाने वाला 2. कहानी लेखक।

की [पर.] संबंध सूचक परसर्ग जो स्त्रीलिंग वाचक शब्द से संबंध का द्योतन करता है, जैसे- समर की गाड़ी; 'का' का स्त्रीलिंग रूप।

कीक [सं-पु.] 1. चीख; चीत्कार; चिल्लाहट 2. शोरगुल; हल्ला।

कीकट (सं.) [सं-पु.] 1. मगध का वैदिक कालीन नाम 2. उक्त देश की एक प्राचीन अनार्य जाति 3. घोड़ा। [वि.] 1. गरीब; निर्धन 2. कंजूस; कृपण 3. लोभी; लालची।

कीकना [क्रि-अ.] 1. कोयल, मोर आदि का मीठे स्वर में बोलना 2. 'कू-कू' या 'की-की' शब्द करना 3. कूकना; कुहुकना।

कीकर (सं.) [सं-पु.] मध्यम आकार का एक कँटीला पेड़; बबूल का पेड़; सोमसार।

कीका (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का घोड़ा 2. कीकान प्रदेश का घोड़ा।

कीकान (सं.) [सं-पु.] 1. पश्चिमोत्तर का केकाण प्रदेश 2. उक्त प्रदेश का घोड़ा।

कीच [सं-स्त्री.] कीचड़; पंक; पानी मिली हुई धूल या मिट्टी।

कीचक (सं.) [सं-पु.] 1. सुराख़दार बाँस 2. पोला बाँस।

कीचड़ [सं-पु.] 1. किसी स्थान पर जमा मिट्टी और पानी का गाढ़ा घोल 2. पंक; कर्दम 3. आँख की गंदगी 4. {ला-अ.} विपत्ति या संकट की स्थिति; निंदा। [मु.] -उछालना : बदनाम करना; दोषारोपण करना।

कीट (सं.) [सं-पु.] 1. ज़मीन पर रेंगने वाले छोटे-छोटे जीव; कीड़े 2. किसी वस्तु पर ज़मा मैल 3. {ला-अ.} दुष्ट और तुच्छ व्यक्ति।

कीटनाशक (सं.) [सं-पु.] 1. कीड़ों को मारने वाली दवा 2. फ़सल आदि में छिड़काव के लिए प्रयुक्त की जाने वाली दवा। [वि.] कीटाणुओं या कीड़ों को मारने वाला।

कीटभक्षी (सं.) [सं-पु.] ऐसे जीव-जंतु या पौधे जो कीड़ों-मकोड़ों का भक्षण करते हों। [वि.] कीड़े-मकोड़े खाने वाला; कीटाहारी।

कीटभोजी (सं.) [सं-पु.] कीड़े-मकोड़े खाकर पेट भरने वाला जीव; कीटभक्षी।

कीटविज्ञान (सं.) [सं-पु.] प्राणिविज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत कीटों अथवा षट्पादों की उत्पत्ति, स्वरूप, विशेषताओं आदि का अध्ययन किया जाता है; (एंटोमॉलॉजी)।

कीटाणु (सं.) [सं-पु.] अति सूक्ष्म कीड़े जो अनेक रोगों के वाहक या कारण माने जाते हैं; रोगाणु।

कीटिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हीन या तुच्छ प्राणी 2. छोटा कीड़ा।

कीड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. पतिंगा; कीड़ा-मकोड़ा; कीट 2. ज़मीन पर रेंगने वाले छोटे प्राणी 3. वस्तुओं के सड़ने से उत्पन्न छोटे जंतु 4. साँप।

कीड़ा-मकोड़ा [सं-पु.] अत्यंत छोटे जीव-जंतु जो सामान्यतः परजीवी होते हैं; छोटे-बड़े कीड़े; कीट-पतंग।

कीप [सं-स्त्री.] 1. एक पात्र जिसकी सहायता से किसी सँकरे पात्र में कोई तरल पदार्थ भरा जाता है 2. कल-कारख़ानों की चिमनी जो उक्त प्रकार की होती है।

की-फ्रेम (इं.) [सं-पु.] कुंजी ढाँचा।

की-बोर्ड (इं.) [सं-पु.] 1. बहुत सारी कुंजियों से बना एक उपकरण या बोर्ड जिससे संगणक (कंप्यूटर) पर टंकण (टाइपिंग) संबंधी काम किया जाता है 2. वह उपकरण जो संगणक के साथ हार्डवेयर के रूप में उपयोग किया जाता है 3. टाइपराइटर का कुंजीपटल।

कीमत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. किसी वस्तु को क्रय करने के लिए दिया जाने वाला धन; मूल्य; दाम 2. प्रतिष्ठा; महत्व 3. योग्यता; गुण।

क़ीमत (अ.) [सं-स्त्री.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कीमत)।

कीमती (अ.) [वि.] 1. अधिक कीमतवाला; महँगा 2. मूल्यवान; महत्वपूर्ण।

कीमा (अ.) [सं-पु.] 1. कटा हुआ मांस 2. मांस के छोटे-छोटे टुकड़े 3. मांस का एक व्यंजन।

कीमिया (अ.) [सं-स्त्री.] 1. रसायन विद्या 2. रासायनिक क्रिया; रसायन 3. कृत्रिम (नकली) सोना-चाँदी बनाने की विद्या 4. कार्य-साधक युक्ति।

कीमियागर (अ.+फ़ा) [सं-पु.] 1. रसायन बनाने वाला और इस विद्या में प्रवीण व्यक्ति; रसायनविद 2. सीसे जैसी निकृष्ट धातु से सोना-चाँदी बनाने वाला अथवा नाभिक संरचना में फेरबदल करके नए तत्व बनाने वाला व्यक्ति 3. बारीक युक्तियों से कोई अनूठा काम करने वाला व्यक्ति।

कीमियागरी (अ.+फ़ा) [सं-स्त्री.] 1. रसायनशास्त्र; रसायनविज्ञान 2. कृत्रिम (नकली) सोना-चाँदी बनाना।

कीर (सं.) [सं-पु.] 1. शुक; तोता; सुग्गा 2. बहेलिया।

कीर्ण (सं.) [वि.] 1. बिखरा हुआ; फैला हुआ 2. ढका हुआ; छाया हुआ 3. ठहरा हुआ; स्थित 4. पकड़ा हुआ 5. घायल; आहत।

कीर्तन (सं.) [सं-पु.] 1. वर्णन; कथन 2. देवता, ईश्वर की आराधना के लिए आयोजित कार्यक्रम जिसमें लोग ताली बजाकर गायन करते हैं।

कीर्तनघर (सं.) [सं-पु.] कीर्तन करने का स्थान; कीर्तनगृह।

कीर्तनियाँ [सं-पु.] 1. कीर्तन करने वाला व्यक्ति 2. वह व्यक्ति जो वाद्य यंत्र के साथ ईश्वर का कीर्तन करता हो।

कीर्ति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ख्याति; बड़ाई 2. यश; प्रसिद्धि; नेकनामी 3. शोहरत 4. (पुराण) प्रजापति दक्ष की कन्या और धर्म की पत्नी 5. छंद का एक प्रकार।

कीर्तित (सं.) [वि.] 1. प्रशंसित 2. ख्यात 3. वर्णित; कथित।

कीर्तिदा [सं-स्त्री.] नंद की पत्नी एवं कृष्ण का पालन करने वाली यशोदा।

कीर्तिमान (सं.) [सं-पु.] 1. यश का सूचक 2. अभूतपूर्व उपलब्धि 3. कारनामा 4. सफलता।

कीर्तिस्तंभ (सं.) [सं-पु.] 1. किसी उल्लेखनीय घटना के स्मरणार्थ एवं उसे स्थायी करने के उद्देश्य से निर्मित स्तंभ 2. यश अथवा कीर्ति कायम रखने वाली वस्तु।

कील (सं.) [सं-स्त्री.] 1. धुरी 2. लोहे आदि का गोलाकार पतला एवं नुकीला लंबा टुकड़ा 3. नाक में पहनने का एक आभूषण 4. मुँहासे एवं फोड़े की कील।

कीलक (सं.) [सं-पु.] 1. कील; खूँटी 2. किसी मंत्र के प्रभाव को नष्ट कर देने वाला मंत्र 3. एक तंत्रोक्त देवता 4. यंत्र का मध्य भाग।

कील-काँटा [सं-पु.] 1. किसी कार्य के संपादन हेतु आवश्यक समस्त सामग्री 2. औज़ार; साज़ो-सामान।

कीलन (सं.) [सं-पु.] 1. बाँधने या रोकने की क्रिया या भाव 2. किसी क्रिया या गति को पूर्णतः निष्फल करना 3. किसी मंत्र की शक्ति को नष्ट करना।

कीलना [क्रि-स.] 1. किसी वस्तु या स्थान में कील या कील जैसी कोई नुकीली चीज़ गाड़ना 2. एकाधिक वस्तुओं को परस्पर जोड़ने या बाँधने के लिए उनमें कील ठोंकना 3. तोप आदि का मुँह बंद करने के लिए उसमें कील ठोंकना 4. किसी की गति अथवा शक्ति को अवरुद्ध कर देना 5. वश या नियंत्रण में करना।

कीला (सं.) [सं-पु.] 1. बड़ी और मोटी खूँटी अथवा कील 2. चक्की की खूँटी।

कीलाक्षर (सं.) [सं-पु.] ईरान, बेबीलोन आदि देशों में प्रचलित एक प्राचीन लिपि।

कीलाल (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) देवताओं का अमृत सदृश पेय 2. मधु 3. जल 4. रक्त; रुधिर। [वि.] बंधन समाप्त करने वाला।

कीलित (सं.) [वि.] 1. मंत्र से बँधा हुआ, जड़ा हुआ 2. निरुद्ध; बद्ध।

कीली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटी खूँटी या कील 2. चक्राकार घूमने वाली वस्तु की धुरी; (ऐक्सिस) 3. किसी चीज़ को बाँधने या रोकने वाली कोई वस्तु 4. कुश्ती का एक दाँव।

कीवर्ड (इं.) [सं-पु.] 1. संकेत शब्द 2. सार तत्व।

कीश (सं.) [सं-पु.] 1. बंदर 2. पक्षी; चिड़िया 3. सूर्य। [वि.] नग्न; नंगा।

कीसा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. जेब 2. खलीता; झोला; थैली।

कुँअर (सं.) [सं-पु.] 1. राजा का लड़का; राजकुमार 2. कुमार; लड़का 3. अविवाहित किशोर या युवक 4. पुत्र; बेटा।

कुँआ [सं-स्त्री.] पक्षियों की 'कूँ-कूँ' की आवाज़।

कुँआरा (सं.) [वि.] (लड़का) जो अविवाहित हो; कुँवारा।

कुँआरी (सं.) [सं-स्त्री.] अविवाहिता कन्या। [वि.] जिसकी शादी न हुई हो; कुँमारी।

कुँईं [सं-स्त्री.] कमल जैसा एक पौधा जिसमें सफ़ेद फूल लगते हैं और रात में खिलते हैं; कुमुदिनी।

कुँजड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. सब्ज़ी एवं फल आदि बोने तथा बेचने का व्यवसाय करने वाली एक जाति 2. सब्ज़ी एवं फल आदि बेचने वाला व्यापारी या दुकानदार।

कुँजड़िन [सं-स्त्री.] सब्ज़ी बेचने वाली औरत; कुँजड़ी।

कुँदेरना [क्रि-स.] 1. खुरचना; खरादना 2. छीलना।

कुँदेरा [सं-पु.] खुरचने वाला; खरादी।

कुँवर (सं.) [सं-पु.] 1. राजा का पुत्र; राजकुमार 2. बेटा; पुत्र; लड़का 3. अविवाहित पुरुष।

कुँवारा [वि.] जिसका विवाह न हुआ हो; कुँआरा; अविवाहित।

कुँवारापन [सं-पु.] अविवाहित होने की अवस्था; विवाह होने के पहले की अवस्था।

कुँवारी [सं-स्त्री.] अविवाहित; अपरिणीता; कुमारी लड़की; कुँआरी।

कुंग-फू (ची.) [सं-पु.] चीन देश की एक प्रसिद्ध मार्शल आर्ट; बिना हथियार के लड़ाई की एक शैली।

कुंचन (सं.) [सं-पु.] 1. सिकुड़ने या संकुचित होने की अवस्था या भाव 2. बाल आदि का घुँघराला होना 3. आँख का एक रोग।

कुंचिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कुंजी; ताली; चाबी 2. गुंजा 3. बाँस की छोटी टहनी।

कुंचित (सं.) [वि.] 1. घुँघराले (बाल) 2. छल्लेदार टेढ़ा; घुमावदार।

कुंज (सं.) [सं-पु.] 1. झाड़ियों, लताओं आदि से घिरा स्थान; वह जगह जहाँ लताएँ छाई हों 2. हाथी का दाँत 3. कोना 4. चादरों, दुशालों आदि के बेलबूटे।

कुंजगली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. झाड़ियों या लताओं आदि से आच्छादित संकीर्ण पथ अथवा पगडंडी 2. तंग गली।

कुंजबिहारी (सं.) [सं-पु.] 1. कुंजों में विहार या विचरण करने वाला पुरुष 2. कृष्ण का एक नाम।

कुंजर (सं.) [सं-पु.] 1. हाथी 2. हस्त नक्षत्र 3. बाल; कच 4. पीपल 5. (काव्यशास्त्र) छप्पय के छंद का इक्कीसवाँ भेद 6. पाँच मात्राओं वाले छंदों के प्रस्तार में प्रथम प्रस्तार। [वि.] श्रेष्ठ; उत्तम।

कुंजरी (सं.) [सं-स्त्री.] हथिनी; मादा हाथी।

कुंजल (सं.) [सं-पु.] काँजी।

कुंजी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह उपकरण जिससे ताला खुलता है; चाभी 2. ऐसी सहायक पुस्तक जिससे किसी कठिन पुस्तक का भेद या अर्थ खुले 3. {ला-अ.} कोई सरल साधन जिससे कोई उद्देश्य सहजता से पूरा होता है।

कुंठ (सं.) [वि.] 1. जो तेज या तीक्ष्ण न हो; भोथरा 2. सुस्त 3. कमज़ोर 4. मंदबुद्धि 5. कुंठित।

कुंठ-नृत्य (सं.) [वि.] सुस्त नृत्य; भोथरा नृत्य।

कुंठा (सं.) [सं-स्त्री.] निराशाजन्य अतृप्त भावना; (फ़्रस्ट्रेशन)।

कुंठित (सं.) [वि.] खिन्न; असफलताओं से निराश; हताश; (फ़्रस्टेटेड)।

कुंड (सं.) [सं-पु.] 1. छोटा तालाब; पानी के लिए खोदा हुआ गड्ढा 2. हवन के लिए बनाया गया गड्ढा।

कुंडक (सं.) [सं-पु.] 1. मटका 2. छोटा घड़ा 3. धृतराष्ट्र का एक पुत्र 4. मूर्ख।

कुंडरा [सं-पु.] 1. कुंडा; घड़ा 2. गेंडुरी 3. एक प्रकार का कवच; रक्षा के लिए खींची गई मंडलाकार रेखा।

कुंडल (सं.) [सं-पु.] 1. कान में पहनने का एक आभूषण 2. सोने, चाँदी का बना हुआ मंडलाकार आभूषण; मुरकी 3. सूर्य या चंद्र के चारों ओर बादलों का गोल घेरा 4. किसी प्रकार की मंडलाकार आकृति; मेखला 5. रस्सी आदि का गोल फंदा 6. मंडल; फेटी।

कुंडलाकार (सं.) [वि.] गोलाकार; मंडलाकार; वर्तुल; कुंडल की तरह गोल।

कुंडलिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. गोल रेखा या आकार 2. कुंडलिया छंद।

कुंडलित (सं.) [वि.] 1. जो कुंडल जैसा गोल घेरे के रूप में स्थित हो 2. जो गोल घेरे या चक्कर के रूप में लपेटा हुआ हो 3. जो कुंडली मारे हुए हो।

कुंडलिनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. नाभि के नीचे मूलाधार चक्र में स्थित वह शक्ति जिसे हठयोग में साधक जगाकर ब्रह्मरंध्र में लगाने का प्रयत्न करता है 3. शक्ति की अधिष्ठात्री दुर्गा का एक रूप।

कुंडलिया (सं.) [सं-स्त्री.] दोहे और रोले के योग से बनने वाला एक मात्रिक छंद; कुंडलिका।

कुंडली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. जन्मपत्री; जातक के जन्म के समय ग्रहों, नक्षत्रों, चक्रादि की स्थिति के बारे में बताने वाला विवरण 2. साँप के गोलाकार बैठने की मुद्रा।

कुंडा (सं.) [सं-पु.] दरवाज़े आदि को बंद करने के लिए लगाया जाने वाला अवरोधक; दरवाज़े को मज़बूती से बंद करने का उपकरण।

कुंडी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ज़ंजीर की कड़ी 2. किवाड़ में लगी हुई साँकल।

कुंत (सं.) [सं-पु.] 1. भाला; बरछी 2. गवेधुक नामक पक्षी; कौड़िल्ला 3. जूँ 4. क्रोध 5. वासना 6. एक अन्न।

कुंतल (सं.) [सं-पु.] 1. केश; सिर के बाल; जुल्फ़ 2. हल 3. बहुरूपिया।

कुंतलन (सं.) [सं-पु.] 1. सिर के बालों को घुँघराला बनाना; (हेयर कर्लिंग) 2. केश संवरण।

कुंतला (सं.) [सं-स्त्री.] वह स्त्री जिसके केश लंबे हो।

कुंती (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (महाभारत) युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम की माता; पृथा 2. भाला; बरछी 3. कंजे की जाति एक पेड़।

कुंद1 (सं.) [सं-पु.] 1. जूही की तरह का एक पौधा 2. कनेर का पेड़ 3. एक प्रकार की घास जो दूब की तरह होती है 4. कमल।

कुंद2 (फ़ा.) [वि.] मंद; भोथरा।

कुंदन (सं.) [सं-पु.] 1. अच्छे और साफ़ सोने का पतला पत्तर जिसकी सहायता से गहनों में नगीने जड़े जाते हैं 2. शुद्ध और निखालिस सोना। [वि.] 1. कुंदन के समान चोखा 2. सुंदर और स्वस्थ।

कुंदरू (सं.) [सं-पु.] एक बेल जिसमें परवल जैसे फल लगते हैं जिनकी सब्ज़ी बनती है; बिंबा फल।

कुंदा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. लकड़ी का बड़ा, मोटा और बिना चीरा हुआ टुकड़ा 2. बंदूक का पिछला, चौड़ा भाग।

कुंदीगर (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] कपड़ों की कुंदी करने वाला कारीगर; इस्तिरीकर्मी।

कुंदुर (सं.) [सं-पु.] सलई के वृक्ष से प्राप्त एक प्रकार का सुगंधित पीले रंग का गोंद।

कुंभ (सं.) [सं-पु.] 1. मिट्टी या धातु आदि से निर्मित कलश; घड़ा; घट 2. मंदिर आदि के शिखर पर होने वाली उलटे घड़े की आकृति 3. प्रति बारहवें वर्ष पड़ने वाला एक पर्व 4. बारह राशियों में से एक राशि जो दसवें क्रम पर आती है 5. संगीत में एक राग का नाम 6. एक जंगली वृक्ष जिसे कुंभी कहते हैं 7. मस्तक; सिर।

कुंभक (सं.) [सं-पु.] प्राणायाम में नाक-मुँह बंद करके साँस अंदर लेकर रोकने की क्रिया।

कुंभकार (सं.) [सं-पु.] 1. मिट्टी के बरतन आदि बनाने वालों की एक जाति; कुम्हार 2. कुक्कुट; मुरगा 3. साँप।

कुंभज (सं.) [वि.] जिसकी उत्पत्ति कुंभ या घड़े से हुई हो। [सं-पु.] 1. ऋषि अगस्त्य 2. वशिष्ठ 3. द्रोणाचार्य।

कुंभिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मटका; छोटा घड़ा 2. जलकुंभी।

कुंभी (सं.) [सं-पु.] 1. हाथी 2. मगर; घड़ियाल 3. एक प्रकार की मछली 4. गुग्गल का पेड़ और उसका गोंद 5. कुंभीपाक नामक नरक 6. एक प्रकार का जहरीला कीड़ा। [सं-स्त्री.] 1. छोटे आकार का घड़ा या कुंभ 2. अन्न का एक परिमाण 3. सलई, कायफल, गनियारी, दंती, पांडर आदि के पेड़ 4. एक जलीय वनस्पति; जलकुंभी। [वि.] 1. जिसके पास घड़ा हो 2. घड़े के आकार-प्रकार वाला।

कुंभीनस (सं.) [सं-पु.] 1. कुंभी जैसी नासिका वाला एक ज़हरीला साँप 2. एक प्रकार का ज़हरीला कीड़ा 3. (रामायण) एक राक्षस जो लंका का राजा था; रावण।

कुंभीपाक (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) एक प्रसिद्ध नरक 2. एक प्रकार का सन्निपात रोग जिसमें नाक से काला ख़ून आता है 3. हाँड़ी में पकाई गई कोई चीज़।

कुंभीर (सं.) [सं-पु.] 1. घड़ियाल की प्रजाति का एक जलीय जंतु 2. एक छोटा कीड़ा 3. एक यक्ष।

कु (सं.) [पूर्वप्रत्य.] संज्ञाओं के पूर्व लगने वाला एक प्रत्यय जो हीनता, दुष्टता, नीचता, अल्पता आदि से संबंधित अर्थ देता है, जैसे- कुख्यात, कुचक्र, कुगति आदि।

कुअंक (सं.) [सं-पु.] 1. दूषित अंक 2. दुर्भाग्य; बदकिस्मती।

कुआँ (सं.) [सं-पु.] 1. पानी निकालने के लिए ज़मीन में खोदा हुआ गहरा गड्ढा; कूप 2. बहुत गहरी और अँधेरी जगह 3. रहस्य संप्रदाय में हृदय रूपी कमल। [मु.]-खोदना : किसी को हानि पहुँचाना। कुएँ में गिरना : मुश्किल में पड़ना। कुएँ में बाँस डालना : बहुत खोज करना। कुएँ में भाँग पड़ी होना : बुद्धि भ्रमित होना; सभी का पागल हो जाना।

कुइयाँ [सं-स्त्री.] छोटा कुआँ।

कुक (इं.) [सं-पु.] ख़ानसामा; रसोइया।

कुकटी (सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की कपास जो थोड़ी ललाई लिए होती है।

कुकड़ना [क्रि-अ.] 1. ठंड या डर से सिमटना 2. चिमटना 3. मुरगे की तरह सिकुड़ जाना।

कुकड़ी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कच्चे सूत का लच्छा 2. मदार का फल या डोडा 3. अंडे देने वाली एक पालतू मादा पक्षी; मुरगी।

कुकडूँ कूँ [सं-स्त्री.] मुरगे की ध्वनि; मुरगे की बाँग।

कुकर (इं.) [सं-पु.] दाल-सब्ज़ी या चावल आदि पकाने का एक आधुनिक बरतन; भाप के दबाव से दाल-चावल या अन्य व्यंजन पकाने-उबालने का एक विशेष बरतन; (प्रेशर कुकर)।

कुकरखाँसी (सं.) [सं-स्त्री.] वह सूखी खाँसी जिसमें कफ़ न गिरे; ढाँसी।

कुकर्म (सं.) [सं-पु.] 1. बुरा काम 2. परगमन; बलात्कार 3. कुत्सित, निंदनीय और अशोभनीय कार्य।

कुकर्मी (सं.) [वि.] कुत्सित कर्म करने वाला; दुष्कर्मी।

कुकुरमुत्ता [सं-पु.] एक छोटा जंगली पौधा जिससे दुर्गंध आती है; खुंबी; क्षत्रक; (मशरूम)।

कुकृत्य (सं.) [सं-पु.] 1. अनुचित कार्य 2. अपराध।

कुक्कुट (सं.) [सं-पु.] 1. मुरगा 2. बनमुरगा 3. मुर्गकेश या जटाधारी नामक पौधा 4. आग की लपट 5. आग की चिनगारी।

कुक्ष (सं.) [सं-पु.] 1. उदर; पेट 2. स्त्रियों के पेट का वह स्थान जिसमें गर्भ या बच्चा रहता है; कोख।

कुक्षि (सं.) [सं-पु.] 1. राजा बलि का एक नाम 2. इक्ष्वाकु के एक पुत्र का नाम 3. एक प्राचीन देश। [सं-स्त्री.] 1. उदर; पेट 2. कोख 3. किसी वस्तु का मध्य भाग 4. पेट से उत्पन्न; संतान 5. गुहा; गुफा 6. म्यान 7. खाड़ी।

कुख्यात (सं.) [वि.] 1. बदनाम; अपयशवाला; जघन्य अपराध करने वाला 2. बहुत बड़ा अपराधी।

कुख्याति (सं.) [सं-स्त्री.] बदनामी; अपयश; बुरी ख्याति; अपकीर्ति

कुगति (सं.) [सं-स्त्री.] दुर्गति; दुर्दशा; बुरी गति।

कुघात [सं-पु.] 1. छल या कपटपूर्ण चाल 2. अनुचित रूप से किया गया प्रहार 3. कुअवसर पर किया गया प्रबल आघात 4. कुठाँव।

कुच (सं.) [सं-पु.] स्त्रियों की छाती; स्तन; उरोज। [वि.] 1. संकुचित; सिकुड़ा हुआ 2. कृपण; कंजूस।

कुचकुचाना [क्रि-स.] बार-बार कोंचना; किसी नुकीली चीज़ से बार-बार कोंचना; चुभाना।

कुचक्र (सं.) [सं-पु.] 1. किसी को हानि पहुँचाने के उद्देश्य से बनाई गई योजना; साज़िश; षड्यंत्र 2. रणनीति 3. मिलीभगत 4. छलपूर्ण रहस्यमय योजना; खुराफ़ात 5. मिलीभगत।

कुचक्री (सं.) [सं-पु.] 1. कुचक्र रचने वाला व्यक्ति 2. किसी के साथ छल करने या धोखा देने के उद्देश्य से गुप्त योजना बनाने वाला व्यक्ति। [वि.] षड्यंत्रकारी।

कुचलना [क्रि-स.] 1. किसी वस्तु को मसलना; रगड़ना 2. कूटकर नरम करना 3. पैरों से रौंदना 4. पैर से दबाकर पीड़ित या विकृत करना 5. दमन करना।

कुचला (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का वृक्ष जिसके बीज विषैले होते हैं जो औषधि बनाने के काम आते हैं 2. कुपीलु 3. कुचलकर तैयार की गई कोई खाद्य सामग्री।

कुचली [सं-स्त्री.] वह दाँत जिनसे खाने की चीज़ें कुचली जाती है; (मोलर)।

कुचाल [सं-स्त्री.] 1. दुष्टता 2. दुराचार 3. कपटपूर्ण चाल 4. पाजीपन 5. बुरा और निंदनीय आचरण।

कुचालक (सं.) [सं-पु.] ऐसा पदार्थ जिसमें विद्युत एवं ताप प्रवाहित न हो; कुसंवाहक; (बैड कंडक्टर)।

कुचाली [सं-पु.] 1. बुरे चाल-चलन वाला व्यक्ति; कुमार्गी 2. धोखेबाज़ या दुष्ट व्यक्ति।

कुचाह [सं-स्त्री.] 1. अनुचित चाह या इच्छा; कुत्सित अभिलाषा 2. अशुभ या अमंगल चाह।

कुचित (सं.) [वि.] 1. सिकुड़ा हुआ 2. थोड़ा; अल्प।

कुचिपुड़ि (ते.) [सं-स्त्री.] एक दक्षिण भारतीय नृत्य; आंध्र का एक शास्त्रीय नृत्य।

कुचिया [सं-स्त्री.] 1. छोटी टिकिया 2. छोटी रोटी (आकार में)।

कुचेष्टा (सं.) [सं-स्त्री.] बुरी चेष्टा; गलत प्रयत्न।

कुचैन (सं.) [सं-स्त्री.] कष्ट; दुख; व्याकुलता।

कुचैला (सं.) [वि.] 1. जिसने गंदे और मैले कपड़े पहन रखे हों; मैले कपड़ेवाला 2. मलिन; मैला; गंदा।

कुछ [वि.] 1. थोड़ी संख्या या मात्रा का 2. ज़रा; थोड़ा-सा 3. मान्य; प्रतिष्ठित। [सर्व.] 1. कोई (वस्तु) 2. बड़ी या अच्छी बात 3. काम की वस्तु; सार की चीज़। [सं-पु.] कोई वस्तु।

कुछेक [वि.] थोड़ा-सा; कुछ।

कुजंत्र (सं.) [सं-पु.] 1. बुरा यंत्र 2. अभिचार; टोटका; टोना।

कुजोग (सं.) [सं-पु.] 1. प्रतिकूल अवसर 2. बुरा समय 3. बुरा संयोग 4. कुसंग।

कुज्झटिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कुहरा; कोहरा 2. कुज्झटी।

कुटंत [सं-स्त्री.] 1. कूटने या कूटे जाने की क्रिया या भाव 2. मार पड़ना; पिटाई।

कुट (सं.) [सं-पु.] 1. घर; गृह 2. दुर्ग; गढ़ 3. कलश 4. वृक्ष 5. पहाड़ 6. हथौड़ा।

कुटक [सं-पु.] 1. मथानी का डंडा 2. हल का फाल 3. एक पेड़ 4. एक प्राचीन देश।

कुटका [सं-पु.] 1. छोटा टुकड़ा 2. सिंघाड़ा 3. तिकोना बूटा जिसे कशीदे में काढ़ा जाता है।

कुटकी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक वनस्पति जिसके जड़ का उपयोग औषधि निर्माण में किया जाता है 2. कँगनी, काकुन अथवा चेना नामक कदन्न 3. एक छोटी चिड़िया जिसके शरीर का रंग ऋतु के अनुसार परिवर्तित होता रहता है 4. मच्छर जैसा एक छोटा कीड़ा जो काटता है 5. किसी चीज़ का छोटा टुकड़ा, जैसे- सुपारी की कुटकी।

कुटज (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का जंगली पौधा; कुरैया 2. बनचमेली 3. कमल 4. इंद्रजौ 5. महर्षि अगस्त्य 6. द्रोणाचार्य।

कुटनपन (सं.) [सं-पु.] 1. कुटनी का काम या पेशा 2. दो व्यक्तियों में झगड़ा लगाने का काम।

कुटना [सं-पु.] 1. ऐसा व्यक्ति जो स्त्रियों को बहकाकर परपुरुषों के पास ले जाता है; भड़ुआ 2. दो व्यक्तियों या दलों के बीच फूट डालने वाला व्यक्ति।

कुटनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. स्त्रियों को बहकाकर परपुरुषों के पास ले जाने वाली स्त्री 2. झगड़ा कराने वाली स्त्री।

कुटम्मस [सं-स्त्री.] किसी को मारने-पीटने की क्रिया या भाव; कुटाई।

कुटवाना [क्रि-स.] 1. कूटने की क्रिया दूसरे से कराना 2. पिटवाने का काम किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा कराना।

कुटाई [सं-स्त्री.] 1. किसी वस्तु को कूटने की क्रिया या भाव 2. किसी वस्तु को कूटने का कार्य करने की मज़दूरी 3. मारने-पीटने या मारे-पीटे जाने की क्रिया या भाव।

कुटाई-पिसाई [सं-स्त्री.] 1. कूटने और पीसने का कार्य 2. शोधन; शुद्धिकरण।

कुटिया (सं.) [सं-स्त्री.] छोटी झोपड़ी; कुटीर; कुटी।

कुटिल (सं.) [वि.] 1. टेढ़ा 2. मन में कपट व द्वेष रखने वाला; चंट; कपटी 3. दुष्ट 4. {ला-अ.} दिल का काला; चालाक।

कुटिलगति (सं.) [वि.] 1. एक वृत्त 2. वक्रगामी 3. टेढ़ी चाल 4. छलने वाला; छली।

कुटिलता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चालाकी 2. दुष्टता।

कुटिलतापूर्ण (सं.) [सं-पु.] धूर्ततापूर्ण।

कुटिला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पंजाब की एक प्राचीन नदी; सरस्वती नदी 2. एक प्राचीन भारतीय लिपि 3. असबर्ग नामक औषधि और गंध द्रव्य 4. (पुराण) राधिका की ननद जो आयान घोष की बहन थी।

कुटी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. झोपड़ी; छप्पर; मड़ई; पर्णशाला 2. ऋषियों, साधुओं आदि के रहने का स्थान।

कुटीर (सं.) [सं-पु.] घास-फूस का बना छोटा घर; कुटी; झोपड़ी।

कुटीरउद्योग (सं.) [सं-पु.] 1. घरेलू स्तर पर चलाया जाने वाला व्यवसाय 2. छोटे स्तर का उद्योग।

कुटुंब (सं.) [सं-पु.] 1. एक ही कुल या परिवार के वे लोग जो सब मिलकर एक साथ रहते हों 2. कुनबा 3. ख़ानदान 4. परिवार।

कुटुंबी (सं.) [वि.] 1. बाल-बच्चे वाला; कुनबेवाला 2. एक ही परिवार के सभी लोग 3. रिश्तेदार; नातेदार।

कुटेक [सं-स्त्री.] 1. अपना कथन या मत ठीक न होने पर भी ज़िद करते हुए उसे ठीक कहते या मानते रहने की अवस्था या भाव 2. किसी काम के लिए किया जाने वाला अनुचित आग्रह या हठ; किसी काम या बात के लिए ऐसा आग्रह जो उचित या उपयुक्त न हो; दुराग्रह।

कुटेव [सं-स्त्री.] बुरी आदत; बुरी लत; बान; कुव्यसन; दुर्व्यसन; हवस; इल्लत; ऐब।

कुटौनी [सं-स्त्री.] 1. अनाज आदि कूटने की क्रिया 2. अनाज आदि कूटने की मज़दूरी या पारिश्रमिक; कुटाई।

कुट्टा (सं.) [सं-पु.] 1. वह पक्षी जिसका पर कटा हो 2. पक्षियों को आकर्षित करने के लिए जाल में छोड़ा हुआ उक्त प्रकार का पक्षी जिसके पर या पैर बँधे होते हैं; चारा पक्षी 3. मुल्लह।

कुट्टी [सं-स्त्री.] 1. किसी से अनबन हो जाने पर हाथ से किया गया संकेत 2. कट्टी 3. छोटे-छोटे टुकड़ों में कटा हुआ चारा 4. कूट कर सड़ाया हुआ कागज़, जिससे खिलौने आदि बनाए जाते हैं।

कुठ (सं.) [सं-पु.] वृक्ष; पेड़।

कुठला (सं.) [सं-पु.] अनाज रखने का पात्र; खत्ती; बखार; अंगनाश; कोठार।

कुठाँव [सं-स्त्री.] 1. घातक या भयप्रद स्थान 2. शरीर का कोमल या सुकुमार अंग; मर्मस्थल 3. अनुपयुक्त स्थान; बुरा स्थान 4. अनुपयुक्त अवसर।

कुठार (सं.) [सं-पु.] 1. कुल्हाड़ा 2. फरसा; परशु 3. अन्न गोदाम 4. (पुरातत्व) धारदार सिरे वाला एक प्राचीन औज़ार जिसमें अलग से हत्था लगाया जाता है और उसकी धार हत्थे के समानांतर होती है 5. अनाज रखने का बड़ा बरतन; कोठिला। [वि.] नाश करने वाला; सत्यानाशी।

कुठार हथौड़ा (सं.) [सं-पु.] (पुरातत्व) लकड़ी, पत्थर, लोहा या अन्य किसी धातु आदि को ठोकने-पीटने, काटने जैसे काम में आने वाला औज़ार।

कुठाराघात (सं.) [सं-पु.] 1. कुल्हाड़ी लगने से होने वाला आघात 2. {ला-अ.} बहुत हानि पहुँचाने वाला कार्य; सर्वनाश।

कुठारिक (सं.) [सं-पु.] लकड़ी काटने का काम करने वाला व्यक्ति; लकड़हारा। [वि.] लकड़ी काटने वाला।

कुठाली (सं.) [सं-स्त्री.] सोना, चाँदी आदि गलाने के लिए सुनारों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला मिट्टी का बना हुआ घरिया जैसा छोटा पात्र; संगलन पात्र।

कुठिया [सं-स्त्री.] 1. अनाज रखने के लिए बना मिट्टी का बरतन; कोठी 2. छोटा कुठला।

कुठौर [सं-पु.] 1. अनुचित जगह; बुरा स्थान 2. अनुपयुक्त अवसर।

कुडौल [वि.] जो सुडौल न हो; बेडौल; कुगठित; अनगढ़; बेढंगा; बेढब; भद्दा; कुरूप।

कुडौलता [सं-स्त्री.] 1. बेढंगापन; बेडौलता 2. कुरूपता 3. अशोभनीय।

कुड़ [सं-पु.] कुट नामक औषधि। [सं-स्त्री.] हल की अगवाँसी (लकड़ी) जिसमें फाल लगा रहता है।

कुड़क [सं-स्त्री.] ऐसी मुरगी जिसने अंडे देने बंद कर दिए हों।

कुड़की (फ़ा.) [सं-स्त्री.] सरकार द्वारा संपत्ति जब्त करने का आदेश; कुर्की।

कुड़कुड़ाना [क्रि-अ.] झुँझलाना; मन ही मन खीझना; भीतर-भीतर कुढ़ना; खीझकर कुछ बोलना।

कुड़कुड़ी [सं-स्त्री.] 1. पेट का गुड़गुड़ाना 2. किसी चीज़ को जानने की विकलता।

कुड़बुड़ाना [क्रि-अ.] खिन्न या रुष्ट होने पर मन ही मन कुछ शब्द कहना; बड़बड़ाना।

कुड़माई (पं.) [वि.] 1. सगाई 2. शादी के पूर्व रिश्ता पक्का करने के लिए की जाने वाली रस्म।

कुड़ल [सं-स्त्री.] 1. शरीर की ऐंठन 2. नस चढ़ना 3. तनाव या कष्ट।

कुड़व (सं.) [सं-पु.] 1. अन्न मापने का एक पुराना माप जो लगभग बारह मुट्ठी या एक पाव के बराबर होता है 2. उक्त मान का पात्र।

कुड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. इंद्रजौ नामक एक औषधीय वृक्ष 2. उक्त पेड़ का बीज; कुरैया; वत्सक।

कुढंग [सं-पु.] 1. अनुचित या बुरा ढंग 2. बुरी चाल 3. अनीति। [वि.] बुरे ढंग या प्रकार का।

कुढंगा [वि.] 1. जिसकी बनावट का ढंग ठीक न हो; बेढंगा 2. जो ठीक ढंग से काम न करता हो; बेशऊर; उजड्ड 3. कुरूप; भद्दा 4. जिसका आचरण या व्यवहार ठीक न हो; असभ्य।

कुढंगी [वि.] 1. कुमार्गी; कुपथगामी 2. आचरणहीन; बुरे चाल-चलन वाला।

कुढब [वि.] 1. बुरे ढंग का; बेढब 2. कठिन; दुस्तर; विकट।

कुढ़न [सं-स्त्री.] 1. कुढ़ने की क्रिया या भाव 2. विपत्ति, कष्ट के समय होने वाला संताप 3. मन में होने वाला दुख; खीज; चिढ़।

कुढ़ना [क्रि-अ.] 1. मन ही मन दुखी और विकल होना 2. किसी व्यक्ति या बात की ओर से मन में दुख और विरक्ति होना 3. खीजना; ईर्ष्या करना; चिढ़ना 4. अंदर ही अंदर जलना; डाह करना।

कुढ़ाना [क्रि-स.] 1. किसी को कुढ़ने में प्रवृत्त करना 2. किसी को दुखी करना 3. चिढ़ाना; खिझाना।

कुतका [सं-पु.] 1. डंडा; सोंटा 2. पैंतरा खेलने का वह डंडा जिसके ऊपर चमड़ा मढ़ा रहता है; गतका; गदका 3. भाँग घोंटने का डंडा 4. दाहिने हाथ का अँगूठा।

कुतना [क्रि-अ.] कूतने की क्रिया; कूता जाना।

कुतप (सं.) [सं-पु.] 1. दिन का आठवाँ पहर 2. कुश 3. एक प्रकार का बाजा 4. श्राद्ध में उपयोग की जाने वाली चीज़ें।

कुतबा (अ.) [सं-पु.] लेख; आलेख।

कुतरन [सं-पु.] कुतरा हुआ अंश या टुकड़ा।

कुतरना [क्रि-स.] 1. दाँतों से किसी चीज़ का थोड़ा अंश काटना 2. किसी वस्तु के छोटे-छोटे टुकड़े करना।

कुतर्क (सं.) [सं-पु.] 1. अनुचित, बुरा और गलत तर्क; वाक्छल 2. असंगत तर्क; अयुक्ति 3. बुरा विचार; कुविचार 4. किसी विचार को पुष्ट करने के लिए दी गई असंगत दलील।

कुतर्की (सं.) [सं-पु.] अनुचित या व्यर्थ का तर्क करने वाला व्यक्ति; वितंडावादी; निरर्थक दलील; बकवादी; मगजचट। [वि.] कुतर्क करने वाला; हैतुक; कठहुज्जती।

कुतिया [सं-स्त्री.] 1. कुत्ते की मादा; कुत्ती; कुकरी 2. {ला-अ.} नीच प्रकृति की स्त्री; बदचलन, दुष्ट, दुराचारी स्त्री 3. गाली के रूप में प्रयुक्त।

कुतुक (सं.) [सं-पु.] कौतुक; कुतूहल; उत्सुकता।

कुतुब (अ.) [सं-पु.] 1. किताबें; पुस्तकें 2. ध्रुवतारा।

कुतुबख़ाना (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. पुस्तकालय; वाचनालय; ग्रंथालय 2. किताबों की दुकान; किताबघर।

कुतुबनुमा (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] एक यंत्र जिससे दिशा का ज्ञान होता है; दिग्दर्शक यंत्र।

कुतुबफ़रोश (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] पुस्तक-विक्रेता; किताब बेचने वाला व्यक्ति।

कुतूहल (सं.) [सं-पु.] 1. जानने और सीखने की प्रबल इच्छा; कौतूहल; किसी अद्भुत या विलक्षण विषय के प्रति होने वाली जिज्ञासा; उत्सुकता 2. आश्चर्य; अचंभा 3. कौतुक-क्रीड़ा।

कुतूहलता (सं.) [सं-स्त्री.] जिज्ञासु होने की क्रिया या भाव; कौतूहल होने की अवस्था; कुतूहलशीलता।

कुतूहली (सं.) [वि.] 1. जिसे नई या अनोखी वस्तु देखने की तीव्र इच्छा हो 2. उत्कंठावाला 3. जिसका मन कौतुक में रमता हो; कौतुकी।

कुत्ता (सं.) [सं-पु.] 1. भेड़िए की जाति का एक प्रसिद्ध पालतू जानवर; कूकर; श्वान 3. {ला-अ.} लोभी और तुच्छ व्यक्ति; नीच मनुष्य 4. गाली के रूप में प्रयुक्त।

कुत्ती [सं-स्त्री.] 1. कुत्ते की मादा 2. कुतिया 3. गाली के रूप में प्रयुक्त।

कुत्तेखसी [सं-स्त्री.] 1. अत्यंत तुच्छ और गंदा कार्य 2. कुत्तों की तरह नोचने-खसोटने की क्रिया। [वि.] व्यर्थ और निम्न।

कुत्सन [सं-पु.] निंदा करना; भर्त्सना या बुराई करना।

कुत्सा (सं.) [सं-स्त्री.] निंदा; बुराई; गर्हणा।

कुत्सित (सं.) [वि.] 1. गंदा; घिनौना 2. अधम, नीच 3. निंदित।

कुत्स्य (सं.) [वि.] निंदा के योग्य; निंदा का पात्र; जिसकी निंदा की जानी चाहिए।

कुदकना [क्रि-अ.] प्रसन्न होने की अवस्था में बार-बार उछलते हुए चलना; कूदना।

कुदक्कड़ [सं-पु.] 1. कूदने वाला 2. थोड़ा-थोड़ा उछलने वाला।

कुदरत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. प्रकृति 2. निसर्ग 3. ईश्वरीय शक्ति; सामर्थ्य 4. रचना 5. दैवी शक्ति; माया; महिमा।

क़ुदरत (अ.) [सं-स्त्री.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कुदरत)।

कुदरती (अ.) [वि.] 1. प्राकृतिक 2. स्वाभाविक 3. नैसर्गिक।

कुदर्शन (सं.) [वि.] 1. जो देखने में सुंदर न हो; कुरूप; बदसूरत; भद्दा 2. जिसे देखना अशुभ माना जाता हो।

कुदाँई [वि.] 1. अनुचित ढंग से स्वार्थ साधने वाला 2. विश्वासघाती।

कुदाँव [सं-पु.] 1. किसी को हानि पहुँचाने के उद्देश्य से किया गया घात 2. विश्वासघात 3. कुघात 4. अनुपयुक्त स्थान या अवसर 5. मर्मस्थल।

कुदाना [क्रि-स.] 1. किसी को कूदने के लिए प्रेरित करना 2. किसी निर्जीव वस्तु को उछलने में प्रेरित करना।

कुदाम [सं-पु.] खोटा या जाली सिक्का; खोटा या जाली रुपया।

कुदाल (सं.) [सं-पु.] 1. मिट्टी खोदने का एक उपकरण 2. लकड़ी के बेंत लगा हुआ एक फावड़ेनुमा उपकरण।

कुदाली (सं.) [सं-स्त्री.] छोटी कुदाल।

कुदिन (सं.) [सं-पु.] बुरे दिन; ख़राब वक्त।

कुदृष्टि (सं.) [सं-स्त्री.] बुरी नज़र; पाप दृष्टि।

कुद्दूस (अ.) [वि.] 1. शुद्ध 2. पवित्र।

कुद्रव (सं.) [सं-पु.] कोदों।

कुनकुना (सं.) [वि.] थोड़ा या हलका गरम; कुछ गरम; गुनगुना (पानी)।

कुनना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी वस्तु को चिकना या चमकीला बनाने के लिए खरादना 2. छीलना; खरोचना।

कुनबा (सं.) [सं-पु.] 1. परिवार; कुटुंब 2. ख़ानदान 3. वे समस्त परिवारी जन जो एक साथ रहते हों।

कुनबी [सं-पु.] कुर्मी; खेती किसानी का कार्य करने वाली जाति।

कुनमुनाना [क्रि-अ.] 1. हलकी नींद का भाव 2. हलका विरोध।

कुनवा [सं-पु.] 1. खरादी 2. खरादने वाला व्यक्ति 3. लकड़ी या लोहे को छीलने, खरादने या सुडौल बनाने वाला व्यक्ति।

कुनह (फ़ा.) [सं-पु.] 1. पुरानी शत्रुता या वैर 2. अमर्ष; खुन्नस; द्वेष।

कुनही (फ़ा.) [वि.] 1. वैर रखने वाला 2. द्वेषी 3. जिसके मन में किसी के प्रति द्वेष हो।

कुनाई [सं-स्त्री.] 1. किसी वस्तु को खराद कर सुडौल बनाने की क्रिया या भाव 2. किसी वस्तु को छीलने या खरादने की मज़दूरी 3. किसी लकड़ी या लोहे आदि को छीलने या खरादने से प्राप्त होने वाले महीन कण; बुरादा 4. कोयले का चूरा।

कुनाम (सं.) [सं-पु.] बदनामी; अपयश।

कुनीति (सं.) [सं-पु.] बुरी नीति; दुर्नीति।

कुनेरा [सं-पु.] 1. खराद का काम करने वाला व्यक्ति 2. लकड़ी या लोहे आदि की कुनाई करने वाला व्यक्ति।

कुनैन (इं.) [सं-स्त्री.] सिनकोना नामक पेड़ की छाल के रस से बनाई जाने वाली एक औषधि जो शरीर में मलेरिया के कीटाणुओं का नाश करती है; कुनाइन।

कुपंथ (सं.) [सं-पु.] 1. कुमार्ग; बुरा मार्ग या रास्ता 2. अधर्म या अनीति का रास्ता 3. अनुचित मत 4. दुराचरण; बुरा आचरण।

कुप [सं-पु.] घास, भूसे आदि की ढेर।

कुपथ (सं.) [सं-पु.] 1. अधर्म या अनीति का मार्ग; कुमार्ग 2. निषिद्ध आचरण।

कुपथगामी (सं.) [वि.] 1. अधर्म या अनीति के मार्ग पर चलने वाला 2. कुमार्गी 3. निषिद्ध आचरण करने वाला।

कुपथ्य (सं.) [सं-पु.] वह आहार जो शरीर को नुकसान पहुँचाए; अनुपयुक्त आहार; अपथ्य; कुपथ्याहार; अपचार; स्वास्थ्यहर; अनाहार्य। [वि.] अहितकर आहार; स्वास्थ्यनाशक।

कुपाठ (सं.) [सं-पु.] किसी को अनुचित या बुरा कर्म करने के लिए दिया जाने वाला परामर्श; बुरी सलाह; कुमंत्रणा; कुपरामर्श।

कुपात्र (सं.) [सं-पु.] दान आदि प्राप्त करने में अयोग्य और अनधिकारी व्यक्ति। [वि.] 1. अयोग्य; नालायक 2. अनधिकारी 3. जो किसी चीज़ का पात्र न हो।

कुपित (सं.) [वि.] जो कोप से युक्त हो; जो क्रोध से भरा हो; क्रुद्ध; खफ़ा; नाराज़; अप्रसन्न।

कुपुत्र (सं.) [सं-पु.] अयोग्य पुत्र; आज्ञा न मानने वाला पुत्र; कपूत।

कुपोषण (सं.) [सं-पु.] वह अवस्था या स्थिति जब शरीर को संतुलित और पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है; शरीर में होने वाली आवश्यक और पोषक तत्वों की कमी; अपर्याप्त पोषण; (मैलन्यूट्रिशन)।

कुपोषित (सं.) [वि.] जिसके शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो; जिसे पर्याप्त मात्रा में या संतुलित भोजन न मिलता हो।

कुप्पा (सं.) [सं-पु.] 1. घी, तेल आदि रखने का तिकोना या गोल बरतन; मध्यकाल में तेल आदि रखने का चमड़े का बना हुआ पात्र 2. बड़ा दीपक 3. {ला-अ.} मोटा-ताज़ा व्यक्ति। [मु.] -लुढ़कना : किसी बड़े आदमी का मरना। -सा मुँह करना : रुष्ट होकर मुँह फुलाना। -होना : फूल जाना; हृष्ट-पुष्ट होना।

कुप्पी [सं-स्त्री.] 1. छोटा कुप्पा 2. एक बरतन से दूसरे छोटे मुँह वाले बरतन में किसी तरल पदार्थ को स्थानांतरित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला पात्र या उपकरण 3. छोटा दीया।

कुप्रथा (सं.) [सं-स्त्री.] समाज का अहित करने वाली प्रथा; बुरी प्रथा; कुरीति; व्यक्ति और समाज के लिए हानिकर रीति-रिवाज।

कुप्रबंध (सं.) [सं-पु.] दोषपूर्ण प्रबंध; अव्यवस्था; गड़बड़ी; बदइंतज़ामी; दुर्व्यवस्था।

कुप्रभाव (सं.) [सं-पु.] दुष्प्रभाव; बुरा असर।

कुफल (सं.) [सं-पु.] किसी गलत कार्य या बात के परिणामस्वरूप मिलने वाला बुरा फल या नतीजा; दुष्परिणाम।

कुफ़्र (अ.) [सं-पु.] 1. इस्लाम धर्म या मत के अनुसार उससे भिन्न अन्य धर्म या मत 2. एकमात्र ख़ुदा को न मानते हुए अनेक देवी-देवताओं की उपासना करना 3. इस्लाम धर्म की मान्यताओं एवं आज्ञाओं के विरुद्ध कोई सिद्धांत, आचरण या बात।

कुफ़्ल (अ.) [सं-पु.] धातु का बना एक उपकरण जो खास कुंजी या चाबी से बंद होता और खुलता है; ताला; (लॉक)।

कुबड़ा (सं.) [सं-पु.] ऐसा व्यक्ति जिसकी पीठ पर कूबड़ निकल आया हो; वह जो पीठ के टेढ़ी होकर पीछे की ओर निकल जाने वाले रोग से पीड़ित हो। [वि.] 1. टेढ़ा; वक्र; झुका हुआ; विनत 2. कुब्ज; कूबड़वाला।

कुबानी [सं-स्त्री.] 1. अभद्र या बुरी भाषा; कुवचन; गाली-गलौज 2. अशुभ वचन।

कुबुद्धि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अनुचित या अनुपयुक्त कार्यों के लिए प्रेरित करने वाली बुद्धि; कुटिलता 2. मूर्खता; बेवक़ूफ़ी 3. कुमंत्रणा; बुरी सलाह। [वि.] जिसकी बुद्धि ग़लत मार्ग पर चलती हो।

कुबूलना (अ.) [क्रि-स.] 1. स्वीकार करना 2. ग्रहण करना; अपनाना।

कुबेर (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) धन का स्वामी या देवता 2. {ला-अ.} धनी; धनपति।

कुबेला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अनुपयुक्त या बुरा समय; अमांगलिक काल 2. दुर्दिन।

कुबोल (सं.) [सं-पु.] अनुचित बात या वचन; बुरी बात; गाली-गलौज।

कुब्ज (सं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जिसकी पीठ पर कूबड़ हो 2. खड्ग; तलवार। [वि.] 1. जिसकी पीठ टेढ़ी हो या पीछे की ओर उभर गई हो; कुबड़ा 2. वक्र; टेढ़ा।

कुब्जक (सं.) [सं-पु.] मालती नामक पुष्पलता। [वि.] कुबड़ा।

कुब्जा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह स्त्री जिसकी पीठ पर कूबड़ हो; कुबड़ी स्त्री 2. (पुराण) कंस की एक कुबड़ी दासी जिसे कृष्ण के प्रति अनुराग था।

कुभा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पृथ्वी की छाया 2. काबुल नदी का प्राचीन नाम।

कुभाषा (सं.) [सं-स्त्री.] बुरी भाषा या बोली; अशिष्ट बोलचाल; गाली-गलौज।

कुमंत्रणा (सं.) [सं-स्त्री.] हानि पहुँचाने वाली या गलत मार्ग पर ले जाने वाली मंत्रणा या सलाह; कुपरामर्श; बुरी सलाह।

कुमक (तु.) [सं-पु.] 1. युद्धरत सेना अथवा सैनिक कार्यवाहियों की सहायता के लिए भेजी जाने वाली अतिरिक्त सैनिकों और रसद आदि की आपूर्ति; अनुपूर्ति 2. मदद; सहायता; कुमुक।

कुमकुम (सं.) [सं-पु.] 1. केसर 2. लाल रंग का एक महीन चूर्ण जिससे मस्तक पर तिलक लगाया जाता है; रोली।

कुमकुमा (अ.) [सं-पु.] 1. लाख या मोम से बनाया गया खोखला गोला जिसमें अबीर-गुलाल भरकर होली खेलते हुए लोग एक-दूसरे पर मारते हैं 2. सँकरे या छोटे मुँह का लोटा 3. काँच का छोटा रंगीन हंडा जिससे छत की सजावट की जाती है; बिजली का बल्ब।

कुमति (सं.) [वि.] जिसकी मति या बुद्धि भ्रष्ट हो गई हो; कुबुद्धि; दुर्बुद्धि। [सं-स्त्री.] ऐसी बुद्धि जो सही राह पर न ले जाती हो।

कुमरी (अ.) [सं-स्त्री.] पंडुक जाति की एक छोटी चिड़िया; बनमुरगी; भरत पक्षी।

कुमाऊँनी [सं-स्त्री.] 1. उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में बोली जाने वाली एक बोली 2. कुमाऊँ में बनी कोई चीज़।

कुमाच (अ.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का रेशमी कपड़ा 2. मोटी और बेडौल रोटी 3. केवाँच नामक लता।

कुमार (सं.) [सं-पु.] 1. युवावस्था या उससे कुछ पहले की अवस्था का पुरुष; युवा 2. पुत्र; बेटा 3. राजा का पुत्र; राजकुमार; युवराज 4. (पुराण) सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार नामक ऋषि जो सदा बालक ही रहते हैं 5. (पुराण) पार्वती के पुत्र कार्तिकेय 6. (पुराण) मंगल नामक ग्रह। [वि.] अविवाहित; कुँआरा।

कुमारत्व (सं.) [सं-पु.] 1. कुमार होने की अवस्था या भाव; नवयौवन 2. कौमार्य।

कुमारामात्य (सं.) [सं-पु.] (राजनीतिशास्त्र) प्राचीन भारतीय राजतंत्र-व्यवस्था का वह अधिकारी जो किसी मंत्री या दंडनायक के अधीन या सहायक रूप में काम करता था और प्रायः राजवंश से होता था।

कुमारिका (सं.) [सं-स्त्री.] जिसका कौमार्य भंग न हुआ हो; अक्षतयोनि या कुँआरी कन्या; कुमारी।

कुमारिलभट्ट (सं.) [सं-पु.] एक प्रसिद्ध दार्शनिक तथा शाबर भाष्य के रचयिता एवं श्रौत सूत्रों के प्रसिद्ध टीकाकार; सुप्रसिद्ध मीमांसक और भाष्यकार जो शंकराचार्य के समकालीन माने जाते हैं।

कुमारी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अविवाहित कन्या; कुँवारी लड़की 2. राजकुमारी 3. (पुराण) दुर्गा; पार्वती 4. अविवाहित लड़कियों या महिलाओं के नाम से पहले संक्षिप्त रूप में लगाया जाने वाला शब्द, जैसे- कु. मीरा, कु. रीना आदि।

कुमारीत्व (सं.) [सं-पु.] कुमारी होने की अवस्था या भाव, कुँवारापन; कौमार्य।

कुमारीपूजन (सं.) [सं-पु.] नवरात्रि आदि उत्सव के दिनों में कुँवारी कन्याओं का देवी के रूप में पूजन करने की प्रथा या रिवाज।

कुमार्ग (सं.) [सं-पु.] 1. अनुचित या ख़राब चाल-चलन; किसी अनैतिक या समाजविरोधी कार्य में लिप्तता; कुपथ 2. {व्यं-अ.} दुराचार; अपराध; अधर्म।

कुमार्गी (सं.) [वि.] 1. जो अनीति और अपराध के मार्ग पर चल रहा हो; कुमार्ग पर चलने वाला 2. बुरे या निंदनीय चरित्रवाला; दुश्चरित्र; बदचलन; दुराचारी।

कुमुक (तु.) [सं-स्त्री.] 1. युद्ध अथवा सैनिक कार्यवाहियों में सैनिकों तथा रसद आदि के रूप में भेजी जाने वाली अतिरिक्त सहायता; इमदाद; कुमक 2. किसी कार्य आदि में की गई ऐसी सहायता कि वह कार्य शीघ्र या ठीक तरह से हो।

कुमुख (सं.) [सं-पु.] 1. सुअर; शूकर 2. (रामायण) रावण की सेना का एक योद्धा। [वि.] बुरे मुख वाला।

कुमुद (सं.) [सं-पु.] 1. कमल के समान सफ़ेद फूलों वाला एक जलीय पौधा जिसके फूल रात को खिलते हैं; कोका; कुईं; (वाटरलिली) 2. चाँदी 3. (पुराण) एक नाग का नाम।

कुमुदिनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कमल की तरह का एक जलीय पौधा जिसमें सफ़ेद रंग के फूल लगते हैं जो रात के समय खिलते हैं; कुमुद; कुईं 2. वह स्थान जहाँ बहुत से कुमुद हों; तालाब।

कुमेरु (सं.) [सं-पु.] पृथ्वी का दक्षिणी सिरा; दक्षिणी ध्रुव; (साउथ पोल)।

कुमैत (अ.) [सं-पु.] 1. कालिमा लिए हुए लाल रंग 2. उक्त रंग का घोड़ा; कुम्मैद 3. अंगूर की लाल मदिरा। [वि.] कालापन लिए हुए लाल रंगवाला।

कुम्हड़ा [सं-पु.] एक लता अथवा उसका फल जिससे सब्ज़ी, मिठाई आदि बनाई जाती है; काशीफल; कद्दू; पेठा।

कुम्हड़ौरी [सं-स्त्री.] दाल आदि की पीठी में सफ़ेद कुम्हड़े के छोटे-छोटे टुकड़ों को मिलाकर तैयार की जाने वाली बड़ी।

कुम्हलाना [क्रि-अ.] 1. पानी या नमी आदि की कमी से मुरझा जाना; सूखने लगना 2. {ला-अ.} ताज़गी या प्रफुल्लता का न रहना; मंद होना; प्रभाहीन होना; कांति या चमक का न रहना 3. {ला-अ.} दुबलाना या कमज़ोर होना।

कुम्हार (सं.) [सं-पु.] 1. मिट्टी के बरतन आदि बनाने और बेचने वाला व्यक्ति; कुंभकार 2. मिट्टी के बरतनों का व्यवसाय करके आजीविका चलाने वाली एक जाति 3. उक्त जाति का व्यक्ति।

कुम्हारी [सं-स्त्री.] 1. कुम्हार का कार्य या भाव; मिट्टी के बरतन बनाने का काम; कुंभकारी; (पॉटरी) 2. कुम्हार जाति की स्त्री 3. कुम्हार की पत्नी 4. बर्रे की तरह का एक कीड़ा जो मिट्टी के खोल में रहता है।

कुयश (सं.) [सं-पु.] अपयश; बदनामी; कुख्याति; कलंक।

कुरंग (सं.) [वि.] बदरंग; बुरे रंग का। [सं-पु.] 1. जो रंग अच्छा न हो 2. बादामी रंग का हिरन; सारंग; सुलोचन 3. (काव्यशास्त्र) बरवै नामक छंद का एक नाम 4. {ला-अ.} बुरे हालात या अवस्था।

कुरंगनयना (सं.) [सं-स्त्री.] वह स्त्री जिसकी आँखें कुरंग या हिरण के समान हों; सुनयना; कुरंगनेत्रा।

कुरंगिनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हिरण या मृग की मादा 2. {ला-अ.} सुंदर नेत्रों वाली स्त्री; कुरंगनयना, सुनयना।

कुरंड (सं.) [सं-पु.] 1. एक तरह का कड़ा पत्थर या खनिज पदार्थ जिसके चूर्ण से धारदार हथियार आदि को तेज़ करने की सान बनाई जाती है 2. उक्त पत्थर से बनाई गई सान; (ह्वेट स्टोन) 3. साकुरुंड का वृक्ष; 4. अखरोट का पेड़; अक्षोट वृक्ष 5. (महाभारत) कर्णपर्व में उल्लिखित एक देश जिसे केरल के निकट स्थित माना जाता है।

कुरआन (अ.) [सं-पु.] अरबी के मूल उच्चारण के अधिक निकट, अर्थ के लिए दे. कुरान।

कुरकुरा [सं-पु.] 1. वह खाद्य पदार्थ जो कुरकुर ध्वनि के साथ टूटता हो, जैसे- कुरकुरे बिस्कुट 2. वह सिंकी या तली हुई कुरकुरी चीज़ जिसे चबाने पर कुरकुर की आवाज़ निकलती है; करारा। [वि.] 1. जिसमें कड़ापन हो और जिसे तोड़ने पर कुरकुर की ध्वनि होती हो; (क्रिस्प)।

कुरकुराहट [सं-स्त्री.] कुरकुरी चीज़ के टूटने की आवाज़।

कुरता (तु.) [सं-पु.] पूरी या आधी बाँहोंवाला बिना कॉलर का एक ढीला-ढाला परिधान जो शरीर के ऊपरी भाग को ढकता है; एक प्रकार की कमीज़।

कुरती (तु.) [सं-स्त्री.] स्त्रियों का ऊपरी शरीर को ढकने वाला एक पहनावा; अँगिया या चोली।

कुरबान (अ.) [वि.] जिसके प्राणों की भेंट दी गई हो; जो न्योछावर किया गया हो; बलि चढ़ाया हुआ (पशु आदि)। [मु.] -जाना : न्योछावर होना, बलिहारी जाना। -होना : किसी उद्देश्य आदि के लिए समर्पित होना।

क़ुरबान (अ.) [वि.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कुरबान)।

कुरबानगाह (अ.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] कुरबानी करने का स्थान; बलिस्थान; वेदी।

कुरबानी (अ.) [सं-स्त्री.] 1. बक़रीद के अवसर पर मुसलमानों द्वारा ऊँट, बकरा आदि पशु की बलि चढ़ाने की एक प्रथा; पशुबलि 2. {ला-अ.} किसी सामाजिक या महान उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाने वाला आत्मत्याग; आत्मबलिदान।

क़ुरबानी (अ.) [सं-स्त्री.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कुरबानी)।

कुरर (सं.) [सं-पु.] 1. क्रौंच या कराँकुल नामक पक्षी 2. एक प्रकार का गिद्ध पक्षी; वज्रचंचु; वज्रतुंड 3. टिटिहरी नामक पक्षी; टिट्टिभ।

कुररी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (काव्यशास्त्र) आर्या छंद का एक भेद 2. पानी के समीप रहने वाला सलेटी रंग तथा लंबी चोंच वाला एक प्रसिद्ध पक्षी; क्रौंच।

कुरलना [क्रि-अ.] पक्षियों आदि का मधुर आवाज़ में बोलना; कलरव करना।

कुरला (सं.) [सं-पु.] लाल फलों वाली एक वनस्पति; कुरव; कटसरैया।

कुरलाना [क्रि-स.] कुरलने या मीठी आवाज़ में बोलने को प्रेरित करना; मधुर स्वर में बुलवाना।

कुरव (सं.) [सं-पु.] 1. कर्कश स्वर 2. एक प्रकार का वृक्ष जिसमें लाल रंग के फूल लगते हैं; कटसरैया 3. {ला-अ.} गीदड़। [वि.] कर्कश स्वरवाला; जिसकी आवाज़ मधुर न हो।

कुरसी (अ.) [सं-स्त्री.] 1. घर या कार्यालय में बैठने के लिए प्रयोग की जाने वाली चार पायोंवाली एक प्रकार की ऊँची चौकी या आसन जिसमें पीठ टिकाने के लिए लकड़ी या गद्दी लगी रहती है; (चेयर) 2. ज़मीन पर बनाया जाने वाला चबूतरे की तरह का वह ऊँचा आधार जिसपर इमारत आदि बनाई जाती है 3. पीढ़ी; पुश्त 4. {ला-अ.} वह स्थान जहाँ कोई अधिकारी बैठता हो; पद; ओहदा 5. {ला-अ.} प्रशासनिक या राजनीति अधिकार; प्रभुत्व; सत्ता। [मु.] -तोड़ना : बेकार बैठे रहना। -देना : किसी का सम्मान करना; इज़्ज़त करना।

कुरसीनशीन (अ.+फ़ा.) [वि.] 1. जिसे कोई पद या अधिकार आदि प्राप्त हो; पदासीन; पदस्थ 2. {ला-अ.} सम्मानित; प्रतिष्ठित।

कुरसीनामा (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. किसी कुल या परिवार की लिखित वंश परंपरा; वंशवृक्ष; शजरा; (फ़ैमिली ट्री) 2. वंशपरंपरा का लिखित इतिहास 3. (व्यंग्य) किसी राजनेता आदि की सत्ता या पद हासिल करने की कथा।

कुरान (अ.) [सं-पु.] 1. इस्लाम धर्म का आधार धर्मग्रंथ; माना जाता है कि इसमें मुहम्मद साहब द्वारा संकलित ख़ुदा के आदेश और इच्छाएँ हैं; कुरान मज़ीद; कुरान शरीफ़; कलामेपाक; कलामे मज़ीद।

क़ुरान (अ.) [सं-स्त्री.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कुरान)।

कुरारी [सं-स्त्री.] टिटिहरी नामक पक्षी; कुररी।

कुराह (सं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] कुमार्ग; समाज विरोधी क्रियाकलाप; दुराचार।

कुरियाल (सं.) [सं-स्त्री.] चिड़ियों आदि का पंख खुजलाना; फुरहरी लेना।

कुरी (सं.) [सं-पु.] 1. चेना नामक अन्न 2. अरहर की फलियाँ 3. घर; मकान; आवास। [सं-स्त्री.] 1. किसी चीज़ का ढेर; टीला 2. टुकड़ा; हिस्सा 3. एक प्रकार की जंगली झाड़ी जिसमें फूलों के दुरंगे गुच्छे खिलते हैं; (लैंटाना)।

कुरीति (सं.) [सं-स्त्री.] समाज या व्यक्ति को हानि पहुँचाने वाली अनुचित रीति; कुप्रथा; निंदनीय प्रथा।

कुरु (सं.) [सं-पु.] 1. (महाभारत) आर्यों का एक प्राचीन कुल या वंश; कुरुवंश 2. (महाभारत) एक प्रसिद्ध राजा जिसके वंश में पांडु और धृतराष्ट्र हुए 3. उक्त वंश में उत्पन्न पुरुष 4. एक प्राचीन प्रदेश जिसे वर्तमान में हरियाणा राज्य के अंतर्गत माना जाता है।

कुरुई (सं.) [सं-स्त्री.] मूँज नामक घास सुखाकर बनाई गई छोटी डलिया; बाँस की छोटी डलिया।

कुरुक्षेत्र (सं.) [सं-पु.] 1. (महाभारत) कुरुवंशीय राजाओं का राज्य या क्षेत्र; वह स्थान जहाँ महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध हुआ था 2. वर्तमान में हरियाणा राज्य में पानीपत नगर के पास तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध एक नगर 3. {ला-अ.} लड़ाई का मैदान; वह स्थान जहाँ कलह मचा हो।

कुरुचि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. घटिया या सस्ती अभिरुचि; जिस रुचि में परिष्कार का अभाव हो 2. अभद्रता; अश्लीलता।

कुरुविंद (सं.) [सं-पु.] 1. माणिक या नीलम के समान एक बहुमूल्य रत्न 2. दर्पण; शीशा 3. वह लाल पदार्थ जिसका प्रयोग स्त्रियाँ माथे पर बिंदी लगाने में करती हैं; ईंगुर 4. काला नमक।

कुरूप (सं.) [वि.] 1. जो देखने में अच्छा न लगता हो; अनाकर्षक; विकर्षक; विद्रूप; बदसूरत 2. बेडौल; बेढंगा।

कुरूपता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कुरूप होने की अवस्था या भाव; बदसूरती; रूपहीनता 2. भद्दापन।

कुरेदना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी पदार्थ या चीज़ में नीचे की तरफ़ से कुछ निकालने के लिए ऊपर की परत को हटाना; खुरचना 2. किसी कठोर सतह पर कुछ उत्कीर्ण करना; खरोंचना; उकेरना; उभारना 3. लकड़ी, कोयले आदि की राख झाड़कर आग को दहकाना 4. {ला-अ.} किसी रहस्य आदि की जानकारी के लिए किसी को बहलाकर जानकारी लेना; किसी से कोई बात जानने की कोशिश करना।

कुरेदनी [सं-स्त्री.] एक नोकदार और लंबी छड़ जिससे भट्ठी की आग आदि को कुरेदा और पलटा जाता है; खोदनी; शलाका।

कुरैया (सं.) [सं-स्त्री.] 1. लंबी लहरदार पत्तियों तथा सुंदर फूलों वाला एक जंगली पौधा; गिरिमल्लिका; कुटज; यवकलश 2. उक्त पौधे के बीज जिन्हें इंद्रजौ कहते हैं और जो औषधि के रूप में प्रयुक्त होते हैं।

कुरैश (अ.) [सं-पु.] अरब का एक प्रतिष्ठित वंश या कबीला जिसमें हज़रत मुहम्मद का जन्म हुआ था।

कुरैशी (अ.) [वि.] कुरैश समुदाय से संबंध रखने वाला। [सं-पु.] मुसलमानों में एक कुलनाम या सरनेम।

कुर्क (तु.) [वि.] न्यायालय के आदेशानुसार अथवा राज्य या शासन द्वारा ज़ब्त किया हुआ (माल या संपत्ति)।

क़ुर्क़ (तु.) [वि.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कुर्की)।

कुर्कअमीन (तु.+अ.) [सं-पु.] 1. शासन का कर्मचारी जो न्यायालय के आदेशानुसार बकायादारों आदि का माल ज़ब्त करता हो 2. संपत्ति कुर्क करने वाला अधिकारी।

कुर्की (तु.) [सं-स्त्री.] 1. किसी देनदारी या जुर्माने आदि की वसूली के लिए माल-जायदाद आदि की होने वाली ज़ब्ती 2. किसी की जायदाद, या धन-संपत्ति कुर्क करने की क्रिया।

कुर्कुट (सं.) [सं-पु.] 1. मुरगा; कुक्कुट 2. कूड़ा।

कुर्ता (तु.) [सं-पु.] दे. कुरता।

कुर्ती (तु.) [सं-स्त्री.] दे. कुरती।

कुर्बत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. नज़दीकी; निकटता; बहुत निकट का संबंध 2. सहवास; संभोग।

कुर्मी [सं-पु.] 1. मुख्यतः खेती-किसानी से आजीविका चलाने वाली एक जाति या समुदाय 2. उक्त समुदाय का व्यक्ति 3. उक्त जाति के व्यक्ति का कुलनाम या सरनेम; कुनबी।

कुर्री [सं-स्त्री.] जुते हुए खेत में मिट्टी के ढेले को तोड़ने या खेत को समतल करने का एक उपकरण; हेंगा; पाटा; सोहागा; पटेला; पटरा।

कुर्सी (अ.) [सं-स्त्री.] दे. कुरसी।

कुर्सीनशीं (फ़ा.) [वि.] दे. कुरसीनशीं।

कुलंग (फ़ा.) [सं-पु.] 1. मटमैले रंग का एक पक्षी 2. मुरगा; कुक्कुट 3. एक हथियार जिसमें लोहे के डंडे में दूसरा टेढ़ा और नुकीला डंडा लगा रहता है।

कुल1 (सं.) [सं-पु.] 1. वंश; ख़ानदान; घराना 2. समूह; झुंड 3. जाति 4. तंत्र की साधना करने वाला मार्ग; वाममार्ग 5. (संगीत) एक प्रकार की ताल।

कुल2 (अ.) [वि.] 1. मान या मात्रा के विचार से जितना हो उतना सब, जैसे- कुल बीस आदमी आए थे 2. सारा; संपूर्ण; तमाम; (टोटल)।

कुलक1 (सं.) [सं-पु.] 1. एक साथ एक ही स्थान पर बनने या काम आने वाली वस्तुओं का समूह; (सेट) [वि.] अच्छे कुल या ख़ानदान का।

कुलक2 [सं-पु.] छोटे भू-स्वामी या समृद्ध किसान।

कुलकलंक (सं.) [सं-पु.] बुरे आचरण से अपने कुल की प्रतिष्ठा नष्ट करने वाला व्यक्ति; अपने कुल को कलंकित करने वाला; कुलबोरन; कुलांगार।

कुलकानि (सं.) [सं-स्त्री.] कुल की प्रतिष्ठा; कुल की मर्यादा।

कुलकुलाना [क्रि-अ.] 1. कुलकुल की आवाज़ उत्पन्न होना 2. व्यथित होना; विकल होना। [क्रि-स.] 1. कुलकुल शब्द उत्पन्न करना 2. व्यथित और विकल करना।

कुलक्षण (सं.) [सं-पु.] 1. (मान्यता) किसी के शरीर पर दिखने वाला कोई बुरा चिह्न या लक्षण 2. {ला-अ.} बदचलनी; कुचाल। [वि.] जो बुरे या अशुभ लक्षणों से युक्त हो।

कुलक्षणी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उस स्त्री के लिए प्रयुक्त शब्द जिसमें अच्छे लक्षण न हों 2. कुल को बदनाम करने वाली स्त्री; कुल को लांछन लगाने वाली 3. {व्यं-अ.} समाज के विहित नियमों को तोड़ने वाली स्त्री 4. स्त्रियों के लिए प्रयुक्त एक प्रकार की गाली। [वि.] बुरे लक्षणों से युक्त।

कुलगुरु (सं.) [सं-पु.] 1. किसी कुल या परिवार का पुरोहित; वंश या कुल के सदस्यों को दीक्षा या ज्ञान देने वाला गुरु 2. गुरुकुल का अधिष्ठाता।

कुलगौरव (सं.) [सं-पु.] कुल या परिवार का गौरव तथा प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला (पुत्र या पुत्री); कुलभूषण; कुलतिलक।

कुलचा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. आटा, दूध और मक्खन आदि मिलाकर बनाई जाने वाली एक प्रकार की ख़मीरी रोटी; ख़मीरी टिकिया 2. तंबू या खेमे के डंडे के ऊपर लगा हुआ गोल लट्टू।

कुलज (सं.) [सं-पु.] 1. वह जो किसी प्रसिद्ध या उत्तम माने जाने वाले कुल में उत्पन्न हुआ हो; कुलीन; शरीफ़ 2. एक लता जिससे प्राप्त फल की सब्ज़ी बनती है; परवल; राजफल; पटुक।

कुलट (सं.) [सं-पु.] वैवाहेतर संबंध से उत्पन्न संतान; अनौरस संतान; जारज संतान। [वि.] बुरे चरित्रवाला; व्यभिचारी; बदचलन।

कुलटा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. समाज की मान्यताओं एवं नीति-नियमों के अनुसार न चलकर बुरे आचरण वाली स्त्री; सामाजिक रूप से अनैतिक संबंध बनाने वाली स्त्री; दुराचारिणी 2. वह नायिका जो अनेक पुरुषों से संबंध स्थापित करती है 3. स्त्रियों के लिए प्रयुक्त एक प्रकार की अशिष्ट गाली।

कुलतंत्र (सं.) [सं-पु.] 1. प्राचीन काल में प्रचलित वह शासन प्रणाली जिसमें कोई विशिष्ट कुल या समूह ही शासन किया करता था 2. ऐसी शासन प्रणाली जिसके अंतर्गत सभी कार्य उच्च कुल के व्यक्तियों के एक समूह द्वारा ही चलाए जाते हैं; कुलीनतंत्र; वर्गतंत्र; (ऑलिगार्की)।

कुलतारन (सं.) [सं-पु.] कुल या वंश को तारने वाला व्यक्ति; वह जिसके कार्यों या उपलब्धियों से परिवार या कुल का यश बढ़ता हो। [वि.] कुल या वंश को तारने वाला; कुल की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला।

कुलथी (सं.) [सं-स्त्री.] उड़द के समान एक मोटा अन्न जो चौपायों को खिलाया जाता है और जिसकी दाल भी बनती है; कालवृंत; खुरथी।

कुलदीप (सं.) [सं-पु.] 1. वह पुत्र जो परिवार की प्रतिष्ठा या यश को बढ़ाता हो; कुलदीपक 2. {ला-अ.} किसी परिवार में इकलौती और होनहार संतान।

कुलदीपक (सं.) [सं-पु.] कुलदीप।

कुलदेवता (सं.) [सं-पु.] वह देवता जिसकी पूजा किसी कुल या परिवार में परंपरागत रूप से होती आ रही हो; कुलदेव; इष्टदेव; अधिदेव।

कुलदेवी (सं.) [सं-स्त्री.] वह देवी जिसकी पूजा किसी परिवार या कुल में परंपरागत रूप से होती आई हो।

कुलद्रुम (सं.) [सं-पु.] दस प्रमुख वृक्ष- बेल, बरगद, पीपल, गूलर, नीम, आँवला, लसोड़ा, इमली, करंज और कदंब।

कुलधर्म (सं.) [सं-पु.] ऐसा आचरण, रीति या कर्तव्य जिसका पालन या अनुसरण किसी कुल या परिवार के सभी लोग परंपरा से करते चले आ रहे हों; किसी कुल में अनिवार्य माने जाने वाले नियम या कानून।

कुलन [सं-स्त्री.] दर्द; कष्ट; पीड़ा; टीस।

कुलना [क्रि-अ.] दर्द या पीड़ा होना; टीसना।

कुलनाम [सं-पु.] 1. व्यक्ति के नाम के साथ जुड़ा हुआ कुल या गोत्र का नाम; उपनाम; (सरनेम) 2. वह नाम जिससे व्यक्ति की जाति अथवा अन्य बातों का पता चलता हो।

कुलनार [सं-पु.] एक प्रकार का खनिज जिसका रंग सुरमई होता है; जिप्सम नामक पदार्थ; सेलखड़ी; संगजराहत।

कुलपति (सं.) [सं-पु.] 1. किसी विश्वविद्यालय का प्रधान अधिकारी; (वाइस चांसलर) 2. पितृसत्तात्मक व्यवस्था के अंतर्गत किसी कुल या परिवार का स्वामी; मुखिया 3. प्राचीन काल में गुरुकुल का प्रधान अधिकारी जो छात्रों की शिक्षा और भोजन आदि की व्यवस्था करता था।

कुलपूज्य (सं.) [वि.] 1. किसी कुल या परिवार में जिसकी पूजा परंपरागत रूप से होती चली आ रही हो 2. जिसकी पूजा किसी कुल के सभी लोग करते हों।

कुलफ़ा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का शाक जिसके पत्ते दलदार डंठल के पास नुकीले और सिरे पर चौड़े होते हैं।

कुलफ़ी (अ.) [सं-स्त्री.] 1. औटा हुआ दूध और मेवा मिलाकर बरफ़ में रखकर जमाया गया ठंडा खाद्य पदार्थ; (आइसक्रीम) 2. वह साँचा जिसमें चीनी, मलाई आदि भरकर बरफ़ में रखकर जमाया जाता है 3. हुक्के में नैचे और निगाली को जोड़ने वाली पीतल या ताँबे की पतली नली।

कुलबंधु (सं.) [सं-पु.] एक ही कुल या परिवार के लोग; स्वजन; भाई-बंधु; भाईबंद।

कुलबुलाना [क्रि-अ.] 1. बहुत से छोटे-छोटे जीवों का धीरे-धीरे एक साथ हिलना-डुलना 2. साँप आदि जंतुओं का इधर-उधर रेंगना 3. {ला-अ.} कुछ कहने के लिए बहुत व्यग्र होना; परेशान या बेचैन होना।

कुलबुलाहट [सं-स्त्री.] 1. कुलबुलाने की अवस्था, क्रिया या भाव 2. इधर-उधर रेंगना 3. {ला-अ.} व्याकुलता।

कुलबोरन [वि.] बुरे आचरण या कुकृत्य से कुल या परिवार को कलंकित करने वाला; अपने कुल की मर्यादा नष्ट करने वाला; नालायक।

कुलमर्यादा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी कुल या ख़ानदान के आचरण संबंधी नियम जिनके पालन की अपेक्षा परंपरानुसार सभी वंशजों से की जाती है 2. परिवार की नेकनामी; वंश की प्रतिष्ठा।

कुलमुख़्तार (सं.+अ.) [सं-पु.] वह जिसे परिवार, धन-संपत्ति आदि सारी बातों पर निर्णय का पूरा-पूरा अधिकार दिया गया हो।

कुलवंत (सं.) [वि.] जो किसी प्रसिद्ध कुल में जन्मा हो; कुलीन; अच्छे वंश का।

कुलवधू (सं.) [सं-स्त्री.] किसी कुल या परिवार की बहू; गुणवान स्त्री; परिवार के नीति-निर्देशों का पालन करने वाली या मर्यादा से रहने वाली स्त्री; कुलांगना।

कुलश्रेष्ठ (सं.) [सं-पु.] कायस्थ समाज में एक कुलनाम या सरनेम। [वि.] कुल में सबसे श्रेष्ठ या उत्तम।

कुलसचिव (सं.) [सं-पु.] विश्वविद्यालय का उच्च व्यवस्थापक अधिकारी; (रजिस्ट्रार)।

कुलह (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की गोल टोपी 2. शिकारी चिड़ियों की आँखें ढक कर रखने के लिए प्रयोग की जाने वाली एक प्रकार की टोपी; अँधियारी।

कुलाँच (तु.) [सं-स्त्री.] 1. छलाँग; चौकड़ी; उछाल 2. दोनों हाथों के बीच की दूरी। [मु.] कुलाँचें मारना : बहुत तेज़ दौड़ना।

कुलाँचना [क्रि-अ.] चौकड़ी भरना; छलाँग लगाना।

कुलांगना (सं.) [सं-स्त्री.] अच्छे कुल या घर की स्त्री; गुणवान स्त्री; कुलवधू।

कुलांगार (सं.) [सं-पु.] अपने कुल का नाश करने वाला व्यक्ति; कुल पर कलंक लगाने वाला व्यक्ति।

कुलाचार (सं.) [सं-पु.] 1. किसी कुल या परिवार द्वारा परंपरा से व्यवहृत रीति-नीति या आचार; कुल-धर्म 2. वाममार्गियों का धर्म; कौल धर्म।

कुलाचार्य (सं.) [सं-पु.] 1. किसी कुल का गुरु या आचार्य 2. मठाधीश; पुरोहित; धर्माधिकारी।

कुलाधिपति (सं.) [सं-पु.] विश्वविद्यालय में एक मानद और सम्मानित पद जो कुलपति से उच्च स्थान पर होता है; (चांसलर)।

कुलाध्यक्ष (सं.) [सं-पु.] किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय का सर्वोच्च अधिकारी; (विज़िटर)।

कुलानुशासक (सं.) [सं-पु.] विश्वविद्यालय का अनुशासनाधिकारी; (प्रॉक्टर)।

कुलाबा (अ.) [सं-पु.] 1. किवाड़ को चौखट से जकड़ने वाला काँटा; पायचा 2. मछली पकड़ने का काँटा 3. नाली; मोरी।

कुलाल (सं.) [सं-पु.] 1. मिट्टी के बरतन आदि बनाने वाला व्यक्ति; कुम्हार 2. बनमुरगा 3. उल्लू।

कुलाह (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. ईरान-अफगानिस्तान आदि देशों में पगड़ी के नीचे पहनी जाने वाली ऊँची नोकदार टोपी 2. राजमुकुट; ताज।

कुलिंग (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का पक्षी; गौरैया 2. एक प्रकार का चूहा।

कुलिक (सं.) [सं-पु.] 1. शिल्पकार; कलाकार 2. किसी कुल का श्रेष्ठ या प्रधान व्यक्ति 3. (पुराण) आठ महानागों में से एक 4. एक प्रकार का काँटेदार पौधा; घुँघची 5. एक ही कुल से संबंधित व्यक्ति; स्वजन।

कुलिया [सं-पु.] नहर आदि से निकला हुआ छोटा नाला।

कुलिश (सं.) [सं-पु.] 1. इंद्र का वज्र; धरती पर गिरने वाली बिजली; गाज 2. हीरा 3. कुठार; कुल्हाड़ी।

कुली (तु.) [सं-पु.] 1. बस अड्डे या रेलवे स्टेशन आदि पर यात्रियों का सामान ढोने वाला व्यक्ति; हम्माल; (पोर्टर) 2. सेवक; दास; नौकर 3. भारत की आज़ादी से पहले कुछ ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा भारतीयों के लिए हीनार्थक संबोधन।

कुलीगीरी [सं-स्त्री.] कुली का काम; पल्लेदारी; मजूरी; ढुलाई।

कुलीन (सं.) [वि.] उत्तम या प्रसिद्ध कुल में उत्पन्न; ख़ानदानी; अभिजात। [सं-पु.] 1. किसी प्रसिद्ध कुल का व्यक्ति 2. उत्तम नस्ल का पशु।

कुलीनतंत्र (सं.) [सं-पु.] वह शासन प्रणाली या व्यवस्था जिसमें किसी देश या राज्य का शासन उच्च कुल के लोगों की एक समिति चलाती है; कुलतंत्र; (ऑलीगार्की)।

कुलीनता (सं.) [सं-स्त्री.] कुलीन होने की अवस्था या भाव; शालीनता और आभिजात्य।

कुलुफ़ (अ.) [सं-पु.] 1. ताला 2. किसी चीज़ को फँसाने के लिए लोहे आदि धातु का बना एक प्रकार का हुक; अँकुड़ी।

कुलेल (सं.) [सं-स्त्री.] आनंदक्रीड़ा; प्रसन्नता भरा खिलवाड़; कलोल।

कुल्माष (सं.) [सं-पु.] 1. वह खाद्यान्न या दाल जिसका बीज दो दलों वाला होता है, जैसे- चना, अरहर, मटर आदि 2. मोटा अनाज; कुलथी।

कुल्या (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कुलीन स्त्री 2. छोटी नदी या नहर; नाला; (चैनल) 3. जीवंती नामक एक औषधि 4. प्राचीन काल में प्रचलित एक तौल।

कुल्ला (सं.) [सं-पु.] 1. मुँह या दाँत साफ़ करने के लिए मुँह में पानी भरने और तेज़ी से बाहर फेंकने की क्रिया 2. कुल्ला करने के लिए पानी की वह मात्रा जो एक बार में मुँह के अंदर आ सके।

कुल्लियात (अ.) [सं-पु.] 1. किसी शायर या रचनाकार की समस्त प्रकार की रचनाओं (ग़ज़लों; मस्नवियों; मुसद्दस; मुखम्मस; नज़्मों आदि) का संग्रह (जबकि दीवान में सिर्फ़ ग़ज़लें ही रखी जाती हैं) 2. किसी रचनाकार की समस्त कृतियों का संग्रह।

कुल्ली [सं-स्त्री.] 1. मुँह को साफ़ करने के लिये मुँह में पानी भरकर और इधर-उधर घुमाकर बाहर फेंकने की क्रिया; कुल्ला 2. पानी की वह मात्रा जिसे एक बार में मुँह में लिया जा सके।

कुल्हड़ (सं.) [सं-पु.] 1. मिट्टी का पकाया हुआ छोटा पात्र या चुक्कड़ जिसमें चाय, दूध आदि पिया जाता हैं; कसोरा; प्याला; पुरवा; कूजा 2. गिलासनुमा एक छोटा पात्र।

कुल्हाड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. पेड़ काटने तथा लकड़ी फाड़ने का एक प्रसिद्ध औज़ार; कुठार; टाँगा; (ऐक्स) 2. परशु; फरसा।

कुल्हाड़ी [सं-स्त्री.] छोटा कुल्हाड़ा; परशु की तरह का हथियार; कुठार; कुठारी; टाँगी।

कुल्हिया [सं-स्त्री.] 1. छोटा कुल्हड़; चुक्कड़ 2. छोटा कसोरा 3. छोटी हाँड़ी। [मु.] -में गुड़ फोड़ना : छिपाकर कोई काम करना।

कुवचन (सं.) [सं-पु.] बुरे वचन; दुर्वचन; कुवाक्य; गाली-गलौज।

कुवलय (सं.) [सं-पु.] 1. नीली कुईं; कोका; इंदीवर 2. पृथ्वी; भूमंडल।

कुवाच्य (सं.) [सं-पु.] वह बात जिसे कहना अनुचित हो; न कहने लायक बात; कटु या कठोर शब्द; दुर्वचन; गाली। [वि.] जो कहने योग्य न हो।

कुविंद (सं.) [सं-पु.] वस्त्र बुनने वाला व्यक्ति; जुलाहा; बुनकर।

कुविचार (सं.) [सं-पु.] बुरा या गलत विचार; दुर्विचार; निंदनीय या कुत्सित विचार।

कुव्वत (अ.) [सं-स्त्री.] शक्ति; बल; ताकत; सामर्थ्य; कूवत।

क़ुव्वत (अ.) [सं-स्त्री.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कुव्वत)।

कुश (सं.) [सं-पु.] 1. कड़ी और नुकीली पत्तियों वाली एक प्रसिद्ध घास जिसकी पत्तियाँ हिंदुओं की पूजा, यज्ञ आदि में काम आती हैं; दर्भ 2. (रामायण) राम और सीता के एक पुत्र का नाम 3. हल का फाल; कुसी।

कुशन (इं.) [सं-पु.] कुरसी, सोफ़े, दीवान आदि पर बैठते समय कमर को सहारा देने के लिए लगाया जाने वाला गदेला या गद्दी।

कुशल (सं.) [सं-पु.] 1. स्वस्थ और सुखी रहने की अवस्था या भाव; मंगल; कल्याण; सलामती; क्षेम 2. (पुराण) कुश द्वीप का निवासी। [वि.] जो किसी काम को करने में दक्ष हो; जो किसी काम को श्रेष्ठ तरीके से करता हो; प्रशिक्षित; योग्य।

कुशलकामना (सं.) [सं-स्त्री.] किसी का कुशल या भला चाहने की कामना; कल्याणकामना।

कुशलक्षेम (सं.) [सं-पु.] कुशलमंगल; कुशलता, सुख-संपन्नता तथा स्वास्थ्य।

कुशलता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कुशल होने की अवस्था या भाव; ख़ैरियत 2. योग्यता; प्रवीणता; निपुणता।

कुशलपूर्वक (सं.) [क्रि.वि.] कुशलमंगल से; ख़ैरियत से; आराम से; अच्छी तरह।

कुशलप्रश्न (सं.) [सं-पु.] किसी से उसका या उसके परिवार के सुख-स्वास्थ्य की कुशल-मंगल पूछना; कुशलक्षेम पूछना; हाल-चाल मालूम करना; खोज-ख़बर; मिजाज़पुरसी।

कुशलमंगल (सं.) [सं-स्त्री.] किसी के परिवार जनों और स्वास्थ्य आदि की कुशलक्षेम; ख़ैरियत; सलामती।

कुशवाहा [सं-पु.] 1. क्षत्रिय समाज में एक कुलनाम या सरनेम 2. सब्ज़ी पैदा करने एवं उसका व्यापार करने वाली एक जाति; काछी।

कुशा1 (सं.) [सं-पु.] 1. कुश नामक वनस्पति या घास 2. रस्सी।

कुशा2 (फ़ा.) [परप्रत्य.] खोलने वाला; फैलाने या बढ़ाने वाला; सुलझाने वाला, जैसे- मुश्किलकुशा।

कुशाग्र (सं.) [वि.] 1. कुश की नोक जैसा नुकीला और तीखा; नुकीला; अति तीक्ष्ण 2. {ला-अ.} जिसकी बुद्धि बहुत तेज़ हो; चतुर; होशियार। [सं-पु.] कुशा का अगला नुकीला भाग।

कुशाग्रबुद्धि (सं.) [सं-स्त्री.] प्रखर बुद्धि; तेज़ बुद्धि। [वि.] जो बहुत जल्दी सब बातें समझ लेता है; तीक्ष्ण बुद्धिवाला; प्रखर मस्तिष्कवाला; शीघ्रता से सीखने वाला।

कुशादा (फ़ा.) [वि.] चारों ओर से खुला हुआ; लंबा-चौड़ा; विस्तारित; फैला हुआ।

कुशावती (सं.) [सं-स्त्री.] (रामायण) राम के पुत्र कुश की राजधानी।

कुशासन (सं.) [सं-पु.] 1. वह राज्य या शासन जिसमें अव्यवस्था और भ्रष्टाचार हो; ऐसा राज्य-प्रबंध जिसमें जनता के कल्याण या सुख-सुविधाओं का कोई प्रावधान या व्यवस्था न हो 2. कुश नामक घास का आसन; कुश की बनी हुई चटाई।

कुशीनगर (सं.) [सं-पु.] उत्तर प्रदेश राज्य में वह स्थान जहाँ बुद्ध का निर्वाण हुआ था।

कुशीलव (सं.) [सं-पु.] 1. कवि 2. चारण; भाट 3. गवैया; गायक 4. नाटक खेलने वाला; नट; अभिनेता 5. एक प्राचीन संत जिन्हें रामायण ग्रंथ का रचयिता और आदिकवि माना जाता है; वाल्मीकि।

कुशेशय (सं.) [सं-पु.] 1. कमल; पद्म; कुईं 2. कनकचंपा; कनिआरी 3. सारस 4. (पुराण) कुश द्वीप में स्थित एक पर्वत।

कुश्ती (फ़ा.) [सं-स्त्री.] एक प्रसिद्ध खेल या प्रतियोगिता जिसमें दो व्यक्तियों द्वारा एक-दूसरे को बलपूर्वक पछाड़ने या पटकने के लिए ज़ोर लगाया जाता है; पहलवानी; अखाड़ेबाज़ी; जोड़; मल्लयुद्ध; बाहुयुद्ध; (रेसलिंग)।

कुश्तीबाज़ (फ़ा.) [वि.] जो कुश्ती में भाग लेता हो; जो कुश्ती लड़ने का शौक़ीन हो; कुश्ती लड़ने वाला व्यक्ति; पहलवान; अखाड़िया दंगली, पट्ठा; (रेसलर)।

कुष्ठ (सं.) [सं-पु.] 1. एक रोग जिसमें शरीर की त्वचा सड़ने-गलने लगती है; कोढ़; (लेप्रॉसी) 2. कुट नामक औषधि।

कुष्ठाश्रम (सं.) [सं-पु.] वह आश्रम जहाँ कुष्ठ रोगियों को रखा जाता है; कुष्ठ रोगियों के रहने तथा उपचार कराने का स्थान।

कुष्मांड (सं.) [सं-पु.] 1. कुम्हड़ा; कद्दू 2. गर्भस्थ शिशु के चारों ओर लिपटी झिल्ली; जरायु।

कुसंग (सं.) [सं-पु.] असामाजिक या बुरे आचरण वाले लोगों की संगत या साथ; कुसंगति; बुरी सोहबत।

कुसंगति (सं.) [सं-स्त्री.] बुरे आचरण वाले लोगों के साथ उठना-बैठना; बुरे लोगों की संगति; कुसंग।

कुसंस्कार (सं.) [सं-पु.] मन में पड़े हुए दूषित संस्कार जो मन को गलत मार्ग पर ले जाते हैं; दुष्प्रवृत्ति।

कुसगुन [सं-पु.] ऐसी घटनाएँ या स्थितियाँ जो भावी अनिष्ट की सूचक मानी जाती हैं; अपशकुन।

कुसमय (सं.) [सं-पु.] 1. कष्ट या विपत्ति के दिन; बुरा वक्त या दौर 2. अनुपयुक्त समय 3. नियत समय से पहले या बाद का समय।

कुसाइत (सं.+अ.) [सं-स्त्री.] 1. वह साइत या मुहूर्त जो शुभ कार्य के लिए अनुकूल न माना जाता हो; बुरी साइत 2. (ज्योतिष) अशुभ मुहूर्त।

कुसीद (सं.) [सं-पु.] 1. ब्याज या सूद पर रुपए देने का काम; सूदख़ोरी; महाजनी 2. ब्याज पर दिया हुआ ऋण 3. मूलधन का ब्याज या सूद। [वि.] सूदख़ोर।

कुसुंभ (सं.) [सं-पु.] 1. एक पौधा जिसमें लाल फूल लगते हैं; कुसुम; अग्निशिखा 2. ठंडे प्रदेश में होने वाला एक पौधा जिसका रेशा उत्कृष्ट सुगंध के लिए प्रयोग किया जाता है; केसर; ज़ाफ़रान।

कुसुंभा (सं.) [सं-पु.] 1. कुसुम या कुसुंभ का लाल रंग 2. भाँग और अफीम के योग से बना हुआ एक मादक पेय पदार्थ। [सं-स्त्री.] आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की छठी तिथि।

कुसुंभी (सं.) [वि.] कुसुंभ या कुसुम के रंग का; लाल।

कुसुम (सं.) [सं-पु.] 1. पुष्प; फूल 2. एक प्रकार का लाल पुष्प।

कुसुमचाप (सं.) [सं-पु.] (पुराण) वह जिनका धनुष कुसुम या पुष्प का माना जाता है; कामदेव।

कुसुमशर (सं.) [सं-पु.] कामदेव; मदन।

कुसुमांजलि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. फूलों से भरी हुई अंजली; पुष्पांजलि 2. पूजा में पुष्प अर्पण करने की विधि।

कुसुमाकर (सं.) [सं-पु.] 1. वसंत; ऋतुराज 2. बाग; बगीचा; फुलवारी; पुष्पवाटिका 3. (काव्यशास्त्र) छप्पय छंद का एक भेद।

कुसुमायुध (सं.) [सं-पु.] पुष्प ही जिसके आयुध हों; कामदेव; मदन।

कुसुमित (सं.) [वि.] 1. जिसमें पुष्प लगे हों; खिला हुआ; पुष्पित 2. {ला-अ.} जो उमंग या उल्लास से फूला हुआ हो; उल्लसित; प्रसन्न।

कुसूर (अ.) [सं-पु.] दे. कसूर।

कुसूरवार (अ.) [वि.] दे. कसूरवार।

कुस्वप्न (सं.) [सं-पु.] बुरा स्वप्न या ख़्वाब; डराने वाला सपना।

कुहक [सं-स्त्री.] दे. कुहुक।

कुहकना [क्रि-अ.] 1. कूकना; कूजना; कुहुकना; कुहू-कुहू की आवाज़ करना 2. कोयल, मोर आदि पक्षियों का बोलना।

कुहन (फ़ा.) [वि.] पुराना; बहुत पहले का, जैसे- नक्शेकुहन (पुराने निशान, पुरानी छाप), दागेकुहन (पुराने दाग)।

कुहनी [सं-स्त्री.] बाँह और भुजा का संधिस्थल, जहाँ से हाथ मुड़कर दोहरा हो जाता है; कोहनी।

कुहर (सं.) [सं-पु.] 1. गुफ़ा 2. गड्ढा 3. बिल 4. कान या गले का छेद; छिद्र 5. एक प्रकार का सर्प 6. कंठ का स्वर 7. शून्य या नीरव स्थान।

कुहरा [सं-पु.] 1. हवा में मिले हुए जलवाष्प के अत्यंत सूक्ष्म कण जो वायुमंडल में फैलकर बादल की तरह अदृश्यता या धुँधलापन पैदा करते हैं तथा ठंड के कारण संघनित होकर नीचे गिरते रहते है; धुंध; कोहरा; कुहासा; (फॉग) 2. पर्यावरण में फैले हुए या हवा में घुले-मिले रासायनिक प्रदूषकों के संघनन से उत्पन्न बादल की तरह का वातावरण।

कुहराम (अ.) [सं-पु.] 1. कोलाहल; बावेला; कोहराम 2. बहुत सारे लोगों द्वारा एक साथ किया जाने वाला रुदन; रोना-पीटना; विलाप; मातम 3. {ला-अ.} किसी विपत्ति के समय होने वाली भागदौड़; हलचल।

कुहासा (सं.) [सं-पु.] हवा में मिले हुए या वातावरण में मौजूद जलवाष्प के अत्यंत सूक्ष्म कण जो बादल की तरह अदृश्यता या धुँधलापन पैदा करते हैं; धुंध; कोहरा; नीहार।

कुही (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की शिकारी चिड़िया जो बाज़ से छोटी और कौए से बड़ी होती है; बहरी; कुहर; शाही; शाहीन।

कुहुक (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ध्वनि; आवाज़ 2. कुहू-कुहू करने या कुहकने की क्रिया या भाव 3. कोयल या मोर की आवाज़ या बोल; कूक।

कुहुकना (सं.) [क्रि-अ.] कोयल आदि पक्षियों का मधुर स्वर में बोलना; कुह-कुह की आवाज़ करना; कूकना; कुहकना।

कुहू (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कोयल की कूक या बोली; मोर की केका-ध्वनि 2. (पुराण) अमावस्या की अधिष्ठात्री देवी या शक्ति; अमावस्या की रात।

कुहूरव (सं.) [सं-पु.] मीठी आवाज़ में बोलने वाला या कुहू-कुहू की आवाज़ करने वाला पक्षी; कोयल।

कुहेलिका (सं.) [सं-पु.] हवा में संघनित या फैले हुए जलवाष्प आदि के सूक्ष्म कण जो वातावरण में धुँधलापन उत्पन्न करते हैं; कोहरा; कुहासा।

कूँच [सं-स्त्री.] 1. वह ब्रश जिससे जुलाहे ताने का सूत साफ़ करते हैं 2. लुहारों की सँड़सी 3. एड़ी के ऊपर की एक नस; घोड़ा नस।

कूँचना [क्रि-स.] कूटना; माँड़ना; रौंदना; कुचलना।

कूँचा (सं.) [सं-पु.] 1. मूँज को कूटकर या सींकों को इकट्ठा करके बनाई गई झाड़ू; बुहारी 2. भड़भूँजे का करछा; कलछा।

कूँची [सं-स्त्री.] 1. चित्रकार की तूलिका; कूची 2. छोटा झाड़ू या कूचा 3. दीवार आदि पोतने का ब्रश।

कूँज [सं-पु.] तालाब आदि के किनारे रहने वाला बगुले की जाति का एक पक्षी; कराँकुल।

कूँड़ (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सिर की रक्षा करने की लोहे की एक ऊँची टोपी; खोद 2. मिट्टी या लोहे का बड़ा बरतन 3. चमड़ा मढ़कर बनाया गया मिट्टी या लोहे का पात्र जिससे तबले का बायाँ बनाया जाता है 4. हल जोतने से खेत में बनी हुई गहरी लकीर; कुण 5. कुएँ से पानी निकालने का लोहे आदि धातु का बड़ा या गहरा पात्र।

कूँड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. मिट्टी या काठ का बना पानी भरने का पात्र 2. गहरे आकार का कोई पात्र 3. वह पात्र जिसमें मिट्टी भरकर पौधे लगाए जाते हैं; गमला।

कूँड़ी [सं-स्त्री.] 1. पत्थर की बनी छोटी गोल कटोरी; प्याली; पथरी 2. छोटे आकार की नाँद 3. कोल्हू के बीच का ऊखल जैसा वह गड्ढा जिसमें तिलहन कुचलने का मोटा बल्ला या जाठ रखा जाता है।

कू (फ़ा.) [सं-पु.] गली; कूचा।

कूईं [सं-स्त्री.] जल में होने वाला एक पौधा जिसके पत्ते और फूल कमल के समान किंतु आकार में छोटे होते हैं; कुमुदिनी।

कूक [सं-स्त्री.] 1. लंबी सुरीली ध्वनि 2. कोयल या मोर आदि पक्षियों की बोली।

कूकना (सं.) [क्रि-अ.] कोयल आदि पक्षी का मधुर स्वर में बोलना; कुहू-कुहू करना; सुरीली आवाज़ निकालना।

कूकस [सं-पु.] अनाज के दाने से अन्न निकालने के बाद बचा अंश; अनाज की भूसी।

कूकुर [सं-पु.] कुत्ता; श्वान।

कूच (फ़ा.) [सं-पु.] 1. किसी स्थान के लिए किया जाने वाला प्रस्थान; रवानगी; यात्रा की शुरुआत 2. सेना का किसी मोर्चे के लिए होने वाला प्रयाण। [मु.] -कर जाना : मर जाना; चले जाना। -करना : जाना; प्रस्थान करना।

कूचा (फ़ा.) [सं-पु.] मकानों के बीच की गली; छोटा रास्ता; सँकरा मार्ग।

कूची (सं.) [सं-स्त्री.] 1. दीवारों पर पुताई करने में प्रयोग किया जाने वाला मूँज या प्लास्टिक का ब्रश 2. चित्रकार की चित्रों में रंग भरने की कलम; तूलिका 3. छोटा झाड़ू या कूचा।

कूज (सं.) [सं-स्त्री.] 1. शब्द; ध्वनि; आवाज़; कूजन 2. पक्षियों का कलरव या चहचहाहट 3. कूजने की क्रिया; कू-कू ध्वनि।

कूज़ (फ़ा.) [वि.] 1. टेढ़ा-मेढ़ा; वक्र 2. कुबड़ा।

कूजन (सं.) [सं-स्त्री.] पक्षियों की मधुर आवाज़; चहक; कलरव; कूज।

कूजना (सं.) [क्रि-अ.] 1. कोमल और मधुर आवाज़ करना 2. पक्षियों का कलरव करना; चहचहाना।

कूज़ा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. मिट्टी का कुल्हड़; कसोरा; सकोरा 2. कुल्हड़ में जमाई हुई उसी के आकार की मिसरी।

कूट (सं.) [सं-पु.] 1. गूढ़ोक्ति या पहेली; कोई रहस्यपूर्ण बात 2. मिथ्या; असत्य; झूठ 3. कपट; धोखा; छल; फ़रेब 4. पर्वत शिखर; चोटी 5. (काव्यशास्त्र) वह पद या कविता जिसमें श्लिष्ट और सांकेतिक शब्द या वाक्य की प्रधानता हो और जिसका अर्थ शीघ्र समझ में न आता हो, जैसे- सूर के कूट पद 6. दुर्ग; किला 7. हथौड़ा 8. जाल। [वि.] 1. झूठा; मिथ्यावादी 2. छली; फ़रेबी; धोखेबाज़ 3. बनावटी; नकली; जाली।

कूटक (सं.) [सं-पु.] 1. दूसरों के साथ किया जाने वाला छल या कपट; धोखा; धूर्तता 2. हल का फाल 3. वेणी; कबरी; जूड़ा 4. बाहर की ओर निकला हुआ भाग; उठान; उभार। [वि.] किसी को धोखा देने के लिए बनाया या कहा गया, जैसे- कूटक आख्यान।

कूटकर्म (सं.) [सं-पु.] 1. दूसरों के साथ किया जाने वाला छल-कपट या धोखा; फ़रेब 2. जुआ खेलते समय की जाने वाली बेईमानी।

कूटकृति (सं.) [सं-स्त्री.] किसी वस्तु की नकल पर बनाई गई दूसरी वस्तु; अनुकृति; प्रतिकृति; जालसाज़ी; नकल।

कूटचाल (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी को हानि पहुँचाने के लिए बनाई गई योजना; षड्यंत्र; साज़िश; कूटयुक्ति; जाल 2. दाँवपेंच; तिकड़म; झाँसा।

कूटता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कूट या जटिल होने की अवस्था या भाव 2. छल; कपट; धोखा।

कूटना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी वस्तु पर हथौड़ी आदि भारी चीज़ से इस प्रकार निरंतर आघात करना कि उसके छोटे-छोटे टुकड़े हो जाएँ; चूरा करना; पीटना; 2. धान आदि खाद्यान्न को खाने लायक बनाने के लिए मूसल से प्रहार करके छिलका उतारना 3. किसी व्यक्ति को सज़ा देने के लिए मारना; ठोकना।

कूटनीति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. लोगों को ठेस पहुँचाए या नाराज़ किए बिना अपने व्यवहार के कौशल से अपने हितों की रक्षा की नीति; व्यवहार कुशलता 2. राष्ट्रों के आपसी व्यवहार में दाँव-पेंच की छिपी हुई नीति; राजनय; (डिप्लोमेसी) 3. {ला-अ.} छिपी हुई चाल।

कूटनीतिक (सं.) [वि.] जिसमें कूटनीति का समावेश हो; कूटनीति से संबंधित; कूटनीतियुक्त; (डिप्लोमैटिक)।

कूटनीतिज्ञ (सं.) [वि.] 1. कूट नीति से काम लेने वाला; राजनयिक; (डिप्लोमेट) 2. किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए व्यूह रचने वाला।

कूटपाश (सं.) [सं-पु.] 1. पक्षियों को फँसाने का जाल; फंदा; कूटयंत्र 2. {ला-अ.} किसी को फँसाने की चाल; षड्यंत्र।

कूटप्रश्न (सं.) [सं-पु.] ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर सहजता से न दिया जा सके; पहेली; बुझौवल; प्रहेलिका।

कूटबुद्धि (सं.) [वि.] छल या दाँव-पेच की नीति चलने वाला; कूटनीतिज्ञ; चालबाज़।

कूटमुद्रा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. खोटा या जाली सिक्का 2. जाली मुहर या परवाना।

कूटयुद्ध (सं.) [सं-पु.] वह युद्ध जिसमें शत्रु को धोखा दिया जाए; धोखे की लड़ाई; नकली या दिखावटी युद्ध।

कूटलेख (सं.) [सं-पु.] कूटलिपि; कूटभाषा या कोड में लिखी गई कोई बात या लेख; जाली दसतावेज़।

कूटशब्द (सं.) [सं-पु.] 1. वह शब्द जिसमें कोई बात या रहस्य छिपा हो; (कोडवर्ड; पासवर्ड) 2. संकेत शब्द; कूटसंकेत; (कोड)।

कूटस्थ (सं.) [वि.] 1. जो कूट अर्थात सबसे ऊँचे स्थान पर स्थित हो; जिसकी स्थिति सर्वोपरि हो; आला दर्जे का; उच्चतम 2. जिसमें कुछ अदल-बदल न हो सके; अटल; अचल 3. विकार रहित; निर्विकार 4. अविनाशी; विनाशरहित 5. छिपा हुआ; गुप्त।

कूटाख्यान (सं.) [सं-पु.] कल्पित कथा या आख्यान; ऐसे वाक्यों में रची हुई कहानी जिनका अर्थ समझना कठिन हो।

कूटायुध (सं.) [सं-पु.] ऐसा आयुध या हथियार जो किसी चीज़ के अंदर छिपा रहता है, जैसे- गुप्ती जिसमें छोटी लाठी के अंदर कटार छिपी रहती है।

कूटार्थ (सं.) [सं-पु.] किसी वाक्य या रचना आदि का रहस्यपूर्ण या गूढ़ अर्थ। [वि.] जिसका अर्थ सरलता से समझ में न आता हो; जो कूट भाषा में लिखा गया हो।

कूटू [सं-पु.] एक पौधा जिसके बीजों का आटा फलाहार के रूप में उपयोग किया जाता है; फाफर; कोटू।

कूड़ा [सं-पु.] 1. झाड़ने-पोंछने के बाद निकला व्यर्थ का सामान या गंदगी; सारहीन या रद्दी वस्तु; धूल-राख; कतवार; बुहारन 2. व्यर्थ और बेकाम की चीज़ 3. {ला-अ.} किसी अरुचिकर वस्तु या बेस्वाद खाद्य पदार्थ के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द। [मु.] -करकट समझना : तुच्छ समझना। -करना : किसी वस्तु या कार्य को बिगाड़ देना।

कूड़ा-करकट [सं-पु.] 1. किसी स्थान पर सफ़ाई करने के बाद निकली गंदी और प्रयुक्त की जा चुकी चीज़ें; कचरा; धूल-गंदगी 2. कृषि, उद्योग आदि से निकलने या उत्पन्न होने वाले अवशिष्ट पदार्थ 3. रद्दी और अनुपयोगी वस्तुएँ।

कूड़ाख़ाना (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] ऐसा स्थान जहाँ कूड़ा-कचरा डाला जाता है।

कूड़ादान (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] कूड़ा जमा करने या रखने का पात्र; वह पात्र जिसमें कूड़ा फेंका जाता है; कूड़ेदान; (डस्टबिन)।

कूढ़ (सं.) [सं-पु.] 1. हल का एक भाग; जाँघा 2. नली के द्वारा बीज बोने का एक प्रकार। [वि.] बुद्धिहीन; मूर्ख।

कूढ़मगज़ (हिं.+फ़ा.) [वि.] मूर्ख; बेवकूफ़; बहुत बड़ा नासमझ; मंदबुद्धि; कुंदज़ेहन।

कूणिका (सं.) [सं-स्त्री.] वीणा, सितार आदि वाद्य यंत्रों की वह खूँटी जिसमें तार बँधे होते हैं।

कूत [सं-पु.] 1. आँकने की क्रिया या भाव; अँकाई; तखमीना; अटकल 2. वस्तु को बिना गिने, नापे या तौले उसकी संख्या, मूल्य या परिमाण का किया जाने वाला अनुमान; अंदाज़ा; कयास।

कूतना [क्रि-स.] किसी वस्तु के परिमाण, मूल्य, महत्व आदि को अटकल या अनुमान से आँकना; अंदाज़ा लगाना।

कूद [सं-स्त्री.] कूदने या उछलने की क्रिया या भाव; कुदान।

कूदना (सं.) [क्रि-अ.] 1. उछलना 2. चबूतरे या छत से छलाँग लगाकर नीचे की ओर आना। [क्रि-स.] 1. फाँदना; लाँघना; टापना 2. {ला-अ.} किसी बात या काम में दख़ल या हस्तक्षेप करना; बिना अधिकार या अनुमति के किसी काम के बीच में अचानक आ जाना।

कूदफाँद [सं-स्त्री.] 1. उछलने और कूदने की क्रिया; धमा-चौकड़ी; उछल-कूद; हुड़दंग 2. {ला-अ.} निरर्थक या व्यर्थ का प्रयत्न।

कूप (सं.) [सं-पु.] 1. कुआँ; कुइयाँ; इनारा 2. छेद; छिद्र; सुराख़ 3. तेल आदि रखने का पात्र या कुप्पा 4. गहरा गड्ढा।

कूपक (सं.) [सं-पु.] 1. छोटा कुँआ 2. नाव बाँधने का खूँटा 3. तरल पदार्थ या तेल आदि रखने की कुप्पी।

कूपकार (सं.) [सं-पु.] कुआँ बनाने या कुआँ खोदने वाला आदमी।

कूपन (इं.) [सं-पु.] 1. नियंत्रित या सीमित मात्रा में कोई वस्तु या अनाज आदि प्राप्त करने का कागज़ का टुकड़ा या पुरज़ा, जैसे- राशन का कूपन 2. वह कागज़ की चिट जिससे इनाम आदि प्राप्त होता है, जैसे- लॉटरी का कूपन 3. चिट; परची; (स्लिप; टिकट; टोकन) 4. किसी समारोह या कार्यक्रम आदि में भोजन प्राप्त करने का पत्र 5. किसी रेस्तराँ या भोजनालय में खाद्य पदार्थों के लिए अग्रिम राशि चुकाने की रसीद जिसके आधार पर सेवा मिलती है।

कूपमंडूक (सं.) [सं-पु.] 1. कुएँ में रहने वाला मेढक 2. {ला-अ.} वह मनुष्य जो अपना स्थान छोड़कर कहीं बाहर न गया हो या जिसे बाहरी दुनिया या समाज का अनुभव या जानकारी न हो; जिसका ज्ञानक्षेत्र बहुत सीमित हो; अज्ञानी; अल्पज्ञ।

कूपमंडूकता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कुएँ के मेढक की तरह एक ही जगह रहने या सीमित स्थान को ही दुनिया समझ लेने की अवस्था या भाव 2. {ला-अ.} बाहर की दुनिया की जानकारी की कमी; अल्पज्ञता।

कूब (सं.) [सं-पु.] पीठ की हड्डी का मुड़ कर टेढ़ा हो जाना; कूबड़; ककुद; कुब्ज।

कूबड़ (सं.) [सं-पु.] पीठ पर बनी हुई बड़ी गाँठ जिसके कारण आदमी झुककर चलता है; पीठ की हड्डी के बढ़ जाने से पीठ का उभार या टेढ़ापन।

कूबड़ा (सं.) [सं-पु.] दे. कुबड़ा।

कूरियर (इं.) [सं-पु.] गैरसरकारी स्तर पर पत्र आदि लाने और ले जाने का कार्य या सेवा; संदेशवाहक।

कूर्च (सं.) [सं-पु.] 1. रंग आदि भरने की कूँची 2. मुट्ठी भर घास; पूला; मुट्ठा; गट्ठा 3. मोर का पंख 4. दाढ़ी।

कूर्म (सं.) [सं-पु.] 1. एक जंतु जिसकी पीठ पर ढाल की तरह का कड़ा कवच होता है; कच्छप; कछुआ 2. भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों में से एक; कच्छपावतार 3. (हठयोग) शरीर में मानी जाने वाली दस प्राणवायुओं में से एक जिससे पलकें खुलती और बंद होती हैं 4. पृथ्वी।

कूल (सं.) [सं-पु.] तालाब या नदी का किनारा; तट; छोड़।

कूलर (इं.) [सं-पु.] ठंडी हवा देकर किसी स्थान या पदार्थ के तापमान को कम करने वाला विद्युत उपकरण; शीतलक; अनुशीतक; (एअरकूलर; वाटरकूलर)।

कूलवती (सं.) [सं-स्त्री.] नदी; सरिता।

कूलिंग (इं.) [सं-स्त्री.] किसी चीज़ को ठंडा करने की प्रक्रिया; शीतलन। [वि.] शीतलता प्रदान करने वाला; ठंडक देने वाला।

कूल्हा (सं.) [सं-पु.] धड़ और जाँघ का जोड़; नितंब।

कूवत (अ.) [सं-स्त्री.] सामर्थ्य; क्षमता; शक्ति; ताकत।

कूह [सं-स्त्री.] 1. चीख; चीत्कार 2. हाथी की चिंघाड़। [सं-पु.] शोर; कोलाहल।

कृंतक (सं.) [सं-पु.] काटने के दाँत; जबड़े में सामने के चार दाँत; कीला; कर्तनक; (इनसाइज़र)।

कृकाट (सं.) [सं-पु.] (शरीर रचना विज्ञान) कंधे और गले का जोड़।

कृच्छ्र (सं.) [वि.] कष्टमय; कठिन, जैसे- कृच्छ्र साधना। [सं-पु.] 1. कष्ट; पीड़ा; दुख; कठिनाई 2. प्रायश्चित।

कृत1 (सं.) [वि.] 1. संपन्न या पूर्ण किया हुआ; संपादित 2. रचित; सृष्ट; बनाया हुआ, जैसे- तुलसीकृत रामचरितमानस 3. क्रियान्वित; निर्वाहित; निष्पादित 4. सिद्ध; चरितार्थ। [सं-पु.] काम; कर्मफल।

कृत2 (सं.) [सं-पु.] (व्याकरण) धातु के साथ मिलकर संज्ञा और विशेषण बनाने वाले प्रत्ययों का वर्ग जिनसे जुड़कर बना शब्द कृदंत कहलाता है।

कृतकार्य (सं.) [वि.] जो अपना कार्य या प्रयोजन सिद्ध कर चुका हो; कामयाब; सफल-मनोरथ।

कृतकृत्य (सं.) [वि.] 1. अनुगृहीत; कृतज्ञ 2. जिसे कार्य में पूरा सहयोग मिला हो; संतुष्ट; सफलमनोरथ।

कृतघ्न (सं.) [वि.] किसी के द्वारा किए गए उपकारों को न मानने वाला; अहसानफ़रामोश; अकृतज्ञ; नाशुक्रा।

कृतघ्नता (सं.) [सं-स्त्री.] उपकार या सहायता को न मानने का भाव; अहसानफ़रामोशी; नमकहरामी; अकृतज्ञता।

कृतज्ञ (सं.) [वि.] जो उपकार या नेकी को मानता हो; अनुगृहीत; शुक्रगुज़ार; आभारी।

कृतज्ञता (सं.) [सं-स्त्री.] अनुग्रह या उपकार मानने का भाव; किसी का आभार; अहसानमंदी; शुक्रगुज़ारी।

कृतनिश्चय (सं.) [वि.] जिसने किसी कार्य का संकल्प कर लिया हो; संकल्पशील; दृढ़प्रतिज्ञ; कृतप्रतिज्ञ; पक्के इरादेवाला।

कृतयुग (सं.) [सं-पु.] (पुराण) चारों युगों में पहला युग; सतयुग।

कृतविद्य (सं.) [वि.] जिसे किसी विद्या का बहुत अच्छा ज्ञान या अभ्यास हो; विद्वान।

कृतवीर्य (सं.) [वि.] शक्तिशाली; वीर्यवान; ताकतवर। [सं-पु.] (महाभारत) कृतवर्मा का भाई।

कृतसंकल्प (सं.) [वि.] जिसने दृढ़ निश्चय कर लिया हो; जो संकल्प ले चुका हो; दृढ़प्रतिज्ञ; कृतनिश्चय।

कृतांजलि (सं.) [वि.] जो हाथ जोड़े या बाँधे हुए हो; जो दोनों हथेलियों की अंजली बनाए हुए हो।

कृतांत (सं.) [वि.] 1. समाप्त या पूर्ण करने वाला 2. अंत या नाश करने वाला 3. निश्चय करने वाला। [सं-पु.] 1. (पुराण) यम; धर्मराज 2. (पारंपरिक मान्यतानुसार) पूर्व जन्म में किए हुए शुभाशुभ कर्मों का फल; प्रारब्ध 3. मृत्यु।

कृताकृत (सं.) [वि.] आधा-अधूरा; आंशिक रूप से किया हुआ; करके छोड़ा हुआ।

कृतात्मा (सं.) [वि.] विशुद्ध आत्मावाला; उच्चाशय; पवित्र काम या पुण्य करने वाला।

कृतापराध (सं.) [वि.] जिसने कोई अपराध या जुर्म किया हो; अपराधी; दोषी।

कृतार्थ (सं.) [वि.] 1. जिसका कार्य सिद्ध हो गया हो; जो उद्देश्य सिद्धि के कारण संतुष्ट या प्रसन्न हो; कृतकार्य; सफल 2. कृतज्ञ।

कृति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किया हुआ कार्य; क्रिया; निर्मिति 2. कोई बहुत प्रशंसनीय कार्य; किसी के द्वारा किया गया लेखन या चित्रांकन आदि रचनात्मक कार्य; रचना 3. बौद्धिक संपत्ति।

कृतिका (सं.) [सं-स्त्री.] दे. कृत्तिका।

कृतिकार (सं.) [सं-पु.] साहित्यिक या कलात्मक कृति का रचयिता; रचना करने वाला व्यक्ति; रचनाकार; लेखक।

कृतित्व (सं.) [सं-पु.] 1. किसी लेखक आदि के द्वारा किया गया रचनात्मक कार्य; किसी रचनाकार की समस्त कृतियाँ 2. कारयित्री प्रतिभा 3. कारनामा।

कृती (सं.) [वि.] 1. वह जो उल्लेखनीय कार्य करता है; कृतकार्य; कुशल; निपुण; दक्ष 2. पुण्यात्मा।

कृते (सं.) [अव्य.] (किसी और) की तरफ़ से (हस्ताक्षर करना); के वास्ते; के लिए।

कृत्ति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चर्म; त्वचा; खाल 2. मृगचर्म; हिरण की खाल 3. भोजपत्र।

कृत्तिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सत्ताईस नक्षत्रों में से तीसरा नक्षत्र 2. छकड़ा; शकट; बैलगाड़ी।

कृत्तिवास (सं.) [सं-पु.] (पुराण) शिव; महादेव।

कृत्य (सं.) [सं-पु.] 1. धार्मिक दृष्टि से किए जाने वाले कार्य या अनुष्ठान; कर्तव्य; कार्य 2. आचरणीय; शास्त्रविहित कर्म 3. बुरे या हिंसक कार्य, जैसे- जघन्य कृत्य।

कृत्यवाह (सं.) [सं-पु.] 1. किसी पद पर रहकर कार्य निर्वाह करने वाला 2. वह जो कार्यभार संभालने के लिए नियुक्त हुआ हो।

कृत्या (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (तांत्रिक मिथक) एक राक्षसी जिसे तांत्रिक लोग अपने अनुष्ठान से उत्पन्न करके किसी शत्रु को विनष्ट करने के लिए भेजते हैं 2. जादूगरनी; दुष्टा या कर्कशा स्त्री 3. तंत्र-मंत्र के द्वारा किए जाने वाले मारक या विनाशक कर्म; अभिचार।

कृत्रिम (सं.) [वि.] 1. जो प्राकृतिक न हो; बनाया हुआ; मानव-निर्मित; (आर्टिफ़िशल), जैसे- कृत्रिम अंग 2. नकली, जैसे- कृत्रिम रेशम 3. असहज; बनावटी; दिखावटी (व्यवहार), जैसे- कृत्रिम मुस्कान।

कृत्रिमता (सं.) [सं-स्त्री.] कृत्रिम होने की अवस्था या भाव; छद्म; दिखावा; बनावटीपन।

कृदंत (सं.) [सं-पु.] 1. धातु या क्रियाओं के अंत में कृत प्रत्यय के जुड़ने से बने संज्ञा या विशेषण शब्द जो कर्तृवाचक (वाला- पढ़ने वाला), कर्मवाचक (न- बंधन), भाववाचक (आई- चढ़ाई) या क्रियावाचक (ना- दौड़ना) हो सकते हैं।

कृपण (सं.) [वि.] जिसका लक्ष्य केवल धन का संग्रह करना हो और जो जरूरत पड़ने पर भी ख़र्च न करता हो; धन का घोर लोभी या लालची व्यक्ति; कंजूस; सूम।

कृपणता (सं.) [सं-स्त्री.] कृपण होने की अवस्था या भाव; कंजूसी।

कृपणबुद्धि (सं.) [वि.] जो हर समय धन संग्रह करने के बारे में सोचता हो; कंजूस; छोटे दिल का; संकुचित सोच का।

कृपया (सं.) [अव्य.] कृपा या मेहरबानी करके; कृपापूर्वक; अनुग्रहपूर्वक; (प्लीज़)।

कृपा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. निःस्वार्थ भाव से किया जाने वाला उपकार; उदारतापूर्वक दूसरों की भलाई करने की वृत्ति 2. दया; अनुग्रह; मेहरबानी।

कृपाण (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का धारदार हथियार; बहुत छोटी तलवार; कटार।

कृपाणी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटी तलवार, कटारी या बरछी 2. कतरनी; कैंची।

कृपानिधान (सं.) [सं-पु.] 1. ईश्वर 2. कृपा का सागर; अति कृपालु 3. बहुत दयालु व्यक्ति। [वि.] सब पर कृपा करने वाला।

कृपापात्र (सं.) [सं-पु.] ऐसा व्यक्ति जिसपर कोई कृपा करता हो; कृपा-भाजन; अनुग्रह का पात्र। [वि.] कृपा का अधिकारी; जो कृपा के लायक हो।

कृपालु (सं.) [वि.] 1. कृपा करने वाला; दयालु 2. कृपा करना जिसका स्वभाव हो।

कृपालुता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कृपालु होने की अवस्था या भाव 2. कृपा या दया का भाव; मेहरबानी; दयालुता।

कृमि (सं.) [सं-पु.] छोटा कीड़ा; कीट; (वर्म)।

कृमिक (सं.) [सं-पु.] छोटा कीड़ा। [वि.] 1. कृमि से संबंधित 2. कृमि सदृश।

कृमिरोग (सं.) [सं-पु.] 1. कृमि से होने वाले रोग 2. आमाशय और पक्वाशय में केंचुए के समान कीड़े उत्पन्न होने का रोग।

कृश (‌सं.) [वि.] 1. दुबला-पतला; क्षीणकाय 2. कमज़ोर; दुर्बल 3. गरीब; अकिंचन 4. अल्प; छोटा; सूक्ष्म।

कृशकाय (सं.) [वि.] दुबले-पतले शरीर वाला; कंकालमात्र।

कृशता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कृश अर्थात दुबला होने की अवस्था या भाव; दुर्बलता; दुबलापन 2. पतलापन; क्षीणता।

कृशांगी (सं.) [सं-स्त्री.] कृशकाय या दुबली-पतली स्त्री; छरहरे बदन की स्त्री।

कृशानु (सं.) [सं-पु.] 1. अग्नि; आग 2. चीता।

कृशित (सं.) [वि.] 1. जो कृश या क्षीणकाय हो; दुबला-पतला 2. दुर्बल; कमज़ोर।

कृषक (सं.) [सं-पु.] 1. खेतों को जोतने-बोने एवं अन्न उपजाने वाला व्यक्ति; किसान; खेतिहर; हलवाहा; काश्तकार; (फ़ार्मर) 2. हल का फाल [वि.] खींचने वाला।

कृषि (सं.) [सं-स्त्री.] अनाज आदि पैदा करने के लिए खेतों को जोतने-बोने का काम; खेती; कृषक-कर्म; काश्तकारी; खेतीबाड़ी; काश्त; किसानी; जोत।

कृष्ण (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) वसुदेव और देवकी के पुत्र जिन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है 2. परब्रह्म 3. काला रंग; कालिख 4. {ला-अ.} कोयल; कौआ 5. चांद्र मास का अँधेरा पक्ष। [वि.] 1. काला; श्याम; स्याह 2. नीला या आसमानी।

कृष्णपक्ष (सं.) [सं-पु.] 1. पूर्णिमा और अमावस्या के बीच के पंद्रह दिन 2. अँधेरा पाख; चांद्र मास का अंधकार पक्ष।

कृष्णपक्षीय (सं.) [वि.] कृष्णपक्ष से संबंधित; कृष्णपक्ष में होने वाला।

कृष्णपर्णी (सं.) [वि.] काली पत्तियों वाली। [सं-स्त्री.] काली पत्तियों वाली तुलसी।

कृष्णसखा (सं.) [सं-पु.] कृष्ण का मित्र; सुदामा; अर्जुन।

कृष्णसार (सं.) [सं-पु.] 1. काले रंग का हिरन; काला मृग 2. सेंहुड़ 3. शीशम का वृक्ष 4. खैर का वृक्ष।

कृष्णा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. दक्षिण भारत की एक प्रसिद्ध नदी; कृष्णगंगा 2. काले पत्तों वाली तुलसी; श्यामा तुलसी 3. काली या गहरे रंग की किशमिश 4. काला जीरा 5. राई 6. आँख की पुतली 7. द्रौपदी 8. काली 9. एक योगिनी।

कृष्णाभिसारिका (सं.) [सं-स्त्री.] (काव्यशास्त्र) अँधेरी रात में अभिसार करने वाली नायिका; वह नायिका जो अँधेरी रात में अभिसार करने के लिए अपने प्रेमी के पास संकेत स्थान पर जाती है।

कृष्णाष्टमी (सं.) [सं-स्त्री.] कृष्ण की जन्मतिथि; भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी; जन्माष्टमी।

कृष्णिमा (सं.) [सं-स्त्री.] काला होने की अवस्था या भाव; कालापन; श्यामता; कृष्णता; कालिमा।

कृष्य (सं.) [वि.] जिसमें खेती की जा सके; जोतने-बोने के लायक; कृषि योग्य (भूमि)।

कें-कें [सं-स्त्री.] 1. पक्षियों द्वारा की जाने वाली ध्वनि 2. पिल्ले की आवाज़ 3. कष्टसूचक आवाज़ 4. {ला-अ.} बकवास; व्यर्थ की बातचीत।

केंचुआ (सं.) [सं-पु.] वर्षा ऋतु में निकलने वाला एक लंबा, पतला बरसाती कीड़ा; (अर्थवर्म)।

केंचुल [सं-स्त्री.] साँपों के पूरे शरीर की वाह्य त्वचा जो एक निश्चित समय के बाद मृत होकर शरीर से अलग हो जाती है; केंचुली।

केंचुली (सं.) [सं-स्त्री.] साँप के शरीर की वह त्वचा जो प्रतिवर्ष स्वतः उतर जाती है; केंचुल।

केंद्र (सं.) [सं-पु.] 1. किसी वृत्त के अंदर का वह बिंदु जिससे परिधि के सभी बिंदु समान दूरी पर हों; नाभि 2. किसी वस्तु का मध्य भाग या बीच का बिंदु 3. किसी उपकरण का वह बिंदु जिसके चारों ओर कोई वस्तु घूमती है 4. वृत्त का मूल बिंदु 5. किसी कार्य या गतिविधि (शिक्षा, व्यापार, कला, लेखन, शोध आदि) का स्थान; (सेंटर), जैसे- ललितकला केंद्र; विज्ञान केंद्र।

केंद्रक (सं.) [सं-पु.] 1. कोशिका का मुख्य भाग; नाभिक; (न्यूक्लियस) 2. केंद्र बिंदु।

केंद्रग (सं.) [वि.] केंद्र की ओर जाने वाला; केंद्रगामी; केंद्राभिसारी।

केंद्रगामी (सं.) [वि.] 1. जो केंद्र की ओर जा रहा हो या बढ़ रहा हो 2. केंद्र से हो कर जाने वाला।

केंद्रण (सं.) [सं-पु.] किसी वस्तु का केंद्र की ओर आना; केंद्रीकरण।

केंद्रस्थ (सं.) [वि.] जो केंद्र में स्थित हो; केंद्रीय।

केंद्रापसारी (सं.) [वि.] किसी शक्ति की प्रेरणा से केंद्र से दूर हटने की प्रवृत्ति वाला; केंद्र से दूर ले जाने वाला; केंद्र से चारों ओर फैलने वाला।

केंद्राभिमुख (सं.) [वि.] केंद्र की ओर मुख करने वाला; केंद्राभिमुखी; केंद्र की ओर जाने वाला।

केंद्राभिसारी (सं.) [वि.] 1. केंद्र की ओर जाने वाला 2. केंद्र का समर्थन करने वाला।

केंद्रिक (सं.) [वि.] केंद्र में बनने, होने या रहने वाला।

केंद्रित (सं.) [वि.] 1. केंद्र में स्थित; केंद्र में लाया हुआ 2. किसी निश्चित स्थान में एकत्रित 3. केंद्र के अधीन; केंद्रीकृत; केंद्रीभूत।

केंद्री (सं.) [वि.] केंद्र से संबंधित; केंद्र में रहने या होने वाला; केंद्र में स्थित।

केंद्रीकरण (सं.) [सं-पु.] 1. केंद्र में लाने की क्रिया या भाव; केंद्रित करना; केंद्रीय नियंत्रण में लाना 2. सत्ता या अधिकारों को किसी एक व्यक्ति या संस्था के अधीन करना; (सेंट्रलाइज़ेशन)।

केंद्रीकृत (सं.) [वि.] 1. केंद्रित किया हुआ; किसी केंद्र में इकट्ठा किया हुआ 2. एक स्थान पर लाया या आया हुआ।

केंद्रीभूत (सं.) [वि.] केंद्र में स्थित या एकत्रित; केंद्रित।

केंद्रीय (सं.) [वि.] 1. केंद्र संबंधी; केंद्र या मध्यभाग का 2. किसी देश, राज्य आदि के केंद्र या राजधानी से संबंध रखने वाला, जैसे- केंद्रीय मुख्यालय 3. मुख्य; श्रेष्ठ या प्रधान 4. केंद्रस्थ; (सेंट्रल)।

केंद्रोन्मुखी (सं.) [वि.] जो केंद्र की तरफ़ उन्मुख हो; केंद्राभिसारी।

के (सं.) [पर.] संबंधवाचक 'का' का तिर्यक रूप; संबंध सूचक परसर्ग जो पुल्लिंग बहुवचन शब्द या आदरार्थक शब्द से संबंध का द्योतन करता है, जैसे- समर के बेटे, समर के पिता।

केक (इं.) [सं-पु.] मैदा, दूध-अंडा आदि से बनाया जाने वाला एक मीठा स्पंजी व्यंजन या उसका टुकड़ा।

केकड़ा (सं.) [सं-पु.] आठ टाँगों और दो पंजों का एक जलीय कीड़ा; कर्क; (क्रैब)।

केकय (सं.) [सं-पु.] 1. आधुनिक कक्का अर्थात कश्मीर का प्राचीन नाम 2. उक्त प्रदेश का निवासी।

केका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मयूर की बोली 2. मोर की कूक या पुकार।

केकी (सं.) [सं-पु.] सुंदर पंखों वाली लंबी पूँछ का एक प्रसिद्ध पक्षी; नर मयूर या मोर।

केड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. कोंपल; कल्ला; अंकुर 2. नया पौधा 3. कटी फ़सल का गट्ठर 4. {ला-अ.} नवयुवक।

केत (सं.) [सं-पु.] 1. घर; आवास; भवन 2. स्थान; जगह 3. अन्न 4. सलाह; परामर्श।

केतक (सं.) [सं-पु.] केवड़ा। [वि.] 1. कितने; किस कदर 2. बहुत; अनेक; कई।

केतकी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रसिद्ध पौधा जिसकी पत्तियाँ नुकीली और चिकनी होती हैं; केवड़ा 2. एक प्रकार की रागिनी।

केतन (सं.) [सं-पु.] 1. निमंत्रण; आह्वान 2. झंडा; ध्वजा; परचम 3. चिह्न; प्रतीक 4. घर 5. स्थान; जगह।

केतली (इं.) [सं-स्त्री.] 1. चाय देने के लिए प्रयोग किया जाने वाला एक ढक्कनदार पात्र 2. पानी गरम करने का टोंटीदार बरतन जिसमें प्रायः चाय के लिए पानी गरम किया जाता है; (केटल)।

केतित (सं.) [वि.] 1. बसा हुआ 2. बुलाया हुआ; आमंत्रित 3. आहूत।

केतु (सं.) [सं-पु.] 1. दीप्ति; प्रकाश; चमक 2. ज्ञान 3. ध्वजा; पताका 4. निशान; चिह्न 5. (पुराण) राहु नामक राक्षस का कबंध या धड़ 6. (ज्योतिष) नवग्रहों में से एक, जिसको छाया ग्रह कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से यह काल्पनिक है।

केथीड्रल (इं.) [सं-पु.] किसी नगर या जिले का सबसे महत्वपूर्ण गिरजाघर; प्रार्थना भवन; (चर्च)।

केदार (सं.) [सं-पु.] 1. वह खेत जिसमें धान बोया या रोपा जाता है; क्यारी 2. वृक्ष के नीचे या वृक्ष रोपने के लिए बना हुआ थाला 3. हिमालय पर्वत का एक शिखर और वहाँ स्थित एक शिवलिंग का नाम जिसे तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है 4. शिव का एक नाम।

केन (सं.) [सं-स्त्री.] उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले की एक नदी जो यमुना में मिल जाती है। [सं-पु.] एक उपनिषद का नाम।

केनार (सं.) [सं-पु.] 1. खोपड़ी; सिर; कपाल 2. संधि; जोड़ 3. एक नरक का नाम; कुंभीपाक नरक।

केप (इं.) [सं-पु.] 1. अंतरीप; प्रायद्वीप 2. बिना बाँह का लबादा 3. स्त्रियों का कंधे का वस्त्र।

केबल (इं.) [सं-पु.] 1. उच्च वोल्टेज की विद्युत वितरण के लिए प्रयुक्त होने वाला मोटा तार 2. टेलीफोन या टीवी आदि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का तार 3. लोहे के तारों से बना रस्सा 4. उपग्रह प्रसारण में टीवी को विभिन्न चैनलों से जोड़ने वाला तार; (केबल कनेक्शन)|

केबल ऑपरेटर (इं.) [सं-पु.] सैटेलाइट से कैच करने वाले और टीवी के बीच तारों को प्रबंधित करने वाले; कार्यक्रमों को ग्राहकों तक पहुँचाने वाला।

केबिन (इं.) [सं-पु.] 1. किसी भवन या रेस्तराँ आदि में बनाया हुआ छोटा कक्ष 2. लकड़ी से बना छोटा मकान 3. विमान में यात्रियों के बैठने का स्थान।

केमिकल (इं.) [सं-पु.] 1. रासायनिक पदार्थ 2. रसायन।

केमिस्ट (इं.) [सं-पु.] 1. रसायनी; रसायनज्ञ; प्रयोगशाला में रसायनों द्वारा निरीक्षण-परीक्षण या अनुसंधान करने वाला व्यक्ति 2. दवाई विक्रेता; औषधि विक्रेता।

केमिस्ट्री (इं.) [सं-पु.] 1. रसायन विज्ञान; विज्ञान की वह शाखा जिसमें रासायनिक पदार्थों का अध्ययन किया जाता है 2. {व्यं-अ.} दो या अधिक व्यक्तियों या मित्रों में पारस्परिक या भावनात्मक सामंजस्य 3. {व्यं-अ.} आंतरिक स्वरूप; आधार, जैसे- उस अभिनेता ने परदे की केमिस्ट्री ही बदल दी है।

केयर (इं.) [सं-पु.] 1. देखभाल 2. सावधानी 3. ध्यान; परवाह।

केयूर (सं.) [सं-पु.] 1. बाँह में पहनने का एक आभूषण; बिजायठ; अंगद; बाज़ूबंद; भुजबंद; भुजभूषण 2. रतिक्रिया का एक आसन।

केरल (सं.) [सं-पु.] भारत के दक्षिण में स्थित एक राज्य का नाम।

केरेबियन (इं.) [सं-पु.] अटलांटिक महासागर के मध्य-पश्चिमी भाग से जुड़ा हुआ एक समुद्र। [वि.] केरिबिया से संबंधित।

केरोसिन (इं.) [सं-पु.] एक खनिज तेल; मिट्टी का तेल।

केरोसीन (इं.) [सं-पु.] दे. केरोसिन।

केला [सं-पु.] एक प्रसिद्ध वृक्ष और उस वृक्ष पर लगने वाला फल; कदली।

केलास (सं.) [सं-पु.] स्फटिक; रवा; (क्रिस्टल)।

केलासीय (सं.) [वि.] केलास संबंधी; सफ़ेद एवं पारदर्शक क्रिस्टल वाला।

केलि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. खेल; क्रीड़ा 2. रति; आनंदक्रीड़ा; काम-व्यापार; संभोग 3. मौजमस्ती; विनोद; लीला।

केलिकला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मैथुन; संभोग 2. सरस्वती की वीणा।

केवका [सं-पु.] एक प्रकार का मसाला जो प्रसूता को दिया जाता है।

केवट (सं.) [सं-पु.] 1. एक जाति जो नाव खेने का काम करती है; नाविक 2. उक्त जाति का व्यक्ति 3. मल्लाह।

केवटी [सं-स्त्री.] कई प्रकार की दालों को मिलाकर पकाई गई दाल।

केवड़ई [सं-पु.] केवड़े के रंग जैसा; हलका पीला रंग। [वि.] 1. जिसमें केवड़ा डाला गया हो; जिसमें केवड़े की महक हो 2. केवड़े के रंग का।

केवड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. एक पौधा जिसके पत्ते तलवार के समान लंबे और पुष्प सुगंधित होते हैं 2. उक्त पौधे का सफ़ेद, सुगंधित, काँटेदार फूल 3. उक्त फूल का उतारा हुआ सुगंधित जल या आसव।

केवल [अव्य.] सिर्फ़; मात्र; अकेला; बस; कुल; खाली; निपट; फ़क़त। [सं-पु.] आध्यात्मिक ज्ञान, विशुद्ध ज्ञान।

केवली (सं.) [सं-पु.] 1. केवलज्ञानी; ज्ञानी साधु 2. जैन तीर्थंकर।

केवाँच (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की बेल जिसमें सेम जैसी फलियाँ लगती हैं; कौंछ 2. उक्त बेल का फली जिसको छूने से खुजली होती है।

केवा (सं.) [सं-पु.] 1. कमल कली 2. बहाना; संकोच।

केश (सं.) [सं-पु.] 1. सिर के बाल; अलक; कुंतल 2. सिंह और घोड़े की गरदन पर होने वाले बाल; अयाल।

केशकीट (सं.) [सं-पु.] गंदे बालों में उत्पन्न होने वाला कीड़ा; जूँ।

केशनली (सं.) [सं-स्त्री.] केश के समान बहुत पतले छेद वाली नली; केशिका।

केशव (सं.) [वि.] जिसके बाल बहुत लंबे और सुंदर हों; बहुत घने केशों वाला। [सं-पु.] (पुराण) कृष्ण; विष्णु।

केशवालय (सं.) [सं-पु.] पीपल का वृक्ष; वासुदेव वृक्ष।

केशविन्यास (सं.) [सं-पु.] सिर के बालों को ठीक तरह से सजा-सँवारकर जूड़े आदि के रूप में बाँधने की क्रिया; कंघी से बनाई गई माँग; केशभूषा; (हेयर स्टाइल)।

केशांत (सं.) [सं-पु.] 1. बाल का सिरा 2. सोलह संस्कारों में से एक; मुंडन संस्कार।

केशिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्राणियों के शरीर में धमनी आदि से जुड़ी हुई सूक्ष्म नलिकाएँ 2. केश के समान सूक्ष्म और पतली वस्तु; केशनली 3. किसी वस्तु के ऊपर के बहुत छोटे-छोटे रोएँ।

केशिनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सुंदर बालों वाली स्त्री 2. (पुराण) राजा सगर की एक रानी 3. एक अप्सरा 4. जटामासी।

केशी (सं.) [सं-पु.] 1. सिंह; शेर 2. घोड़ा; अश्व। [सं-स्त्री.] 1. नील का पौधा 2. भूतकेश नामक औषधि 3. केवाँच; कौंछ 4. एक वृक्ष जिसकी पत्तियाँ खजूर की पत्तियों से मिलती-जुलती हैं 5. चोटी। [वि.] सुंदर औऱ घने बालोंवाला।

केस (इं.) [सं-पु.] 1. मुकदमा; अदालत में पेश किया गया मामला 2. किसी वस्तु या सामान आदि को रखने-सहेजने का डिब्बा; (बॉक्स) 3. कोई विशेष घटना या प्रकरण।

केसर (सं.) [सं-पु.] ठंडे प्रदेशों में होने वाला एक प्रसिद्ध पौधा जो सुगंध के लिए प्रसिद्ध है; ज़ाफरान।

केसरिया (सं.) [सं-पु.] केसर की तरह पीला रंग; नारंगी रंग। [वि.] 1. केसर के रंग में रँगा हुआ 2. उक्त रंग का; नारंगी रंग का 3. जिसमें केसर पड़ा हो।

केसरी (सं.) [सं-पु.] 1. सिंह 2. घोड़ा 3. नागकेसर 4. पुन्नाग 5. बिजौरा नीबू 6. (रामायण) हनुमान के पिता का नाम 7. एक प्रकार का बगुला 8. {ला-अ.} अपने वर्ग में कोई उत्तम वस्तु या व्यक्ति। [वि.] सिंह जैसा पराक्रमी जैसे- पंजाब केसरी।

केस स्टडी (इं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी प्रकरण विशेष की छानबीन 2. किसी समूह, समस्या या परिस्थिति आदि का समयावधि विशेष में अध्ययन।

केस हिस्ट्री (इं.) [सं-पु.] किसी व्यक्ति की पृष्ठभूमि या बीमारी आदि से संबंधित विवरण।

केहा (सं.) [सं-पु.] 1. मोर 2. तीतर की प्रजाति का एक जंगली पक्षी।

कैंकर्य (सं.) [सं-पु.] किंकर होने की अवस्था या भाव; नौकरी; सेवा-टहल; दासत्व।

कैंचा1 [वि.] जिसकी एक आँख की पुतली एक ओर खिंची हुई हो; भेंगा; ऐंचाताना।

कैंचा2 (तु.) [सं-पु.] बड़े आकार की कैंची।

कैंची (तु.) [सं-स्त्री.] कपड़ा, कागज़ आदि काटने का एक उपकरण।

कैंट (इं.) [सं-पु.] सैन्य छावनी (कैंटोनमेंट का संक्षिप्त रूप)।

कैंटीन (इं.) [सं-स्त्री.] 1. कारखानों या व्यापारिक प्रतिष्ठानों आदि में नाश्ते, भोजन इत्यादि के लिए बनाया गया जलपानगृह 2. वह जगह जहाँ सेना के जवान ज़रूरत का सामान किफ़ायती दाम पर ख़रीद सकते हैं।

कैंटोनमेंट (इं.) [सं-स्त्री.] छावनी; वह स्थान जहाँ सेनाएँ ठहरती हैं; कैंट।

कैंडल (इं.) [सं-स्त्री.] मोमबत्ती।

कैंडल मार्च (इं.) [सं-पु.] जनसमूह द्वारा किसी दुखद अथवा राष्ट्र या समाज विरोधी घटना के विरुद्ध प्रतिक्रिया एवं प्रतिरोधस्वरूप सायंकाल अंधेरा होने पर सड़क पर जलती हुई मोमबत्ती हाथों में लेकर किया जाने वाला पैदल मार्च या आंदोलन।

कैंड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. कोई काम कुशलतापूर्वक करने का ढंग या प्रकार; कौशल 2. ढब; चाल; तर्ज़ 3. किसी वस्तु का विस्तार आदि नापने का पैमाना; मान 4. खाका खीचने का उपकरण 5. चतुराई; चालबाज़ी।

कैंडिडेट (इं.) [सं-पु.] 1. उम्मीदवार; राजनीति में किसी दल द्वारा निर्वाचन के लिए चुनाव में खड़ा किया गया प्रत्याशी; आवेदक 2. सदस्य 3. परीक्षार्थी।

कैंडी (इं.) [सं-स्त्री.] चीनी से बनाई गई मीठी गोली; टॉफ़ी।

कैंप (इं.) [सं-पु.] 1. किसी अभियान पर जाते समय सैनिकों का अस्थायी निवास या पड़ाव; छावनी 2. किसी कार्य या चीज़ के विस्तार, प्रचार या जागरूकता आदि के लिए लगाया गया शिविर, जैसे- मेडिकल कैंप; सांस्कृतिक कैंप 3. यात्रियों के ठहरने का स्थान या पड़ाव।

कैंपस (इं.) [सं-पु.] 1. विश्वविद्यालय या महाविद्यालय का परिसर; वह मैदान या क्षेत्र जहाँ विश्वविद्यालय, कॉलेज के मुख्य भवन स्थापित हो 2. अहाता।

कैंपेन (इं.) [सं-पु.] 1. किसी उद्देश्य विशेष के लिए चलाई गई मुहिम; आंदोलन; अभियान 2. धावा; युद्ध; लड़ाई।

कैंसर (इं.) [सं-पु.] 1. शरीर में कोशिका की अनियंत्रित वृद्धि से होने वाला घातक रोग; कर्क रोग 2. केकड़ा 3. (ज्योतिष) कर्क राशि और उसका चिह्न 4. {ला-अ.} कोई लाइलाज़ समस्या या उसके उन्मूलन की जटिलता को प्रकट करने का भाव, जैसे- उपभोक्तावाद और पूँजीवाद समाज का कैंसर है।

कैंसल (इं.) [वि.] 1. काटा हुआ 2. निरस्त किया हुआ; रद्द, जैसे- आज का कार्यक्रम कैंसल कर दिया गया है 3. बंद किया हुआ या हटाया हुआ।

कै (अ.) [सं-स्त्री.] उलटी; वमन।

कैकस (सं.) [सं-पु.] एक राक्षस।

कैकेयी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अयोध्या के राजा दशरथ की पत्नी एवं भरत की माता 2. केकय गोत्र में उत्पन्न स्त्री 3. केकय नरेश की पुत्री।

कैकेयी हठ (सं.) [सं-पु.] वह जिद्द या हठ जो किसी प्रकार से अपनी बात मनवाने के लिए की जाती है।

कैक्टस (इं.) [सं-पु.] काँटेदार मरुस्थलीय पौधा; थूहड़।

कैच (इं.) [सं-पु.] 1. पकड़ने या जकड़ने की क्रिया; गिरफ़्त करना 2. {ला-अ.} किसी चीज़ से आकर्षित होना; किसी बात को समझना।

कैचलाइन (इं.) [सं-स्त्री.] किसी घटना से जुड़े समाचार की प्रतिलिपि के सभी पृष्ठों पर लिखी जाने वाली समाचार की संकेत पंक्ति।

कैज़ुअल (इं.) [वि.] 1. आकस्मिक; कभी-कभार होने वाला 2. अवसरपरक, जैसे- कैज़ुअल ड्रेस 3. लापरवाह; नियम-विरुद्ध 4. अनियमित; अनियत।

कैज़ुअ‍ल्टी (इं.) [सं-स्त्री.] 1. शारीरिक क्षति 2. हताहत होने की अवस्था 3. दुर्घटना 4. आकस्मिक दशा।

कैटगरी (इं.) [सं-स्त्री.] 1. व्यक्तियों या वस्तुओं का वर्ग; संवर्ग 2. श्रेणी; स्तर; कोटि।

कैटभ (सं.) [सं-पु.] (पुराण) मधु नाम के दैत्य का छोटा भाई जिसका विष्णु ने वध किया था।

कैटरर (इं.) [सं-पु.] वह व्यक्ति या समूह जो भोजन बनाने-परोसने आदि की व्यवस्था करता हो।

कैटरिंग (इं.) [सं-स्त्री.] 1. खानपान की व्यवस्था 2. विवाह या समारोह आदि में खान-पान से संबंधित सेवाएँ प्रदान करने का व्यवसाय।

कैटरैक्ट (इं.) [सं-पु.] आँख में होने वाला एक रोग; मोतियाबिंद।

कैटलॉग (इं.) [सं-स्त्री.] (पुस्तक आदि का) सूचीपत्र; पत्रक।

कैटलॉगर (इं.) [सं-पु.] पुस्तकालय में सूचीपत्र की प्रविष्टियाँ और ग्रंथों का ब्योरा तैयार करने वाला व्यक्ति।

कैटवॉक (इं.) [सं-पु.] नए रिवाज या फ़ैशन को ध्यान में रखकर बनाए या डिज़ाइन किए हुए तरह-तरह के परिधानों और आभूषणों आदि के प्रदर्शन के लिए स्त्री या पुरुष मॉडलों द्वारा एक-एक करके या समूह में अवसर या स्थान विशेष में की जाने वाली फ़ैशन परेड।

कैडेट (इं.) [सं-पु.] 1. सैन्य छात्र; रंगरूट; प्रशिक्षु सैनिक 2. भारत में राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) का सदस्य।

कैतव (सं.) [सं-पु.] 1. छल; धोखा 2. जुआ या जुए में लगाया जाने वाला दाँव 3. ठगी। [वि.] 1. धोखा देने वाला; छलने वाला 2. जुआ खेलने वाला; जुए में दाँव लगाने वाला।

कैतवापह्नुति (सं.) [सं-स्त्री.] (काव्यशास्त्र) अपह्नुति अलंकार का वह भेद जिसमें किसी वास्तविक विषय या यथार्थ का निषेध अथवा गोपन प्रत्यक्ष रूप से न करके किसी अन्य रूप में किया जाता है।

कैतून (अ.) [सं-स्त्री.] वस्त्रों के किनारों पर टाँकी जाने वाली सुनहरी रेशमी पट्टी; गोटा या लैस।

कैथ [सं-पु.] बेल के समान कड़े आवरण वाला बहुत खट्टा फल तथा उसका वृक्ष; कैथा; कपित्थ।

कैथा (सं.) [सं-पु.] 1. कठोर आवरण वाले और बहुत खट्टे फलों का एक वृक्ष; कैथ 2. उक्त वृक्ष का फल; कपित्य।

कैथी [सं-स्त्री.] 1. बिहार राज्य में प्रचलित एक पुरानी लिपि जिसमें शिरोरेखा नहीं होती 2. छोटी जाति का कैथ।

कैथोलिक (इं.) [सं-पु.] 1. एक ईसाई संप्रदाय 2. कैथोलिक विचारधारा या मत का अनुयायी।

कैद (अ.) [सं-स्त्री.] 1. बंधन; बंधन की अवस्था 2. कारावास 3. {ला-अ.} प्रतिबंध; शर्त।

क़ैद (अ.) [सं-स्त्री.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कैद)।

कैदख़ाना (अ.+फ़ा.) [सं-पु.] कारागार; जेलख़ाना; बंदीगृह; (जेल)।

कैदी (अ.) [सं-पु.] जिसे कैद किया गया हो; बंदी; सज़ा प्राप्त व्यक्ति; कैद में सज़ा भुगतने वाला; (प्रिज़नर)।

क़ैदी (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कैदी)।

कैनन (इं.) [सं-पु.] गोला; तोप।

कैनवस (इं.) [सं-पु.] 1. एक प्रक्रार का मज़बूत, मोटा और भारी कपड़ा जिसका उपयोग पाल, जूते आदि बनाने में किया जाता है 2. वह सफ़ेद कपड़ा या पटल जिसपर चित्रकार चित्र बनाते हैं 3. (साहित्य व कला) किसी सिद्धांत या अवधारणा की समाज के संदर्भ में स्थिति; वैचारिक परिदृश्य।

कैप (इं.) [सं-स्त्री.] 1. टोपी; सिर के ऊपर का सिला हुआ पहनावा 2. बोतल या पेन का ढक्कन।

कैपिटल (इं.) [सं-पु.] 1. किसी देश या राज्य की राजधानी 2. वह पूँजी या संपत्ति जिसका इस्तेमाल पूँजीपतियों या धनाढ्य वर्ग द्वारा व्यापार में लगाकर अधिक लाभ अर्जित करने में किया जाता है; मूलधन 3. बड़ा या उच्च, जैसे- कैपिटल मार्केट; कैपिटल लेटर।

कैपिटलिज़म (इं.) [सं-पु.] वह अर्थव्यवस्था या तंत्र जिसमें देश के उद्योग-धंधों का संचालन और प्रबंधन राज्य या सरकार के हाथ में न रहकर पूँजीपतियों तथा उद्योगपतियों के हाथ में होता है; पूँजीवाद।

कैपिटलिस्ट (इं.) [सं-पु.] अधिक लाभ के उद्देश्य से व्यापारिक गतिविधियों या उद्योग-धंधों का संचालन-प्रबंधन करने वाला व्यक्ति; पूँजीपति।

कैप्टन (इं.) [वि.] 1. कप्तान; किसी समूह या दल का नेतृत्वकर्ता; मुखिया 2. पुलिस सुपरिटेंडेंट 3. सैनिक अधिकारी का पद।

कैप्शन (इं.) [सं-पु.] किसी चित्र के ऊपर या नीचे चित्र के संबंध में दी जाने वाली लिखित जानकारी; किसी भी लिखित या अंकित कृति की शीर्षक पंक्ति; चित्र शीर्षक; चित्र परिचय।

कैप्सूल (इं.) [सं-पु.] 1. दवा के पावडर को भरकर पैक करने की पुटिका या छोटे खोखे 2. अंतरिक्ष यान की कोई यांत्रिक इकाई।

कैफ़ (अ.) [सं-पु.] 1. नशा; मद; सुरूर; मस्ती 2. मादक या नशीला पदार्थ 3. लुत्फ़; आनंद 4. हाल; ब्योरा।

कैफ़ियत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. हाल; समाचार 2. वर्णन 3. ब्योरा; विवरण 4. हालत; दशा 5. विलक्षण और सुखद घटना 6. नशा; सुरूर 7. कारण। [मु.] -तलब करना : नियमानुसार कारण पूछना।

क़ैफ़ियत (अ.) [सं-स्त्री.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कैफ़ियत)।

कैफ़ी (अ.) [सं-पु.] शराब पीने वाला व्यक्ति; शराबी। [वि.] मतवाला; मदहोश; मत्त; मदोन्मत्त।

कैफ़े (इं.) [सं-पु.] 1. कॉफी या शीतल पेय इत्यादि मिलने की जगह; जलपानगृह; कॉफ़ी हाउस 2. वह स्थान या कक्ष जहाँ इंटरनेट संबंधी काम होता है, जैसे- साइबरकैफ़े।

कैफ़ेटिरिया (इं.) [सं-पु.] जलपानगृह; कॉफ़ी शॉप; छोटा रेस्तराँ।

कैबरे (इं.) [सं-पु.] उत्तेजक हाव-भाव के साथ किया जाने वाला एक प्रकार का यूरोपीय नृत्य।

कैबिनेट (इं.) [सं-पु.] 1. सरकार में महत्वपूर्ण मंत्री समूह; मंत्रिमंडल; मंत्रिपरिषद 2. उच्चस्तरीय समिति 3. घर या कार्यालय आदि में वह अलमारी जिसमें कई दराज या खाने बने होते हैं।

कैमरा (इं.) [सं-पु.] फ़ोटो या चित्र खींचने, वीडियो बनाने और उन्हें संशोधित-परिवर्धित करने का उपकरण।

कैमरामैन (इं.) [सं-पु.] कैमरे से चित्र या वीडियो आदि तैयार करने वाला; फ़िल्म निर्माण में अभिनय तथा दृश्यों की रिकॉर्डिंग या शूटिंग करने वाला विशेषज्ञ।

कैमरा हैंडलिंग (इं.) [सं-स्त्री.] कैमरे को संचालित करने की क्रिया।

कैमा [सं-पु.] कदंब की प्रजाति का एक वृक्ष जिसकी लकड़ी हलके पीले रंग की और बहुत मज़बूत होती है तथा इमारतों में लगती है; करमा।

कैर (सं.) [सं-पु.] एक प्रसिद्ध काँटेदार झाड़ी जिसमें पत्तियाँ नहीं होतीं; करील।

कैरव (सं.) [सं-पु.] 1. कुमुद; कुईं 2. कमल 3. धोख़ेबाज़; शत्रु 4. जुआरी।

कैरवाली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कैरवों का समूह 2. वह स्थान जहाँ बहुत से कुमुद खिले हों।

कैरवी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चाँदनी रात 2. ज्योत्स्ना 3. मेथी।

कैरा (सं.) [सं-पु.] 1. भूरा रंग 2. कुछ लालिमा लिए हुए सफ़ेद रंग 3. वह बैल जिसका चमड़ा कुछ लाल रंग का होता है; सोकन। [वि.] 1. मिट्टी के रंग का; धूसर; मटमैला; ख़ाकी 2. कैरे के रंग का 3. जिसकी आँखें भूरी हों; कंजा।

कैरिअर (इं.) [सं-पु.] 1. वाहक; ले जाने वाला 2. साइकिल पर पीछे बैठने या हलके-फुलके सामान आदि रखने का उपकरण।

कैरी ओवर (इं.) [क्रि-स.] समाचार के शेष अंश किसी दूसरे पृष्ठ पर ले जाना।

कैरेक्टर (इं.) [सं-पु.] 1. चरित्र; आचरण 2. चारित्रिक दृढ़ता; चरित्र बल 3. गुण; गुणधर्म 4. लक्षण 5. रूप; स्वरूप 6. लिपि चिह्न; वर्ण 7. फ़िल्म आदि के विभिन्न पात्र।

कैरेट (इं.) [सं-पु.] 1. सोने की बनी हुई चीज़ों में विशुद्ध सोने का अंश, मान या मात्रा 2. साढ़े तीन ग्रेन की एक तौल 3. रत्नों के तौल की इकाई।

कैलकुलेटर (इं.) [सं-पु.] 1. गणना या हिसाब करने वाला 2. गणना करने वाला यंत्र; गणक।

कैलशियम (इं.) [सं-पु.] सफ़ेद रंग का एक रासायनिक तत्व; चूना।

कैलास (सं.) [सं-पु.] 1. हिमालय की एक चोटी जो तीर्थस्थल के रूप में विख्यात है 2. (पुराण) शिव का वासस्थान।

कैलासनाथ (सं.) [सं-पु.] शिव; महादेव।

कैलासवास (सं.) [सं-पु.] मृत्यु; मरण।

कैलिग्राफ़ी (इं.) [सं-स्त्री.] सुलेखन; सुलेख।

कैलेंडर (इं.) [सं-पु.] 1. अँग्रेज़ी तिथिपत्र; दिनपत्र 2. वह पंचांग जिसमें दिन, तारीख़ एवं महीनों आदि का विवरण छपा रहता है 3. वर्ष भर में एक विशेष कार्यक्षेत्र में होने वाले आयोजनों तथा उनसे संबंधित तिथियों का विवरण देने वाला पत्र।

कैलोरी (इं.) [सं-स्त्री.] 1. उष्मा की इकाई; उष्मांक 2. भोजन से प्राप्त ऊर्जा की मापक इकाई 3. (भौतिक विज्ञान) उष्मा की वह मात्रा जो एक ग्राम जल के तापमान को एक डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिए आवश्यक होती है।

कैवर्त (सं.) [सं-पु.] केवट; नाविक।

कैवल्य (सं.) [सं-पु.] 1. मोक्ष 2. निर्लिप्त या विशुद्ध होने का भाव; अनासक्ति भाव।

कैविटी (इं.) [सं-स्त्री.] किसी ठोस पदार्थ में बना हुआ छिद्र या खाली स्थान; गुहा; छेद; खोल, जैसे- दाँतों की कैविटी।

कैश (इं.) [सं-पु.] 1. नगद 2. रुपया-पैसा; रोकड़। [वि.] 1. जिसे नगद देकर ख़रीदा गया हो 2. जिसका दाम नगद दिया गया हो।

कैश क्रॉप (इं.) [सं-स्त्री.] बाज़ार की माँग को ध्यान में रखकर लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से उगाई जाने वाली फ़सल; नकदी फ़सल, जैसे- कपास, तंबाकू आदि।

कैशिक (सं.) [सं-पु.] 1. केश समूह 2. शृंगार। [वि.] 1. केशवाला; बड़े-बड़े बालोंवाला 2. बाल के समान।

कैशिकी (सं.) [सं-स्त्री.] नाटक की मुख्य चार वृत्तियों में से एक वृत्ति जिसमें स्त्री पात्र अधिक होते हैं तथा नृत्य, गीत, भोग-विलास आदि का अधिक वर्णन होता है।

कैशियर (इं.) [सं-पु.] ख़ज़ानची; रोकड़िया।

कैशोर्य (सं.) [सं-पु.] किशोरावस्था; युवावस्था और बाल्यावस्था के बीच की अवस्था।

कैसर (अ.) [सं-पु.] शहंशाह; सम्राट।

कैसरे-हिंद [सं-पु.] भारत-सम्राट के रूप में ब्रिटेन के नरेश की उपाधि।

कैसा [वि.] 1. किस प्रकार का; किस आकार या रंग-रूप का 2. कोई विशेषता जानने के लिए प्रश्न के रूप में, जैसे- भाई वाह! कैसा जवाब दिया।

कैस्टर ऑइल (इं.) [सं-पु.] अरंडी का तेल।

कॉइल (इं.) [सं-स्त्री.] कुंडली; घुमावदार लपेटन; छल्लेदार वस्तु, जैसे- इलेक्ट्रिक कॉइल।

कॉउंसिल (इं.) [सं-स्त्री.] प्रशासन या प्रबंध आदि के लिए निर्वाचित सदस्य समूह या समिति; परिषद; सभा।

कॉकटेल (इं.) [सं-स्त्री.] 1. नशीले पेय तथा फलों के रस से बनाया जाने वाला एक पेय; एकाधिक मदिराओं का मिश्रित पेय 2. मद्य मिश्रित पेय 3. वह आयोजन, सभा या पार्टी जिसमें उक्त प्रकार का पेय चलता हो, जैसे- कॉकटेल पार्टी।

कॉकपिट (इं.) [सं-पु.] वायुयान का अगला हिस्सा जिसमें चालक बैठता है; चालक-स्थान।

कॉकरोच (इं.) [सं-पु.] तिलचट्टा।

कॉज़ (इं.) [सं-पु.] 1. वजह; कारण; निमित्त 2. माध्यम 3. मकसद।

कॉटन (इं.) [सं-पु.] कपास; रुई; सूत।

कॉटेज (इं.) [सं-पु.] झोपड़ी; कुटी; कुटिया; छप्पर; कुटीर; पर्णकुटी।

कॉटेज इंडस्ट्री (इं.) [सं-स्त्री.] कुटीर उद्योग; कृषि उत्पादों के कच्चे माल के प्रसंस्करण तथा उत्पादन की लघु इकाई।

कॉड (इं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की मछली जिसके तेल से दवा बनती है।

कॉन्टेस्ट (इं.) [सं-पु.] प्रतियोगिता; मुकाबला; संघर्ष; प्रतिवाद।

कॉन्टैक्ट (इं.) [सं-पु.] 1. संबंध; संपर्क 2. इंटरनेट या फ़ोन आदि से किया जाने वाला संपर्क।

कॉन्टैक्ट नंबर (इं.) [सं-पु.] दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनी द्वारा अपने उपभोक्ताओं को प्रदत्त वह विशेष अंक जिसपर एक उपभोक्ता अन्य उपभोक्ता से संपर्क करता है; मोबाइल नंबर, फ़ोन नंबर।

कॉन्ट्रिब्यूशन (इं.) [सं-पु.] 1. अभिदान; चंदा; अंशदान; दान 2. योगदान; सहयोग 3. दत्तांश।

कॉन्ट्रैक्ट (इं.) [सं-पु.] किसी कार्य या परियोजना आदि को पूरा करने के लिए किया गया अनुबंध; ठेका; इकरारनामा।

कॉन्फ़्रेंस (इं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी महत्वपूर्ण विषय पर विचार-विवेचन करने के लिए आयोजित की जाने वाली सभा; सम्मेलन; अधिवेशन 2. मंत्रणा; परामर्श 3. बात-चीत; वार्तालाप।

कॉन्वेंट (इं.) [सं-पु.] ईसाई साध्वियों का आश्रम; विहार; मठ।

कॉपरप्लेट (इं.) [सं-पु.] 1. ताम्रपत्र 2. ताँबे की तश्तरी; ताँबे का पत्तर।

कॉपी (इं.) [सं-स्त्री.] 1. नकल; प्रतिलिपि; प्रतिरूप 2. किसी चित्र, पुस्तक आदि की प्रतिलिपि 3. कोरी या सादी अभ्यास-पुस्तिका 4. प्रेस में छपने के लिए भेजी जाने वाली पांडुलिपि (एक-एक पृष्ठ या पूरी पांडुलिपि को कॉपी कहते है) 5. कंप्यूटर या मोबाइल आदि में किसी फ़ाइल या डॉक्यूमेंट की प्रतिकृति तैयार करने का विकल्प।

कॉपी बॉई (इं.) [सं-पु.] लिखित या संशोधित समाचार, लेख आदि को प्रेस में पहुँचाने वाला व्यक्ति।

कॉपीराइट (इं.) [सं-पु.] वह कानूनी एकाधिकार जो किसी कृति या गीत आदि के रचयिता को अपनी रचना के प्रकाशन, प्रसार या प्रतिलिपि तैयार करने के लिए प्राप्त होता है; स्वत्वाधिकार; प्रकाशनाधिकार; छापने या प्रकाशित करने का अधिकार; स्वामित्व।

कॉपी रीडर (इं.) [वि.] संशोधक; समाचारों एवं लेखों आदि की प्रतिलिपियों का संशोधन करने वाला (व्यक्ति)।

कॉपी लेफ्ट (इं.) [सं-पु.] सर्वाधिकार समाप्ति।

कॉफ़ी (इं.) [सं-स्त्री.] कहवा; एक पेय पदार्थ।

कॉफ़ी हाउस (इं.) [सं-पु.] 1. कॉफ़ी घर; कैफ़े 2. प्रमुख नगरों में वह स्थान जहाँ लेखकों या बुद्धिजीवियों द्वारा चाय-काफ़ी पीने के साथ साहित्यिक और राजनीतिक बहस या विचार-विमर्श किया जाता है।

कॉमन (इं.) [वि.] 1. सामान्य; मामूली; सार्वजनिक; आम 2. बहुत-सी जगह पर मिलने वाला; साधारण।

कॉमनरूम (इं.) [सं-पु.] शिक्षा संस्थानों या छात्रावास आदि में वह कमरा जहाँ सभी छात्र या अध्यापक एकत्रित होते या मिलते हैं या विश्राम कर सकते हैं; विनोदकक्ष।

कॉमनवेल्थ (इं.) [सं-पु.] कई ऐसे राष्ट्रों का मंडल (समूह) जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य के उपनिवेश रहे थे; राष्ट्रमंडल।

कॉमप्लीमेंट्री (इं.) [वि.] मानार्थ अथवा ससम्मान, जैसे- किसी पत्र-पत्रिका की कॉपी को मान-सम्मान के साथ निःशुल्क देना।

कॉमरेड (इं.) [सं-पु.] 1. साथी; सहकर्मी; सहचर; सखा 2. भारत में वामपंथियों के लिए एक संबोधन जिसका प्रयोग उनके द्वारा नाम से पूर्व (जैसे- श्री के स्थान पर) भी किया जाता है।

कॉमर्शियल ब्रेक (इं.) [सं-पु.] (टीवी, रेडियो आदि पर प्रसारित) किसी कार्यक्रम के बीच में व्यावसायिक विज्ञापनों के प्रसारण के लिए लिया जाने वाला (अल्प) विराम।

कॉमर्स (इं.) [सं-पु.] वाणिज्य; व्यापार।

कॉमर्सियालाइज़ेशन (इं.) [सं-पु.] व्यावसायीकरण।

कॉमा (इं.) [सं-पु.] अल्पविराम; लघुविराम, जिसका चिह्न (,) होता है।

कॉमिक (इं.) [वि.] हास्यप्रद; हास्यजनक।

कॉमिक्स (इं.) [सं-पु.] चित्रकथा; पाठकों के मनोरंजन के लिए पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित रंगीन या इकरंगी चित्रकथाएँ।

कॉमेडी (इं.) [सं-पु.] 1. विनोदप्रियता; हँसी-मज़ाक 2. मनोरंजक, हास्यप्रधान और सुखांत नाटक या फ़िल्म।

कॉम्पलेक्स (इं.) [वि.] 1. पेंचीदा; दुर्बोध; जटिल 2. अनेक वस्तुओं या तत्वों से निर्मित। [सं-पु.] संकुल।

कॉम्पिटिशन (इं.) [सं-स्त्री.] प्रतियोगिता; प्रतिस्पर्धा; प्रतिद्वंदिता; होड़; स्पर्धा; बराबरी।

कॉम्पेंसेशन (इं.) [सं-पु.] 1. क्षतिपूर्ति (राशि); हरजाना; मुआवज़ा 2. पारितोषिक 3. प्रतिकर।

कॉम्प्लीमेंट (इं.) [सं-पु.] 1. प्रशंसा; तारीफ़ 2. अभिनंदन 3. आदर।

कॉम्बिनेशन (इं.) [सं-पु.] 1. संयोजन; संयोग; मेल 2. वस्तुओं या व्यक्तियों का समुच्चय 3. सम्मिश्रण; सम्मिलन।

कॉरपोरेशन (इं.) [सं-पु.] 1. कोई बड़ी व्यापारिक कंपनी 2. निगम 3. प्राधिकरण।

कॉरस्पॉन्डंस (इं.) [सं-पु.] 1. पत्राचार; पत्र-व्यवहार; चिट्ठी-पत्री 2. लिखा-पढ़ी।

कॉरीडोर (इं.) [सं-पु.] 1. भवन में आने-जाने का मार्ग; गलियारा 2. बरामदा।

कॉर्ड (इं.) [सं-पु.] 1. डोरी; रज्जु; तंतु 2. बिजली उपकरणों में लगा हुआ तार।

कॉर्नफ़्लेक्स (इं.) [सं-पु.] सूखे मक्के को कूट कर बनाया गया भोज्य पदार्थ जिसे दूध में मिलाकर खाया जाता है, जैसे- चिप्स, खस्ता आदि।

कॉर्नर (इं.) [सं-पु.] 1. कोना; कोण 2. नाका; नुक्कड़।

कॉल (इं.) [सं-स्त्री.] 1. पुकार; बुलाबा; आह्वान 2. मोबाइल या टेलीफ़ोन आदि से किसी से बात करने की क्रिया 3. मुलाकात; भेंट।

कॉलगर्ल (इं.) [सं-स्त्री.] गोपनीय रूप से धन लेकर वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्री।

कॉल डिटेल (इं.) [सं-पु.] किसी व्यक्ति द्वारा अवधि विशेष में की गई बातचीत का ब्योरा।

कॉलबेल (इं.) [सं-पु.] कार्यालय आदि में प्रयोग की जाने वाली घंटी; चपरासी को बुलाने की घंटी।

कॉलम (इं.) [सं-पु.] 1. पत्रभाग 2. स्तंभ 3. पंक्ति 4. हाशिया।

कॉलमनिस्ट (इं.) [सं-पु.] स्तंभ लेखक; समाचार पत्र-पत्रिकाओं आदि के लिए नियमित रूप से स्तंभ में लिखने वाला लेखक या पत्रकार।

कॉलर (इं.) [सं-पु.] 1. कोट, कमीज़ आदि का वह पट्टीदार अंश जो गले के चारों ओर रहता है 2. कुत्ते के गले की पट्टी।

कॉलरा (इं.) [सं-पु.] 1. हैज़ा 2. विषूचिका।

कॉल लेटर (इं.) [सं-पु.] नौकरी आदि में योग्यता परीक्षा के लिए या साक्षात्कार में उपस्थित होने के लिए भेजा गया सूचना-पत्र; बुलावा-पत्र।

कॉल सेंटर (इं.) [सं-पु.] कंपनियों, व्यापारिक संस्थाओं द्वारा उपभोक्ताओं की समस्या समाधान के लिए बनाए गए वे केंद्र जहाँ से फ़ोन द्वारा संपर्क करके जानकारी प्राप्त की जाती है या शिकायत दर्ज की जाती है।

कॉलेज (इं.) [सं-पु.] महाविद्यालय; विद्यापीठ; उच्च शिक्षण संस्था।

कॉलोनाइज़र (इं.) [सं-पु.] शहरों में रिहाइशी बस्तियाँ बसाने वाले उद्योगी।

कॉलोनी (इं.) [सं-पु.] 1. उपनगर; बस्ती 2. एक ही तरह के प्राणियों या पौधों का रहवास 3. उपनिवेश।

कॉशन (इं.) [सं-पु.] 1. चेतावनी 2. सावधानी 3. सतर्कता; चौकसी।

कॉशनमनी (इं.) [सं-पु.] 1. सुरक्षा राशि 2. शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों से ली जाने वाली सुरक्षा राशि।

कॉस्ट (इं.) [सं-पु.] मूल्य; लागत; दाम; कीमत।

कॉस्टिंग (इं.) [सं-पु.] किसी कार्य या परियोजना में लगने वाली कुल लागत का निर्धारण।

कॉस्ट्यूम (इं.) [सं-पु.] 1. पोशाक; पहनावा 2. परिच्छद 3. वेशभूषा; साजसज्जा।

कॉस्मेटिक (इं.) [सं-पु.] प्रसाधन सामग्री; अंगराग; उबटन। [वि.] प्रसाधक; कांतिवर्धक।

कोंकणी (सं.) [सं-पु.] कोंकण प्रदेश का व्यक्ति। [सं-स्त्री.] कोंकण प्रदेश की भाषा।

कोंकना [क्रि-अ.] मोर आदि पक्षी का आवाज़ करना।

कोंचना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी नुकीली चीज़ को चुभाना या धँसाना; गोदना 2. {ला-अ.} किसी को अप्रिय बात कहकर दुखी करना; बार-बार तंग करना।

कोंचा [सं-पु.] 1. कोंचने के कार्य में प्रयुक्त नुकीली चीज़ 2. बहेलियों की वह लंबी लग्घी जिससे वृक्ष आदि पर बैठे हुए पक्षी को कोंचकर फँसाया जाता है 3. भड़भूजे का वह कलछा जिससे बालू निकाला जाता है।

कोंछना [क्रि-स.] 1. साड़ी के आँचल में कोई चीज़ बाँधकर कमर में खोंसना 2. साड़ी का कुछ भाग चुनकर पेंडू पर खोंसना; फुबती चुनना।

कोंढ़ा (सं.) [सं-पु.] धातु निर्मित वह छोटा छल्ला जो किसी वस्तु को अटकाने के लिए लगाया जाए; कड़ी; कुंडा।

कोंपल [सं-स्त्री.] 1. कल्ला 2. नई मुलायम पत्ती।

को [पर.] कर्म या संप्रदान का संबंध प्रकट करने वाला परसर्ग।

कोआ (सं.) [सं-पु.] 1. रेशम के कीड़ों का आवरण; खोल 2. टसर नामक कीड़ा 3. आँख का कोना 4. कटहल के पके हुए बीज 5. महुए का फल।

कोइली [सं-स्त्री.] 1. वह कच्चा आम जिसमें रगड़ के कारण काला दाग पड़ गया हो 2. आम की गुठली।

कोई [सर्व.] 1. अज्ञात; अमुक; अर्निदिष्ट वस्तु या व्यक्ति 2. किसी प्रकार का। [सं-स्त्री.] एक प्रकार की मछली। [अव्य.] लगभग।

कोकई (तु.) [सं-पु.] ऐसा नीला रंग जिसमें गुलाबी की झलक हो; कोड़ियाला रंग। [वि.] उक्त प्रकार के रंग का; कोड़ियाला।

कोकनद (सं.) [सं-पु.] लाल कमल; लाल कुईं या कुमुद।

कोकना [क्रि-स.] 1. लंगर डालना 2. कच्ची सिलाई करना।

कोका (इं.) [सं-पु.] 1. दक्षिणी अमेरिका में पाया जाने वाला एक वृक्ष जिसकी सुखाई हुई पत्तियों को चाय और कहवे की तरह इस्तेमाल करते हैं।

कोकाबेली [सं-स्त्री.] नीले फूलों वाली एक वनस्पति जो पुरानी झीलों या तालाबों में उगती है; नीली कुमुदिनी।

कोकाह (सं.) [सं-पु.] सफ़ेद रंग का घोड़ा।

कोकिल (सं.) [सं-पु.] 1. कोयल 2. नीलम की एक छाया 3. एक ज़हरीला चूहा 4. एक प्रकार का साँप 5. मधुर भाषण या मीठा बोल 6. एक छंद।

कोकिला (सं.) [सं-स्त्री.] कोयल; पिक।

कोकी (सं.) [सं-स्त्री.] मादा चकवा।

कोकेन (इं.) [सं-स्त्री.] कोका नामक वृक्ष की पत्तियों से निर्मित एक नशीला पदार्थ जिसका प्रयोग चिकित्सक किसी अंग को कुछ देर के लिए सुन्न करने के लिए भी करते हैं।

कोको1 [सं-स्त्री.] एक कल्पित पक्षी का नाम जिसका प्रयोग छोटे बच्चों को बहलाने-फुसलाने के लिए किया जाता है।

कोको2 (इं.) [सं-पु.] 1. उष्णकटिबंधीय देशों में पाया जाने वाला कोको नामक एक सदाबहार वृक्ष 2. उक्त वृक्ष के फल से बनाया जाने वाला गहरे भूरे रंग का चूर्ण जिससे चॉकलेट बनाई जाती है 3. उक्त फल के पाउडर से बना चाय जैसा एक पेय।

कोख (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उदर; पेट; जठर 2. पसलियों के नीचे पेट के दोनों बगल का स्थान 3. गर्भाशय। [मु.] -ठंडी होना : स्त्री का संतान सुख प्राप्त करना। -उजड़ जाना : संतान का मर जाना; गर्भपात हो जाना। -बंद होना : बाँझ होना। -खुलना : बाँझपन दूर होना, संतान होना।

कोखजली [सं-स्त्री.] स्त्रियों को दी जाने वाली एक प्रकार की गाली। [वि.] जिसकी संतानें मर जाती हों; बंध्या।

कोगी [सं-पु.] प्रायः झुंड में रहने वाला तथा लोमड़ी से मिलता-जुलता एक जानवर।

कोच (इं.) [सं-पु.] 1. एक गद्देदार लंबी और बड़ी कुरसी; सोफ़ा 2. चार पहियों की एक गाड़ी; बग्घी 3. रेलगाड़ी का सवारी डिब्बा 4. निजी शिक्षक; प्रशिक्षक।

कोचना [क्रि-स.] 1. तंग करना; कोंचना 2. कोई नुकीली चीज़ चुभोना।

कोचवान [सं-पु.] घोड़ागाड़ी हाँकने वाला व्यक्ति; ताँगेवाला; बग्घीचालक।

कोचा [सं-पु.] 1. तलवार, कटार आदि का हलका घाव जो पार न हुआ हो 2. चुभती हुई बात; कटु वचन; चुटीली बात; ताना; व्यंग्य।

कोचिंग (इं.) [सं-पु.] 1. अध्यापन; अनुशिक्षण 2. व्यापारिक रूप से धन लेकर पढ़ाना 3. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए व्यक्तिगत रूप से किया जाने वाला शैक्षिक मार्गदर्शन।

कोची [सं-पु.] 1. बबूल की जाति का एक जंगली पेड़ 2. बनरीठा; शिकाकाई।

कोजागर (सं.) [सं-पु.] अश्विन मास की पूर्णिमा; शरद पूर्णिमा।

कोज्या (सं.) [सं-पु.] (त्रिकोणमिति) अनुपात; समकोण त्रिभुज में आधार और कोण का अनुपात; कोटिज्या; (कोसाइन)।

कोट1 (सं.) [सं‌-पु.] 1. दुर्ग; गढ़ 2. प्राचीर; परकोटा 3. राजमहल; राजप्रासाद।

कोट2 (इं.) [सं-पु.] एक प्रकार का वस्त्र जो शरीर के ऊपरी हिस्से में धारण किया जाता है।

कोटपाल (सं.) [सं-पु.] मध्यकाल में किले की रक्षा व्यवस्था का प्रमुख अधिकारी; दुर्गपाल; किलेदार।

कोटर (सं.) [सं-पु.] 1. पेड़ के तने का खोखला भाग जिसमें प्रायः पक्षी और साँप आदि रहते हैं; खोल 2. किले की रक्षा के लिए लगाया गया उसके आसपास का वन।

कोटा (इं.) [सं-पु.] किसी योजना या सहायता में वह अनुपातिक अंश या भाग जो एक या प्रत्येक सदस्य को नियत रूप से मिलता हो; यथांश; निश्चित अंश; भाग।

कोटि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक ही प्रकार की वस्तुओं का वर्ग या श्रेणी; किस्म; (ग्रेड) 2. धनुष का सिरा 3. अस्त्र की नोक या धार 4. उत्कृष्टता 5. आख़िरी सीमा या सिरा। [वि.] सौ लाख; करोड़।

कोटिक (सं.) [वि.] 1. करोड़ 2. अनगिनत; अत्यधिक 3. चरमोत्कर्ष या पराकाष्ठा को प्राप्त।

कोटिच्युत (सं.) [वि.] जिसे अपने वर्तमान पद, श्रेणी या कोटि से निम्न पद, श्रेणी या कोटि पर भेज दिया गया हो; जिसकी किसी कोटि से अवनति हुई हो; (डिग्रेडेड)।

कोटिबद्ध (सं.) [वि.] किसी विशिष्ट कोटि में रखा हुआ; अनेक कोटियों में वर्गीकृत; (ग्रेडेड)।

कोटिशः (सं.) [क्रि.वि.] 1. अनेक प्रकार से 2. असंख्य बार; अनेक बार 3. करोड़ों प्रकार से। [वि.] अगणित; करोड़ों; असंख्य।

कोटी (इं.) [सं-स्त्री.] स्त्रियों के पहनने की चोली जिसकी आकृति कोट जैसी होती है।

कोटू [सं-पु.] एक पौधा जिसके बीजों का आटा फलाहार के रूप में प्रयुक्त होता है; कूटू; फाफरा।

कोटेशन (इं.) [सं-पु.] 1. कोई प्रसिद्ध उक्ति 2. प्रमाण स्वरूप कही गई बात; उद्धरण 3. संविदा भाव 4. किसी ग्रंथ का प्रमाण।

कोठ [सं-पु.] वह स्थान जहाँ बहुत अधिक बाँस उगे हों।

कोठरा [सं-पु.] 1. बड़े आकार की कोठरी 2. रहस्य संप्रदाय में देह या शरीर।

कोठरी [सं-स्त्री.] छोटा कमरा; घर के भीतर का छोटा कमरा।

कोठा [सं-पु.] 1. ऊपर की मंजिल का कमरा 2. बड़ा कमरा; भंडार 3. तवायफ़ के निवास स्थान का प्रतीक शब्द।

कोठार (सं.) [सं-पु.] 1. अन्न, धन आदि रखने का स्थान 2. भंडार 3. कोष्ठागार।

कोठारी [सं-पु.] 1. भंडारघर का प्रबंधकर्ता; भंडारी 2. एक कुलनाम या सरनेम।

कोठी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. विशाल भवन 2. बहुत बड़ा, ऊँचा, पक्का तथा खुला हुआ मकान 3. वह मकान जिसमें बड़ा कारोबार होता हो 4. अनाज रखने का स्थान; कोठार 5. किसी वस्तु का भंडार 6. बाँसों का समूह जो एक साथ घेरा बाँधकर उगता है।

कोठीवाल [सं-पु.] 1. रुपए-पैसे का लेन-देन करने वाला व्यक्ति; बड़ा व्यापारी; साहूकार; धनिक; महाजन 2. एक प्रकार का कुलनाम या सरनेम।

कोठेवाली [सं-स्त्री.] धन लेकर संभोग करने वाली स्त्री; वेश्या; गणिका; तवायफ़।

कोड (इं.) [सं-पु.] 1. कूट भाषा 2. किसी संदेश को गुप्त भाषा में परिवर्तित करना 3. नियमावली; आचार संहिता 4. कंप्यूटर में प्रोग्राम लिखने की पद्धति विशेष।

कोड़ना (सं.) [क्रि-स.] खेत की मिट्टी खोदकर ऊपर नीचे करना; गोड़ना; गुड़ाई।

कोड़ा [सं-पु.] 1. चमड़े या बटे सूत से बना हुआ मोटा चाबुक जिससे जानवरों और कैदियों को पीटा जाता है; साँटा; दुर्रा 2. एक प्रकार का बाँस 3. कुश्ती का एक दाँव 4. {ला-अ.} फटकार; उत्तेजक या मर्मस्पर्शी बात।

कोड़ाई [सं-स्त्री.] 1. खेत आदि कोड़ने की क्रिया या भाव 2. खेत कोड़ने की मज़दूरी।

कोड़ी [सं-स्त्री.] 1. बीस वस्तुओं का वर्ग या समूह; बीसी 2. किसी तालाब में निर्मित वह पक्का निकास जिससे उसका अतिरिक्त पानी निकल जाता है।

कोढ़ (सं.) [सं-पु.] एक त्वचा संबंधी रोग जिसके कारण शरीर के किसी अंग में चकत्ते पड़ने लगते हैं और वह अंग गलने लगता है; (लेप्रॉसी)।

कोढ़ा [सं-पु.] खेत का वह स्थान जहाँ गोबर आदि एकत्र करने के लिए पशुओं को बाँधते हैं।

कोढ़िन [सं-स्त्री.] 1. वह स्त्री जिसे कोढ़ हुआ हो 2. कोढ़ी स्त्री।

कोढ़िया [सं-पु.] एक रोग जो तंबाकू के पत्तों में होता है।

कोढ़ी [सं-पु.] 1. वह जो कोढ़ रोग से पीड़ित हो; जिसे कोढ़ हुआ हो 2. {ला-अ.} जो बहुत निकम्मा और आलसी हो; घृणित स्वभाव वाला व्यक्ति।

कोण (सं.) [सं-पु.] 1. वह आकृति जो भिन्न दिशाओं से आई हुई दो सीधी रेखाओं के एक बिंदु पर मिलने से बनती है; कोना 2. सारंगी की कमानी 3. (ज्यामिति) दो सरल रेखाओं या समतलों के परस्पर झुकाव की माप (ऐंगल)।

कोणमापक (सं.) [सं-पु.] कोण मापने का उपकरण; चाँदा। [वि.] कोण नापने या मापने वाला।

कोणिक (सं.) [वि.] कोणीय; कोण से युक्त; कोण संबंधी।

कोणीय (सं.) [वि.] 1. कोणिक; कोणसंबंधी; जिसमें कोण हो 2. नुकीला; नोकदार।

कोतल (फ़ा.) [सं-पु.] 1. बिना सवार का सजा-सजाया घोड़ा 2. जुलूसी घोड़ा 3. राजा की सवारी के लिए सजाया गया घोड़ा। [वि.] रिक्त; खाली।

कोतवाल (सं.) [सं-पु.] 1. पुलिस का प्रधान अधिकारी जिसके अधीन कई थाने और सिपाही होते हैं 2. मध्ययुग में किले का प्रमुख अधिकारी; दुर्गपाल।

कोतवाली [सं-स्त्री.] 1. कोतवाल का कार्यालय 2. कोतवाल का पद और कार्य 3. नगर का केंद्रीय थाना।

कोताह (फ़ा.) [वि.] 1. थोड़ा; कम 2. छोटा 3. तंग।

कोताही (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कमी; अल्पता 2. न्यूनता 3. कोर-कसर 4. कंजूसी।

कोथ [सं-पु.] 1. एक रोग जिसमें अंग गलने और सड़ने लगते हैं; गैंगरीन 2. आँखों का एक रोग जिसमें आँखें सूज जाती हैं।

कोथली [सं-स्त्री.] रुपए रखने की चमड़े या कपड़े की थैली।

कोदंड (सं.) [सं-पु.] 1. धनुष 2. भौंह; भ्रू 3. बारह राशियों में से एक; धनु राशि 4. एक प्राचीन देश।

कोदों (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का मोटा अन्न जिसके दाने उबालकर लोग खाते हैं; गोल चावल की तरह का एक अन्न।

कोन1 (सं.) [सं-पु.] 1. कोना 2. कोण।

कोन2 (इं.) [सं-पु.] ऐसी आकृति जिसका एक सिरा गोल घेरे जैसा होता है और दूसरा सिरा नोकदार, जैसे- आइसक्रीम का कोन; शंकु।

कोना (सं.) [सं-पु.] 1. कमरे, चारदीवारी आदि का वह स्थान जहाँ खड़ी और आड़ी दिशा से दो दीवारें आकर मिलती हों और एक कोण बनाती हों; वह स्थान जहाँ इसी प्रकार दो सड़कें आकर मिलती हों; कोण; गोशा 2. {ला-अ.} एकांत स्थान [मु.] -झाँकना : मुँह छिपाना। कोने में फँसाना : असहाय या लाचार बना देना।

कोनिया [सं-स्त्री.] 1. दीवारों, छतों आदि का कोना या किनारा 2. चित्रकला में काम आने वाला एक उपकरण 3. लोहे, लकड़ी आदि का कोणाकार टुकड़ा जो दो वस्तुओं के जोड़ पर जड़ा रहता है 4. सजावटी वस्तुएँ रखने के लिए दीवारों के कोनों पर लगाया गया पटिया।

कोप (सं.) [सं-पु.] 1. क्रोध; गुस्सा 2. वैद्यक में पित्त आदि का विकार।

कोपभवन (सं.) [सं-पु.] वह घर या कक्ष जिसमें कोई रूठी हुई स्त्री या नायिका जा कर बैठ जाए; मानगृह।

कोपी (सं.) [वि.] कोप करने वाला; क्रोधी; गुस्सैल।

कोफ़्त (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कुढ़न 2. मन में होने वाला दुख; रंज 3. हैरानी; परेशानी 4. लोहे पर की जाने वाली सोने या चाँदी की पच्चीकारी; ज़रनिशाँ।

कोफ़्ता (फ़ा.) [सं-पु.] 1. कूटे हुए मांस अथवा उबली-मसली या किसी हुई कुछ ख़ास सब्ज़ियों से बना एक लज़ीज़ व्यंजन।

कोबाल्ट (इं.) [सं-पु.] एक सफ़ेद धातु जिसका प्रयोग अन्य धातुओं के साथ मिलाकर शीशे को गहरा नीला-हरा रंग देने में होता है।

कोमल (सं.) [वि.] 1. मुलायम; नाज़ुक; सुकुमार 2. जिसको देखने, स्पर्श करने, सुनने आदि से सुखद और मधुर अनुभूति हो 3. जो सरलता से काटा, मोड़ा और तोड़ा जा सकता हो 4. वह (स्वर) जो साधारण से नीचा हो 5. {ला-अ.} उदारता, दया और प्रेम आदि सरल भावों से परिपूर्ण (हृदय)।

कोमलता (सं.) [सं-स्त्री.] कोमल होने की अवस्था या भाव; मृदुलता; नरमी; (सॉफ़्टनेस)।

कोमल तालव्य अलिजिह्वा (कौवा) तथा मूर्धा के बीच का स्थान कोमल तालु है, तथा जिह्वापश्च द्वारा कोमल तालु स्पर्श किए जाने से उच्चरित ध्वनियाँ कोमल तालव्य हैं, जैसे- 'क्, ख्, ग्, घ्' आदि। इन ध्वनियों को संस्कृत में कंठ्य माना गया है।

कोमलांग (सं.) [वि.] जिसके अंग कोमल हों; सुकुमार; नाज़ुक।

कोमला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (काव्यशास्त्र) लेखन की वह वृत्ति या अक्षर योजन जिसमें कोमल तथा छोटे-छोटे पद हों; पांचाली वृत्ति 2. खिरनी का पेड़ तथा फल।

कोमा (इं.) [सं-पु.] किसी गहरी चोट या गंभीर बीमारी के कारण उत्पन्न गहरी बेहोशी या संपूर्ण अचेतनता की स्थिति जो लंबी अवधि तक चल सकती है।

कोयल (सं.) [सं-स्त्री.] 1. काले रंग की एक प्रसिद्ध बड़ी चिड़िया जो वसंत ऋतु में कूकती है; कोकिला; कोइली 2. एक प्रकार की लता।

कोयला (सं.) [सं-पु.] 1. एक काला खनिज पदार्थ जो आग जलाने और बिजली उत्पन्न करने के काम आता है 2. लकड़ी के जल चुकने के बाद बचा काले रंग का ठोस अंश जो आग जलाने के काम आता है।

कोया (सं.) [सं-पु.] 1. रेशम के कीड़े का कोश या घर; कुसियारी 2. महुए का पका फल; गोलैंदा 3. पके हुए कटहल का बीजकोश 4. आँख का वह सफ़ेद उभरा हुआ भाग जिसमें पुतली रहती है; आँख का डेला; आँख का कोना।

कोर1 (सं.) [सं-पु.] 1. किनारा; किसी वस्तु की किनारी 2. धार; नुकीला किनारा 3. कोना; गोशा 4. गोद 5. वैर। [मु.] -दबना : किसी प्रकार के दबाव में आना।

कोर2 (इं.) [सं-पु.] 1. कार्य विशेष के लिए संगठित सैनिक दल 2. राजनय, शांति स्थापन, चिकित्सा सहायता आदि किसी विशेष गतिविधि से संलग्न व्यक्तियों का दल।

कोरक (सं.) [सं-पु.] 1. कली; मुकुल 2. फूल या कली का वह बाहरी निचला भाग जो प्रायः हरा होता है और जिसके अंदर पंखुड़ियाँ रहती हैं; फूलों की कटोरी 3. कमल की नाल या डंडी; मृणाल 4. चोरक नामक गंधद्रव्य 5. मिर्च की जाति का एक गोल फूल जिसका मसाले के रूप में उपयोग होता है; कबाबचीनी; शीतलचीनी।

कोर-कसर (हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. साधारण कमी या त्रुटि 2. कमी-बेशी।

कोरना [क्रि-स.] लकड़ी या पत्थर पर खुदाई करके या खरोंच कर चित्र या आकृतियाँ उभारना।

कोरनिश (तु.) [सं-स्त्री.] दरबारी तहज़ीब के मुताबिक़ झुककर सलाम या बंदगी करना।

कोरम (इं.) [सं-पु.] किसी बैठक आदि में उपस्थित होने वाले सदस्यों की नियमतः निर्धारित संख्या जिसके पूर्ण न होने पर बैठक या सभा विधिसम्मत नहीं मानी जाती; गणपूर्ति।

कोरमा (तु.) [सं-पु.] घी में भूना या पकाया गया बिना रसे का मसालेदार मांस; बिना शोरबे का मांस।

कोरस (इं.) [सं-पु.] 1. सहगान; वृंदगान 2. समूह में गाने वाले गायक; गायकों का दल।

कोरा (सं.) [वि.] 1. बिलकुल ताज़ा और नया, जो काम में न लाया गया हो, जैसे- कोरा कपड़ा, कोरी मटकी 2. सादा; जिसपर अभी तक कुछ न लिखा गया हो (काग़ज़) 3. सब प्रकार के गुणों से रहित 4. निर्लिप्त। [सं-पु.] 1. बिना किनारे की एक रेशमी धोती 2. जलाशयों के पास रहने वाली एक चिड़िया।

कोरापन [सं-पु.] 1. कोरा होने की अवस्था या भाव 2. अनुभवहीनता 3. ख़ालीपन।

कोरी1 [वि.] 1. जो प्रयोग या काम में न लाई गई हो; अछूती; नवीन 2. जिसपर रंग न चढ़ा हो (स्त्रीलिंग शब्द के साथ प्रयुक्त) 3. जिसपर कुछ न लिखा गया हो (स्त्रीलिंग शब्द के साथ प्रयुक्त)।

कोरी2 (सं.) [सं-पु.] हिंदुओं की एक जाति जो सादे और मोटे कपड़े बुनती है; जुलाहा।

कोर्ट (इं.) [सं-पु.] 1. कचहरी; न्यायालय; अदालत 2. राज दरबार 3. {ला-अ.} न्यायाधीशों के लिए प्रयुक्त शब्द, जैसे- कोर्ट का मानना है...।

कोर्ट-कचहरी (इं.+सं.) [सं-स्त्री.] सरकार की ओर से निर्धारित वह जगह जहाँ न्यायाधीशों के द्वारा मुक़दमों की सुनवाई करके न्याय किया जाता है; न्यायालय; न्यायाधिकरण।

कोर्ट-मार्शल (इं.) [सं-पु.] 1. सेना न्यायालय; फ़ौजी अफ़सरों की अदालत 2. इस अदालत में चलने वाले मुक़दमे की प्रक्रिया।

कोर्स (इं.) [सं-पु.] 1. पाठ्यक्रम 2. घुड़दौड़ का मैदान।

कोल (सं.) [सं-पु.] एक जनजाति।

कोलतार (इं.) [सं-पु.] एक काला और गाढ़ा द्रव जो कोयले से बनाया जाता है; तारकोल; डामर।

कोलन (इं.) [सं-पु.] एक विराम चिह्न; उपविराम जिसे ऊपर नीचे दो बिंदुओं द्वारा दिखलाया जाता है, (ः)।

कोलाहट (सं.) [सं-पु.] नृत्य में निपुण वह व्यक्ति जो तलवार की धार पर नृत्य कर सकता है और अंगों को तोड़-मरोड़कर कई तरह के करतब दिखा सकता है।

कोलाहल (सं.) [सं-पु.] 1. अनेक लोगों के बोलने, चीखने-चिल्लाने से होने वाला शब्द, ध्वनि या शोर 2. हलचल।

कोलिआर [सं-पु.] एक प्रकार का घना और काँटेदार वृक्ष।

कोलिक [सं-पु.] वह व्यक्ति जो कपड़े बुनता हो; जुलाहा; तंतुवाय।

कोलियरी (इं.) [सं-स्त्री.] वह स्थान जहाँ खान से कोयला निकाला जाता है; कोयला खदान।

कोली [सं-पु.] महाराष्ट्र में समुद्र तट के पास बसने वाली एक जाति जिसका मुख्य धंधा मछली पकड़ना और बेचना है।

कोलैबरेशन (इं.) [सं-पु.] दो या अधिक व्यक्तियों या संस्थानों का किसी विशेष क्षेत्र में मिलकर काम करना; सहयोग, जैसे- किसी ग्रंथ के लिखने में दो लेखकों का कोलैबरेशन या कोई बड़ा कारख़ाना खोलने के लिए दो औद्योगिक संस्थानों का या किसी महत्वपूर्ण परियोजना में दो सरकारों का कोलैबरेशन।

कोलोनियल (इं.) [वि.] उपनिवेशी; औपनिवेशिक; उपनिवेशीय; (कलोनियल)।

कोल्ड (इं.) [सं-पु.] 1. सरदी-ज़ुकाम 2. ठंडक। [वि.] 1. सर्द; ठंडा 2. निरुत्साहित।

कोल्डड्रिंक (इं.) [सं-पु.] 1. शीतल पेय पदार्थ शरबत, ठंडाई आदि 2. शीतल, स्वादयुक्त, कार्बोनेटेड जल।

कोल्हाड़ [सं-पु.] वह स्थान जहाँ गन्ना पेरकर रस निकाला जाता है और उसे उबालकर गुड़ बनाया जाता है।

कोल्हू [सं-पु.] 1. ईख या गन्ना पेरने का यंत्र 2. सरसों और अन्य तिलहनों की पिराई करके तेल निकालने का यंत्र।

कोविद (सं.) [वि.] पंडित; विद्वान; ज्ञानवान; प्रबुद्ध।

कोविदार (सं.) [सं-पु.] 1. कांचनार या कचनार का पेड़ 2. उक्त पेड़ का फूल।

कोश (सं.) [सं-पु.] 1. भंडार; ख़जाना; निधि 2. डिब्बा 3. फूलों की बँधी कली 4. वह ग्रंथ जिसमें एक विशेष क्रम से शब्द और उनके अर्थ आदि दिए जाते हैं (शब्दकोश) 5. तलवार आदि की म्यान।

कोशकार (सं.) [सं-पु.] 1. शब्दकोश के लिए शब्दों का संग्रह तथा उनका संपादन करने वाला विद्वान; शब्दकोश बनाने वाला व्यक्ति 2. तलवार, कटार आदि के लिए म्यान बनाने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. शब्दकोश बनाने वाला 2. म्यान बनाने वाला।

कोशरचना (सं.) [सं-स्त्री.] शब्दकोश निर्माण करने का काम; (लेक्सिकोग्राफ़ी)।

कोशल (सं.) [सं-पु.] 1. सरयू या घाघरा नदी के दोनों तटों पर स्थित क्षेत्र 2. उपर्युक्त क्षेत्र में बसने वाली क्षत्रिय जाति 3. अयोध्या नगर।

कोशा (सं.) [सं-स्त्री.] (प्राणी विज्ञान) प्राणियों के शरीर की संरचनात्मक इकाई; कोशिका।

कोशाणु (सं.) [सं-पु.] सभी प्राणियों की मूल संरचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई जिससे प्राणियों का निर्माण हुआ है; (सेल)।

कोशिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (प्राणी विज्ञान) जीवधारियों के शरीर की संरचनात्मक इकाई; कोश; कोशा; (सेल) 2. कटोरा; प्याला।

कोशिश (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. कोई काम करने के लिए किया जाने वाला प्रयत्न; प्रयास; चेष्टा 2. उद्योग; श्रम।

कोष (सं.) [सं-पु.] 1. धन संचित करने का स्थान; ख़ज़ाना; भंडार 2. म्यान।

कोषागार (सं.) [सं-पु.] ख़ज़ाना; भंडार; धन-दौलत रखने की जगह।

कोषाधिकारी (सं.) [सं-पु.] कोष की देखभाल करने वाला अधिकारी; कोषाध्यक्ष; ख़जानची।

कोषाध्यक्ष (सं.) [सं-पु.] कोषाधिकारी; ख़ज़ानची; रोकड़िया।

कोष्ठ (सं.) [सं-पु.] 1. चारों ओर से घिरा स्थान; कोठा 2. अन्न-भंडार 3. घेरे की दीवार; चारदीवारी 4. शरीर के अंदर में आमाशय, पक्वाशय आदि वाला वह भाग जिसमें विशेष क्रिया शक्ति होती है 5. उदर; पेट।

कोष्ठक (सं.) [सं-पु.] 1. परस्परोन्मुख चिह्नों का जोड़ा जिनके घेरे के अंदर अंक, शब्द, पद आदि विशेष स्पष्टीकरण के लिए रखे जाते हैं 2. कोष्ठक का चिह्न, जैसे- [ ], { }, ( )।

कोष्ठबद्ध (सं.) [वि.] 1. कोष्ठ में बंद 2. जो कोष्ठ अर्थात उदर में बद्ध या रुका हुआ हो (मल)।

कोष्ठबद्धता (सं.) [सं-स्त्री.] वह रोग जिसमें पेट में मल रुका रहता है और बाहर निकलने में कठिनाई होती है; कब्ज़; मलावरोध।

कोष्ठाग्नि (सं.) [सं-पु.] पेट के अंदर का वह ताप जिससे भोजन पचता है; जठराग्नि।

कोष्ठी (सं.) [सं-स्त्री.] जन्मपत्री; वह पत्रक जिसमें किसी व्यक्ति का जन्मकाल, ग्रह, नक्षत्र आदि दिए गए हों; कुंडली।

कोस [सं-पु.] दूरी मापने की प्राचीन भारतीय पद्धति का एक पैमाना; दो किलोमीटर से कुछ अधिक की दूरी।

कोसना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी के लिए अशुभ कामना करना; बददुआ देना 2. निंदा करना; बुरा-भला कहना। [मु.] पानी पी-पी कर- : शाप और गालियाँ देना।

कोसा [सं-पु.] 1. मुख्यतः मध्य प्रदेश में बनने वाला एक प्रकार का रेशम 2. एक प्रकार का गाढ़ा रस या अवलेह जो चिकनी सुपारी बनाते समय सुपारियों को उबालने पर तैयार होता है 3. मिट्टी का बड़ा और छिछला कटोरा जो घड़ा ढकने या खाने-पीने की वस्तुएँ रखने के काम में आता है; कसोरा।

कोसाकाटी [सं-स्त्री.] किसी को कोसने की क्रिया या भाव; शाप के रूप में दी जाने वाली गाली या बददुआ।

कोस्ट (इं.) [सं-पु.] समुद्र का किनारा; सागर तट।

कोहकन (फ़ा.) [वि.] पहाड़ खोदने वाला; पर्वतभेदी। [सं-पु.] शीरीं के प्रेमी फ़रहाद का उपनाम जिसने शीरीं के पिता के कहने पर पहाड़ खोद कर नहर बनाई।

कोहनी [सं-स्त्री.] 1. हाथ के ऊपर और निचले आधे-आधे हिस्से के बीच का जोड़ जहाँ से हाथ मुड़ता है; कुहनी 2. हुक्के की निगाली में लगाई जाने वाली धातु की टेढ़ी नली।

कोहबर (सं.) [सं-पु.] वह स्थान या घर जहाँ विवाह के समय कुलदेवता स्थापित किए जाते हैं तथा विवाह से संबद्ध कई प्रकार की रस्में संपन्न की जाती हैं।

कोहरा [सं-पु.] छोटे-छोटे वाष्प कण जो शीत के कारण वातावरण में भाप बनकर जम जाते हैं; धुंध; कुहासा; कुहरा।

कोहराम (अ.) [सं-पु.] 1. हंगामा 2. किसी अनर्थकारी, दुखद या शोकजनक घटना को देखकर होने वाला रोना-पीटना; विलाप; हाहाकार।

कोहान (फ़ा.) [सं-पु.] ऊँट की पीठ पर का कूबड़ या डिल्ला।

कोहिनूर (फ़ा.) [सं-पु.] 1. एक विश्वप्रसिद्ध हीरा जो भारत की मुगल सल्तनत से नादिरशाह के पास गया और अब ब्रिटिश सम्राट के ताज में जड़ा है; कोहेनूर; कोहिनूर 2. आभा या रोशनी का पर्वत।

कोही [वि.] क्रोध करने वाला; क्रोधी; गुस्सेवर।

कौंच (सं.) [सं-पु.] 1. कराँकुल नामक जल पक्षी; क्रौंच 2. केवाँच नामक लता; कौंछ।

कौंछ (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की बेल; केवाँच; कौंच 2. उक्त बेल की सेम जैसी फलियाँ जिनको छूने से खुजली होती है।

कौंतेय (सं.) [सं-पु.] कुंती का पुत्र।

कौंध [सं-स्त्री.] 1. चमक; आकाशीय विद्युत की चमक 2. {ला-अ.} एकाएक आई याद।

कौंधना (सं.) [क्रि-अ.] बिजली का कुछ क्षणों के लिए चमककर छिप जाना; कुछ क्षणों के लिए ऐसे चमकना कि आँखें चौंधिया जाएँ।

कौंसिल (इं.) [सं-स्त्री.] किसी विषय या कार्य पर आधिकारिक रूप से विचार करने तथा उस कार्य का संचालन करने के लिए गठित कुछ लोगों का समूह; परामर्श सभा या समिति।

कौआ [सं-पु.] 1. एक प्रकार का पक्षी जिसका रंग काला होता है; काग; काक 2. गले के भीतर लटकने वाली छोटी जीभ; अलिजिह्वा; उपजिह्वा 3. {ला-अ.} धूर्त व्यक्ति। [मु.] कौए उड़ाना : बेकार के काम करना।

कौटिल्य (सं.) [सं-पु.] अर्थशास्त्र के रचयिता और कूटनीति के आचार्य चाणक्य जिनके मार्गदर्शन में मगध में मौर्यवंश की स्थापना हुई; चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु और महामंत्री।

कौटुंबिक (सं.) [वि.] कुटुंब का; कुटुंब संबंधी; पारिवारिक।

कौड़ा [सं-पु.] 1. बूई नाम का पौधा जिसे जलाकर सज्जीखार निकालते हैं 2. एक प्रकार का जंगली प्याज़ 3. बड़ी कौड़ी 4. जाड़े के दिनों में तापने के लिए किसी गड्ढे में खरपतवार फूँककर जलाई हुई आग; अलाव।

कौड़ियाला (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का विषैला साँप जिसपर कौड़ी के रंग और आकार की चित्तियाँ पड़ी रहती हैं 2. एक पौधा जो ऊसर भूमि में होता है 3. कृपण धनाढ्य; कंजूस अमीर।

कौड़िल्ला [सं-पु.] 1. जलाशय के आस-पास रहने वाला एक पक्षी जो मछली पकड़ कर खाता है; किलकिला; (किंगफ़िशर) 2. कसी नामक पौधा जिसे संस्कृत में कशुक और गवेधुक कहते हैं।

कौड़ी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. शंख की तरह का एक समुद्री कीड़ा जो अस्थिकोश में रहता है 2. उक्त अस्थिकोश जो प्राचीन काल में सबसे छोटे सिक्के के रूप में प्रचलित था 3. छाती के बीचोंबीच की एक छोटी हड्डी जिसपर पसलियाँ आकर मिलती हैं 4. {ला-अ.} द्रव्य; धन; रुपया।

कौतुक (सं.) [सं-पु.] 1. कुतूहल; आश्चर्य; अचंभा 2. विनोद; हँसी-मजाक 3. खेल-तमाशा 4. उत्सुकता; आवेग 5. जिज्ञासा।

कौतुकी (सं.) [वि.] 1. कौतुक करने वाला; विनोदशील 2. खेल तमाशा करने वाला।

कौतूहल (सं.) [सं-पु.] किसी वस्तु को देखने या जानने की इच्छा या चाहत; कुतूहल; जिज्ञासा।

कौन (सं.) [सर्व.] एक प्रश्नवाचक सर्वनाम जो किसी व्यक्ति के संबंध में जिज्ञासा करता है।

कौपीन (सं.) [सं-पु.] लँगोट, जिसे संन्यासी और ब्रह्मचारी पहनते हैं; काछा।

कौम (अ.) [सं-स्त्री.] 1. जाति; बिरादरी 2. वंश; नस्ल 3. राष्ट्र; (नेशन)।

क़ौम (अ.) [सं-स्त्री.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कौम)।

कौमारभृत्य (सं.) [सं-पु.] आयुर्वेद का एक अंग जिसमें शिशुओं के लालन-पालन और चिकित्सा आदि से संबंधित विद्या का वर्णन है; धात्रीविद्या।

कौमार्य (सं.) [सं-पु.] कुमार होने की अवस्था; कौमार; कुँआरापन।

कौमार्यव्रत (सं.) [सं-पु.] आजीवन कौमार्य का निर्वाह करने की प्रतिज्ञा; ब्रह्मचर्य व्रत।

कौमी (अ.) [वि.] 1. किसी कौम या जाति से संबंधित; जातीय 2. राष्ट्रीय; राष्ट्र से संबंधित, जैसे- कौमी तराना (राष्ट्रगान)।

कौमुदी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ज्योत्स्ना; चाँदनी 2. प्राचीन भारत में कार्तिक पूर्णिमा को होने वाला कार्तिकोत्सव; शरदोत्सव 3. व्याख्या; विवेचन; टीका (ग्रंथ के नाम के अंत में प्रयुक्त), जैसे- लघु सिद्धांत कौमुदी।

कौमोदकी (सं.) [सं-स्त्री.] विष्णु की गदा का नाम; कौमोदी।

कौर [सं-पु.] रोटी का एक टुकड़ा; ग्रास; निवाला।

कौरव (सं.) [सं-पु.] राजा कुरु के वंशज या संतान; (महाभारत) कुरुवंशी धृतराष्ट्र के सौ पुत्र- दुर्योधन, दुःशासन आदि सामूहिक रूप से इसी नाम से जाने जाते थे। [वि.] कुरु संबंधी।

कौल1 (सं.) [सं-पु.] 1. कुलीन व्यक्ति 2. वाममार्गी कौल संप्रदाय का व्यक्ति 3. कमल 4. कश्मीरी पंडितों की एक शाखा का कुलनाम या सरनेम।

कौल2 (अ.) [सं-पु.] 1. वचन; वायदा 2. प्रण; प्रतिज्ञा।

क़ौल (अ.) [सं-पु.] उर्दू उच्चारणानुसार वर्तनी (दे. कौल2)।

कौलमार्ग (सं.) [सं-पु.] वाममार्ग; तंत्र साधना की एक पद्धति; शक्ति और शिव के बीच संबंध सिद्ध करने वाला मार्ग।

कौल-व-करार (अ.) [सं-पु.] परस्पर प्रतिज्ञा; कौलोकरार।

कौला (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का संतरा जो बहुत अच्छा और स्वादिष्ट होता है; कमला 2. द्वार के इधर-उधर का वह भाग जिनसे किवाड़ खुलने पर सटे रहते हैं। [वि.] कोमल।

कौलाचार (सं.) [सं-पु.] कौलमार्ग या वाममार्ग के विहित आचार तथा आचरण।

कौशल (सं.) [सं-पु.] 1. निपुणता; कार्य दक्षता 2. होशियारी; चतुराई।

कौशल्या (सं.) [सं-स्त्री.] (रामायण) राजा दशरथ की ज्येष्ठ पत्नी और राम की माता।

कौशांबी (सं.) [सं-पु.] 1. उत्तर प्रदेश का एक बहुत प्राचीन और ऐतिहासिक नगर; लोकप्रसिद्धि के अनुसार उक्त नगर को कुश के पुत्र कौशांब ने बसाया था।

कौशिक (सं.) [सं-पु.] 1. इंद्र 2. कुशिक का वंशज 3. विश्वामित्र 4. उल्लू 5. साँप पकड़ने तथा साँप का खेल दिखाने वाला व्यक्ति; मदारी। [वि.] कुशिक वंश का।

कौशिकी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चंडिका; दुर्गा 2. पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्य से होकर बहने वाली कोसी नामक नदी 3. (पुराण) राजा कुशिक की पोती और ऋचीक मुनि की पत्नी, जो अपने पति के साथ सदेह स्वर्ग गई थीं 4. (काव्यशास्त्र) काव्य में चार प्रकार की वृत्तियों में से पहली वृत्ति।

कौषेय (सं.) [सं-पु.] रेशम से बना हुआ वस्त्र; रेशमी वस्त्र; अंशुक; पाटंबर। [वि.] रेशम से संबंध रखने वाला; रेशम का; रेशमी।

कौसर (अ.) [सं-पु.] स्वर्ग का कुंड या हौज़।

कौस्तुभ (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) समुद्र मंथन से प्राप्त एक मणि जिसे विष्णु अपने हृदयस्थल पर धारण करते हैं 2. उँगुलियों की एक प्रकार की तांत्रिक मुद्रा 3. वैद्यक में प्रयुक्त एक प्रकार का तेल।

क्या [सर्व.] 1. प्रश्नसूचक सर्वनाम 2. कौन-सी बात; कौन-सी चीज़।

क्यारी [सं-स्त्री.] 1. खेतों में छोटी-छोटी मेड़ों से घिरे हुए वे स्थान, जिनमें फ़सल उगाई जाती है तथा पौधे लगाए जाते हैं 2. नमक बनाने के लिए समुद्री जल के ज्वार के क्षेत्र में मेंड़े बनाकर घेरा गया चौकोर या आयताकार स्थान जिसमें ज्वार उतरने के समय समुद्र का जल रुक जाता है और जल वाष्पीकृत होने पर नमक बच जाता है; नमक की क्यारियाँ।

क्युरेटर (इं.) [सं-पु.] 1. किसी संग्रहालय में रखी हुई वस्तुओं की देखभाल का प्रभारी; संग्रहालयाध्यक्ष 2. क्रिकेट में क्रीड़ास्थल के पिच को तैयार करने वाला व्यक्ति।

क्युरेबल (इं.) [वि.] 1. साध्य; जिसका समाधान किया जा सके (स्थिति या समस्या) 2. जिसका उपचार संभव हो (रोग)।

क्यू (इं.) [सं-पु.] किसी कार्य या सुविधा के उपयोग के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा में लोगों द्वारा लगाई गई कतार या पंक्ति।

क्यूट (इं.) [वि.] 1. आकर्षक; लुभावना 2. अति सुंदर।

क्यूब (इं.) [सं-पु.] 1. छह समान पार्श्वों वाली ऐसी ठोस संरचना जिसमें लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाई तीनों आयाम हों; घन 2. किसी संख्या का अपने आपसे दो बार गुणा करने से निकला गुणनफल; घनफल, जैसे- 2x2x2 = 8।

क्यों [अव्य.] 1. प्रश्नवाचक शब्द 2. कारण संबंधी प्रश्नात्मक जिज्ञासा।

क्योंकि [अव्य.] 1. कारण यह कि; इसलिए कि 2. चूँकि।

क्रंदन (सं.) [सं-पु.] असहाय स्थिति में होने वाला भावविह्वल विलाप; रुदन।

क्रतु (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का यज्ञ; अश्वमेध यज्ञ 2. विष्णु 3. ब्रह्मा के एक मानस पुत्र 4. कृष्ण के एक पुत्र का नाम।

क्रम (सं.) [सं-पु.] 1. सिलसिला 2. अनुक्रम; एक के बाद एक की स्थिति 3. नियमित व्यवस्था; निश्चित पद्धति या योजना।

क्रम परिवर्तन (सं.) [सं-पु.] क्रम में पीछे से आगे अथवा आगे से पीछे होना; क्रम में बदलाव; विपर्यय; क्रमचय।

क्रमबद्ध (सं.) [वि.] एक क्रम में रखे गए; एक के बाद एक रखे हुए; क्रमिक।

क्रम-भंग (सं.) [सं-पु.] 1. क्रम टूट जाना; क्रम में होने वाली उलटफेर 2. व्यतिक्रम।

क्रमशः (सं.) [अव्य.] 1. नियत क्रम के अनुसार; क्रमानुसार; सिलसिलेवार 2. बारी-बारी से; एक-एक कर के 3. धीरे-धीरे; थोड़ा-थोड़ा कर के।

क्रम-संख्या (सं.) [सं-स्त्री.] क्रम के अनुसार लिखी जाने वाली संख्या; क्रमांक; (सीरियल नंबर)।

क्रम-सूचक (सं.) [वि.] जिससे किसी वस्तु, व्यक्ति, घटना आदि का क्रम सूचित होता हो, जैसे- पहला, दूसरा, ... दसवाँ आदि (शब्द); क्रमसंख्या-वाचक; (ऑर्डिनल)।

क्रमांक (सं.) [सं-पु.] क्रम को व्यक्त करने वाली संख्या या सिलसिला; क्रमसंख्या; (सीरियल नंबर)।

क्रमागत (सं.) [वि.] 1. ठीक क्रम या बारी से आया हुआ; क्रमानुसार 2. जो धीरे धीरे होता आया हो 3. जो परंपरा से होता आया हो; परंपरागत; पारंपरिक।

क्रमानुसार (सं.) [अव्य.] जो क्रम के अनुसार हो; यथाक्रम; बारी-बारी से।

क्रमिक (सं.) [वि.] एक के बाद एक; क्रम से।

क्रमेलक (सं.) [सं-पु.] रेगिस्तानी इलाकों में रहने वाला एक पशु जिससे सवारी और बोझ ढोने का काम लिया जाता है; ऊँट; शुतुर; उष्ट्र।

क्रय (सं.) [सं-पु.] कुछ ख़रीदने या मोल लेने का कार्य; रुपयों के बदले किसी से कोई वस्तु लेने का कार्य।

क्रयमूल्य (सं.) [सं-पु.] वह मूल्य जिसपर कोई वस्तु ख़रीदी या क्रय की गई हो।

क्रय-विक्रय (सं.) [सं-पु.] ख़रीदना और बेचना।

क्रयशक्ति (सं.) [सं-स्त्री.] किसी देश की जनता की वह आर्थिक शक्ति जिससे वह जीवन-निर्वाह हेतु आवश्यक वस्तुएँ ख़रीदता है; (परचेज़िंग पावर)।

क्रयी (सं.) [वि.] कोई वस्तु ख़रीदनेवाला। [सं-पु.] ख़रीददार; ग्राहक; क्रेता; (कस्टमर)।

क्रश (इं.) [सं-पु.] 1. किसी के प्रति मन में जागा हुआ अल्पकालिक प्रेम भाव; किशोर उम्र की प्रेमासक्ति 2. फलों के गूदे में शक्कर या चाशनी मिलाकर तैयार किया गया खाद्य पदार्थ। -करना [क्रि-स.] तोड़ने के लिए ज़ोर से दबाना।

क्रांत (सं.) [वि.] 1. दबा या दबाया हुआ 2. लाँघा या पार किया हुआ 3. जिसपर आक्रमण हुआ हो; आक्रांत; ग्रस्त 4. जो अतीत हो चुका हो।

क्रांतदर्शी (सं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जिसकी दृष्टि स्थान और समय के पार देख सकती हो; सर्वज्ञ; त्रिकालदर्शी; परमेश्वर। [वि.] सब कुछ जानने वाला।

क्रांति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह बहुत भारी परिवर्तन या उलटफेर जिससे किसी व्यवस्था या स्थिति का स्वरूप बिल्कुल बदल जाए; भारी उलटफेर; इनक़लाब; (रेवलूशन) 2. राजनीतिक परिदृश्य में वह स्थिति जिसमें विद्रोह द्वारा शासन में परिवर्तन हो जाए 3. {ला-अ.} किसी भी क्षेत्र में भारी परिवर्तन, जैसे- इस नई खोज से चिकित्सा की दुनिया में क्रांति आ गई है।

क्रांतिकारी (सं.) [वि.] 1. क्रांति करने वाला 2. किसी प्रकार का कोई बड़ा परिवर्तन चाहने वाला 3. किसी बदलाव की कोशिश करने वाला।

क्रांतिदर्शी (सं.) [वि.] क्रांति का स्वप्न देखने वाला; क्रांति की योजनाएँ बनाने वाला।

क्रांतिधर्मा (सं.) [वि.] क्रांति जिसका धर्म हो; क्रांतिकारी; परिवर्तनकामी; इनक़लाबी।

क्रांतिवादी (सं.) [वि.] किसी विद्यमान व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन का हिमायती; जो क्रांति का पक्षधर हो।

क्रांतिवृत्त (सं.) [सं-पु.] सूर्य का दैनिक भ्रमण-पथ; क्रांतिमंडल; क्रांति-वलय।

क्राइम (इं.) [सं-पु.] अपराध; जुर्म।

क्राइसिस (इं.) [सं-पु.] ऐसी स्थिति जिसमें तुरंत कदम न उठाया जाए तो भारी दुष्परिणाम हो सकता है; घोर संकट।

क्राउड (इं.) [सं-पु.] भीड़; जमावड़ा।

क्राउन (इं.) [सं-पु.] 1. ताज; राजमुकुट 2. {ला-अ.} राजा; सम्राट।

क्राफ़्ट (इं.) [सं-पु.] शिल्पकर्म; हस्तकला।

क्रिकेट (इं.) [सं-पु.] बल्ले और गेंद से खेला जाने वाला एक लोकप्रिय खेल।

क्रिटिकल (इं.) [वि.] 1. संकटपूर्ण; गंभीर, जैसे- रोगी की हालत क्रिटिकल है 2. आलोचनात्मक; विवेचनात्मक।

क्रिमिनल (इं.) [सं-पु.] अपराधी व्यक्ति। [वि.] अपराध करने वाला; जिसने कोई जुर्म किया हो।

क्रियमाण (सं.) [वि.] 1. जो हो रहा हो; जो किया जा रहा हो 2. सक्रिय; क्रियाशील।

क्रिया (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (व्याकरण) वह शब्द जिससे किसी कार्य के किए जाने या होने की अवस्था या भाव प्रकट हो 2. ऐसा कार्य जो किया जाता हो या किया जा रहा हो 3. कर्म 4. नित्य या नैमित्तिक कर्म; नियम और विधि से होने वाला कार्य 5. अध्यापन, चिकित्सा आदि के रूप में होने वाले कार्य।

क्रियाकर्म (सं.) [सं-पु.] किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत परिजनों द्वारा धार्मिक नियम के अनुसार किया जाने वाला कार्य; मृतक की अंत्येष्टि क्रिया।

क्रियाकलाप (सं.) [सं-पु.] 1. शास्त्रानुसार किए जाने वाले कर्म 2. किसी की चाल-ढाल या उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य; गतिविधि।

क्रियात्मक (सं.) [वि.] जिसे क्रिया अथवा कार्य के रूप में किया जा सकता हो; जिसपर अमल किया जा सकता हो; व्यावहारिक; (प्रैक्टिकल)।

क्रियार्थक संज्ञा (सं.) [सं-स्त्री.] (व्याकरण) क्रिया का अर्थ देने वाली वह संज्ञा जो क्रिया के मूल रूप में होती है अर्थात क्रिया का अर्थ देने वाला शब्द क्रिया के रूप में होते हुए भी संज्ञा का अर्थ देता है, जैसे- चलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।

क्रियाविशेषण (सं.) [सं-पु.] (व्याकरण) जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं उन्हें क्रिया विशेषण कहते हैं, जैसे- मोहन धीरे धीरे चलता है। इसमें 'धीरे-धीरे' क्रिया विशेषण है क्योंकि यह 'चलने' (क्रिया) की विशेषता बता रहा है।

क्रियाशील (सं.) [वि.] 1. सक्रिय 2. सक्रियता से काम करने वाला।

क्रियाशून्य (सं.) [वि.] निष्क्रिय; शिथिल; कर्महीन।

क्रिश्चियन (इं.) [वि.] ईसाई धर्म को मानने वाला; ईसाई; मसीही।

क्रिसमस (इं.) [सं-पु.] ईसाइयों का एक त्योहार जो पच्चीस दिसंबर को ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।

क्रिस्टल (इं.) [सं-पु.] 1. किसी पदार्थ या रसायन के निश्चित आकृति के छोटे-छोटे कण; रवा 2. स्फटिक; बिल्लौर।

क्रिस्तान (इं.) [सं-पु.] ख्रीष्ट या ईसा का अनुयायी; ईसाई; क्रिश्चियन।

क्रिस्प (इं.) [वि.] कुरकुरा; चुरमुरा।

क्रीज़ (इं.) [सं-पु.] 1. सिलवट; चुन्नट; पोशाकों में इस्तिरी करने से बन जाने वाली सिलवट 2. क्रिकेट में गेंद फेंकने एवं बल्लेबाज़ी का नियत स्थान।

क्रीड़ा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. खेलकूद; किलोल; मन बहलाने या मनोरंजन के लिए किया जाने वाला काम 2. ताल के प्रमुख भेदों में से एक 3. आमोद-प्रमोद।

क्रीड़ा-वन (सं.) [सं-पु.] क्रीड़ा या मनोविनोद के लिए बनाया गया उद्यान; क्रीड़ा-कानन।

क्रीड़ास्थल (सं.) [सं-पु.] 1. वह स्थान जहाँ किसी ने क्रीड़ाएँ की हों, जैसे- लोकमान्यता के अनुसार ब्रजभूमि कृष्ण का क्रीड़ास्थल रही है 2. खेलने की जगह या मैदान; क्रीड़ाभूमि; (प्लेग्राउंड)।

क्रीत (सं.) [वि.] जिसके लिए धन दिया गया हो (वस्तु, व्यक्ति या सेवा); क्रय किया हुआ; ख़रीदा हुआ।

क्रीतदास (सं.) [सं-पु.] ख़रीदा हुआ दास; गुलाम।

क्रीम (इं.) [सं-पु.] 1. मलाई 2. चेहरे की त्वचा मुलायम रखने के लिए प्रयुक्त एक उत्पाद 3. {ला-अ.} सर्वश्रेष्ठ अंश।

क्रुद्ध (सं.) [वि.] क्रोधित; जो गुस्से में हो।

क्रू (इं.) [सं-पु.] कार्य विशेष के लिए नियुक्त श्रमिक दल या कर्मीदल।

क्रूर (सं.) [वि.] 1. निर्दय 2. हिंसक कार्य करने वाला 3. दूसरों को कष्ट पहुँचाकर सुखी होने वाला।

क्रूरता (सं.) [सं-स्त्री.] निर्दयता; कठोर व्यवहार; हिंसक व्यवहार

क्रूस (इं.) [सं-पु.] 1. क्रॉस 2. ईसा के बलिदान का प्रतीक; ईसाइयों का पवित्र चिह्न।

क्रेज़ी (इं.) [वि.] 1. उत्तेजित 2. पागल; सनकी 3. किसी कार्य या व्यक्ति को लेकर हद से ज़्यादा उत्साहित; दीवाना, जैसे- आजकल लोग क्रिकेट को लेकर क्रेज़ी हो रहे हैं।

क्रेडिट (इं.) [सं-पु.] 1. खाते में जमा धन 2. श्रेय, जैसे- इस विजय का क्रेडिट अमुक व्यक्ति को जाता है 3. विश्वास; साख।

क्रेडिटलाइन (इं.) [सं-स्त्री.] जिस पंक्ति में समाचार के सूत्र का उल्लेख किया जाता है।

क्रेता (सं.) [सं-पु.] 1. ग्राहक; माल ख़रीदने वाला; ख़रीदार 2. किसी साधन या सेवा के उपयोग के बदले धन देने वाला व्यक्ति।

क्रेन (इं.) [सं-पु.] 1. सारस नामक पक्षी 2. भारी सामान उठाकर स्थानांतरित करने वाली मशीन।

क्रैश (इं.) [सं-पु.] 1. दो गाड़ियों की टक्कर 2. किसी भारी वस्तु का अनायास नीचे गिरकर चूर-चूर हो जाना, जैसे- हवाई जहाज़ का क्रैश।

क्रैश कोर्स (इं.) [सं-पु.] शीघ्रता से या थोड़ी अवधि में पूर्ण करने के उद्देश्य से निर्मित पाठ्यक्रम।

क्रॉनिक (इं.) [वि.] पुराना; पुरानी (व्याधि), जैसे- क्रॉनिक बीमारी।

क्रॉनिकल (इं.) [सं-पु.] 1. इतिवृत्त 2. अतीत में हुई बातों या घटनाओं का क्रमबद्ध लेखा-जोखा 3. कोई किस्सा या ब्योरा।

क्रॉप (इं.) [सं-पु.] प्रकाशन योग्य चित्र को इधर-उधर से काटकर अपेक्षित आकार देना।

क्रॉस (इं.) [सं-पु.] 1. क्रूस; ईसाइयों का पवित्र चिह्न 2. लिखे हुए को काटने का निशान। -करना [क्रि-स.] पार करना, जैसे- सड़क क्रॉस करना।

क्रॉस वेंटिलेशन (इं.) [सं-पु.] कमरे या मकान में हवा के आर-पार प्रवाह के लिए बनी खिड़कियों की व्यवस्था।

क्रॉसिंग (इं.) [सं-स्त्री.] 1. वह स्थान जहाँ से रेल लाइन को सुरक्षित रूप से पार किया जा सकता है 2. सड़क, नदी आदि पार करने का स्थान।

क्रोटन (इं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का पौधा जिसके पत्ते चमकीले और अनेक प्रकार के होते हैं 2. वनस्पति की एक जाति जिसके अंतर्गत अनेक पेड़ और पौधे होते हैं।

क्रोड (सं.) [सं-पु.] 1. गोद; गोदी 2. आलिंगन में दोनों बाँहों के बीच का भाग; अँकवार।

क्रोध (सं.) [सं-पु.] कोई अनुचित या प्रतिकूल कार्य होने पर मन में उत्पन्न उग्र या तीक्ष्ण मनोविकार; गुस्सा; कोप; रोष।

क्रोधवश (सं.) [क्रि.वि.] क्रोध में या क्रोध के कारण।

क्रोधावेश (सं.) [सं-पु.] क्रोध का आवेश; क्रोध में आने के पश्चात कुछ भी कर डालने की मनःस्थिति।

क्रोधित (सं.) [वि.] जिसे क्रोध दिलाया गया हो; क्रोधी; कुद्ध।

क्रोधी (सं.) [वि.] जिसे जल्दी या शीघ्र ही गुस्सा आता हो; गुस्सैल; प्रायः क्रोध करने के स्वभाव वाला।

क्रोश (सं.) [सं-पु.] दूरी मापने की एक प्राचीन माप; कोस।

क्रोशिया (इं.) [सं-पु.] लोहे, प्लास्टिक आदि का आगे से मुड़ी हुई नोक वाली तीली जैसी वह सलाई जो धागे से लेस, मेज़पोस, टोपी आदि बुनने के काम आती है; (क्रोशे)।

क्रौंच (सं.) [सं-पु.] 1. जलाशयों के किनारे रहने वाला एक प्रकार का पक्षी; कराँकुल 2. (पुराण) सात द्वीपों में से एक 3. (पुराण) मय नामक दानव का पुत्र जो स्कंद के हाथों मारा गया।

क्लच (इं.) [सं-पु.] गाड़ियों में गियर बदलने से पहले दबाया जाने वाला यंत्र।

क्लब (इं.) [सं-पु.] 1. वह संस्था जहाँ समान रुचि वाले लोग मनोरंजन, समाज सेवा आदि के उद्देश्य से एकत्र होते हैं 2. वह स्थान जहाँ उक्त उद्देश्यों से संबंधित कार्य होते हैं।

क्लर्क (इं.) [सं-पु.] 1. किसी कार्यालय में बाबू; लिपिक 2. न्यायालय का पेशकार 3. मुंशी; मुहर्रिर।

क्लांत (सं.) [वि.] थका हुआ; श्रांत; शिथिल।

क्लांति (सं.) [सं-स्त्री.] शिथिलता; थकावट।

क्लाइंट (इं.) [सं-पु.] किसी भी प्रकार के व्यवसायी या सेवा प्रदाता की सेवा का लाभ लेने वाला व्यक्ति, जैसे- दुकानदार का ग्राहक, वकील का मुवक्किल आदि।

क्लाइमेट (इं.) [सं-पु.] जलवायु; आबो-हवा।

क्लाउड (इं.) [सं-पु.] 1. बादल; मेघ 2. घटा 3. आधुनिक समय में इंटरनेट के माध्यम से सर्वर पर सामग्री सुरक्षित करने के लिए बनी व्यवस्था का नाम; (क्लाउड कंप्यूटिंग)।

क्लास (इं.) [सं-स्त्री.] 1. शैक्षणिक संस्थानों में विभिन्न पाठ्यक्रमों की कक्षा; वर्ग 2. सामाजिक या आर्थिक श्रेणी 3. स्तर; दरजा 4. गुणवत्ता।

क्लासफ़ेलो (इं.) [सं-पु.] एक ही कक्षा में साथ पढ़ने वाले छात्र; सहपाठी; कक्षामित्र।

क्लासमेट (इं.) [सं-पु.] सहपाठी; कक्षामित्र; क्लासफ़ेलो।

क्लासिक (इं.) [वि.] उच्चकोटि का; उत्कृष्ट; श्रेष्ठ [सं-पु.] 1. उच्च कोटि का प्राचीन साहित्य 2. उत्कृष्ट कला या कलाकारों की कृतियाँ 3. कोई ऐसा प्रसिद्ध ग्रंथ जो मानव जीवन के विराट आयामों को छूता हो।

क्लासिकल (इं.) [वि.] 1. शास्त्रीय 2. प्राचीन; चिरप्रतिष्ठित 3. उत्कृष्ट; उच्चकोटि का।

क्लासिफ़िकेशन (इं.) [सं-पु.] किसी चीज़ का वर्ग तय करना; वर्गीकरण; श्रेणी निर्धारण।

क्लिक (इं.) [क्रि-स.] 1. कैमरे का बटन दबाकर फ़ोटो खींचना 2. कंप्यूटर की स्क्रीन में देखकर माउस या की-बोर्ड की सहायता से ज़रूरत के अनुसार किसी बटन या स्थान को दबाना।

क्लिनिक (इं.) [सं-पु.] वह स्थान जहाँ डॉक्टर रोगियों को देखते और सामयिक चिकित्सा करते हैं; चिकित्सालय; रोग या व्याधि के निवारण का केंद्र।

क्लिपिंग (इं.) [सं-स्त्री.] संपादकीय लेख, टिप्पणियाँ आदि तैयार करने हेतु विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से एकत्र की गई सामग्री।

क्लियर (इं.) [वि.] 1. साफ़; निर्मल; स्पष्ट; पारदर्शी 2. रिक्त; ख़ाली 3. निर्दोष; निष्कलंक 4. स्पष्ट; समझ में आने वाला 5. निर्बाध; जिसमें कोई रुकावट न हो, जैसे- रेलगाड़ी का सिग्नल क्लियर हो गया है।

क्लिष्ट (सं.) [वि.] जिसे समझना मुश्किल हो; कठिन; दुरूह; दुर्बोध।

क्लिष्टता (सं.) [सं-स्त्री.] क्लिष्ट होने की अवस्था या भाव; कठिनाई; दुर्बोधता; दुर्ग्राह्यता।

क्लीन चिट (इं.) [सं-स्त्री.] किसी के दोषमुक्त होने का अभिप्रमाणन; न्यायालय द्वारा पूर्णतः निर्दोष करार दिया जाना।

क्लीव (सं.) [वि.] 1. कायर; कापुरुष 2. नपुंसक; पुरुषत्वहीन।

क्लू (इं.) [सं-पु.] किसी समस्या के हल की दिशा में मिलने वाले संकेत; सूत्र; सुराग।

क्लेद (सं.) [सं-पु.] 1. गीलापन; आर्द्रता; नमी 2. स्वेद; पसीना 3. मवाद; पीप 4. दुख; कष्ट।

क्लेम (इं.) [सं-पु.] किसी वस्तु पर स्वामित्व के अधिकार का दावा; हक़ देने की माँग।

क्लेश (सं.) [सं-पु.] 1. कष्ट; वेदना 2. कलह; झगड़ा।

क्लैंप (इं.) [सं-पु.] किसी चीज़ को कसकर पकड़ने का उपकरण; शिकंजा।

क्लोक रूम (इं.) [सं-पु.] यात्रियों की सुविधा के लिए बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन आदि पर बनाया गया अमानती सामान घर।

क्लोज़-अप (इं.) [सं-पु.] करीब से लिया गया चित्र (फ़ोटो) या दृश्य; प्रसारण के दौरान पूरे परदे पर केवल कंधा या सिर दिखाई देना।

क्लोन (इं.) [सं-पु.] बिना नर-मादा के संयोग के किसी वनस्पति या प्राणी की कोशिका को प्रयोगशाला में विकसित करके बनाई गई उसकी हूबहू प्रतिकृति।

क्लोम (सं.) [सं-पु.] (शरीर रचना विज्ञान) दाहिनी तरफ़ का फेफड़ा या फुफ्फुस।

क्लोराइड (इं.) [सं-पु.] (रसायनविज्ञान) वह रासायनिक यौगिक जिसमें क्लोरीन का परमाणु हो; एक प्रकार का रासायनिक मिश्रण।

क्लोरीन (इं.) [सं-स्त्री.] (रसायनविज्ञान) हैलोजन समूह का अधात्विक तत्व; हरे-पीले रंग की तीव्र गंधवाली गैस जो पानी की अशुद्धियों को दूर करती है।

क्लोरोफ़ार्म (इं.) [सं-पु.] एक रंगहीन, भारी और वाष्पशील द्रव जो स्वाद में मीठा होता है। यह क्लोरीन का एक यौगिक है और किसी को बेहोश करने वाले पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

क्वचित (सं.) [अव्य.] कदाचित ही कोई; बहुत कम; शायद ही कोई। [वि.] कभी-कभी या कहीं-कहीं लेकिन बहुत कम मिलने वाला।

क्वण (सं.) [सं-पु.] 1. वीणा की झंकार 2. घुँघरू का शब्द 3. ध्वनि; आवाज़।

क्वणित (सं.) [सं-पु.] 1. शब्द; ध्वनि 2. किसी वाद्य, घुँघरू या आभूषण आदि की ध्वनि। [वि.] 1. जो बजा या बजाया गया हो 2. झंकृत; ध्वनित; शब्दायमान।

क्वथन (सं.) [सं-पु.] किसी तरल पदार्थ को ताप पर उबालने या औटाने की क्रिया; काढ़ा पकाना; उबालना।

क्वथनांक (सं.) [सं-पु.] वह तापमान जिसपर कोई द्रव उबलने लगे; क्वथन बिंदु; (ब्वायलिंग प्वाइंट)।

क्वाँरा (सं.) [वि.] जिसका विवाह न हुआ हो; जिसने विवाह न किया हो; कुमार; कुँआरा।

क्वाइन (इं.) [सं-पु.] सिक्का; टंक; मुद्रा।

क्वाथ (सं.) [सं-पु.] 1. औषधियों आदि को पानी में उबालकर बनाया हुआ गाढ़ा रस; काढ़ा; जोशाँदा; अरिष्ट; अर्क 2. कष्ट; क्लेश 3. व्यसन।

क्वार्टर (इं.) [सं-पु.] 1. चौथाई (हिस्सा) 2. छोटा कमरा या आवास।

क्वालिटी (इं.) [सं-पु.] 1. लक्षण; गुण 2. विशेषता; धर्म 3. प्रकार; कोटि; दरजा 4. योग्यता; क्षमता।

क्विंटल (इं.) [सं-पु.] 1. सौ किलोग्राम की एक तौल 2. सौ किलोग्राम का परिमाण या बटखरा।

क्ष हिंदी वर्णमाला में 'क्+ष्' का संयुक्त वर्ण। हिंदी वर्णमाला में इसे 'ह' के बाद स्थान दिया गया है।

क्षंतव्य (सं.) [वि.] 1. क्षमा किए जाने योग्य; क्षम्य 2. सहन करने के योग्य।

क्षण (सं.) [सं-पु.] 1. पल; काल की अत्यंत छोटी इकाई 2. अवसर; मौक़ा 3. एक बार पलक झपकने भर का समय।

क्षणजीवी (सं.) [वि.] कम अवधि तक जीवित रहने वाला।

क्षणदा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. रात; रात्रि 2. हल्दी।

क्षणभंगुर (सं.) [वि.] 1. क्षण भर में नष्ट हो जाने वाला; क्षणिक 2. अल्पकालिक या अस्थायी।

क्षणभंगुरता (सं.) [सं-स्त्री.] क्षण भर में नष्ट हो जाने का भाव; नश्वरता।

क्षणांश (सं.) [सं-पु.] अत्यंत छोटा पल; क्षण मात्र; पल भर।

क्षणिक (सं.) [वि.] 1. क्षण से संबंधित 2. मात्र एक क्षण ठहरने वाला 3. अनित्य।

क्षत (सं.) [वि.] 1. जिसे क्षति या हानि पहुँची हो 2. जिसे चोट लगी हो; घायल 3. जिसका कोई भाग या अंग टूट चुका हो; खंडित; क्षतिग्रस्त। [सं-पु.] घाव; ज़ख्म।

क्षतज (सं.) [वि.] क्षत या आघात से उत्पन्न होने वाला। [सं-पु.] 1. रक्त; ख़ून 2. पीव; मवाद 3. घायलावस्था में अधिक रक्त स्राव के कारण लगने वाली प्यास।

क्षत-विक्षत (सं.) [वि.] 1. जिसका शरीर घावों से भरा हुआ हो; घायल; लहूलुहान 2. जो चोट या आघातों से विकृत हो गया हो 3. जिसे अधिक चोट लगी हो।

क्षति (सं.) [सं-स्त्री.] हानि; नुकसान।

क्षतिपूर्ति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हानि या घाटे की पूर्ति होना 2. क्षति को पूर्ण कराने का कार्य 3. वह धन जो घाटे की पूर्ति के लिए दिया जाए।

क्षत्रप (सं.) [सं-पु.] 1. राज्य का प्रमुख; राजा 2. प्राचीन भारतीय शक राजाओं की उपाधि 3. राजा की ओर से किसी प्रांत में शासन के लिए नियुक्त प्रधान अधिकारी; प्रांताधिपति; राज्यपाल।

क्षत्रपति (सं.) [सं-पु.] किसी क्षत्र अर्थात राज्य का स्वामी; राजा।

क्षत्रिय (सं.) [सं-पु.] 1. मध्यकाल में युद्ध करने के लिए वर्गीकृत जाति 2. हिंदुओं के चार वर्णों में से एक वर्ण; राजपूत।

क्षपणक (सं.) [सं-पु.] 1. पंचतंत्र में उल्लिखित भिक्षु जो अपना सर मुंड़ा कर रहते हैं 2. बौद्ध भिक्षु।

क्षम (सं.) [सं-पु.] 1. शिव 2. युद्ध 3. औचित्य; उपयुक्तता 4. एक प्रकार का गौरा पक्षी। [वि.] 1. सहन करने में समर्थ; सहनशील; सहिष्णु 2. क्षमा करने वाला 3. समर्थ; सशक्त 4. चुप रहने वाला।

क्षमता (सं.) [सं-स्त्री.] सामर्थ्य; शक्ति; कूव्वत।

क्षमतावान (सं.) [वि.] क्षमतावाला; योग्यतावाला; समर्थवान।

क्षमा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. माफ़ी 2. किसी अपराधी या दोषी को बिना किसी प्रतिकार के छोड़ देने का भाव।

क्षमावान (सं.) [सं-पु.] दंडित करने का सामर्थ्य होने के बावजूद अपराधी या दोषी को दयापूर्वक छोड़ देने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. क्षमा करने वाला 2. सहनशील।

क्षमाशील (सं.) [वि.] 1. क्षमावान; क्षमा करने वाला 2. शांत प्रकृति का 3. जो प्रायः सब को क्षमा करता रहता हो 4. दयालु और उदार।

क्षमाशीलता (सं.) [सं-स्त्री.] क्षमाशील होने की स्थिति या भाव; उदारता; दयालुता।

क्षम्य (सं.) [वि.] 1. जो क्षमा किए जाने के योग्य हो 2. क्षमितव्य 3. जो दंडनीय न हो; अदंडनीय।

क्षय (सं.) [सं-पु.] 1. धीरे-धीरे घटना या नष्ट होना; ह्रास 2. अपचय; नाश 3. यक्ष्मा नामक रोग; तपेदिक 4. समाप्ति; अंत 5. प्रलय; कल्प का अंत।

क्षयकारक (सं.) [वि.] क्षय करने वाला।

क्षयकारी (सं.) [वि.] हानिप्रद या नुकसानदायक।

क्षयग्रस्त (सं.) [वि.] 1. यक्ष्मा या तपेदिक नामक रोग से ग्रसित 2. चोट खाया हुआ; पीड़ित।

क्षयमास (सं.) [सं-पु.] दो संक्रांतियों वाला चांद्र मास जो प्रति 141 वें वर्ष में आता है तथा इसके तीन माह पूर्व एवं तीन माह पश्चात एक-एक अधिमास भी पड़ता है।

क्षयरोग (सं.) [सं-पु.] एक रोग; तपेदिक; यक्ष्मा।

क्षयिष्णु (सं.) [वि.] जिसका क्षय होने वाला हो या हो रहा हो; नश्वर; नाशकारी।

क्षर (सं.) [सं-पु.] 1. जीवात्मा 2. शरीर 3. जल 4. मेघ 5. अज्ञान 6. रूप, वस्तु या द्रव्य जो क्षण-क्षण परिवर्तित होता है। [वि.] नष्ट होने वाला; नाशवान।

क्षरण (सं.) [क्रि-स.] 1. नुकसान; हानि 2. किसी पदार्थ के कणों का धीरे-धीरे गिरना।

क्षरित (सं.) [वि.] 1. जिसका क्षरण हुआ हो 2. टपका हुआ; चुआ हुआ; स्रवित।

क्षांत (सं.) [सं-पु.] 1. शिव; महादेव 2. एक ऋषि का नाम। [सं-स्त्री.] पृथ्वी; भूमि। [वि.] 1. क्षमा करने वाला; क्षमाशील 2. सहनशील; सहिष्णु।

क्षात्र (सं.) [सं-पु.] क्षत्रियत्व; क्षत्रीपन। [वि.] क्षत्रिय संबंधी; क्षत्रियों का।

क्षाम (सं.) [सं-पु.] 1. विष्णु का एक नाम 2. क्षय; नाश। [वि.] 1. क्षीण; कृश 2. दुर्बल; बलहीन; कमज़ोर 3. अल्प; थोड़ा।

क्षार (सं.) [सं-पु.] 1. दाहक या जारक औषधियों अथवा खनिज पदार्थों से रासायनिक प्रक्रिया द्वारा तैयार की हुई राख जो औषधियों के रूप में प्रयोग की जाती है; खार 2. शोरा 3. सोहागा; सुहागा 4. भस्म; राख 5. जल 6. काँच 7. धूर्त; ठग 8. वह पदार्थ जो किसी अम्ल के साथ अभिक्रिया कर लवण बनाता है।

क्षारक (सं.) [सं-पु.] 1. क्षार करने या जलाने वाला; दाहक 2. सज्जी 3. कलिका 4. चिड़ियों का पिंजरा। [वि.] क्षारीय बनाने वाला।

क्षारोद (सं.) [सं-पु.] 1. समुद्र 2. क्षार अंश वाले पदार्थ; क्षारीय पदार्थ।

क्षालन (सं.) [सं-पु.] 1. पानी आदि से किसी चीज़ को धोने की क्रिया या भाव; धुलाई 2. निर्मल करना; धोना; साफ़ करना।

क्षिति (सं.) [सं-स्त्री.] भू; पृथ्वी।

क्षितिज (सं.) [सं-पु.] वह स्थान जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते दिखाई दें।

क्षितिधर (सं.) [सं-पु.] पर्वत; पहाड़; भूधर।

क्षितिपति (सं.) [सं-पु.] राजा; भूपति।

क्षिप्त (सं.) [सं-पु.] योग में पाँच चित्तभूमियों में से एक। [वि.] 1. त्यागा हुआ; त्यक्त 2. फेंका हुआ 3. विकीर्ण 4. अवज्ञात; अपमानित 5. पतित 6. वात रोग से ग्रस्त; पागल 7. स्थापित।

क्षिप्र (सं.) [वि.] 1. तेज़; जल्दी 2. चंचल। [क्रि.वि.] 1. शीघ्र; जल्दी 2. तत्क्षण; तुरंत। [सं-पु.] 1. सुश्रुत के अनुसार शरीर के एक सौ सात मर्म स्थानों में से एक जो अँगूठे और दूसरी उँगली के बीच में है 2. एक मुहूर्त का पंद्रहवाँ भाग।

क्षिप्रता (सं.) [वि.] 1. शीघ्रता 2. तेज़ी।

क्षीण (सं.) [वि.] 1. जिसका क्षय हुआ हो; क्षयप्राप्त; क्षतिग्रस्त। 2. घटा हुआ या घटने वाला 3. सूक्ष्म 4. दुबला-पतला 5. दुर्बल; कमज़ोर 6. समाप्त।

क्षीणक (सं.) [वि.] क्षीण करने वाला; नष्ट करने वाला।

क्षीणक रोग (सं.) [सं-पु.] वह रोग जिसमें शरीर की शक्ति दिन पर दिन क्षीण होती जाती है।

क्षीणतर (सं.) [वि.] 1. अल्पतर 2. हीनतर।

क्षीणता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. क्षीण होने की अवस्था या भाव 2. दुर्बलता 3. सूक्ष्मता।

क्षीर (सं.) [सं-पु.] 1. दूध 2. किसी वृक्ष आदि का सफ़ेद रस 3. कोई तरल पदार्थ 4. खीर 5. जल।

क्षीरधि (सं.) [सं-पु.] 1. समुद्र 2. क्षीरसागर; दूध का समुद्र।

क्षीरनिधि (सं.) [सं-पु.] समुद्र; सागर।

क्षीरनिधिशायी (सं.) [सं-पु.] विष्णु।

क्षीरसागर (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) सात समुद्रों में से एक समुद्र 2. (पुराण) दूध से भरा हुआ समुद्र जिसमें नारायण शेषशय्या पर सोते हैं; क्षीरनिधि।

क्षुण्ण (सं.) [वि.] 1. टुकड़े-टुकड़े या चूर्ण किया हुआ 2. कुचला या रौंदा हुआ 3. जिसका कोई अंग टूट या कट गया हो; खंडित 4. अभ्यस्त 5. अनुगत 6. पराजित।

क्षुद्र (सं.) [वि.] 1. नगण्य; महत्वहीन 2. दरिद्र।

क्षुद्रता (सं.) [सं-स्त्री.] तुच्छता; टुच्चापन।

क्षुद्रबुद्धि (सं.) [वि.] 1. दुष्ट या नीच बुद्धि वाला 2. नासमझ; मूर्ख।

क्षुद्राशय (सं.) [वि.] तुच्छ प्रकृति वाला; नीच; कमीना; क्षुद्र।

क्षुधा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. भूख 2. लालसा 3. आवश्यकता 4. महत्वाकांक्षा।

क्षुधानाश (सं.) [सं-पु.] अमाशय में सूजन होने या उसकी पेशियों के दुर्बल होने आदि के कारण भूख न लगने संबंधी रोग।

क्षुधार्त्त (सं.) [वि.] क्षुधा या भूख से बेचैन; अत्यधिक भूखा।

क्षुधित (सं.) [वि.] जिसे भूख लगी हो; बुभुक्षित; भूखा।

क्षुप (सं.) [सं-पु.] 1. छोटी तथा घनी डालियों वाला पौधा; झाड़ी 2. (पुराण) सत्यभामा के गर्भ से उत्पन्न कृष्ण का पुत्र 3. राजा इक्ष्वाकु के पिता।

क्षुब्ध (सं.) [वि.] 1. क्रुद्ध 2. चिंतित 3. भयभीत।

क्षुब्धता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. क्रोध 2. खिन्नता।

क्षुभित (सं.) [वि.] 1. अशांत 2. डरा हुआ; भयभीत 3. क्रुद्ध।

क्षुर (सं.) [सं-पु.] 1. छुरा; उस्तरा 2. वह बाण जिसकी गाँसी की धार छुरे के सदृश होती है 3. गोखरू 4. पशुओं के पाँव का खुर 5. शय्या का पाया; चारपाई का गोड़ा।

क्षेत्र (सं.) [सं-पु.] 1. स्थान 2. भूखंड 3. इलाक़ा; (एरिया) 4. प्रभाग 5. कार्यक्षेत्र 6. थल 7. नगर खंड 8. खेत 9. प्रदेश 10. कार्य के लिए संभावना अवकाश 11. रेखाओं से घिरा स्थान 12. मैदान; भूमि।

क्षेत्रगणित (सं.) [सं-पु.] गणित की वह शाखा जिसमें क्षेत्रों के नापने और उनके क्षेत्रफल निकालने की विधि का वर्णन रहता है।

क्षेत्रज (सं.) [वि.] खेत से उत्पन्न होने वाला।

क्षेत्रपति (सं.) [सं-पु.] खेत का मालिक; स्वामी; खेतिहर; काश्तकार।

क्षेत्रपाल (सं.) [सं-पु.] 1. खेत की रक्षा करने वाला व्यक्ति 2. पश्चिम दिशा के भैरव द्वारपाल 3. किसी स्थान का प्रबंधकर्ता; व्यवस्थापक।

क्षेत्रफल (सं.) [सं-पु.] 1. किसी क्षेत्र या आकृति के पृष्ठीय विस्तार की माप 2. किसी क्षेत्र की लंबाई और चौड़ाई को गुणन करने से निकलने वाला वर्गात्मक परिमाण; रकबा; (एरिया)।

क्षेत्रमिति (सं.) [सं-स्त्री.] गणित की वह शाखा जिसमें रेखाओं की लंबाई, धरातल का क्षेत्रफल तथा ठोस पदार्थों का घनफल ज्ञात करने की विधि का विवेचन किया जाता है।

क्षेत्ररक्षण (सं.) [सं-पु.] क्रिकेट के खेल में गेंद को पकड़ने तथा वापस भेजने का कार्य; (फ़ील्डिंग)।

क्षेत्रसंन्यास (सं.) [सं-पु.] संन्यास का एक प्रकार जिसमें किसी क्षेत्र विशेष के बाहर न जाने की प्रतिज्ञा की जाती है।

क्षेत्राधिकार (सं.) [सं-पु.] 1. अधिकार-क्षेत्र 2. न्यायाधीश का किसी विशेष क्षेत्र के विशेष प्रकार के मुकदमें सुनने का अधिकार; (जूरिस्डिक्शन)।

क्षेत्राधिप (सं.) [सं-पु.] 1. खेत का स्वामी 2. ज्योतिष में किसी राशि का देवता या स्वामी; भावेश।

क्षेत्रिक (सं.) [सं-पु.] खेत वाला कृषक; किसान। [वि.] क्षेत्र या खेत संबंधी।

क्षेत्री (सं.) [सं-पु.] 1. खेत का स्वामी; किसान 2. पति; स्वामी 3. परमात्मा 4. जीवात्मा।

क्षेत्रीय (सं.) [वि.] 1. जगह विशेष का 2. क्षेत्रस्तरीय; जनपदीय 3. सीमित स्थान के भीतर का।

क्षेत्रीयता (सं.) [सं-स्त्री.] किसी क्षेत्र-विशेष का गुण अथवा गुणों का समाहार।

क्षेप (सं.) [सं-पु.] 1. फेंकने की क्रिया; फेंकना 2. पीछे करना या बिताना 3. आघात 4. विलंब; देर 5. अतिक्रमण 6. निंदा 7. अपमान।

क्षेपक (सं.) [वि.] 1. ऊपर या नीचे से मिलाया हुआ अंश; मिश्रित 2. फेंकने वाला; प्रक्षेप्ता 3. मूलकथा का प्रक्षिप्त अंश 4. नाविक।

क्षेपण (सं.) [सं-पु.] 1. कोई चीज़ फेंकने की क्रिया या भाव; फेंकना 2. गिराना 3. बिताना; काटना; गुज़ारना 4. निंदा 5. फेंकने की वस्तु; फेंकने का साधन 6. विस्मृत करना; भूलना।

क्षेपास्त्र (सं.) [सं-पु.] फेंककर प्रहार करने वाला अस्त्र; प्रक्षेपास्त्र।

क्षेम (सं.) [सं-पु.] 1. कुशल-मंगल 2. सुख; चैन 3. ख़ैरियत।

क्षैतिज (सं.) [वि.] 1. जो क्षितिज के समान अंतर पर हो; आड़ा; अनुप्रस्थ 2. क्षितिज संबंधी; क्षितिज का।

क्षोणी (सं.) [सं-स्त्री.] पृथ्वी; धरती।

क्षोभ (सं.) [सं-पु.] 1. शांति, स्थिरता आदि में पड़ने वाली बाधा 2. पछतावा; पश्चाताप 3. हलचल; खलबली 4. व्याकुलता।

क्षोभपूर्ण (सं.) [वि.] क्षोभयुक्त; क्षोभ से भरा हुआ।

क्षोभी (सं.) [वि.] उद्वेगशील; व्याकुल; चंचल।

क्षौम (सं.) [सं-पु.] 1. अलसी या सन आदि के रेशों से बुना हुआ कपड़ा 2. अलसी 3. रेशमी या ऊनी वस्त्र 4. घर या अटारी के ऊपर का कमरा। [वि.] अलसी आदि से बना हुआ।

क्षौर (सं.) [सं-पु.] उस्तरे से बाल मूँड़ने का कार्य; हजामत।


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