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वर्धा हिंदी शब्दकोश

संपादन - राम प्रकाश सक्सेना


हिंदी वर्णमाला का व्यंजन वर्ण। उच्चारण की दृष्टि से यह अग्रतालव्य, अघोष, अल्पप्राण स्पर्शसंघर्षी है।

चँग (सं.) [वि.] 1. प्रवीण; दक्ष; कुशल 2. तंदुरुस्त; स्वस्थ 3. सुंदर।

चँगेर (सं.) [सं-स्त्री.] 1. बाँस की बनी डलिया जिसमें फूल, फल, मिठाई आदि रखते हैं 2. मशक; पखाल 3. पालने की तरह का वह झूला जो टोकरी और रस्सी से बनाया जाता है।

चँगेरी (सं.) [सं-स्त्री.] चँगेर।

चँदराना [क्रि-अ.] जान-बूझकर अनजान बनना। [क्रि-स.] 1. धोखे में डालना; चकमा देना; बहकाना 2. किसी को झूठा बनाना; झुठलाना।

चँदला [वि.] जिसके सर के बाल झड़ गए हों; गंजा; खल्वाट।

चँदवा (सं.) [सं-पु.] 1. देवमूर्तियों, राजगद्दी, या विशेष व्यक्तियों के आसन के ऊपर ताना जाने वाला छोटा-सा मंडप या शामियाना; वितान 2. छत्र, छतरी, तंबू आदि के ऊपरी सिरे पर लगाई जाने वाली कपड़े की गोल चकती 3. मोर पंख की अर्धचंद्र की आकृति या चंद्रिका 4. एक प्रकार की मछली; चाँदा।

चँदोवा (सं.) [सं-पु.] दे. चँदवा।

चँपना (सं.) [क्रि-अ.] 1. चाप अर्थात दबाव पड़ने से नमित होना; झुकना; दबना 2. किसी के अनुग्रह या उपकार के कारण उसके आगे दबना।

चँवर (सं.) [सं-पु.] 1. घोड़े आदि के सिर पर लगाई जाने वाली कलगी 2. चमरी गाय की पूँछ के बालों का गुच्छा जो डंडी में बाँधकर राजाओं या देवमूर्तियों से मक्खियों आदि को दूर रखने के लिए हिलाया-डुलाया जाता है।

चंक्रमण (सं.) [सं-पु.] (बौद्ध) 1. धीरे-धीरे टहलना; घूमना; सैर करना 2. बहुत अधिक घूमना 3. घूमने, चलने या सैर करने का स्थान।

चंग1 (सं.) [वि.] 1. कुशल; दक्ष; निपुण 2. स्वस्थ; तंदुरुस्त 3. सुंदर। [सं-स्त्री.] पतंग। [मु.] -पर चढ़ना : जोश में आ जाना। -पर चढ़ाना : किसी को जोश में लाना, उकसाना।

चंग2 (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. डफ़ की तरह का एक बाजा 2. सितार का एक सुर।

चंगा [वि.] 1. निरोग; स्वस्थ; तंदुरुस्त 2. निर्विकार; पवित्र 3. अच्छा; निर्मल 4. जिसपर कोई आघात न लगा हो; अनाहत।

चंगुल [सं-पु.] 1. पकड़; गिरफ़्त 2. शिकंजा; काबू 3. शिकारी चिड़ियों का पंजा जिससे वे शिकार को पकड़ पाती हैं 4. हाथ की उँगलियों को मोड़कर शिकारी जीवों के पंजे की तरह बनाई गई आकृति 5. {ला-अ.} किसी व्यक्ति, मत या विचारधारा के प्रभाव में होने की वह अवस्था जिससे निकलना आसान न हो। [मु.] -में फँसना : मज़बूरीवश किसी के वश में आना।

चंचरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. भ्रमरी; भौंरी 2. होली पर गाया जाने वाला चाँचरि नामक गीत 3. (काव्यशास्त्र) छियालिस मात्राओं वाला एक प्रकार का छंद 4. (काव्यशास्त्र) एक वर्णवृत्त।

चंचरीक (सं.) [सं-पु.] भौंरा; भ्रमर।

चंचल (सं.) [वि.] 1. जो चलायमान या गतिशील हो; चपल; जिसमें स्थायित्व न हो 2. जो किसी एक स्थिति या एक स्थान पर न रहता हो; जो स्थिर न हो, जैसे- चंचल पवन; चंचल नयन 3. नटखट; शरारती; खिलंदड़ा 4. जो शांत न हो; विकल; अधीर 5. अंगभीर। [सं-पु.] 1. पवन; हवा 2. कामी या कामुक व्यक्ति।

चंचलता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चपल होने का भाव; चपलता; अस्थिरता 2. शरारत; नटखटपन; खिलंदड़पन 3. अगंभीरता।

चंचला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. लक्ष्मी 2. बादलों में चमकने वाली बिजली; मेघविद्युत 3. (काव्यशास्त्र) एक प्रकार का छंद या वर्णवृत्त 4. अपने हाव-भाव से आकर्षित करने वाली स्त्री।

चंचु (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चोंच 2. किसी वस्तु के आगे की नोक 3. बरसात में होने वाली एक वनस्पति; चेंच। [सं-पु.] 1. एरंड का पेड़ 2. हिरन। [वि.] 1. चतुर 2. प्रसिद्ध।

चंचु-प्रवेश (सं.) [सं-पु.] 1. किसी विषय का बहुत थोड़ा ज्ञान; अल्पज्ञान 2. किसी विषय का आरंभिक ज्ञान 3. किसी ज्ञान-क्षेत्र में प्रवेश; संपर्क।

चंट [वि.] चालाक; चतुर; धूर्त।

चंड (सं.) [वि.] 1. उग्र; तीव्र; तीक्ष्ण; प्रखर 2. गरम; उष्ण 3. हानिकर 4. जिसका दमन करना कठिन हो; प्रबल; दुर्दमनीय 5. कलहप्रिय; उत्तेजित। [सं-पु.] 1. (पुराण) एक दानव जो दुर्गा के हाथों मारा गया 2. कार्तिकेय।

चंडकर (सं.) [सं-पु.] सूर्य। [वि.] तेज़ किरणोंवाला।

चंडविक्रम (सं.) [वि.] 1. वीर; प्रतापी 2. प्रचंड शक्ति या पराक्रमवाला।

चंडा (सं.) [वि.] जिसका स्वभाव उग्र हो (स्त्री); क्रोधी (स्त्री); विद्रोहिणी। [सं-स्त्री.] 1. दुर्गा नामक देवी 2. सौंफ 3. सफ़ेद दूब।

चंडांशु (सं.) [सं-पु.] वह ग्रह जिसकी किरणें प्रचंड हों; सूर्य।

चंडाल (सं.) [सं-पु.] 1. मध्यकाल में अंत्यज मानी जाने वाली एक जाति या उसका सदस्य; चांडाल 2. {ला-अ.} क्रूरतापूर्ण कार्य करने वाला व्यक्ति; आपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति 3. एक प्रकार की गाली।

चंडालचौकड़ी [सं-स्त्री.] 1. उद्दंड या शरारती लड़कों का समूह जो आपस में दोस्त हों 2. मित्र-मंडली।

चंडालिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (पुराण) दुर्गा के एक उग्र रूप का नाम; चंडकाली; काली 2. प्राचीन काल की एक प्रकार की वीणा 3. एक प्रकार का वृक्ष जिसकी पत्तियाँ दवा के काम आती हैं।

चंडावल (सं.) [सं-पु.] 1. सेना के पीछे का भाग; पीछे चलने वाले सिपाही 2. वीर योद्धा; महान योद्धा 3. संतरी।

चंडिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. दुर्गा का एक रूप 2. गायत्री (देवी)। [वि.] {ला-अ.} उग्र स्वभाववाली; दुष्टा; लड़ने-झगड़ने वाली।

चंडी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. दुर्गा; काली 2. {ला-अ.} बहुत ही उग्र स्वभाव वाली स्त्री।

चंडीकुसुम (सं.) [सं-पु.] कनेर के झाड़ की वह प्रजाति जिसमें लाल रंग के फूल लगते हैं; लाल कनेर।

चंडीपति (सं.) [सं-पु.] चंडी के पति अर्थात शिव; चंडीश।

चंडीश (सं.) [सं-पु.] चंडी के स्वामी अर्थात शिव; चंडीपति।

चंडू (सं.) [सं-पु.] अफ़ीम का एक रूप जिसे तंबाकू की तरह पिया जाता है।

चंडूख़ाना (सं.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. चंडू पीने का स्थान 2. नशेड़ियों का अड्डा 3. {ला-अ.} वह स्थान जहाँ मूर्ख बैठते हों। [मु.] चंडूख़ाने की गप : निराधार ख़बर; अफ़वाह।

चंडूबाज़ (सं.+फ़ा.) [सं-पु.] वह व्यक्ति जो हमेशा चंडू पीता हो; जिसे चंडू पीने की लत लगी हो।

चंडूल [सं-पु.] 1. बहुत बेवकूफ़ या मूर्ख आदमी; दिमाग चाटने वाला व्यक्ति 2. मीठे स्वर में बोलने वाली ख़ाकी रंग की एक चिड़िया।

चंद1 (सं.) [सं-पु.] 1. चंद्रमा 2. कपूर।

चंद2 (फ़ा.) [वि.] थोड़े-से; कुछ; अपर्याप्त; दो-चार।

चंदक (सं.) [सं-पु.] 1. चंद्रमा 2. ज्योत्स्ना; चाँदनी 3. चाँदा नामक छोटी मछली 4. सिर पर पहना जाने वाला एक अर्द्धचंद्राकार गहना; चंद्रक।

चंदन (सं.) [सं-पु.] 1. एक वृक्ष जिसकी लकड़ी से घिसने पर सुगंध आती है; गंधसार; मलय 2. चंदन को घिस कर बनाया गया लेप या चूर्ण।

चंदनगोह (सं.) [सं-स्त्री.] गोह नामक सरीसृप की एक प्रजाति जो चट्टानों और दीवार आदि से बहुत कसकर चिपक जाती है।

चंदनसार (सं.) [सं-पु.] 1. पानी के साथ घिसकर तैयार किया हुआ चंदन 2. नौसादर (एक प्रकार का रासायनिक यौगिक); वज्रक्षार।

चंदनी (सं.) [वि.] 1. चंदन का; चंदन संबंधी 2. चंदन की लकड़ी का रंग।

चंदरोज़ा (फ़ा.) [वि.] जो कम समय के लिए हो; अल्पजीवी; कुछ ही दिनों तक का।

चंदा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. किसी की सहायतार्थ या किसी अच्छे काम के लिए इकट्ठी की गई रकम या कोई वस्तु; दान; भेंट 2. अवधि विशेष तक के लिए किसी पत्र-पत्रिका का ग्राहक बनने के लिए दी जाने वाली सदस्यता राशि; (सब्सक्रिप्शन) 3. लोगों से उगाही करके इकट्ठा किया गया रुपया 4. किसी विशेष उद्देश्य के लिए एकत्रित की जाने वाली रकम में अंशदान; अंशदेय; योगदान 5. चाँद।

चंदामामा [सं-पु.] 1. लोककथाओं तथा बालगीतों में चाँद के लिए प्रयोग किया जाने वाला एक संबोधन 2. परिवार में या बाल कहानियों में बच्चों को बहलाने-रिझाने के लिए चाँद को मामा के रूप में चित्रित किया जाता है।

चंदावत [सं-पु.] 1. एक कुलनाम या सरनेम 2. क्षत्रियों की एक जाति।

चंदेल [सं-पु.] 1. एक कुलनाम या सरनेम 2. क्षत्रियों की एक जाति।

चंद्र (सं.) [सं-पु.] 1. चंद्रमा 2. चंद्रमा की आकृति वाले चिह्न, जैसे- अनुनासिक चिह्न (ँ)। [वि.] {ला-अ.} सुंदर; उज्ज्वल।

चंद्रक (सं.) [सं-पु.] 1. चंद्रमा 2. चाँदनी; चंद्रिका 3. कपूर 4. नाखू़न 5. चंद्रमा की आकृति वाले चिह्न, जैसे- चंद्रबिंदु में बिंदु के नीचे का चंद्रक और मोरपंख पर बनी चंद्राकार आकृतियाँ।

चंद्रकला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चंद्रमा की सोलह कलाएँ या भाग जिनके नाम इस प्रकार हैं- अंगिरा, अंशुमालिनी, अमृता, तुष्टि, धृति, मरीचि, पूषा, प्राप्ति, यशा, रति, शशिनी, छाया, संपूर्णमंडला, सुमनसा, सौम्या और ऋद्धि 2. चंद्रमा की किरण 3. शरीर पर नाख़ूनों से बने चिह्न 4. एक आभूषण जो माथे पर पहना जाता है।

चंद्रकांत (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार की कल्पित मणि जो चाँदनी के स्पर्श से पसीज जाती है 2. कुमुद; कुमुदिनी 3. चंदन।

चंद्रकांता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. रजनी; यामिनी 2. (पुराण) चंद्रमा की पत्नी 3. एक वर्णवृत्त या छंद 4. (रामायण) लक्ष्मण के पुत्र चंद्रकेतु की राजधानी।

चंद्रगुप्त (सं.) [सं-पु.] 1. मौर्यवंश का संस्थापक; मगध राज्य का प्रथम मौर्यवंशी शासक 2. प्राचीन काल में गुप्तवंश का प्रतापी राजा जिसने विक्रमादित्य की उपाधि ग्रहण की थी।

चंद्रग्रहण (सं.) [सं-पु.] वह खगोलीय स्थिति जिसमें सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी के आ जाने से उसकी छाया पड़ने के कारण चंद्रमा दिखाई नहीं देता है।

चंद्रचूड़ (सं.) [सं-पु.] जिन्होंने चूड़ा अर्थात मस्तक पर चंद्रमा को धारण कर रखा है; शिव।

चंद्रधनु (सं.) [सं-पु.] चाँदनी में दिखाई देने वाला इंद्रधनुषी आभा वाला वृत्त जो चंद्रमा को घेरे रहता है।

चंद्रधर (सं.) [सं-पु.] चंद्रमा को धारण करने वाला अर्थात शिव; महादेव।

चंद्रप्रभ (सं.) [वि.] चाँद की-सी प्रभा या चमकवाला। [सं-पु.] जैनों के आठवें तीर्थंकर।

चंद्रप्रभा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चाँदनी 2. सुंदर स्त्री 3. औषधीय पौधे बकुची और कचूर।

चंद्रबाण (सं.) [सं-पु.] प्राचीन समय का एक प्रकार का बाण जिसके सिरे पर चंद्रमा की आकृति का लोहा लगा रहता था।

चंद्रबिंदु (सं.) [सं-पु.] स्वर के अनुनासिक होने का चिह्न जिसमें नीचे चंद्रक और उसके ऊपर एक बिंदु होता है, जैसे- (ँ)।

चंद्रबिंब (सं.) [सं-पु.] 1. चंद्रमा का प्रकाशमय वर्तुलाकार रूप 2. दोपहर के पहले गाया जाने वाला एक राग।

चंद्रभागा (सं.) [सं-स्त्री.] चनाब नदी का पुराना नाम।

चंद्रभाल (सं.) [वि.] जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो। [सं-पु.] (पुराण) के अनुसार शिव; महादेव।

चंद्रमंडल (सं.) [सं-पु.] 1. चंद्रमा का पूरा बिंब 2. चंद्रमा के चारों ओर कभी-कभी दिखाई देने वाली गोल परिधि।

चंद्रमा (सं.) [सं-पु.] 1. सौरमंडल में पृथ्वी का उपग्रह जिसका व्यास 3,476 किलोमीटर एवं पृथ्वी से औसत दूरी 384,403 किलोमीटर है; चाँद; मयंक; महताब; राकेश; शशि 2. शीतलता देने वाला कपूर नामक पदार्थ।

चंद्रमुखी (सं.) [वि.] चंद्रमा के समान मुखवाली; परम रूपवती। [सं-स्त्री.] 1. चंद्रमा के समान सुंदर मुखवाली स्त्री; विधुवदनी 2. रूपवती स्त्री।

चंद्रमौलि (सं.) [सं-पु.] शिव; महादेव।

चंद्रयान (सं.) [सं-पु.] चंद्रमा पर भेजा जाने वाला अंतरिक्ष यान; वह यान जो शोध आदि के लिए मनुष्यों को चंद्रमा तक ले जाता है।

चंद्रलेखा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चंद्रकला; चंद्रकिरण 2. (पुराण) एक अप्सरा 3. (काव्यशास्त्र) एक वर्णवृत्त या छंद।

चंद्रलोक (सं.) [सं-पु.] 1. चाँद की दुनिया 2. चंद्रमा का वातावरण।

चंद्रवंश (सं.) [सं-पु.] क्षत्रियों का एक प्राचीन वंश जिसके आदि पुरुष पुरूरवा थे।

चंद्रवदन (सं.) [वि.] चंद्रमा जैसे सुंदर वदन अर्थात मुख वाला; उज्ज्वल; धवल; मोहक।

चंद्रवार (सं.) [सं-पु.] सोमवार।

चंद्रशेखर (सं.) [सं-पु.] शिव।

चंद्रसुत (सं.) [सं-पु.] चंद्रमा का पुत्र बुध।

चंद्रहार (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का काफ़ी भारी कंठहार जिसमें अनेक लड़ियाँ होती हैं; चंदनहार 2. एक प्रकार की आतिशबाज़ी।

चंद्रहास (सं.) [सं-पु.] 1. चंद्रमा की उज्ज्वल आभा 2. चमकती हुई तलवार या खड्ग 3. (रामायण) रावण की खड्ग का नाम।

चंद्रा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चँदोवा 2. खुला दालान 3. छोटी इलायची 4. मरने के समय के कुछ पहले की अवस्था जब टकटकी बँध जाती है।

चंद्रातप (सं.) [सं-पु.] 1. चाँदनी; चंद्रिका; कौमुदी 2. चँदोवा; वितान।

चंद्रिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चाँदनी; चंद्रमा का प्रकाश; कौमुदी 2. सफ़ेद भटकटैया नामक एक जंगली औषधीय पौधा 3. स्त्रियों के मस्तक पर पहनने का एक आभूषण; टीका।

चंद्रिकोत्सव (सं.) [सं-पु.] शरद पूर्णिमा को होने वाला एक प्राचीन पर्व जिसका उल्लेख संस्कृत साहित्य में भी मिलता है; शरदोत्सव।

चंद्रोदय (सं.) [सं-पु.] 1. चंद्रमा के उदय होने की अवस्था; चंद्रमा के उदय होने का समय 2. एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि।

चंपई [वि.] चंपा के फूल के रंग का। [सं-पु.] हलका पीलापन लिए उज्ज्वल वर्ण जिससे सुंदरी नायिका के गौर वर्ण की उपमा दी जाती है।

चंपक (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रसिद्ध सुगंधित फूल का वृक्ष; चंपा 2. इस वृक्ष के फूल 3. रात्रि के दूसरे पहर में गाया जाने वाला एक राग।

चंपत [वि.] 1. अनुपस्थित; गैरहाज़िर; नदारद 2. भागा हुआ; गायब; फ़रार। [मु.] -करना : कोई सामान चुराना या गायब करना; - होना : बिना कहे-सुने नदारद हो जाना।

चंपा (सं.) [सं-पु.] 1. हलका पीलापन लिए मक्खन के-से रंग का फूल जो अपनी तीव्र सुगंध के लिए प्रसिद्ध है 2. उक्त फूल का वृक्ष 3. एक प्रकार का केला जिसका छिलका एकदम पीला होता है 4. घोड़े की एक जाति 5. रेशम के कीड़े की एक प्रजाति।

चंपाकली (सं.) [सं-स्त्री.] गले में पहनने का एक गहना जिसमें सोने से चंपा की कलियों जैसी आकृति के खंड बनाकर रेशमी धागे में पिरो दिए जाते हैं।

चंपारण्य (सं.) [सं-पु.] वर्तमान बिहार राज्य में स्थित चंपारन का पुराना नाम।

चंपी [सं-स्त्री.] सिर या किसी अंग की मालिश; अंग को मालिश करते हुए दबाना।

चंपू (सं.) [सं-पु.] (काव्यशास्त्र) गद्य-पद्य मिश्रित काव्य; ऐसा नाटक या काव्य जिसका कुछ अंश गद्य में हो और कुछ अंश पद्य में।

चंबल1 [सं-स्त्री.] 1. एक नदी जो भारत में विंध्याचल से निकलकर इटावा के पास यमुना नदी में मिलती है 2. पानी की बाढ़।

चंबल2 (फ़ा.) [सं-पु.] 1. भीख माँगने का प्याला 2. चिलम के ऊपर का ढक्कन।

चंबी [सं-स्त्री.] कपड़े की छपाई में जिन जगहों पर रंग न चढ़ाना हो, उन्हें बचाने के लिए उपयोग किया जाने वाला कागज़ या मोमजामा; पट्टी।

चक1 (सं.) [सं-पु.] 1. चकवा; चक्रवाक पक्षी 2. पहिया; चक्र 3. चाक जिसपर मिट्टी के बरतन बनते हैं 4. चकई या चकरी नामक खिलौना 5. लकड़ी का एक उपकरण जो करघे में लगता है 6. गोल और उभार वाला एक गहना।

चक2 (फ़ा.) 1. ज़मीन का बड़ा खंड 2. पुरवा; छोटा गाँव 3. आदेशपत्र 4. दस्तावेज़; लेख्य 5. सीमा; हद।

चकई [सं-स्त्री.] 1. मादा चकवा; चकवी 2. लकड़ी का एक चक्राकार खिलौना जिसमें मोटी डोरी लगी होती है जिससे वह ऊपर-नीचे चढ़ता-उतरता है; चकरी; फिरकी; (यो-यो)।

चकडोर [सं-पु.] 1. लट्टू घुमाने और चकई आदि नचाने की डोरी 2. जुलाहों के करघे की एक ख़ास डोरी।

चकडोरी [सं-स्त्री.] वह डोरी जिससे चकई ऊपर-नीचे आती-जाती है; चकई की डोरी।

चकती (सं.) [सं-स्त्री.] कपड़े, चमड़े आदि का बना गोल या चौकोर टुकड़ा जो वैसी ही किसी दूसरी चीज़ के कटे-फटे स्थान पर लगाया जाता है; चँदिया; पैबंद; थिगली।

चकत्ता (सं.) [सं-पु.] 1. शरीर या त्वचा पर पड़ा गोल दाग या निशान; किसी रोग के कारण कुछ हिस्सों में त्वचा का लाल होकर उभर आना; ददोरा; पित्ती 2. दाँत से काटने का निशान।

चकनाचूर [वि.] 1. जो टूट-टूट कर चूर हो गया हो; चूर्णित; चूर-चूर 2. {ला-अ.} बहुत अधिक थका हुआ; पस्त और शिथिल।

चकपकाना [क्रि-अ.] 1. चकित होना; चौंकना; बहुत अधिक विस्मित होना 2. भय या शंका से परेशान होना।

चकफेरी [सं-स्त्री.] किसी चीज़ के चारों ओर गोल चक्कर में घूमने की क्रिया; परिक्रमा; भँवरी।

चकबंदी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. बहुत बड़े चक या भूमि खंड को छोटे-छोटे भागों में बाँटने की क्रिया 2. छोटे-छोटे भूमि खंडों को मिलाकर उनके बड़े विभाग या चक बनाने की क्रिया; चकतराशी 3. क्षेत्रांकन; सीमांकन; पुनर्सीमांकन; मेंड़बंदी।

चकबस्त (फ़ा.) [वि.] वह भूमि जिसका चकों में विभाजन हो चुका हो। [सं-पु.] कश्मीरी ब्राह्मणों का एक वर्ग।

चकमक (तु.) [सं-पु.] एक प्रकार का चमकीला कड़ा पत्थर जिसपर चोट पड़ने से चिनगारी निकलती है, आदिम युग में इसी पत्थर से आग जलाई जाती थी; अग्निप्रस्तर।

चकमा (सं.) [सं-पु.] 1. किसी का ध्यान बँटाकर दिया जाने वाला धोखा; भुलावा; छल 2. बच्चों का एक प्रकार का खेल। [मु.] -देना : धोखा देना; छल करना। -खाना : धोखे में आ जाना; छला जाना।

चकमेबाज़ (सं.+फ़ा.) [वि.] धोखा या छल करने वाला; चकमा देने वाला; कपटी; छली; ठग; बेईमान।

चकराना (सं.) [क्रि-अ.] 1. हैरान या चकित होना; सकपकाना 2. सिर का चक्कर खाना; सिर घूमना। [क्रि-स.] 1. चकित या स्तंभित करना 2. चक्कर देना; भरमाना 3. करतब दिखाकर अभिभूत करना; चमत्कृत करना।

चकरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटी चक्की 2. बच्चों के खेलने का चकई नामक खिलौना।

चकला1 [सं-पु.] 1. रोटी बेलने के लिए लकड़ी या पत्थर का पाट या चौकी 2. वह समतल भूखंड जो दूर तक फैला हो और जिसमें कई गाँव हों। [वि.] चौड़ा।

चकला2 (तु.) [सं-पु.] वेश्याओं का मुहल्ला या बस्ती; वेश्यालय।

चकलेदार (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] वह अधिकारी जो चकले अर्थात विस्तृत भू-भाग की मालगुज़ारी आदि वसूल करता है; किसी भू-खंड या चकले का कर संग्रह करने वाला व्यक्ति।

चकल्लस [सं-स्त्री.] 1. मित्रों के बीच परस्पर की जाने वाली चुहलबाज़ी; छेड़छाड़; हँसी-मज़ाक; ठिठोली 2. झगड़ा-बखेड़ा; टंटा; झंझट।

चकवँड़ (सं.) [सं-पु.] 1. बरसात के मौसम में पनपने वाला एक प्रकार का जंगली पौधा, जिसका उपयोग दवा के लिए भी किया जाता है; चक्रमर्द 2. कुम्हारों का पात्र जो बरतन बनाते समय हाथ तथा मिट्टी को गीला रखने के लिए पानी भरकर चाक के पास रखा जाता है।

चकवा (सं.) [सं-पु.] काव्य में प्रेम के प्रतिमान के रूप में प्रसिद्ध एक जलपक्षी; चक्रवाक; सुरख़ाब।

चकाचक [वि.] 1. साफ़-सुथरा; व्यवस्थित 2. ठीक; अच्छा।

चकाचौंध (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ऐसी तेज़ रोशनी या चौंध जिसमें आँखें झपकने या चौंधियाने लगें; कौंध; चमक 2. आँख का तेज़ी से झपकना 3. जगमगाहट 4. {ला-अ.} किसी बात से होने वाली हैरानी।

चकित (सं.) [वि.] 1. विस्मित; अचंभित; आश्चर्यचकित; भौंचक; हैरान 2. उद्भ्रांत; भ्रमित; विमूढ़ 3. स्तंभित; स्तब्ध 4. मुग्ध; मोहित चमत्कृत।

चकोट [सं-पु.] 1. हाथ के अँगूठे और एक अँगुली के सिरों के बीच किसी की चमड़ी को दबाकर कुचलने या चकोटने की क्रिया; चिकोटी 2. चकोटने से होने वाला घाव 3. गाड़ी के पहिए से ज़मीन पर पड़ने वाली लकीर।

चकोटना [क्रि-स.] 1. चुटकी से मांस खींचना 2. चिकोटी काटना।

चकोतरा (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का वृक्ष जिसपर नीबू की जाति के बड़े आकार और मोटे, हरे छिलके वाले खट्टे-मीठे फल लगते हैं 2. उक्त वृक्ष का फल; जँभीर।

चकोर (सं.) [सं-पु.] 1. तीतर जाति का एक पक्षी जिसे काव्य में चंद्रमा का प्रेमी माना गया है; बटेर; चकोरक 2. सवैया छंद का एक प्रकार।

चकोरी [सं-स्त्री.] 1. मादा चकोर 2. {ला-अ.} किसी के प्रेम में मग्न लड़की या स्त्री।

चक्क (सं.) [सं-पु.] कष्ट; पीड़ा; दर्द।

चक्कर (सं.) [सं-पु.] 1. किसी के चारों ओर मंडलाकार घूमना; परिक्रमा; आवृत्ति; फेरा 2. मंडल; घेरा 3. पहिए की तरह अक्ष पर घूमना 4. घुमावदार या गोलाकार मार्ग 5. लकड़ी या लोहे का पहिया या पहिए जैसी चीज़; कुम्हार का चाक; चक्र 6. किसी रोग आदि के कारण सिर में होने वाला घुमाव 7. हैरानी; परेशानी; झंझट; बखेड़ा 8. रहस्य; गड़बड़ 9. भँवर।

चक्करदार (सं.+फ़ा.) [वि.] 1. घुमावदार; चक्राकार; पेच या फेरवाला; (स्पाइरल) 2. {ला-अ.} फँसाने या उलझन में डालने वाला।

चक्का (सं.) [सं-पु.] 1. पहिया; चक्र 2. पहिए की आकृति की गोल वस्तु 3. जमा हुआ टुकड़ा; थक्का, जैसे- दही का चक्का 4. पत्थरों या ईंटों का क्रम से लगाया गया ढेर 5. कुम्हार का चाक।

चक्का जाम [सं-पु.] 1. किसी विरोध या प्रदर्शन के समय मार्ग पर यातायात बाधित होने की अवस्था 2. ऐसी हड़ताल जिसमें सड़क पर वाहनों का यातायात रोक दिया जाता है।

चक्की (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पत्थर के दो गोल पाटों को एक-दूसरे के ऊपर रखकर बनाया जाने वाला अनाज पीसने का यंत्र; जाँता; चाकी 2. अनाज या साबुत मसालों को पीसने की मशीन 3. घुटने की गोल हड्डी।

चक्खी [सं-स्त्री.] 1. चटपटी और नमकीन चीज़; चाट 2. चखने या किसी मादक पेय के साथ थोड़ा खाने के लिए कोई स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ; चिखौना।

चक्र (सं.) [सं-पु.] 1. घूमने वाली वस्तु; पहिया 2. वृत्ताकार पथ; परिधि 3. परिक्रमा; चक्कर 4. समय व समाज के संदर्भ में वह अवधि जिसमें कुछ घटित हो और भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति हो 5. (पुराण) एक प्राचीन अस्त्र या हथियार, जैसे- विष्णु का चक्र; सुदर्शनचक्र 6. गोल दायरा; गिरदा; वृत्त 7. नदी या समुद्र में उठने वाली भँवर 8. वीरतापरक कार्यों एवं अदम्य साहस के लिए सैनिकों को दिया जाने वाला पदक, जैसे- परमवीरचक्र, अशोकचक्र आदि 9. बंदूक द्वारा गोली चलाने का चरण; (राउंड) 10. (हठयोग) शरीर में विशिष्ट सात स्थान जिन्हें साधना के दौरान साधक की कुंडलिनी पार करती है- मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार 11. हथेलियों और पदतल की वृत्ताकार रेखाएँ 12. साज़िश; छल; षड्यंत्र 13. (ज्योतिष) मीन, मेष, तुला आदि बारह राशियों का समूह।

चक्रक (सं.) [वि.] जो चक्र या पहिए के आकार का हो; गोल; वृत्ताकार। [सं-पु.] 1. मध्यकाल में युद्ध का एक तरीका 2. साँप की एक जाति।

चक्रगति (सं.) [सं-स्त्री.] चक्राकार गति; गोल-गोल घूमना; केंद्र के चारों तरफ़ घूमने की अवस्था, जैसे- चक्र प्रति मिनट।

चक्रण (सं.) [सं-पु.] 1. चक्कर या किसी वृत्त में घूमना 2. घेरा; परिक्रमा।

चक्रधर (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) सुदर्शन चक्र धारण करने वाले विष्णु; कृष्ण 2. साँप। [वि.] चक्र धारण करने वाला; चक्रधारी।

चक्रनाभि (सं.) [सं-स्त्री.] चक्र या वृत्त का केंद्रबिंदु; मध्यबिंदु।

चक्रपाणि (सं.) [सं-पु.] वह जो हाथ में चक्र धारण करता हो; विष्णु।

चक्रपूजा (सं.) [सं-स्त्री.] तांत्रिकों द्वारा की जाने वाली एक प्रकार की पूजा।

चक्रवर्ती (सं.) [वि.] 1. जिसका राज्य चारों दिशाओं में फैला हुआ हो। [सं-पु.] 1. समुद्र पर्यंत पृथ्वी का स्वामी; सम्राट 2. किसी समूह या दल का अधिपति।

चक्रवाक (सं.) [सं-पु.] चकवा पक्षी; सारस।

चक्रवात (सं.) [सं-पु.] ऐसा तूफ़ान या आँधी जिसमें घुमावदार तेज़ हवा चलती है; बवंडर; (साइक्लोन)।

चक्रवाती (सं.) [वि.] 1. चक्रवात से उत्पन्न 2. चक्रवात से संबंधित 3. तूफ़ानी।

चक्रवृद्धि (सं.) [सं-स्त्री.] कर्ज़ का वह प्रकार जिसमें मूलधन के ब्याज पर भी ब्याज दिया या लिया जाता है; सूद-दर-सूद।

चक्रव्यूह (सं.) [सं-पु.] 1. प्राचीन काल में युद्धक्षेत्र में किसी रणनीति या योजना के तहत बनाई गई सेना की चक्करदार या कुंडलाकार स्थिति; सैनिक मोरचाबंदी 2. भूलभुलैया 3. {ला-अ.} किसी व्यक्ति को फँसाने या हानि पहुँचाने के लिए बिछाया गया जाल; साज़िश 4. {ला-अ.} घेराबंदी।

चक्रांक (सं.) [सं-पु.] वैष्णवों द्वारा शरीर के किसी अंग पर दगवाया गया विष्णु के सुदर्शन चक्र का निशान।

चक्राकार (सं.) [वि.] जो चक्र या पहिए की आकृति का हो; वृत्ताकार; मंडलाकार; चक्रिल।

चक्रायुध (सं.) [सं-पु.] (पुराण) विष्णु जिनका आयुध चक्र है।

चक्री (सं.) [सं-पु.] 1. वह जो चक्र धारण करे; विष्णु 2. कुम्हार 3. कुंडली मारकर बैठने वाला साँप 4. चकवा पक्षी 5. चक्रवर्ती राजा।

चक्रीय (सं.) [वि.] 1. चक्र संबंधी 2. चक्र के अनुसार; (साइक्लिक)।

चक्षु (सं.) [सं-पु.] 1. आँख; नेत्र; नयन 2. दृष्टि; नज़र।

चक्षुःश्रवा (सं.) [वि.] श्रवण शक्ति के अभाव में नेत्रों से सुनने या अनुभूति करने वाला। [सं-पु.] सर्प; साँप।

चक्षुगोचर (सं.) [वि.] जो आँखों से दिखाई देता हो; दृष्टिगोचर; दृश्यमान।

चख़चख़ (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. दो पक्षों में होने वाली तकरार; कलह 2. झगड़ा 3. दो व्यक्तियों में होने वाली कहा-सुनी।

चखना (सं.) [क्रि-स.] 1. स्वाद लेने के उद्देश्य से किसी चीज़ को थोड़ा-सा लेकर खाना; स्वाद लेना; ज़ायका लेना 2. आस्वादन करना; रसास्वादन करना 3. {ला-अ.} किसी चीज़ का अनुभव करना, जैसे- लड़ाई का मज़ा चखना।

चख़ाचख़ी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. बहुत अधिक लड़ाई-झगड़ा या तकरार 2. ज़ोरों की बहस 3. बहुत ज़्यादा वैर-विरोध या लाग-डाँट।

चखाना [क्रि-स.] स्वाद का परिचय देने के लिए खाद्य पदार्थ किसी को अल्प मात्रा में खिलाना; किसी को कुछ चखने के लिए प्रवृत्त करना।

चचा [सं-पु.] 1. चाचा; पिता का छोटा भाई 2. बड़ी आयु के किसी व्यक्ति के लिए आत्मीयता भरा संबोधन।

चचिया [वि.] संबंध में चाचा या चाची, जैसे- चचिया ससुर, चचिया सास अर्थात पति या पत्नी का चाचा या चाची।

चचींड़ा [सं-पु.] 1. एक प्रकार की लता 2. उक्त लता पर लगने वाला ककड़ी की तरह का फल जिसकी सब्ज़ी बनाई जाती है।

चचेरा [वि.] चाचा या चाची से संबंधित, जैसे- चचेरा भाई (चाचा का बेटा)।

चचोड़ना [क्रि-स.] कोई चीज़ दाँत से खींच-खींचकर या लगभग नोंचकर खाना; चिचोड़ना, जैसे- शेर अपने शिकार को चचोड़ रहा है।

चट [सं-स्त्री.] किसी कड़ी वस्तु के टूटने-चटकने से होने वाली ध्वनि। [वि.] चट्ट; खा-पीकर ख़तम कर दिया गया; चाट-पोंछकर साफ़ कर दिया गया। [मु.] -कर जाना : सब खा जाना; हड़पना। [क्रि.वि.] 1. चट की ध्वनि के साथ 2. झट से; शीघ्रता से; तुरंत।

चटक (सं.) [वि.] 1. चटकीला; चमकीला; भड़कीला 2. चटपटा; तीखा 3. खिलता हुआ; ख़ुशरंग; शोख़ 4. {ला-अ.} फुरतीला; तेज़। [क्रि.वि.] जल्दी से; तुरंत; चटपट। [सं-स्त्री.] 1. चंचलता; शोख़ी; फुरती 2. चमक; कांति; चमक-दमक।

चटकदार (हिं.+फ़ा.) [वि.] 1. चटकीला; तेज; शोख़ 2. जिसमें चमक-दमक हो; शोख़; ख़ुशरंग 3. {ला-अ.} फुरतीला।

चटकना [क्रि-अ.] 1. 'चट-चट' ध्वनि के साथ टूटना या फूटना; तड़कना 2. काँच आदि में दरार पड़ना 3. कपास आदि की बोरी का फटना 4. कलियों का खिलना 5. आपस में झगड़ा होना। [वि.] जल्दी टूटने या चटकने वाला।

चटक-मटक [सं-स्त्री.] 1. नाज़-नख़रा; ठसक 2. सज-धज।

चटकल [सं-स्त्री.] कच्चे पाट से पटसन या जूट और जूट की वस्तुएँ निर्मित करने वाला कारख़ाना।

चटकाना [क्रि-स.] 1. चट की ध्वनि उत्पन्न करना 2. उँगलियों को खींचते हुए चट की ध्वनि उत्पन्न करना 3. तोड़ना; दूर करना 4. {ला-अ.} चिढ़ाना। [मु.] जूतियाँ चटकाना : निरर्थक इधर-उधर घूमना; आवारागर्दी करना।

चटकीला [वि.] 1. जिसका रंग तेज़ या भड़कीला हो 2. कांतियुक्त; चमकीला; चटकदार 3. छबीला; शोख़; बढ़िया साज-सज्जावाला 4. सुंदर और आकर्षक।

चटख [वि.] चटकीला; शोख़।

चटखना [क्रि-अ.] दे. चटकना।

चटखारना [क्रि-अ.] चटखारे भरना; स्वादिष्ट और चटपटे व्यंजन चटखारे लेकर खाना।

चटखारा [सं-पु.] 1. स्वादिष्ट और चटपटी चीज़ खाते समय मुँह से निकलने वाली आवाज़ 2. चटपटी चीज़ों के स्वाद को याद करके उन्हें फिर से खाने की ललक 3. स्वाद का आनंद या लुत्फ़। [मु.] चटखारे भरना : स्वाद ले-लेकर खाना; होठ चाटना।

चटचटाना [क्रि-अ.] (लकड़ियों का) चट-चट की ध्वनि के साथ टूटना, फूटना, जलना।

चटनी [सं-स्त्री.] धनिए, पुदीने की पत्तियों या अन्य भी कई वस्तुओं में तरह-तरह के मसाले तथा स्वाद बढ़ाने वाली सामग्रियाँ मिलाकर तैयार किया गया खट्टा, चरपरा या खटमिट्ठा गाढ़ा घोल जो स्वादवर्धक के रूप में भोजन के साथ खाया जाता है।

चटपट [क्रि.वि.] 1. तुरंत; जल्दी; शीघ्र 2. कम समय में।

चटपटा [वि.] मज़ेदार; मिर्च-मसालेदार; चरपरा। [सं-पु.] चटपटी वस्तु, जैसे- कुछ चटपटा खाने का मन है।

चटपटी [वि.] चटपटा का स्त्रीलिंग रूप। [सं-स्त्री.] 1. उतावली; हड़बड़ी 2. घबड़ाहट; व्याकुलता; व्यग्रता; बेचैनी 3. शीघ्रता; जल्दी।

चटर्जी [सं-पु.] बंगाली ब्राह्मणों में एक कुलनाम या सरनेम; 'चट्टोपाध्याय' का अँग्रेज़ीकृत रूप।

चटशाला [सं-स्त्री.] पुराने समय में प्रचलित छोटे बच्चों की पाठशाला जहाँ वे गुरु से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करते थे।

चटाई [सं-स्त्री.] 1. घास, ताड़ के पत्तों अथवा बेंत आदि से तैयार बिछावन या आसन 2. प्लास्टिक के तारों से तैयार बिछावन या आसन।

चटाक [क्रि.वि.] 1. चट शब्द करते हुए 2. झट से; तत्क्षण; तुरंत।

चटाक-पटाक [क्रि.वि.] 1. झटपट; तुरंत 2. शीघ्र; तत्काल।

चटाचट [सं-स्त्री.] 1. वस्तुओं के टूटने-फूटने से निरंतर होने वाली आवाज़ 2. फुर्ती से; फटाफट; झटाझट। [क्रि.वि.] निरंतर; एक के बाद एक।

चटाना [क्रि-स.] 1. अपने हाथ से किसी के मुख तक चाटने की वस्तु पहुँचाना; चाटने की क्रिया कराना 2. तलवार आदि की धार रगड़कर तेज़ करना 3. {ला-अ.} घूस या रिश्वत देना

चटियल [वि.] ऐसा समतल मैदानी स्थान जहाँ पेड़-पौधे आदि बिल्कुल न हों; उजाड़।

चटुल (सं.) [वि.] 1. चपल; चंचल 2. सुंदर; कांतिवान; चमक-दमकवाला।

चटोरा [वि.] चटपटी चीज़ें पसंद करने वाला; जिसे स्वादिष्ट चीज़ें खाने की लत हो; जो चटपटा खाने की कामना करे; स्वादलोलुप; स्वादलोभी।

चटोरापन [सं-पु.] 1. स्वादलोलुपता; चटोरपन 2. भोजनप्रेम।

चट्ट [वि.] ऐसा खाद्य-पदार्थ जिसे अच्छी तरह चाट या खा लिया गया हो; चट; जो खा-पीकर ख़तम कर दिया गया हो (माल)।

चट्टा1 [सं-पु.] 1. ईंटों, बालू, मिट्टी आदि को गिनने या नापने के लिए लगाया गया व्यवस्थित ढेर 2. उजाड़ चटियल मैदान 3. शरीर पर किसी बीमारी के कारण पड़ने वाला चकत्ता; ददोरा।

चट्टा2 (सं.) [सं-पु.] 1. चेला; शिष्य 2. दास; सेवक।

चट्टान [सं-स्त्री.] 1. पत्थर का बहुत बड़ा और विशाल खंड; पाषाणशिला; शिलाखंड 2. {ला-अ.} चट्टान जैसी मज़बूत, स्थिर और दृढ़ वस्तु।

चट्टानी [वि.] 1. चट्टानों से भरा हुआ स्थान, जैसे- चट्टानी भूखंड 2. {ला-अ.} चट्टान जैसा; मज़बूत; अविचल; अडिग; अटूट, जैसे- चट्टानी इरादे।

चट्टा-बट्टा [सं-पु.] 1. शिशु के लिए काठ के खिलौनों का सेट जिसमें गोले, झुनझुने, चट्टू नामक खिलौने आदि सहित कई चीज़ें रहती हैं 2. बाज़ीगर की थैली से निकलने वाले गोले या गोटी; गोलियाँ। [मु.] एक ही थैली के चट्टे-बट्टे : एक जैसे या एक ही तरह के लोग; एक जैसी आदत के लोग।

चट्टी [सं-स्त्री.] 1. मुख्यतः पर्वतीय यात्रा में मिलने वाले पड़ाव; यात्रियों के ठहरने की जगह 2. एड़ी की तरफ़ का खुला जूता; चप्पल; (स्लीपर)।

चट्टू [वि.] चटोरा; मज़े लेकर खाने वाला। [सं-पु.] काठ का खिलौना जिसे दाँत निकलने के दिनों में छोटे बच्चे मुँह में डालकर चबाते और चूसते हैं।

चट्टोपाध्याय [सं-पु.] बंगाली ब्राह्मण समाज में एक कुलनाम या सरनेम जो अंग्रेज़ों द्वारा उच्चारण में कठिनाई के कारण संक्षिप्त रूप 'चटर्जी' दिया गया।

चड्डी [सं-स्त्री.] कच्छा; जाँघिया; (अंडरवियर)।

चड्ढी [सं-स्त्री.] 1. पीठ की सवारी 2. बच्चों का एक खेल जिसमें वे एक दूसरे की पीठ की सवारी करते हैं।

चढ़ता [वि.] 1. ऊपर उठता; उभरता; प्रबल होता, जैसे- चढ़ता सूरज 2. बढ़ता, जैसे- चढ़ती नदी या चढ़ती कीमतें।

चढ़ना (सं.) [क्रि-अ.] 1. चढ़ाई या ऊँचाई की तरफ़ जाना; नीचे से ऊपर जाना 2. ऊँचा होना 3. आरोहण करना; सवार होना, जैसे- घोड़े पर चढ़ना 4. ऊपर की ओर उठना 5. नदी आदि में पानी का तल ऊपर होना 6. तेज़ या महँगा होना; (भाव या दाम) बढ़ना 7. दल-बल के साथ कहीं धावा बोलना या पहुँचना; चढ़ाई करना 8. देवता आदि को भेंट देना, जैसे- इस मंदिर में हर साल करोड़ों रुपए चढ़ते हैं 9. {ला-अ.} तरक्की या प्रगति करना; बड़ा ओहदा पाना।

चढ़वाना [क्रि-स.] 1. चढ़ने या चढ़ाने का काम दूसरे से करवाना, जैसे- बेईमान व्यापारी अनाज दबाकर उसके दाम चढ़वा देते हैं 2. किसी को चढ़ने में प्रवृत्त करना।

चढ़ाई [सं-स्त्री.] 1. चढ़ने या ऊँचाई की तरफ़ जाने की क्रिया या भाव 2. ऊपर या ऊँचाई की ओर जाने वाली भूमि 3. आक्रमण; धावा 4. {ला-अ.} उत्थान।

चढ़ा-ऊपरी [सं-स्त्री.] 1. एक-दूसरे से आगे बढ़ने या निकलने का प्रयत्न करना; प्रतिस्पर्धा; होड़ 2. आर्थिक क्षेत्र में, कोई चीज़ ख़रीदने के समय उसके ख़रीददारों का एक दूसरे से बढ़-चढ़कर मूल्य देने को प्रस्तुत होना।

चढ़ाना [क्रि-स.] 1. नीचे से ऊपर की ओर ले जाना; ऊपर जाने को प्रेरित करना 2. प्रविष्ट कराना; घुसाना, जैसे- रोगी को ख़ून चढ़ाना 3. (देवता को) अर्पित करना; चढ़ावे के रूप में देना 4. (शराब) पीना 5. किसी के ऊपर कुछ भार रखना 6. (बही या रजिस्टर में) लिखना; दर्ज करना 7. (धनुष की प्रत्यंचा) खींचना; कसना; तानना 8. किसी वस्तु का मान या मूल्य आदि बढ़ाना; तेज़ करना; तीखा करना 9. {ला-अ.} झूठी प्रशंसा करके किसी के अहंकार को उकसाना।

चढ़ाव [सं-पु.] 1. नीचे से ऊपर की ओर जाती भूमि; 'उतार' का विलोम; चढ़ाई 2. चढ़ावा।

चढ़ावा [सं-पु.] 1. मंदिर या किसी अन्य पूजास्थल पर चढ़ाई जाने वाली सामग्री 2. विवाह के दिन वर पक्ष की ओर से वधू को दिए जाने वाले कपड़े-गहने आदि 3. बढ़ावा; उत्तेजन 4. चौराहे पर रख दी जाने वाली टोटके की सामग्री।

चणक (सं.) [सं-पु.] 1. चना; एक दलहन 2. गोत्र का प्रवर्तन करने वाले एक ऋषि।

चतुर (सं.) [वि.] 1. जिसकी बुद्धि प्रखर हो; होशियार; बुद्धिमान 2. सोच-समझकर एवं सलीके से काम करने वाला; दक्ष 3. दूरदर्शी; विवेकी 4. व्यवहारकुशल।

चतुरंग (सं.) [सं-पु.] 1. चतुरंगिणी सेना के चार अंग- पदाति, अश्व, गज और रथ 2. शतरंज के खेल का प्राचीन भारतीय नाम।

चतुरंगिणी (सं.) [सं-स्त्री.] ऐसी सेना जिसमें हाथी, घोड़े, रथ और पैदल ये चारों अंग हों।

चतुराई (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चतुरता; होशियारी 2. विवेकशीलता; बुद्धिमत्ता।

चतुरानन (सं.) [वि.] जिसके चार मुख हों; चार मुखोंवाला। [सं-पु.] ब्रह्मा, पुराणों में जिनके चार मुँह माने जाते हैं।

चतुराश्रम (सं.) [सं-पु.] प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुसार मानव जीवन के चार आश्रम या अवस्थाएँ- ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ और संन्यास।

चतुर्थ (सं.) [वि.] चौथा; गिनती या क्रम में चार की संख्या पर पड़ने वाला, जैसे- चतुर्थ श्रेणी। [सं-पु.] एक ताल।

चतुर्थांश (सं.) [सं-पु.] किसी चीज़ के चार बराबर भागों में से एक; चौथाई।

चतुर्थी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चंद्र मास के किसी पक्ष की चौथी तिथि; चौथ 2. (संस्कृत व्याकरण) संप्रदान कारक या उसमें लगने वाली विभक्ति।

चतुर्दश (सं.) [वि.] चौदह; चौदहवाँ।

चतुर्दशपदी (सं.) [सं-स्त्री.] पाश्चात्य शैली की एक कविता जिसमें कुछ विशिष्ट नियमों के अनुसार केवल चौदह पंक्तियाँ होती हैं और प्रत्येक पंक्ति में प्रायः दस अक्षर होते हैं। हिंदी में कवि त्रिलोचन ने विशेष रूप से इस शैली को अपनाया है; (सॉनेट)।

चतुर्दशी (सं.) [सं-स्त्री.] चंद्र मास के किसी पक्ष की चौदहवीं तिथि।

चतुर्दिक (सं.) [क्रि.वि.] चारों दिशाओं में; चारों ओर; हर ओर। [सं-स्त्री.] चार दिशाएँ- पूरब, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण।

चतुर्दिश [सं-पु.] 1. पूरब, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण- चारों दिशाओं का समाहार। [क्रि.वि.] हर ओर; चारों तरफ़।

चतुर्धाम (सं.) [सं-पु.] हिंदू धर्म के प्रमुख चार तीर्थ; चारों धाम- द्वारिका (द्वारका), रामेश्वरम, पुरी और बद्रिकाश्रम।

चतुर्भुज (सं.) [सं-पु.] 1. (ज्यामिति) चतुष्कोण क्षेत्र; वह आकार जिसकी चार भुजाएँ हों 2. विष्णु।

चतुर्भुजी [सं-पु.] 1. एक वैष्णव संप्रदाय 2. इस संप्रदाय के सदस्य।

चतुर्मास (सं.) [सं-पु.] 1. आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तक की अवधि जिसमें विवाह आदि मंगल कार्य वर्जित हैं 2. बौद्ध भिक्षुओं तथा जैन मुनियों की यात्रा-निषेध की अवधि; चातुर्मास।

चतुर्मुख (सं.) [सं-पु.] 1. ब्रह्मा 2. संगीत में एक प्रकार का चौताला ताल। [वि.] चार मुँहों वाला।

चतुर्युग (सं.) [सं-पु.] 1. चार युग- सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग 2. इन चार युगों का समूह।

चतुर्युगी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चार युगों का समूह 2. तेतालीस लाख बीस हज़ार वर्ष का समय।

चतुर्वर्ग (सं.) [सं-पु.] भारतीय परंपरा के अनुसार मानव जीवन के चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।

चतुर्वर्ण (सं.) [सं-पु.] प्राचीन भारतीय परंपरानुसार मनुष्यों के चार वर्ण- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जिनके कार्य और कर्तव्य भी बँधे हुए थे।

चतुर्विध (सं.) [वि.] 1. चार प्रकार का 2. चारों तरफ़ का।

चतुर्वेदी (सं.) [वि.] चारों वेदों का ज्ञाता। [सं-पु.] ब्राह्मण समाज में एक कुलनाम या सरनेम।

चतुष्कोण (सं.) [वि.] (ज्यामिति) चार कोणोंवाला; चौकोर; चौकोना। [सं-पु.] चार कोणों वाला आकार।

चतुष्टय (सं.) [सं-पु.] 1. चार की संख्या 2. चार चीज़ों का वर्ग या समूह, जैसे- पुरुषार्थ चतुष्टय।

चतुष्पद (सं.) [वि.] 1. चतुष्पाद; चार पैरोंवाला; चौपाया; चौपद 2. चार पदोंवाला (पद्य)। [सं-पु.] वह पशु या वस्तु जिसके चार पैर हों।

चतुष्पदी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ऐसा गीत या पद्य जिसमें चार चरण या पद हों 2. चौपाई नामक छंद 3. चार पंक्तियों का पद्य जिसमें दूसरी और चौथी पंक्तियाँ तुकांत होती हैं; अँग्रेज़ी का 'क्वाट्रेन' छंद।

चतुष्पाद (सं.) [वि.] चार पैरोंवाला। [सं-पु.] चौपाया जानवर।

चत्वर (सं.) [सं-पु.] 1. जहाँ चारों ओर से चार सड़कें आकर मिलती हों; चौमुहानी; चौराहा 2. चौकोर क्षेत्र या स्थान 3. हवन की वेदी या चबूतरा।

चदरिया [सं-स्त्री.] दे. चादर।

चद्दर (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. ओढ़ने और बिछाने का कपड़ा; चादर 2. लोहे, पीतल आदि धातुओं का लंबा-चौड़ा पतला पत्तर; पतरा; (शीट)।

चनकना [क्रि-अ.] 1. 'चट-चट' शब्द करते हुए टूटना; चिटकना; तड़कना 2. {ला-अ.} खीझना।

चना (सं.) [सं-पु.] 1. चैत में पकने वाला दलहन समूह का एक प्रसिद्ध पौधा; होला 2. इस पौधे से प्राप्त दाना जो भूनकर, पीसकर तथा दाल के रूप में खाया जाता है; छोला; बूट।

चनाचूर [सं-पु.] चने से बना चटपटा, नमकीन, कुरकुरा खाद्य पदार्थ।

चपकन [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार का अंगा; अँगरखा 2. किवाड़, संदूक आदि में लोहे, पीतल आदि का बना हुआ दोहरा साज या कुंडी जिसमें ताला लगाकर बंद किया जाता है।

चपकुलिश (तु.) [सं-स्त्री.] 1. झंझट; अड़चन या कठिनाई की स्थिति 2. लड़ाई; झगड़ा 3. भीड़-भाड़ की अधिकता।

चपटा [वि.] 1. जो दबा हुआ हो; जिसकी सतह उठी हुई न हो; जिसमें उतार-चढ़ाव न हो 2. समतल; मैदानी।

चपड़-चपड़ [सं-स्त्री.] 1. कुत्ते, बिल्ली तथा शेर आदि द्वारा पानी या तरल पदार्थ पीते समय होने वाली आवाज़ 2. बहुत ज़्यादा और बेमतलब की बात; चबर-चबर।

चपड़ा [सं-पु.] 1. साफ़ की हुई लाख का पत्तर 2. लाल रंग का एक प्रकार का पतंगा जो गंदे या सीलन वाले स्थानों में रहता है 3. जहाज़ के मस्तूल में बाँधी जाने वाली रस्सी।

चपत (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हाथ से किसी के सिर पर धीरे से मारना; स्नेह से लगाया जाने वाला हलका थप्पड़ 2. तमाचा 3. {ला-अ.} आर्थिक नुकसान; क्षति।

चपना [क्रि-अ.] 1. नीचे की ओर धँसना 2. दबाव में पड़ना; दबना 3. कुचल जाना 4. किसी के सामने लज्जित भाव से चुप रहना।

चपनी [सं-स्त्री.] 1. सामान ढकने का छोटा कटोरा; छिछली कटोरी 2. बरतनों का ढक्कन 3. घुटने की हड्डी; चक्की।

चपरगट्टू [वि.] 1. विपत्ति से ग्रसित; दुख का मारा; अभागा 2. चारों ओर से दबोचा हुआ।

चपरास (फ़ा.) [सं-स्त्री.] चौकीदार, अरदली आदि कर्मियों द्वारा कमरपेटी या परतले में लगाकर पहना जाने वाला पीतल या किसी अन्य धातु का बिल्ला जिसपर उनके कार्यालय का नाम, चिह्न आदि खुदे होते हैं।

चपरासी (फ़ा.) [सं-पु.] 1. कार्यालय में पत्र आदि लाने या ले जाने तथा साफ़-सफ़ाई करने वाला कर्मचारी 2. चौकीदार; सिपाही 3. अरदली।

चपल (सं.) [वि.] 1. चंचल; कहीं न टिकने वाला; चुलबुला 2. शांत या स्थिर न रहने वाला; उतावला। [सं-पु.] 1. पारा जो कभी स्थिर नहीं हो पाता; पारद 2. मछली।

चपलता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चंचलता; अस्थिरता 2. शीघ्रता; जल्दी; जल्दबाज़ी 3. धूर्तता; चालाकी 4. ढिठाई; अशिष्टता।

चपला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. बादलों में चमकने वाली बिजली 2. लक्ष्मी 3. चंचल स्त्री 4. पिप्पली नामक औषधि 5. भाँग 6. मदिरा।

चपाती [सं-स्त्री.] गेंहू के आटे की पतली रोटी; फुलका; फुलकी।

चपाना [क्रि-स.] 1. किसी को दबाना 2. रस्सी या सूत के दो टुकड़ों को बटकर जोड़ना।

चपेट (सं.) [सं-स्त्री.] 1. लपेट; घेरा 2. धक्का; झोंका 3. प्रहार; आघात; टक्कर 4. थप्पड़; तमाचा 5. कठिनाई या संकट की स्थिति, जैसे- अमेरिका में पूरा शहर चक्रवात की चपेट में।

चपेटना (सं.) [क्रि-स.] 1. अचानक आक्रमण या प्रहार करके दबाना; दबोचना 2. अचानक संकट में डालना 3. डाँटना; फटकारना।

चपेटा [सं-पु.] 1. चपेट; चपेटने की क्रिया, परिणाम या भाव 2. धक्का; झोंका 3. प्रहार; आघात; टक्कर 4. थप्पड़; तमाचा 5. कठिनाई या संकट की स्थिति।

चप्पल [सं-स्त्री.] रबर या चमड़े की पट्टी लगा खड़ाऊँ जैसा खुली एड़ी का जूता जिसमें पंजा प्रायः खुला रहता है।

चप्पा (सं.) [सं-पु.] 1. चार अंगुल जितनी जगह; बहुत थोड़ा-सा स्थान 2. चौथाई हिस्सा; चतुर्थांश।

चप्पी [सं-स्त्री.] 1. चंपी; मालिश 2. सेवाभाव से धीरे-धीरे हाथ-पैर दबाने की क्रिया।

चप्पू [सं-पु.] नाव को खेने या चलाने की डाँड़; वह डाँड़ जो पतवार का काम भी करती है।

चबर-चबर [सं-स्त्री.] चपड़-चपड़; बकवास; व्यर्थ की बात-चीत।

चबाना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी चीज़ को मुँह में लेकर दाँतों से कुचलना; काटना; चाबना 2. खाना 3. {ला-अ.} मारना या नष्ट करना।

चबूतरा (सं.) [सं-पु.] 1. ईंट या पत्थर से बनी ऊँची जगह; (प्लेटफ़ार्म) 2. घर के सामने की ओर बना हुआ बैठने का ऊँचा और चौरस स्थान; चौंतरा; ओटला 3. किसी उपदेव या देवी का चौरा 4. समाधि-स्थल पर बनाई गई ऊँची उठी हुई आयताकार रचना।

चबेना [सं-पु.] चबाकर खाने के लिए सूखा भुना हुआ अन्न; दाना, भूँजा, मुरमुरा, नमकीन, चिवड़ा, खील आदि।

चभोरना [क्रि-स.] 1. तरल पदार्थ में कोई चीज़ डुबाना; तर करना 2. किसी को ज़बरदस्ती गहरे पानी में गोता दिला देना।

चमक [सं-स्त्री.] 1. चमकने की क्रिया या भाव; चमचमाहट; तेज; दीप्ति; दमक 2. चमकीलापन; आभा; कांति; ओप; उजास 3. रोशनी 4. शरीर के किसी भी अंग में होने वाली आकस्मिक पीड़ा; झटका लगने से होने वाला दर्द; चिलक 5. चौंकने की क्रिया; चौंक; भड़क। [मु.] उठना : ख़ूब प्रसन्न होना या ख़ुशी प्रकट करना।

चमक-दमक [सं-स्त्री.] 1. चमचमाहट; तड़क-भड़क 2. दीप्ति; आभा 3. चमकने और दमकने की क्रिया, गुण या भाव।

चमकदार (हिं.+फ़ा.) [वि.] 1. जिसमें चमक हो; चमकीला 2. जगमग; आलोकित; उजला; ज्योतिर्मय; कांतिमान; उज्ज्वल 3. आकर्षक; भव्य; पॉलिशदार; स्वच्छ।

चमकना [क्रि-अ.] 1. जगमगाना; प्रदीप्त होना; दमकना 2. कौंधना; दिपदिपाना 3. आनंद से किसी के चेहरे का उज्ज्वल होना 4. चौंकना 5. {ला-अ.} तरक्की हासिल करना; प्रसिद्ध होना। [वि.] 1. ख़ूब चमक देने वाला 2. जल्दी बिदकने या चौंकने वाला, जैसे- बैल, हिरन आदि।

चमकवाना [क्रि-स.] किसी वस्तु को साफ़ करके चमक उत्पन्न कराना; चमकाने का काम करवाना।

चमकाऊ [सं-पु.] 1. चमकाने वाला 2. (पत्रकारिता) पृष्ठ को अधिक रोचक और आकर्षक बनाने के उद्देश्य से प्रकाशित किया जाने वाला संक्षिप्त और रोचक समाचार या शीर्षक।

चमकाना [क्रि-स.] 1. किसी बरतन, फ़र्नीचर आदि में (पॉलिश आदि द्वारा) चमक लाना; चमकदार बनाना; उज्ज्वल करना 2. चौंकाना 3. प्रकाशित करना 4. उभारना 5. {ला-अ.} कीर्ति, वैभव, सफलता आदि से युक्त करना।

चमकी [सं-स्त्री.] 1. ज़री के चमकीले छोटे टुकड़े; ज़री की कतरन 2. कपड़ों पर ज़री से बेल-बूटे बनाने में काम आने वाले सितारे।

चमकीला [वि.] 1. चमकने वाला; चमकदार; प्रकाशमान 2. भड़कीला 3. पालिशदार; चिकना।

चमगादड़ [सं-स्त्री.] 1. केवल रात में बाहर निकल कर उड़ने वाला चूहे की शक्ल का एक स्तनधारी जीव 2. {ला-अ.} ऐसा व्यक्ति जिसका कोई अपना मत या सिद्धांत न हो और जो स्वार्थवश किसी भी पक्ष से मिल जाता हो।

चमचम [सं-स्त्री.] छेने से बनने वाली रसगुल्ले जैसी एक बंगाली मिठाई। [वि.] ख़ूब चमकता हुआ; चमकीला; भव्य; पॉलिशदार।

चमचमाना [क्रि-स.] चमकाना; इतना साफ़ करना कि चमकने लगे। [क्रि-अ.] चमकना; प्रकाशमान होना; जगमगाना।

चमचा (तु.) [सं-पु.] 1. पकाते समय खाना हिलाने-चलाने का डंडीदार पात्र; बड़ा चम्मच 2. नाव में डाँड़ का अग्रभाग 3. {व्यं-अ.} चापलूस; ख़ुशामद करने वाला व्यक्ति।

चमड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. प्राणियों (विशेषकर चौपायों) के मृत शरीर पर से उतारा हुआ चर्म जिससे जूते, बैग आदि चीज़ें बनती हैं; चर्म; खाल 2. प्राणियों के शरीर का ऊपरी आवरण; त्वचा; चर्म। [मु.] -उधेड़ना या खींचना : बहुत पिटाई करना या मारना; कड़ा दंड देना।

चमड़ी [सं-स्त्री.] त्वचा; चर्म।

चमत्कार (सं.) [सं-पु.] 1. ऐसा अद्भुत कार्य जिससे आश्चर्य की अनुभूति हो; करामात; करिश्मा 2. अलौकिकता का भ्रम पैदा करने वाली घटना; (मिरकल) 3. (साहित्य) विषय-विविधता या प्रस्तुति के कौशल द्वारा पाठक को चमत्कृत या आनंदित करने की क्रिया, जैसे- कविता या कहानी का चमत्कार।

चमत्कारी (सं.) [वि.] 1. विलक्षण काम करने वाला; चमत्कार दिखाने वाला 2. जिसमें कोई चमत्कार या करामात हो; चमत्कार-युक्त; करामाती।

चमत्कृत (सं.) [वि.] चमत्कार देखकर अभिभूत; आश्चर्यचकित; विस्मित; चकित; चौंका हुआ; जिसे अचंभा हुआ हो।

चमन (फ़ा.) [सं-पु.] 1. उपवन; फुलवारी; फूलों का बगीचा 2. {ला-अ.} हरा-भरा आनंदपूर्ण वातावरण।

चमर (सं.) [सं-पु.] 1. चमरी गाय या सुरागाय की पूँछ का बना हुआ चँवर 2. सुरागाय 3. एक दैत्य का नाम।

चमरख [सं-स्त्री.] चरखे में लगी हुई चमड़े की चकती जिसमें तकला या तकुआ पहनाया जाता है।

चमरस [सं-पु.] चमड़े के नए जूते की रगड़ से पैर में होने वाला घाव।

चमाचम [वि.] चमकदार; चमचमाता हुआ; अत्यंत साफ़-सुथरा; स्वच्छ।

चमार (सं.) [सं-पु.] 1. एक जाति या समाज जिसके सदस्य प्राचीन समय में चमड़े की चीज़ों को बनाने तथा बेचने का व्यवसाय करते थे; चर्मकार 2. उक्त समुदाय या जाति का सदस्य।

चमू (सं.) [सं-स्त्री.] 1. फ़ौज; सेना 2. प्राचीनकाल की चतुरंगिणी सेना।

चमेली (सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की लता या झाड़ी तथा उसका ख़ुशबूदार सफ़ेद फूल; मल्लिका; गुल यासमीन; (जैसमीन)।

चमोटा (सं.) [सं-पु.] चमड़े का एक टुकड़ा जिसपर रगड़कर छुरे आदि में धार दी जाती है।

चमोटी [सं-स्त्री.] 1. कोड़ा; चाबुक; कशा 2. पतली छड़ी; कमची; बेंत 3. वह चमड़ा जो पैरों को लोहे की रगड़ से बचाने के लिए बेड़ियों के भीतरी भाग में लगाया जाता है 4. छोटा चमोटा।

चम्मच (तु.) [सं-पु.] 1. खाना पकाने में काम आने वाला करछुल जैसा एक डंडीदार पात्र; एक प्रकार की छोटी हलकी कलछी; खाने-पीने के पदार्थों को मिलाने और निकालने का पात्र 2. तरल या गाढ़ी भोजन सामग्री उठाकर मुँह तक लाने वाला छोटा डंडीदार पात्र; (स्पून)।

चय (सं.) [सं-पु.] 1. समूह; ढेर; राशि 2. टीला; ढूह 3. किला; गढ़ 4. किले की चहारदीवारी; दुर्ग की प्राचीर।

चयन (सं.) [सं-पु.] 1. चुनना; इकट्ठा करना 2. फूल चुनना 3. चुनने का काम; (सिलेक्शन) 4. चुनी हुई चीज़ों का संग्रह; संचय; संकलन 5. एकत्रित वस्तुओं में से अनावश्यक वस्तुओं का पृथक्करण करके आवश्यक वस्तुओं को रखना; छँटाई 6. किसी पद पर नियुक्ति के लिए निर्वाचन।

चयनकर्ता (सं.) [वि.] चयन करने वाला; कई में से चुनकर अलग करने वाला; चयनक।

चयनिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक ऐसा संग्रह जिसमें कविताओं, कहानियों या लेखों का समुच्चय हो 2. पत्र-पत्रिकाओं आदि का वह स्तंभ जिसमें दूसरी पत्र-पत्रिकाओं से लिए गए अच्छे लेख, टिप्पणियाँ या उनके सारांश हों।

चयनित (सं.) [वि.] 1. जो चुना गया हो; जिसका चयन हुआ हो; निर्वाचित 2. किसी प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण या सफल।

चयित (सं.) [वि.] 1. चयन किया हुआ; चुना हुआ 2. जिसका संग्रह किया गया हो; चुनकर एकत्रित किया हुआ।

चर (सं.) [वि.] 1. जो अचल न हो; गतिमान; चलने वाला; विचरण करने वाला, जैसे- जलचर, नभचर आदि प्राणी 2. चल; जंगम 3. जो अपनी जगह से इधर-उधर होता हो, जैसे- चर नक्षत्र। [सं-पु.] 1. भेदिया; गुप्तदूत; जासूस; तथ्यान्वेषक 2. कार्यकर्ता; नौकर; परिचारक 3. नदी किनारे की भूमि।

चरई (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पशुओं को चारा देने-खिलाने के लिए पत्थर आदि का बना हुआ हौज; नाँद; चरनी 2. जुलाहों के कार्य के संदर्भ में वह स्थान जहाँ ताने के सूत छोटे तागों से बाँधे जाते हैं।

चरकटा [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जो पशुओं के लिए चारा, घास आदि काटने का काम करता हो 2. गाली के रूप में भी प्रयुक्त शब्द।

चरख (फ़ा.) [सं-पु.] 1. पहिए के आकार का घूमने वाला गोल चक्का 2. ऐसी गाड़ी जिसपर तोप रखी रहती है 3. चरखा; चरखी; घिरनी 4. लकड़बग्घा नामक वन्य प्राणी।

चरखा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. हाथ से खादी का सूत कातने का एक यंत्र 2. तारकशों का तार खींचने का औज़ार 3. सूत लपेटकर लच्छी बनाने का यंत्र 4. रहट; घिरनी 5. कुश्ती में विपक्षी पहलवान को चित्त करने का पेंच 6. {ला-अ.} झंझट भरा काम।

चरखी [सं-स्त्री.] 1. छोटा चरखा; सूत लपेटने की फिरकी 2. पहिए की तरह घूमने वाली कोई वस्तु 3. कपास से बिनौले अलग करने वाली ओटनी 4. चक्कर खाकर छूटने वाली एक आतिशबाज़ी 5. गराड़ी या घिरनी जिसपर से कुएँ से पानी निकालने वाले डोल की रस्सी गुजरती है।

चरचराना [क्रि-अ.] 1. 'चर-चर' ध्वनि के साथ टूटना या जलना 2. घाव के आस-पास के चमड़े का सूखने के कारण चर्राना 3. कच्चे घाव पर कोई तेज़ दवा लगने पर जलना।

चरण (सं.) [सं-पु.] 1. पैर; पाँव; पग; कदम; डग 2. किसी काम को पूरा करने के विभिन्न दौर, जैसे- पहले चरण या दूसरे चरण का काम 3. विकास की अवस्था; सिलसिला; क्रम 4. श्लोक का चौथा भाग; किसी छंद का एक निश्चित अंश या पाद।

चरणकमल (सं.) [सं-पु.] 1. कमल के समान सुंदर पैर या चरण; पादपद्म 2. {ला-अ.} किसी ज्ञानी, आदरणीय या गुरु सदृश व्यक्ति के चरणों के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द।

चरणचिह्न (सं.) [सं-पु.] 1. पैरों के निशान; पदचिह्न 2. {ला-अ.} किसी प्रसिद्ध या आदर्श व्यक्ति के गुणों या स्वभाव के स्थापित प्रतिमान या आदर्श।

चरणदास (सं.) [वि.] 1. चरणों की सेवा करने वाला; दास 2. अठारहवीं-उन्नीसवीं शताब्दी के एक संत जिन्होंने चरणदासी संप्रदाय का प्रवर्तन किया।

चरण-धूलि (सं.) [सं-स्त्री.] पूज्य व्यक्तियों के चरणों की धूल या चरणरज, जो लोकमान्यतानुसार पवित्र मानी जाती है।

चरण-पादुका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. खड़ाऊँ; पाँवड़ी 2. पत्थर पर बना हुआ पैर का चिह्न 3. किसी धातु या पत्थर पर उकेरे हुए किसी देवता के पैर।

चरणरज (सं.) [सं-स्त्री.] किसी पूज्य व्यक्ति के चरणों की धूल; चरण-धूलि। [मु.] -पड़ना : किसी प्रसिद्ध व्यक्ति का आगमन होना।

चरणसेवा (सं.) [सं-स्त्री.] किसी बुज़ुर्ग या पूज्य व्यक्ति की चरण दबाकर सेवा; ख़िदमत।

चरण-स्पर्श (सं.) [सं-पु.] पूज्यजनों के अभिवादन के लिए प्रयुक्त होने वाली उक्ति; श्रद्धा और आदर के साथ पैर छूना; नमन।

चरणामृत (सं.) [सं-पु.] 1. पूजन-हवन आदि कर्मकांड में प्रयोग किया जाने वाला दूध, दही, घी, चीनी, शहद आदि का मिश्रण जिसे पवित्र समझकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है; पंचामृत 2. चरणोदक।

चरणोदक (सं.) [सं-पु.] 1. प्राचीन रीति के अनुसार वह पानी जिससे किसी देव मूर्ति के चरण धोकर उसे अमृत मानकर पिया जाता है 2. दूध, दही, घी, चीनी, शहद आदि का मिश्रण जिससे देव मूर्तियों को स्नान कराया जाता है और जिसे पवित्र मानकर पिया जाता है; चरणामृत।

चरना (सं.) [क्रि-स.] पशुओं का मैदानों, खेतों आदि में उगे घास-पौधे इत्यादि खाना। [क्रि-अ.] 1. पशुओं का घास आदि खाने के लिए चरागाह या मैदानों में फिरना 2. इधर-उधर घूमना-फिरना; चलना; विचरण करना। [सं-पु.] सुनारों का गहनों पर सीधी लकीर बनाने का औज़ार।

चरनी [सं-स्त्री.] 1. पशुओं के चरने का स्थान; चरी; चरागाह 2. वह नाँद या हौज जिसमें पशुओं को खाने के लिए चारा दिया जाता है 3. मवेशियों का चारा।

चरपरा [वि.] 1. ऐसा खाद्य पदार्थ जिसमें खटाई, मिर्च आदि अधिक मात्रा में मिला हुआ हो; चटपटा; मसालेदार 2. तीखे स्वादवाला; झालदार; तीता।

चरपराहट [सं-स्त्री.] 1. (स्वाद का) तीखापन 2. घाव आदि के सूखने की अवस्था में होने वाली चरचराहट।

चरबा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. हिसाब, लेखे आदि का लिखा हुआ पूर्वरूप; ख़ाका; मसौदा 2. वह बारीक कागज़ जिसे ऊपर रखकर नीचे रखे चित्र या नक्शे का अक्स उतारते हैं 3. नक़ल; प्रतिलिपि।

चरबी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. वसा; सफ़ेदी लिए हुए पीले रंग का एक चिकना गाढ़ा पदार्थ जो प्राणियों के शरीर में पाया जाता है; मेद 2. {ला-अ.} मोटापा; मोटाई। [मु.] -चढ़ना : घमंडी होना। आँखों पर चरबी छाना : अहंकार या मद में किसी की बात पर ध्यान न देना।

चरम (सं.) [वि.] 1. आखिरी हद या पराकाष्ठा पर पहुँचा हुआ, जैसे- चरम सुख 2. अत्यधिक; परम 3. सबसे ऊँचा या ऊपर का। [सं-पु.] सुख या उत्तेजना की अधिकतम ऊँचाई; (क्लाइमैक्स)।

चरमपंथी [सं-पु.] वह जो सामाजिक बुराइयों को शक्ति प्रयोग द्वारा ख़तम करने के पक्ष में हो; चरमवादी; उग्रपंथी।

चरमराना [क्रि-अ.] 1. किसी वस्तु का चरमर ध्वनि करना, जैसे- चारपाई का चरमराना 2. मचकना; जोड़ ढीले पड़ जाना 3. {ला-अ.} कमज़ोर होना; टूटने के कगार पर होना, जैसे- राजनीतिक ढाँचे का चरमराना। [क्रि-स.] 1. किसी वस्तु से चरमर ध्वनि उत्पन्न करना 2. किसी वस्तु पर इतना दबाव डालना या झटके देना कि वह चरमरा जाए।

चरमराहट [सं-स्त्री.] 1. दरवाज़ा आदि खुलने पर होने वाली चर-चर की आवाज़; चरमराने की आवाज़; चरमर 2. चरमराने या मचकने की स्थिति।

चरमसीमा (सं.) [सं-स्त्री.] किसी बात या कार्य की अंतिम अवस्था; चरम अवस्था; पराकाष्ठा; हद (क्लाइमैक्स)।

चरमोत्कर्ष (सं.) [सं-पु.] विकास या उन्नति की उच्चतम अवस्था; पराकाष्ठा; पारमिता।

चरवाना [क्रि-स.] किसी से पशुओं को चराने का काम करवाना।

चरवाहा [सं-पु.] मवेशियों को चराने वाला व्यक्ति; बरेदी; दूसरों के पशु चराकर रोज़ी-रोटी चलाने वाला; गड़रिया; चरवैया।

चरवाही [सं-स्त्री.] 1. मवेशी चराने का काम 2. मवेशी चराने की मज़दूरी।

चरस (सं.) [सं-स्त्री.] 1. गाँजे के पौधों से प्राप्त होने वाला हलका पीला रस, जिसका धुँआ पीने से नशा होता है 2. चमड़े का बड़ा थैला या डोल जिससे सिंचाई के लिए कुएँ से पानी निकाला जाता है।

चरसा (सं.) [सं-पु.] 1. भैंस, बैल आदि का चमड़ा 2. चमड़े का बना बड़ा थैला जिससे पानी खींचकर खेत सींचा जाता था; चरस; पुरा; मोट 3. ज़मीन का एक नाप।

चरसी (सं.) [सं-पु.] 1. वह जो चरस की सहायता से खेत में पानी सींचता हो 2. वह जो गाँजे, तंबाकू आदि की तरह चरस पीता हो; जिसे चरस के नशे की लत हो।

चराई [सं-स्त्री.] 1. चराने की क्रिया 2. पशु आदि चराने की मज़दूरी।

चरागाह (फ़ा.) [सं-पु.] वह मैदान जहाँ पशु घास चरते हैं; गोचर; चरनी; खरक।

चराचर (सं.) [वि.] जड़ और चेतन पदार्थ। [सं-पु.] संपूर्ण जगत; विश्व।

चराना [क्रि-स.] 1. पशुओं को मैदान आदि में ले जाकर चरने के लिए छोड़ देना 2. {ला-अ.} धोखा देना; बेवकूफ़ बनाना; ठगना।

चरिंदा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. चरने वाला पशु, जीव या प्राणी 2. घास, पत्ते आदि खाने वाले मवेशी।

चरित (सं.) [सं-पु.] 1. जीवन-चरित्र; जीवन-वृत्त; लीला 2. आचरण; कर्म; स्वभाव 3. {व्यं-अ.} करतूत।

चरितनायक (सं.) [सं-पु.] वह व्यक्ति जिसके जीवन-चरित्र के आधार पर कोई ग्रंथ, नाटक, काव्य आदि लिखा गया हो।

चरितार्थ (सं.) [वि.] 1. सार्थक; जो अपने सही अर्थ में पूर्ण हो; ठीक उतरने वाला 2. जिसका अभिप्राय और उद्देश्य सिद्ध हो गया हो; कृतार्थ 3. संतुष्ट; सफल।

चरितावली (सं.) [सं-स्त्री.] वह ग्रंथ या पुस्तक जिसमें अनेक मनीषियों के जीवन चरित्र दिए गए हों।

चरित्तर (सं.) [सं-पु.] खोटा या हीन चरित्र; छलपूर्ण या अनुचित व्यवहार।

चरित्र (सं.) [सं-पु.] 1. चाल-चलन; आचरण; (कैरेक्टर) 2. व्यवहार; कार्य-कलाप 3. प्रकृति स्वभाव; शील 4. कथा-कहानी, नाटक, फ़िल्म आदि में कोई पात्र 5. कोई महान व्यक्तित्व 6. जीवन चरित्र; जीवनी 7. {ला-अ.} छलपूर्ण व्यवहार; करतूत।

चरित्रनायक (सं.) [सं-पु.] वह व्यक्ति जिसके जीवन-चरित्र के आधार पर कोई ग्रंथ, नाटक, काव्य आदि लिखे गए हों।

चरित्रवान (सं.) [वि.] अच्छे चाल-चलनवाला; सदाचारी।

चरित्रहीन (सं.) [वि.] बुरे चरित्रवाला; ख़राब या निंदनीय चाल चलनवाला; दुष्चरित्र; बदचलन।

चरित्रा (सं.) [सं-स्त्री.] इमली का वृक्ष।

चरी [सं-स्त्री.] 1. ज्वार के हरे पौधे जो पशुओं को खिलाए जाते हैं 2. वह ज़मीन जो किसानों को अपने पशुओं के चारे के लिए ज़मींदार से बिना लगान मिलती है 3. वह स्थान जो पशुओं के खाने के लिए खुला छोड़ा जाता है; चरागाह; चरोखर।

चरु (सं.) [सं-पु.] 1. यज्ञ आदि के लिए अन्न पकाने का पात्र 2. हवन, यज्ञ आदि के लिया पकाया हुआ अन्न; हविष्यान्न 3. ऐसा भात जिसका माँड़ न निकाला गया हो 4. पशुओं के चरने की ज़मीन पर लगने वाला महसूल।

चरेरा [सं-पु.] हिमालय की तराई में पाया जाने वाला एक वृक्ष जिसकी लकड़ी बहुत मज़बूत होती है। [वि.] 1. खुरदरा; रूखा 2. कर्कश।

चरैला [सं-पु.] एक प्रकार का चार मुँहों वाला चूल्हा जिसपर एक साथ चार चीज़ें पकाई जा सकती हैं।

चरोखर [सं-स्त्री.] 1. पशुओं के चरने की जगह; चरागाह; चरनी; गोचर 2. मिट्टी आदि का घेरा जिसमें नाँद रखी जाती है।

चरोतर (सं.) [सं-पु.] वह भूमि जो किसी व्यक्ति को अपने जीवन काल भर उपयोग करने के लिए दी गई हो।

चर्ख़ (फ़ा.) [सं-पु.] 1. आकाश; आसमान 2. सूत कातने का चरखा 3. कुम्हार का चाक।

चर्च (इं.) [सं-पु.] 1. ईसाइयों का प्रार्थना गृह; गिरजाघर 2. मसीही धर्म का कोई विशेष संप्रदाय, जैसे- कैथलिक चर्च या प्रेस्बिटेरियन चर्च आदि।

चर्चरिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. नाटक के दो अंकों के बीच के रिक्त समय को भरने वाले गीत 2. आमोद-प्रमोद; उत्सव 3. दो कवियों का बारी-बारी से होने वाला कविता पाठ।

चर्चरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. होली पर गाया जाने वाला एक प्रकार का गीत; चाँचर; फाग 2. एक प्रकार का वर्णवृत्त 3. ताल का एक भेद 4. ताली बजाना 5. आमोद-प्रमोद; रँगरेली।

चर्चा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वार्तालाप; बातचीत; विचार-विमर्श; परिचर्चा 2. बहस; वाद-विवाद 3. बयान; ज़िक्र 4. अफ़वाह; किंवदंती; बहुत से लोगों में फैली हुई बात।

चर्चित (सं.) [वि.] 1. जो चर्चा में हो; विचारित; जिसकी चर्चा की गई हो 2. प्रचारित; उल्लेखनीय; प्रसिद्ध; विख्यात; मशहूर 3. लेप के रूप में शरीर पर लगाया जाने वाला, जैसे- चंदन चर्चित देह।

चर्पट (सं.) [सं-पु.] 1. हाथ की खुली हथेली 2. चपत।

चर्म (सं.) [सं-पु.] 1. शरीर की त्वचा; खाल; स्पर्शेंद्रिय 2. प्राचीन काल में चमड़े से बनाई जाने वाली ढाल।

चर्मकार (सं.) [सं-पु.] चमड़े का काम करने वाला व्यक्ति; मोची।

चर्मचक्षु (सं.) [सं-पु.] ज्ञान चक्षु या अंतर्दृष्टि के विपरीत भौतिक अर्थात शरीर में स्थित नेत्र जिनसे मनुष्य बाहरी जगत को देखता और समझता है।

चर्मचित्रक (सं.) [सं-पु.] श्वेत कुष्ठ नामक रोग।

चर्मज (सं.) [वि.] चमड़े से उत्पन्न। [सं-पु.] रोआँ; रोम।

चर्मण्वती (सं.) [सं-स्त्री.] चंबल नदी का प्राचीन नाम।

चर्मपुटक (सं.) [सं-पु.] 1. चमड़े का बना हुआ कुप्पा या थैला 2. धौंकनी।

चर्मरोग (सं.) [सं-पु.] 1. खुजली, दाद आदि जैसी त्वचा के ऊपर होने वाली बीमारी 2. त्वचा पर होने वाला संक्रमण।

चर्मवाद्य (सं.) [सं-पु.] ऐसा वाद्य यंत्र जिसपर चमड़ा मढ़ा हो, जैसे- ढोल, नगाड़ा, तबला आदि।

चर्मशोधन (सं.) [सं-पु.] वह प्रक्रिया जिससे चमड़े को मुलायम बनाया जाता है; चमड़े को विशेष प्रकार के घोलों में डुबा कर पकाने की क्रिया; (टैनिंग)।

चर्या (सं.) [सं-स्त्री.] 1. दैनिक कार्यक्रम; अभ्यास; गतिविधि; आचरण 2. परिचर्या; सेवा 3. जीविका या वृत्ति।

चर्राना [क्रि-अ.] 1. टूटने के समय लकड़ी आदि में चर-चर की आवाज़ होना 2. सिकुड़ने या सूखने से लकड़ियों का चटकना या फटना 3. त्वचा में सूखेपन से तनाव या खिंचाव होना।

चर्वण (सं.) [सं-पु.] 1. चबाने की क्रिया; मुँह में भोज्य पदार्थ डालकर दाँतों से उसे कुचलना 2. चबाकर खाया जाने वाला खाद्य पदार्थ; दाना; चबेना; भुना हुआ अन्न।

चर्वित (सं.) [वि.] 1. चबाया हुआ 2. खाया हुआ; भक्षित।

चल (सं.) [वि.] 1. चलता हुआ; जो स्थिर न हो; चलायमान; गतिमान; जंगम 2. जो एक स्थान से दूसरे पर जा सके, जैसे- चल संपत्ति, चल प्रदर्शनी। [सं-पु.] 1. चलने-हिलने या काँपने की क्रिया 2. पारा 3. गणित में वह संख्या जिसके कई मान व मूल्य हों। [मु.] -बसना : मृत्यु हो जाना; मर जाना।

चलक (सं.) [सं-पु.] 1. (अंक गणित) जिस संख्या या राशि के कई भिन्न-भिन्न मान और मूल्य हों 2. (अंक गणित) इस प्रकार की संख्या का प्रतीक चिह्न 3. माल; असबाब 4. ढोया जाने वाला माल।

चलचित्र (सं.) [सं-पु.] 1. सिनेमा; फ़िल्म; बाइसकोप 2. चित्र तथा ध्वनि के साथ प्रस्तुत की जाने वाली कथा या कहानी; कथाचित्र; (मूवी)।

चलचित्रण (सं.) [सं-पु.] छाया-चित्रण के द्वारा फ़िल्म बनाना; फ़िल्मांकन।

चलता (सं.) [वि.] 1. जो गतिमान हो; जो चल रहा हो 2. जो प्रचलन या व्यवहार में आ रहा हो 3. जो ठीक प्रकार से काम करने की स्थिति में हो 4. जो अधिक चतुर या होशियार हो। [मु.] -करना : रवाना करना या भगाना। -बनना : चल देना या खिसक लेना। -पुर्जा : चालाक तथा धूर्त व्यक्ति।

चलताऊ भाषा [सं-स्त्री.] ऐसी भाषा जो साहित्य और तकनीक से अलग बोलचाल की भाषा हो और जिसमें उच्चारण तथा व्याकरण के नियमों का सख़्ती से पालन नहीं होता; ऐसी भाषा जिसे साधारण आदमी भी समझ लेता हो।

चलतू [वि.] 1. जो अधिक प्रचलन में हो; चल रहा हो 2. ठीक से न किया हुआ (कार्य); कामचलाऊ।

चलते-चलते [क्रि.वि.] 1. चलते हुए; कहीं जाते हुए; 2. काम के अंतिम दौर में; अंत में।

चलदल (सं.) [सं-पु.] पीपल का वृक्ष जिसके पत्ते अधिकतर हिलते रहते हैं।

चलन (सं.) [सं-पु.] 1. रिवाज; रीति; (फ़ैशन; ट्रेंड) 2. ऐसी प्रथा जो आचार-व्यवहार से संबद्ध हो; परंपरा; परिपाटी; व्यवहार; प्रचलन।

चलनसार [वि.] 1. जिसका चलन या व्यवहार हो; प्रचलित 2. टिकाऊ।

चलना (सं.) [क्रि-अ.] 1. एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना; गतिशील होना 2. गमन करना; प्रस्थान करना; विदा होना 3. चर्चा या बात का शुरू होना 4. प्रचलित होना; चलन में होना 5. गोली आदि का छूटना 6. कायम रहना। [सं-पु.] 1. बड़ी छलनी या चलनी 2. बड़ी-सी चपटी कलछी जिसमें छेद बने होते हैं; झारा।

चलनी (सं.) [सं-स्त्री.] अनाज, दालें, आटा आदि छानने का उपकरण; छलनी।

चलपत्र (सं.) [सं-पु.] 1. पीपल का पेड़, जिसके पत्ते हमेशा थोड़ा-बहुत हिलते रहते हैं 2. कागज़ के रूप में प्रतिदिन चलने वाली मुद्रा या बैंक नोट; (करंसी)।

चलमुद्रा (सं.) [सं-स्त्री.] वह मुद्रा जिसका चलन किसी देश में सब जगह समान रूप से होता है; (करंसी)।

चलवाना [क्रि-स.] किसी को चलने के कार्य में प्रवृत्त करना; चलने का काम दूसरे से कराना या करवाना, जैसे- आज रोगी को कुछ दूर चलवाया गया।

चलसंपत्ति (सं.) [सं-स्त्री.] ऐसी संपत्ति जिसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाया जा सके, जैसे- कार, फर्नीचर आदि; (मूवेबल प्रॉपर्टी)।

चलाऊ [वि.] 1. अधिक समय तक टिकने या ठहरने वाला; टिकाऊ 2. चलने या चलाने लायक 3. जैसे-तैसे काम चलाने वाला।

चलाचली [सं-स्त्री.] 1. रवानगी; प्रस्थान 2. चलने की तैयारी 3. {ला-अ.} इस लोक से प्रस्थान की तैयारी अर्थात मृत्यु का समय।

चलान [सं-पु.] 1. माल या सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजे जाने का कार्य 2. सामान को व्यापार के लिए कहीं भेजना 3. अभियुक्त को पकड़कर न्यायालय में विचार के लिए भेजे जाने की क्रिया 4. किसी की सूचना के लिए भेजी हुई चीज़ों की सूची या धन का विवरण; रवन्ना; भेजी हुई चीज़ों की चुंगी की रसीद।

चलाना [क्रि-स.] 1. चलने की क्रिया कराना, जैसे- बच्चे को अँगुली पकड़कर चलाना 2. गति या हरकत देना, जैसे- नया फ़ैशन चलाना 3. आरंभ करना 4. हिलाना-डुलाना, जैसे- कड़ाही में सब्ज़ी चलाना 5. हथियार काम में लाना 6. प्रचलन; प्रवर्तन करना; जारी करना, जैसे- नई व्यवस्था चलाना 7. शरीर को सक्रिय करना, जैसे- हाथ-पैर चलाना 8. संचालन करना, जैसे- गृहस्थी या दफ़्तर चलाना। [मु.] किसी की- : किसी की बात या मत को प्रकट करना। मुँह- : ख़ूब खाना। हाथ- : मारपीट करना।

चलानी [सं-स्त्री.] बिक्री के लिए माल बाहर भेजने का काम या व्यवसाय। [वि.] 1. चलान संबंधी; चलान का 2. दूसरे स्थान से बिकने के लिए आया हुआ (माल)।

चलायमान (सं.) [वि.] 1. जो चल रहा हो 2. चंचल; अस्थिर 3. ध्यान या संकल्प से विचलित चित्त।

चलाव [सं-पु.] 1. प्रस्थान; रवानगी 2. छोटी उम्र के विवाह के बाद मायके में रह जाने वाली वधू का ससुराल में स्थायी रूप से रहने के लिए प्रथम बार जाना; चलावा; द्विरागमन; गौना।

चलावा [सं-पु.] 1. चलन; रीति; रस्म; प्रथा 2. द्विरागमन; गौना।

चलित (सं.) [वि.] 1. चलता हुआ; गतिमान 2. अस्थिर; कंपित 3. जिसका प्रचलन सभी जगह या सब लोगों में होता हो; (यूज़ुअल)। [सं-पु.] नृत्य में एक प्रकार का आंगिक अभिनय जिसके द्वारा क्षोभ या क्रोध प्रकट किया जाता है।

चवन्नी [सं-स्त्री.] रुपए का चौथाई हिस्सा; चार आने मूल्य का सिक्का।

चवर्ग [सं-पु.] हिंदी वर्णमाला के 'च' से 'ञ' तक के वर्णों का समूह।

चव्हाण [सं-पु.] महाराष्ट्र वासियों के एक वर्ग का कुलनाम या सरनेम।

चश्म (फ़ा.) [सं-स्त्री.] आँख; नेत्र; नयन।

चश्मदीद (फ़ा.) [वि.] 1. आँखों से देखा हुआ; आँखों देखी 2. जिसने कोई घटना स्वयं देखी हो; प्रत्यक्षदर्शी।

चश्मपोशी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] किसी की गलती देखते हुए भी उसे शर्मिंदा न करने की ख़ातिर आँखें फेर लेना; किसी बात को दरगुज़र कर देना या टाल जाना।

चश्मा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. आँखों पर लगने वाली ऐनक 2. पानी का स्रोत; नाला; सोता।

चषक (सं.) [सं-पु.] 1. शराब या मद्य पीने का प्याला; मद्यपात्र 2. शहद; मधु।

चसकना [क्रि-अ.] शरीर के किसी अंग में हलकी पीड़ा होना; दुखना; टीसना; कसकना।

चस्का (सं.) [सं-पु.] 1. लत; व्यसन 2. किसी काम या बात से मिलने वाले सुख या तृप्ति के कारण होने वाली लालसा 3. आदत (प्रायः अवगुण के अर्थ में), जैसे- उसे तो जुए का चस्का लग गया है।

चस्पाँ (फ़ा.) [वि.] चिपका हुआ; लगा हुआ, जैसे- दीवार पर पोस्टर चस्पाँ है।

चह (सं.) [सं-पु.] 1. नदी के किनारे बना हुआ ऐसा चबूतरा जिसपर पैर रखकर नाव पर चढ़ा जाता है 2. नदी पर पीपों आदि से बना अस्थायी पुल।

चहक [सं-स्त्री.] 1. चिड़िया की चहचहाहट या चहचह; पक्षियों का कलरव 2. {ला-अ.} चहकने या प्रसन्नता का भाव; हर्ष सूचक ध्वनि।

चहकना [क्रि-अ.] 1. चिड़ियों का चहचहाना 2. {ला-अ.} किसी व्यक्ति का ख़ुशी से खिलकर बोलना।

चहचहाना [क्रि-अ.] 1. पक्षियों का उमंग में आकर चहचह ध्वनि उत्पन्न करना; चहकना; कलरव करना 2. {ला-अ.} हुलसकर या हर्षित होकर कुछ बोलना।

चहचहाहट [सं-स्त्री.] 1. पक्षियों का चहकना; कलरव; कूजन 2. हर्षमिश्रित और मधुर आवाज़ें।

चहबच्चा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. पानी भरकर रखने का छोटा गड्ढा या हौज़ 2. धन गाड़ने या छिपाकर रखने का छोटा तहख़ाना 3. गंदा पानी जमा होने के लिए खोदा हुआ गड्ढा।

चहलकदमी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] धीरे-धीरे इधर-उधर चलना या टहलना; विचरण।

चहलपहल [सं-स्त्री.] 1. किसी स्थान पर किसी वजह से बहुत से लोगों का आना-जाना 2. हलचल; रौनक़; धूमधाम।

चहार (फ़ा.) [वि.] चार।

चहारदीवारी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] मकान या मैदान के चारों ओर बनी हुई दीवार; चारदीवारी; घेरा; परकोटा।

चहारुम (फ़ा.) [वि.] चहर्रूम; चौथा; चतुर्थ।

चहुँमुखी (सं.) [वि.] चारों ओर का; चारों तरफ़ से सबकुछ अपने में समाविष्ट कर लेने वाला, जैसे- चहुँमुखी प्रतिभा।

चहेता [वि.] जिसे कोई बहुत ज़्यादा चाहता हो; प्यारा; प्रिय; आत्मीय; प्रेमपात्र।

चाँईं [सं-पु.] नेपाल की एक वनवासी जाति। [वि.] ठग; चालाक; धूर्त।

चाँकना [क्रि-स.] 1. अन्न के ढेर के चारों ओर गोबर आदि से घेरा बनाना 2. निशान लगाना।

चाँचर [सं-स्त्री.] 1. होली के अवसर पर गाया जाने वाला एक राग; चाँचरि; चाँचरी 2. द्वार पर लगाने की टट्टी।

चाँटा [सं-पु.] थप्पड़; तमाचा।

चाँड़ (सं.) [सं-स्त्री.] ऊपर के भार को सँभालने के लिए नीचे लगाई गई थूनी या खंभा; छत आदि को गिरने से रोकने के लिए लगाई गई टेक।

चाँद (सं.) [सं-पु.] 1. पृथ्वी का एक उपग्रह; चंद्रमा; चंद्र 2. दूज के चाँद की आकृति जैसा गहना 3. चाँदमारी में वह गोल निशान जिसपर निशाना लगाया जाता है 4. पशुओं के माथे पर सफ़ेद रंग का गोल दाग। [सं-स्त्री.] सपाट सिर जिसपर से सारे बाल गिर गए हों; गंज। [मु.] -निकलना : बहुत दिन बाद दिखाई देना। -पर थूकना : किसी की निंदा करना या लांछन लगाना जिसका विपरीत प्रभाव स्वयं निंदक पर पड़े। -गंजी होना : बहुत मार पड़ना।

चाँदतारा [सं-स्त्री.] एक प्रकार का कनकौआ या पतंग जिसपर चाँद और तारे की आकृतियाँ बनी होती हैं।

चाँदना [सं-पु.] प्रकाश; उजाला।

चाँदनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चाँद की रोशनी; ज्योत्स्ना 2. बिछाने की बड़ी सफ़ेद चादर 3. शामियाने के ऊपर ताना जाने वाला सफ़ेद कपड़ा 4. गुलचाँदनी नामक पौधा एवं उसका फूल।

चाँदबाला [सं-पु.] कान में पहनने का एक प्रकार का आभूषण जिसका निचला भाग अर्द्धचंद्राकार होता है।

चाँदी [सं-स्त्री.] 1. एक सफ़ेद एवं मुलायम धातु जो गहने, बरतन आदि बनाने के काम आती है; रजत; रूपा; (सिल्वर) 2. एक छोटी मछली। [मु.] -काटना : ख़ूब कमाई करना या धन अर्जित करना। -होना : बहुत लाभ होना। -का जूता : रिश्वत या घूस।

चाँपना (सं.) [क्रि-स.] दबाना; चापना।

चाँयँ-चाँयँ [सं-स्त्री.] 1. चिड़ियों जैसा शोर; चहचहाहट 2. बकबक।

चांचल्य (सं.) [सं-पु.] चंचल होने की अवस्था या भाव; चपलता; चंचलता।

चांडाल (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार की जाति; मातंग 2. गाली के रूप में भी प्रयुक्त।

चांडाल चौकड़ी (सं.) [सं-पु.] 1. दुष्ट लोगों का समूह 2. शरारत या उद्दंडता करने वाले किसी दल या टोली को व्यंग्य में चांडाल चौकड़ी कहा जाता है।

चांडालिनी (सं.) [सं-स्त्री.] चांडालिन; चांडाल जाति की स्त्री।

चांडाली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चांडाल जाति की स्त्री; मातंगी 2. चांडाल की पत्नी; चांडालिनी 3. चांडाल का कार्य 4. लिंगिनी नामक लता 5. (पुराण) दुर्गा का एक रूप 6. {अशि.} एक प्रकार की गाली।

चांदनिक (सं.) [वि.] 1. चंदन का; चंदन संबंधी 2. चंदन से सुवासित 3. चंदन से होने या बनने वाला।

चांद्र (सं.) [सं-पु.] 1. चांद्रायण व्रत 2. मृगशिरा नक्षत्र 3. अदरक। [वि.] चंद्रमा संबंधी; चंद्रमा का, जैसे- चांद्र मास।

चांद्रमास (सं.) [सं-पु.] 1. वह मास या महीना जो चंद्रमा की गति के अनुसार निश्चित होता है 2. उतने दिन जितने चंद्रमा को पृथ्वी की एक बार परिक्रमा करने में लगते हैं 3. कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तक का समय।

चांद्रायण (सं.) [सं-पु.] एक मास में पूरा होने वाला व्रत; महीने भर का एक व्रत जिसमें चंद्रमा के घटने-बढ़ने के अनुसार आहार के कौर घटाने-बढ़ाने पड़ते हैं।

चांद्रायणिक (सं.) [वि.] चांद्रायण व्रत करने वाला।

चांस (इं.) [सं-स्त्री.] अवसर; मौका।

चांसलर (इं.) [सं-पु.] विश्वविद्यालय का सर्वोच्च अधिकारी; कुलाधिपति।

चाक1 (सं.) [सं-पु.] 1. मिट्टी के बरतन बनाने का उपकरण; कील पर घूमने वाली लकड़ी का वह चक्राकार ढाँचा जिसपर कुम्हार बरतन बनाते हैं 2. गाड़ी का पहिया; चरखी 3. मंडलाकार निशान 4. हथियारों पर सान तेज़ करने का चक्कर।

चाक2 (फ़ा.) [सं-पु.] 1. आस्तीन का खुला हुआ भाग 2. दरार 3. चीर।

चाक3 (तु.) [वि.] 1. चौकस; सतर्क 2. मज़बूत; दृढ़ 3. चुस्त; स्वस्थ।

चाकचौबंद (तु.) [वि.] 1. चारों ओर से ठीक एवं दुरुस्त 2. चुस्त; फुरतीला।

चाकना [क्रि-स.] 1. वृत्ताकार रेखा खींचना 2. पहचान हेतु निशान लगाना 3. चीरना।

चाकर (फ़ा.) [सं-पु.] 1. नौकर; सेवक 2. दास; भृत्य।

चाकरी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] नौकरी; सेवा; टहल।

चाकसू (सं.) [सं-पु.] 1. निर्मली या बनकुलथी का पौधा 2. उक्त पौधे का बीज जिनका चूर्ण आँखों में डाला जाता है।

चाकू (फ़ा.) [सं-पु.] फल या सब्ज़ी काटने का छोटा उपकरण; छोटी छुरी।

चाक्रिक (सं.) [सं-पु.] स्तुति गाने वाला व्यक्ति; चारण; भाट। [वि.] 1. चक्र संबंधी 2. चक्र की आकृति का 3. मंडली में होने वाला।

चाक्षुष (सं.) [सं-पु.] 1. नेत्रों से मिलने वाला ज्ञान 2. छठा मन्वंतर। [वि.] 1. आँख से संबंधित; आँख का 2. जिसे नेत्रों से देखा या जाना जा सके; चक्षु-ग्राह्य; जिनका ज्ञान या बोध नेत्रों से हो 3. दिखाई देने वाला; दृश्य; (विज़ुअल)।

चाचपुट (सं.) [सं-पु.] (संगीत) ताल का एक प्रकार।

चाचर (सं.) [सं-स्त्री.] 1. रणभूमि; युद्धभूमि 2. होली का खेल-तमाशा या हुड़दंग।

चाचरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. होली के अवसर पर गाया जाने वाला एक प्रकार का गीत; चर्चरी 2. हल्ला-गुल्ला 3. (योगशास्त्र) एक प्रकार की मुद्रा।

चाचा (सं.) [सं-पु.] 1. पिता का छोटा भाई; (अंकल) 2. पुरुषों के लिए प्रयोग किया जाने वाला सम्मानसूचक एक संबोधन।

चाची [सं-स्त्री.] चाचा की पत्नी या स्त्री; काकी; (आंटी)।

चाट [सं-स्त्री.] 1. मिर्च-मसालों से तैयार की जाने वाली चटपटी चीज़, जैसे- दही-बड़ा, गोलगप्पे आदि 2. चटपटी चीज़ खाने की कामना; चाह; चसका 3. शौक; बुरी आदत; लत 4. प्रबल इच्छा। [मु.] -लगना या पड़ना : चस्का लगना।

चाटना [क्रि-स.] 1. चटनी जैसी किसी अवलेह पदार्थ को जीभ से उठाकर खाना 2. स्वाद लेना 3. पशुओं का प्रेमपूर्वक किसी के शरीर पर लगातार जीभ फेरना 4. कीड़ों द्वारा किसी वस्तु का खा जाना 5. {ला-अ.} व्यर्थ बोलकर तंग करना।

चाटुकार (सं.) [सं-पु.] 1. ख़ुशामद करने वाला व्यक्ति; चापलूस 2. आगे-पीछे लगा रहने वाला व्यक्ति 3. सोने के तार में पिरोई हुई माला।

चाटुकारिता (सं.) [सं-स्त्री.] चाटुकार होने की अवस्था; ख़ुशामद; जी-हुज़ूरी; चापलूसी।

चाटुकारी (सं.) [सं-स्त्री.] झूठी प्रशंसा करने का काम; चापलूसी; ख़ुशामद।

चाटू (सं.) [वि.] 1. झूठी प्रशंसा; ख़ुशामद; चापलूसी 2. किसी को ठगने के लिए बोले गए मधुर वचन।

चाटूक्ति (सं.) [सं-स्त्री.] चापलूसी भरी बात; ख़ुशामद की बात।

चाणक्य (सं.) [सं-पु.] 1. अर्थशास्त्र और राजनीति के प्रसिद्ध आचार्य और चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री विष्णुगुप्त (कौटिल्य) का एक नाम 2. वह जो चणक ऋषि के वंश का हो।

चातक (सं.) [सं-पु.] 1. पपीहा या सारंग नामक पक्षी 2. रहस्य संप्रदाय में मन।

चातकानंदन (सं.) [सं-पु.] 1. बादल; मेघ 2. वर्षाकाल; बरसात।

चातर [सं-पु.] 1. मछली पकड़ने का बड़ा जाल; महाजाल 2. षड्यंत्र; साज़िश।

चातुर (सं.) [सं-पु.] 1. चार पहियों की गाड़ी 2. मसनद। [वि.] जो आँखों से दिखाई दे; दृष्टि गोचर।

चातुराश्रमिक (सं.) [वि.] चारों आश्रमों (ब्रह्मचर्य, ग्रहस्थ्य, वानप्रस्थ और संन्यास) से संबंधित।

चातुरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चतुर होने की क्रिया या भाव; चतुराई 2. होशियारी 3. दक्षता; निपुणता।

चातुर्भद्र (सं.) [सं-पु.] चारों पुरुषार्थ (अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष)।

चातुर्मासिक (सं.) [वि.] चार महीनों में होने वाला (यज्ञ, कर्म आदि)।

चातुर्मास्य (सं.) [सं-पु.] 1. चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ 2. वर्षा ऋतु के चार महीनों में होने वाला एक प्राचीन व्रत; चौमासा।

चातुर्य (सं.) [सं-पु.] चातुरी; चतुरता।

चातुर्वर्ण्य (सं.) [सं-पु.] 1. चारों वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) 2. चारों वर्णों के पालन के लिए बनाए गए नियम। [वि.] 1. चारों वर्णों में होने वाला 2. चारों वर्णों से संबंध रखने वाला।

चातुर्विद्य (सं.) [सं-पु.] चारों वेद। [वि.] चारों वेदों का ज्ञाता।

चादर (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. पहने हुए वस्त्रों के ऊपर ओढ़ने वाला कपड़ा; शॉल 2. बिस्तर या गद्दों के ऊपर बिछाया जाने वाला कपड़ा 3. लोहे पीतल आदि का पतला और चौड़ा पत्तर 4. चादर की शक्ल में गुँथे हुए फूल जो मज़ार आदि पर चढ़ाए जाते हैं।

चादरा [सं-पु.] पुरुषों के ओढ़ने-बिछाने की बड़ी चादर; मरदानी चादर।

चाप1 (सं.) [सं-पु.] 1. धनुष; कमान 2. दो खंभों या दीवारों पर आधारित चापाकार ढाँचा जिसपर छत टिकी हों; मेहराब 3. वृत की परिधि का कोई भाग; (आर्क)। [सं-स्त्री.] पैरों की आहट।

चाप2 (इं.) [सं-स्त्री.] आलू एवं बेसन की तलकर बनाई गई टिकिया।

चापट [सं-स्त्री.] 1. चोकर 2. भूसी। [वि.] समतल; चपटा।

चापड़ [सं-स्त्री.] चोकर। [वि.] 1. समतल; चपटा 2. सब तरह से बरबाद; मटियामेट; चौपट 3. जो दबकर चपटा हो गया हो।

चापना (सं.) [क्रि-स.] 1. दबाना 2. आलिंगन करते समय किसी को दबाना 3. अधिकार में करना।

चापलूस (फ़ा.) [वि.] किसी के सामने उसकी झूठी प्रशंसा कर काम निकालने वाला; चाटुकार; ख़ुशामदी।

चापलूसी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] झूठी प्रशंसा या बड़ाई; चाटुकारिता; ख़ुशामद।

चापल्य (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चंचलता; चपलता; शोखी 2. उतावलापन; अस्थिरता।

चाफंद [सं-पु.] मछली पकड़ने का जाल।

चाब1 [सं-स्त्री.] 1. चाबने की क्रिया या भाव 2. दाढ़; चौभड़।

चाब2 (सं.) [सं-स्त्री.] गजपिप्पली की जाति का एक पौधा जिसकी लकड़ी और जड़ औषधि के काम में आती है। [सं-पु.] एक प्रकार का बाँस।

चाबना (सं.) [क्रि-स.] 1. कोई कड़ी चीज़ खाते समय दाँतों से दबाना; चबाना 2. भरपेट भोजन करना 3. {ला-अ.} अनुचित रूप से किसी का धन इस्तेमाल करना।

चाबी [सं-स्त्री.] 1. कुंजी; ताली 2. किसी यंत्र का वह हिस्सा जिसे घुमाकर उसको चलते रहने लायक बनाया जाता है, जैसे- घड़ी की चाबी 3. {ला-अ.} तरकीब; युक्ति।

चाबुक (फ़ा.) [सं-पु.] 1. चमड़े या रस्सी आदि से बना कोड़ा; (हंटर) 2. {ला-अ.} किसी कार्य को करने की प्रेरणा पैदा करने वाली बात। [वि.] जिसमें फुरती हो; तेज़; चुस्त।

चाबुकदस्त (फ़ा.) [वि.] 1. निपुण; दक्ष 2. शिल्पकुशल।

चाबुक-सवार (फ़ा.) [सं-पु.] घोड़े पर सवार होकर उसे विविध प्रकार की चालें सिखाने अथवा उसकी चाल दुरुस्त करने वाला व्यक्ति।

चाम [सं-पु.] चमड़ा; खाल।

चामर (सं.) [सं-पु.] 1. चँवर; मोरछल 2. एक प्रकार का छंद।

चामरी (सं.) [सं-स्त्री.] सुरागाय; याक।

चामीकर (सं.) [सं-पु.] 1. सोना; स्वर्ण 2. कनक; धतूरा। [वि.] 1. सोने का बना हुआ; सोने जैसा 2. सोने जैसे रंग का; सुनहरा।

चामुंडा (सं.) [सं-स्त्री.] (पुराण) एक देवी जिन्होंने चंड-मुंड नामक दो दैत्यों का वध किया था; कापालिनी; भैरवी।

चाय (ची.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार का प्रसिद्ध पौधा जिसकी सुखाई गई पत्तियों को पानी, चीनी, दूध या नीबू आदि के साथ उबालकर गरम पेय तैयार किया जाता है 2. चाय की पत्तियों से बना पेय।

चायदान (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] एक प्रकार का बरतन जिसमें चाय बनाकर रखी जाती है।

चायदानी (हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] वह बरतन जिसमें चाय बनाई या बनाकर रखी जाती है।

चायपानी [सं-पु.] अतिथि स्वागत हेतु जलपान जिसमें चाय भी हो; अल्पाहार के साथ चाय।

चार (सं.) [वि.] 1. संख्या '4' का सूचक 2. {ला-अ.} कई; अनेक; कुछ; कतिपय। [मु.] -आँसू बहाना : अत्यधिक विलाप करना। -चाँद लगना : प्रतिष्ठा बढ़ जाना। -दिन का मेहमान : अल्प समय का। चारों खाने चित गिरना : पूरी तरह से पस्त होना। चारों फूटना : धर्म चक्षुओं और ज्ञान चक्षुओं का नष्ट होना। -पाई पकड़ना : गंभीर रूप से बीमार होना।

चारआईना (फ़ा.) [सं-पु.] एक प्रकार का कवच या बख़्तर जिसमें लोहे की चार पटरियाँ जुड़ी रहती है।

चारख़ाना (फ़ा.) [सं-पु.] 1. चार ख़ानों वाली कोई वस्तु 2. वह कपड़ा जिसमें धारियों के चौकोर ख़ाने पड़ते हैं।

चारजामा (फ़ा.) [सं-पु.] चमड़े या कपड़े का वह टुकड़ा जो सवारी करने से पहले घोड़े की पीठ पर कसा जाता है।

चारण (सं.) [सं-पु.] 1. मध्ययुगीन (विशेषकर राजपूताने में) राजाओं के दरबारों में उनकी वीरता आदि का गुणगान करने वाली एक जाति; भाट; वंदीजन 2. उक्त जाति का व्यक्ति 3. वंश की कीर्ति गाने वाला व्यक्ति 4. भ्रमणकारी।

चारदीवारी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. किसी मकान या स्थान के चारों ओर बनाई जाने वाली ऊँची दीवार 2. परकोटा; प्राचीर।

चारपाई [सं-स्त्री.] वह छोटा-सा पलंग जो रस्सी या निवाड़ से बुना जाता है और जिसमें चार पाए होते हैं; खटिया; खाट।

चारबाग (फ़ा.) [सं-पु.] 1. चौकोर बागीचा 2. विशाल और सुंदर उद्यान 3. ऐसा बाग या बागीचा जिसमें फलों वाले वृक्ष हों 4. ऐसा चौकोर बड़ा रूमाल जो कंधों पर फैलाकर ओढ़ा जाता है और जिसके चारों बराबर भाग अलग-अलग रंगों के और अलग-अलग प्रकार के बेल-बूटों से युक्त होते हैं।

चारयारी (हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. चार मित्रों का दोस्ताना 2. चार मित्रों की गोष्ठी या मंडली 3. मुसलमानों में सुन्नियों का एक संप्रदाय।

चारा [सं-पु.] 1. पशुओं का खाद्य पदार्थ, जैसे- घास-भूसा, डंठल आदि 2. मछली पकड़ने के लिए काँटे में लगा केंचुआ आदि 3. {ला-अ.} उपाय; विकल्प 4. {ला-अ.} किसी को फँसाने के लिए दिया जाने वाला लालच। [मु.] -फेंकना : किसी को लोभ में फँसाने का प्रयास करना।

चाराजोई (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. दूसरे से होने वाली हानि के बचाव के लिए न्यायालय या हाकिम से की जाने वाली याचना; नालिश; फ़रियाद 2. कोशिश; प्रयत्न।

चारिणी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. करुणी नामक पौधा 2. चारण जाति की स्त्री।

चारित (सं.) [वि.] 1. जो चलाया गया हो; गतिमान किया हुआ 2. भभके से उतारा या खींचा गया हो। [सं-पु.] लकड़ी चीरने का आरा।

चारितार्थ्य (सं.) [सं-पु.] चरितार्थता; चरितार्थ होने की अवस्था।

चारित्र (सं.) [सं-पु.] 1. चरित्र; चाल-चलन; सदाचार 2. शील; स्वभाव 3. किसी कुल या देश में परंपरा से चला आया हुआ आचार-व्यवहार या रीति-रिवाज।

चारित्रिक (सं.) [वि.] चरित्र से संबंधित; चरित्र का।

चारित्रिकता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चरित्र-निर्माण (चित्रण) की कला या कौशल 2. अच्छा चरित्र।

चारित्र्य (सं.) [सं-पु.] चरित्र; आचरण।

चारी (सं.) [परप्रत्य.] 1. चलने वाला; विचरण करने वाला, जैसे- व्योमचारी 2. कोई विशिष्ट आचरण करने वाला, जैसे- व्यभिचारी 3. पालन करने वाला, जैसे- ब्रह्मचारी।

चारु (सं.) [वि.] 1. सुंदर; मनोहर 2. प्रिय। [सं-पु.] 1. बृहस्पति 2. केसर; कुंकुम।

चारुता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चारु या सुंदर होने की अवस्था, गुण या भाव; सुंदरता; मनोहरता 2. प्रियता।

चारु दर्शन (सं.) [वि.] जो देखने में बहुत सुंदर हो; रूपवान।

चारु फला (सं.) [सं-स्त्री.] अंगूर की लता।

चारुशिला (सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार का रत्न।

चारुहासिनी (सं.) [सं-स्त्री.] सुंदर रूप से हँसने वाली स्त्री।

चारुहासी (सं.) [वि.] 1. जो हँसने पर सुंदर लगे 2. मनोहर मुस्कानवाला। [सं-पु.] (काव्यशास्त्र) वैताली छंद का एक भेद।

चार्ज (इं.) [सं-पु.] 1. कार्यभार; दायित्व; प्रभार; पदभार 2. किसी पर लगाया जाने वाला अभियोग; आरोप; इल्ज़ाम 3. किसी कार्य का पारिश्रमिक; शुल्क; कीमत 4. (विद्युत का) आवेश 5. अधिकार। -करना [क्रि-स.] विद्युत, सौर ऊर्जा आदि से किसी उपकरण या वस्तु को आवेशित करना।

चार्जर (इं.) [सं-पु.] 1. आवेशित करने वाला उपकरण 2. बैटरी चार्ज करने का उपकरण।

चार्जशीट (इं.) [सं-पु.] 1. अभियोग-पत्र; आरोप-पत्र 2. दायर-जुर्म 3. प्रभार-पत्र।

चार्ट (इं.) [सं-पु.] 1. तालिका; सारणी 2. रेखाचित्र; विवरणपट; (ग्राफ़; डायग्राम) 3. मानचित्र; नक्शा।

चार्टर (इं.) [सं-पु.] 1. (राजनीति) शासन या संसद द्वारा किसी कंपनी आदि को दिया गया अधिकार-पत्र; घोषणा-पत्र; सनद 2. कुछ शर्तों पर जहाज़ या बड़ी सवारी किराए से लेना या देना।

चार्म1 (सं.) [वि.] 1. चमड़े का बना हुआ 2. चर्म का; चर्म संबंधी 3. चमड़े से मढ़ा हुआ।

चार्म2 (इं.) [सं-पु.] 1. आकर्षण; सौंदर्य 2. जलवा; हुस्न 3. मनोहरता।

चार्वाक (सं.) [सं-पु.] 1. एक भौतिकवादी दर्शन के प्रवर्तक 2. एक भौतिकवादी दर्शन, जो वेदों या शास्त्रों में आस्था नहीं रखता है; लोकायत।

चाल1 (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चलने की क्रिया या गति 2. चलने का ढंग; चलन 3. व्यवहार; बरताव 4. आचरण; रीति-रिवाज 5. बनावट; ढब; ढंग 6. बाज़ी; पारी 7. छल; कपट; धूर्तता; धोखा देने वाली बात 8. ताश या शतरंज में पत्ते या मुहरे को चलना या चलने की बारी।

चाल2 (म.) [सं-पु.] इमारत या बहुत बड़ा लेकिन कम चौड़ा मकान जिसमें कई छोटे-छोटे कमरे होते हैं (मुंबई, कोलकाता आदि बड़े शहरों में)।

चालक (सं.) [सं-पु.] वह व्यक्ति जो वाहन, इंजनों आदि को चलाता हो; (ड्राइवर)। [वि.] चलाने वाला; चालित या प्रवाहित करने वाला।

चालक-मंडल (सं.) [सं-पु.] यान या इंजनों को चलाने वाला व्यक्तियों का समूह।

चाल-चलन [सं-पु.] 1. व्यक्ति के व्यवहार का ढंग 2. नैतिकता संबंधी आचरण या व्यवहार; चरित्र।

चाल-ढाल [सं-स्त्री.] 1. (किसी व्यक्ति के) चलने-फिरने का तरीक़ा; रहन-सहन का ढंग 2. ऊपरी व्यवहार; चाल-चलन; तौर-तरीका; आचरण 3. किसी वस्तु की रचना का ढंग।

चालन (सं.) [सं-पु.] 1. चलाने या चलने की क्रिया; परिचालन 2. गति; हिलना-डुलना 3. किसी वस्तु को छानने के उपरांत बचा हुआ अनुपयोगी पदार्थ; चोकर; भूसी 4. चलनी; छलनी।

चालबाज़ (हिं.+फ़ा.) [वि.] धूर्तता या चालाकी से अपना काम निकाल लेने वाला; चालें चलने वाला; छलिया।

चालबाज़ी (हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] व्यवहार में छलपूर्ण चालें चलने की क्रिया; धोखाधड़ी; कपट; धूर्तता; चालाकी; छल।

चाला [सं-पु.] 1. चलने या प्रस्थान करने की क्रिया; प्रस्थान; गमन 2. वह दिन या समय जो किसी दिशा में जाते समय शुभ समझा जाता है 3. एक प्रकार का औपचारिक कार्य जो किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद दसवें या ग्यारहवें दिन रात के समय किया जाता है 4. यात्रा का मुहूर्त 5. नववधू का प्रथम बार मायके से ससुराल या ससुराल से मायके जाना।

चालाक (फ़ा.) [वि.] 1. चालबाज़; धूर्त; छलिया 2. चतुर; होशियार; दक्ष 3. फुरतीला 4. व्यवहार-कुशल।

चालाकी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. चालबाज़ी; धूर्तता; छल 2. चतुराई; होशियारी; दक्षता 3. व्यवहार कुशलता 4. चतुराई से भरी युक्ति या तरकीब।

चालान (इं.) [सं-स्त्री.] 1. भेजे हुए माल की सूची; विवरण; बीजक 2. व्यापारिक क्षेत्र में कोई वस्तु या माल भेजने या रवाना करने की क्रिया या भाव 3. वह कागज़ जिसमें भेजे हुए माल की सूचना रहती है 4. अभियुक्त का विचार के लिए जज के पास भेजा जाना 5. यातायात नियम के उल्लंघन पर किया गया जुरमाना 6. किसी भुगतान की आधिकारिक रसीद 7. कर विभाग, सरकारी दफ़्तर आदि को किया गया नकद भुगतान या चेक जमा करने का प्रपत्र।

चालिया [वि.] चालबाज़; छलिया।

चालीस [वि.] संख्या '40' का सूचक।

चालीसवाँ [सं-पु.] मुसलमानों में मृत व्यक्ति के चालीसवें दिन का कर्म; चेहलुम का फ़ातिहा।

चालीसा [सं-स्त्री.] 1. वह पुस्तक या संकलन जिसमें चालीस छंद या पद हो, जैसे- दुर्गा चालीसा 2. चालीस चीज़ों का संकलन 3. चालीस दिन का समय; चिल्ला।

चालुक्य [सं-पु.] दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध राजवंश जिसने पाँचवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक राज्य किया था।

चालू [वि.] 1. जो काम कर रहा हो; जो चल रहा हो; चलता हुआ, जैसे- चालू घड़ी 2. जो रिवाज में हो; प्रचलित; जिसका चलन रुका न हो, जैसे- चालू प्रथा 3. जो सयाना या चालाक हो; तिकड़मी; छलिया, जैसे- चालू आदमी 4. जो नियमित हो; सक्रिय; गतिशील 5. जो वर्तमान में प्रयोग हो रहा हो।

चालूखाता [सं-पु.] बैंक का वह खाता जिसमें लेन-देन का क्रम लगातार बना रहता है और जमा रकम से भी अधिक रकम ब्याज पर उधार के रूप में लेने की सुविधा रहती है; (करंट अकाउंट)।

चाव [सं-पु.] 1. तीव्र कामना; अभिलाषा; चाह 2. प्रेम; प्रीति; अनुराग 3. रुचि; शौक 4. उत्साह; उमंग से भरी ख़ुशी। [मु.] -निकालना : अभिलाषाएँ या लालसाएँ जी भर के पूरी करना।

चावड़ी [सं-स्त्री.] 1. यात्रियों के टिकने या ठहरने का स्थान; पड़ाव 2. चट्टी।

चावल [सं-पु.] 1. धान के बीज से भूसी अलग करने पर निकलने वाला भाग, जिसकी गिनती प्रसिद्ध अनाजों में होती है 2. पकाया हुआ चावल; भात।

चाशनी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. चीनी, गुड़ या मिश्री आदि को आँच पर चढ़ाकर बनाया गया गाढ़ा घोल; शीरा 2. खाने की चीज़ से चखने के लिए निकाला गया अंश; चखने की चीज़; चास।

चाशनीगीर (फ़ा.) [सं-पु.] मध्यकाल में वह कर्मचारी जो नवाबों और बादशाहों के यहाँ उनके खाद्य पदार्थ चखकर देखने के लिए नियुक्त होता था।

चाष (सं.) [सं-पु.] 1. नीलकंठ पक्षी 2. चाहा पक्षी।

चास (फ़ा.) [सं-स्त्री.] किसी वस्तु की जाँच या परख के लिए निकाला गया भाग; चाशनी।

चासा [सं-पु.] 1. हल चलाने या जोतने वाला व्यक्ति; किसान; खेतिहर; 2. ओडिशा की एक जाति जो खेती करती है।

चाह (सं.) [सं-स्त्री.] 1. इच्छा; कामना; अभिलाषा 2. आवश्यकता; गरज़; ज़रूरत 3. आदर; कदर; पूछ 4. प्यार; प्रेम।

चाहत [सं-स्त्री.] 1. किसी को अनुराग पूर्वक चाहने की अवस्था या भाव; चाह; प्रेम; अनुराग 2. आसक्ति; आकांक्षा; इच्छा।

चाहना [क्रि-स.] 1. ऐसे कार्य की इच्छा करना जिससे सुख और संतोष मिल सकता हो 2. किसी के प्रति प्रेम, स्नेह या अनुराग का भाव होना; दुलारना 3. कोई चीज़ लेने या कोई कार्य कर देने की विनयपूर्ण प्रार्थना करना; माँगना।

चाहा1 [वि.] अभिलाषित; इच्छित; चाहा हुआ।

चाहा2 (सं.) [सं-पु.] एक ऐसा जल-पक्षी जिसका शरीर फूलदार और पीठ सुनहरी होती है। मांस खाने के उद्देश्य से इसका शिकार होता है।

चाही (फ़ा.) [सं-स्त्री.] वह ज़मीन जो कुएँ के पानी से सींची जाती हो।

चाहे [अव्य.] 1. 'यदि मन चाहे तो' का संक्षिप्त रूप, जैसे- चाहे पढ़ो या चाहे खेलो 2. (दो या अनेक में से) जो चाहते हो 3. जो कुछ हो सकता हो; वह सब या उनमें से कुछ, जैसे- चाहे जो हो, तुम सफल ज़रूर होगे।

चिंगड़ा [सं-पु.] झींगा मछली।

चिंगना [सं-पु.] 1. चूजा; मुरगी का छोटा बच्चा 2. नवजात पक्षी 3. छोटा बच्चा।

चिंगारी (सं.) [सं-स्त्री.] चिनगारी।

चिंगुड़ना [क्रि-अ.] 1. सूखने या नमी न होने से ऊपर की परत (तल) में झुर्रियाँ या शिकन पड़ जाना, जैसे- शरीर का चमड़ा चिंगुड़ना 2. तनाव या दबाव से नसों का तन जाना या सिकुड़ना 3. संकुचित होना, जैसे- कपड़ा चिंगुड़ना 4. देर तक एक ही अवस्था में रहने से अंगों का न फैलना।

चिंघाड़ (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हाथी के चीखने की आवाज़ 2. अचानक उत्तेजित होकर चिल्लाने की ध्वनि; चीत्कार।

चिंघाड़ना (सं.) [क्रि-अ.] 1. हाथी का ज़ोर से चिल्लाना या आवाज़ निकालना 2. एकाएक ज़ोर की ध्वनि या शब्द करना; चीखना; चिल्लाना।

चिंचा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. इमली 2. इमली का बीज।

चिंड (सं.) [सं-पु.] नृत्य का एक प्रकार या भेद।

चिंतक (सं.) [वि.] 1. चिंतन करने वाला; ध्यान करने वाला; विचारक 2. सोचने वाला; विचार करने वाला 3. चाहने वाला; चिंता करने वाला, जैसे- शुभचिंतक।

चिंतन (सं.) [सं-पु.] 1. गहराई से सोचने का भाव; सोचना-विचारना 2. कोई बात समझने या सोचने के लिए बार-बार किया जाने वाला उसका ध्यान; मन ही मन किया जाने वाला विवेचन; मनन 3. ध्यान; बार-बार होने वाला स्मरण।

चिंतनधारा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. विचार-मनन करने का ढंग; विचारधारा 2. चिंतन की शैली, मत या सिद्धांत।

चिंतनशील (सं.) [वि.] 1. चिंतन करने वाला 2. जिसमें विचारने की शक्ति हो; विचारशील।

चिंतनीय (सं.) [वि.] 1. चिंतन या ध्यान करने योग्य; विचारणीय 2. फ़िक्र करने योग्य; चिंता करने योग्य; शोचनीय।

चिंता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. व्यथित या विचलित करने वाली कोई भावना 2. फ़िक्र; सोच 3. किसी बात के महत्व का विचार, परवाह; बेचैनी 4. किसी विषय के संबंध में मन में बार-बार होने वाला स्मरण; चिंतन 5. (काव्यशास्त्र) काव्य में एक संचारी भाव।

चिंताकुल (सं.) [वि.] चिंता से परेशान; उद्विग्न।

चिंताग्नि (सं.) [सं-स्त्री.] चिंता रूपी आग अर्थात वह चिंता जो शरीर को क्षति पहुँचाए।

चिंताग्रस्त (सं.) [वि.] जिसे चिंता हो; चिंतित; फ़िक्रमंद; चिंता से व्याकुल; चिंताकुल।

चिंताजनक (सं.) [वि.] 1. चिंतित कर देने वाला 2. जो गंभीर या शोचनीय हो; गंभीर 3. ख़तरनाक; जोख़िमपूर्ण 4. दुखद 5. विकट; नाज़ुक।

चिंतातुर (सं.) [वि.] 1. चिंता से व्याकुल या उद्विग्न; चिंताकुल; चिंतित 2. चिंता से घबराया हुआ।

चिंतामग्न (सं.) [वि.] 1. सोच में डूबा हुआ 2. चिंता में लीन; चिंतित; चिंताकुल; चिंतातुर।

चिंतामणि (सं.) [सं-पु.] 1. एक कल्पित रत्न जो मनचाही वस्तु देने की सामर्थ्य रखता है; पारस पत्थर; मणि 2. ऐसी वस्तु या व्यक्ति या देवता जो किसी की सभी आवश्यकताओं एवं कामनाओं को तत्काल पूरा कर दे।

चिंतामय (सं.) [वि.] चिंता से आपूरित; चिंतापूर्ण।

चिंतामुक्त (सं.) [वि.] चिंता से मुक्त; बेफ़िक्र।

चिंतित (सं.) [वि.] 1. जिसे चिंता हो; चिंतायुक्त; फ़िक्रमंद; जो सोच में पड़ा हो 2. बेचैन; विकल।

चिंत्य (सं.) [वि.] 1. चिंता करने योग्य; विचारणीय; चिंतनीय 2. जिसके बारे में चिंता या फ़िक्र करना ज़रूरी हो, जैसे- देश में गाँवों की उपेक्षा एक चिंत्य विषय है 3. प्रामाणिकता, औचित्य आदि के विचार से संदिग्ध।

चिंदी [सं-स्त्री.] किसी चीज़ के छोटे-छोटे टुकड़े; धज्जी। [मु.] -चिंदी करना : किसी वस्तु को तोड़कर या काटकर टुकड़े-टुकड़े करना।

चिंपानज़ी (इं.) [सं-पु.] अफ़्रीका में पाया जाने वाला जानवर; वनमानुष।

चिक1 [सं-स्त्री.] कमर या पीठ में झटके आदि की वज़ह से अचानक से होने वाली पीड़ा।

चिक2 (तु.) [सं-स्त्री.] 1. बाँस की तीलियों आदि का बना हुआ झीना परदा; चिलमन। [सं-पु.] पशुओं को मारकर मांस बेचने वाला व्यक्ति, जिसकी दुकान पर चिक का परदा रहता है; बकरकसाब; कसाई।

चिक-चिक [सं-स्त्री.] 1. चिड़ियों के बोलने की आवाज़ 2. बंदरों के बोलने की ध्वनि 2. {ला-अ.} छोटी-सी बात पर होने वाला झगड़ा 4. {ला-अ.} बेकार की बातचीत; बकबक।

चिकटना [क्रि-अ.] 1. मैल या गंदगी जमने के कारण चिपचिपा होना 2. बहुत मैला या गंदा होना।

चिकन1 (फ़ा.) [सं-पु.] सूती कपड़े पर किया हुआ कढ़ाई का काम जो उभरा हुआ हो।

चिकन2 (इं.) [सं-पु.] मुरगे का मांस और उससे बनने वाला एक प्रकार का व्यंजन।

चिकना (सं.) [वि.] 1. तैलीय; स्निग्ध; घी या तेल लगा या मिला हुआ 2. जो छूने पर खुरदरा न लगे 3. जिसपर कोई फिसल सकता हो; फिसलन-भरा 4. जिसका ऊपरी तल रगड़कर समतल या रंदा किया गया हो; चमकीला 5. {ला-अ.} जिसका व्यवहार बनावटी हो; ख़ुशामदी; चाटुकार 6. {ला-अ.} स्वस्थ; मोटा-ताज़ा।

चिकनाई [सं-स्त्री.] 1. चिकने होने की अवस्था या भाव; चिकनापन; स्निग्धता। 2. घी, तेल आदि चिकने पदार्थ 3. {ला-अ.} मन या आचरण की सरसता।

चिकनाना [क्रि-स.] 1. चिकना करना 2. तेल या घी आदि लगाना 3. खुरदरापन दूर करना।

चिकनापन [सं-पु.] चिकना होने की अवस्था या भाव; चिकनाई; चिकनाहट।

चिकनाहट [सं-स्त्री.] चिकना होने का भाव; चिकनापन; चिकनाई।

चिकनिया [वि.] जो सदा या प्रायः तेल-फुलेल आदि लगाकर ख़ूब बना-ठना रहे; छैला; बाँका।

चिकनी-चुपड़ी [वि.] 1. जिसमें कृत्रिमता या खोखलापन हो; ख़ुशामद भरी; चाटुकारिता से युक्त, जैसे- चिकनी-चुपड़ी बातें 2. अच्छी सजावटवाली।

चिकार (सं.) [सं-पु.] 1. चीत्कार; चिल्लाहट 2. चिंघाड़।

चिकारा [सं-पु.] 1. एक तरह की सारंगी 2. हिरण की जाति का एक जानवर जिसके नेत्र बहुत सुंदर होते हैं।

चिकित्सक (सं.) [सं-पु.] चिकित्सा करने वाला; वैद्य; हकीम; (डॉक्टर)।

चिकित्सा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. बीमारी ठीक करने का उपाय; इलाज; उपचार 2. वैद्य का काम या व्यवसाय।

चिकित्साधिकारी (सं.) [सं-पु.] वह अधिकारी जो किसी राजकीय विभाग या नगर-पालिका आदि में लोगों की चिकित्सा की व्यवस्था करता हो; (मेडिकल ऑफ़िसर)।

चिकित्सालय (सं.) [सं-पु.] 1. अस्पताल 2. दवाख़ाना।

चिकित्सावकाश (सं.) [सं-पु.] वह अवकाश या छुट्टी जो किसी रोगी कर्मचारी को चिकित्सा कराने के लिए मिलती है; (मेडिकल लीव)।

चिकित्सा विज्ञान (सं.) [सं-पु.] वह विज्ञान या शास्त्र जिसमें बीमारियों के कारण, लक्षण या इलाज एवं शोध की विवेचना की जाती है; (मेडिकल साइंस)।

चिकित्सित (सं.) [वि.] जिसकी चिकित्सा अथवा जाँच हुई हो।

चिकित्स्य (सं.) [वि.] 1. जो चिकित्सा करने से अच्छा हो सके (रोग) 2. जिसकी चिकित्सा या उपाय हो सके।

चिकुर (सं.) [सं-पु.] 1. सिर के बाल; केश 2. रेंगकर चलने वाला जीव; सरीसृप 3. गिलहरी 4. बालों की लट, जुल्फ़। [वि.] चंचल; चपल।

चिकोटी [सं-स्त्री.] हाथ की उँगलियों से किसी के शरीर की त्वचा को पीड़ित करने या सचेत करने के लिए दबाना; चिकुटी।

चिक्क (सं.) [वि.] चपटी नाकवाला [सं-पु.] छछूँदर।

चिक्कचाक [वि.] चमक-दमकवाला; चटकीला; चमकीला।

चिक्कट [वि.] 1. बहुत गंदा; मैला; चिकनाहट और मैल से भरा हुआ 2. चिपचिपा; लसीला।

चिक्कण (सं.) [सं-पु.] 1. सुपारी का वृक्ष 2. उक्त वृक्ष का फल 3. हरड़; हर्र।

चिक्कस [सं-पु.] 1. जौ का आटा 2. जौ के आटे का उबटन 3. जौ के आटे से बनी हुई रोटी 4. लोहे, पीतल आदि की छड़ का बना हुआ वह अड्डा जिसपर पालतू पक्षियों को बैठाया जाता है।

चिक्कार [सं-पु.] चीत्कार; चीखना।

चिक्की [सं-स्त्री.] मसालेदार मीठी-मोटी पपड़ी।

चिखुरन [सं-स्त्री.] लगाए गए पौधों के आस-पास उग आने वाली घास।

चिखुरना [क्रि-स.] 1. पौधों या बगीचे से घास निकालना 2. निराना; जोतना।

चिखुरा [सं-पु.] नर गिलहरी।

चिखुराई (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पौधों के आस-पास उगी हुई घास को निकालना 2. चिखुरने की मज़दूरी।

चिखौना [सं-पु.] शराब आदि के साथ चखकर खाया जाने वाला चटपटा पदार्थ; चाट।

चिखौनी [सं-स्त्री.] 1. चखने या स्वाद देखने की क्रिया 2. शराब आदि के साथ खाई जाने वाली चीज़।

चिचड़ी [सं-स्त्री.] ऐसा छोटा कीड़ा जो गाय, बैल आदि के शरीर में पाया जाता है; किलनी।

चिचिंडा [सं-पु.] एक लता जिसमें गोल लंबोतरे फल लगते हैं और यह फल सब्ज़ी के काम आता है।

चिट [सं-स्त्री.] 1. कागज़ का छोटा टुकड़ा जिसपर कुछ लिखा हो; पुरज़ा; रुक्का 2. छोटा पत्र 3. कपड़े की धज्जी।

चिटकना [क्रि-अ.] 1. लकड़ी के जलते समय 'चिट-चिट' ध्वनि करते हुए चिनगारियाँ निकलना 2. सूखकर फटना 3. चिढ़ना; खीझना।

चिटकनी [सं-स्त्री.] दरवाज़े को बंद करने के लिए लोहे या पीतल का उपकरण; सिटकनी।

चिटकाना [क्रि-स.] 1. किसी चीज़ को चिटकने में प्रवृत्त करना 2. किसी व्यक्ति को चिढ़ाना या खिझाना।

चिटनवीस (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. चिट्ठी-पत्री या हिसाब-किताब लिखने वाला कर्मचारी; मुहर्रिर 2. लिपिक; लेखक।

चिटनीस [सं-पु.] दे. चिटनवीस।

चिटफ़ंड (इं.) [सं-पु.] (वाणिज्य) किसी व्यक्ति या जनसमूह (कंपनी) द्वारा किसी समझौते के तहत थोड़ा-थोड़ा करके धन जमा करने की वह व्यवस्था जिसमें एक निश्चित अंतराल के बाद धनराशि को सदस्यों में वितरित किया जाता है।

चिट्टा [सं-पु.] गोरा, सफ़ेद (गोरा-चिट्टा)।

चिट्ठा [सं-पु.] 1. वर्ष भर की लाभ-हानि का दस्तावेज़ 2. आय-व्यय का लेखा-जोखा 3. खाता 4. ऐसा कागज़ जिसपर कुछ लिखा गया हो 5. वह धन जो मज़दूरी के लिए बाँटा जाए 6. किसी काम में लगने वाले धन का ब्योरा 7. किसी बात का विस्तृत विवरण 8. सूची; फ़ेहरिस्त।

चिट्ठी [सं-स्त्री.] 1. पत्र; ख़त; पुरज़ा 2. निमंत्रण-पत्र 3. आज्ञा-पत्र; रुक्का।

चिट्ठी-पत्री [सं-स्त्री.] 1. एक स्थान से दूसरे स्थान पर आने-जाने वाला ख़त; पत्र 2. आपस में चिट्ठियाँ या पत्र भेजने-मँगाने आदि का व्यवहार; पत्र-व्यवहार; पत्राचार; (कॉरस्पॉन्डंस)।

चिट्ठीरसाँ [सं-पु.] डाकख़ाने में आई हुई चिट्ठियाँ बाँटने वाला कर्मचारी; डाकिया; (पोस्टमैन)।

चिड़चिड़ा [वि.] 1. बात-बात पर क्रुद्ध हो जाने वाला; तुनकमिजाज 2. जिसमें चिड़चिड़ापन हो। [सं-पु.] एक छोटा पक्षी।

चिड़चिड़ाना [क्रि-अ.] 1. नाराज़ होना 2. ज़रा सी बात पर चिढ़ जाना 3. चिढ़ना; झुँझलाना।

चिड़चिड़ापन [सं-पु.] 1. चिड़चिड़ाने की अवस्था 2. ज़रा-सी बात पर नाराज़ होने या बिगड़ने की आदत; तुनकमिज़ाजी।

चिड़चिड़ाहट [सं-स्त्री.] 1. चिड़चिड़ाने की क्रिया या भाव 2. झुँझलाहट; खीजने का भाव।

चिड़ा [सं-पु.] गौरैया पक्षी का नर; गौरा।

चिड़िया (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पंख और चोंच वाला पक्षी; पखेरू; उड़ने वाला जीव 2. गोरैया 3. चोली की कटोरी के बीच की सिलाई 4. ताश के पत्तों का एक रंग; चिड़ी 5. डोली या पालकी आदि को रोकने के लिए उसके डंडों के सिरों पर लगाई जाने वाली चिड़िया जैसी लकड़ी जो बैसाखी की तरह टेक या सहारा देती है 6. लहँगे या पायजामे का नेफ़ा जिसमें नाड़ा डाला जाता है।

चिड़ियाख़ाना (हिं+फ़ा.) [सं-पु.] वह स्थान जहाँ सभी प्रकार के पशु और पक्षी देखने के लिए रखे जाते हैं; चिड़ियाघर; (ज़ू)।

चिड़ियाघर [सं-पु.] वह स्थान या घर जिसमें अनेक प्रकार के पक्षी और पशु देखने के लिए रखे जाते हैं; (ज़ू)।

चिड़िहार [सं-पु.] पक्षियों का शिकार करने वाला व्यक्ति; बहेलिया।

चिड़ी [सं-स्त्री.] 1. चिड़िया; पक्षी 2. ताश के पत्ते में चिड़ी नामक आकृति का पत्ता 3. बैडमिंटन की गुड़िया।

चिड़ीमार [सं-पु.] 1. चिड़िया मारने या पकड़ने वाला; बहेलिया 2. व्यंग्य या अपशब्द के रूप में कही जाने वाली उक्ति 3. {ला-अ.} लड़कियों, महिलाओं को अपनी बातों में फाँसकर मनबहलाव करने वाला व्यक्ति।

चिढ़ [सं-स्त्री.] 1. चिढ़ने की अवस्था; खीझ; झुँझलाहट 2. नाराज़गी 3. वह बात या शब्द जिससे किसी को बुरा लगे 4. नफ़रत; घृणा।

चिढ़ना [क्रि-अ.] 1. ज़रा-सी बात पर क्रुद्ध हो जाना; खीझना; झुँझलाना 2. नाराज़ होना 3. बुरा मानना 4. द्वेष रखना 5. घृणा करना।

चिढ़वाना [क्रि-स.] किसी से चिढ़ाने का कार्य कराना।

चिढ़ाना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी को जान-बूझकर कुछ कहना जिससे वह चिढ़े या नाराज़ हो 2. नाराज़ करना; क्रुद्ध करना 3. चिढ़ पैदा करने वाली बात कहना 4. उपहास करना; नकल उतारना 5. मुँह बनाना 6. छेड़ना।

चित [वि.] पीठ के बल सीधा पड़ा हुआ; जिसका मुँह-पेट ऊपर की ओर हो। [अव्य.] पीठ के बल। [मु.] -करना : हराना।

चितकबरा (सं.) [वि.] धब्बेवाला; सफ़ेद रंग पर लाल-काले दागोंवाला; रंग-बिरंगा। [सं-पु.] उक्त प्रकार का रंग।

चितचोर [वि.] 1. चित्त या मन को चुराने वाला 2. लुभाने वाला; मोहित करने वाला 3. आकर्षक; मनोहर 4. प्यारा; प्रिय।

चित-पट [सं-पु.] 1. बाज़ी लगाकर खेला जाने वाला खेल 2. सिक्के के दो पहलू 3. कुश्ती; मल्लयुद्ध।

चितला [वि.] चितकबरा; रंग-बिरंगा।

चितवन (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी की ओर प्रेम या अनुराग से देखने या ताकने की अवस्था, भाव या ढंग 2. दृष्टि; अवलोकन; निगाह 3. कटाक्ष।

चिता (सं.) [सं-स्त्री.] लकड़ियों का वह ढेर जिसपर मृत शरीर को जलाया जाता है।

चिताना [क्रि-स.] 1. याद दिलाना 2. ज्ञानोपदेश करना 3. सावधान करना।

चिति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ढ़ेर; राशि 2. चयन; चुनाई 3. चेतना 4. अग्नि का एक वैदिक संस्कार।

चितेरा (सं.) [सं-पु.] चित्रकार; चित्र अंकित करने या बनाने वाला; मुसौवर।

चितौनी [सं-स्त्री.] 1. किसी को ताकने या देखने का भाव या ढंग; चितावनी 2. अवलोकन दृष्टि; चितवन 3. किसी की ओर प्रेम या अनुराग के साथ देखने की अवस्था 4. निगाह; नज़र।

चित्त (सं.) [सं-पु.] 1. मन; अंतःकरण 2. चितवन; दृष्टि। [वि.] 1. अनुभूत; विचारित 2. इच्छित 3. गोचर। [मु.] -चुराना : मन मोहना।-पर चढ़ना : याद आना; मन में ध्यान बना रहना। -बँटना : चित्त का एकाग्र न होना। -में बैठना : समझ में आना। -लगाना : मन लगाना; -से उतारना : भूल जाना।

चित्तभूमि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. योग के समय चित्त की भिन्न-भिन्न वृत्तियाँ 2. चित्त की सहज स्वाभाविक अवस्था। विशेष- योगशास्त्र में पाँच चित्तभूमियाँ मानी गई हैं- क्षिप्त, मूढ़, विक्षिप्त, एकाग्र और निरुद्ध। इनमें अंतिम दो चित्तभूमि योग साधना के अनुकूल मानी जाती हैं।

चित्तविक्षेप (सं.) [सं-पु.] 1. चित्त की अस्थिरता या चंचलता; उद्विग्नता 2. अनेक विषयों में भटकते रहना।

चित्तविभ्रम (सं.) [सं-पु.] 1. मन में होने वाला भ्रम या भ्रांति 2. धोखा 3. उन्माद।

चित्तवृत्ति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रवृत्ति; झुकाव 2. चित्त या मन की वह अवस्था जिससे मनुष्य विचार करता है। विशेष- पाँच मुख्य चित्तवृत्तियाँ मानी गई हैं- प्रमाण, विपर्यय (मिथ्या ज्ञान), विकल्प, निद्रा और स्मृति।

चित्तशुद्धि (सं.) [सं-स्त्री.] चित्त का निर्मल और शुद्ध होना; कुवासनाओं से रहित होना।

चित्ताकर्षक (सं.) [वि.] 1. मोहित करने या लुभाने वाला 2. जो चित्त या मन को अपनी ओर आकृष्ट करता हो।

चित्ताभोग (सं.) [सं-पु.] पूर्ण चेतनता; आसक्ति।

चित्तायुक्त (सं.) [वि.] 1. चेतनापूर्ण 2. चित्त या मन को अपनी ओर आकृष्ट करने की भावना वाला 3. चित्त से किसी कार्य में लगा हुआ।

चित्ती (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी रंग वाली वस्तु पर भिन्न रंग का चिह्न; छोटा दाग 2. रोटी पर जल जाने के कारण पड़ने वाला दाग 3. कुम्हार के चाक के किनारे का गड्ढा 4. मुनिया नामक चिड़िया।

चित्य (सं.) [सं-पु.] 1. अग्नि 2. समाधि। [वि.] 1. चयनीय 2. चिता संबंधी; चिता का।

चित्र (सं.) [सं-पु.] 1. किसी कागज़ या वस्त्र पर रेखाओं एवं रंगों से बनी किसी व्यक्ति या वस्तु की आकृति; तस्वीर 2. कैमरे की सहायता से बनाई गई किसी वस्तु या व्यक्ति की हूबहू प्रतिकृति; (फ़ोटो) 3. मन में सोचा गया या कल्पना द्वारा देखा गया रूप 4. आश्चर्यपूर्ण दृश्य।

चित्रक (सं.) [सं-पु.] 1. चीता; बाघ 2. चीता नामक वृक्ष 3. चित्रकार 4. बहादुर।

चित्र-कथा (सं.) [सं-स्त्री.] पाठकों के मनोरंजन के लिए पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित रंगीन या इकरंगी चित्रों वाली कथा; (कॉमिक)।

चित्रकला (सं.) [सं-स्त्री.] चित्र बनाने की कला; चित्रकारी; (पेंटिंग)।

चित्रकार (सं.) [सं-पु.] चित्र बनाने वाला व्यक्ति; चितेरा।

चित्रकारी [सं-स्त्री.] 1. चित्र बनाने की कला या विद्या; चित्रकला 2. बनाए हुए चित्रों का संयोजन; संकलन 3. चित्रकार का पद, काम या भाव।

चित्रकाव्य (सं.) [सं-पु.] (साहित्य) ऐसा काव्य जिसमें शब्दों और वाक्यों का ऐसा संयोजन होता है कि पूरा अर्थ एक चित्र या बिंब के रूप में मानस पटल पर उपस्थित होता है; चित्र के आकार में लिखित काव्य।

चित्रकूट (सं.) [सं-पु.] 1. (रामायण) एक प्रसिद्ध रमणीक पर्वतीय स्थान जहाँ वनवास के समय राम-लक्ष्मण और सीता ने निवास किया था 2. हिमालय की एक चोटी का नाम।

चित्रगुप्त [सं-पु.] (पुराण) चौदह यमराजों में से एक जो प्राणियों के पाप और पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले कहे गए हैं।

चित्रण (सं.) [सं-पु.] 1. चित्र बनाने की क्रिया या भाव 2. किसी घटना, व्यक्ति या वस्तु का शाब्दिक वर्णन 3. चित्र में रंग भरने का भाव।

चित्रपट (सं.) [सं-पु.] 1. सिनेमा का परदा 2. चलचित्र; सिनेमा 3. पुराने समय में वह कपड़ा, कागज़ आदि जिसपर चित्र बनाया जाता हो; चित्राधार; (ऐलबम)।

चित्र-परिचय (सं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) चित्र के विषय में उसके नीचे लिखी गई पंक्ति अथवा पंक्तियाँ; (कैप्शन)।

चित्रबर्ह [सं-पु.] 1. मोर; मयूर 2. गरुड़ के एक पुत्र का नाम।

चित्रमय (सं.) [वि.] चित्रों से भरा हुआ; सचित्र, जैसे- चित्रमय किताब।

चित्रल (सं.) [वि.] चितकबरा; चितला।

चित्रलिपि (सं.) [सं-स्त्री.] वह लिपि जिसमें अक्षरों की जगह सांकेतिक चित्रों द्वारा वस्तुओं, क्रियाओं भावों की अभिव्यक्ति की जाती है।

चित्रलेखनी (सं.) [सं-स्त्री.] चित्र अंकित करने की कलम; कूँची; तूलिका।

चित्रलेखा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चित्र बनाने की कूँची 2. (पुराण) बाणासुर नामक दैत्य के मंत्री की कन्या 3. एक प्रकार का छंद।

चित्रवत (सं.) [वि.] 1. चित्र जैसा; चित्रलिखित 2. {ला-अ.} गति रहित; स्थिर; स्तब्ध।

चित्रशीर्ष (सं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) चित्र के ऊपर दिया गया शीर्षक।

चित्रसंपादक (सं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) पत्र-पत्रिकाओं में छपने वाले चित्रों को आवश्यकतानुसार काट-छाँट कर अथवा कोई नया रूप देकर संपादित करने वाला व्यक्ति; (फ़ोटो एडीटर)।

चित्र-संपादन (सं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशनार्थ चित्रों में आवश्यक काट-छाँट करने अथवा उन्हें कोई नया रूप देने का कार्य; (फ़ोटो एडिटिंग)।

चित्रसारी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चित्रों का संग्रहालय चित्रशाला 2. विलास-भवन; रंग-महल 3. भित्ति-चित्रों से भरा भवन।

चित्रस्थ (सं.) [वि.] 1. चित्र में अंकित व्यक्ति जैसा निश्चल या स्तब्ध 2. चित्र में बनाया हुआ; चित्रलिखित।

चित्रा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (ज्योतिष) सत्ताईस नक्षत्रों में से चौदहवाँ नक्षत्र जिसमें तीन तारे हैं, इसमें गृह प्रवेश, गृहारंभ और यानों, वाहनों आदि का व्यवहार शुभ माना जाता है 2. (काव्यशास्त्र) पंद्रह अक्षरों का एक छंद, जिसमें पहले तीन नगण फिर दो यगण होते हैं 3. (काव्यशास्त्र) एक प्रकार की चौपाई जिसके प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं और अंत में एक लघु गुरु होता है।

चित्रांकन (सं.) [सं-पु.] 1. चित्र बनाना; चित्रण 2. चित्र अंकित करने या हाथ से बनाने का काम (पेंटिंग्स)।

चित्रांग (सं.) [वि.] 1. जिसके शरीर पर चित्ती या धब्बे हों 2. धारीदार। [सं-पु.] 1. चीतल नामक साँप 2. चित्रसर्प 3. ईंगुर; सिंदूर।

चित्रांगदा (सं.) [सं-स्त्री.] (महाभारत) अर्जुन की पत्नी जो मणिपुर के राजा की पुत्री थी।

चित्रांगी (सं.) [सं-स्त्री.] मँजीठ; कनखजूरा।

चित्राक्ष (सं.) [वि.] सुंदर और कलात्मक आँखोंवाला।

चित्राक्षर (सं.) [सं-पु.] चित्र के रूप में लिखा जाने वाला अक्षर।

चित्रात्मक (सं.) [वि.] चित्र के रूप में; चित्रमय; चित्रयुक्त।

चित्राधार (सं.) [सं-पु.] वह पुस्तक जिसमें अनेक प्रकार के चित्र संगृहीत किए जाते हैं; फ़ोटो आदि को सुरक्षित रखने की किताब; चित्रपट; (ऐलबम)।

चित्रालय (सं.) [सं-पु.] चित्रशाला; चित्रवीथी।

चित्रावली (सं.) [सं-स्त्री.] चित्रों के संग्रह की पंजिका; (ऐलबम)।

चित्रिणी (सं.) [सं-स्त्री.] (कामशास्त्र तथा साहित्य) चार प्रकार की नायिकाओं में से एक जो अनेक प्रकार की कलाओं और बनने-ठनने या बनाव-शृंगार में निपुण हो।

चित्रित (सं.) [वि.] 1. चित्र के रूप में उकेरा या खींचा हुआ; चित्रांकित 2. जिसे चित्र के माध्यम से दिखाया गया हो; चित्रयुक्त 3. (साहित्य) जो शब्दों के रूप में बहुत सुंदर ढंग से लिखा गया हो।

चित्रोक्ति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अलंकृत भाषा में कही गई बात; अलंकृत उक्ति 2. अलंकारयुक्त कविता।

चित्रोत्तर (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का शब्दालंकार जिसमें प्रश्न के शब्दों में ही उसका उत्तर होता है।

चित्रोत्पला (सं.) [सं-स्त्री.] (पुराण) ऋक्षपाद पर्वत से निकली हुई एक नदी।

चित्रोपम (सं.) [वि.] 1. चित्र के समान 2. (काव्यशास्त्र) शब्दों में प्रस्तुत चित्र-सा; जो चित्र के समान सजीव हो उठा हो।

चिथड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. फटा-पुराना कपड़ा; गूदड़ 2. कपड़े की धज्जी। [मु.] -लपेटना : फटे-पुराने कपड़े पहनना।

चिथाड़ना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी कपड़े के टुकड़े-टुकड़े करना; चिथड़ा कर देना; धज्जी-धज्जी करना 2. लथेड़ना 3. (किसी को) जलील करना; अपमानित करना।

चिनक [सं-स्त्री.] 1. चुनचुनाहट; खुजली 2. जलन के साथ होने वाली पीड़ा 3. चिनगारी।

चिनगारी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. आग का छोटा कण या टुकड़ा, जो जलती हुई किसी चीज़ से निकल पड़ता है; अग्निकण 2. जलते हुए कोयले या अन्य पदार्थ का बहुत छोटा टुकड़ा 3. दो कड़ी एवं ठोस वस्तुओं की रगड़ से पैदा होने वाली अग्नि 4. {ला-अ.} ऐसी बात जिसका प्रभाव आगे चलकर बहुत उग्र एवं परिवर्तनकारी हो।

चिनगी [सं-पु.] बाज़ीगरों और मदारियों के साथ रहने वाला वह छोटा लड़का जो अनेक प्रकार के खेल को दक्षता पूर्वक दिखलाता है।

चिनाब [सं-स्त्री.] पंजाब की पाँच प्रधान नदियों में से एक; चंद्रभागा नदी।

चिनार [सं-पु.] एक प्रकार का बड़ा वृक्ष।

चिन्मय (सं.) [वि.] चेतनासंपन्न; पूर्ण ज्ञानमय; ज्ञानस्वरूप।

चिप (इं.) [सं-पु.] 1. सिलिकॉन का बना हुआ एक छोटा-सा टुकड़ा या उपकरण जिसका उपयोग कंप्यूटर, मोबाइल आदि इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों में होता है 2. सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिक परिपथ 3. टुकड़ा।

चिपकना [क्रि-अ.] 1. गोंद जैसे किसी लसदार पदार्थ से किसी वस्तु का दूसरी वस्तु से सटना या मिलना 2. लिपटना 3. {ला-अ.} व्यक्तियों का आपस में सटकर बैठना; आलिंगन करना।

चिपकाना (सं.) [क्रि-स.] 1. गोंद आदि की सहायता से दो चीज़ों को आपस में जोड़ देना 2. किसी चीज़ को स्थान विशेष पर किसी अन्य पदार्थ की सहायता से स्थिर कर देना 3. गले लगाना; लिपटाना 4. किसी को काम-धंधे या रोज़गार से जोड़ना।

चिपकाव [सं-पु.] चिपकी हुई अवस्था; जोड़।

चिपकू [वि.] 1. चिपकने वाला; जो आगे-पीछे लगा रहे 2. पीछा न छोड़ने वाला।

चिपचिपा [वि.] 1. जो चिपकता हो; चिपकने वाला 2. जो गाढ़ा और लसीला हो।

चिपचिपाना [क्रि-अ.] लसदार होना; चिपचिपा होना। [क्रि-स.] किसी चीज़ को चिपचिपा या लसदार करना।

चिपटना [क्रि-अ.] 1. जुड़ना; पकड़ना 2. किसी का गले या छाती से लग जाना; चिपकना 3. मिल जाना; लग जाना; सट जाना 4. किसी के पीछे पड़ जाना 5. गुँथना; लिपटना।

चिपटा (सं.) [वि.] 1. जो उभरा हुआ न हो 2. जिसकी सतह उठी हुई न हो; जिसकी सतह बहुत कुछ दबी हुई या सम हो 3. बैठा या धँसा हुआ।

चिपटाना (सं.) [क्रि-स.] 1. सटाना; चिपकाना 2. आलिंगन करना; लिपटाना।

चिपड़ा [वि.] जिसकी आँख में अधिक चीपड़ या कीचड़ रहता हो। [सं-पु.] कंडा; गोंइठा; उपला।

चिप्पड़ [सं-पु.] लकड़ी, पत्थर आदि का छोटा टुकड़ा; खपच्ची; अपखंड।

चिप्पी [सं-स्त्री.] 1. लकड़ी, धातु आदि का छोटा चपटा टुकड़ा 2. कंडा; उपली 3. अन्न तौलने का बटखरा 4. कागज़ का छोटा टुकड़ा जो कहीं चिपका दिया जाए।

चिबुक (सं.) [सं-पु.] ठुड्डी।

चिमटना [क्रि-अ.] 1. चिपकना 2. किसी जीव का दूसरे जीव या पदार्थ को अच्छी तरह पकड़कर उसके साथ सटना; लिपटना 3. बहुत बुरी तरह से किसी के पीछे पड़ना और जल्दी उसका पिंड न छोड़ना।

चिमटा [सं-पु.] 1. गरम या जलते हुए कोयले आदि को पकड़ने का उपकरण; दस्तपनाह 2. साँप पकड़ने का उपकरण 3. चिमटे जैसा एक वाद्य-यंत्र। [मु.] -गाड़ना : अधिकार कर लेना; कब्ज़ा कर लेना।

चिमटाना [क्रि-स.] 1. चिपकाना; लिपटाना 2. आलिंगन करना; गले लगाना।

चिमटी [सं-स्त्री.] 1. छोटा चिमटा 2. सौंदर्य प्रसाधन का एक उपकरण जो बालों में लगाया जाता है; (क्लिप)।

चिमनी (इं.) [सं-स्त्री.] 1. मकान या रसोई में धुआँ निकलने का आला; धुआँला 2. कारख़ानों में सीमेंट, लोहा अथवा स्टील आदि का बनाया गया बहुत ऊँचा मोटा पाइप जिससे धुआँ निकलता है 3. लैंप या लालटेन में लगाया जाने वाला काँच।

चियर्स (इं.) [सं-पु.] 1. आनंद; प्रसन्नता 2. प्रोत्साहन 3. सलामती का जाम 4. शराब का जाम भरकर हाथ उठाकर एक-दूसरे के लिए किया जाने वाला उत्साहपरक शब्द।

चिर (सं.) [वि.] जो बहुत दिनों से हो; बहुत दिनों तक चलता रहे; दीर्घ कालव्यापी। [क्रि.वि.] 1. बहुत दिनों तक; बहुत समय तक, जैसे- चिरायु 2. सदा; हमेशा।

चिरंजीव (सं.) [अव्य.] छोटों के लिए आशीर्वाद के रूप में प्रयुक्त होने वाला संबोधन, जिसका अर्थ होता है- बहुत दिनों तक जीवित रहो। [सं-पु.] पुत्र; बेटा।

चिरंजीवी (सं.) [वि.] चिरजीवी; बहुत दिनों तक जीवित रहने वाला।

चिरंतन (सं.) [वि.] 1. बहुत दिनों से चला आने वाला; पुरातन 2. प्राचीन; पुराना।

चिरकना [क्रि-अ.] एकाएक थोड़ा-सा या कई बार थोड़ा-थोड़ा पाख़ाना करना।

चिरकाल (सं.) [सं-पु.] दीर्घकाल; लंबा अरसा; बहुत समय। [अव्य.] बहुत दिनों से; बहुत दिनों तक।

चिरकालिक (सं.) [वि.] 1. जो बहुत दिनों से चला आ रहा हो 2. बहुत दिनों तक बना रहने वाला 3. जीर्ण; पुराना।

चिरकुट (सं.) [सं-पु.] 1. बहुत फटा हुआ कपड़ा; चिथड़ा 2. {ला-अ.} तुच्छ और हीन व्यक्ति।

चिरगामी (सं.) [सं-पु.] बहुत दिनों तक चलने या बना रहने वाला।

चिरजीवक [सं-पु.] जीवक नामक पेड़। [वि.] चिरजीवी; बहुत दिनों तक जीवित रहने वाला।

चिरजीवी (सं.) [वि.] 1. दीर्घ काल तक जीवित रहने वाला; दीर्घजीवी 2. जिसकी आयु लंबी हो।

चिरना [क्रि-अ.] 1. लकीर के रूप में घाव होना 2. सीधा कट जाना 3. फटना।

चिरनिद्रा (सं.) [सं-स्त्री.] कभी न समाप्त होने वाली नींद अर्थात मृत्यु या मौत।

चिरपरिचित (सं.) [वि.] 1. जिससे पुराना परिचय हो; बहुत गहरी जान-पहचानवाला 2. जाना-पहचाना हुआ।

चिरपाकी (सं.) [वि.] 1. बहुत देर में पकने वाला 2. बहुत देर में पचने वाला।

चिरप्रसिद्ध (सं.) [वि.] जो बहुत दिनों से प्रसिद्ध या मशहूर हो।

चिरम (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की जंगली बेल जिसमें लाल-लाल रंग के छोटे-छोटे बीज होते हैं 2. उक्त बेल के बीज 3. गुंजा; घुँघची।

चिररोगी [वि.] 1. सदा बीमार (रोगी) बना रहने वाला 2. जो बहुत दिनों से बीमार हो।

चिरवाई [सं-स्त्री.] 1. चिरवाने का काम 2. चिरवाने की मज़दूरी 3. पानी बरसने के बाद की पहली जुताई।

चिरवाना [क्रि-स.] (चीरना क्रिया का द्वितीय प्रेरणार्थक रूप) चीरने का काम कराना।

चिरशत्रु [वि.] 1. पुराना दुश्मन 2. हमेशा शत्रु बना रहने वाला।

चिरशांति [सं-स्त्री.] 1. लंबे समय तक बनी रहने वाली शांति; स्थायी शांति 2. मृत्यु।

चिरसंगिनी (सं.) [सं-स्त्री.] सदा की साथी; सदैव साथ में रहने वाली; जीवन संगिनी; पत्नी।

चिरसुप्त (सं.) [वि.] बहुत समय से सोई हुई; दबी हुई, जैसे- पलाश की ज्वाला में मानो उसकी चिरसुप्त कामनाएँ सुलग उठी थीं।

चिरस्थ (सं.) [वि.] चिरस्थायी; बहुत दिनों तक बना रहने वाला।

चिरस्थायी (सं.) [वि.] 1. हमेशा रहने वाला; शाश्वत 2. लंबे समय तक रहने वाला; टिकाऊ।

चिरस्मरणीय (सं.) [वि.] 1. जो जल्दी भुलाया या भूला न जा सके 2. जिसे लोग बहुत दिनों तक याद करते रहें; सदा याद किया जाने वाला।

चिराई [सं-स्त्री.] 1. चीरने की क्रिया 2. कोई वस्तु चीरने की मज़दूरी।

चिराग (फ़ा.) [सं-पु.] 1. दीपक; दिया; (लैंप) 2. {ला-अ.} बेटा।

चिरागदान (फ़ा.+हिं.) [सं-पु.] दीपाधार; दीवट; दीयट; शमादान; वह आधार जिसपर दीया रखा जाता है।

चिरागी [सं-स्त्री.] 1. दीया-बत्ती का ख़र्च 2. मज़ार पर दिया जलाने वाले को दी जाने वाली भेंट 3. जुए के अड्डे पर दिया जलाने वाले को दिया जाने वाला पैसा।

चिराना [क्रि-स.] किसी से चीरने का काम करवाना।

चिरायंध (सं.) [सं-स्त्री.] ऐसी दुर्गंध जो चमड़े या मांस आदि के जलने से फैलती है; चिराँदा।

चिरायता (सं.) [सं-पु.] कड़वे स्वाद का छोटा पौधा जो दवा के काम आता है।

चिरायु (सं.) [वि.] जिसकी उम्र लंबी हो; बड़ी आयुवाला; दीर्घायु; चिरजीवी।

चिराव [सं-पु.] 1. चीरने का भाव 2. चीरे जाने के कारण होने वाला घाव; चीरा।

चिरैया [सं-स्त्री.] 1. चिड़िया; पक्षी 2. पुष्य नक्षत्र परिहत का सिरा।

चिरौंजी [सं-स्त्री.] पियाल के बीज की गिरी जो मेवों में गिनी जाती है।

चिरौंटा [सं-पु.] चिड़िया का बच्चा।

चिरौरी (सं.) [सं-स्त्री.] दीनता के साथ की जाने वाली प्रार्थना; विनती; मिन्नत।

चिर्क (फ़ा.) [सं-पु.] 1. गंदगी 2. मल; गू 3. पीव; मवाद।

चिलक [सं-स्त्री.] 1. चमक या कांति 2. एकाएक दिखने वाला बिजली जैसा प्रकाश 3. हड्डियों आदि में सहसा होने वाली पीड़ा; टीस।

चिलकना [क्रि-अ.] 1. चमकना 2. टीसना; चीखना 3. चमचमाना 4. चिलक मारना।

चिलगोज़ा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. चीड़ या सनोबर का फल 2. एक प्रकार का मेवा।

चिलचिल [सं-स्त्री.] 1. बुलबुल के आकार की एक चिड़िया 2. अभ्रक; अबरक; भोंडल।

चिलचिलाना [क्रि-अ.] 1. चमकना 2. तीखे प्रकार से युक्त होना।

चिलड़ा [सं-पु.] रोटी के आकार का एक व्यंजन; चीला।

चिलता (फ़ा.) [सं-पु.] एक प्रकार का कवच या बख़्तर।

चिलबाँस [सं-पु.] चिड़िया फँसाने का एक फंदा।

चिलबिल [सं-पु.] 1. एक प्रकार का जंगली वृक्ष 2. एक बरसाती पौधा।

चिलबिला (सं.) [वि.] चंचल; शरारती; नटखट; चपल।

चिलबिल्ला (सं.) [वि.] चंचल; शरारती; नटखट; चपल; शोख।

चिलम (फ़ा.) [सं-स्त्री.] हुक्के के ऊपर रखा जाने वाला मिट्टी का नलीदार पात्र जिसमें तंबाकू रखकर तथा अँगारों से सुलगाकर पीते हैं; गाँजा और चरस पीने का पात्र।

चिलमचट [वि.] तंबाकू का अधिक सेवन करने वाला।

चिलमची (फ़ा.) [सं-स्त्री.] चौड़े मुँह का बरतन जिसमें हाथ-मुँह धोते हैं।

चिलमन (फ़ा.) [सं-पु.] एक प्रकार का परदा जो बाँस की तीलियों से बनाया जाता है; चिक।

चिलमिलिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. खद्योत; जुगनू 2. एक प्रकार की माला या कंठी 3. विद्युत; बिजली।

चिल्लड़ [सं-पु.] जूँ जैसा एक कीड़ा जो गंदे कपड़ों में होता है; चीलर।

चिल्लपों [सं-स्त्री.] चीख-पुकार; आर्तनाद; शोर-गुल; चिल्लाहट।

चिल्लर [सं-पु.] 1. रेज़गारी; बहुत सारे सिक्के 2. बख़्शीश 3. {ला-अ.} फालतू या बेकार व्यक्ति।

चिल्लवाना [क्रि-स.] 1. किसी को चिल्लाने में प्रवृत्त करना 2. चिल्लाने के लिए विवश करना।

चिल्ला1 [सं-पु.] 1. धनुष की डोरी; प्रत्यंचा 2. चने, मूँग आदि की घी या तेल लगाकर सेकी गई रोटी; उलटा; चीला 3. एक प्रकार का जंगली पेड़ 4. पगड़ी का सिरा जिसपर कलाबत्तू का काम हुआ हो।

चिल्ला2 (फ़ा.) [सं-पु.] 1. चालीस दिनों का काल 2. चालीस दिनों का व्रत; अनुष्ठान।

चिल्लाना [क्रि-अ.] 1. चीखना; ज़ोर से बोलना 2. शोर करना; हल्ला करना।

चिल्लाहट [सं-स्त्री.] 1. चिल्लाने की क्रिया 2. शोर-शराबा; हो-हल्ला।

चिल्लिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. झींगुर 2. झिल्ली नामक कीड़ा 3. छोटी पत्तियों का बथुआ नामक साग 4. दोनों भौंहों के बीच का स्थान।

चिल्ली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. झिल्ली नाम का कीड़ा 2. झींगुर 3. बथुआ का शाक।

चिवड़ा [सं-पु.] धान को भून और कूटकर बनाया हुआ चपटा दाना; चिउड़ा; चूड़ा।

चिविट (सं.) [सं-पु.] भिगोए हुए धान को भून और कूटकर चपटा किया हुआ एक खाद्य पदार्थ; चिड़वा।

चिहुँकना (सं.) [क्रि-अ.] 1. चौंकना 2. बिदकना 3. भड़कना 4. अचानक किसी ध्वनि या आहट सुनकर उत्तेजित या विकल हो जाना।

चिहुँटना [क्रि-स.] 1. चिकोटी काटना 2. मर्मांतक पीड़ा पहुँचाना 3. लिपटना 4. दबोच लेना।

चिह्न (सं.) [सं-पु.] 1. निशान; छाप 2. पहचान; लक्षण; दाग; धब्बा 3. झंडा; पताका 4. निशानी; कोई वस्तु या भेंट जिसे देखकर उससे जुड़ी बातें या कोई घटना याद आ जाए।

चिह्नांकन [सं-पु.] 1. चिह्न बनाने या लगाने का काम 2. किसी रचना, वाक्य, प्रस्तर आदि में विराम-चिह्न लगाना।

चिह्नांकित (सं.) [वि.] चिह्नित किया हुआ; निशान लगाया हुआ।

चिह्नित (सं.) [वि.] 1. जिसपर चिह्न या निशान लगा हो; चिह्नयुक्त; अंकित 2. लक्षित 3. जिस वस्तु या व्यक्ति के नाम पर निश्चय करके निशान लगा दिया गया हो।

चीं-चपड़ [सं-स्त्री.] 1. कार्य या शब्द द्वारा हलका विरोध; विरोध में कुछ बोलना 2. हलका विरोध का भाव।

चीं-चीं [सं-स्त्री.] 1. 'चीं-चीं' की ध्वनि 2. छोटी चिड़ियों की 'चीं-चीं' की आवाज़।

चींटा [सं-पु.] एक कीड़ा; नर पिपीलिका।

चींटी [सं-स्त्री.] एक छोटा कीड़ा जो मीठे की गंध मात्र से उसके पास आ जाता है; पिपीलिका।

चीकट [वि.] 1. जिसपर चिकनाईयुक्त मैल हो 2. बहुत मैला। [सं-पु.] 1. तेल का मैल 2. लसदार मिट्टी; सलार 3. चिकनाई के साथ मैल लगा कपड़ा 4. कीचड़।

चीकू [सं-पु.] एक प्रकार का गूदेदार मीठा फल जो महोगनी नामक वृक्ष में फलता है; गुडालू।

चीख (सं.) [सं-स्त्री.] 1. भय अथवा क्रोध में तेज़ चिल्लाने की आवाज़; चिल्लाहट; हृदय-विदारक चीत्कार 2. तेज़ और कर्कश आवाज़।

चीखना (सं.) [क्रि-अ.] 1. ज़ोर से चिल्लाना; शोर मचाना 2. क्रोध में तेज़ बोलना।

चीख-पुकार [सं-स्त्री.] शोर मचाकर या चिल्ला-चिल्लाकर की जाने वाली फ़रियाद; शोर-गुल।

चीखुर [वि.] गिलहरी।

चीज़ (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. वस्तु; पदार्थ; द्रव्य 2. व्यवहार में आने वाला सामान 3. अत्यंत महत्व की वस्तु; विलक्षण बात; काम 4. आभूषण; गहना 5. विचारणीय तथ्य 6. कला और साहित्य की वस्तु (रचना)।

चीज़-केक (इं.) [सं-पु.] 1. चीज़ और क्रीम से बना स्वादिष्ट केक 2. (नाटक, फ़िल्म) बहुत बनावटी और भड़कीला मेकअप।

चीड़ (सं.) [सं-पु.] 1. पहाड़ी प्रदेशों में पाया जाने वाला एक सुंदर सदाबहार पेड़ जो गंधद्रव्य माना जाता है तथा इसका तना बहुत लंबा होता जिसकी लकड़ी संदूक आदि बनाने के काम आती है 2. एक प्रकार का देशी लोहा।

चीड़ा [सं-पु.] काँच की बनी हुई छोटी गुरिया या मनका।

चीतल (सं.) [सं-पु.] 1. वह प्रसिद्ध हिरन या बारहसिंघा; जिसकी खाल पर सफ़ेद चित्तियाँ होती हैं 2. चित्तीदार अजगर साँप 3. एक पुराना सिक्का।

चीता [सं-पु.] 1. शेर या बिल्ली की प्रजाति का एक हिंसक जंगली पशु जिसके शरीर पर काली-पीली धारियाँ होती है और गरदन पर बाल नहीं होते हैं 2. छोटी डालियों वाला एक छोटा वृक्ष जिसकी जड़ और छाल दवा के काम आती है।

चीत्कार (सं.) [सं-पु.] 1. तेज़ आवाज़ में चिल्लाना; घोर दुख में निकलने वाली चीख; चिल्लाहट 2. चिंघाड़; कराह 3. हल्ला; शोर-गुल।

चीथना [क्रि-स.] दाँतों से फाड़ना; टुकड़े-टुकड़े करना; धज्जी-धज्जी करना; क्षत-विक्षत कर देना।

चीनांशुक (सं.) [सं-पु.] चीन में बनने या चीन से आयातित रेशमी कपड़ा; एक प्रकार का लाल ऊनी कपड़ा जो पहले चीन से आता था।

चीनी1 [सं-स्त्री.] गन्ने के रस, चुकंदर आदि से बनाया जाने वाला एक दानेदार सफ़ेद रंग का मीठा पदार्थ; शक्कर; खाँड़।

चीनी2 (ची.) [सं-स्त्री.] चीन देश की भाषा। [सं-पु.] चीन में रहने वाला व्यक्ति। [वि.] चीन संबंधी; चीन का।

चीनी मिट्टी [सं-स्त्री.] पकाई हुई सफ़ेद मिट्टी जिससे बरतन, खिलौने आदि बनते हैं।

चीप1 [सं-स्त्री.] 1. एक बार कुदाल या फावड़ा चलाने से निकलने वाला मिट्टी का खंड 2. एक उपकरण जो जूते बनाने के लिए मोची उपयोग करते हैं।

चीप2 (इं.) [वि.] 1. अल्प-मूल्य; सस्ता 2. घटिया 3. लिजलिजे स्वभाव वाला; चिरकुट 4. अव्यवहारिक।

चीपड़ [सं-पु.] आँख का कीचड़ या आँख से निकलने वाला सफ़ेद रंग का लसदार मैल।

चीफ़ (इं.) [सं-पु.] 1. अधिकारी; मुखिया; नायक 2. अध्यक्ष; मालिक; राजा 3. जाति या समुदाय विशेष का नेता। [वि.] प्रधान; मुख्य।

चीफ़गेस्ट (इं.) [सं-पु.] मुख्य अतिथि; सर्वोच्च अतिथि।

चीमड़ [वि.] 1. जो चमड़े की तरह कड़ी हो और लचीली न हो (वस्तु) 2. जो किसी के पीछे इस कदर पड़ा हो कि पिंड न छोड़ता हो 3. जो बिना टूटे या खींचे मोड़ा जा सके। [सं-पु.] एक पौधा जिसके बीज औषधि के काम आते हैं; चाकसू।

चीर (सं.) [सं-पु.] 1. छोटा वस्त्र खंड 2. पट्टी; धज्जी 3. कपड़ा; वस्त्र 4. बौद्ध भिक्षुओं का पहनावा 5. पेड़ की छाल 6. गाय का थन 7. लकीर; रेखा। [सं-स्त्री.] 1. चीरने की क्रिया या भाव 2. कुश्ती का एक दाँव।

चीरक (सं.) [सं-पु.] 1. कागज़ के टुकड़े पर की गई सार्वजनिक घोषणा 2. लिखने की शैली या एक ढंग 3. गोलाकार लपेटा हुआ लंबा कागज़; खर्रा।

चीरघर [सं-पु.] वह स्थान जहाँ दुर्घटनाओं आदि से मरने वालों के शव की चीर-फाड़ होता है; (मॉरचुअरी)।

चीरना [क्रि-स.] 1. फाड़ना (लकड़ी, कागज़, कपड़ा आदि को); टुकड़े करना 2. तेज़ धार वाले हथियार से विभक्त या विदीर्ण करना।

चीर-फाड़ [सं-स्त्री.] 1. चीरने-फाड़ने का कार्य 2. फोड़े आदि में चीरा लगाने की क्रिया; शल्यक्रिया; जर्राही।

चीर-हरण (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) कृष्ण की बाल लीला के अंतर्गत गोपियों के वस्त्रों को चुरा लेने की कथा 2. कपड़ों को ज़बरदस्ती उतारकर नंगा करने की क्रिया 3. (महाभारत) पांडवों की सभा में दुःशासन द्वारा द्रोपदी की साड़ी खींचकर उसे बेइज्ज़त करने का वृतांत।

चीरा [सं-पु.] 1. फोड़े आदि को चीरने के बाद बना हुआ निशान 2. चीरने की क्रिया या भाव 3. पगड़ी बनाने के काम आने वाला लहरियादार या धारीदार कपड़ा 4. गाँव की सीमा सूचक खंभा या पत्थर।

चीराबंदी [सं-स्त्री.] 1. चीरा या घाव को बाँधने की क्रिया या भाव 2. एक प्रकार की कढ़ाई जो पगड़ी बनाने के लिए ताश के कपड़े पर कारचोबी के साथ की जाती है।

चीरि [सं-स्त्री.] आँख पर बाँधी जाने वाली पट्टी।

चीरी (सं.) [सं-पु.] 1. झींगुर; झिल्ली 2. एक प्रकार की छोटी मछली। [सं-स्त्री.] चिट्ठी; पत्र। [वि.] चिथड़े लपेटने वाला; वल्कलधारी।

चीर्ण (सं.) [वि.] 1. चीरा-फाड़ा हुआ 2. संपादित।

चील (सं.) [सं-स्त्री.] बाज़ या गिद्ध की जाति का एक बड़ा पक्षी, जो तेज़ उड़ता है और झपट्टा मारकर शिकार करता है।

चील-झपट्टा [सं-पु.] 1. किसी चीज़ को चील की तरह झपट्टा मारकर छीनना 2. बच्चों का एक प्रकार का खेल।

चीलर [सं-पु.] जूँ के आकार का एक कीड़ा।

चीला [सं-पु.] 1. आटे या बेसन के घोल से बनाया गया मीठा या नमकीन पकवान; चिल्ला; उलटा।

चीवर (सं.) [सं-पु.] 1. पहनावा; वस्त्र 2. योगियों या भिक्षुओं के पहनने का वस्त्र या आवरण।

चीवरी (सं.) [सं-पु.] चीवर पहनने वाला व्यक्ति अर्थात साधु।

चीस [सं-स्त्री.] 1. पीड़ा; टीस 2. चीख।

चुँदरी [सं-स्त्री.] ओढ़ने का छोटा कपड़ा; ओढ़नी; दुपट्टा; चुनरी।

चुंगी [सं-स्त्री.] 1. बाहरी माल पर लगने वाला कर; माल बेचने वालों से लिया जाने वाला कर या महसूल 2. बाज़ार में जिस जगह पर कर वसूल किया जाता है 3. चुटकी या चंगुल भर चीज़।

चुंगीख़ाना (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] वह दफ़्तर जहाँ चुंगी वसूल की जाती है; चुंगीघर।

चुंदी [सं-स्त्री.] 1. चुटिया; चोटी; शिखा 2. कुटनी 3. दूती।

चुंधा [वि.] 1. जिसे कुछ दिखाई न देता हो; अंधा; क्षीण दृष्टि का 2. अपेक्षाकृत छोटी आँखोंवाला।

चुंबक (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार की धातु जो लोहे के टुकड़े को अपनी ओर खींचती है 2. {ला-अ.} चुंबन करने वाला।

चुंबकत्व (सं.) [सं-पु.] 1. चुंबक पत्थर का गुण या भाव 2. पदार्थ की आकर्षण शक्ति।

चुंबकीय (सं.) [वि.] 1. जिसमें चुंबक या उसके समान गुण हो 2. चुंबक संबंधी।

चुंबन (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चूमना; चुम्मा; बोसा 2. स्पर्श।

चुंबी (सं.) [वि.] 1. चुंबन करने वाला; चूमने वाला 2. छूने वाला, जैसे- गगनचुंबी।

चुआई [सं-स्त्री.] 1. चुआने अथवा टपकाने की क्रिया 2. चुआने की मज़दूरी।

चुआना [क्रि-स.] 1. टपकाना 2. बूँद-बूँद गिराना 3. भभके आदि की सहायता से अर्क, आसव आदि तैयार करना।

चुकंदर (फ़ा.) [सं-पु.] शलजम की तरह का एक मीठा गोलाकार कंद जो सलाद के काम आता है एवं जिसके रस से चीनी भी बनती है।

चुकता [वि.] 1. चुकाया हुआ 2. लेन-देन पूरा किया हुआ।

चुकना [क्रि-अ.] 1. समाप्त होना; बाकी न रहना 2. अदा कर दिया जाना। [वि.] चूकने वाला; भुलक्कड़।

चुकवाना [क्रि-स.] 1. दिलवाना 2. अदा करवाना।

चुकाना [क्रि-स.] 1. चुकता करना 2. धन या ऋण आदि वापस करना 3. निपटाना 4. तय करना 5. अदा करना।

चुक्कड़ [सं-पु.] कुल्हड़; पुरवा; मिट्टी का पकाया गया छोटा बरतन जिसमें चाय, पानी आदि पिया जाता है।

चुगद (फ़ा.) [सं-पु.] 1. उल्लू; उलूक 2. उल्लू की एक छोटी प्रजाति 3. डुंडुल नामक पक्षी। [वि.] महामूर्ख; बहुत बड़ा बेवकूफ़।

चुगना (सं.) [क्रि-स.] 1. पक्षियों का चोंच से चुन-चुनकर एक-एक करके कीड़े-मकोड़े या दाने उठा-उठाकर खाना 2. बहुत थोड़ा-थोड़ा खाना।

चुगल (अ.) [सं-पु.] चिलम पीते समय चिलम के छेद पर रखा जाने वाला कंकड़ या गिट्टक [वि.] मुख़बिर।

चुगलख़ोर (अ.) [वि.] 1. चुगली खाने वाला; शिकायत करने वाला 2. लुतरा; पीठ पीछे निंदा करने वाला।

चुगलख़ोरी (अ.) [सं-स्त्री.] चुगली या बुराई करने की क्रिया या भाव; चुगली का काम।

चुगली (फ़ा.) [सं-स्त्री.] किसी के पीठ पीछे की हुई निंदा; शिकायत; बुराई। [मु.] -करना : पीठ पीछे निंदा या बुराई करना।

चुगा (सं.) [सं-पु.] 1. चिड़ियों के आगे डाले जाने वाले अनाज के दाने 2. चिड़ियों के द्वारा अपने बच्चों को चोंच के माध्यम से दिया जाने वाला चारा या दाना।

चुगाना [क्रि-स.] पक्षियों को दाना खिलाना; चिड़ियों को दाना चुनने में प्रवृत्त करना।

चुग्गा [सं-पु.] पक्षियों को खिलाने हेतु अनाज का दाना; चुगा।

चुचकना [क्रि-अ.] 1. सूखकर सिकुड़ना 2. अंदर की हवा या किसी भी पदार्थ के बाहर निकल जाने से एकदम पिचक जाना 3. पिचकना 4. मुरझाना।

चुचुआना [क्रि-अ.] 1. छप्पर आदि से पानी का टपकना 2. फूटे हुए घड़े से पानी गिरना।

चुटकना [क्रि-स.] 1. चाबुक मारना 2. चुटकी से पकड़कर उखाड़ना या तोड़ना 3. चिकोटी काटना 4. साँप का किसी को काटना 5. 'चुट-चुट' शब्द करना।

चुटका [सं-पु.] 1. बड़ी चुटकी 2. चुटकीभर चीज़।

चुटकी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अँगूठे और तर्जनी के सिरे को मिलाने से बनी हुई मुद्रा 2. किसी चीज़ को पकड़ने या उठाने के लिए अँगूठे और तर्जनी को मिलाना; चुटकी में पकड़ी गई चीज़, जैसे- एक चुटकी नमक 3. मध्यमा तथा अँगूठे को छटकाकर ध्वनि निकालना, जैसे- चुटकी बजाना 4. किसी के शरीर की खाल को भींचना; चिकोटी 5. पाँव की उँगलियों में पहनने का गहना 6. भिखारी को दिया जाने वाला मुठ्ठी भर आटा 7. वह गाँठ जो कपड़े में रंग न चढ़ने देने के लिए लगाई जाती है 8. कागज़ आदि को पकड़ कर रखने का क्लिप। [मु.] -माँगना : भिक्षा माँगना। -लेना : उपहास करना; हँसी उड़ाना। -भरना : चुभती हुई बात करना।

चुटकीला [वि.] मज़ाक भरा; विनोद भरा।

चुटकुला [सं-पु.] 1. हँसी-विनोद की कोई बढ़िया और मज़ेदार बात 2. छोटी-सी पर मनोरंजक उक्ति; लतीफ़ा; अनूठी बात। [मु.] -छोड़ना : मनोरंजक, कुतूहलजनक बात कहना।

चुटिया [सं-स्त्री.] 1. शिखा; चोटी; चुंदी 2. चोरों या ठगों का सरदार।

चुटियाना [क्रि-स.] चोट पहुँचाना; घायल करना; मारना।

चुटीला [वि.] 1. जो आहत हो; घायल; जिसे चोट लगी हो; ज़ख़्मी 2. चोट करने वाला 3. चोटी या ऊपर का सबसे अच्छा 4. भड़कीला; ठाट-बाटवाला।

चुटैल [वि.] 1. जो चोट खाकर घायल हुआ हो 2. ज़ख़्मी 3. चोट करने वाला।

चुड़िहारा [सं-पु.] चूड़ियाँ बनाने, बेचने या पहनाने वाला।

चुड़िहारिन [सं-स्त्री.] 1. चूड़ियाँ बनाने, बेचने या पहनाने वाली स्त्री 2. चुड़िहार की स्त्री।

चुड़ैल (सं.) [सं-स्त्री.] 1. बुरे या क्रूर स्वभाव की स्त्री; लड़ाकू या कुरूप स्त्री; 2. भूतनी; पिशाचिनी।

चुदक्कड़ [वि.] अतिकामी; अत्यधिक संभोग या मैथुन करने वाला।

चुदना [क्रि-अ.] 1. पुरुष द्वारा संभोग किया जाना 2. समागम करना।

चुदवाई [सं-स्त्री.] चुदाई; संभोग की क्रिया या भाव।

चुदवाना [क्रि-अ.] 1. मैथुन कराना 2. स्त्री का पुरुष से संभोग कराना।

चुदाई [सं-स्त्री.] 1. संभोग की क्रिया 2. संभोग करने या कराने के बदले मिलने वाला धन।

चुदाना [क्रि-स.] संभोग कराना; स्त्री का पुरुष से संयुक्त होना।

चुदास [सं-स्त्री.] संभोग की प्रबल इच्छा; कामेच्छा।

चुनचुना [सं-पु.] पेट में उत्पन्न होने वाले एक प्रकार के सफ़ेद रंग के कीड़े जो मलद्वार से मल के साथ बाहर निकलते हैं। [वि.] 1. चुनचुनाहट पैदा करने वाला 2. जिसके स्पर्श से हलकी जलन होती है।

चुनचुनाना [क्रि-अ.] 1. हलकी जलन होना 2. छोटे बच्चों का ठिनकना; चूँ-चूँ करते हुए रोना।

चुनचुनाहट [सं-स्त्री.] 1. कुछ जलने के साथ होने वाली खुजली 2. हलकी जलन।

चुनचुनी [सं-स्त्री.] 1. चुनचुनाने की अवस्था 2. हलकी जलन 3. हलकी खुजली।

चुनट [सं-स्त्री.] कपड़े आदि पर पड़ने वाली सिलवट; शिकन।

चुनना (सं.) [क्रि-स.] 1. बहुत चीज़ों में से एक या कुछ का चयन करना; पसंद करना 2. बीनना; छाँट कर अलग करना 3. क्रम से रखना; तरतीब से लगाना; सजाना 4. तोड़ना; चुगना 5. जोड़ना; एक पर एक रखना; चुनाई करना।

चुनरी [सं-स्त्री.] 1. स्त्रियों के ओढ़ने का पतला कपड़ा; चुन्नी; चुँदड़ी 2. अनेक रंग की बिंदियों वाला लाल कपड़ा 3. छोटा-सा रंगीन कपड़ा।

चुनवाना [क्रि-स.] चुनने का काम दूसरे से कराना; किसी को चुनने में प्रवृत्त करना।

चुनांचे (फ़ा.) [अव्य.] 1. इसलिए; अतः 2. इस तरह; इस वास्ते 3. फलस्वरूप; नतीजन।

चुनाई [सं-स्त्री.] 1. चुनने का कार्य 2. चुनने की मज़दूरी 3. चुनने का तरीका।

चुनाव (सं.) [सं-पु.] 1. चुनने की क्रिया; चयन 2. किसी कार्य विशेष या पद के लिए बहुमत के आधार पर किसी व्यक्ति को चुनना; निर्वाचन; (इलेक्शन) 3. वह कार्य या प्रणाली जिसमें किसी वस्तु या व्यक्ति को चुना जाता है।

चुनावक्षेत्र [सं-पु.] 1. चुनाव से संबंधित स्थान 2. किसी का पद या कार्यविशेष के लिए पसंद किया जाने वाला स्थान 3. विभिन्न राजनैतिक प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने का क्षेत्र।

चुनावी [वि.] चुनाव का; चुनाव से संबंधित।

चुनिंदा (फ़ा.) [वि.] 1. बढ़िया; अच्छा; चुना हुआ 2. छाँटा हुआ; चयनित 3. श्रेष्ठ; गणमान्य।

चुनौटी [सं-स्त्री.] पान या तंबाकू के लिए गीला चूना रखने की डिबिया।

चुनौती [सं-स्त्री.] 1. बढ़ावा; भड़कावा; उकसावा 2. लड़ाई अथवा शास्त्रार्थ आदि के लिए किया गया आह्वान 3. किसी कथन या निर्णय के संबंध में प्रतिपक्ष द्वारा दी गई ललकार।

चुन्नटदार [वि.] जिसमें सिकुड़न या शिकन हो; जिसमें सिलवट हो, जैसे- लहँगा या चुनरी इत्यादि।

चुन्नी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मानिक रत्न का बहुत छोटा टुकड़ा या नग 2. चमकी 3. कुनाई 4. ओढ़नी।

चुप [सं-स्त्री.] चुप्पी; मौन। [वि.] 1. मौन; ख़ामोश 2. जिसके मुँह से कोई ध्वनि न निकले।

चुपचाप [क्रि.वि.] 1. शांत भाव से; बिना बोले हुए; बिना कुछ कहे-सुने; मौन रहकर 2. छिपकर 3. निर्विरोध 4. बिना कोई प्रयत्न किए।

चुपड़ना [क्रि-स.] 1. पोतना; रोटी आदि में तेल या घी लगाना 2. {ला-अ.} चापलूसी करना।

चुपाना [क्रि-अ.] 1. शांत हो जाना; मौन रहना 2. कुछ न बोलना। [क्रि-स.] चुप कराना; शांत कराना।

चुप्पा [वि.] 1. मन की बात मन में ही रखने वाला; मौनी; घुन्ना 2. अकसर मौन रहने वाला; बहुत कम बोलने वाला।

चुप्पी [सं-स्त्री.] मौन; चुप रहने का भाव; ख़ामोशी।

चुभन (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चुभने की क्रिया; खटक; टीस 2. चुभने से होने वाला दर्द 3. कष्ट देने वाली बात।

चुभना (सं.) [क्रि-अ.] 1. गड़ना; धँसना 2. किसी नुकीली या धारदार चीज़ का नरम चीज़ में घुसना 3. {ला-अ.} बुरा लगना; सालना; मन में खटकना।

चुभलाना [क्रि-स.] किसी चीज़ को मुँह में रखकर चूसना या मुँह के अंदर इधर-उधर हिलाना-डुलाना।

चुभवाना [क्रि-स.] किसी को कुछ चुभाने में प्रवृत्त करना या प्रेरित करना।

चुभाना [क्रि-स.] किसी चीज़ में नुकीली चीज़ या उसका सिरा गड़ाना अथवा घुसाना।

चुमकार [सं-स्त्री.] 1. चुमकारने की आवाज़, पुचकार 2. चूमते समय मुँह से निकलने वाला चुम शब्द।

चुमकारना [क्रि-स.] 1. दुलार या प्रेम करना 2. पुचकारना 3. अनुरक्त, आकृष्ट या शांत करने के लिए प्यार से चुम-चुम ध्वनि उत्पन्न करना।

चुमकारी [सं-स्त्री.] चुमकार; पुचकार; प्यार से चुमकारने या मुँह से चुम-चुम करके प्यार करने की क्रिया या भाव।

चुमवाना [क्रि-स.] चूमने का काम कराना, चुंबन करवाना।

चुमाना (सं.) [क्रि-स.] चूमने में प्रवृत्त करना; चूमने का काम कराना।

चुम्मा (सं.) [सं-पु.] 1. चुंबन 2. अपने प्रिय को चूमने की क्रिया।

चुम्मा-चाटी [सं-स्त्री.] किसी को बार-बार चूमने और उसके अंगों को चाटने या उन पर मुँह रखने की क्रिया या भाव।

चुर1 [सं-पु.] 1. सूखे पत्तों के टूटने से उत्पन्न शब्द 2. हिंसक पशुओं के रहने का स्थान; माँद।

चुर2 (सं.) [वि.] चोरी करने वाला।

चुरकुट [वि.] 1. चकनाचूर 2. घबराया, डरा या सहमा हुआ।

चुरचुरा [वि.] 1. ख़स्ता 2. जो टूटने पर चुर-चुर ध्वनि करे।

चुरचुराना [क्रि-अ.] 'चुर-चुर' ध्वनि उत्पन्न होना। [क्रि-स.] 'चुर-चुर' ध्वनि उत्पन्न करना।

चुरमुर [सं-पु.] कुरकुरी चीज़ों के टूटने की ध्वनि 2. भीगे और पक्के फ़र्श पर जूतों को पहनकर चलने से होने वाली ध्वनि। [वि.] चुरमुरा।

चुरमुरा [वि.] चुरमुर ध्वनि के साथ टूटने वाला। [सं-पु.] एक प्रकार का नमकीन खाद्य पदार्थ।

चुरमुराना [क्रि-अ.] चुरमुर ध्वनि करते हुए टूटना। [क्रि-स.] चुरमुर ध्वनि करते हुए तोड़ना।

चुराना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी की वस्तु को बिना अनुमति या जानकारी के लेना; चोरी करना 2. कब्ज़े में करना; वश में करना 3. बचाना; किसी से मन के भावों को छिपाना, जैसे- नज़रें चुराना 4. किसी काम को करने या देने में कसर रखना 5. उचित से कम देना या करना, जैसे- गाय का अपने थन से दूध चुराना 6. छिपाना; आड़ में काम करना।

चुरुट [सं-पु.] तंबाकू के पत्तों के चूरे से बनी बत्ती या बीड़ी जिसका धुँआ लोग पीते हैं; सिगार; सिगरेट।

चुल [सं-स्त्री.] 1. खुजलाहट; खुजली 2. तीव्र काम-वासना; संभोग की प्रबल कामना या इच्छा।

चुलचुलाना [क्रि-अ.] 1. चुलचुली या हलकी खुजली होना 2. नटखटी करना 3. संभोग की उत्कट इच्छा होना 4. चंचलतापूर्वक इधर-उधर हाथ-पैर मारना।

चुलचुलाहट [सं-स्त्री.] 1. खुजली 2. चुलचुलाने की क्रिया या भाव।

चुलचुली [सं-स्त्री.] 1. हलकी खुजली 2. काम-वासना 3. चूल।

चुलबुल [सं-स्त्री.] 1. चंचलता; चपलता 2. चुलबुलाने की क्रिया, अवस्था या भाव 3. नटखट।

चुलबुला [वि.] 1. चंचल; चपल; जिसमें स्थिरता न हो 2. नटखट; मसख़रा 3. पाजी; चालाक; दुष्ट।

चुलबुलाना [क्रि-अ.] 1. चुलबुलाहट करना 2. चंचलता या चपलता दिखलाना 3. शांत न रह सकना 4. रह-रह कर हिलना-डुलना।

चुलबुलापन [सं-पु.] 1. चंचलता; चपलता; शोखी 2. चुलबुले होने की अवस्था, क्रिया या भाव।

चुलबुलाहट [सं-स्त्री.] 1. चुलबुला होने की अवस्था; चंचलता; चपलता 2. उमंग या यौवन के कारण अंगों की हलचल।

चुलबुलिया [वि.] चुलबुला; चंचल; चपल; नटखट।

चुलहाया [वि.] काम-वासना से पीड़ित; अत्यधिक कामातुर।

चुलाव [सं-पु.] बिना मांस का पुलाव।

चुल्लू [सं-पु.] उँगलियों को थोड़ा मोड़कर गहरी की हुई हथेली; अंजलि। [मु.] -भर पानी में डूब मरना : अत्यंत लज्जाजनक स्थिति में होना।

चुसकी [सं-स्त्री.] 1. होंठों से कोई तरल पदार्थ थोड़ा-थोड़ा तथा धीरे-धीरे करके पीने की क्रिया का भाव, जैसे- चुसकी भर चाय 2. घूँट 3. धीरे-धीर सुड़कने की क्रिया या भाव, जैसे- चाय की चुसकी लेना।

चुसना [क्रि-अ.] 1. चूसा जाना 2. सोखा जाना 3. {ला-अ.} धन-धान्य, बल-वीर्य आदि से रहित हो जाना; किसी दूसरे के द्वारा शोषण किया जाना।

चुसनी [सं-स्त्री.] 1. चूसने की क्रिया या भाव 2. बच्चों को दूध पिलाने की शीशी 3. वह खिलौना जिसे बच्चे मुँह में लेकर चूसते हैं।

चुसवाना [क्रि-स.] 1. चुसाना 2. {ला-अ.} दूसरों से अपना शोषण करवाना।

चुसाई [सं-स्त्री.] 1. चूसने की अवस्था, क्रिया या भाव 2. चुसाने का पारिश्रमिक।

चुसाना [क्रि-स.] 1. चुसवाना 2. चूसने का काम दूसरे से कराना।

चुस्की [सं-स्त्री.] दे. चुसकी।

चुस्त1 (सं.) [सं-पु.] 1. भूना हुआ मांस 2. छाल 3. भूसी।

चुस्त2 (फ़ा.) [वि.] 1. कसा हुआ; तंग 2. फुरतीला; मुस्तैद 3. मज़बूत; दृढ़ 4. उपयुक्त; ठीक; फबता हुआ 5. होशियार; दक्ष 6. जिसमें किसी प्रकार की त्रुटि या गलती न हो।

चुस्ती (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. चुस्त होने की अवस्था या भाव; कसावट 2. तेज़ी; फ़ुरती 3. मज़बूती; दृढ़ता 4. चालाकी।

चुहचुहाता [वि.] 1. रंगीला; रसीला; मज़ेदार 2. फड़कता हुआ 3. सुंदर; मनोरम।

चुहचुहाना [क्रि-अ.] 1. रस से बहुत अधिक ओत-प्रोत होना 2. रस के टपकने की स्थिति होना।

चुहटना [क्रि-स.] 1. कुचलना 2. रौंदना 3. मसलना 4. चिकोटी काटना।

चुहल [सं-स्त्री.] हँसी-दिल्लगी; ठिठोली; मजाक; विनोद।

चुहलबाज़ (हिं.+फ़ा.) [वि.] चुहल करने वाला; हँसी ठिठोली करने वाला; विनोदशील; मसख़रा।

चुहलबाज़ी (हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. बार-बार हँसी-दिल्लगी करने की क्रिया या भाव 2. ठिठोली।

चुहिया [सं-स्त्री.] 1. चूहे का बच्चा 2. मादा चूहा 3. छोटा चूहा।

चुहुकना (सं.) [क्रि-स.] 1. गाय आदि के बछड़े का स्तनपान करना; चूसना 2. {ला-अ.} चालाकी से सब कुछ ले लेना या हस्तगत कर लेना।

चूँ [सं-स्त्री.] 1. चिड़ियों के बच्चों के बोलने की ध्वनि 2. विरोध आदि में कही हुई छोटी या हलकी बात। [मु.] -तक न करना : एकदम शांत रहना; एकदम विरोध न करना।

चूँकि (फ़ा.) [अव्य.] क्योंकि; कारण यह है कि; इसलिए कि।

चूँ-चूँ [सं-पु.] चिड़ियों और उनके बच्चों के बोलने की आवाज़।

चूक [सं-स्त्री.] 1. असावधानी या उदासीनता के कारण होने वाली भूल; त्रुटि 2. भूलने की क्रिया 3. भूल या चूक से शेष रह गया काम। [सं-पु.] 1. खट्टे फलों के रस से तैयार किया गया एक बेहद खट्टा पदार्थ 2. खट्टा साग। [वि.] बहुत खट्टा। [मु.] -जाना : अवसर का हाथ से निकल जाना।

चूकना [क्रि-अ.] 1. अवसर खो देना या गँवाना 2. भूल करना; गलती करना 3. उद्देश्य से भटक जाना 4. समाप्त होना 5. निशाना लक्ष्य पर न लगना; वार खाली जाना 6. किसी बात या दलील को न रख पाना।

चूका (सं.) [सं-पु.] एक तरह का खट्टा साग।

चूची [सं-स्त्री.] 1. स्तन का अग्र भाग; चूचुक 2. स्तन; कुच।

चूचुक (सं.) [सं-पु.] स्तन के अग्र भाग की घुंडी।

चूज़ा (फ़ा.) [सं-पु.] मुरगी का बच्चा। [वि.] जिसकी आयु अधिक न हो।

चूड़ (सं.) [सं-पु.] 1. शिखा; चोटी 2. मुरगे आदि की कलगी।

चूड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. शिखा; सिर के बालों की चोटी; शिखर 2. मोर या मुरगे के सिर की चुरकी या चोटी 3. पहाड़ की चोटी 4. किसी चीज़ का सबसे ऊँचा भाग; माथा 5. कलाई का एक गहना; कड़ा 6. प्रधान या मुख्य व्यक्ति। [सं-स्त्री.] अग्रगण्य; सर्वश्रेष्ठ।

चूड़ांत (सं.) [सं-पु.] चोटी का अंतिम सिरा। [वि.] 1. पराकाष्ठा को प्राप्त; चरम सीमा तक पहुँचा हुआ 2. अत्यधिक; अत्यंत।

चूड़ाकर्म (सं.) [सं-पु.] बालक के सिर का पहले-पहल मुंडन करने का कर्म; मुंडन-संस्कार; चूड़ाकरण।

चूड़ामणि (सं.) [सं-पु.] 1. सिर पर पहनने का एक गहना 2. घुँघची; गुंजा 3. बीज 4. शीशफूल। [वि.] सर्वश्रेष्ठ; अग्रगण्य।

चूड़ी [सं-स्त्री.] 1. स्त्रियों की कलाई पर पहनने का आभूषण जो काँच, लाख, सोने, हाथी दाँत आदि के बने होते हैं 2. चूड़ी की शकल का वृत्ताकार गहना 3. पाइप आदि पर कसने के लिए घुमावदार उभरा हुआ घेरा। [मु.] चूड़ियाँ पहनना : कायर बनना। चूड़ियाँ ठंडी करना : स्त्रियों द्वारा नई चूड़ियाँ पहनने के लिए पुरानी चूड़ियाँ तोड़ना।

चूड़ीदार (हिं.+फ़ा.) [वि.] 1. जिसमें चूड़ियाँ या छल्ले पड़ें हों 2. जिसमें पास-पास धारियाँ या रेखाएँ बनी हों। [सं-पु.] लंबी मोहरी वाला एक तंग पाजामा जिसमें सिलवट पड़ती हो।

चूत (सं.) [सं-स्त्री.] भग; योनि।

चूतड़ [सं-पु.] मनुष्य के शरीर का कमर के नीचे और पीठ की ओर का मांसल भाग; नितंब।

चूतिया [वि.] 1. एक प्रकार की गाली जो समाज में अशिष्ट व अश्लील समझी जाती है 2. {ला-अ.} मूर्ख; बुद्धू; बेवकूफ़।

चूतियापंथी [सं-स्त्री.] बेवकूफ़ी; मूर्खता; बुद्धूपन।

चून (सं.) [सं-पु.] 1. गेहूँ, जौ आदि का आटा 2. चूर्ण; चूरा।

चूनर [सं-स्त्री.] चुँदरी; चुनरी।

चूना (सं.) [सं-पु.] कुछ विशिष्ट प्रकार के कंकड़-पत्थरों, शंख, सीप आदि को फूँककर बनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध तीक्ष्ण और दाहक क्षार जिसका उपयोग दीवारों पर सफ़ेदी करने, पान या तंबाकू के साथ खाने के लिए किया जाता है। [क्रि-अ.] 1. टपकना 2. पके हुए फल का झड़ना।

चूनापत्थर [सं-पु.] ऐसी चट्टान जिसमें मुख्य रूप से कैल्शियम-कार्बोनेट मौजूद रहता है; (लाइम स्टोन)।

चूनेदार (हिं.+फ़ा.) [वि.] चूने से युक्त; चूना मिला हुआ; चूनेवाला।

चूमना1 [क्रि-स.] होठों से किसी प्रिय के गालों, होठों आदि का स्पर्श करना; चुंबन करना।

चूमना2 (सं.) [सं-पु.] हिंदुओं में विवाह की एक रस्म जिसमें वर या वधू अथवा दोनों की अंजलि में चावल और जौ भरकर पाँच सुहागिन औरतें मंगल गीत गाती हुई उनके माथे, कंधे और घुटने आदि पाँच अंगों को हरी दूब से छूती हैं और तब उस दूब को चूमकर फेंक देती हैं।

चूर (सं.) [सं-पु.] 1. किसी पदार्थ के कूटने-पीसने से हुए बहुत छोटे टुकड़े; चूरा 2. चूर्ण; धूल; बुकनी। [वि.] 1. टूटा-फूटा; टुकड़ों में बँटा हुआ 2. तन्मय; लीन 3. डूबा हुआ; निमग्न; मस्त; आवेग या उमंग में बेसुध, जैसे- जीत के नशे में चूर 4. परिश्रम से शिथिल; थका हुआ; पस्त।

चूरन (सं.) [सं-पु.] 1. पीसकर या कूटकर महीन किया गया कोई पदार्थ; चूर्ण 2. हाज़मे या पाचन की दवा; बुकनी।

चूरमा [सं-पु.] बाटी, बाजरे की मोटी रोटी आदि को मसलकर घी-चीनी मिलाकर बनाया हुआ व्यंजन।

चूरमूर [सं-पु.] जौ, गेहूँ की वे खूँटियाँ जो फ़सल कट जाने पर खेत में बची रह जाती हैं।

चूरा [सं-पु.] 1. चूर्ण; बुरादा 2. किसी वस्तु के बारीक टुकड़े।

चूरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. बारीक चूरा या चूर्ण 2. चूरमा 3. रोटी को तोड़कर घी और चीनी मिलाया हुआ एक प्रकार का खाद्य पदार्थ।

चूर्ण (सं.) [सं-पु.] 1. चूरा; बुकनी 2. सफ़ूफ़ 3. अबीर 4. धूल; गर्दा 5. चूना 6. कौड़ी।

चूर्णक (सं.) [सं-पु.] 1. सत्तू 2. सुगंधित चूर्ण 3. एक प्रकार का वृक्ष 4. एक शालिधान्य।

चूर्णयोग (सं.) [सं-पु.] बहुत से सुगंधित पदार्थ को पीसकर एक में मिलाया हुआ मिश्रण।

चूर्णि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चूर्णक 2. सौ कौड़ियों का समूह।

चूर्णित (सं.) [वि.] 1. चूर किया हुआ 2. नष्ट; ध्वस्त।

चूर्णी (सं.) [वि.] चूर्णि।

चूल (सं.) [सं-पु.] बाल; चोटी; शिखा। [सं-स्त्री.] बाँस या लकड़ी आदि का पतला सिरा जो लकड़ी या बाँस के छेद में ठोंका जाए। [मु.] चूलें ढीली करना : कमज़ोर कर देना।

चूलिका (सं.) [सं-पु.] लूची; लुचुई; मैदे की पूरी। [सं-स्त्री.] 1. चूलक 2. हाथी की कनपटी 3. (नाटक) वह स्थिति जिसमें नेपथ्य से किसी घटना के होने की सूचना पात्रों द्वारा दी जाए 4. मुरगे की चोटी।

चूल्हा (सं.) [सं-पु.] 1. मिट्टी या लोहे आदि का वह पात्र या उपकरण जिसमें लकड़ी या कंडे की आग जलाकर खाना पकाया जाता है; अँगीठी 2. स्टील या पीतल आदि का गैस से खाना बनाने का उपकरण; (स्टोव)। [मु.] -जलाना : भोजन बनाना।

चूसना (सं.) [क्रि-स.] 1. होंठ और जीभ की सहायता से किसी रस या तरल पदार्थ को अंदर खींचना या पीना 2. होंठों से भींचकर या दबाकर फल आदि का रस पीना 3. {ला-अ.} किसी से अनुचित धन आदि वसूल करके उसे कंगाल कर देना; अवैध तरीके से किसी का सबकुछ हड़प लेना।

चूहा [सं-पु.] घरों, खेतों आदि में बिल बनाकर रहने वाला एक चार पैरों का जंतु जिसके दाँत बहुत तेज़ होते हैं; मूषक।

चूहादंती [सं-स्त्री.] सोने, चाँदी की एक प्रकार की पहुँची (गहना) जिसे स्त्रियाँ पहनती हैं।

चूहेदानी (हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] चूहे पकड़ने या फँसाने का एक प्रकार का पिंजड़ा।

चेंच (सं.) [सं-पु.] बरसात के दिनों में उगने वाला एक साग।

चें-चें [सं-स्त्री.] 1. बक-बक; बकवाद 2. चीं-चीं; चिड़ियों, बच्चों आदि के बोलने का शब्द।

चेंज (इं.‌) [सं-पु.] 1. बदलाव; परिवर्तन 2. रेज़गारी; छुट्टा पैसा।

चेंटुआ [सं-पु.] चिड़िया का बच्चा; चूज़ा।

चेंबर (इं.) [सं-पु.] 1. कक्ष; कोठरी; कोठा 2. चौबारा 3. न्यायालय 4. सभागृह।

चेक (इं.) [सं-पु.] 1. किसी बैंक के नाम वाहक को रुपया देने का लिखित आदेश प्रपत्र या कागज़ 2. चौकोर ख़ाने वाला कपड़ा।

चेकअप (इं.) [सं-पु.] 1. परीक्षण 2. जाँच।

चेकबुक (इं.) [सं-स्त्री.] चेकों की पुस्तिका या गड्डी; लेखा-बही; चेक-बही।

चेकिंग (इं.) [सं-पु.] 1. परीक्षण; जाँच 2. मिलान। [सं-स्त्री.] जाँच-पड़ताल।

चेचक (फ़ा.) [सं-स्त्री.] विषाणु से होने वाली एक संक्रामक और घातक बीमारी जिसमें ज्वर के साथ शरीर पर छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं; माता या शीतला नामक रोग।

चेट (सं.) [सं-पु.] 1. सेवक; दास; टहलुआ 2. दलाल 3. एक प्रकार की मछली।

चेटक (सं.) [सं-पु.] 1. सेवक; दास 2. दूत 3. जल्दी; फुरती 4. इंद्रजाल; बाज़ीगरी 5. खेल-तमाशा 6. जादू।

चेटकी (सं.) [सं-पु.] 1. बाज़ीगर 2. जादू का खेल दिखाने वाला 3. कौतुकी 4. तमाशा दिखाने वाला।

चेटिका (सं.) [सं-स्त्री.] नौकरानी; सेविका; दासी।

चेटी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. दासी; नौकरानी; सेविका 2. संस्कृत नाटकों की निम्न (स्त्री) पात्र।

चेत (सं.) [सं-पु.] 1. चेतना; ज्ञान; बोध; होश 2. मन; चित्त 3. स्मृति; याद; सुध 4. जागरूकता; सावधानी; चौकसी।

चेतक (सं.) [सं-पु.] महाराणा प्रताप के प्रसिद्ध ऐतिहासिक घोड़े का नाम। [वि.] सचेत करने वाला।

चेतकी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हड़; हर्र 2. चमेली 3. (संगीत) एक प्रकार की रागिनी।

चेतन (सं.) [सं-पु.] 1. आत्मा 2. जीव 3. मनुष्य; आदमी। [वि.] जिसमें चेतना हो; चेतनायुक्त।

चेतनकी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हरीतकी या हड़ नामक पेड़ 2. उक्त पेड़ का फल।

चेतनता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चेतन होने की अवस्था या गुण; सज्ञानता 2. चैतन्य 3. सजीवता।

चेतना (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ज्ञान 2. बुद्धि 3. याद; स्मृति 4. चेतनता 5. जीवन। [क्रि-स.] 1. सोचना 2. समझना। [क्रि-अ.] 1. होश में आना 2. सावधान होना।

चेतनाशून्य (सं.) [वि.] जिसे कुछ भी न स्मरण हो; संज्ञाहीन।

चेतनाहीन (सं.) [वि.] जिसे सब कुछ विस्मृत हो गया हो; संज्ञाशून्य।

चेतनीय (सं.) [वि.] 1. जानने योग्य; ज्ञेय 2. जो चेतन करने योग्य हो।

चेताना [क्रि-स.] 1. सावधान करना; ख़बरदार करना 2. ध्यान दिलाना; चेतावनी देना।

चेतावनी [सं-स्त्री.] 1. किसी को सावधान करने के लिए कही जाने वाली बात; सतर्क करने का भाव या कर्म 2. उपदेश; सीख; तंबीह 3. किसी ख़तरे से पहले दी जाने वाली सूचना।

चेत्य (सं.) [वि.] 1. जो चेतना या ध्यान का विषय हो 2. जो जानने योग्य हो।

चेन (इं.) [सं-स्त्री.] 1. ज़ंजीर 2. सिकड़ी।

चेप [सं-पु.] 1. लसीला द्रव्य; लट्ठा 2. चिड़ियों को फँसाने हेतु फैलाया जाने वाला लासा।

चेपना [क्रि-स.] चेप लगाकर चिपकाना या सटाना।

चेयर (इं.) [सं-स्त्री.] 1. कुरसी 2. आसन; पीठ।

चेयरमैन (इं.) [सं-पु.] 1. अध्यक्ष 2. कमेटी या बोर्ड आदि का सभापति।

चेरा (सं.) [सं-पु.] 1. दास; गुलाम; सेवक; नौकर 2. चेला; शिष्य; शागिर्द; विद्यार्थी।

चेला (सं.) [सं-पु.] 1. शिष्य; शागिर्द 2. वह जो धार्मिक आस्था से किसी गुरु से मंत्र लेकर उसका अनुयायी या शिष्य बना हो 3. किसी के मत या सिद्धांत का अनुकरण करने वाला व्यक्ति।

चेले-चाटी [सं-पु.] चेलों, अनुयायियों आदि का समूह।

चेष्टक (सं.) [सं-पु.] (काम-शास्त्र) एक प्रकार का आसन; एक तरह का रतिबंध। [वि.] चेष्टा अथवा प्रयत्न करने वाला।

चेष्टन (सं.) [सं-पु.] चेष्टा अथवा प्रयत्न करने की क्रिया या भाव।

चेष्टा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रयास; कोशिश; प्रयत्न 2. मन के भाव बताने वाली अंगों की गति 3. भाव या विचार उत्पन्न होने पर शरीर पर होने वाली उसकी प्रतिक्रिया; शारीरिक व्यापार; मुद्रा 3. भावभंगिमा 4. इच्छा 5. कार्य 6. परिश्रम।

चेष्टावान (सं.) [वि.] 1. जिसमें चेष्टा हो; जिज्ञासु; प्रयत्नशील 2. जिसमें इच्छा हो; लगनशील।

चेस (इं.) [सं-पु.] 1. शतरंज का खेल 2. लोहे का चौखट।

चेहरा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. मुख; मुखड़ा 2. मुखमंडल; शकल 3. कागज़ या मिट्टी का बना हुआ मुखौटा 4. {ला-अ.} किसी चीज़ का अगला या सामने का हिस्सा; आगा। [मु.] -उतरना : चेहरा मुरझा जाना।

चेहलुम (फ़ा.) [सं-पु.] 1. मुसलमानों में किसी की मृत्यु के उपरांत का चालीसवाँ दिन 2. मुहर्रम में ताज़िया दफ़न होने के दिन से चालीसवाँ दिन तथा उस दिन होने वाला करबला के शहीदों का फ़ातिहा।

चैंपियन (इं.) [सं-पु.] खेलविजेता; खेल में सभी प्रतियोगियों को हरा देने वाला व्यक्ति।

चैत (सं.) [सं-पु.] चैत्र।

चैतन्य (सं.) [सं-पु.] 1. चेतन होने का भाव; चेतना; ज्ञान 2. ब्रह्म; ईश्वर 3. सजग 4. बंगाल के एक प्रसिद्ध वैष्णव भक्त चैतन्य महाप्रभु 5. प्रकृति; निसर्ग 6. न्याय-दर्शन के अनुसार प्राणियों में होने वाला ज्ञान। [वि.] सचेत; जो सोचता-समझता हो; जिसे होश हो।

चैतन्यभैरवी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. तांत्रिकों की एक भैरवी देवी 2. (संगीत) एक प्रकार की रागिनी।

चैता [सं-पु.] 1. चैत्र मास में गाया जाने वाला एक लोकगीत 2. एक पक्षी जो काले रंग का होता है।

चैती [सं-स्त्री.] चैत माह में होने वाली फ़सल; रबी की फ़सल। [वि.] चैत माह में होने वाला।

चैतुआ [सं-पु.] चैत में फ़सल आदि काटने वाला मज़दूर।

चैत्त (सं.) [सं-पु.] बौद्ध दर्शन में विज्ञान-स्कंध के अलावा अन्य सभी स्कंध। [वि.] 1. चित्त संबंधी 2. चित्त का।

चैत्य (सं.) [सं-पु.] 1. घर 2. मंदिर; देवालय 3. किसी देवी-देवता के नाम पर अथवा किसी की मृत्यु या शवदाह के स्थान पर बना हुआ चबूतरा 4. बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए मठ या विहार 5. पीपल 6. बेल 7. चिता 8. यज्ञशाला।

चैत्यक (सं.) [सं-पु.] 1. पीपल 2. राजगृह के पास का पुराना पर्वत।

चैत्यतरु (सं.) [सं-पु.] 1. अश्वत्थ; पीपल 2. गाँव या बस्ती का पूज्य व पवित्र बड़ा वृक्ष।

चैत्यपाल (सं.) [सं-पु.] 1. चैत्य का रक्षक या प्रबंधक 2. मंदिर, मठ आदि का अधिकारी।

चैत्यविहार (सं.) [सं-पु.] बौद्ध व जैनों का मठ।

चैत्यवृक्ष (सं.) [सं-पु.] 1. पीपल 2. चैत्य-तरु।

चैत्यस्थान (सं.) [सं-पु.] 1. कोई पवित्र स्थान 2. वह स्थान जहाँ बुद्धदेव की मूर्ति स्थापित हो।

चैत्र (सं.) [सं-पु.] 1. हिंदी पंचांग का पहला माह; संवत्सर के प्रथम मास का नाम 2. फागुन के बाद आने वाला महीना 3. वह भूमि जहाँ यज्ञ होता है।

चैत्रावली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चैत माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी 2. चैत माह की पूर्णिमा।

चैन (सं.) [सं-पु.] 1. आराम; सुख; मानसिक शांति 2. राहत 3. सुख का भोग।

चैनल (इं.) [सं-पु.] 1. जोड़ने का काम 2. टीवी पर विभिन्न कार्यक्रमों के चैनल 3. माध्यम 4. नाला; परनाला; नहर 5. खाड़ी, नहर या बंदरगाह का गहरा भाग; समुद्री मार्ग।

चैला [सं-पु.] कुल्हाड़ी से फाड़ा गया लकड़ी का बड़ा टुकड़ा।

चैलिक (सं.) [सं-पु.] कपड़े का टुकड़ा।

चैली [सं-स्त्री.] 1. गरमी के कारण नाक से निकलने वाला जमा हुआ ख़ून 2. छोटा चैला।

चैलेंज (इं.) [सं-पु.] 1. दावा 2. आह्वान। [सं-स्त्री.] 1. चुनौती 2. ललकार।

चॉक (इं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार का सफ़ेद नरम पत्थर; खड़िया मिट्टी।

चॉकलेट (इं.) [सं-पु.] 1. कोको के बीजों से बनी एक प्रकार की मिठाई 2. गहरा भूरा रंग।

चोंगा (सं.) [सं-पु.] बाँस का वह खोखला टुकड़ा जिसका मुँह एक तरफ़ गाँठ के कारण बंद हो 2. टेलीफ़ोन-यंत्र का ऊपर वाला वह हिस्सा जिसे कान में लगाकर दूसरे बोलने वाले व्यक्ति की बात सुनी जाती है तथा उससे बात-चीत की जाती है; (टेलीफ़ोन रिसीवर) 3. कुछ रखने के लिए कागज़, टीन आदि का डिब्बा।

चोंच (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पक्षियों के मुँह का नुकीला और आगे निकला हुआ भाग, जैसे- कौआ, चील, तोता और गोरैया की चोंच 2. टोंट; ठोर 3. मुँह। [मु.] -बंद करना : चुप हो जाना।

चोंथना [क्रि-स.] नोच-खसोटकर निकालना; ज़बरदस्ती ले लेना।

चोई [सं-स्त्री.] 1. मछली के शरीर का छिलका 2. दाल जैसे अनाज का छिलका।

चोक1 (सं.) [सं-पु.] भड़भाँड़ की जड़ जो दवा के काम आती है।

चोक2 (इं.) [सं-स्त्री.] कीचड़ आदि के कारण नाली में जल-प्रवाह का अवरुद्ध हो जाना।

चोकर [सं-पु.] गेहूँ, जौ आदि का छिलका जो दरदरा और मोटे कणों के रूप में छलनी से छानने पर निकलता है।

चोक्ष (सं.) [वि.] 1. शुद्ध; पवित्र 2. तीक्ष्ण; तेज़ 3. दक्ष; चतुर 4. तीखा।

चोखना [क्रि-स.] 1. स्तनपान किया जाना (बच्चों द्वारा) 2. दुहा जाना (गाय आदि का) 3. धार तेज़ किया जाना।

चोखा1 [सं-पु.] भरता; भुरता; एक प्रकार का चटपटा व्यंजन जो आलू या बैगन को उबाल कर बनाया जाता है।

चोखा2 (सं.) [वि.] 1. तेज़ धार वाला 2. व्यवहार में खरा और साफ़ 3. सभी प्रकार से ठीक 4. जिसमें किसी प्रकार की मिलावट न हो।

चोखाना [क्रि-स.] 1. स्तनपान कराना (बच्चों द्वारा) 2. गाय आदि का दूध दुहना।

चोगा (तु.) [सं-पु.] घुटनों तक लंबा एक ढीला-ढाला पहनावा; लबादा।

चोचला [सं-पु.] 1. ऐसा काम जो कोई व्यक्ति अपनी आन-बान या शान के प्रदर्शन के लिए करता है; दिखावा, जैसे- रईसों का चोचला 2. जवानी और अल्हड़पन का व्यवहार; खिझाने-रिझाने के उद्देश्य से की जाने वाली चेष्टा 3. नख़रा 4. निकृष्ट हाव-भाव।

चोचलेबाज़ी (हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. नख़रेबाज़ी 2. चोचलापन।

चोट (सं.) [सं-स्त्री.] 1. शरीर के किसी अंग के कट-फट कर या छिल जाने से होने वाला घाव; आघात; प्रहार 2. वार 3. {ला-अ.} क्लेश; व्यथा 4. व्यंग्य।

चोटा [सं-पु.] राब का वह पसेव जो कपड़े में रखकर दबाने या छानने से निकलता है; चोआ; माठ।

चोटिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. साया 2. लहँगा।

चोटी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. स्त्रियों के सिर के बालों की गूँथी हुई लटें या वेणी; केशगुच्छ 2. रंगीन या काले सूतों का गुच्छा जो चोटी में बाँधा जाता है 3. पुरुषों के सिर पर पीछे थोड़े से बढ़ाए गए बाल; चुंदी; शिखा 4. चिड़ियों के सिर की कलगी 5. पहाड़ का सबसे ऊँचा भाग; शिखर। [मु.] -दबाना : विवश होना। -हाथ में होना : वश में होना।

चोटीदार [वि.] चोटीवाला; जिसकी चोटी हो।

चोट्टा [सं-पु.] 1. चोर 2. एक प्रकार की गाली जो समाज में अशिष्ट समझी जाती है।

चोथ [सं-पु.] गाय, भैंस आदि के द्वारा एक बार में गिराए गए गोबर की मात्रा।

चोद (सं.) [सं-पु.] 1. चाबुक २. वह लंबी लकड़ी जिसके सिरे पर कोई तेज़ और नुकीला लोहा लगा हो।

चोदना [क्रि-स.] पुरुष का स्त्री के साथ संभोग करना।

चोदू [सं-पु.] सामान्य से अधिक संभोग करने वाला [वि.] एक प्रकार की गाली जो समाज में अशिष्ट व अश्लील समझी जाती है।

चोपड़ा [सं-पु.] पंजाबियों में प्रचलित एक कुलनाम या सरनेम।

चोब (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. शामियाना खड़ा करने का बड़ा खंभा 2. नगाड़ा या ताशा बजाने की लकड़ी 3. सोने या चाँदी से मढ़ा हुआ डंडा 4. छड़ी; सोंटा; डंडा।

चोबदार (फ़ा.) [सं-पु.] 1. द्वारपाल; दरबान; प्रतिहारी 2. वह दरबान जो हाथ में चोब या मोटा डंडा लेकर खड़ा होता है 3. भाला या लाठी लेकर किसी के आगे चलने वाला व्यक्ति।

चोर (सं.) [सं-पु.] 1. चोरी करने वाला व्यक्ति; दूसरे की वस्तु या धन को छिपकर हथिया लेने वाला व्यक्ति 2. छिपकर काम करने वाला 3. तस्कर; बेईमान 4. मन में छिपा बैर-भाव या कुटिलता 5. ज़रूरत से कम काम करने वाला 6. खटका; वहम 7. तौल में कम सामान देने वाला व्यक्ति। [वि.] 1. जो मन के भाव प्रकट न करता हो 2. जो छिपा हुआ हो; गुप्त।

चोरकट [सं-पु.] चोर; उचक्का; चोट्टा।

चोरख़ाना (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. संदूक या अलमारी में छिपा ख़ाना या खंड जहाँ कोई वस्तु छिपाकर रखी जाए 2. घर का वह विभाग जो देखने पर सहसा न दिखाई देता हो।

चोरबत्ती [सं-स्त्री.] हाथ में रखने की बिजली की वह बत्ती जो बटन दबाने पर ही जलती है।

चोरबाज़ार (सं.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. वह बाज़ार जहाँ चोरी का सामान ख़रीदा और बेचा जाता है 2. वह स्थान जहाँ नियंत्रित वस्तुएँ अधिक दामों पर बेची जाती हैं; (ब्लैक मार्केट)।

चोर बाज़ारी (सं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. अवैधानिक तरीके से सामान बेचने और ख़रीदने का काम 2. कर बचाने के लिए नाजायज़ तरीके से माल ख़रीदने और बेचने का धंधा 3. नियंत्रित मूल्य की चीज़ को खुले बाज़ार में चोरी से अधिक दाम पर बेचना।

चोरी [सं-स्त्री.] 1. चुराने की क्रिया या भाव; चोर का काम; छुपकर दूसरे का धन या सामान चुराना 2. ठगी; धोखेबाज़ी 3. किसी से बात छुपाना; दुराव।

चोल (सं.) 1. दक्षिण भारत के एक प्राचीन देश का नाम 2. उक्त देश का निवासी 3. स्त्रियों के पहनने की एक प्रकार की अँगिया; चोली 4. कुरते के ढंग का एक प्रकार लंबा पहनावा जिसे चोला कहते हैं 5. मंजीठ 6. छाल; वल्कल 7. कवच। [वि.] मंजीठ का रंग।

चोलकी (सं.) [सं-पु.] 1. बाँस का कल्ला 2. नारंगी का पेड़ 3. हाथ की कलाई 4. करील का पेड़।

चोला (सं.) [सं-पु.] 1. वह लंबा और ढीला-ढाला पहनावा या कुरता जो मुल्ला और फ़कीर पहनते हैं 2. शरीर; तन 3. अँगरखे का ऊपरी हिस्सा 4. दुल्हन के वस्त्र 5. बच्चों को पहली बार सिला हुआ नया कपड़ा पहनाने की रस्म। [मु.] -छोड़ना : शरीर का त्याग करना।

चोली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. स्त्रियों द्वारा पहना जाने वाला वह पहनावा जो शरीर के ऊपरी भाग (वक्षस्थल) को ढँकने के लिए प्रयुक्त होता था तथा जिसमें नीचे की ओर लगी हुई तनियाँ या बंद पीठ की ओर खींचकर बाँधे जाते थे; अँगिया की तरह का स्त्रियों का एक पहनावा 2. अँगरखे आदि का वह ऊपरी भाग जिसमें बंद लगे रहते हैं 3. साधु-संतों आदि के पहनने का छोटा चोला। [मु.] -दामन का साथ : अभिन्न, घनिष्ठ तथा अत्यंत गहरा संबंध; सदा बना रहने वाला साथ।

चौ (सं.) [वि.] चार। [वि.] 1. मोती तौलने का एक मान 2. जौहरियों का एक तौल।

चौंक [सं-स्त्री.] वह चंचलता जो भय, आश्चर्य या पीड़ा के सहसा उपस्थित होने पर हो जाती है; एकाएक डर जाने या आश्चर्य में पड़ जाने के कारण शरीर का झटके के साथ हिल उठना और चित्त का उचट जाना।

चौंकना [क्रि-अ.] 1. अचंभित होना; विस्मय या पीड़ा की अनुभूति से अस्थिर हो उठना; उत्तेजित होना 2. भड़कना; बिदक जाना 3. सहम या काँप जाना 4. कोई अनहोनी बात या सूचना मिलने पर चौकन्ना होना 5. किसी स्वप्न के कारण घबराकर जाग जाना।

चौंकाना [क्रि-स.] 1. एकाएक कोई ऐसी बात या घटना का हाल कहना जिसे सुनकर लोग आश्चर्यचकित हो उठें 2. अहित, क्षति या हानि आदि की किसी को अचानक सूचना देना जिससे सूचित व्यक्ति सहसा अचंभित हो उठे।

चौंतीस [वि.] संख्या '34' का सूचक।

चौंध (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह तेज़ व क्षणिक चमक जो आँखों को सहन न हो और थोड़ी देर के लिए बंद हो जाए; चकाचौंध; कौंध 2. चौंधियाने की अवस्था या भाव।

चौंधियाना [क्रि-अ.] 1. तेज़ चमक से आँखों का न खुलना; दृष्टि धुँधली हो जाना; चकाचौंध होना 2. दिखाई न देना; आश्चर्यचकित हो जाना; हैरत में पड़ना। [क्रि-स.] किसी की आँखों पर तेज़ प्रकाश डालकर चौंध उत्पन्न करना।

चौंरा (सं.) [सं-पु.] अनाज रखने का गड्ढा; गाड़।

चौंराना [क्रि-स.] 1. चँवर डुलाना; चँवर करना 2. झाडू देना; बुहारना।

चौंरी [सं-स्त्री.] 1. चँवर 2. घोड़ी के पूँछ के बालों का गुच्छा 3. चोटी बाँधने की डोरी 4. सफ़ेद पूँछ वाली गाय।

चौंसठ [वि.] संख्या '64' का सूचक।

चौआ (सं.) [सं-पु.] गाय, बैल, भैंस आदि पशु; चौपाया। [वि.] चार से युक्त।

चौक (सं.) [सं-पु.] 1. घर के बाहर खुली चौकोर जगह; चबूतरा 2. मकान के अंदर चारों ओर से घिरी बिना किसी छत की जगह; सहन; आँगन 3. शहर या गाँव का बीचों-बीच का मुख्य स्थान; चौराहा 4. शहर का मुख्य बाज़ार 5. चौसर की बिसात 6. शुभ अवसरों पर पूजन के लिए आटा आदि से बनाया गया छोटा चौकोर क्षेत्र या अल्पना; बड़ी वेदी 7. रसोई के बाहर का स्थान जहाँ बैठ कर भोजन आदि किया जाता है 8. चार चीज़ों का समूह। [मु.] -पूरना : ज़मीन पर चित्रांकन करना या बनाना।

चौकड़ [वि.] दुरुस्त; बढ़िया; अच्छा।

चौकड़ा [सं-पु.] 1. कान में पहनने की बाली जिसमें दो- दो मोती हों 2. फ़सल की एक प्रकार की बँटाई जिसमें से जमींदार को चौथाई मिलता है।

चौकड़ी [सं-स्त्री.] 1. चार चीज़ों का समूह 2. हिरन की वह चाल जिसमें वह चारों पैरों से एक साथ कूदता या छलाँग मारता है 3. छोटा चौकड़ा 4. चार आदमियों की मंडली 5. चार घोड़ों की गाड़ी 6. चार युगों का समूह 7. जाँघें और घुटने ज़मीन पर टेककर बैठने की मुद्रा 8. चारपाई की वह बुनावट जिसमें सुतली या बान की चार-चार लड़ियाँ एक साथ हों। [मु.] -भूल जाना : घबरा जाना।

चौकन्ना [वि.] 1. चारों ओर की आहट लेता हुआ; सतर्क; चौकस 2. सावधान; होशियार 3. चौंका हुआ; सशंकित परंतु सशर्त 4. हर तरह से, किसी प्रकार की विपत्ति, संकट आदि का सामना करने के लिए सजग।

चौकस (सं.) [वि.] 1. जागरूक; सचेत; सावधान 2. जो चारों ओर से भली प्रकार से कसा हो 3. दुरुस्त; ठीक।

चौकसी [सं-स्त्री.] 1. चौकस होने की अवस्था या भाव; सावधानी; रखवाली 2. किसी की रक्षा के उद्देश्य से उस पर सूक्ष्म दृष्टि रखने का कार्य या भाव।

चौका (सं.) [सं-पु.] 1. एक ही प्रकार की चार चीज़ों का समूह 2. चौखुँटी सिल; पत्थर का चौकोर टुकड़ा 3. चौकोर ज़मीन; चौकोर कटा हुआ कोई ठोस या भारी टुकड़ा 4. वह स्थान जहाँ भोजन तैयार किया जाता है; रसोई 5. क्रिकेट के खेल में चार रन; ताश में चौआ 6. पूजा की बेदी 7. रोटी बेलने का चकला 8. पवित्र करने के उद्देश्य से धरती पर किया जाने वाला मिट्टी-गोबर का लेप 9. चौक में बिछाया जाने वाला मोटा कपड़ा 10. अलग-अलग चीज़ रखने के लिए खानों में बँटा हुआ पात्र, जैसे- नमक, मिर्च और मसाले रखने का पात्र 11. सीसफूल।

चौका-बरतन (सं.) [सं-पु.] बरतनों व रसोई की साफ़-सफ़ाई का काम; घर का काम-काज।

चौकी [सं-स्त्री.] 1. लकड़ी, धातु या पत्थर का आयताकार आसन जिसमें चार पाए होते हैं; पटरी 2. छोटा तख़्त 3. ताश का चार बूटियों वाला पत्ता 4. पुलिस थाने का उपकेंद्र; वह स्थान जहाँ सुरक्षा के लिए पुलिस या सेना के कुछ जवान तैनात किए जाते हैं; 5. रखवाली; पहरा 6. नगर के बाहर या किसी सीमा क्षेत्र में वह स्थान जहाँ पहरेदार मुस्तैद रहते हैं 7. राहगीरों के ठहरने का स्थान; पड़ाव; अड्डा 8. मंदिर के मंडप के खंभों के बीच की जगह 9. देवी-देवता को चढ़ाई जाने वाली भेंट 10. महल के प्रवेशद्वार या फाटक के ऊपर वह जगह जहाँ नौबत बजाई जाती है 11. चुंगी वसूली करने वाले दल के रुकने-बैठने का स्थान 12. रोटी या पूरी बनाने का चकला 13. किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति का आसन 14. शहनाई और उसके साथ बजने वाले वाद्य।

चौकी घर [सं-पु.] पहरेदार या प्रहरी को धूप, वर्षा आदि से बचाने के लिए बनाया गया छोटा-सा कमरा।

चौकीदार (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. पहरा देने वाला; (गार्ड) 2. गाँव में पहरा देने के लिए नियुक्त कर्मचारी।

चौकीदारी (हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. चौकीदार का काम; रखवाली; पहरा 2. चौकीदारी करने के लिए चौकीदार को दी जाने वाली मासिक धनराशि; चौकीदार को दिया जाने वाला वेतन या मज़दूरी।

चौकोना (सं.) [वि.] 1. चार कोनों वाला; चौखूँटा 2. जिसके या जिसमें चार कोण हो 3. चौकोर; चतुष्कोण।

चौकोर (सं.) [वि.] 1. जिसके चारों कोने या पार्श्व बराबर हों; चौखूँटा; चौकोना 2. जो हर तरह से ठीक हो।

चौखट [सं-स्त्री.] 1. लकड़ी या लोहे का वह चौकोर ढाँचा या फ्रेम जिसमें किवाड़ के पल्ले लगाए जाते हैं; देहली; देहरी 2. {ला-अ.} मर्यादा; सीमा।

चौखटा [सं-पु.] 1. चित्र या दर्पण जड़ने का चौकोर ढाँचा; (फ्रेम) 2. किसी संक्षिप्त समाचार के चारों ओर की रेखा या चौखटा; (बॉक्स)।

चौखा [सं-पु.] वह स्थान जहाँ चार गाँवों की सीमा मिलती हो।

चौख़ाना (सं.+फ़ा.) [सं-पु.] चार ख़ाना। [वि.] चार ख़ानों वाला।

चौखूँटा [वि.] जिसमें चार कोने हों; चौकोर; चतुष्कोण।

चौगड़ा [सं-पु.] खरहा; खरगोश।

चौगड्डा [सं-पु.] 1. चार चीज़ों का समूह 2. चौहद्दी; चौखा।

चौगान (फ़ा.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का गेंद-बल्ले का खेल 2. वह मैदान जहाँ उक्त प्रकार का खेल खेला जाता है 3. नगाड़ा बजाने की लकड़ी 4. किसी प्रकार की प्रतियोगिता का स्थान।

चौगानी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] हुक्के की सीधी नली जिससे धुआँ खींचते हैं; निगाली; सटक। [वि.] चौगान संबंधी।

चौगिर्द (फ़ा.) [क्रि.वि.] चारों ओर; चारों तरफ़।

चौगुना [वि.] 1. किसी वस्तु का चार गुना 2. किसी वस्तु आदि की तुलना में उस जैसी चार के समान 3. जितना हो उतना ही चार बार; चतुर्गुण।

चौगोड़ा [वि.] 1. जिसके चार पैर हों; चौपाया 2. पशु।

चौगोड़िया [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की ऊँची चौकी जिसके पायों में चढ़ने के लिए सीढ़ियों की तरह डंडे लगे रहते हैं 2. बाँस की तीलियों का बना हुआ एक ढाँचा या फंदा जिसके चारों पल्लों में तेल व पकाया हुआ पीपल का गोंद लगा रहता है।

चौगोशिया (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] तुरकी घोड़ा। [सं-स्त्री.] पुरानी चाल की एक प्रकार की टोपी जो चार तिकोने टुकड़े को सिलकर बनाई जाती थी। [वि.] चार कोनों वाला; जिसके चार कोने या सिरे हों।

चौघड़ [सं-पु.] जबड़ों के चारों सिरों पर होने वाले एक-एक चिपटे तथा चौड़े दाँतों का समूह; चौभड़।

चौघड़ा [सं-पु.] 1. पान-इलायची रखने का चार ख़ानों का डिब्बा 2. वह दीवट जिसमें चारों ओर जलाने के लिए चार दिए या बत्तियाँ रखी जाती हैं 3. चौडोल नाम का बाजा 4. चार ख़ानों का बरतन।

चौघड़ी [वि.] चार तह की; चार परत की।

चौड़ा (सं.) [वि.] 1. चौड़ाई वाला; फैला हुआ 2. जिसके दोनों पार्श्वों के बीच में अधिक विस्तार हो 3. जो सँकरा न हो 4. जिसमें चौड़ाई हो; विस्तृत।

चौड़ाई [सं-स्त्री.] 1. चौड़े होने की अवस्था या भाव; चौड़ापन 2. विस्तार; फैलाव 3. लंबाई के दोनों छोरों के बीच का विस्तार; पाट 4. वह मान जिससे यह पता चलता हो कि कोई वस्तु कितनी चौड़ी है।

चौड़ान [सं-स्त्री.] 1. चौड़ा होने की अवस्था या भाव 2. विस्तार; फैलाव 3. वह मान जिससे पता चलता हो कि कोई वस्तु कितनी चौड़ी है।

चौतनी [सं-स्त्री.] 1. पुराने समय में बच्चों को पहनाई जाने वाली एक प्रकार की टोपी जिसमें चार तनियाँ या बंद लगे होते थे 2. अँगिया; चोली।

चौतरफ़ा (सं.+फ़ा.) [क्रि.वि.] चारों ओर; चारों तरफ़; चारों दिशाओं में; चौगिर्द।

चौतरा [सं-पु.] चार तारों वाला सारंगी की तरह का वाद्य।

चौताल [सं-पु.] 1. मृदंग बजाने का एक ताल जिसमें चार आघात और दो खाली होते हैं 2. उक्त ताल पर गाया जाने वाला गीत।

चौतुका [सं-पु.] एक प्रकार का छंद जिसके चारों चरणों में अनुप्रास हो। [वि.] जिसमें चारों पंक्तियाँ तुकांत हों।

चौथ (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चौथाई अंश या भाग; चतुर्थांश 2. चंद्रमास के प्रत्येक पक्ष की चतुर्थी तिथि; चतुर्थी 3. आमदनी का चतुर्थांस जो मराठे कर के रूप में लेते थे। [मु.] -वसूल करना : उगाही करना; हफ़्ता वसूलना।

चौथा (सं.) [सं-पु.] मृतक के चौथे दिन होने वाला सामाजिक कार्य जिसमें उसी बिरादरी के लोग एकत्र होकर मृतक के पुत्र आदि को कुछ धन या वस्त्र देते हैं। [वि.] 1. क्रम में चौथे स्थान पर आने वाला; चतुर्थ 2. तीसरे के बाद वाला।

चौथाई (सं.) [सं-पु.] किसी चीज़ के चार बराबर भागों में से कोई एक भाग; चौथा भाग; चतुर्थांश।

चौथा खंभा [सं-पु.] लोकतंत्र के तीन अहम स्तंभों (विधायिका, न्यायपालिका तथा कार्यपालिका) के अलावा जनपक्षधरता के लिए उपादेय सिद्ध हुए एक और स्तंभ अर्थात प्रेस के लिए एक गौरवपूर्ण संबोधन।

चौथिया [सं-पु.] 1. वह ज्वर जो प्रति चौथे दिन आए; चौथिया बुख़ार 2. चौथाई का हकदार; चतुर्थांश का अधिकारी।

चौथी [सं-स्त्री.] 1. विवाह की एक रीति जो विवाह हो जाने पर चौथे दिन होती है 2. विवाह तथा गौने के चौथे दिन वधू के घर से वर के घर आने वाला उपहार 3. मुसलमानों की एक प्रथा, जिसमें शादी के बाद लड़का अपनी पत्नी से मिलने के लिए ससुराल आता है 4. फ़सल की बाँट, जिसमें जमींदार चौथाई लेता है; चौकुर। [वि.] चौथा।

चौदंता [सं-पु.] एक प्रकार का हाथी। [वि.] 1. चार दाँतोंवाला 2. अल्हड़ 3. उद्दंड 4. छोटी उम्र का।

चौदंती [सं-स्त्री.] अल्हड़पन; उद्दंडता; धृष्टता; ढिठाई। [वि.] चौदंता।

चौदस (सं.) [सं-स्त्री.] वह तिथि जो किसी पक्ष में चौदहवें दिन होती हैं; चतुर्दशी।

चौदह [वि.] संख्या '14' का सूचक।

चौदहवाँ [वि.] क्रम या गिनती में चौदह के स्थान पर पड़ने वाला।

चौदानी [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की बाली जिसमें चार पत्तियाँ लगी होती हैं 2. कान की वह बाली जिसमें मोती के चार दाने लगे हों।

चौधराहट [सं-स्त्री.] चौधरी का काम या भाव; चौधरी होने का गुण।

चौधरी (सं.) [सं-पु.] 1. एक जाति विशेष 2. किसी वर्ग, समुदाय या समाज का मुखिया, प्रधान या श्रेष्ठ 3. किसी बिरादरी या मंडली का प्रधान जो प्रायः झगड़े आदि निपटाता है 4. {ला-अ.} वह व्यक्ति जो अगुआ होकर हर काम में हाथ डालता हो।

चौपट [वि.] 1. जो नष्ट हो चुका हो 2. बरबाद; तबाह 3. चारों तरफ़ से खुला हुआ और असुरक्षित (घर इत्यादि); बरबाद हो चुकी वस्तु 4. वह जो बुरी संगत में फँसा हो।

चौपटा [वि.] चौपट करने वाला; नाश करने वाला; काम बिगाड़ने वाला; सत्यानाशी।

चौपड़ (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चौसर नामक खेल जो बिसात पर गोटियों से खेला जाता है 2. खाट, पलंग आदि की बुनावट का वह प्रकार जिसमें चौसर की आकृति बनी होती है 3. घर, महल, मंदिर आदि में उक्त प्रकार की बनी हुई बनावट।

चौपत [वि.] 1. चार तहों या परतों लपेटा हुआ 2. जिसमें या जिसकी चार तहें हो। [सं-पु.] पत्थर का वह टुकड़ा जिसमें एक कील लगी रहती है और जिसपर कुम्हार का चाक रहता है।

चौपतिया [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की घास जो गेहूँ के खेत में उत्पन्न होकर फ़सल को बहुत हानि पहुँचाती है 2. एक साग; उटगन 3. कशीदे आदि में वह बूटी जिसमें चार पत्तियाँ हों 4. चार पन्नों की पोथी या पुस्तिका। [वि.] 1. चार पत्तियों वाला 2. जिसमें चार पत्तियाँ दिखलाई गई हो।

चौपदा [सं-पु.] 1. चार पैरों वाला पशु; चौपाया 2. एक प्रकार का छंद।

चौपहरा [वि.] 1. चार पहर का; चार पहर संबंधी 2. चार-चार पहर के अंतर का 3. हर समय होता रहने वाला।

चौपहल [सं-पु.] चार पहल या पार्श्व। [वि.] जिसके चार पहल या पार्श्व हों; जिसमें लंबाई, चौड़ाई और मोटाई हो; वर्गात्मक।

चौपहिया [सं-पु.] चार पहियों वाली गाड़ी [वि.] चार पहियों वाला; जिसमें चार पहिए हों।

चौपाई (सं.) [सं-स्त्री.] (काव्यशास्त्र) चार चरण का मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में सोलह-सोलह मात्राएँ होती हैं।

चौपाया (सं.) [सं-पु.] 1. चार पैरों वाला पशु, जैसे- गाय, घोड़ा, बकरी 2. ऐसा पशु जो चारों पैरों से चलता हो। [वि.] जिसमें चार पाए हों।

चौपाल [सं-पु.] 1. गाँवों में वह स्थान जहाँ पर लोग एकत्रित होकर बातचीत व मनोरंजन करते हैं 2. छतदार चबूतरा 3. ग्रामीण घरों के सामने की दालान 4. चारों ओर से खुली छायादार पालकी।

चौपुरा [सं-पु.] वह कुआँ जिसपर चार पुर या मोट एक साथ चल सके; वह कुआँ जिसपर चार चरसे एक साथ चलते हों।

चौबारा [सं-पु.] घर के ऊपर या छत पर बना खुला कमरा 2. वह कमरा जिसमें चार दरवाज़े हों। [क्रि.वि.] चौथी बार।

चौबीस [वि.] संख्या '24' का सूचक।

चौबीसवाँ [वि.] क्रम में चौबीसवें स्थान पर आने वाला।

चौबे (सं.) [सं-पु.] ब्राह्मणों में एक कुलनाम या सरनेम।

चौबोला [सं-पु.] एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में आठ और सात के विश्राम से पंद्रह मात्राएँ होती हैं तथा अंत में लघु गुरु होता है।

चौमसिया [सं-स्त्री.] चार माशे का बटखरा। [वि.] 1. चौमासे में होने वाला 2. चौमासे से संबंध रखने वाला।

चौमाप [सं-पु.] 1. किसी चीज़ की लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई तथा काल मापने के चार अंग 2. उक्त चारों अंगों का समन्वित रूप; चारों आयाम।

चौमापी [वि.] चार आयामों वाला।

चौमास [सं-पु.] चौमासा।

चौमासा (सं.) [सं-पु.] 1. वर्षा-ऋतु के आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन इन चार महीनों का समवेत नाम; चतुर्मास 2. वर्षा-ऋतु संबंधी गीत या कविता 3. किसी स्त्री के गर्भवती होने पर चौथे महीने में मनाया जाने वाला उत्सव। [वि.] 1. चार महीनों में होने वाला 2. चतुर्मास में होने वाला।

चौमासी [सं-स्त्री.] एक प्रकार का शृंगारिक गीत जो प्रायः बरसात में गाया जाता है।

चौमुख [क्रि.वि.] चारों ओर; चारों तरफ़; चतुर्दिक।

चौमुखा [वि.] 1. जिसके चारों ओर चार मुख हों 2. जो सब ओर उन्मुक्त या प्रवृत्त हो। [मु.] -दीया जलाना : अपने को दिवालिया घोषित करना।

चौमुहानी (हिं.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] वह स्थान जहाँ चारों ओर से आकर चार रास्ते मिलते हों; चौराहा; चौरास्ता।

चौर (सं.) [सं-पु.] 1. दूसरों की वस्तु चुराने वाला व्यक्ति; चोर 2. एक गंध द्रव्य 3. चौरपुष्पी।

चौरंग [सं-पु.] तलवार चलाने का वह ढंग जिससे भारी से भारी और कड़ी से कड़ी चीज़ एक हाथ से ही कट जाती है। [वि.] 1. चार रंगों वाला; चौरंगा 2. चारों ओर समान रूप से होने वाला 3. तलवार से पूरी तरह कटा हुआ 4. सब प्रकार से एक जैसा।

चौरंगा [वि.] चार रंगोंवाला।

चौरंगी [सं-स्त्री.] चौमुहानी; चौराहा। [वि.] चार रंगों वाली।

चौरस (सं.) [वि.] 1. जो हर ओर से एक जैसा या एक रस हो 2. जो एक समान ऊँचाई पर हो; बराबर 3. समतल; जो ऊबड़-खाबड़ न हो, जैसे- चौरस खेत। [सं-पु.] 1. ठठेरों का औज़ार जिससे बरतनों को सही किया जाता है 2. एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में एक तगण और एक यगण होता है।

चौरसाना [क्रि-स.] 1. समतल बनाना 2. चौरस करना 3. किसी वस्तु का तल बराबर करना या बनाना।

चौरसिया [सं-पु.] 1. एक जाति विशेष 2. वैश्यों का एक कुलनाम और सरनेम।

चौरस्ता (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] वह स्थान जहाँ चार रास्ते मिलते हों; चौराहा; चौमुहानी।

चौरा (सं.) [सं-पु.] 1. चबूतरा; वेदी 2. मिट्टी आदि से बना वह चबूतरा जहाँ किसी कल्पित देवी-देवता, भूत-प्रेत, महात्मा आदि की स्थापना करके पूजा की जाती है 3. चौपाल; चौबारा।

चौरानवे [वि.] संख्या '94' का सूचक।

चौरासी [वि.] संख्या '84' का सूचक। [मु.] -में पड़ना : अनेक योनियों में जन्म लेना और मरना।

चौराहा [सं-पु.] वह स्थान जहाँ चार रास्ते मिलते हों; चौरास्ता; चौमुहानी।

चौरी [सं-स्त्री.] 1. छोटा चौरा 2. एक पेड़ जिसकी छाल से रंग बनाया जाता है 3. एक ऐसा पेड़ जो हिमालय के आस-पास होता है और जिसकी छाल दवा के काम में आती है।

चौलड़ा [वि.] जिसमें चार लड़ी या मालाएँ हो।

चौलाई [सं-स्त्री.] एक प्रकार का हरा साग।

चौवन [वि.] संख्या '54' का सूचक।

चौस [सं-पु.] 1. चार बार जोता हुआ खेत 2. खेत को चौथी बार जोतने की क्रिया।

चौसट्टी (सं.) [सं-स्त्री.] चौंसठ योगनियों का समूह।

चौसर [सं-पु.] 1. एक प्रकार का खेल जो बिसात पर चार रंगों की चार-चार गोटियों और तीन पासों से खेला जाता है; चौपड़; नर्दबाज़ी 2. उक्त खेल की बिसात 3. चार लड़ों वाला हार 4. खेल में लगातार चार बार होने वाली जीत।

चौहट्टा [सं-पु.] 1. वह हाट या बाज़ार जिसके चारों तरफ़ दुकानें हों; चौमुहानी; चौरस्ता 2. उक्त प्रकार का बाज़ार।

चौहत्तर [वि.] संख्या '74' का सूचक।

चौहद्दी [सं-स्त्री.] 1. किसी स्थान, क्षेत्र की चारों दिशाओं की सीमा 2. {ला-अ.} चार दीवारी।

चौहान [सं-पु.] क्षत्रिय समाज में एक कुलनाम या सरनेम।

च्यवन (सं.) [सं-पु.] 1. बूँद-बूँद करके टपकना या चूना 2. एक प्राचीन ऋषि।

च्यावन (सं.) [सं-पु.] 1. बूँद-बूँद करके टपकाने की क्रिया या भाव 2. निकाल देना।

च्युत (सं.) [वि.] 1. गिरा या टपका हुआ 2. चुआ या झड़ा हुआ 3. चौमुखा दीया जलना 4. नष्ट-भ्रष्ट; विमुख।

च्युति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उन्नत अवस्था, वैभव, ऊँचे पद मर्यादा आदि से गिरकर बहुत नीचे स्तर पर आने की क्रिया; पतन; अवनति 2. तत्परतापूर्वक कोई कार्य न करने की स्थिति।


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