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वर्धा हिंदी शब्दकोश

संपादन - राम प्रकाश सक्सेना


हिंदी वर्णमाला का स्वर वर्ण। उच्चारण की दृष्टि से यह निम्नतर-उच्च, पश्च, गोलित, हृस्व स्वर है।

उँगनी [सं-स्त्री.] गाड़ियों के पहियों में तेल डालने की क्रिया या भाव।

उँगलाना [क्रि-स.] तंग करना; परेशान करना; किसी कार्य के ठीक तरह से पूर्ण होने में बाधा उत्पन्न करना।

उँगली (सं.) [सं-स्त्री.] हाथ के आगे निकले हुए सामान्यतया पाँच अवयव जिन्हें क्रमशः अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका तथा कनिष्ठा कहते हैं; अँगुली। [मु.]-उठाना : लांछन लगाना, दोषी ठहराना। -पकड़कर पहुँचा पकड़ना : हलका सहारा पाकर विशेष प्राप्ति के लिए अनुचित प्रयास करना। उँगलियों पर नचाना : अपनी इच्छानुसार चलाना। पाँचों उँगलियाँ घी में होना : सब प्रकार से लाभ होना।

उँघाई [सं-स्त्री.] 1. ऊँघने की क्रिया या भाव 2. झपकी 3. हलकी नींद में होने की अवस्था; ऊँघ।

उँदरी (सं.) [सं-स्त्री.] एक रोग जिसमें सिर के बाल झड़ जाते हैं।

उँदरू (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार की काँटेदार झाड़ी या बेल 2. उक्त बेल का परवल के समान खट्टा फल; कुंदरू।

उँह [अव्य.] 1. अस्वीकार, असहमति या उदासीनता का सूचक शब्द 2. घृणा आदि का सूचक शब्द 3. कष्ट या वेदना में कराहने का शब्द।

उँहूँ [अव्य.] 1. असहमति और अस्वीकार का सूचक शब्द 2. नहीं।

उंचन [सं-स्त्री.] 1. एक पतली रस्सी 2. पतली रस्सी जो चारपाई के पैताने में बुनावट कसने के लिए लगाई जाती है।

उंचना [क्रि-स.] चारपाई की उनचन ढीली हो जाने पर उसे कसना।

उंछ (सं.) [सं-पु.] फ़सल कट जाने के बाद खेत में गिरे हुए दाने को जीविका के लिए बीनने की क्रिया।

उंछवृति (सं.) [सं-स्त्री.] खेतों में गिरे हुए अनाज को बीनकर जीवन निर्वाह करना।

उंछशील (सं.) [वि.] उंछवृति से जीवन निर्वाह करने वाला।

उंडक (सं.) [सं-पु.] एक तरह का कुष्ठ रोग।

उंदुर (सं.) [सं-पु.] चूहा; मूसक।

उई [अव्य.] कष्ट या पीड़ासूचक शब्द।

उऋण (सं.) [वि.] 1. जिसने ऋण चुका दिया हो 2. ऋण-मुक्त 3. जो अपने कर्तव्यों आदि से मुक्त हो गया हो।

उकटना [क्रि-स.] 1. गुप्त बातों का भेद खोलना; प्रकट करना 2. किसी के दोषों और स्वयं के उपकारों का उल्लेख करते हुए भला-बुरा कहना; उघटना।

उकठना [क्रि-अ.] 1. सूखकर लकड़ी की तरह कड़ा होना 2. ऐंठना 3. उखड़ना 4. शुष्क होना, जैसे- वर्षा के न होने पर खेतों का उकठना।

उकठा (सं.) [वि.] 1. जो लकड़ी की तरह सूखकर ऐंठ गया हो 2. सूखा; शुष्क।

उकड़ू (सं.) [सं-पु.] दे. उकड़ूँ।

उकडूँ (सं.) [सं-पु.] घुटने मोड़ कर तथा शरीर को समेट कर बैठने की अवस्था; पैर के तलवे और नितंब के बल बैठने की वह मुद्रा जिसमें घुटने, छाती (वक्ष) से लगे रहते हैं।

उकताना (सं.) [क्रि-अ.] 1. अनचाहे कार्य से ऊबना; बोर होना 2. अधीर होना 3. जल्दी मचाना 4. परेशान हो जाना।

उकताहट (सं.) [सं-स्त्री.] उकताने का भाव; जल्दबाज़ी; अधीरता; उकता जाना; ऊबन।

उकलना (सं.) [क्रि-अ.] 1. कपड़े आदि की तह या लपेट खुलना 2. उधड़ना।

उकवत (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का चर्मरोग 2. त्वचा में खुजली और दाने पड़ने वाला एक रोग।

उकसना (सं.) [क्रि-अ.] 1. उभरना 2. नीचे से ऊपर को आना 3. निकलना 4. कसमसाना 5. शरीर के अग्रभाग को ऊपर उठाना 4. उगना; अंकुरित होना।

उकसाना [ क्रि-स.] भड़काना; उत्तेजित करना; उभारना; (दीपक की बत्ती को) आगे सरकाना।

उकसाव [सं-पु.] किसी बात के लिए उकसाने या प्रेरित करने की क्रिया या भाव।

उकसावा [सं-पु.] उत्प्रेरणा के द्वारा उत्तेजित होने की स्थिति; उत्तेजित होने हेतु प्रेरित करना।

उकाब (अ.) [सं-पु.] 1. गिद्ध; गिद्ध जाति का एक बड़ा पक्षी 2. गरुड़।

उकारांत (सं.) [वि.] 1. वह शब्द जिसके अंत में उकार या 'उ' स्वर हो, जैसे- मधु और लघु।

उकीरना [क्रि-स.] खोदकर उखाड़ना या निकालना।

उकेरना (सं.) [क्रि-स.] 1. लकड़ी, पत्थर आदि कड़ी चीज़ों पर किसी नुकीले औज़ार से नक्काशी करना 2. चित्र बनाना 3. बेलबूटे आदि बनाना 4. उत्कीर्ण करना।

उकेरी [सं-स्त्री.] 1. उकेरने या खोदकर बेलबूटे बनाने का कार्य 2. नक्काशी करने की क्रिया; (एनग्रेविंग)।

उकेलना [क्रि-स.] 1. लिपटी हुई चीज़ को छुड़ाना या अलग करना 2. तह या परत अलग करना; खोलना; उधेड़ना।

उक्त (सं.) [वि.] पहले कही गई; कहा गया; कथित; उल्लिखित; उपर्युक्त; ऊपर कहा गया।

उक्त-प्रयुक्त (सं.) [सं-पु.] 1. बातचीत; कथोपकथन 2. (नृत्य) लास्य के दस अंगों में से एक।

उक्ति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कवित्वमय कथन; वचन; वाक्य 2. अनोखा व चमत्कारपूर्ण वाक्य 3. महत्वपूर्ण कथन 4. किसी की कही हुई बात।

उक्ति-युक्ति (सं.) [सं-स्त्री.] किसी समस्या को सुलझाने के लिए बताई जाने वाली तरकीब।

उक्थ (सं.) [सं-पु.] 1. कथन; उक्ति 2. स्तोत्र; सूक्ति 3. साम-विशेष 4. प्राण 5. ऋषभक नाम की औषधि।

उक्थी (सं.) [वि.] स्तोत्रों का पाठ करने वाला।

उक्षण (सं.) [सं-पु.] 1. जल छिड़कने की क्रिया या भाव 2. सींचना।

उक्षाल (सं.) [वि.] 1. बड़ा 2. उत्तम 3. भयंकर 4. तीव्र गति।

उखटना (सं.) [क्रि-अ.] 1. चलने में इधर-उधर पैर रखना; लड़खड़ाना 2. लड़खड़ाकर गिरना 3. कुतरना; खोंटना।

उखड़ना (सं.) [क्रि-अ.] 1. आधार या जड़ से अलग होना; जड़ से (समूल) निकल जाना 2. आधार पर जमी या टिकी हुई वस्तुओं का आधार से अलग होना 3. धरती के अंदर की चीज़ का ऊपर आ जाना 4. जोड़ से हट जाना, जैसे- अँगूठी का नग उखड़ना 5. {ला-अ.} भड़क जाना, जैसे- तुम तो ज़रा-सी बात पर उखड़ गए 6. अलग होना; हटना 8. टूटना (दम, साँस); उपटना (हड्डी आदि का)। [मु.] उखड़ी-उखड़ी बातें करना : अन्यमनस्क या उदासीन होकर बातें करना।

उखड़वाना [क्रि-स.] 1. उखाड़ने का काम किसी से कराना 2. किसी को उखाड़ने में प्रवृत्त करना।

उखम [सं-पु.] तपन; उष्णता; गरमी।

उखाड़ [सं-पु.] 1. उच्छेदन; उखाड़ने की क्रिया या भाव 2. कुश्ती में विरोधी पहलवान के दाँव को विफल करने वाला दाँव या पेंच 3. तर्क की काट।

उखाड़ना [क्रि-स.] 1. किसी गड़ी, जमी, बैठी वस्तु को आधार से अलग करना; नष्ट करना 2. उन्मूलन 3. शरीर के किसी अंग को उसके स्थान से अलग करना 4. {ला-अ.} भड़काना; बिचकाना; तितर-बितर कर देना 5. टालना; हटाना 6. ध्वस्त या नष्ट करना 7. किसी समूह को छिन्न-भिन्न कर देना 8. किसी का रंग या प्रभाव न जमने देना। [मु.] जड़ से- : इस प्रकार दूर या नष्ट करना कि फिर अपने स्थान पर आकर ठहर या पनप न सके।

उखाड़-पछाड़ [सं-स्त्री.] किसी कार्य या वस्तु को अस्त-व्यस्त या उलट-पुलट करने की क्रिया या भाव।

उखाड़ू [वि.] 1. प्रायः उखाड़ने का काम करते रहने वाला 2. {ला-अ.} काम बिगाड़ने वाला।

उखालिया (सं.) [सं-पु.] व्रत आरंभ करने से पहले किया जाने वाला भोजन जो कि रात के अंतिम पहर में किया जाता है; सरगही।

उखेड़ना [क्रि-स.] 1. पहले से गड़ी, जमी या बैठाई हुई चीज़ को उस स्थान से अलग करना 2. हटाना 3. नष्ट करना 4. किसी स्थान पर टिके या ठहरे व्यक्ति को उस स्थान से भगाना; खदेड़ना आदि।

उगना [क्रि-अ.] 1. पैदा हो जाना; अंकुरण या जम जाना; उदय होना 2. अँखुआ निकलना।

उगलना [क्रि-स.] 1. अपच या कड़वाहट की अवस्था में खाद्य वस्तु को मुँह से बाहर निकालना; बाहर निकालना, जैसे- सूर्य की तपन से धरती आग उगल रही थी 2. रहस्य प्रकट करना, जैसे- पुलिस के डर से उसने सारा भेद उगल दिया।

उगलवाना [क्रि-स.] किसी को उगलने में प्रवृत्त करना; उगलाना।

उगाना [क्रि-स.] 1. उत्पन्न या अंकुरित करना 2. किसी बीज, पौधे या लता को पैदा करना 3. उगने में प्रवृत्त करना।

उगाल (सं.) [सं-पु.] 1. उगालने की क्रिया या भाव 2. उगली हुई चीज़; पीक; थूक; खखार।

उगालदान [सं-पु.] काँसे, पीतल आदि का एक प्रकार का पात्र जिसमें खखार, थूक आदि गिराया जाता है; पीकदान।

उगाला [सं-पु.] 1. एक प्रकार का कीड़ा जो फ़सल में लगता है 2. सदा पानी में तर रहने वाली भूमि; पनमार।

उगाहना (सं.) [क्रि-स.] 1. बकाया या ऋण वसूल करना; लोगों से निश्चित रकम वसूल करना, जैसे- चंदा इकट्ठा करना 2. प्रयत्नपूर्वक कुछ प्राप्त करना।

उगाही [सं-स्त्री.] 1. उगाहने की क्रिया या भाव 2. धन वसूलने का काम; वसूली 3. वसूली के रूप में प्राप्त धन; चंदा; दान 4. कर; लगान (भूमि) 5. सरकार द्वारा उत्पादकों से उत्पादित वस्तु के एक नियत अंश की वसूली।

उग्गाहा (सं.) [सं-पु.] आर्या छंद का एक भेद जिसके सम चरणों में अठारह और विषम चरणों में बारह मात्राएँ होती हैं।

उग्र (सं.) [वि.] 1. भयानक 2. निष्ठुर 3. क्रूर 4. क्रोधी 5. जो शांत न हो 6. प्रचंड 7. उत्कट 8. तेज़; तीव्र 9. असह्य। [सं-पु.] 1. रुद्र; शिव 2. रौद्र रस 3. वत्सनाभ नामक विष।

उग्रगंधा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक तीखा खाद्य पदार्थ; अजवायन 2. एक जड़ी बूटी; बच 3. अजमोदा (अजवायन का एक प्रकार) 4. नकछिकनी।

उग्रता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. तेज़ी; प्रचंडता; उग्र होने की अवस्था या भाव 2. (काव्यशास्त्र) एक संचारी भाव जिसके कारण मन में स्नेह दया की भावना दब जाती है और क्रोध प्रबल हो जाता है।

उग्रधन्वा (सं.) [सं-पु.] 1. शिव; शंकर 2. इंद्र। [वि.] 1. बड़े धनुषवाला 2. बड़ा धनुर्धर।

उग्रपंथी (सं.) [वि.] उग्रवादी।

उग्रवाद (सं.) [सं-पु.] 1. उग्र विचारों और उग्र कार्यों की उपयोगिता मानने वाला सिद्धांत 2. उग्र मत का सिद्धांत।

उग्रवादी (सं.) [वि.] 1. उग्रवाद का समर्थक 2. उग्रवाद का अनुयायी या मानने वाला 3. क्रांतिकारी विचारोंवाला 3. उग्रपंथी; अतिवादी।

उग्रशेखरा (सं.) [सं-स्त्री.] शिव के मस्तक पर रहने वाली गंगा।

उग्रह (सं.) [सं-पु.] 1. बंधन से मुक्ति 2. सूर्य, चंद्र का ग्रहण से मुक्त होने की अवस्था या भाव 3. मोक्ष।

उग्रहना (सं.) [क्रि-स.] 1. त्यागना; छोड़ना 2. उगलना।

उघटना (सं.) [क्रि-अ.] 1. उघाड़ना; खोलना; प्रकट करना 2. दबी-दबाई बात उघाड़ देना 3. बोलना; कहना; ताना देना; भला-बुरा कहना 4. संगीत, नृत्य आदि के समय बराबर हर ताल पर कुछ आघात या शब्द करना 5. बीती या पुरानी बातों की नए सिरे से चर्चा करना।

उघटा [सं-पु.] उघटने की क्रिया या भाव। [वि.] 1. दबी या भूली हुई बातें कहकर भेद या रहस्य खोलने वाला 2. अपने उपकारों या भलाइयों और दूसरे के अपकारों या बुराइयों की चर्चा करने वाला अथवा ऐसी चर्चा करके ताना देते हुए दूसरे को नीचा दिखाने वाला 3. किए हुए उपकार को बार-बार कहने वाला, अहसान जताने वाला।

उघड़ना [क्रि-अ.] 1. उघरना; आवरण हट जाने पर, छिपी या दबी हुई वस्तु का प्रकट होना या सामने आना; प्रत्यक्ष; व्यक्त या स्पष्ट होना 2. आगे पड़ा हुआ आवरण हटना 3. भेद या रहस्य खुलना; भंडा फूटना।

उघड़ा [वि.] आवरणहीन; खुला; जो ढका न रहे।

उघरना [क्रि-अ.] 1. खुलना 2. किसी छिपी बात, वस्तु आदि का प्रत्यक्ष रूप से सामने आ जाना 3. अनावृत होना; नंगा होना 4. भेद खुलना; भंडाफोड़ होना 5. उचटना; विरक्त होना।

उघरनी [सं-स्त्री.] 1. किसी दूसरी वस्तु को खोलने वाली चीज़ 2. चाभी; ताली; कुंजी।

उघरारा [वि.] 1. जिसपर कोई आवरण न हो; खुला हुआ 2. नग्न; नंगा; अनावृत 3. जो बंद न हो।

उघाड़ना [क्रि-स.] 1. आवरण हटाना 2. खोलना 3. नंगा करना; अनावृत करना 4. प्रकट करना 5. भंडा फोड़ना; गुप्त बात खोलना।

उघाड़ा [वि.] 1. जिसपर कोई आवरण या पर्दा न हो; खुला हुआ; आवरणहीन 2. जिसके शरीर पर वस्त्र न हो; नंगा।

उघारना [क्रि-स.] 1. अनावृत करना; परदा हटाना या उठाना 2. पर्दाफाश करना 3. वस्त्रविहीन करना।

उचकन (सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु को ऊँचा करने के लिए उसके नीचे रखा जाने वाला कोई आधार 2. ईंट-पत्थर आदि का वह टुकड़ा जिसे नीचे रख कर किसी चीज़ को ऊँचा करते हैं।

उचकना [क्रि-अ.] पंजे के बल खड़े होकर किसी ऊँची वस्तु को देखने या पकड़ने का प्रयत्न करना; पंजे के बल शरीर को थोड़ा ऊपर उठाना; उछलना। [क्रि-स.] उचक लेना; उठा लेना; लपककर ले लेना।

उचकाना [क्रि-स.] 1. किसी वस्तु, व्यक्ति आदि को ऊपर की ओर उठाना 2. ऊपर करना 3. उछालना 4. ऊँचा करना।

उचक्का [सं-पु.] 1. दूसरे की वस्तु आदि छीनकर भागने वाला आदमी 2. ठग; धूर्त 3. बदमाश 4. उठाईगीर 5. चोर।

उचक्कापन [सं-पु.] 1. उचक्का होने की अवस्था, भाव या गुण 2. चोर, बदमाश होने की अवस्था।

उचटना [क्रि-अ.] 1. ऊबना (मन का न लगना); मन का उदासीन होना 2. मन का विरक्त होना।

उचटाना [क्रि-स.] 1. अलग करना; छुड़ाना 2. उखाड़ना; नोंचना 3. उदासीन या विरक्त करना 4. किसी उपाय या प्रयत्न से किसी का मन किसी चीज़ से हटाना; ध्यान बँटाना 5. किसी का मन या ध्यान किसी ओर से हटाने से लिए किया गया प्रयत्न; बिचकाना; भड़काना।

उचरना (सं.) [क्रि-स.] 1. उच्चारण करना 2. बोलना; कहना 3. लिखे हुए अक्षरों को सस्वर पढ़ा जाना; मुँह से शब्द निकालना।

उचराई [सं-स्त्री.] 1. उच्चारण करने की क्रिया; भाव या स्थिति 2. उच्चारण करने का पारिश्रमिक।

उचाट (सं.) [सं-पु.] ऊबना; विरक्ति (मन का न लगना); ऊबने की क्रिया। [वि.] 1. विरक्त 2. वह जो उचट गया हो।

उचाटना (सं.) [क्रि-स.] 1. ध्यान भंग करना; ध्यान तोड़ना 2. उच्चाटन करना 3. विरक्त करना 4. ध्यान हटाना।

उचाड़ना [क्रि-स.] 1. किसी लगी, सटी या चिपकी वस्तु को अलग करना 2. उखाड़ना 3. नोचना।

उचिंत खाता [सं-पु.] पंजी या बही का वह खाता जिसमें अस्थायी रूप से ऐसे धन के बारे में लिखा जाता है, जिसका पूरा हिसाब बाद में होने को हो (सस्पेंस अकाउंट)।

उचित (सं.) [वि.] 1. ठीक; औचित्यपूर्ण 2. भलीतरह; मुनासिब 3. आदर्श; न्याय आदि की दृष्टि से यथोचित।

उच्च (सं.) [वि.] 1. ऊँचा 2. बड़ा; श्रेष्ठ 3. लंबा 4. महान; कुलीन; उत्तम 5. प्रमुख; प्रधान 6. प्रभावशाली 7. जिसका विस्तार ऊपर की ओर बहुत दूर तक हो 8. जो अधिकार, पद आदि में सबसे बड़ा हो।

उच्चक (सं.) [वि.] 1. सबसे अधिक ऊँचा 2. ऊँचाई के विचार से उस निश्चित सीमा तक पहुँचने वाला जिससे आगे बढ़ना या ऊपर चढ़ना वर्जित हो; (सीलिंग)।

उच्चतम (सं.) [वि.] 1. सबसे ऊँचा; सबसे उच्च 2. जिससे बढ़कर ऊँचा न कोई हो न हो सकता हो 3. 'निम्नतम' का विलोम।

उच्चतर (सं.) [वि.] 1. उच्च के बाद तथा उच्चतम से पहले की स्थिति; (हायर) 2. उच्च और उच्चतम के मध्य की अवस्था, जैसे- उच्चतर माध्यमिक विद्यालय।

उच्चता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उच्च होने की अवस्था या भाव 2. श्रेष्ठता 3. ऊँचापन 4. उत्तमता।

उच्चयापचय (सं.) [सं-पु.] उन्नत्ति तथा अवनति; उत्थान तथा पतन।

उच्चरण (सं.) [सं-पु.] 1. बाहर आना 2. कंठ, तालू, जिह्वा आदि के प्रयत्न से शब्द का बाहर आना 3. मुँह से शब्द फूटना 4. गले से आवाज़ निकलना 5. उच्चारण; कहना; बोलना।

उच्चरित (सं.) [वि.] 1. जिसका उच्चारण किया गया हो 2. उच्चारित 3. बोला हुआ; कथित; कहा हुआ 4. अभिव्यक्त।

उच्चलन (सं.) [सं-पु.] 1. गमन 2. रवाना होना 3. जाना।

उच्च वर्ग (सं.) [सं-पु.] 1. समाज का सबसे अधिक धनी तथा समृद्ध वर्ग; (अपर क्लास) 2. अभिजात्य वर्ग।

उच्चस्तरीय (सं.) [वि.] ऊँचे स्तर का; श्रेष्ठ कोटि का।

उच्चस्थ (सं.) [वि.] 1. ऊँचे स्थान या पद पर आसीन 2. ऊँचाई पर अवस्थित 3. जो ऊँचाई पर हो।

उच्चांक (सं.) [सं-पु.] उच्च अंक; उच्च मान।

उच्चांतरीय (सं.) [सं-पु.] सागर के मध्य तक निकला हुआ विस्तृत भू-भाग; शैल खंड या पर्वत।

उच्चांश (सं.) [सं-पु.] 1. (ज्योतिष) उन्नतांश 2. उन्नत कोण।

उच्चाकांक्षा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. औरों से आगे बढ़ने की आकांक्षा 2. कोई बड़ा और महत्वपूर्ण कार्य करने की अभिलाषा; महत्वाकांक्षा; (ऐंबिशन)।

उच्चाकांक्षी (सं.) [वि.] जिसके मन में उच्चाकांक्षा हो; महत्वाकांक्षी; (ऐंबिशस)।

उच्चाटन (सं.) [सं-पु.] 1. एक तांत्रिक प्रयोग; तंत्र के अभिचारों में एक कर्म; तंत्र प्रक्रिया के द्वारा किसी के चित्त को किसी व्यक्ति, स्थान या भाव से हटाने का प्रयत्न करना 2. विराग; उदासीनता या विरक्ति होना 3. उचाड़ना।

उच्चाटित (सं.) [वि.] 1. जिसे उखाड़ा गया हो 2. जिसके ऊपर उच्चाटन का प्रयोग किया गया हो।

उच्चादर्श (सं.) [सं-पु.] उच्च आदर्श; उच्च मानदंड।

उच्चाधिकारी (सं.) [सं-पु.] वह अधिकारी जो किसी ऊँचे पद पर हो।

उच्चाभिलाषा (सं.) [सं-स्त्री.] उच्च आकांक्षा; ऊँची कामना।

उच्चाभिलाषी (सं.) [वि.] ऊँची अभिलाषावाला; उच्चाकांक्षी।

उच्चायुक्त (सं.) [सं-पु.] 1. राष्ट्रमंडल के सदस्य राज्यों में किसी राज्य की तरफ़ से दूसरे राज्य के पास भेजा जाने वाला राजनयिक प्रतिनिधि 2. उच्चायोग का प्रधान; (हाई कमिश्नर)।

उच्चायोग (सं.) [सं-पु.] 1. राष्ट्र मंडल के सदस्यों का दूतावास 2. उच्चायुक्त का कार्यालय जो दूतावास के समान राजकीय संस्थान होता है 3. उच्चायुक्त और उसके सभी कर्मचारी; (हाई कमीशन)।

उच्चारण (सं.) [सं-पु.] 1. शब्दों या उसकी ध्वनियों को मुख से निकालने या बोलने का ढंग; शब्द को मुख से बोलना।

उच्चारणाभ्यास (सं.) [सं-पु.] 1. वर्ण, शब्द, पद, वाक्य या वाक्यांश के शुद्ध उच्चारण का अभ्यास 2. बोलने का अभ्यास।

उच्चारित (सं.) [वि.] उच्चरित।

उच्चालक (सं.) [सं-पु.] (किसी व्यक्ति या वस्तु को) ऊपर ले जाने वाला; पद या स्थान में ऊपर उठाने वाला।

उच्चावच (सं.) [सं-पु.] भूतल की ऊँच-नीच। [वि.] 1. ऊपर नीचे; ऊँचा-नीचा; विषम 2. छोटा बड़ा; विविध; विभिन्न।

उच्चासन (सं.) [सं-पु.] उच्च आसन या स्थल; उच्च पद; बड़ा पद।

उच्चित्र (सं.) [वि.] जिसपर बेल-बूटे या अन्य आकृतियाँ बनाई गई हों।

उच्चैःश्रवा (सं.) [सं-पु.] (पुराण) समुद्रमंथन के समय निकले रत्नों में से एक वह घोड़ा जो सात मुँहों और ऊँचे या खड़े कानोंवाला था तथा जिसे इंद्र ने अपने पास रखा था 2. इंद्र का सफ़ेद घोड़ा। [वि.] 1. जिसके कान लंबे हों 2. ऊँचा सुनने वाला।

उच्छन्न (सं.) [वि.] 1. मूल से उखड़ा हुआ; नष्ट 2. लुप्त।

उच्छरायसूचक (सं.) [सं-पु.] प्रगति सूचक; उत्थान सूचक।

उच्छल (सं.) [वि.] 1. लहराता हुआ; तरंगित 2. उछलता हुआ।

उच्छलित (सं.) [वि.] जो वेग से ऊपर उठता; उछलता या उमड़ता हो; तरंगित।

उच्छवासी (सं.) [वि.] कष्ट या दुख के कारण लंबी साँस भरने वाला; आह भरने वाला।

उच्छिन्न (सं.) [वि.] 1. कटा हुआ; खंडित 2. उखड़ा हुआ 3. काट; खोद या तोड़-फोड़कर नष्ट या ध्वस्त किया हुआ।

उच्छिष्ट (सं.) [वि.] 1 खाने के बाद बचाखुचा 2. परित्यक्त [सं-पु.] जूठन; जूठा अन्न।

उच्छुल्क [वि.] करमुक्त; जिसपर चुंगी न दी गई हो। [क्रि.वि.] बिना चुंगी या महसूल दिए।

उच्छू (सं.) [सं-पु.] गले में पानी आदि रुकने या अटकने से आने वाली खाँसी।

उच्छृंखल (सं.) [वि.] 1. मनमानी करने वाला; स्वेच्छाचारी 2. जो शृंखलाबद्ध या क्रम में न हो; अव्यवस्थित 3. जिसका अपने ऊपर नियंत्रण न हो 4. निरंकुश 5. किसी का दबाव न मानने वाला; अक्खड़; उद्दंड।

उच्छृंखलता (सं.) [सं-स्त्री.] उद्दंडता; स्वेच्छाचारिता; निरंकुशता।

उच्छेत्ता (सं.) [सं-पु.] नाशकर्ता; उच्छेद (नाश) करने वाला(व्यक्ति)। [वि.] नाश करने वाला; उच्छेदक।

उच्छेद (सं.) [सं-पु.] 1. जड़ से उखाड़ने की क्रिया या भाव 2. खंडन 3. उखाड़-पछाड़ 4. नष्ट करना; नाश।

उच्छ्वसन (सं.) [सं-पु.] 1. साँस लेना 2. गहरी; ठंडी या लंबी साँस लेना 3. आह भरना।

उच्छ्वास (सं.) [सं-पु.] 1. गहरी साँस; मन में कोई कष्ट या वेदना होने के कारण ली जाने वाली लंबी साँस 2. ग्रंथ का कोई अध्याय।

उछंग [सं-पु.] 1. गोद; अंक 2. हृदय; दिल।

उछल-कूद [सं-पु.] 1. बार-बार उछलने की क्रिया या भाव 2. हलचल 3. खेलकूद 4. चंचलता; अधीरता।

उछलना [क्रि-अ.] 1. तेज़ी से कूद पड़ना; ऊपर कूदना 2. नीचे ऊपर होना 3. वेग से ऊपर उठना और गिरना 4. उतराना; उभरना 5. अत्यंत प्रसन्नता में बार-बार कूदना।

उछाँटना [क्रि-स.] 1. कई वस्तुओं में से एक या कुछ वस्तुओं को छाँटना या निकालना 2. उखाड़ना; उपाटना।

उछाल (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सहसा ऊपर उठने की क्रिया 2. उछलकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचने का भाव 3. छलाँग; चौकड़ी।

उछालना (सं.) [क्रि-स.] 1. ऊपर की ओर फेंकना 2. उछलने में प्रवृत्त करना 3. उजागर करना; प्रकाशित करना 4. {ला-अ.} किसी के नाम आदि को कलुषित करना; कलंकित करना।

उछाला [सं-पु.] 1. उल्टी; कै; वमन 2. उबाल।

उछाह [सं-पु.] 1. उत्साह; उमंग; चाव।

उजका [सं-पु.] पक्षियों आदि को डराने के लिए खेत में खड़ा किया जाने वाला पुतला; धोखा।

उजड़ना [क्रि-अ.] तबाह होना; बरबाद होना; वीरान हो जाना; बसे, हुए लोगों से खाली हो जाना।

उजड़वाना [क्रि-स.] 1. किसी को उजाड़ने में प्रवृत्त करना 2. नष्ट भ्रष्ट या तहस नहस करवाना 3. तबाह करवाना 4. वीरान करवाना।

उजड्ड [वि.] 1. निरंकुश; उद्दंड 2. असभ्य; गँवार।

उज़बक (तु.) [वि.] उजड्ड; गँवार; मूर्ख।

उजरत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. एवज़ी 2. पारिश्रमिक; मज़दूरी।

उजला [वि.] 1. सफ़ेद; श्वेत; स्वच्छ; शुभ्र; निर्मल 2. चमकता हुआ; प्रकाशयुक्त।

उजलाना [क्रि-स.] प्रकाशित होना; प्रकाशित करना; साफ़ या निर्मल करना।

उजागर [वि.] 1. प्रकाशित 2. प्रकट करना; सामने लाना 3. कीर्तिशाली; प्रख्यात।

उजाड़ [सं-पु.] 1. उजड़ने की क्रिया या भाव 2. उजड़ा हुआ निर्जन स्थान; सब कुछ नष्ट होना; ऐसा स्थान जहाँ के निवासी दैवीय आपदा के कारण स्थान त्याग कर कहीं अन्यत्र चले गए हों 3. ध्वस्त या गिरा हुआ भवन 4. जंगल; बियाबान। [वि.] 1. आबादी हीन (निर्जन) स्थल 2. उजड़ा हुआ।

उजाड़ना (सं.) [क्रि-स.] 1. बसे हुए स्थान को निर्जन, वीरान कर देना 2. तोड़ना; ध्वस्त करना; नष्ट-भ्रष्ट करना 3. उखाड़ना; गिराना 4. सौंदर्यहीन, संपत्तिहीन कर देना।

उजाड़ू [वि.] 1. उजाड़ने वाला 2. बर्बाद करने वाला।

उजालदान [सं-पु.] रोशनदान; घर में रोशनी आने हेतु निर्मित सुराख़।

उजालना (सं.) [क्रि-स.] 1. प्रज्वलित करना; जलाना (दीपक आदि) 2. प्रकाशित करना 3. चमकाना; निखारना 4. (बरतन, आभूषण आदि) साफ़ करना।

उजाला (सं.) [सं-पु.] 1. प्रकाश रोशनी 2. सूर्य का प्रकाश; धूप 3. चाँदनी, ज्योत्स्ना, चंद्रिका।

उजास (सं.) [सं-पु.] 1. प्रकाश; उजाला 2. चमक 3. द्युति; कांति; आभा।

उजियारा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. प्रकाश 2. उजाला। [वि.] 1. उज्ज्वल 2. सफ़ेद 3. प्रकाशमान; चमकता हुआ।

उज्जल (सं.) [क्रि.वि.] 1. धारा या बहाव के प्रतिकूल 2. नदी के चढ़ाव की ओर; प्रवाह के उद्गम की ओर।

उज्जासन (सं.) [सं-पु.] 1. हत्या; वध 2. मारण।

उज्जीवन (सं.) [सं-पु.] 1. मरणासन्न होकर पुनः स्वस्थ होना 2. नवजीवन की प्राप्ति 3. मृत प्राय शरीर में पुनः प्राण संचारण।

उज्जीवी (सं.) [वि.] पुनः जीवन प्राप्त करने वाला; जिसे नवजीवन की प्राप्ति हुई हो।

उज्जैन (सं.) [सं-पु.] मध्य प्रदेश राज्य का एक प्राचीन शहर जहाँ विक्रमादित्य ने अपनी राजधानी बनाई थी; इस नगर से कवि कालिदास का संबंध था; उज्जैन में महाकालेश्वर का प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर है।

उज्ज्वल (सं.) [वि.] 1. साफ़; स्वच्छ; निर्मल 2. सफ़ेद 3. कांतिमान और सुंदर 4. जो जल कर प्रकाश दे रहा हो 5. चमकीला 6. प्रकाशमान; प्रदीप्त 7. खिला हुआ।

उज्ज्वलन (सं.) [सं-पु.] 1. प्रज्वलित करने की क्रिया या भाव; जलाना 2. कीर्ति या प्रकाश से युक्त करना 3. अच्छी तरह से साफ़ करके चमकाना 4. अग्नि; आग 5. स्वर्ण (सोना)।

उज्झड़ [वि.] 1. मनमौजी 2. झक्की 3. मूर्ख; बेवकूफ़।

उज्झन (सं.) [सं-पु.] पूर्णतः अलग कर देना; परित्याग।

उज़्र (अ.) [सं-पु.] 1. विरोध; आपत्ति; एतराज़ 2. विरोध में विनयपूर्वक कुछ निवेदन करना 3. क्षमा याचना।

उज़्रदार (अ.+फ़ा.) [वि.] विरोध या उज़्र करने वाला; आपत्तिकर्ता।

उज़्रदारी (अ.+फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. उज़्र या आपत्ति जताना 2. उज़्र जताने वाला मज़मून; आपत्तिपत्र।

उझकना [क्रि-अ.] 1. झाँकने, ताकने या देखने के लिए ऊँचा होना या सिर बाहर निकालना; उचकना 2. ऊपर उठना; उभरना; 3. चौंकना।

उटंग [वि.] 1. किसी वस्तु की उचित से कम लंबाई 2. ओछा कपड़ा 3. घुटने तक ही लंबा अधोवस्त्र।

उटज (सं.) [सं-पु.] घास-पात से निर्मित कुटी; पर्णकुटी; झोपड़ी।

उटड़पा [सं-पु.] गाड़ी का अग्रभाग टिकाने के लिए जुए के नीचे लगाई जाने वाली लकड़ी; थाम; संतुलन लकड़ी; टेक डंडा; आधरण लकड़ी; टिकान लकड़ी।

उट्ठी [सं-स्त्री.] लड़ाई-झगड़े, खेल आदि में अपनी हार मान लेने की क्रिया या भाव।

उठक-बैठक [सं-स्त्री.] 1. बार-बार उठने-बैठने की क्रिया 2. एक तरह का व्यायाम।

उठना (सं.) [क्रि-अ.] 1. ऊपर होना; ऊपर की ओर उठना (धूल या हवा का) 2. बैठने का विपरीत; खड़ा होना 3. जगना 4. मृत्यु होना 5. समाप्त होना (मेला या बाज़ार का) 6. प्रगति होना 7. उभरना (स्पष्ट छपाई) 8. नीचे से ऊपर की ओर बढ़ना 9. नीचे की स्थिति से ऊपर की स्थिति में होना। [मु.] उठ जाना : मर जाना या समाप्त होना।

उठल्लू [वि.] 1. एक स्थान पर स्थायी रूप से न रहने वाला 2. इधर-उधर जाते रहने वाला; उठौआ 3. व्यर्थ में इधर-उधर घूमने वाला; आवारा। [मु.] -का चूल्हा होना : व्यर्थ में इधर-उधर घूमते रहना; एक स्थान पर टिककर न रहना।

उठवाना [क्रि-स.] 1. उठाने के लिए किसी को तत्पर करना 2. उठाने का कार्य किसी दूसरे से कराना।

उठवैया [वि.] 1. उठवाने वाला 2. उठाने वाला।

उठाईगीर [सं-पु.] 1. उचक्का 2. दूसरे की वस्तु उठाकर ले जाने वाला 3. नज़र बचाकर दूसरे का माल ले जाने वाला।

उठाऊ [वि.] जो उठाया जा सके; उठाए जाने योग्य, जैसे- उठाऊ चूल्हा।

उठान [सं-स्त्री.] 1. उठने का ढंग या क्रिया 2. शारीरिक दृष्टि से विकास की स्थिति; वृद्धिक्रम 3. प्रगति 4. पौधे की वृद्धि या ऊँचाई।

उठाना [क्रि-स.] 1. सामान्य से उच्च स्थिति या अवस्था में ले जाना 2. मृत्यु होना 3. गोद लेना; धारण करना; अंगीकार करना 4. जगाना; खड़ा करना 5. (मकान आदि) निर्माण करना; किराए पर देना 6. ख़र्च करना; अंत करना 7. शपथ हेतु हाथ में द्रव्यादि लेना (तुलसी, गंगाजल, धातु आदि)।

उठा-पटक [सं-पु.] 1. इधर-उधर करना; अस्त-व्यस्त करना 2. {ला-अ.} कार्य पूर्ण करने के लिए तरकीब निकालना।

उठाव [सं-पु.] 1. उठान 2. उठा 3. उभरा हुआ 4. संगीत में स्वरों से ऊँचे स्वरों का उच्चारण करना; आरोह।

उठावनी [सं-स्त्री.] मृत व्यक्ति के दाह-संस्कार के बाद दूसरे या तीसरे दिन अस्थियाँ उठाने का कृत्य या प्रथा; उठौनी।

उठौआ [वि.] 1. नियत स्थान पर न रहने वाला 2. जो हलका होने कारण सरलता से इधर-उधर ले जाया जा सकता हो, जैसे-उठौआ चूल्हा; उठौआ मशीन 3. जिसे रोज़ उठाया जाता हो।

उठौनी [सं-स्त्री.] 1. उठाने की क्रिया या भाव; उठाने की (मज़दूरी) 2. वह धन या अनाज जो किसी देवी-देवता की पूजा के लिए अलग रखा जाए 3. मृत व्यक्ति से संबंधित एक रीति या परंपरा; उठावनी।

उड्डयन (सं.) [सं-पु.] 1. आकाश में उड़ने की क्रिया या भाव 2. उड़ना; उड़ान।

उड्डयन-विभाग (सं.) [सं-पु.] राज्य का वह विभाग जो विमानों की व्यवस्था से संबंधित होता है।

उड्डीयन (सं.) [सं-पु.] उड़ने की क्रिया; उड़ान।

उड़ंकू [वि.] उड़ने वाला; जो उड़ता हो।

उड़ंत [सं-पु.] 1. उड़ान 2. कुश्ती का एक पेंच। [वि.] उड़ने वाला।

उड़ंबरी [सं-स्त्री.] एक प्रकार का तार वाला बाजा।

उड़तीख़बर [सं-स्त्री.] 1. किसी घटना के बारे में संभावित बातें 2. सुनी-सुनाई ख़बर; अपुष्ट ख़बर; अफ़वाह 3. बाज़ारू ख़बर।

उड़द [सं-पु.] 1. एक अनाज; उरद 2. एक प्रकार का पौधा जिसकी फलियों के अंदर दाने होते हैं और उनसे दाल बनती है।

उड़न [सं-स्त्री.] 1. उड़ने की क्रिया या भाव 2. उड़ान [वि.] उड़ने वाला।

उड़नखटोला [सं-पु.] 1. किस्से-कहानियों में वर्णित एक प्रकार का काल्पनिक उड़ने वाला खटोला या चौकी के आकार का विमान 2. आकाशयान।

उड़नछू [वि.] 1. अचानक गायब हो जाने वाला; अदृश्य हो जाना 2. अंतर्धान; लापता; चंपत। [मु.] -होना : भाग जाना; गायब हो जाना।

उड़नतश्तरी [सं-स्त्री.] 1. अज्ञात आकाशयान; (यूएफ़ओ) 2. एक प्रकार की रहस्यमय तश्तरी या थाल के आकार की वस्तु जो कभी-कभी आकाश में उड़ती हुई देखी गई है; उड़नथाल; (फ़्लाईंग सॉसर)।

उड़नदस्ता (हिं.+फ़ा.) [सं-पु.] 1. वाहनों से युक्त पुलिस दल जो तत्काल घटना-स्थल पर पहुँच जाता है 2. गतिशील पुलिस दल 3. किसी भी कार्य का आकस्मिक निरीक्षण करने वाला दल; (फ्लाइंग स्क्वाड)।

उड़ना (सं.) [क्रि-अ.] 1. परों या पंखों की सहायता से आधार छोड़कर आकाश या वायु में इधर-उधर आना-जाना 2. आकाश मार्ग से एक स्थान से दूसरे स्थान जाना 3. वायु में चीज़ों का इधर-उधर जाना; छितराना; फैलना 4. पताका फ़हराना या फरफराना 5. (रंग का) फ़ीका पड़ना। [मु.] ‌उड़ चलना : सरपट भागना; गलत रास्ते पर चलना; अहंकार करना।

उड़प [सं-पु.] एक प्रकार का नाच; उडुप।

उड़री [सं-स्त्री.] एक प्रकार का छोटा उड़द।

उड़वाना [क्रि-स.] 1. उड़ाने में प्रवृत्त करना 2. किसी दूसरे से उड़ाने की क्रिया करवाना।

उड़ाई [सं-स्त्री.] 1. उड़ने की क्रिया या भाव 2. उड़ने या उड़ाने का पारिश्रमिक।

उड़ाऊ [वि.] 1. बहुत ख़र्च करने वाला; खर्चीला; फ़िज़ूलखर्ची 2. जो उड़ता हो; उड़ने वाला।

उड़ाका [वि.] 1. जो हवा में उड़ सकता हो 2. उड़ने वाला 3. उड़ाकू।

उड़ान (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उड़ने की क्रिया या भाव 2. छलाँग; कुदान 3. एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने का भाव 4. {ला-अ.} ऊँचा लक्ष्य।

उड़ाना [क्रि-स.] 1. किसी को उड़ने में प्रवृत्त करना 2. किसी वस्तु को लहराना; फैलाना; फहराना 3. {ला-अ.} हँसी उड़ाना; उपहास करना 4. {ला-अ.} ओझल करना 5. {ला-अ.} नष्ट करना (विस्फ़ोटक, गोली आदि द्वारा) 6. {ला-अ.} भगाना (पक्षी आदि को) 8. {ला-अ.} फ़िजूलख़र्च करना (धन आदि)।

उड़ाल [सं-स्त्री.] 1. कचनार की छाल 2. कचनार की छाल से निर्मित रस्सी।

उड़ासना (सं.) [क्रि-स.] 1. बिस्तर समेटना 2. नष्ट-भ्रष्ट या तहस-नहस करना; उजाड़ना 3. बैठने या सोने में विघ्न डालना।

उड़िया (सं.) [सं-पु.] ओड़िया का पुराना नाम। दे. ओड़िया।

उड़िल [सं-पु.] वह भेड़ जिसके बाल न काटे गए हों।

उड़ीसा (सं.) [सं-पु.] 1. ओडीशा राज्य का पुराना नाम 2. इस राज्य का प्राचीन नाम उत्कल था।

उड़ु (सं.) [सं-पु.] 1. नक्षत्र; तारा 2. जल; पानी 3. चिड़िया; पक्षी 4. मल्लाह; केवट।

उड़ुप (सं.) [सं-पु.] 1. शशि; चंद्रमा 2. नाव; नौका 3. बड़ा गरूड़।

उडुस [सं-पु.] मैले बिस्तर या कपड़ों में लगने वाला एक छोटा कत्थई कीड़ा; खटमल; खट्वामल; उड़िस।

उड़ेलना [क्रि-स.] 1. किसी पात्र को झुका कर उसके अंदर की ठोस या तरल वस्तु को बाहर निकालने की क्रिया; उलटना 2. पात्र या बरतन की चीज़ को जल्दी से नीचे गिरा देना।

उढ़कन [सं-पु.] 1. वह चीज़ जो किसी वस्तु के लुढ़कने के समय लगाई जाए 2. टेक; सहारा 3. ऐसी चीज़ जो रास्ते में पड़कर ठोकर लगाती हो।

उढ़कना [क्रि-अ.] 1. टेक या सहारा लेना; सहारा देकर खड़ा करना 2. ठोकर खाना 3. रुकना।

उढ़काना [क्रि-स.] भिड़ाना (दरवाज़ा, खिड़की आदि); बंद करना; सहारा देकर खड़ा करना।

उढ़ाना [क्रि-स.] तन ढकने के लिए वस्त्र या चादर आदि को किसी के ऊपर डालना, ओढ़ाना या लपेटना 2. ढाँकना।

उढ़ारना [क्रि-स.] 1. दूसरे की स्त्री को निकाल या भगा लाना 2. उद्धार करना।

उतना [वि.] 1. एक सार्वनामिक विशेषण जो मात्रा मान या संख्या का सूचक होता है; उस मात्रा का; इतना 2. उस कदर। [क्रि.वि.] उस परिमाण या मात्रा में, जैसे- जितना कहा गया उतना ही कार्य करो।

उतरंग (सं.) [सं-पु.] वह लकड़ी या पत्थर की पटरी जो दरवाज़े में चौखट के ऊपर लगी रहती है।

उतरन [सं-स्त्री.] 1. वह वस्त्र या कपड़ा जो किसी ने कुछ दिनों तक पहनने के बाद पुराना समझकर उतार या छोड़ दिया हो 2. उक्त प्रकार का कपड़ा जो किसी को दान के रूप में दिया जाए।

उतरना [क्रि-अ.] 1. नीचे आना 2. ह्रास होना; ढलना 3. अलग होना 4. निकलना; ढीला होना 5. फीका पड़ना 6. दूर होना या समाप्त होना (क्रोध, बुख़ार आदि का) 7. कुश्ती हेतु अखाड़े में पहलवान का आना 8. कसौटी पर खरा सिद्ध होना।

उतरवाना [क्रि-स.] 1. किसी को उतरने में मदद करना 2. प्रतिलिपि करवाना; नकल करवाना।

उतराई [सं-स्त्री.] 1. उतरने या उतारने की क्रिया या भाव 2. ऊपर से नीचे आने की क्रिया 3. नाव द्वारा नदी पार करने का किराया या मज़दूरी 4. सेतु-कर (महसूल) 5. 'चढ़ाई' के विपरीत।

उतराना (सं.) [क्रि-अ.] 1. किसी वस्तु या मृत व्यक्ति का पानी के ऊपर तिर आना; तैरना 2. उबलाना; उफनाना 3. विपत्ति या संकट से छुटकारा पाना।

उतरायल [सं-पु.] उतरन। [वि.] अच्छी तरह पहन चुकने के बाद उतारा हुआ कपड़ा, गहना आदि।

उतराव [सं-पु.] रास्ते में पड़ने वाला उतार; ढाल।

उतार [सं-पु.] 1. उतरने की क्रिया या भाव 2. परिमाण, मान आदि की क्रमशः कम होने की स्थिति, जैसे- नदी, बाज़ार-भाव का उतार 3. ढलान 4. समाप्ति की ओर, जैसे- सरदी का उतार 5. वेग कम करने में सहायक, जैसे- भाँग का उतार खटाई है।

उतार-चढ़ाव [सं-पु.] 1. उतरना और चढ़ना; ढलान और चढ़ाई 2. तल की ऊँचाई-निचाई 3. {ला-अ.} भली-बुरी स्थितियाँ; अनुकूल-प्रतिकूल अवस्थाएँ 4. किसी वस्तु के मान या मूल्य में आने वाला परिवर्तन; कमी-वृद्धि।

उतारन [सं-पु.] 1. पहना हुआ पुराना कपड़ा जो किसी और को (भिक्षुक, निर्धन आदि को) पहनने के लिए दिया जाता है 2. न्योछावर 3. निकृष्ट वस्तु।

उतारना (सं.) [क्रि-स.] 1. ऊँचे स्थान से नीचे स्थान पर लाना 2. नदी के पार पहुँचाना 3. प्रतिलिपि या प्रतिरूप बनाना; नकल करना 4. पहनी हुई चीज़ अलग करना, जैसे- कमीज़ उतारना 5. जादू-टोने को तंत्र-मंत्र की शक्ति से हटाना 6. निकाल लेना (दही या दूध की मलाई) 7. लगी या चिपकी वस्तु को अलग करना; उचाड़ना।

उतारा [सं-पु.] 1. नदी आदि से पार उतरने की क्रिया या भाव 2. किसी स्थान पर उतर कर ठहरने की स्थिति; डेरा या पड़ाव।

उतारू [वि.] तुला हुआ; उद्यत; आमादा।

उतावला [वि.] किसी कार्य को बिना समझे जल्दी से जल्दी करने को आतुर; बेसब्र; जल्दबाज़।

उतावलापन [सं-पु.] जल्दबाज़ी; हड़बड़ी।

उतावली [सं-स्त्री.] किसी काम को जल्द करने की हड़बड़ी; बेचैनी; अधीरता; जल्दबाज़ी।

उत् (सं.) [पूर्वप्रत्य.] शब्दों के पहले लग कर ऊपर, अतिक्रमण, उत्कर्ष, प्राबल्य, प्राधान्य, अभाव, विकास, शक्ति तथा उत्साह आदि अर्थ की सूचना देता है।

उत्कंठ (सं.) [सं-पु.] 1. तीव्र इच्छा; तीव्र अभिलाषा; लालसा 2. रतिक्रिया का एक आसन। [वि.] 1. जो कंठ (गरदन) उपर उठाए हुए हो; उद्ग्रीव 2. उत्कंठायुक्त; तीव्र इच्छा से युक्त।

उत्कंठा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उत्सुकता; तीव्र इच्छा; तीव्र अभिलाषा; लालसा 2. कामशास्त्र में रतिक्रिया का एक आसन 3. प्रिय मिलन की उत्सुकता।

उत्कंठातुर (सं.) [वि.] हार्दिक इच्छा या तीव्र अभिलाषा को पूर्ण करने के लिए आतुर, व्याकुल या बेचैन।

उत्कंठित (सं.) [वि.] उत्सुक और अधीर; उत्कंठा या चाव से भरा हुआ; जिसके मन में कोई अभिलाषा हो; अतिउत्साहित।

उत्कंठिता (सं.) [सं-स्त्री.] प्रिय मिलन की तीव्र अभिलाषा वाली (उत्कंठातुर) नायिका; संकेत-स्थान पर प्रिय के न मिलने पर चिंतायुक्त नायिका।

उत्कंप (सं.) [सं-पु.] कँपकँपी; कंपन; थरथराहट।

उत्कच (सं.) [वि.] जिसके बाल खड़े हों; खड़े केशवाला।

उत्कट (सं.) [वि.] 1. जो परिमाण, मूल्य, गुण आदि की दृष्टि से अत्यधिक हो, जैसे- उत्कट विद्वान, उत्कट योद्धा आदि; प्रबल; (इंटेंस) 2. जो प्रभाव, स्वभाव आदि की दृष्टि से बहुत उग्र या तीव्र हो, जैसे- उत्कट स्वभाव।

उत्कर्ष (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की ओर जाने या उठने की क्रिया या भाव 2. उन्नति; विकास; समृद्धि।

उत्कर्षक (सं.) [वि.] उत्कर्ष करने वाला; उन्नति या समृद्धि करने वाला; उन्नायक।

उत्कर्षता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. श्रेष्ठता; उत्तमता 2. प्रचुरता; अधिकता; बढ़ती 3. समृद्धि।

उत्कर्षापकर्ष (सं.) [सं-पु.] उत्थान-पतन।

उत्कल (सं.) [सं-पु.] उड़ीसा राज्य का प्राचीन नाम; वर्तमान में ओड़िशा।

उत्कलन (सं.) [सं-पु.] 1. बंधन से मुक्त होना; छूटना 2. फूलों आदि का खिलना या विकसित होना 3. लहराना।

उत्कलिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उत्कंठा; उत्सुकता 2. फूल की कलिका 3. तरंग; लहर 4. लंबे लंबे समासयुक्त गद्य।

उत्कलित (सं.) [वि.] 1. खुला हुआ; मुक्त 2. खिला हुआ; विकसित 3. लहराता हुआ।

उत्कारिका (सं.) [सं-स्त्री.] फोड़ों आदि को पकाने या पीब निकालने के लिए उस पर चढ़ाया जाने वाला अलसी, रेंड़ी (एरंड) आदि का मोटा लेप; पुलटिस।

उत्कासन (सं.) [सं-स्त्री.] खखार कर गले को साफ़ करना; खखारना; उत्कास; उत्कासिका।

उत्कीर्ण (सं.) [वि.] लिखा हुआ; खुदा हुआ; छिदा हुआ।

उत्कीर्ण छपाई (सं.) [सं-स्त्री.] खुदे अक्षर-मुखों से छपाई का काम; ठप्पे द्वारा छपाई।

उत्कीर्णन (सं.) [सं-पु.] खोद कर अंकित करना।

उत्कीर्णित (सं.) [वि.] उत्कीर्ण किया हुआ; खुदा हुआ; छिदा हुआ।

उत्कीर्तन (सं.) [सं-पु.] 1. किसी की प्रशंसा करना 2. चिल्लाना; शोर 3. घोषणा।

उत्कुण (सं.) [सं-पु.] 1. उडुस; खटमल 2. काले रंग का एक बहुत छोटा स्वेदज (पसीने से पैदा हुआ) कीड़ा जो सिर के बालों में पड़ जाता है; जूँ।

उत्कूज [सं-पु.] 1. कोमल एवं मधुर ध्वनि वाला 2. कोयल की कुहुक।

उत्कृष्ट (सं.) [वि.] 1. श्रेष्ठ; उच्च कोटि का 2. उन्नत।

उत्कृष्टतम (सं.) [वि.] सबसे उत्तम या अच्छा; सर्वश्रेष्ठ; श्रेष्ठतम।

उत्कृष्टता (सं.) [सं-स्त्री.] उत्कृष्ट होने की अवस्था, गुण या भाव; अच्छापन; बड़प्पन।

उत्केंद्र (सं.) [वि.] 1. अपने केंद्र से हटा हुआ; जो अपने मूल स्थान पर न हो 2. अनियमित।

उत्केंद्रक (सं.) [वि.] केंद्र से अलग या निकाला हुआ; केंद्र से हटा हुआ।

उत्केंद्रता (सं.) [सं-स्त्री.] उत्केंद्र होने की अवस्था या भाव; केंद्र से अलग होना; च्युत होना; धुरी-हीनता।

उत्कोच (सं.) [सं-पु.] घूस; रिश्वत।

उत्कोचक (सं.) [सं-पु.] घूस लेने वाला; रिश्वत खानेवाला।

उत्क्रम (सं.) [सं-पु.] 1. उलटा क्रम 2. क्रमभंग 3. विपर्यय 4. क्रमिक उन्नति 5. ऊपर जाना।

उत्क्रमणीय (सं.) [वि.] 1. जिसका उत्क्रमण हो सके, किया जा सके या किया जाने को हो; उन्नति की ओर अग्रसर होने वाला 2. जिसका अतिक्रमण किया जा सके 3. प्रस्थान योग्य।

उत्क्रांत (सं.) [वि.] 1. ऊपर की ओर चढ़ने वाला 2. जिसका अतिक्रमण हुआ हो।

उत्क्रांति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. धीरे-धीरे उन्नति या पूर्णता की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति 2. अतिक्रमण; उल्लंघन 3. देह से जीवात्मा का प्रस्थान; मृत्यु; मौत।

उत्क्रोश (सं.) [सं-पु.] 1. हल्लागुल्ला; शोरगुल 2. उद्घोषणा 3. कुररी नामक पक्षी।

उत्क्लेदन (सं.) [सं-पु.] तर या नम करने या होने की क्रिया या भाव।

उत्क्षिप्त (सं.) [सं-पु.] वे ध्वनियाँ जिनके उच्चारण में जिह्वा ऊपर की ओर उठकर उच्चारण स्थान को टक्कर मारकर झटके के साथ नीचे आती है, जैसे- ड़्, ढ़्। [वि.] 1. ऊपर की ओर फेंका या उछाला हुआ, जैसे- कै या वमन का बाहर निकलना 2. दूर फेंका हुआ।

उत्क्षेप (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की तरफ़ उछालने या फेंकने की क्रिया या भाव 2. परित्याग करना; दूर करना 4. कै; वमन।

उत्क्षेपक (सं.) [वि.] ऊपर उछालने या फेंकने वाला; दूर करने या हटाने वाला।

उत्क्षेपण (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की ओर फेंकना; उछालना 2. वमन।

उत्खनन (सं.) [सं-पु.] 1. गड़ी या जमी हुई चीज़ को खोदना; खुदाई 2. खोदकर बाहर निकालना।

उत्खात (सं.) [सं-पु.] 1. गड्ढा; छेद; बिल 2. ऊबड़-खाबड़ ज़मीन; जड़ों से उखाड़ा हुआ पेड़, पौधा आदि। [वि.] 1. खोदने वाला 2. उखाड़ने वाला 3. नष्ट किया हुआ।

उत्खाता (सं.) [वि.] 1. खोदने वाला 2. उखाड़ने वाला 3. समूल नष्ट करने वाला।

उत्तट (सं.) [वि.] किनारे से छलकता हुआ; तट का अतिक्रमण कर बहने वाला।

उत्तप्त (सं.) [सं-पु.] 1. तपा हुआ; तपाया हुआ 2. {ला-अ.} सताया हुआ; संतप्त; कुपित।

उत्तम (सं.) [वि.] जो गुण, विशेषता आदि में सबसे बढ़कर हो; बेहतर; श्रेष्ठ।

उत्तमतया (सं.) [क्रि.वि.] अच्छी-तरह से; भली-भाँति।

उत्तमता (सं.) [सं-स्त्री.] उत्तम होने की अवस्था या भाव; उत्कृष्ठता; श्रेष्ठता; ख़ूबी; भलाई।

उत्तम पुरुष (सं.) [सं-पु.] 1. सबसे अच्छा व्यक्ति 2. वह सर्वनाम जो बोलने वाले पुरुष का सूचक होता है, प्रथम पुरुष, जैसे- 'मैं' या 'हम'; (फ़र्स्ट परसन)।

उत्तमर्ण (सं.) [सं-पु.] वह व्यक्ति जो ऋण देता है; महाजन; (क्रेडिटर)।

उत्तमा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. नेक तथा श्रेष्ठ स्त्री 2. दुग्धिका नामक पौधा; दूधी नामक जड़ी; शतमूली नामक झाड़दार बेल जिसकी जड़ और बीज औषधि के काम आते हैं; शतावरी।

उत्तमांग (सं.) [सं-पु.] सर्वश्रेष्ठ अंग; सिर।

उत्तमार्ध (सं.) [सं-पु.] उत्तम अर्थात श्रेष्ठ अर्धांश; उत्तरार्ध।

उत्तमोत्तम (सं.) [वि.] सर्वोत्तम; अच्छे से अच्छा।

उत्तमौजा [सं-पु.] 1. एक राजा (उत्तमानुज पांचाल नरेश द्रुपद का पुत्र और धृष्टद्युम्न तथा द्रौपदी का भाई) जिसने महाभारत के युद्ध में पांडवों का साथ दिया था 2. मनु के एक पुत्र का नाम। [वि.] जो तेज और बल में दूसरों से बढ़कर हो।

उत्तर (सं.) [सं-पु.] 1. दक्षिण दिशा के सामने की दिशा, उदीची 3. किसी प्रश्न या बात को सुनकर उसके समाधान के रूप में कही गई बात, जवाब 4. किसी के कार्य या व्यवहार के बदले किया गया कार्य या व्यवहार 5. प्रतिकार, बदला 6. गणित आदि में हल किया गया अंतिम परिणाम, फल 6. (काव्यशास्त्र) एक प्रकार का अलंकार जिसे सुनते ही प्रश्न का अनुमान किया जा सके 7. राजा विराट का पुत्र।

उत्तरकल्प (सं.) [सं-पु.] (भू-विज्ञान) ऐसा दूसरा कल्प (आदि कल्प, उत्तर कल्प, मध्य कल्प और नवकल्प) जिसमें पृथ्वी पर पर्वतों, खनिज पदार्थों की सृष्टि हुई थी, अनुमानतः यह कल्प आज से लगभग सवा अरब वर्ष पहले हुआ था।

उत्तरकाल (सं.) [सं-पु.] 1. बाद का समय 2. भविष्यकाल।

उत्तरकालीन (सं.) [वि.] उत्तरकाल का; बाद के समय का; भविष्यकालीन।

उत्तरकाशी (सं.) [सं-पु.] उत्तराखंड राज्य का प्रसिद्ध शहर; एक स्थान जो हरिद्वार के दक्षिण में है।

उत्तरजात (सं.) [वि.] 1. बाद में उत्पन्न 2. पिता की मृत्यु के बाद उत्पन्न होने वाली (संतान)।

उत्तरजीवी (सं.) [वि.] वह जो दूसरे के संहार के बाद बचा हो; जिसमें उत्तरजीविता हो; किसी के मरने के बाद बचा रहने वाला।

उत्तरण (सं.) [सं-पु.] 1. पार उतरने की क्रिया या भाव 2. यान आदि से पृथ्वी पर उतरना; (लैंडिग) 3. जलाशय पार करना।

उत्तरदान [सं-पु.] वसीयत; उत्तराधिकार।

उत्तरदायित्व (सं.) [सं-पु.] जवाबदेही; ज़िम्मेदारी; किसी कार्य या बात के प्रति उत्तरदायी होने की स्थिति या भाव।

उत्तरदायिनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह जिसे काम बनने या बिगड़ने का फल भोगना पड़े 2. कार्यभार युक्त स्त्री; ज़िम्मेदार स्त्री।

उत्तरदायी (सं.) [वि.] 1. जिसपर किसी कार्य का उत्तरदायित्व हो; ज़िम्मेदार 2. उत्तर देने के लिए जो बाध्य हो; जवाबदेह।

उत्तरपद (सं.) [सं-पु.] 1. समस्त या यौगिक शब्द का अंतिम शब्द; समास का अंतिम पद 2. 'पूर्वपद' का विलोम।

उत्तरवर्ती (सं.) [वि.] बाद का।

उत्तरा (सं.) [सं-स्त्री.] (महाभारत) अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी जिससे परीक्षित का जन्म हुआ था।

उत्तराधिकार (सं.) [सं-पु.] विरासत; किसी की मृत्यु के बाद संपत्ति प्राप्ति का अधिकार।

उत्तराधिकारिणी (सं.) [सं-स्त्री.] वह स्त्री, जो किसी के मरने या हटने पर उसकी संपत्ति, अधिकार आदि की स्वामिनी हो; उत्तराधिकार प्राप्त स्त्री।

उत्तराधिकारी (सं.) [सं-पु.] 1. उत्तराधिकार पाने वाला व्यक्ति 2. वह व्यक्ति जो कानून के अनुसार किसी की धन-संपत्ति आदि को पाने का अधिकारी हो; वारिस 3. किसी के हट जाने या न रहने पर उसके पद या स्थान का अधिकारी व्यक्ति; (सक्सेसर)।

उत्तरापथ (सं.) [सं-पु.] विंध्य के उत्तर में स्थित देश; भारत के प्राचीन ग्रंथों में जंबूद्वीप के उत्तरी भाग का नाम; पहले उत्तरापथ को उत्तरी राजपथ कहते थे जो पूर्व में ताम्रलिप्तिका (तामलुक) से लेकर पश्चिम में तक्षशिला और उसके आगे मध्य एशिया के बल्ख़ तक जाता था और अत्यधिक महत्व वाला व्यापारिक मार्ग था।

उत्तरापेक्षी (सं.) [सं-पु.] वह जिसे उत्तर की अपेक्षा हो; उत्तराकांक्षी।

उत्तराभास (सं.) [सं-पु.] ऐसा उत्तर जिसमें वास्तविकता या सत्यता न हो, उसका आभास मात्र हो; ऊपर से सत्य लगने वाला उत्तर; झूठा या मिथ्या उत्तर।

उत्तराभासी (सं.) [सं-पु.] उत्तर का आभास कराने वाला। [वि.] (प्रश्न) जिसमें उसके उत्तर का भी कुछ आभास हो।

उत्तराभिमुख (सं.) [वि.] जिसका मुँह उत्तर दिशा की ओर हो।

उत्तरायण (सं.) [सं-पु.] 1. मकर रेखा से उत्तर और कर्क रेखा की ओर होने वाली सूर्य की गति; वह छह महीने का समय जब सूर्य की गति बराबर उत्तर की ओर होती है।

उत्तरार्ध (सं.) [सं-पु.] 1. पिछला आधा; बाद का अर्ध भाग 2. ऊपरी ओर का आधा भाग।

उत्तरावस्था (सं.) [सं-स्त्री.] बाद की अवस्था या दशा।

उत्तरित (सं.) [वि.] जिसका उत्तर दिया जा चुका हो; (रिप्लाइड)।

उत्तरी (सं.) [सं-स्त्री.] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। [वि.] 1. उत्तर दिशा में होने वाला 2. उत्तर दिशा से संबंधित; उत्तर का।

उत्तरीय (सं.) [सं-पु.] 1. कंधे पर रखा जाने वाला वस्त्र जिसका एक सिरा कंधे के एक ओर से होकर सामने से कमर के हिस्से तक जाता है तो दूसरा सिरा पीठ की ओर से होते हुए कंधे के दूसरी ओर से निकलकर सामने की ओर लटका रहता है, जिसे पुराने समय में राजा-महाराजा ओढ़ा करते थे 2. ओढ़नी; चादर 3. दुपट्टा। [वि.] 1. उत्तर दिशा का; उत्तरी 2. ऊपर का; ऊपरवाला।

उत्तरोत्तर (सं.) [क्रि.वि.] आगे-आगे; क्रमशः आगे की ओर; अधिकाधिक; लगातार।

उत्तरोत्तरता (सं.) [सं-स्त्री.] एक के बाद एक होने की क्रिया या भाव; (सक्सेशन)।

उत्तल (सं.) [वि.] 1. जिसके तल के बीच का भाग कुछ ऊपर उठा हो; उन्नतोदर 2. जिसका आकार उलटे कटोरे की तरह हो, जैसे- चश्मे आदि का शीशा; (कॉनवेक्स)।

उत्तान (सं.) [वि.] 1. पीठ के बल लेटा हुआ; सीधा; चित्त 2. फैला या फैलाया हुआ 3. जिसका मुँह ऊपर की ओर हो 4. खुला हुआ; अनावृत; नग्न 5. स्पष्ट वक्ता।

उत्ताप (सं.) [सं-पु.] 1. सामान्य से अधिक गरमी 2. मन में होने वाला बहुत अधिक कष्ट या वेदना।

उत्तापन (सं.) [सं-पु.] 1. अति गरम करने की क्रिया; अत्यधिक गरम करना 2. अति कष्ट (दुख) पहुँचाना।

उत्तापित (सं.) [वि.] खूब गरम किया हुआ; तपाया हुआ; तप्त।

उत्तापी (सं.) [वि.] 1. अति दुखदायी 2. अत्यधिक कष्ट देने वाला।

उत्तारक [सं-पु.] शिव। [वि.] उद्धार करने या उबारने वाला।

उत्तारण (सं.) [सं-पु.] 1. पार उतारना 2. किसी वस्तु का एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया जाना; (ट्रांसपोर्टेशन) 3. संकट या मुसीबत में फँसे हुए व्यक्ति का उद्धार करना; (रेसक्यूइंग)।

उत्तार्य (सं.) [वि.] 1. नाव आदि से पार उतारने योग्य 2. कै, वमन करने योग्य।

उत्ताल (सं.) [वि.] 1. ऊँची लहर 2. बहुत अधिक ऊँचा 3. प्रबल; भयानक; महाकाय 4. अति आविष्ट 5. कठिन; विकराल।

उत्तावतल (सं.) [वि.] एक ओर उभरा तथा दूसरी ओर दबा हुआ।

उत्तीर्ण (सं.) [वि.] 1. किसी परीक्षा में सफ़ल; कृतकार्य 2. पार गया हुआ; पारित 3. पारंगत 4. मुक्त।

उत्तुंग (सं.) [वि.] 1. बहुत ऊँचा 2. यथेष्ट उन्नत।

उत्तू (फ़ा.) [सं-पु.] 1. कपड़े पर चुन्नट डालने या बेल-बूटे काढ़ने का एक औज़ार या उपकरण 2. उक्त उपकरण से कपड़े पर बनाए हुए बेल-बूटे या डाली हुई चुन्नट।

उत्तेजक (सं.) [वि.] 1. भड़काने वाला; उत्तेजित करने वाला 2. मनोवेग को उद्दीप्त करने वाला।

उत्तेजना (सं.) [सं-स्त्री.] 1. क्रोध, काम आदि भावों के तीव्र आवेग की वह स्थिति जिसके कारण प्राणी संयत न रह पाए 2. रोष; क्रोध 3. प्रेरणा 4. एक प्रकार का भावावेग 5. शरीर के किसी अंग विशेष में होने वाली असाधारण क्रियाशीलता; (एक्साइटमेंट)।

उत्तेजनात्मक (सं.) [वि.] अति उत्साह भरने वाला; जोशीला; भड़कीला।

उत्तेजित (सं.) [वि.] 1. आवेश में आया हुआ; उत्तेजना से भरा हुआ 2. प्रेरित; प्रोत्साहित 3. क्षुब्ध 4. भड़का हुआ।

उत्तेजित हमला (सं.+अ.) [सं-पु.] आवेश में आकर किसी व्यक्ति को मारने के उद्देश्य से घातक हथियार द्वारा किया गया आक्रमण; उग्राक्रमण।

उत्तोलक (सं.) [सं-पु.] एक यंत्र जिसकी सहायता से चीज़ें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाई जाती हैं; (क्रेन)। [वि.] 1. ऊपर उठाने वाला 2. उत्तोलन करने वाला।

उत्तोलन (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर उठाने या ले जाने की क्रिया या भाव 2. ऊँचा करना; तानना 3. तौलना; वजन करना।

उत्थान (सं.) [सं-पु.] 1. उन्नत या समृद्ध स्थिति 2. ऊपर की ओर उठना; ऊँचा होना 3. किसी निम्न या हीन स्थिति से निकलकर उच्च या उन्नत हुई अवस्था।

उत्थानक (सं.) [सं-पु.] 1. किसी बहुमंज़िली इमारत में नीचे से ऊपर या ऊपर से नीचे पहुँचाने वाला विद्युत यंत्र; (लिफ़्ट) 2. किसी व्यक्ति के अचानक ऊपरी पद पर पहुँचने की क्रिया। [वि.] 1. उठाने वाला; उत्थान करने वाला 2. किसी को उन्नत और समृद्ध करने वाला।

उत्थापक (सं.) [सं-पु.] 1. उत्थान करने या ऊपर उठाने वाला (यंत्र) 2. प्रेरित करने वाला; प्रेरक। [वि.] उठाने वाला।

उत्थापन (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर उठाना 2. जगाना 3. उत्तेजित करना 2. प्रेरित या उत्साहित करना।

उत्थापित (सं.) [वि.] 1. ऊपर उठाया हुआ 2. जगाया हुआ 3. उत्तेजित किया हुआ।

उत्थित (सं.) [वि.] 1. उठता (उठा) हुआ 2. उद्धार किया हुआ; बचाया हुआ 3. वृद्धिशील; ऊँचा; फैलाया हुआ 4. घटित होने वाला 5. जागा हुआ 6. समृद्ध।

उत्पतन (सं.) [सं-पु.] 1. उड़ने की क्रिया या भाव 2. ऊपर की ओर उठना 3. उछालना 4. उत्पन्न करना; जन्म देना।

उत्पत्ति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उत्पन्न होने की अवस्था, क्रिया या भाव 2. उद्भव; आविर्भाव 3. पैदाइश; जन्म 4. आरंभ; शुरू 5. उद्गम।

उत्पथ (सं.) [सं-पु.] कुपथ; बुरा रास्ता।

उत्पन्न (सं.) [वि.] 1. पैदा या जन्मा हुआ 2. उपजा हुआ 3. उद्भूत या घटित 4. निर्मित किया हुआ।

उत्परिवर्तन (सं.) [सं-पु.] पौधों तथा प्राणियों में होने वाला वह आकस्मिक परिवर्तन जिसमें उनमें अचानक ऐसे गुण उत्पन्न हो जाते हैं जिनका कोई संबंध उनके पूर्वजों से नहीं होता।

उत्पल (सं.) [सं-पु.] 1. कमल; नीरज; पंकज; अंबुज 2. पौधा। [वि.] जो बहुत दुबला-पतला हो; क्षीणकाय।

उत्पवन (सं.) [सं-पु.] 1. शुद्धीकरण; पवित्रीकरण; कुश से पूजन सामग्री पर जल तथा अग्नि में घी छिड़कना 2. जल छानने की क्रिया; स्वच्छ करने का यंत्र।

उत्पाटक (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का कर्ण रोग। [वि.] उखाड़ने वाला।

उत्पाटन (सं.) [सं-पु.] 1. उखाड़ना 2. उन्मूलन 3. जमे, ठहरे या टिके हुए को परेशान करके उसके स्थान से हटाना 4. किसी अंग को काटकर अलग करना; अंगविच्छेद (चिकित्सा में)।

उत्पाटित (सं.) [वि.] 1. जड़ से उखाड़ा हुआ; उन्मूलित 2. अपने स्थान से पीड़ित करके हटाया हुआ 3. बलात पदच्युत करना।

उत्पात (सं.) [सं-पु.] 1. ख़ुराफ़ात; उपद्रव, विपत्ति, आकस्मिक दुर्घटना 2. अचानक उछलना, छलाँग, ऊपर उठना।

उत्पाती (सं.) [वि.] 1. उत्पात या हुड़दंग मचाने वाला 2. मारपीट या दंगा-फ़साद करने वाला; उपद्रव 3. शरारती; नटखट 4. ख़ुराफ़ाती।

उत्पाद (सं.) [सं-पु.] 1. उपज 2. उत्पत्ति 3. उत्पन्न की हुई वस्तु 4. निर्मित वस्तु।

उत्पादक (सं.) [वि.] 1. उत्पादन करने वाला 2. जिससे कुछ उत्पादन हो।

उत्पादकता (सं.) [सं-स्त्री.] उत्पादन संबंधी कार्यक्षमता; उत्पादिता।

उत्पाद कर (सं.) [सं-पु.] किसी वस्तु के उत्पादन पर राज्य द्वारा लिया गया या लगाया जाने वाला कर या शुल्क; उत्पाद-शुल्क।

उत्पादन (सं.) [सं-पु.] 1. उत्पन्न करना 2. पैदा करना 3. पैदावार; उपज 4. बनाना; (प्रोडक्शन)।

उत्पाद शुल्क (सं.) [सं-पु.] किसी निर्माण इकाई या फ़ैक्टरी में बनने वाली वस्तुओं पर राज्य द्वारा लिया गया कर या शुल्क; उत्पाद कर; (एक्साइज़ ड्यूटी)।

उत्पादित (सं.) [वि.] 1. पैदा किया हुआ; उत्पन्न 2. उपजाया हुआ 3. उद्योग या कारख़ाने से बन कर निकली या खान से निकाली गयी वस्तु।

उत्पादी (सं.) [वि.] उत्पन्न करने वाला या उपजाने वाला।

उत्पाद्य (सं.) [वि.] 1. जिसका उत्पादन किया जा सके 2. उत्पादन के योग्य 3. उपनिषदों के अनुसार ऐसा कर्म जिसके द्वारा कोई वस्तु उत्पन्न होती है।

उत्पीड़क (सं.) [वि.] 1. कष्ट देने वाला 2. दबाने वाला 3. अत्याचारी 4. त्रासप्रद 5. पीड़ा पहुँचाने वाला।

उत्पीड़न (सं.) [सं-पु.] 1. दबाना 2. तकलीफ़ देना 3. पीड़ा पहुँचाना 4. अत्याचार 5. पीड़ित करने की क्रिया या भाव।

उत्पीड़ित (सं.) [वि.] 1. जिसे दबाया गया हो 2. जिसे पीड़ा दी गई हो 3. सताया हुआ 4. जिसपर अत्याचार हुआ हो।

उत्प्रवास (सं.) [सं-पु.] 1. स्वदेशत्याग 2. विदेशगमन 3. अपना देश छोड़कर विदेश में जा बसना।

उत्प्रवासी (सं.) [सं-पु.] 1. प्रवासी 2. दूसरे देश में बसने वाला। [वि.] उत्प्रवास संबंधी।

उत्प्रेक्षक (सं.) [वि.] उत्प्रेक्षा करने वाला; देखने समझने वाला; वितर्क करने वाला।

उत्प्रेक्षण (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की ओर देखना 2. सावधान होकर ऊपर की ओर देखना या सोचना 3. तुलना।

उत्प्रेक्षा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उद्भावना 2. संभावना; अनुमान 3. उपेक्षा 4. उदासीनता 5. (काव्यशास्त्र) एक अर्थालंकार जिसमें उपमेय में उपमान की संभावना की जाती है।

उत्प्रेरक (सं.) [वि.] 1. किसी घटना या क्रिया को बढ़ावा देने वाला; उद्दीपक 2. प्रोत्साहित करने वाला; प्रेरणा देने वाला 3. (रसायन विज्ञान) किसी रासायनिक क्रिया की गति को बढ़ाने वाला वह पदार्थ जो स्वयं अपरिवर्तित रहता है।

उत्प्रेरणा (सं.) [सं-पु.] प्रेरित करने की क्रिया या भाव।

उत्प्रेरित (सं.) [वि.] उत्साहित; क्रियाशील।

उत्प्लवन (सं.) [सं-पु.] 1. कूदना; उछलना; हवा में तैरना 2. तेल, घी आदि के ऊपर तैरते मैल को कुश के माध्यम से हटाने की क्रिया।

उत्फुल्ल (सं.) [वि.] 1. पूर्णतः विकसित; खिला हुआ 2. आनंद युक्त।

उत्संग (सं.) [सं-पु.] 1. गोद; अंक; क्रोड़ 2. योग; संपर्क 3. मध्य भाग 4. नितंब के ऊपर का भाग 5. घर के सबसे ऊपरी भाग का शिखर; चोटी 6. सतह 7. ढाल 8. प्राचीन भारत में राजकुमार के जन्मोत्सव पर राजाओं और प्रजावर्ग से उपहार स्वरूप लिया जाने वाला धन।

उत्संगित (सं.) [वि.] 1. गोद में लिया हुआ 2. गले लगाया हुआ; आलिंगित 3. संपर्क में आया हुआ।

उत्स (सं.) [सं-पु.] 1. जल का स्रोत; जलमय स्थान; सोता 2. निर्झर; झरना।

उत्सन्न (सं.) [वि.] 1. ऊपर की ओर उठाया हुआ; ऊँचा 2. उखाड़ा हुआ; उच्छिन्न 3. बढ़ा हुआ 4. पूरा किया हुआ।

उत्सर्ग (सं.) [सं-पु.] 1. त्यागना; छोड़ना 2. न्योछावर करना 3. समापन (अध्ययन आदि का) 4. सामान्य नियम 5. दान 6. व्यय।

उत्सर्गी (सं.) [वि.] दूसरे के लिए स्वयं का उत्सर्ग या त्याग करने वाला।

उत्सर्जन (सं.) [सं-पु.] 1. उत्सर्ग करने की क्रिया या भाव 2. त्याग; छोड़ना; दान 3. बलिदान।

उत्सर्जित (सं.) [वि.] 1. निकला हुआ; छोड़ा हुआ 2. उत्सर्ग किया हुआ 3. त्यागा हुआ।

उत्सर्पण (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की ओर चढ़ने, जाने या बढ़ने की क्रिया या भाव; उठना 2. उल्लंघन करना 3. फूलना 4. फैलना।

उत्सर्पी (सं.) [वि.] 1. ऊपर की ओर चढ़ने, जाने या बढ़ने वाला 2. अति उत्तम।

उत्सव (सं.) [सं-पु.] 1. त्योहार; पर्व 2. आनंद और उत्साह के साथ मनाया जाने वाला शुभ मंगल कार्य, जैसे- विवाह आदि।

उत्सवप्रियता (सं.) [सं-स्त्री.] उत्सवधर्मिता; उत्सव के प्रति अनुराग।

उत्साह (सं.) [सं-पु.] 1. उमंग; जोश; उछाह 2. हौसला; साहस; हिम्मत; दृढ़ संकल्प 3. मन की वह वृत्ति जिसमें व्यक्ति प्रसन्नचित्त और किसी कार्य के लिए तत्पर होता है 4. क्षमता; योग्यता 5. 'वीर रस' का स्थायी भाव।

उत्साहक (सं.) [वि.] 1. उत्साह देने या उत्साहित करने वाला 2. कर्मठ; क्रियाशील; अध्यवसायी।

उत्साहपूर्वक (सं.) [क्रि.वि.] तहे दिल से; खुले मन से; ख़ुशी-ख़ुशी; उत्साह युक्त।

उत्साहवर्धक (सं.) [वि.] उत्साह से भरा हुआ; उत्साह में वृद्धि करने वाला।

उत्साहवर्धन (सं.) [सं-पु.] 1. उत्साह की वृद्धि 2. उत्साह का बढ़ना।

उत्साहहीन (सं.) [वि.] 1. जिसमें उत्साह न रह गया हो; जो उत्साही न हो; उत्साहरहित; हतोत्साहित।

उत्साहित (सं.) [वि.] 1. उत्साह से युक्त 2. तत्परतापूर्वक किसी काम में लगने वाला 3. आनंदपूर्वक कोई काम करने वाला 4. जिसके मन में हर काम के लिए और हर समय उत्साह रहता हो।

उत्साही (सं.) [वि.] 1. उत्साहयुक्त 2. आनंद तथा तत्परता के साथ काम में लगने वाला 3. हौसले वाला 4. उमंगवाला।

उत्सिक्त (सं.) [वि.] 1. जिसपर जल आदि छिड़का गया हो 2. अभिषिक्त 3. प्लावित।

उत्सुक (सं.) [वि.] 1. उत्कंठित; जिसमें उत्कट इच्छा हो; बहुत चाहने वाला; बेचैन 2. प्रयत्नशील।

उत्सुकता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उत्सुक होने का भाव 2. जिज्ञासा 3. आसक्ति; प्रेम 4. अधीरता 5. प्रबल इच्छा 6. उत्कंठा।

उत्सुकतावश (सं.) [क्रि.वि.] उत्सुकता या जिज्ञासा के साथ; प्रबल इच्छा के साथ; उत्कंठावश।

उत्सृष्ट (सं.) [वि.] 1. छोड़ा या त्यागा हुआ 2. उत्सर्ग किया हुआ; परित्यक्त 3. प्रयोग में लाया हुआ 4. उड़ेला हुआ।

उत्सेक (सं.) [सं-पु.] 1. उफनकर बहना 2. ऊपर की ओर उठना या बढ़ना 3. वृद्धि 4. अभिमान; घमंड 5. जल आदि का छिड़काव।

उत्सेकी (सं.) [वि.] 1. ऊपर से बहने वाला; उफनने वाला 2. प्लावित करने वाला।

उत्सेचन (सं.) [सं-पु.] 1. छिड़कने, सींचने या उफनने की क्रिया 2. उफान; उबाल।

उत्सेध (सं.) [सं-पु.] 1. ऊँचाई 2. वृद्धि 3. मोटाई; घनता 4. किसी वस्तु की कोई ऐसी आपेक्षिक ऊँचाई जो किसी विशिष्ट कोण, तल आदि के विचार से हो। [वि.] ऊँचा; बड़ा।

उथल-पुथल (सं.) [सं-स्त्री.] 1. भारी उलटफेर; उलट-पुलट; क्रमभंग 2. हलचल।

उथला [वि.] कम गहरा; छिछला।

उदंचन (सं.) [सं-पु.] 1. कुएँ आदि से पानी को ऊपर खींचने का पात्र; बालटी 2. ऊपर की ओर फेंकने, ले जाने या खींचने की क्रिया 3. आरोहण।

उदंचु (सं.) [वि.] जिसकी प्रवृत्ति ऊपर की तरफ़ जाने की हो; ऊर्ध्वगमनशील।

उदंत (सं.) [सं-पु.] ख़बर; समाचार; वार्ता।

उदंत्य (सं.) [वि.] सीमा अथवा परिधि के बाहर रहने वाला।

उद (सं.) [सं-पु.] जल; पानी।

उदक (सं.) [सं-पु.] जल; पानी।

उदक्य (सं.) [वि.] 1. उदक या जल में होने वाला 2. जल से युक्त; जलीय 3. जलस्थ। [सं-पु.] जल में होने वाला अन्न।

उदग्र (सं.) [वि.] 1. ऊपर की ओर उठा हुआ; उभरा हुआ; ऊँचा; उन्नत 2. विकसित; प्रवर्धित 3. प्रचंड; उग्र; प्रबल 4. भयंकर 5. विशाल।

उदजन (सं.) [सं-पु.] (रसायन शास्त्र) एक अदृश्य, गंधहीन और रंगहीन गैस जिससे पानी बनता है; (हाइड्रोजन)।

उदधि (सं.) [सं-पु.] 1. समुद्र; सागर 2. बादल 3. घड़ा।

उदन्य (सं.) [वि.] 1. जल संबंधी; जलीय 2. प्यासा।

उदबासना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी बसे हुए का घर उजाड़ना 2. बसे हुए स्थान से दूसरे स्थान पर भगा देना 3. तंग करके स्थान से हटाना; रहने में विघ्न डालना।

उदमान [वि.] उन्मत्त; मतवाला।

उदय (सं.) [सं-पु.] 1. प्रकट होना; प्रादुर्भाव; आविर्भाव; निकलने का भाव 2. अभ्युदय 3. कांति; ज्योति 4. आय; ब्याज 5. परिणाम 6. उद्गम स्थान।

उदयन (सं.) [सं-पु.] उगना; ऊपर की ओर बढ़ना। [वि.] 1. उगता हुआ 2. विकासशील 3. ऊपर उठता हुआ।

उदयाचल (सं.) [सं-पु.] 1. उदयगिरि; उदय पर्वत 2. वह पर्वत जिसके पीछे से सूर्य का उदय होना माना जाता है।

उदयास्त (सं.) [सं-पु.] 1. उदय और अस्त 2. उत्थान-पतन; चढ़ाव-उतार 3. बनना-बिगड़ना 4. तेज़ी-मंदी 5. नफ़ा-नुकसान।

उदयी (सं.) [वि.] 1. उगता हुआ 2. विकासशील; उन्नतिशील 3. ऊपर उठता हुआ।

उदर (सं.) [सं-पु.] 1. आमाशय; पेट 2. किसी वस्तु का आंतरिक भाग; अंतर 3. मध्य भाग।

उदरक (सं.) [वि.] उदर संबंधी; पेट से संबंधित।

उदरपोषण (सं.) [सं-पु.] पेट भरना; रोज़गार; पेट भरने हेतु आजीविका।

उदरवायु (सं.) [सं-पु.] पेट में उत्पन्न होने वाली गैस; एक प्रकार का रोग।

उदरशूल (सं.) [सं-पु.] 1. पेट के ऊपरी भाग में होने वाली तीव्र वेदना 2. वायु आदि के दूषित होने के कारण पेट में उत्पन्न होने वाली पीड़ा; पेट-दर्द।

उदरावण (सं.) [सं-पु.] वह झिल्ली जो उदर यानि पेट को चारों तरफ़ से घेरे रहती है।

उदरावर्त (सं.) [सं-पु.] नाभि; केंद्र।

उदरी (सं.) [वि.] बड़ी तोंदवाला; बढ़े हुए पेट वाला।

उदर्य (सं.) [वि.] पेट संबंधी; उदर या पेट में रहने या उससे संबंध रखने वाला। [सं-पु.] पेट के भीतरी अंग।

उदस्त (सं.) [वि.] 1. फेंका हुआ 2. उजाड़ा हुआ 3. नीचा दिखाया हुआ 4. निकाला हुआ; निरस्त 5. नष्ट किया हुआ।

उदात्त (सं.) [वि.] 1. महान; श्रेष्ठ; उत्तम; ऊँचा 2. उदार 3. दयावान; दाता 4. वैदिक स्वरों के उच्चारण का एक भेद 5. समर्थ 6. स्पष्ट 7. (काव्यशास्त्र) अर्थालंकार का एक भेद 8. संगीत का एक स्वर 9. एक प्रकार का पुराना बाजा।

उदात्तीकरण [सं-पु.] 1. उदात्त बनाने की क्रिया; किसी चीज़ को उसके श्रेष्ठ रूप में प्रस्तुत करना 2. पाश्चात्य काव्यशास्त्र का एक सिद्धांत (लौंजाइनस प्रदत्त) जिसके अनुसार "वर्णित अनुभूतियों को मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया से उच्च स्तर (भूमि) पर ले जाने का प्रयत्न होता है"; (सब्लीमेशन)।

उदान (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की ओर साँस खींचना 2. शरीर की पाँच प्राण वायुओं में से एक जिसका स्थान कंठ से भ्रू मध्य तक माना जाता है; छींको और डकारों को उद्भूत करने वाली प्राणवायु 3. एक तरह का साँप।

उदार (सं.) [वि.] विशाल हृदयवाला; दयालु; उदात्त; धीर; दानशील; भला; दूसरों में गुण देखने वाला 2. पक्षपात एवं संकीर्णता से दूर रह कर आत्मीय व्यवहार करने वाला। [सं-पु] 1. (योगशास्त्र) चार प्रकार के क्लेशों (अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश) का एक भेद।

उदार चरित (सं.) [वि.] उदार, उदात्त या ऊँचे चरित्रवाला; सबके साथ खुले हृदय से सज्जनता का व्यवहार करने वाला।

उदारचेता (सं.) [वि.] उदार मनवाला; उदार चित्त अथवा हृदयवाला; ऊँचे विचारों वाला।

उदारता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उदार होने की अवस्था, गुण या भाव; उदार स्वभाव 2. दानी स्वभाव; दानशीलता 3. दया भाव; दयालुता।

उदारतापूर्ण (सं.) [क्रि.वि.] उदारता से परिपूर्ण; उदारमना।

उदारतापूर्वक (सं.) [क्रि.वि.] 1. उदारता के साथ 2. खुले दिल से।

उदारतावाद [सं-पु.] वह सिद्धांत जो सभी मनुष्यों की स्वतंत्रता और समता का पक्षधर है; (लिबरलाइजेशन)।

उदारतावादी [वि.] उदारतावाद को मानने वाला; उदारतावाद का समर्थक; उदारतावाद का अनुयायी।

उदारमना (सं.) [वि.] उदार मन का; बड़े दिलवाला।

उदार हृदय (सं.) [वि.] उदार मन का; उदारमना; संकीर्णता से परे बड़े मन वाला।

उदारीकरण [सं-पु.] वैश्विक स्तर पर अपनाई गई नई अर्थव्यव्स्था जिसमें उद्योग-धंधों की उन्नति के लिए उनके पक्ष में आर्थिक नीतियों को उदार बनाया जाता है।

उदावर्त (सं.) [सं-पु.] बड़ी आँत का एक रोग जिसमें मल-मूत्र आदि रुक जाते हैं; गुद-ग्रह।

उदास (सं.) [वि.] 1. तटस्थ; निरपेक्ष 2. विरक्त 3. दुःखी 4. खिन्न 5. कांतिहीन 6. फीका 7. मुरझाया हुआ 8. जिसका मन उचटा रहता हो।

उदासी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उदास होने का भाव 2. मायूसी; खिन्नता; रंजीदगी 3. तटस्थता; निरपेक्षता। [सं-पु.] 1. गुरु नानक के पुत्र द्वारा चलाया गया एक साधु संप्रदाय उसका अनुयायी; त्यागी 2. वैरागी।

उदासीन (सं.) [वि.] 1. रुचि न लेने वाला 2. अनमना; अनासक्त; विरक्त 3. तटस्थ। [सं-पु.] 1. अज़नबी 2. तटस्थ व्यक्ति 3. किसी आरोप (अभियोग) से असंबद्ध व्यक्ति।

उदासीनता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. खिन्नता; उदासीन होने की अवस्था या भाव 2. तटस्थता; विरक्ति; मायूसी।

उदाहरण (सं.) [सं-पु.] 1. दृष्टांत 2. मिसाल 3. नमूना 4. (काव्यशास्त्र) अर्थालंकार का एक भेद 5. सामान्य कथन के बाद नमूने के तौर पर कही जाने वाली कोई दूसरी बात; ऐसी बात या तथ्य जिससे किसी कथन या सिद्धांत की सत्यता सिद्ध होती हो।

उदाहरणयुक्त (सं.) [वि.] सोदाहरण; उदाहरण के साथ; उदाहरण सहित।

उदाहरणात्मक (सं.) [वि.] उदाहरण के तौर पर; उदाहरणस्वरूप; जैसे।

उदाहरणार्थ (सं.) [अव्य.] उदाहरण के लिए; उदाहरणस्वरूप।

उदाहृत (सं.) [वि.] 1. जिसका दृष्टांत दिया गया हो; उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया हो 2. कथित; वर्णित।

उदाहृति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उदाहरण 2. (नाट्यशास्त्र) उत्कर्षयुक्त वचन का कथन; गर्भ संधि के तेरह अंगों में से एक।

उदिक (सं.) [वि.] 1. जल संबंधी 2. उस जल से संबंध रखने वाला जो नल आदि के द्वारा कहीं पहुँचता है; (हाइड्रॉलिक)। [सं-पु.] वीर्य।

उदित (सं.) [वि.] 1. उगा हुआ या निकला हुआ (प्रायः सूर्य, चंद्रमा या अन्य ग्रहों के संदर्भ में) 2. प्रकट; प्रकाशित 2. उत्पन्न।

उदितयौवना (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (काव्यशास्त्र) मुग्धा नायिका के सात भेदों में एक भेद; अंकुरितयौवना 2. नवयुवती। [वि.] ऐसी नवयुवती जिसमें यौवन के शारीरिक लक्षण प्रकट हो गए हों और स्वभाव में बचपना हो।

उदिति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उदय 2. कथन; भाषण।

उदीची (सं.) [सं-स्त्री.] उत्तर दिशा।

उदीप (सं.) [वि.] जलमग्न; जल से भरा हुआ; जल प्लावित। [सं-पु.] बाढ़; जल प्लावन।

उदीयमान (सं.) [वि.] 1. उगता हुआ; उदित होता हुआ; उठता या उभरता हुआ 2. {ला-अ.} होनहार 3. विकासशील; प्रगतिशील; उन्नतिशील।

उदीरण (सं.) [सं-पु.] 1. कथन 2. उच्चारण 3. उद्दीपन 4. उत्पत्ति 4. जँभाई।

उदीर्ण (सं.) [वि.] 1. उदित; उत्पन्न 2. अभिमानी 3. प्रबल।

उदुंबर (सं.) [सं-पु.] 1. दरवाज़े के दोनों कपाटों के मध्य फ़र्श पर लगाई गई लकड़ी; देहरी; ड्योढ़ी; चौखट 2. नपुंसक; नामर्द 3. गूलर नाम का एक फल तथा उसका वृक्ष 4. एक प्राचीन जाति 5. एक प्रकार का कोढ़।

उदूल (अ.) [सं-पु.] अवज्ञा; उल्लंघन; अवहेलना; नाफ़रमानी; आज्ञा न मानना।

उदूलहुक्मी (अ.) [सं-स्त्री.] आदेश की अवहेलना; आज्ञा का उल्लंघन; नाफ़रमानी।

उद्गत (सं.) [वि.] 1. निकला हुआ; उद्भूत; निर्गत; उत्पन्न 2. प्रकट 3. ऊपर आया हुआ; फैला हुआ 4. प्राप्त 5. वमन किया हुआ।

उद्गम (सं.) [सं-पु.] 1. उत्पत्ति; उत्पत्ति स्थान; स्रोत; जन्म; वह स्थान जहाँ से कोई नदी निकलती हो 2. उठना 3. ऊपर आना 4. निकास 5. आविर्भाव 6. अँखुआ; अंकुर 7. दृष्टि।

उद्गमन (सं.) [सं-पु.] 1. आविर्भाव; मूलस्रोत; उद्भव; उत्पत्ति 2. ऊपर चढ़ने या जाने की क्रिया।

उद्गम-स्थल (सं.) [सं-पु.] उत्पत्ति-स्थान; जन्म-स्थान; उद्भव-स्थली; वह स्थान जहाँ से कोई नदी निकलती हो।

उद्गाढ़ (सं.) [वि.] 1. गहरा 2. तीव्र; प्रचंड 3. बहुत अधिक; अतिशय।

उद्गाता (सं.) [सं-पु.] गायन करने वाला; सामवेद का गान करने वाला ऋत्विज।

उद्गार (सं.) [सं-पु.] 1. भले विचार या भाव; भाव-विह्वलता में अभिव्यक्त बात; आंतरिक भावों की अभिव्यक्ति 2. आधिक्य; बाढ़।

उद्गीर्ण (सं.) [वि.] 1. उगला हुआ; बाहर निकला हुआ 2. उद्गार के रूप में कहा हुआ 3. प्रतिबिंबित।

उद्ग्रंथ (सं.) [सं-पु.] 1. अध्याय 2. धारा। [वि.] खुला हुआ; मुक्त।

उद्ग्रहण (सं.) [सं-पु.] कर, ऋण आदि वसूल करने की क्रिया या भाव; ऋण वसूलना; ऋण उगाहना।

उद्ग्रहणीय (सं.) [वि.] जिसका उद्ग्रहण होने को हो; उद्ग्रहणयोग्य।

उद्ग्राह (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर उठाना या लाना 2. वसूली; उगाही 3. उत्तर आदि के संबंध में किया जाने वाला तर्क 4. डकार।

उद्ग्रीव (सं.) [वि.] 1. जो गला ऊपर की तरफ़ उठाए हो 2. जिसकी गरदन ऊपर उठी हो। [क्रि.वि.] गरदन ऊपर उठाए हुए।

उद्घट्टन (सं.) [सं-पु.] 1. खोलना 2. उन्मोचन 3. रगड़ 4. खंड; टुकड़ा।

उद्घाट (सं.) [सं-पु.] माल खोलकर दिखाने का स्थान; चुंगी चौकी।

उद्घाटक (सं.) [वि.] किसी कार्य विशेष को करने वाला। [सं-पु.] 1. कुएँ से पानी खींचने की चरखी 2. चाबी; कुंजी।

उद्घाटन (सं.) [सं-पु.] 1. किसी सम्मेलन, संस्था आदि के कार्य की किसी विशेष व्यक्ति द्वारा की जाने वाली औपचारिक शुरुआत 2. आवरण या परदा हटाना; खोलना; प्रकट करना।

उद्घाटनकर्ता (सं.) [वि.] उद्घाटन करने वाला; कार्यक्रम को औपचारिक रूप से प्रारंभ करने वाला।

उद्घाटित (सं.) [वि.] 1. अनावरित; आरंभ किया हुआ 2. उघाड़ा या खोला हुआ 3. ऊपर उठाया हुआ।

उद्घात (सं.) [सं-पु.] 1. आघात; धक्का 2. आरंभ 3. पुस्तक का अध्याय।

उद्घातक (सं.) [वि.] धक्का मारने वाला। [सं-पु.] नाटक में प्रस्तावना का वह प्रकार जिसमें सूत्रधार और नटी की कोई बात सुनकर कोई पात्र उसका कुछ दूसरा ही अर्थ समझकर नेपथ्य से उसका उत्तर देता है अथवा रंगमंच पर आकर अभिनय आरंभ करता है।

उद्घोष (सं.) [सं-पु.] 1. घोषणा 2. तेज़ आवाज़ में की गई पुकार 3. ऊँची आवाज़ में कुछ कहना 4. जनता में प्रसारित बात; मुनादी; डोंड़ी; डुग्गी।

उद्घोषक (सं.) [वि.] 1. किसी सूचना की घोषणा करने वाला; (अनाउंसर) 2. पुकारने वाला।

उद्घोषणा (सं.) [सं-स्त्री.] सार्वजनिक जानकारी के लिए दी जाने वाली सूचना; सरकारी तौर पर की जाने वाली घोषणा।

उद्घोषित (सं.) [वि.] 1. जिसके बारे में उद्घोषणा की गई हो 2. की गई घोषणा।

उद्दंड (सं.) [वि.] 1. जो अनुचित या मनमाना आचरण करता हो; स्वेच्छाचारी 2. जिसे दंड का भय न हो 3. अक्खड़ 4. दुस्साहसी 5. दुष्ट; उद्धत।

उद्दंडता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मनमानी करने का भाव; अक्खड़पन 2. दुस्साहस 3. किसी से न दबने वाला भाव 4. दुष्टता।

उद्दंडतापूर्वक (सं.) [क्रि.वि.] 1. अक्खड़ता या अड़ियलपन के साथ 2. स्वच्छंदता पूर्वक 3. दुष्टता से।

उद्दम (सं.) [सं-पु.] 1. पराभव; दमन 2. वश में करना; किसी को दबाना।

उद्दाम (सं.) [वि.] 1. प्रचंड; उग्र; असाधारण; असीम; विस्तृत 2. भयंकर 3. विशाल 4. निरंकुश; निर्बंध। [सं-पु.] 1. वरुण 2. (काव्यशास्त्र) दंडक वृत्त (छंद) का एक भेद जिसके प्रत्येक चरण में एक नगण और तेरह रगण होते हैं।

उद्दालक (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रसिद्ध ऋषि 2. एक प्रकार का व्रत जो ऐसे व्यक्ति को करना पड़ता है जिसे सोलह वर्ष की अवस्था हो जाने पर भी गायत्री की दीक्षा न मिली हो 3. वनकोदो।

उद्दिष्ट (सं.) [वि.] 1. बताया हुआ 2. चाहा या सोचा हुआ; अभिप्रेत 3. वादा किया हुआ 4. उद्देश्य के रूप में स्थिर किया हुआ 5. जिसकी ओर निर्देश या संकेत किया गया हो। [सं-पु.] 1. लाल चंदन 2. किसी सक्षम अधिकारी (वस्तु के स्वामी) की आज्ञा पाकर किसी वस्तु का किया जाने वाला उपभोग 3. (छंद शास्त्र) वह प्रक्रिया जिसमें मात्रा प्रस्तार के विचार से कोई पद्य किस छंद का कौन-सा प्रकार या भेद है यह जाना जाता है।

उद्दीप (सं.) [सं-पु.] 1. उद्दीपन; उत्तेजित करने की क्रिया या भाव 2. प्रज्वलित करने की क्रिया या भाव 3. गोंद की तरह का एक लसदार पदार्थ; गुग्गुल। [वि.] उद्दीपक।

उद्दीपक (सं.) [वि.] 1. मनोभावों को उत्तेजित करने वाला या भड़काने वाला 2. उत्प्रेरित करने वाला 3. प्रज्वलित करने वाला।

उद्दीपन (सं.) [सं-पु.] . 1. उत्तेजित या जाग्रत करने की क्रिया या भाव; उकसाने या भड़काने की क्रिया या भाव 2. (भरतमुनि के अनुसार) रस की निष्पत्ति करने में सहायक वस्तु; विभाव का एक भेद 3. जलाना।

उद्दीप्त (सं.) [वि.] 1. भड़काया अथवा जगाया हुआ 2. उत्तेजित; प्रज्वलित 3. चमकता हुआ; चमकीला 4. जाग्रत किया हुआ।

उद्दीप्ति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उद्दीप्त होने का भाव या अवस्था 2. चमक; तेज।

उद्देशिका (सं.) [सं-स्त्री.] उद्देश्य बताने वाली भूमिका।

उद्देश्य (सं.) [सं-पु.] 1. प्रयोजन 2. लक्ष्य 3. अभिप्राय 4. वह मानसिक भाव या विचार जिससे प्रेरित होकर कुछ कहा जाए या किया जाए; जिसके विषय में कुछ कहा जाए 5. किसी वाक्य का कर्तृ पद जो उसके विधेय से भिन्न होता है। [वि.] इष्ट; लक्ष्य; अभिप्रेत।

उद्देश्यपूर्ण (सं.) [वि.] उद्देश्य से भरा; अभिप्राययुक्त।

उद्देश्यपूर्ति (सं.) [सं-स्त्री.] उद्देश्य की पूर्ति; लक्ष्य की प्राप्ति; किसी मकसद का हासिल हो जाना।

उद्देश्यहीन (सं.) [वि.] निरुद्देश्य; बिना किसी लक्ष्य का; निष्प्रयोजन; बिना मकसद।

उद्देश्यीय (सं.) [वि.] उद्देश्य संबंधी; उद्देश्य के लिए।

उद्देष्टा (सं.) [वि.] 1. इंगित करने वाला 2. लक्ष्य दृष्टि में रखकर काम करने वाला।

उद्धत (सं.) [वि.] उग्र; प्रचंड; अक्खड़; दुष्ट; उजड्ड; अविनीत। [सं-पु.] 1. नायक का एक भेद 2. एक प्रकार का छंद जिसमें चालीस मात्राएँ होती हैं।

उद्धतांश (सं.) [सं-पु.] 1. उद्धरण 2. किसी ग्रंथ, लेख, उदाहरण, प्रमाण, साक्षी आदि के रूप में लिया हुआ अंश; (कोटेशन)।

उद्धरण (सं.) [सं-पु.] 1. किसी पुस्तक, नाटक, भाषण व आलेख आदि का वह वाक्यांश या पद्यांश जो प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है; (कोटेशन) 2. याद पाठ की पुनरावृत्ति; दोहराव 3. उद्धार करना; निकालना; ऊपर उठाना 4. कष्ट या संकट आदि से किसी को मुक्ति दिलाना; छुटकारा।

उद्धरणी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पढ़े हुए पाठ को बार-बार दुहराने की क्रिया 2. घटना का विवरण आदि फिर से कह सुनाना; (रिसाइटल)।

उद्धरणीय (सं.) [वि.] उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किए जाने योग्य; उदाहरण देने योग्य।

उद्धर्ष (सं.) [सं-पु.] आनंद; प्रसन्नता।

उद्धव (सं.) [सं-पु.] 1. उत्सव; पर्व 2. यज्ञ की अग्नि 3. (पुराण) कृष्ण के मित्र तथा रिश्ते में मामा।

उद्धस्त (सं.) [वि.] हाथ ऊपर उठाए हुए।

उद्धार (सं.) [सं-पु.] 1. छुटकारा; मुक्ति 2. दुर्बल या हीन स्थिति से उबरना 3. विपत्ति या संकट से किसी को निकालना; मुक्ति 4. दुखनिवृत्ति; त्राण 5. अभ्युदय; उन्नति।

उद्धारक (सं.) [वि.] मुक्ति या छुटकारा दिलवाने वाला; उद्धार करने वाला।

उद्धारण (सं.) [सं-पु.] 1. उद्धार करने की क्रिया या भाव 2. उबारना; बचाना 3. ऊपर उठाना 4. वाक्य, शब्द आदि को कहीं से निकाल देना या अलग कर देना 5. भाग लेना।

उद्धित (सं.) [वि.] 1. ऊपर उठाया हुआ; उत्तोलित 2. अच्छी तरह रखा हुआ; स्थापित।

उद्धृत (सं.) [वि.] 1. (किसी निबंध, नाटक, उपन्यास आदि का वह अंश-विशेष) जो किसी मत की पुष्टि में प्रमाण या उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया हो 2. अपने कथन के समर्थन में लिया गया; (कोटेड) 3. जड़ से उखाड़ा हुआ।

उद्ध्वंस (सं.) [सं-पु.] विनाश।

उद्ध्वस्त (सं.) [वि.] 1. नष्ट किया हुआ 2. गिरा हुआ।

उद्बुद्ध (सं.) [वि.] 1. जाग्रत बुद्धि वाला; विकसित 2. प्रबुद्ध; चैतन्य 3. उद्दीप्त 4. जगा या जगाया हुआ 5. याद आया या दिलाया हुआ।

उद्बोध (सं.) [सं-पु.] 1. जागना; जागरण 2. स्मरण 3. ज्ञान।

उद्बोधक (सं.) [वि.] 1. जगाने वाला 2. ज्ञान कराने वाला 3. कर्तव्य आदि का स्मरण कराने वाला; अनुस्मरण 4. उत्तेजित करने वाला। [सं-पु.] सूर्य।

उद्बोधन (सं.) [सं-पु.] 1. किसी बात का ज्ञान कराने की क्रिया या भाव 2. उत्तेजित करना 3. जागने या जगाने का भाव 4. विचार प्रकट करने की क्रिया या भाव।

उद्भट (सं.) [वि.] 1. बहुत बड़ा; श्रेष्ठ 2. प्रबल; प्रचंड 3. असाधारण 4. सर्वोत्तम।

उद्भव (सं.) [सं-पु.] 1. उत्पत्ति; जन्म 2. मूल; उद्गम 3. उत्पत्ति स्थान 4. वृद्धि; बढ़ती। [वि.] जो किसी से उत्पन्न हुआ हो।

उद्भावक (सं.) [वि.] 1. उत्पत्ति करने वाला; जन्मदाता 2. उद्भव करने वाला 3. उद्भावना करने वाला; कल्पना करने वाला

उद्भावना (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मन में उत्पन्न कोई अनोखी बात (सूझ) या कल्पना 2. अस्तित्व में आना; उत्पन्न होना; उद्भव 3. उत्पत्ति।

उद्भावित (सं.) [वि.] 1. जिसकी उद्भावना हुई हो या की गई हो 2. जिसकी उत्पत्ति हुई हो।

उद्भाषित (सं.) [वि.] उद्भासित।

उद्भासित (सं.) [वि.] 1. अलंकृत 2. व्यक्त 3. प्रकाशित; चमकता हुआ 4. जो सुंदर रूप में प्रकट हुआ हो; सुशोभित।

उद्भिज्ज (सं.) [सं-पु.] 1. धरती फोड़कर बाहर निकलने वाले पेड़, पौधे या लताएँ आदि 2. अंकुर 3. उत्स; झरना। [वि.] जो भूमि फोड़कर निकला हो; भूमि से उत्पन्न होने वाला।

उद्भिन्न (सं.) [वि.] 1. विभक्त किया हुआ 2. जो तोड़ा गया हो; खंडित 3. उत्पन्न 4. व्यक्त।

उद्भूत (सं.) [वि.] 1. जिसका जन्म हुआ हो; उत्पन्न 2. व्यक्त; बाहर आया हुआ; प्रकट 3. सृष्ट; गोचर।

उद्भूति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उत्पत्ति; जन्म 2. उन्नति; प्रगति; आविर्भाव 3. उद्भूत होने की अवस्था, क्रिया या भाव।

उद्भेदन (सं.) [सं-पु.] 1. तोड़ने या फोड़ने की क्रिया 2. फोड़कर या छेदकर किसी वस्तु का आरपार निकलने की क्रिया या भाव; उगना 3. निकलना 4. प्रकट होना।

उद्भ्रम (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की ओर उठना 2. भ्रमण; पर्यटन 3. चक्कर काटना 4. ऐसा भ्रम जिसमें बुद्धि काम न करे; विभ्रम 5. मन का उद्वेग या विकलता 6. पश्चाताप।

उद्भ्रमण (सं.) [सं-पु.] 1. चक्कर लगाना या काटना 2. घूमना-फिरना; भ्रमण।

उद्भ्रांत (सं.) [वि.] 1. घूमता हुआ या चक्कर खाता हुआ 2. चकित; भौचक्का 3. भ्रम में पड़ा हुआ 4. पागल; उन्मत्त 5. विह्वल; विकल 6. भ्रांतियुक्त; भूला हुआ; भ्रांत।

उद्यत (सं.) [वि.] 1. तैयार; तत्पर 2. मुस्तैद; प्रस्तुत; आमादा 3. उठाया या ताना हुआ 4. तना या खिंचा हुआ 5. परिश्रमी 6. अनुशासित 7. शिक्षित।

उद्यम (सं.) [सं-पु.] 1. उद्योग; पेशा; धंधा 2. परिश्रम 3. तैयारी 4. कोई व्यापार या शारीरिक कार्य जो जीविकोपार्जन हेतु अथवा किसी उद्देश्य की सिद्धि हेतु किया जाता है 5. पुरुषार्थ।

उद्यमी (सं.) [वि.] परिश्रमी; मेहनती; उद्यम करने वाला; पुरुषार्थी।

उद्यान (सं.) [सं-पु.] बाग; उपवन; फुलवारी; वाटिका; बगीचा।

उद्यापन (सं.) [सं-पु.] 1. भली-भाँति कोई काम पूरा होना 2. विधिपूर्वक कार्य संपन्न करना 3. व्रत आदि की समाप्ति पर किया जाने वाला धार्मिक कृत्य, जैसे- हवन, भोजन।

उद्युक्त (सं.) [वि.] 1. उद्योग में लगा हुआ 2. किसी काम में लगा हुआ 3. तत्पर; तैयार।

उद्योग (सं.) [सं-पु.] 1. अध्यवसाय; व्यापार 2. किसी काम में अच्छी तरह लगना; उद्यम; प्रयत्न; प्रयास; श्रम 3. कारख़ाना; (इंडस्ट्री)।

उद्योगधंधा [सं-पु.] व्यापार या लाभ के लिए माल या सामान तैयार करने का काम; व्यापारिक संस्थान; कारखाने; (इंडस्ट्री)।

उद्योगपति (सं.) [सं-पु.] 1. उद्योग का स्वामी 2. बड़े कारखाने का मालिक; (इंडस्ट्रियलिस्ट)।

उद्योगशाला (सं.) [सं-पु.] 1. कच्चे माल से पक्का माल तैयार करने का स्थान; कारख़ाना; (फ़ैक्टरी) 2. उद्योग का स्थान; उद्योगालय।

उद्योगी (सं.) [वि.] 1. उद्योग करने वाला 2. मेहनती; प्रयत्नशील; परिश्रमी 3. अध्यवसायी।

उद्योत (सं.) [सं-पु.] 1. प्रकाश; उजाला 2. आभा; चमक; दीप्ति।

उद्योतन (सं.) [सं-पु.] 1. प्रकाशित करना या होना 2. चमकने या चमकाने का कार्य; प्रकाशन 3. सामने लाना; प्रकट करना 4. भाषाविज्ञान में वह नया शब्द जो अर्थ की द्योतकता को बढ़ाता है।

उद्रिक्त (सं.) [वि.] 1. उद्रेक से युक्त किया हुआ 2. बढ़ा हुआ 3. अतिशय; प्रचुर; अत्यधिक; बहुत ज़्यादा 4. प्रमुख; विशिष्ट 5. स्पष्ट 6. प्रत्यक्ष।

उद्रुज (सं.) [वि.] 1. तोड़ने वाला 2. नष्ट करने वाला 3. जड़ खोदने वाला।

उद्रेक (सं.) [सं-पु.] 1. अधिकता; प्रचुरता 2. बढ़ती; वृद्धि 3. आरंभ; उपक्रम 4. प्रमुखता 5. (काव्यशास्त्र) एक प्रकार का अलंकार जिसमें किसी वस्तु के गुण या दोष के आगे कई गुणों या दोषों के मंद पड़ने का वर्णन होता है।

उद्वपन (सं.) [सं-पु.] 1. दान 2. बाहर निकालना या फेंकना 3. उड़ेलना 4. हिलाकर गिराना।

उद्वर्त (सं.) [वि.] 1. काम में लेने के बाद जो शेष बचा रहे 2. अतिरिक्त; फालतू 3. अंश 4. जितना आवश्यक हो उससे अधिक 5. आय-व्यय का ऐसा ब्योरा जिसमें व्यय की अपेक्षा आय अधिक दिखाई गई हो। [सं-पु.] 1. उबटन 2. उबटन की मालिश।

उद्वर्तन (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर उठाना 2. उत्थान 3. अभ्युदय 4. उबटन; लेप आदि लगाना 5. वृद्धि; वर्धन।

उद्वर्धन (सं.) [सं-पु.] 1. विस्तार; फैलना 2. बढ़ना; वृद्धि; वर्धन 3. दबी हुई हँसी।

उद्वस (सं.) [वि.] 1. लुप्त 2. रिक्त 3. अवसित 4. मधु निकाला हुआ (छत्ता)। [सं-पु.] निर्जन स्थान।

उद्वहन (सं.) [सं-पु.] ऊपर की ओर उठाना; खींचना या ले जाना; सँभालना।

उद्वांत (सं.) [सं-पु.] उल्टी; कै; वमन। [वि.] वमन किया हुआ; उगला हुआ।

उद्वासन (सं.) [सं-पु.] 1. किसी स्थान पर बसे हुए व्यक्ति को कष्ट पहुँचाकर उससे उसका निवासस्थान छुड़ाना; खदेड़ना या भगाना; (डिस्प्लेसमेंट) 2. उजाड़ना 3. मारना; वध करना 4. यज्ञ के पहले आसन बिछाना।

उद्वासित (सं.) [वि.] 1. जिसे अपने निवास स्थान से मारपीट कर भगा दिया गया हो 2. जिसका निवास स्थान नष्ट कर दिया गया हो; (डिस्प्लेस्ड)।

उद्वाहन (सं.) [सं-पु.] 1. दूर करना 2. ऊपर की ओर उठाने या ले जाने का कार्य 3. जोते हुए खेत को फिर से जोतना 4. सँभालना।

उद्विग्न (सं.) [वि.] घबराया हुआ; परेशान; बेसब्र; अधीर; खिन्न; विचलित; आकुल; व्याकुल; चिंतित।

उद्विग्नता (सं.) [सं-स्त्री.] आकुलता; घबराहट; बेचैनी खिन्नता; व्याकुलता।

उद्वीक्षण (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की ओर देखना 2. नज़र 3. आँख।

उद्वेग (सं.) [सं-पु.] 1. तेज़ गति; तीव्र वेग 2. चित्त की आकुलता; आवेश; जोश 3. विरह से उत्पन्न दुख; विकलता; चिंता 4. भय; परेशानी 5. (काव्यशास्त्र) संचारी भावों का एक प्रकार।

उद्वेगशील (सं.) [वि.] 1. बहुत जल्दी उद्विग्न या उत्तेजित होने वाला; (नर्वस) 2. किसी चिंताजनक घटना के कारण भय या घबराहट पैदा होने पर उससे बचने का उपाय करने वाला।

उद्वेगात्मक (सं.) [वि.] दुखी; चिंताजनक।

उद्वेलन (सं.) [सं-पु.] 1. छलक कर बाहर निकलना; उफनना; नदी आदि का धारा द्वारा किनारा तोड़कर बहना; बिखरना 2. सीमा का अतिक्रमण या उल्लंघन करना।

उद्वेलित (सं.) [वि.] 1. उफनता हुआ; ऊपर से छलककर बहता हुआ 2. आवेशित; उद्विग्न; अशांत 3. आलोड़ित होना 4. खाली भाग में किसी वस्तु के विधिवत भर जाने से वस्तु का इधर-उधर बिखरना।

उद्वेष्टन (सं.) [सं-पु.] 1. घेरने की क्रिया या भाव 2. घेरा; बाड़ा 3. नितंब या पृष्ठ भाग में होने वाली पीड़ा।

उधर [क्रि.वि.] 1. उस ओर; उस तरफ़ 2. उस पक्ष में 3. 'इधर' का विलोम।

उधराना (सं.) [क्रि-अ.] 1. तितर-बितर होना; बिखरना 2. उद्दंड होकर उपद्रव या ऊधम मचाना 3. नष्ट-भ्रष्ट हो जाना। [क्रि-स.] किसी को उधरने में प्रवृत्त करना।

उधार (सं.) [सं-पु.] 1. कर्ज़ या ऋण; कोई वस्तु इस प्रकार ख़रीदना या बेचना कि उसका मूल्य कुछ समय बाद दिया या लिया जाए 2. वह अवस्था जिसमें धन या कोई वस्तु जो चुका देने के वायदे पर माँगकर लिया या दिया गया हो। [मु.] -खाए बैठना : किसी काम या बात के लिए ताक लगाए रहना।

उधारी (सं.) [सं-स्त्री.] उधार लेने या देने की क्रिया या भाव। [वि.] उधार माँगने वाला।

उधेड़ना (सं.) [क्रि-स.] 1. लगी हुई परतों को अलग-अलग करना; बिखेरना; उखाड़ना 2. सिलाई के टाँके खोलना; तोड़ना।

उधेड़बुन [सं-पु.] 1. कोई निर्णय लेने के पूर्व किया जाने वाला अनिर्णीत विचार-मंथन; बार-बार किया जाने वाला सोच-विचार; ऊहापोह; दुविधा की स्थिति; उलझन; असमंजस की स्थिति; चिंता।

उनंगा [वि.] नीचे की ओर झुका हुआ; नत।

उनचन [सं-स्त्री.] चारपाई के पैताने की ओर बुनावट को कसने के लिए लगाई जाने वाली रस्सी।

उनचना [क्रि-स.] खाट या चारपाई की बुनावट ढीली हो जाने पर उनचन को इस प्रकार खींचना कि उसकी बनावट कस पाए।

उनचास (सं.) [वि.] संख्या '49' का सूचक।

उनतालीस (सं.) [वि.] संख्या '39' का सूचक।

उनतीस (सं.) [वि.] संख्या '29' का सूचक।

उनमुन [वि.] मौन; शांत; चुप; ख़ामोश।

उनमेद (सं.) [सं-पु.] बरसात के आरंभ में तालाब आदि में उठने वाला एक प्रकार का विषाक्त फेन जिसे खा लेने से मछलियाँ मर जाती हैं; माँजा।

उनवना (सं.) [क्रि-अ.] 1. झुकना; लटकना 2. घिर जाना; छा जाना (बादल आदि) 3. टूटना; ऊपर पड़ना; गिरना 4. अचानक प्रकट होना।

उनसठ (सं.) [वि.] संख्या '59' का सूचक।

उनहत्तर (सं.) [वि.] संख्या '69' का सूचक।

उनासी (सं.) [वि.] संख्या '79' का सूचक।

उनींदा (सं.) [वि.] जो कुछ-कुछ नींद में हो; नींद से भरा हुआ; ऊँघता हुआ।

उन्नत (सं.) [वि.] 1. उच्च; उठा हुआ 2. विद्या, कला आदि में आगे बढ़ा हुआ 3. श्रेष्ठ; सभ्य। [सं-पु.] उठान; ऊँचाई।

उन्नतांश (सं.) [सं-पु.] 1. किसी आधार स्तर या रेखा से ऊपर की ओर का विस्तार; ऊँचाई; (आल्टिट्यूड) 2. (ज्योतिष) चंद्रमा की एक दशा।

उन्नति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उन्नत होने की अवस्था; प्रगति; उत्थान; विकास 2. (पुराण) गरुड़ की पत्नी।

उन्नतिशील (सं.) [वि.] 1. उन्नति के लिए प्रयत्न करने वाला 2. जिसमें उन्नति करने की योग्यता हो 3. जो लगातार उन्नति कर रहा हो।

उन्नतोदर (सं.) [सं-पु.] 1. चाप; वृत्तखंड आदि का ऊपर उठा हुआ कोई अंश 2. वह वस्तु जिसका वृत्तखंड उभरा हुआ हो।

उन्नमित (सं.) [वि.] 1. उन्नत किया हुआ 2. बढ़ाया हुआ।

उन्नयन (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर की ओर ले जाना या उठाना 2. उन्नति की ओर ले जाना 3. उन्नति; (प्रमोशन)। [वि.] ऊपर की ओर उठे नेत्रों या आखों वाला।

उन्नाद (सं.) [सं-पु.] 1. शोरगुल; हो-हल्ला; कलरव; गुंजन 2. चिल्लाहट।

उन्नाब (अ.) [सं-पु.] आयुर्वेदिक औषधि में उपयोगी बेर की जाति का एक सूखा फल।

उन्नायक (सं.) [वि.] ऊँचा करने वाला; उन्नति की ओर ले जाने वाला।

उन्नायन (सं.) [सं-पु.] 1. उठाना; उन्नत करना 2. सुधार। [वि.] जिसकी आँखें ऊपर उठी हों।

उन्निद्र (सं.) [वि.] 1. निद्रारहित 2. जिसे नींद न आई हो 3. खिला हुआ; विकसित। [सं-पु.] 1. एक रोग जिसमें रोगी को नींद बहुत कम या बिलकुल नहीं आती है; (इंसॉमनिया)।

उन्नीत (सं.) [वि.] 1. ऊपर चढ़ाया, पहुँचाया या उठाया हुआ 2. ऊपर की कक्षा में पहुँचाया हुआ 3. किसी बड़े पद पर पहुँचाया हुआ; (प्रमोटेड)।

उन्नीस (सं.) [वि.] संख्या '19' का सूचक।

उन्मत्त (सं.) [वि.] जिसकी बुद्धि में विकार पैदा हो गया हो; पागल; मतवाला; मदांध; सनकी; बावला।

उन्मत्तक (सं.) [वि.] वह जो नशे में चूर हो; मतवाला; पागल।

उन्मथन (सं.) [सं-पु.] 1. मथना; बिलोना; हिलाना 2. फेंकना 3. क्षुब्ध करना 4. मारण।

उन्मथित (सं.) [वि.] 1. जिसे मथा या बिलोया गया हो; हिलाया हुआ 2. मिलाया हुआ; मिश्रित 3. क्षुब्ध किया हुआ 4. मर्दित।

उन्मद (सं.) [वि.] 1. जिसकी बुद्धि या मति में कोई विकार हो गया हो; पागल; बावला 2. जो आपे में न हो; बेसुध 3. मादक पदार्थ के सेवन से जिसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया हो 4. जो किसी प्रकार के आवेश से उक्त स्थिति में पहुँच गया हो।

उन्मदिष्णु (सं.) [वि.] 1. जिसका मद बह या निकल रहा हो; (हाथी) 2. मतवाला; उन्मत्त।

उन्मन (सं.) [सं-पु.] (हठयोग) मन की वह अवस्था जो उसकी उन्मनी मुद्रा के साधन के समय प्राप्त होती है। [वि.] अनमना; अन्यमनस्क; उद्विग्न।

उन्मनस्क (सं.) [वि.] 1. व्यग्र; उत्कंठित 2. शोकांवित।

उन्मनी (सं.) [सं-स्त्री.] (हठयोग) एक मुद्रा जिसमें भौहों को ऊपर चढ़ाकर नाक की नोक पर दृष्टि जमाई जाती है; हठयोग की पाँच मुद्राओं में से एक।

उन्मर्दन (सं.) [सं-पु.] 1. मलना; रगड़ना 2. वह तरल पदार्थ जो शरीर पर मला जाए 3. मलने का सुगंधित द्रव्य 4. वायु शुद्ध करने की क्रिया या भाव।

उन्माद (सं.) [सं-पु.] 1. अत्यधिक प्रेम (अनुराग) 2. पागलपन; सनक 3. एक संचारी भाव।

उन्मादक (सं.) [वि.] 1. उन्माद उत्पन्न करने वाला 2. पागल करने वाला 3. चित्त भ्रमित करने वाला 4. नशा करने वाला।

उन्मादन (सं.) [सं-पु.] 1. उन्माद उत्पन्न करना; उन्मत्त करना 2. (पुराण) कामदेव के पाँच बाणों में से एक।

उन्मादी (सं.) [वि.] जिसपर जुनून चढ़ा हो; सनकी; पागल।

उन्मान (सं.) [सं-पु.] 1. नापने या तौलने की क्रिया; नाप-तौल; माप 2. मूल्य।

उन्मार्ग (सं.) [सं-पु.] 1. कुमार्ग; उलटा या गलत रास्ता 2. कुचाल; ख़राब चाल-चलन।

उन्मार्गी (सं.) [वि.] कुमार्गी; पथभ्रष्ट।

उन्मार्जन (सं.) [सं-पु.] 1. रगड़कर साफ़ करना 2. मलना या मिटाना।

उन्मार्जित (सं.) [वि.] मलकर साफ़ किया हुआ; चमकाया हुआ।

उन्मित (सं.) [वि.] जिसकी नाप हो गई हो; नपा हुआ; तौला हुआ।

उन्मिष (सं.) [वि.] 1. खिला हुआ 2. खुला हुआ।

उन्मीलन (सं.) [सं-पु.] 1. आँख आदि का खुलना 2. फूल आदि का खिलना; विकसित होना।

उन्मीलित (सं.) [वि.] 1. खुला हुआ 2. विकसित; खिला हुआ 3. व्यक्त; जो प्रकट किया गया हो। [सं-पु.] (काव्यशास्त्र) अर्थालंकार का एक भेद।

उन्मुक्त (सं.) [वि.] जो बँधा न हो; मुक्त; स्वतंत्र; खुला।

उन्मुक्तता (सं.) [सं-स्त्री.] खुलापन; स्वतंत्रता; आज़ादी।

उन्मुक्ति (सं.) [सं-स्त्री.] छुटकारा; बंधनहीनता।

उन्मुख (सं.) [वि.] 1. ऊपर की ओर मुख या दृष्टिवाला 2. उत्सुक; उत्कंठित; उद्यत 3. किसी विशेष दिशा या स्थिति की ओर जाता हुआ, जैसे- विकासोन्मुख, पतनोन्मुख आदि।

उन्मुखर (सं.) [वि.] 1. बहुत बोलने वाला 2. अधिक शोरगुल करने वाला।

उन्मुग्ध (सं.) [वि.] 1. जो किसी पर मुग्ध या मोहित हो; अत्यंत आसक्त 2. मूर्ख; जड़।

उन्मुद्र (सं.) [वि.] 1. जिसमें मुहर न लगी हो; बिना मुहर का 2. खुला या खिला हुआ।

उन्मूल (सं.) [वि.] जड़ से उखाड़ा हुआ; उन्मूलित।

उन्मूलक (सं.) [वि.] उन्मूलन करने वाला; जड़ से उखाड़ने वाला।

उन्मूलन (सं.) [सं-पु.] 1. जड़ से उखाड़ना; समूल नष्ट करना; मटियामेट करना; ध्वस्त करना 2. अंत; समाप्ति।

उन्मूलित (सं.) [वि.] 1. जिसका उन्मूलन हुआ हो; पूरी तरह से नष्ट या बरबाद; उखाड़ा या मिटाया हुआ 2. जिसके अस्तित्व को समाप्त कर दिया गया हो; (एबॉलिश्ड)।

उन्मेष (सं.) [सं-पु.] 1. (फूल का) खिलना; (आँख का) खुलना 2. मंद या हलका प्रकाश।

उन्मोचन (सं.) [सं-पु.] 1. मुक्त करना; ढीला करना; खोलना 2. कष्ट, संकट आदि से मुक्त करना या छुड़ाना।

उन्वान (अ.) [सं-पु.] शीर्षक।

उप (सं.) [पूर्वप्रत्य.] 1. एक प्रत्यय जो संज्ञा और क्रिया के पहले लगकर उनमें अर्थों की विशेषता या परिवर्तन उत्पन्न करता है, जैसे- उपकार, उपवास आदि 2. पद, रूप आदि के समान होने पर भी उससे कुछ छोटा या निम्न कोटि का, जैसे- उपकुलपति, उपधातु आदि 3. निकट; पास।

उपकंठ (सं.) [सं-पु.] 1. गाँव की सीमा का स्थान 2. सामीप्य। [वि.] जो समीप या नज़दीक हो; निकट।

उपकथा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मुख्य कथा के बीच में आने वाली गौणकथा; प्रासंगिक कथा 2. लघु आख्यायिका; छोटी कहानी।

उपकर (सं.) [सं-पु.] 1. विशेष परिस्थिति में वस्तुओं के ऊपर लगाया जाने वाला छोटा कर।

उपकरण (सं.) [सं-पु.] 1. साधन; औज़ार 2. प्रयोगशाला में काम आने वाले यंत्र।

उपकरणिका (सं.) [सं-स्त्री.] सूक्ष्म कलापूर्ण या वैज्ञानिक कार्यों में प्रयोग होने वाला उपकरण।

उपकर्ता (सं.) [सं-पु.] वह जो दूसरों का उपकार या भलाई करता है; उपकार के काम करने वाला व्यक्ति।

उपकर्षण (सं.) [सं-पु.] 1. अपनी ओर खींचना 2. अपने पास खींचकर लाना।

उपकला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की बहुत चिकनी और महीन झिल्ली, जो शरीर के सभी भीतरी अंगों पर ऊपर से लिपटी रहती है; (एपिथीलियम) 2. जरायु।

उपकल्प (सं.) [सं-पु.] 1. धन-संपत्ति 2. सामान; सामग्री 3. आवश्यक वस्तुएँ।

उपकल्पन (सं.) [सं-पु.] किसी कार्य की तैयारी करना या योजना बनाना; पूर्व तैयारी; (प्रिपरेशन)।

उपकल्पना (सं.) [सं-स्त्री.] 1. परिकल्पना 2. तैयार करना 3. निश्चय।

उपकल्पित (सं.) [वि.] 1. परिकल्पित 2. तैयार किया हुआ 3. निश्चित।

उपकार (सं.) [सं-पु.] 1. मदद; सहायता 2. भलाई 3. बंदनवार; तोरण 4. लाभ।

उपकारक (सं.) [वि.] 1. जो उपकार या भलाई करे; सहायक (व्यक्ति) 2. जिससे उपकार या भलाई होती हो (वस्तु)।

उपकारिता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उपकारी होने की अवस्था या भाव 2. उपकार।

उपकारी (सं.) [वि.] उपकार या भलाई करने वाला; सहायक; अनुकूल।

उपकार्य (सं.) [वि.] जिसका उपकार किया जा सकता हो या किया जाना हो; उपकार किए जाने योग्य।

उपकिरण (सं.) [सं-पु.] 1. फैलाना; छितराना 2. गाड़ना 3. ढकना।

उपकीर्ण (सं.) [वि.] बिखेरा या छितराया हुआ।

उपकुल (सं.) [सं-पु.] किसी कुल के अंतर्गत उसका कोई छोटा विभाग; उपपरिवार; (सबफ़ैमिली)।

उपकुलपति (सं.) [सं-पु.] पूर्व में वाइस-चांसलर के लिए उपकुलपति शब्द का प्रयोग होता था।

उपकुल्या (सं.) [सं-स्त्री.] 1. छोटी नहर 2. पिप्पली 3. खाई।

उपकूल (सं.) [सं-पु.] 1. तट; किनारा 2. नदी आदि के तट के समीप का स्थान; किनारे के समीप की भूमि। [अव्य.] किनारे के समीप; किनारे पर।

उपकृत (सं.) [वि.] जिसके साथ उपकार किया गया हो; कृतज्ञ; अहसानमंद।

उपकृति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. भलाई; उपकार 2. सहायता; मदद।

उपकोषागार (सं.) [सं-पु.] किसी कोषागार के अंतर्गत उसकी शाखा के रूप में कार्य करने वाला कोई छोटा कोषागार; (सबट्रेज़री)।

उपक्रम (सं.) [सं-पु.] 1. पोषित प्रतिष्ठान; योजना 2. नियमित किए जाने वाले कार्य से संबंधित शुश्रूषा; चिकित्सा 3. धार्मिक; वेदारंभ पूर्व किया जाने वाला संस्कार; शास्त्र-विहित कर्म या अभीष्ट कार्य के लिए किसी देवता की आराधना या अनुष्ठान 4. लेख या भाषण की प्रस्तावना।

उपक्रमणिका (सं.) [सं-स्त्री.] अनुक्रमणिका; विषयसूची (पुस्तक)।

उपक्रांत (सं.) [वि.] 1. जो आरंभ किया जा चुका हो 2. तैयार 3. चिकित्सित 4. पूर्व कथित।

उपक्रोश (सं.) [सं-पु.] 1. बुराई; निंदा 2. अपवाद; तिरस्कार 3. गाली; दुर्वचन।

उपक्रोष्टा (सं.) [वि.] उपक्रोश करने वाला; निंदक।

उपक्षय (सं.) [सं-पु.] धीरे-धीरे होने वाला क्षय; ह्रास; हानि।

उपक्षेत्र (सं.) [सं-पु.] किसी बड़े क्षेत्र का छोटा भाग; छोटा क्षेत्र।

उपक्षेप (सं.) [सं-पु.] 1. किसी की ओर फेंकना; ले जाकर रखना या देना 2. किसी काम का ठेका पाने के लिए उसके व्यय के विवरण सहित दिया जाने वाला आवेदन-पत्र (टेंडर) 3. चर्चा; संकेत; आक्षेप (नाटक में) 4. अभिनय के आरंभ में कथावस्तु का संक्षेप में कथन।

उपखंड (सं.) [सं-पु.] 1. खंड का छोटा भाग या टुकड़ा 2. नियम, विधि आदि की किसी धारा या उपधारा के खंड का छोटा विभाग; (सबक्लॉज़)।

उपगत (सं.) [वि.] 1. किसी के पास पहुँचा हुआ 2. घटित; अनुभूत; ज्ञात; जाना हुआ 3. अंगीकृत; स्वीकृत 4. ख़र्च आदि के रूप में अपने ऊपर आया या लगा हुआ।

उपगति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी के पास आना या पहुँचना 2. स्वीकृति 3. प्राप्ति 4. जानना 5. अनुभूति; ज्ञान।

उपगम (सं.) [सं-पु.] 1. किसी के पास सहायता आदि के लिए पहुँचना 2. ज्ञान; जानना।

उपगिरि (सं.) [सं-पु.] बड़े पर्वत या पहाड़ के पास का भाग जहाँ से पहाड़ की चढ़ाई शुरू होती है; पहाड़ी।

उपगूढ़ (सं.) [वि.] 1. छिपाया हुआ 2. दबाया हुआ 3. आलिंगित।

उपगूहन (सं.) [सं-पु.] 1. गोपन; छिपाना 2. आलिंगन।

उपग्रह (सं.) [सं-पु.] 1. किसी ग्रह की परिक्रमा करने वाला आकाशीय पिंड, जैसे- चंद्रमा; छोटा ग्रह; अप्रधान ग्रह 2. कृत्रिम यंत्र जो मौसम अथवा खगोलीय जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से आकाश में छोड़ा जाता है; (सैटेलाइट) 3. पकड़ा जाना; गिरफ़्तारी 4. कैद; कारावास 5. बंदी; कैदी।

उपग्रहण (सं.) [सं-पु.] 1. पकड़ना; धरना 2. सँभालना 3. वेदों का अध्ययन।

उपघात (सं.) [सं-पु.] 1. धक्का; आघात 2. नाश 3. आक्रमण 4. हानि पहुँचाना।

उपघातक (सं.) [वि.] 1. आघात करने वाला 2. नाशक 3. पीड़क।

उपचय (सं.) [सं-पु.] 1. एकत्र या संचित करना 2. उन्नति; बढ़ती; वृद्धि 3. राशि; ढेर 4. चयन; चुनना।

उपचयी (सं.) [वि.] 1. उपचय से संबंधित; उपचय का 2. उपचयवाला।

उपचरण (सं.) [सं-पु.] 1. किसी के पास जाना या पहुँचना 2. सेवा; पूजा 3. उपचार करना।

उपचरित (सं.) [वि.] 1. जिसका उपचार किया गया हो 2. सेवित; पूजित।

उपचर्म (सं.) [सं-पु.] त्वचा का ऊपरी भाग।

उपचर्या (सं.) [सं-स्त्री.] रोगी की सेवा-सुश्रूषा; चिकित्सा; उपचार।

उपचार (सं.) [सं-पु.] 1. इलाज; निदान; चिकित्सा 2. विधान पूजा या अनुष्ठान विधि 3. अभ्यास; व्यवहार 4. शिष्टाचार 5. चापलूसी 6. बहाना 7. दिखावटी व्यवहार।

उपचारक (सं.) [वि.] 1. उपचार करने वाला; सेवा करने वाला 2. चिकित्सा करने वाला 3. परिचर्या करने वाला; परिचारक।

उपचारगृह (सं.) [सं-पु.] अस्पताल; चिकित्सालय; उपचारालय; औषधालय।

उपचारात्मक (सं.) [वि.] इलाज़ या सुधारवाला।

उपचित (सं.) [वि.] 1. इकट्ठा किया हुआ; एकत्रित; संचित 2. अच्छी तरह खिला हुआ; विकसित 3. बढ़ा हुआ; समृद्ध।

उपचिति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. इकट्ठा करना 2. राशि; ढेर 3. वृद्धि 4. संचय।

उपचुनाव (सं.) [सं-पु.] किसी विशेष कारणवश नियत अवधि पूर्व होने वाला चुनाव; (बाई इलेक्शन)।

उपचेतन (सं.) [सं-पु.] अवचेतन; (सब-कॉन्शस)।

उपच्छाया (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मूल छाया से इतर पड़ने वाली छाया; आंशिक छाया 2. ग्रहण के समय चंद्रमा या पृथ्वी की छाया के निकट की आंशिक या हलकी छाया।

उपज [सं-स्त्री.] 1. पैदावार; उत्पत्ति 2. सूझ; कल्पना 3. संगीत में परंपरा के अतिरिक्त प्रयुक्त नई तानें जिनसे गीत में नवीनता उत्पन्न हो।

उपजना [क्रि-अ.] 1. उगना; उत्पन्न होना (अन्नादि) 2. मन में विचार का पैदा होना; सूझना।

उपजाऊ [वि.] उर्वर; अधिक अनाज पैदा करने वाली ज़मीन; (फ़र्टाइल)।

उपजाऊपन (सं.) [सं-पु.] अधिक उपज करने की शक्ति; उर्वरता; उपजाऊ होने का भाव; (प्रोडक्टिविटी)।

उपजाति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी जाति का कोई उपभेद 2. (काव्यशास्त्र) वर्णिक छंद का एक भेद।

उपजाना (सं.) [क्रि-स.] 1. उत्पन्न या पैदा करना; उगाना 2. कोई नई बात ढूँढ़ निकालना; सुझाना।

उपजीवक (सं.) [वि.] आश्रित; दूसरे पर निर्भर; उपजीवी।

उपजीवन (सं.) [सं-पु.] 1. रोज़ी; आजीविका 2. आजीविका का साधन।

उपजीविका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. जीविका निर्वाह के मुख्य साधन के अतरिक्त कोई गौण आर्थिक साधन 2. कहीं से मिलने वाली अतिरिक्त सहायता या वृत्ति।

उपजीवी (सं.) [वि.] दूसरे के सहारे जीवन बिताने वाला; जो दूसरे पर निर्भर रहे।

उपजीव्य (सं.) [वि.] जिसके सहारे जीवन चले; आश्रय।

उपज्ञा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ईजाद; खोज; आविष्कार; अन्वेषण; (इनवेंशन) 2. किसी नए पदार्थ, उपकरण और प्रक्रिया आदि को ढूँढ़ निकालने का कार्य 3. चिंतन द्वारा किसी नई बात का पता लगाना 4. वह ज्ञान जो परंपरा से प्राप्त न करके स्वयं प्राप्त किया गया हो।

उपज्ञात (सं.) [वि.] जिसका पता लगाया गया हो; ईजाद किया हुआ; आविष्कृत; आविर्भूत; (इनवेंटिड)।

उपटन [सं-पु.] 1. शरीर पर उत्पन्न होने वाला आघात आदि का चिह्न या निशान।

उपटना [क्रि-अ.] शरीर पर आघात, दाब या लिखने का चिह्न या निशान पड़ना; उखड़ना; उभरना।

उपताप (सं.) [सं-पु.] 1. आँच; ताप 2. पीड़ा; दुख; क्लेश।

उपतापन (सं.) [सं-पु.] 1. अच्छी तरह गरम करना या तपाना 2. कष्ट, दुख या क्लेश पहुँचाने की क्रिया।

उपत्यका (सं.) [सं-स्त्री.] तराईघाटी; पर्वत के समीप की नीची भूमि।

उपदंश (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का यौन रोग; आतशक; गरमी नामक रोग।

उपदर्शक (सं.) [सं-पु.] 1. मार्ग या राह दिखलाने वाला व्यक्ति 2. साक्षी 3 द्वारपाल।

उपदर्शन (सं.) [सं-पु.] 1. टीका या व्याख्या करना 2. अच्छी तरह बताना या समझाना।

उपदा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी बड़े अधिकारी को दी जाने वाली भेंट या उपहार 2. रिश्वत; घूस।

उपदान (सं.) [सं-पु.] 1. भेंट 2. किसी कर्मचारी को अवकाश ग्रहण करने के समय लंबी सेवा के बदले दी जाने वाली धनराशि 3. किसी संस्था या वाणिज्य संस्थान को कठिनाइयों से पार पाने के लिए दी जाने वाली आर्थिक सहायता; (सबसिडी)।

उपदित्सा (सं.) [सं-स्त्री.] वसीयतनामे के अंत में परिशिष्ट के रूप में लिखा हुआ विषय का स्पष्टीकरण।

उपदिशा (सं.) [वि.] दो दिशाओं के मध्य की दिशा; अंतर्दिशा; दिशाकोण; कोण।

उपदिष्ट (सं.) [वि.] 1. जिसे उपदेश दिया गया हो; जिसे सिखलाया गया हो 2. जो उपदेश के रूप में कहा या बताया गया हो; ज्ञापित (बात या विषय) 3. दीक्षा प्राप्त किया हुआ।

उपदेव (सं.) [सं-पु.] छोटा या गौण देवता, जैसे- यक्ष, गंधर्व, किन्नर आदि छोटे देव।

उपदेश (सं.) [सं-पु.] 1. सत्कर्म के लिए प्रेरित करने वाले वचन; नेक सलाह; सीख 2. विद्वानों द्वारा धर्म तथा नीति संबंधी बताई गई अच्छी-अच्छी बातें 3. आज्ञा; निर्देश 4. दीक्षा; गुरु मंत्र।

उपदेशक (सं.) [सं-पु.] 1. उपदेश देने वाला व्यक्ति; वह व्यक्ति जो जगह-जगह घूमकर उपदेश, व्याख्यान आदि देता है 2. शिक्षा देने वाला; शिक्षक।

उपदेशात्मक (सं.) [वि.] जिसमें कुछ उपदेश निहित हो; उपदेशगर्भित।

उपदेश्य (सं.) [वि.] 1. जो उपदेश देने के योग्य हो 2. जो उपदेश पाने या सुनने का अधिकारी हो।

उपद्रव (सं.) [सं-पु.] 1. उत्पात; ऊधम 2. सार्वजनिक विपदा (अकाल, बाढ़ आदि) 3. दंगा-फ़साद; झमेला।

उपद्रवी (सं.) [वि.] उत्पाती; उपद्रव करने वाला; ऊधम मचाने वाला।

उपद्रष्टा (सं.) [वि.] 1. जो दृश्य आदि देख रहा हो 2. निरीक्षण करने वाला 3. साक्षी; गवाह।

उपद्वीप (सं.) [सं-पु.] छोटा द्वीप या टापू; प्रायद्वीप।

उपधर्म (सं.) [सं-पु.] गौण धर्म; किसी धर्म के अंदर या अंतर्गत आने वाला कोई छोटा धर्म।

उपधा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी की निष्ठा, ईमानदारी आदि की परीक्षा 2. जालसाज़ी; छल; कपट 3. (व्याकरण) शब्द का अंतिम से पहला अक्षर (उपांताक्षर)।

उपधातु (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ऐसी धातु जो या तो लोहे, ताँबे आदि के योग से बनती है या ख़ानों से निकलती है; अर्ध धातु; मिश्र धातु 2. शरीर में स्थित सात धातुओं से उत्पन्न गौण धातुएँ, जैसे- पसीना, रज, दूध आदि।

उपधान (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर रखना 2. तकिया 3. सहारा 4. प्रेम; प्रणय।

उपधानी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पैर रखने की छोटी चौकी 2. तकिया।

उपधारण (सं.) [सं-पु.] 1. उतारना; रखना 2. लग्गी आदि से कोई फल खींचना 3. चित्त को एक विषय में लगाना।

उपधारा (सं.) [सं-स्त्री.] किसी धारा का छोटा भाग; किसी धारा से निकली छोटी या गौण-धारा।

उपधावन (सं.) [सं-पु.] 1. तेज़ी से किसी का पीछा करना 2. विचार या चिंतन करना। [वि.] पीछे चलने वाला; अनुगामी; अनुयायी।

उपधि (सं.) [सं-पु.] 1. जालसाज़ी; छल-कपट; धोखा; सही बात छिपाकर दूसरी बात कहना 2. धमकी।

उपधिक (सं.) [वि.] जालसाज़ी करने वाला; धोखेबाज़; छली।

उपध्मान (सं.) [सं-पु.] 1. होंठ 2. फूँकने की क्रिया या भाव।

उपध्मानीय (सं.) [सं-पु.] (व्याकरण) 'प' और 'फ' के पहले आने वाला विसर्ग। [वि.] उपध्मान संबंधी।

उपध्वस्त (सं.) [वि.] ध्वस्त; नष्ट किया हुआ।

उपनक्षत्र (सं.) [सं-पु.] छोटा या गौण नक्षत्र।

उपनगर (सं.) [सं-पु.] 1. नगर के आस-पास की बस्ती, नगर का बाहरी भाग 2. नगर के समीप स्थित नगर; छोटा नगर; (कॉलोनी; सबअर्ब)।

उपनत (सं.) [वि.] 1. झुका हुआ; नत 2. शरण में आया हुआ; शरणागत।

उपनति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. झुकने की क्रिया या भाव 2. नमस्कार करना।

उपनदी (सं.) [सं-स्त्री.] वह छोटी या सहायक नदी जो किसी बड़ी नदी में जाकर मिल जाती है।

उपनयन (सं.) [सं-पु.] 1. जनेऊ; उपवीत 2. यज्ञोपवीत संस्कार 3. दीक्षा।

उपनहन (सं.) [सं-पु.] 1. गँठियाना; बाँधना 2. वह कपड़ा जिसमें कोई वस्तु लपेटी जाए।

उपनहर (सं.) [सं-स्त्री.] बड़ी नहर से निकली छोटी नहर।

उपनाम (सं.) [सं-पु.] पुकारने का नाम; गौण नाम; पदवी; तख़ल्लुस।

उपनायक (सं.) [सं-पु.] कहानियों, नाटकों आदि में नायक का साथी।

उपनायिका (सं.) [सं-स्त्री.] नायिका की प्रधान सहायिका; नायिका की सखी।

उपनिदेशक (सं.) [सं-पु.] वह जो निदेशक के बाद का प्रमुख अधिकारी हो; (डिप्टी डायरेक्टर)।

उपनिधान (सं.) [सं-पु.] 1. किसी के पास अपनी वस्तु धरोहर के रूप में रखना 2. अमानत।

उपनिधि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. धरोहर; अमानत 2. किसी के पास रखी गई मुहरबंद धरोहर।

उपनिपात (सं.) [सं-पु.] 1. अचानक पास आना; एकाएक आ पहुँचना 2. अचानक होने वाला आक्रमण 3. अग्नि, वर्षा, चोर आदि के कारण होने वाली हानि।

उपनिबंधक (सं.) [सं-पु.] किसी निबंधक के अधीन रहकर या उसके सहायक के रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति; (सबरजिस्ट्रार)।

उपनियम (सं.) [सं-पु.] 1. नियम के अंतर्गत छोटा नियम; नियम का एक अंग या भाग; गौण नियम; (सबरूल)।

उपनिर्वाचन (सं.) [सं-पु.] मृत्यु या अन्य कारण से किसी सत्र की अवधि पूरी होने से पहले निर्वाचित सदस्य का पद रिक्त हो जाने पर होने वाला निर्वाचन; उपचुनाव; (बाइइलेक्शन)।

उपनिविष्ट (सं.) [वि.] 1. सुशिक्षित 2. दूसरे स्थान पर आकर बसा हुआ 3. अनुभवी 4. खाते आदि में दर्ज किया हुआ।

उपनिवेश (सं.) [सं-पु.] 1. जीविका के लिए एक स्थान से हटकर कहीं दूर जा बसना 2. अन्य स्थान से आए हुए लोगों की बस्ती 3. एक देश के लोगों की दूसरे देश में आबादी; (कॉलोनी)।

उपनिवेशन (सं.) [सं-पु.] 1. उपनिवेश स्थापित करना 2. उपनिवेश के रूप में बस्ती बसाना।

उपनिवेशवाद (सं.) [सं-पु.] उपनिवेश बनाने और उन्हें अपने अधीन रखने की नीति; उपनिवेश का सिद्धांत।

उपनिवेशवादी (सं.) [वि.] उपनिवेश के सिद्धांत को मानने वाला; उपनिवेशवाद का अनुयायी।

उपनिवेशित (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उपनिवेश के रूप में स्थापित या बसाया गया 2. दूसरे स्थान से लाकर बसाया गया।

उपनिषद (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वेदों के बाद लिखे गए ऐसे ग्रंथ जिनमें आत्मा, परमात्मा के आध्यात्मिक स्वरूप पर विचार किया गया है 2. वेदव्रत ब्रह्मचारी के चालीस संस्कारों में से एक जो केशांत संस्कार से पूर्व होता था।

उपनिष्क्रमण (सं.) [सं-पु.] 1. नवजात शिशु को पहली बार बाहर निकालना 2. निष्क्रमण संस्कार 3. बाहर जाना 4. राजमार्ग।

उपनिहित (सं.) [वि.] अमानत के रूप में रखा हुआ।

उपनीत (सं.) [वि.] 1. जो किसी के सामने लाया गया हो 2. जिसका उपनयन संस्कार हो चुका हो 3. उपार्जित या प्राप्त किया हुआ 4. दान या भेंट के रूप में दिया हुआ।

उपनेता (सं.) [सं-पु.] नेता का नायब या सहकारी। [वि.] पास ले जाने वाला।

उपन्यस्त (सं.) [वि.] 1. पास रखा या लाया हुआ 2. धरोहर स्वरूप रखा हुआ 3. उल्लिखित या कथित।

उपन्यास (सं.) [सं-पु.] वह कल्पित और लंबी कहानी जो अनेक पात्रों और घटनाओं से युक्त हो तथा जिसमें जीवन की विविध बातों का चित्रण किया गया हो; (नॉवेल)।

उपन्यासकार (सं.) [सं-पु.] वह साहित्यकार जो उपन्यास लिखता हो; उपन्यास-लेखक; (नॉवेलिस्ट)।

उपन्यासिका (सं.) [सं-स्त्री.] छोटा या लघु उपन्यास।

उपपत्ति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. घटित या प्रत्यक्ष होना; सामने आना; प्रतिपादन 2. प्राप्ति; सिद्धि 3. कारण; हेतु 4. संगति; मेल मिलना 5. युक्ति; साधन 6. औचित्य; उपयुक्तता।

उपपद (सं.) [सं-पु.] 1. पूर्व में कहा हुआ या आया हुआ शब्द 2. (व्याकरण) समास का पहला पद 3. खिताब या उपाधि।

उपपन्न (सं.) [वि.] 1. पास आया हुआ 2. शरण में आया हुआ; शरणागत 3. सिद्ध किया हुआ; संभव 4. योग्य; उपयुक्त; उचित 5. मिला हुआ; प्राप्त 6. सुविधाजनक; लाभकारी 7. लगा हुआ; युक्त 5. जिसे संपन्न करना ज़रूरी हो; (एक्सपीडिएंट)।

उपपात (सं.) [सं-पु.] 1. अप्रत्याशित घटना; दुर्घटना 2. आपदा 3. विपत्ति; विनाश।

उपपादक (सं.) [वि.] 1. घटित करने वाला 2. पूरा या संपन्न करने वाला 3. सिद्ध करने वाला 4. भलीभाँति विचार करने वाला।

उपपादन (सं.) [सं-पु.] 1. किसी कार्य को पूरा या समाप्त करना 2. तर्क, प्रमाण, युक्ति आदि के द्वारा किसी बात को सिद्ध करना (डिमांसट्रेशन) 3. प्रतिपादन; संपादन।

उपपादित (सं.) [वि.] तर्क द्वारा पूरा किया हुआ; सिद्ध किया हुआ; प्रमाणित।

उपपाद्य (सं.) [वि.] 1. जिसका उपपादन किया जाने को हो; उपपादन के योग्य 2. वह तथ्य या सिद्धांत जो स्वयं सिद्ध नहीं बल्कि तर्क, प्रमाण और प्रयोग से सिद्ध किया जाना हो।

उपपुराण (सं.) [सं-पु.] मुख्य पुराणों से भिन्न गौण पुराण; (अठारह) पुराणों के अतिरिक्त अन्य पुराण, जैसे- आदित्य पुराण, नरसिंह पुराण आदि।

उपपौरिक (सं.) [सं-पु.] उपनगर में रहने वाला व्यक्ति।

उपप्रदान (सं.) [सं-पु.] 1. देना या हस्तांतरित करना 2. रिश्वत; घूस 3. भेंट; उपहार।

उपप्रबंधक (सं.) [सं-पु.] पद के आधार पर प्रबंधक से छोटा या बाद का अधिकारी; (ब्रांच मैनेजर)।

उपप्रमेय (सं.) [सं-स्त्री.] प्रमेय या साध्य के साथ लगी हुई कोई ऐसी बात जो प्रमेय की सिद्धि के साथ-साथ स्वयं ही सिद्ध हो जाती है; (कॉरोलरी)।

उपप्लव (सं.) [सं-पु.] 1. प्राकृतिक उपद्रव या उत्पात 2. नदी आदि की बाढ़ 3. विद्रोह; विप्लव 4. अराजकता 4. विघ्न; बाधा।

उपप्लवी (सं.) [वि.] 1. डुबाने या बाढ़ लाने वाला 2. बगावत करने वाला 3. सरकश।

उपप्लुत (सं.) [वि.] 1. आक्रांत 2. पीड़ित 3. कष्ट या संकट में पड़ा हुआ।

उपबंध (सं.) [सं-पु.] 1. प्रावधान 2. संयोग 3. संबंध 4. किसी विधि अधिनियम आदि के वे उपबंध जिसमें किसी बात की संभावना से पहले से ही गुंजाइश रख दी जाए।

उपबाहु (सं.) [सं-पु.] कलाई से कुहनी तक का भाग।

उपबोधक (सं.) [सं-पु.] सहायक व्यक्ति; सलाह देने वाला व्यक्ति।

उपबोधन (सं.) [सं-पु.] 1. सहायता देना 2. सलाह देना 3. ज्ञान देना; समझाना।

उपभाग (सं.) [सं-पु.] 1. किसी बड़े भाग के अंतर्गत आने वाला छोटा भाग; गौण भाग; (सब-डिवीज़न)।

उपभाषा (सं.) [सं-स्त्री.] किसी भाषा का वह विशेष रूप जिसे एक क्षेत्र विशेष के लोग प्रयोग करते हैं; बोली, जैसे‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌- मारवाड़ी, अंगिका, वज्जिका, खोरठा आदि।

उपभुक्त (सं.) [वि.] 1. जो काम में लाया जा चुका हो 2. जिसका उपभोग हुआ हो 3. जूठा; उच्छिष्ट 4. पुराना; प्रयुक्त।

उपभेद (सं.) [सं-पु.] 1. गौण भेद 2. उपविभाग।

उपभोक्ता (सं.) [सं-पु.] उपयोग या उपभोग करने वाला; काम में लाने वाला; ग्राहक; काबिज; (कंज़्यूमर)।

उपभोक्तावाद (सं.) [सं-पु.] 1. ऐसी सामाजिक व्यवस्था जिसमें उपभोग करने की वरीयता दी जाती है; (कंज़्यूमरिज़म) 2. उक्त व्यवस्था पर आधारित एक आधुनिक सिद्धांत।

उपभोक्तावादी (सं.) [वि.] उपभोक्तावाद को मानने वाला, उपभोक्तावाद का समर्थक।

उपभोग (सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु का इस्तेमाल या व्यवहार 2. इस्तेमाल या व्यवहार का सुख; विषय-सुख 3. (अर्थशास्त्र) किसी वस्तु का ऐसा प्रयोग करना कि धीरे-धीरे उसकी उपयोगिता समाप्त होती जाए; (कंजंप्शन)।

उपभोग्य (सं.) [सं-पु.] भोग की वस्तु। [वि.] 1. जिसका उपभोग होने को हो या हो सकता हो 2. उपभोग के योग्य; आहार्य; उपयोगी; प्रयोग्य।

उपभोज्य (सं.) [सं-पु.] भोजन; आहार। [वि.] 1. खाने या भोजन के योग्य 2. व्यवहार में लाने के योग्य।

उपमंडल (सं.) [सं-पु.] 1. किसी मंडल का छोटा भाग 2. किसी जिले आदि का छोटा भाग या खंड, तहसील आदि।

उपमंत्रण (सं.) [सं-पु.] 1. आमंत्रण; न्योता 2. अनुरोध या आग्रह करना।

उपमंत्री (सं.) [सं-पु.] वह मंत्री जो प्रधान या बड़े मंत्री के नीचे हो; सहायक मंत्री।

उपमन्यु (सं.) [सं-पु.] एक गोत्र प्रवर्तक ऋषि। [वि.] 1. बुद्धिमान; मेधावी; तीक्ष्ण बुद्धिवाला 2. उत्साही; उद्यमी।

उपमर्दन (सं.) [सं-पु.] 1. दबाना; कुचलना; मसलना; रौंदना 2. उपेक्षा या तिरस्कार करना; अपमान करना 3. बरबाद करना 4. निंदा; खंडन।

उपमहाद्वीप (सं.) [सं-पु.] किसी महाद्वीप का एक बड़ा भाग जिसकी अपनी विशेषता हो।

उपमहापौर (सं.) [सं-पु.] महापौर अथवा मेयर के नीचे का अधिकारी; (डिप्टी मेयर)।

उपमा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (काव्यशास्त्र) अर्थालंकार का एक भेद जिसमें दो वस्तुओ में भेद होते हुए भी धर्मगत समानता दिखाई जाए; साधर्म्य 2. समता; तुलना।

उपमाता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सौतेली माता; विमाता 2. धाय; दाई 3. माता के समान आदरणीय स्त्री, जैसे- मौसी, चाची, ताई आदि।

उपमान (सं.) [सं-पु.] 1. वह वस्तु या व्यक्ति जिससे किसी की तुलना की जाए 2. वह जिसके समान कोई दूसरी वस्तु बतलाई जाए 3. (काव्यशास्त्र) उपमा अलंकार के चार तत्वों (अंगों) में एक।

उपमार्ग (सं.) [सं-पु.] किसी बड़े मार्ग से निकला हुआ या जुड़ा हुआ छोटा मार्ग; छोटा रास्ता; गौण मार्ग।

उपमित (सं.) [सं-पु.] (व्याकरण) उपमावाचक कर्मधारय समास का एक भेद। [वि.] जिसकी किसी अन्य वस्तु से उपमा दी गई हो।

उपमिति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उपमा; सादृश्य 2. समानता; तुलना 3. सादृश्य या उपमा से होने वाला ज्ञान।

उपमुख्यमंत्री (सं.) [सं-पु.] मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री से नीचे का पद; वह मंत्री जो मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति में उनके कुछ कर्तव्यों का निर्वाह कर सकता है।

उपमेय (सं.) [सं-पु.] वह वस्तु जिसकी किसी से तुलना की जाए; वर्ण्य। [वि.] 1. जिसकी उपमा दी जाए या तुलना की जाए 2. उपमा दिए जाने के योग्य।

उपयुक्त (सं.) [वि.] जैसा होना चाहिए वैसा; योग्य; उचित; मुनासिब; अनुकूल, जैसे- बैठने के लिए यह स्थान उपयुक्त है।

उपयुक्तता (सं.) [सं-स्त्री.] उपयुक्त होने का भाव; योग्यता; औचित्य।

उपयोग (सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा स्थान को इस्तेमाल में लाना; प्रयोग में लाना 2. आवश्यकता की पूर्ति या प्रयोजन सिद्धि कराने वाला कार्य।

उपयोगकर्ता (सं.) [वि.] 1. उपयोग करने वाला 2. प्रयोग या व्यवहार करने वाला; प्रयोजन में लाने वाला।

उपयोगिता (सं.) [सं-स्त्री.] उपयोगी होने की दशा या अवस्था; उपयोग में आने की योग्यता; किसी आवश्यकता को पूरा करने की क्षमता।

उपयोगितावाद (सं.) [सं-पु.] एक सिद्धांत या मत जिसमें प्रत्येक वस्तु का महत्व केवल उपयोगिता की दृष्टि से आँका जाता है चाहे वह नैतिक दृष्टि से सही न हो; उपभोक्तावाद; (यूटिलिटेरियनिज़म)।

उपयोगितावादी (सं.) [सं-पु.] उपयोगितावाद का समर्थक, अनुयायी या प्रतिपादक व्यक्ति; उपभोक्तावादी; (यूटिलिटेरियन)। [वि.] 1. उपयोगितावाद संबंधी, उपयोगिता की दृष्टि से, जैसे- उपयोगितावादी विचारधारा।

उपयोगी (सं.) [वि.] 1. लाभकारी; लाभयुक्त 2. काम का; अनुकूल, जैसे- कपड़े धोने की मशीन बहुत उपयोगी उपकरण है।

उपयोजन (सं.) [सं-पु.] 1. उपयोग या काम में लाना 2. किसी दूसरे व्यक्ति के धन आदि को अनुचित रूप से प्रयोग में लाना; विनियोग; (अप्रोप्रिएशन)।

उपरक्षक (सं.) [सं-पु.] पहरा देने वाला व्यक्ति; चौकीदार।

उपरक्षण (सं.) [सं-पु.] 1. रक्षा करने का कार्य 2. पहरा; चौकीदारी।

उपरत (सं.) [वि.] 1. जो सांसारिकता में रत न हो; विरक्त; जिसका मन संसार और विषय-भोग से हट गया हो; रागरहित; उदासीन 2. जो किसी कार्य में न लगा हो।

उपरति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. विषय भोग से विरक्ति 2. संसार से उदासीनता 3. यज्ञादि विहित कर्मों का त्याग 4. मृत्यु।

उपरत्न (सं.) [सं-पु.] 1. सीप, मनके, शंख आदि सस्ती वस्तुएँ जिनसे मूल्यवान रत्नों की तरह ही आभूषण बनते हैं; गौण रत्न।

उपरना [सं-पु.] चुन्नी, दुपट्टा आदि वस्त्र जो शरीर के ऊपरी भाग पर ओढ़े जाते हैं।

उपरफट्टू [वि.] 1. अचानक ही आ टपकने वाला 2. बिलकुल व्यर्थ; बेकार या फालतू 3. निष्प्रयोजन, जैसे- उपरफट्टू बातें मत करो 4. बनावटी; दिखावटी।

उपरला [वि.] जो ऊपर की ओर हो; ऊपरी; ऊपरवाला, जैसे- आलमारी के उपरले खंड में किताबें हैं।

उपरांत (सं.) [अव्य.] बाद; अनंतर, जैसे- भोजन के उपरांत वह टहलने निकला।

उपराग (सं.) [सं-पु.] 1. रँगने वाली वस्तु; रंग 2. भोग-विलास में अनुरक्ति; विषयासक्ति 3. सूर्य या चंद्रमा का ग्रहण 3. समीप की वस्तु के प्रभाव से रंग-रूप में परिवर्तन।

उपराचढ़ी [सं-स्त्री.] परस्पर होड़; एक-दूसरे से आगे बढ़ जाने की कोशिश; प्रतिस्पर्धा।

उपराज (सं.) [सं-पु.] शासक या राजा का प्रतिनिधि जो किसी देश का राज-काज सँभाले; राजप्रतिनिधि; (वाइसरॉय)।

उपराजदूत (सं.) [सं-पु.] अन्य देशों में अपने राष्ट्र का कूटनीतिक प्रतिनिधित्व करने वाला वह राजनयिक जिसे अभी राजदूत का दर्जा प्राप्त न हुआ हो।

उपराजदूतावास (सं.) [सं-पु.] उपराजदूत के रहने का स्थान; (लिगेशन)।

उपराज्यपाल (सं.) [सं-पु.] भारत के किसी केंद्र शासित प्रदेश का संवैधानिक अध्यक्ष; (लेफ़्टिनेंट गवरनर)।

उपराम (सं.) [सं-पु.] 1. उपरति 2. विश्रांति।

उपराष्ट्रपति (सं.) [सं-पु.] गणतंत्र का निर्वाचित पदाधिकारी, जो राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में राष्ट्रपति के कार्यों को देखता है; भारत में वह राज्यसभा का पदेन सभापति होता है।

उपरि (सं.) [वि.] ऊपर का; ऊँचाई पर स्थित। [अव्य.] 1. ऊपर 2. उपरांत; बाद।

उपरुद्ध (सं.) [वि.] 1. रोका हुआ; बाधित 2. घेरा हुआ 3. कैद किया हुआ; 4. बंधन में डाला या पड़ा हुआ; बद्ध।

उपरूपक (सं.) [सं-पु.] (नाट्यशास्त्र) नाट्यविधा में एक प्रकार का छोटा नाटक या गौण रूपक जिसके अट्ठारह भेद होते हैं।

उपरोक्त (सं.) [वि.] दे. उपर्युक्त।

उपरोध (सं.) [सं-पु.] 1. बाधा; रुकावट; रोक; वह बात जो किसी होते हुए काम को रोक दे 2. घेरना 3. फूट; कलह।

उपरोधक (सं.) [वि.] रोकने वाला; बाधा डालने वाला। [सं-पु.] भीतर का कमरा।

उपरोधन (सं.) [सं-पु.] 1. रोकने या बाधा डालने की क्रिया 2. बाधा; रुकावट 3. घेरा।

उपर्युक्त (सं.) [वि.] जिसका उल्लेख या चर्चा ऊपर की जा चुकी हो; पूर्वोक्त; पूर्वोल्लिखित; (अफ़ोरसेड)।

उपलंभक (सं.) [वि.] 1. ज्ञान या अनुभव कराने वाला 2. प्राप्ति कराने वाला 3. लाभ कराने वाला।

उपल (सं.) [सं-पु.] 1. पत्थर 2. ओला 3. रत्न; जवाहर 4. बादल; मेघ।

उपलक्षक (सं.) [वि.] 1. अनुमान लगाने वाला; भाँपने वाला 2. निरीक्षण करने वाला; बोधक।

उपलक्षण (सं.) [सं-पु.] 1. ध्यान से देखना 2. किसी लक्षण के अंतर्गत आने वाला कोई गौण लक्षण 3. बोधक चिह्न।

उपलक्षित (सं.) [वि.] 1. अच्छी तरह देखा हुआ 2. अनुमानित; इशारे से जिसका संकेत मिला हो।

उपलक्ष्य (सं.) [सं-पु.] 1. उद्देश्य; निमित्त 2. वह बात जिसे ध्यान में रखकर कुछ कहा जाए या किया जाए 3. अनुमान; संकेत। [वि.] लक्ष्य करने योग्य; अनुमान करने योग्य।

उपलब्ध (सं.) [वि.] 1. सुलभ; जो मिल सकता हो, जैसे- यह दवा हर जगह उपलब्ध है 2. प्राप्त या हस्तगत किया हुआ; मिला हुआ 3. पाया हुआ; जाना हुआ।

उपलब्धता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उपलब्ध होने की अवस्था या भाव; सुलभता 2. प्राप्ति।

उपलब्धि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उपलब्धता; प्राप्ति, जैसे-ज्ञान की उपलब्धि 2. महत्वपूर्ण सफलता, जैसे- ओलंपिक खेलों में अभिनव बिंद्रा की शानदार उपलब्धि 3. अनुभव; प्रत्यक्ष ज्ञान, जैसे- कठोर तपस्या से गौतम को यह उपलब्धि हुई कि ज्ञान ऐसे नहीं मिलता 4. माँग के अनुसार पूर्ति, जैसे- बाज़ार में गेहूँ की उपलब्धि 5. कार्य के बदले वेतन, सुविधा आदि; प्रतिफल।

उपलभ्य (सं.) [वि.] 1. जो उपलब्ध या प्राप्त हो सकता हो 2. आदर या प्रशंसा के योग्य।

उपला (सं.) [सं-पु.] गाय, भैंस आदि के गोबर का सूखा हुआ कंडा जो चूल्हे में जलाने के काम आता है; गोबर पाथकर बनाया गया कंडा; गोइठा; गोहरा।

उपलेप (सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु से फ़र्श, दीवारें आदि लीपना या पोतना 2. लेप सामग्री; ऐसी वस्तु जिससे घर पोता या लीपा जाए।

उपवन (सं.) [सं-पु.] 1. बाग; बगीचा; उद्यान 2. छोटा वन।

उपवर्ग (सं.) [सं-पु.] किसी वर्ग के अंतर्गत किया गया छोटा वर्ग; गौण वर्ग।

उपवसथ (सं.) [सं-पु.] 1. जिस स्थान पर बस्ती हो 2. ग्राम 3. यज्ञ से ठीक पहले का दिन।

उपवसन (सं.) [सं-पु.] 1. निकट बसना या रहना 2. उपवास करना।

उपवसित (सं.) [वि.] 1. जिसने उपवास किया हो 2. जो उपवास किए बैठा हो।

उपवाक्य (सं.) [सं-पु.] (व्याकरण) 1. किसी संयुक्त (कंपाउंड) या मिश्र (कॉमप्लेक्स) वाक्य के अंतर्गत आने वाले स्वतंत्र और आश्रित वाक्य 2. संयुक्त या मिश्र वाक्य के वे भाग जिनमें उद्देश्य और विधेय हों; (क्लॉज़)।

उपवाणिज्यदूत (सं.) [सं-पु.] किसी देश के व्यापार-वाणिज्य संबंधी हितों की निगरानी के लिए अन्य देश में नियुक्त वाणिज्य दूत के अधीन काम करने वाला छोटा दूत जो प्रायः राजधानी के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्रों में रहकर काम करता है।

उपवास (सं.) [सं-पु.] 1. एक व्रत जिसमें व्यक्ति निराहार रहता है; अनशन 2. किसी कारण से भोजन का त्याग; भूखा रहना।

उपवासी (सं.) [वि.] 1. जो उपवास कर रहा हो 2. निराहार और भूखा।

उपविद्या (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी बड़ी विद्या या शास्त्र से संबद्ध अपेक्षाकृत गौण विद्या, जैसे- भाषा विज्ञान से संबंद्ध वाक्य विज्ञान 2. वेदों से ग्रहण की गई लौकिक विद्याएँ; उपवेद।

उपविधि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी विधि या कानून के अंतर्गत आने वाली उससे संबद्ध कोई गौण विधि; (बाइ लॉ) 2. ऐसा कानून, अध्यादेश आदि, जो कोई संगठन, निगम आदि अपने आंतरिक मामलों के व्यवहार के लिए बनाए।

उपविभाग (सं.) [सं-पु.] किसी विभाग के अंतर्गत उसका कोई गौण या छोटा विभाग।

उपविष (सं.) [सं-पु.] हलका ज़हर या विष जो अधिक घातक नहीं होता है, जैसे- आक, अफ़ीम, धतूरा आदि।

उपविष्ट (सं.) [वि.] बैठा हुआ; जमकर बैठा हुआ।

उपवीत (सं.) [सं-पु.] 1. जनेऊ; यज्ञसूत्र 2. उपनयन संस्कार; यज्ञोपवीत संस्कार।

उपवेद (सं.) [सं-पु.] 1. चार वेदों से ग्रहण की गई लौकिक कलाओं या विद्याओं का सामूहिक नाम, जिसमें ऋग्वेद से आयुर्वेद, यजुर्वेद से धनुर्वेद, सामवेद से गंधर्ववेद और अथर्ववेद से स्थापत्यवेद निकले हैं 2. लौकिक विद्या।

उपवेधक (सं.) [सं-पु.] लफंगा; मवाली; गुंडा; बदमाश।

उपवेश (सं.) [सं-पु.] 1. बैठना 2. सभा, समिति आदि की बैठक 3. किसी कार्य में जुट जाना 4. मल-त्याग।

उपवेशन (सं.) [सं-पु.] 1. सभा की बैठक जारी रहने की स्थिति 2. जमकर बैठ जाना।

उपवेष्टन (सं.) [सं-पु.] 1. लपेटने की क्रिया 2. चारों तरफ़ से लपेटना।

उपशम (सं.) [सं-पु.] 1. इंद्रियों या मनोविकारों को वश में रखने की क्रिया; इंद्रियनिग्रह 2. रोग, वेदना आदि की पीड़ा का शमन करना अर्थात घटाना 3. शांत होना; विश्रांति; शमन 4. उपद्रव आदि की शांति के लिए किया जाने वाला प्रयत्न।

उपशमन (सं.) [सं-पु.] 1. शांत करना; शमित करना 2. निवारण; दूर करना 3. दबाना; घटाना 4. तुष्टीकरण।

उपशमित (सं.) [वि.] 1. जिसका उपशमन कर दिया गया हो 2. दबाया हुआ; शांत किया हुआ 3. निवारित।

उपशाखा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वृक्ष की बड़ी शाखा से निकली कोई अन्य छोटी शाखा; शाखा की शाखा 2. किसी औद्योगिक प्रतिष्ठान, कंपनी, बैंक आदि के प्रमुख दफ़्तरों से भिन्न दूरस्थ क्षेत्रों में बने छोटे कार्यालय और उनकी शाखाएँ।

उपशामक (सं.) [वि.] जो उपशमन करे; शांत करे, जैसे- दर्द की उपशामक दवाएँ।

उपशाल (सं.) [सं-पु.] 1. घर के सामने की खुली जगह; दालान; सहन 2. मकान के पास उठने-बैठने का कमरा; बैठक।

उपशिक्षक (सं.) [सं-पु.] 1. सहायक शिक्षक 2. किसी विद्यालय आदि का सहयोगी अध्यापक।

उपशिष्य (सं.) [सं-पु.] शिष्य का शिष्य; चेले का चेला।

उपशीर्षक (सं.) [सं-पु.] 1. (पत्रकारिता) समाचार पत्र, पत्रिकाओं आदि में किसी बड़े शीर्षक के अंतर्गत आने वाला कोई छोटा शीर्षक; किसी बड़े समाचार या आलेख के बीच-बीच में दिए जाने वाले छोटे शीर्षक 2. एक रोग जिसमें सिर में छोटी-छोटी फुंसियाँ निकल आती हैं।

उपश्रुत (सं.) [वि.] 1. सुना हुआ 2. जाना हुआ 3. स्वीकृत।

उपश्रुति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सुनना; श्रवण करना 2. किसी ध्वनि के श्रवण की सीमा; वह हद जहाँ तक वह ध्वनि सुनाई दे 3. स्वीकृति।

उपश्लेष (सं.) [सं-पु.] 1. पास आकर देह से देह सटाना 2. आलिंगन।

उपसंक्षेप (सं.) [सं-पु.] किसी हिसाब, रपट, विवरण आदि का अति संक्षिप्त रूप; सार संक्षेप; (ऐब्स्ट्रैक्ट)।

उपसंचालक (सं.) [सं-पु.] किसी कार्य या कार्यक्रम के संचालक का सहायक; सह संचालक।

उपसंपदा (सं.) [सं-स्त्री.] घर-गृहस्थी छोड़कर (बौद्ध) भिक्षु बनना; (बौद्ध धर्म) भिक्षु के रूप में दीक्षा ग्रहण करना।

उपसंपादक (सं.) [सं-पु.] 1. किसी पत्र-पत्रिका के संपादक का सहयोगी जो उसके अधीन काम करता है; सहायक संपादक; (सब-एडिटर) 2. किसी अन्य कार्य को भी उसके मुख्य कर्ता के सहायक के रूप में संपादित करने वाला व्यक्ति।

उपसंविदा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी बड़े ठेके के अंतर्गत किया गया छोटा ठेका; उप-ठेका 2. किसी संविदा के अंतर्गत किसी दूसरे व्यक्ति से किया गया आंशिक अनुबंध।

उपसंहार (सं.) [सं-पु.] 1. समापन; अंत पर आकर सारे कार्य को समेटना 2. अंत; समाप्ति 3. किसी कृति का अंतिम निष्कर्ष; सारांश; सार।

उपसचिव (सं.) [सं-पु.] किसी सचिव के बाद काम करने वाला सहयोगी सचिव; (डेप्युटी सेक्रेटरी)।

उपसभापति (सं.) [सं-पु.] किसी संस्था का वह अधिकारी जिसका पद सभापति के बाद आता है, और सभापति की अनुपस्थिति में जो उसका काम करता है; (वाइस प्रेसिडेंट)।

उपसमिति (सं.) [सं-स्त्री.] किसी बड़ी समिति या सभा के अंतर्गत किसी कार्य विशेष को निपटाने के लिए बनाई गई छोटी समिति; (सब-कमेटी)।

उपसरण (सं.) [सं-पु.] 1. किसी की ओर आना, जाना या पहुँचना 2. शरीर में रक्त का तेज़ी से हृदय की ओर बहना।

उपसर्ग (सं.) [सं-पु.] (व्याकरण) 1. वह शब्दांश जो किसी शब्द के पहले लगकर उसके अर्थ में परिवर्तन या किसी प्रकार की विशेषता उत्पन्न करता है, जैसे- प्रहार में 'प्र' और अन्याय में 'अ' उपसर्ग हैं 2. संप्रति इन्हें 'पूर्वप्रत्यय' के नाम से जाना जाता है।

उपसागर (सं.) [सं-पु.] 1. बड़े सागर का कोई छोटा अंश या भाग 2. समुद्र की खाड़ी।

उपसेनापति (सं.) [सं-पु.] सेना में सेनापति के बाद आने वाला पद।

उपसेव्य (सं.) [वि.] व्यवहार योग्य।

उपसैनिक (सं.) [सं-पु.] अर्धसैनिक; सहसैनिक; परासैन्य बल; (पैरामिलिटरी)।

उपस्कर (सं.) [सं-पु.] 1. जीवनयापन के लिए आवश्यक सामग्री 2. घर की सजावट का सामान, फ़र्नीचर आदि 3. कोई काम करने या कोई चीज़ बनाने के लिए उपयोग में आने वाली सारी सामग्री 4. सजने-सँवरने के साधन।

उपस्कार (सं.) [सं-पु.] 1. रिक्त स्थान की पूर्ति करने वाली चीज़; न्यूनतापूरक वस्तु 2. सजावट की सामग्री 3. आभूषण; गहना।

उपस्कृत (सं.) [वि.] 1. घर आदि स्थान जो उपस्करों से सज्जित हों; मेज़-कुरसी आदि सामानों से सजा हुआ 2. आभूषणों आदि से सज्जित 3. एकत्रित या संग्रह किया हुआ।

उपस्थ (सं.) [वि.] बैठा हुआ। [सं-पु.] 1. शरीर का मध्य भाग 2. पेड़ू 3. पुरुष अथवा स्त्री की जननेंद्रिय 4. गुदा।

उपस्थान (सं.) [सं-पु.] 1. किसी का पास या समीप आना 2. उपस्थिति; मौजूदगी 3. उपासनास्थल; देवालय; मंदिर; मठ 4. स्तुति या आराधना करने की क्रिया 5. सभा; समाज।

उपस्थापक (सं.) [सं-पु.] 1. किसी सभा या समिति के सामने विचार-विमर्श के लिए प्रस्ताव उपस्थित करने वाला व्यक्ति 2. वह व्यक्ति जो अदालत में मुकदमों से संबंधित कागज़ात न्यायकर्ता अधिकारी के सामने पेश करता है और उन पर आज्ञाएँ आदि लिखता है; पेशकार।

उपस्थापन (सं.) [सं-पु.] 1. कोई प्रस्ताव प्रस्तुत करने की क्रिया या भाव 2. उपस्थित करना; पेश करना।

उपस्थापित (सं.) [वि.] सभा या समिति के समक्ष कोई प्रस्ताव रखा हुआ; उपस्थित किया हुआ।

उपस्थित (सं.) [वि.] 1. विद्यमान; मौजूद; हाज़िर 2. समीप; पास बैठा हुआ 3. समक्ष; सामने स्थित 4. ध्यान या मन में आया हुआ।

उपस्थिति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उपस्थित होने की अवस्था; मौजूदगी; हाज़िरी; विद्यमानता; (अटेंडेंस) 2. किसी अवसर पर या किसी स्थान पर उपस्थित लोगों की संख्या।

उपस्थिति-पंजिका (सं.) [सं-स्त्री.] वह पंजिका या रजिस्टर जिसमें कर्मचारियों, विद्यार्थियों आदि की उपस्थिति या कार्य का ब्योरा दर्ज़ रहता है; हाज़िरी-रजिस्टर; (अटेंडेंस रजिस्टर)।

उपस्थिति-पत्र (सं.) [सं-पु.] 1. किसी अधिकारी के सामने निश्चित समय बाद उपस्थित होने के लिए किसी के द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला पत्र 2. किसी को किसी राजकीय अधिकारी के सामने किसी निश्चित समय पर उपस्थित होने के लिए भेजा हुआ आधिकारिक पत्र।

उपस्मृति (सं.) [सं-स्त्री.] गौण धर्मशास्त्र।

उप-स्वत्व (सं.) [सं-पु.] 1. भूमि आदि पूँजी से होने वाली आय; लगान 2. ब्याज 3. ज़मीन-जायदाद से हुई आमदनी लेने का अधिकार या स्वत्व।

उपहत (सं.) [वि.] 1. नष्ट या बरबाद किया हुआ 2. बिगाड़ा हुआ; विकृत 3. जो संकट या कष्ट में हो; दुखी 4. जिसे चोट लगी हो; घायल 5. जिस वस्तु को अशुद्ध या दूषित किया गया हो 6. लांछित।

उपहरण (सं.) [सं-पु.] 1. निकट लाना या पहुँचाना 2. हरण करना 3. छीनना या लूटना 4. उपहार; भेंट।

उपहसित (सं.) [वि.] जिसका उपहास किया गया हो। [सं-पु.] 1. (नाट्यशास्त्र) नाक फुलाकर, आँख तिरछी करके और गरदन हिलाते हुए हँसना; कटाक्षभरी हँसी 2. (काव्यशास्त्र) हास्य का एक भेद।

उपहार (सं.) [सं-पु.] 1. भेंट; नज़र; नज़राना; सौगात; किसी विशेष अवसर पर मित्र, संबंधियों आदि को भेंट स्वरूप दी जाने वाली कोई वस्तु; (गिफ़्ट) 2. शैवों की उपासना के छह नियम।

उपहार-प्रति (सं.) [सं-स्त्री.] किसी पत्र-पत्रिका की महत्वपूर्ण व्यक्तियों को आदर-स्वरूप निःशुल्क प्रेषित की जाने वाली प्रति।

उपहास (सं.) [सं-पु.] 1. किसी की कमज़ोरियों को सामने लाने या उसे सबकी दृष्टि में गिराने वाली हँसी; व्यंग्यात्मक हँसी; खिल्ली 2. मज़ाक; दिल्लगी।

उपहासक (सं.) [वि.] दूसरों का उपहास करने वाला; जो दूसरे की खिल्ली उड़ाता हो।

उपहासास्पद (सं.) [वि.] उपहास के योग्य; जिसमें कोई ऐसी कमज़ोरी हो, जिसका उपहास किया जा सके। [सं-पु.] उपहास का पात्र।

उपहास्य (सं.) [वि.] 1. उपहास के योग्य 2. जिसका उपहास किया जा सकता हो; हँसी का पात्र 3. निंदनीय।

उपहित (सं.) [वि.] 1. पास रखा या लाया हुआ 2. ऊपर रखा हुआ; स्थापित 3. धारण किया हुआ 4. किसी प्रकार की उपाधि से युक्त 5. मिला या मिलाया हुआ; सम्मिलित।

उपह्रत (सं.) [वि.] 1. पास लाया हुआ 2. उपहार के रूप में दिया हुआ 3. अर्पण किया हुआ 4. परोसा हुआ।

उपांग (सं.) [सं-पु.] 1. किसी अंग का भाग; अवयव 2. ऐसा छोटा अंग जो किसी वस्तु के अंगों की पूर्ति करता हो; पूरक अंग, जैसे- पुराण आदि वेद के उपांग हैं 3. टीका; तिलक।

उपांत (सं.) [सं-पु.] 1. अंतिम से ठीक पहले का हिस्सा; अंत का भाग; आख़िरी हिस्सा 2. अंत के आस-पास का भाग या स्थान, जैसे- शहर का उपांत 3. सीमा; हद 4. नदी का तट या किनारा 5. कपड़े का आँचल 6. कागज़ पर कुछ लिखते समय दाहिनी या बाईं ओर छोड़ी गई जगह; हाशिया; (मार्जिन)।

उपांतसाक्षी (सं.) [सं-पु.] वह साक्षी या गवाह जिसने किसी दस्तावेज़ के उपांत या हाशिये पर हस्ताक्षर किया हो या अँगूठे का निशान लगाया हो।

उपांतस्थ (सं.) [वि.] 1. उपांत पर रहने या होने वाला 2. कागज़ के हाशिए पर लिखा हुआ; उपांतिक।

उपांतिक (सं.) [वि.] 1. पास या समीप का 2. पड़ोस में रहने वाला; समीपवर्ती।

उपांत्य (सं.) [वि.] 1. अंत के पास का 2. अंतिम से पहले का।

उपाकरण (सं.) [सं-पु.] 1. उपक्रम; कार्यारंभ की तैयारी 2. बलिप्रदान।

उपाकर्म (सं.) [सं-पु.] 1. विधि या संस्कारपूर्वक वेदों का अध्ययन आरंभ करना 2. उपक्रम; आरंभ 3. यज्ञोपवीत संस्कार।

उपाख्यान (सं.) [सं-पु.] 1. कोई पौराणिक कथा; पुरानी कथा या वृत्तांत 2. किसी बड़ी कथा के बीच आने वाली छोटी कथा; उपकथा 3. हाल; वृत्तांत।

उपागत (सं.) [वि.] 1. आया हुआ, पास आया हुआ 2. जो घटित हुआ हो 3. वादा किया हुआ।

उपागम (सं.) [सं-पु.] 1. निकट आना; समीप आना 2. घटना 3. वादा 4. कष्ट की अनुभूति।

उपाचार (सं.) [सं-पु.] परंपरा से चले आते हुए आचार संबंधी गौण नियम या प्रथाएँ।

उपाचार्य (सं.) [सं-पु.] किसी विश्वविद्यालय आदि में आचार्य (प्रोफ़ेसर) से नीचे का पद; (रीडर)।

उपात्यय (सं.) [सं-पु.] 1. विधि-विधान या परंपरा का परित्याग या उल्लंघन 2. किसी प्रथा या रीति-रिवाज का विरोध या परंपरा विरुद्ध आचरण।

उपादान (सं.) [सं-पु.] 1. प्राप्ति; ग्रहण 2. वह सामग्री जिससे कोई अन्य वस्तु तैयार हो, जैसे- दूध खोए का उपादान है 3. कारण; साधन 4. प्रयोग 5. ज्ञान; बोध 6. वैराग्य; भोग-विलास से विरक्ति।

उपादेय (सं.) [वि.] 1. लाभदायक; उपयोगी; काम आने योग्य 2. जिसे लिया जा सकता हो; ग्रहण करने योग्य 3. बहुत अच्छा; उत्तम; उत्कृष्ट।

उपाधि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किए गए श्रेष्ठ कार्य के लिए सम्मान के रूप में दिया जाने वाला लिखित अलंकरण; ख़िताब; (टाइटिल), जैसे- (अँग्रेज़ों के समय में) रायबहादुर की उपाधि 2. प्रमाणपत्र; डिग्री, जैसे- स्नातक की उपाधि 3. कुलनाम; उपनाम; सरनेम।

उपाधि-पत्र (सं.) [सं-पु.] ऐसा पत्र जिसमें उपाधि का लिखित उल्लेख हो, उपाधि-पत्रक; (सर्टिफ़िकेट)।

उपाध्यक्ष (सं.) [सं-पु.] 1. किसी संस्था, सभा आदि के अध्यक्ष के ठीक बाद वाले पद का अधिकारी 2. अध्यक्ष का सहयोगी जो अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उसके कार्यों का निर्वहन करता है; (वाइस चेयरमैन)।

उपाध्याय (सं.) [सं-पु.] 1. वेद, वेदांग पढ़ाने वाला पंडित; शास्त्रज्ञ विद्वान 2. शिक्षक; अध्यापक; गुरु 3. ब्राह्मण समाज में एक कुलनाम या सरनेम।

उपानह (सं.) [सं-पु.] 1. खड़ाऊँ 2. जूता।

उपापचय (सं.) [सं-पु.] जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा हेतु जीवों के शरीर में होने वाली रासायनिक क्रियाएँ जिनसे पदार्थ बनते और टूटते हैं; (मेटाबॉलिज़म)।

उपाय (सं.) [सं-पु.] 1. युक्ति; तरकीब; साधन 2. युद्ध-विजय हेतु व्यूह रचना 3. चिकित्सा 4. शासन-प्रबंध 5. वांछित फल-प्राप्ति के लिए प्रयत्न।

उपायन (सं.) [सं-पु.] 1. प्राचीन काल में किसी राजा द्वारा किसी अन्य राजा को दी जाने वाली भेंट 2. मित्रों आदि को दिया जाने वाला कुछ विलक्षण या सुंदर उपहार; सौगात 3. निकट जाना 4. शिष्य बनना; शिष्यत्व स्वीकार करना।

उपायुक्त (सं.) [सं-पु.] भारतीय प्रशासनिक सेवा का एक प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी; आयुक्त से नीचे का पद; (डेप्युटी कमिश्नर)।

उपार्जक (सं.) [वि.] 1. कमाने वाला; उपार्जन करने वाला 2. पैदा करने वाला।

उपार्जन (सं.) [सं-पु.] परिश्रम और प्रयत्न से संग्रह अथवा अर्जन; कमाना; हासिल करना; पैदा करना।

उपार्जित (सं.) [वि.] 1. कमाया हुआ 2. पैदा किया हुआ।

उपार्जितगुण (सं.) [सं-पु.] व्यक्ति का ऐसा गुण जो उसका स्वयं का न होकर उसने किसी अन्य स्रोत से विकसित किया हो; अनुसरित गुण।

उपालंभ (सं.) [सं-पु.] किसी से उसके द्वारा किए गए किसी कार्य या व्यवहार की शिकायत; उलाहना।

उपाश्रय (सं.) [सं-पु.] 1. लघु आश्रय; हलका-सा सहारा 2. ऐसा भवन, कमरा या स्थान जहाँ जैन लोग स्वाध्याय, उपासना या धर्मोपदेश श्रवण के लिए जाते हैं।

उपाश्रित (सं.) [वि.] 1. जो किसी दूसरे पर आश्रित हो 2. ऐसे कानून जो किन्हीं अन्य नियम-कानूनों के अधीन या आश्रित हों।

उपासंग (सं.) [सं-पु.] 1. नज़दीकी; नैकट्य; सामीप्य 2. तरकश; निषंग।

उपासक (सं.) [वि.] उपासना करने वाला; आराधक; अनुयायी; भक्त। [सं-पु.] बुद्ध का पूजक गृहस्थ।

उपासना (सं.) [सं-स्त्री.] आराधना; प्रार्थना; अर्चना; सेवा; भक्ति। [क्रि-स.] पूजा-सेवा करना; आराधना करना।

उपासनीय (सं.) [वि.] 1. जो उपासना के योग्य हो 2. पूजनीय; पूज्य।

उपासा (सं.) [वि.] 1. जिसने उपवास कर रखा हो 2. जिसने कुछ भी न खाया हो 3. भोजन न मिलने के कारण जो भूखा हो।

उपासिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. उपासना या पूजा करने वाली स्त्री 2. बौद्ध धर्म की अनुयायी गृहस्थ स्त्री।

उपासी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. जिस स्त्री ने उपवास कर रखा हो 2. जिस स्त्री ने कुछ भी न खाया हो, जैसे- पति के भोजन करने की प्रतीक्षा में वह उपासी बैठी है।

उपास्थि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कोमल हड्डी; (कार्टिलेज) 2. एक नीले-सफ़ेद अथवा भूरे रंग का अर्धपारदर्शक तंतुमय संयोजी ऊतक।

उपास्य (सं.) [वि.] जिसकी पूजा की जाती हो; उपासना या आराधना करने योग्य; आराध्य; पूज्य।

उपाहार (सं.) [सं-पु.] हलका और थोड़ा भोजन; नाश्ता; जलपान; अल्पाहार।

उपेंद्र (सं.) [सं-पु.] 1. इंद्र के छोटे भाई का नाम 2. विष्णु 3. कृष्ण।

उपेक्षक (सं.) [वि.] 1. उपेक्षा करने वाला; अवहेलना करने वाला 2. विरक्त; अनुरागरहित; उदासीन।

उपेक्षणीय (सं.) [वि.] उपेक्षा के योग्य; उपेक्षा का पात्र; उपेक्ष्य।

उपेक्षा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी की इस प्रकार अवहेलना करना कि वह अपमानजनक प्रतीत हो; तिरस्कार; अनादर, जैसे- आलोचकों की उपेक्षा से दुखी साहित्यकार 2. जहाँ ध्यान देने की आवश्यकता हो, वहाँ ध्यान न देना; उदासीनता; लापरवाही, जैसे-स्वास्थ्य के नियमों की उपेक्षा।

उपेक्षित (सं.) [वि.] 1. उपेक्षा का शिकार; जिसकी उपेक्षा की गई हो; तिरस्कृत 2. जिसका समुचित आदर सम्मान न किया गया हो।

उपेक्ष्य (सं.) [वि.] उपेक्षणीय; उपेक्षा के योग्य।

उपोत्पाद (सं.) [सं-पु.] किसी पदार्थ के उत्पादन के क्रम में प्राप्त होने वाला अन्य उत्पादन; गौण उपज; उत्पाद से बचा उत्पाद; (बाइ-प्रॉडक्ट), जैसे- गन्ने को पेरकर रस निकालने की प्रक्रिया में निकले सूखे छिलके आदि जिनका उपयोग ईंधन के तौर पर होता है।

उपोद्घात (सं.) [सं-पु.] 1. पुस्तक के आरंभ का वक्तव्य; भूमिका; प्रस्तावना 2. (नव्य न्याय दर्शन) छह संगतियों में से एक।

उपोसथ (सं.) [सं-पु.] 1. निराहार व्रत या उपवास 2. वह व्रत जिसमें भोजन नहीं किया जाता मुख्यतः बौद्ध तथा जैन मतों में उपवास के लिए प्रयुक्त शब्द।

उफ़ (अ.) [अव्य.] 1. दुख; कष्ट; पछतावा या विस्मय जताने वाला उद्गार 2. हाय, आह, उह आदि की श्रेणी का विस्मय सूचक शब्द।

उफ़क (अ.) [सं-पु.] दृष्टि की अंतिम सीमा पर का वह गोलाकार स्थान जहाँ आकाश और पृथ्वी दोनों मिले हुए जान पड़ते हैं; क्षितिज।

उफनना [क्रि-अ.] 1. दूध आदि का उबलकर ऊपर आना 2. {ला-अ.} व्यक्ति का आवेश में आना।

उफान [सं-पु.] 1. दूध आदि का उबाल; ऊपर उठना 2. {ला-अ.} किसी व्यक्ति के भावों का जोश में आना; भावातिरेक; उत्तेजन, जैसे- गुस्से का उफान।

उबकना (सं.) [क्रि-अ.] जी मिचलाना।

उबकाई [सं-स्त्री.] मितली; मिचली; ऐसा महसूस होना कि उल्टी या कै होने ही वाली है।

उबटन (सं.) [सं-पु.] 1. आटा, बेसन, तेल, हल्दी, मलाई, चिरौंजी, बादाम आदि पदार्थों से बने विभिन्न प्रकार के लेप जो शरीर की मालिश के काम आते हैं 2. विवाह की एक रस्म जिसमें विवाह पूर्व वर-वधू दोनों को उबटन का लेप लगाया जाता है।

उबरना [क्रि-अ.] 1. किसी संकट या समस्या से मुक्त होना; छुटकारा पाना; मुक्ति पाना; निजात पाना 2. बाकी बचना; शेष रहना।

उबलना (सं.) [क्रि-अ.] 1. उबलने या खौलने की क्रिया; आग पर रखे हुए तरल पदार्थ का तेज़ गरम होने पर फेन के साथ ऊपर आना 2. उफनना; वेग से निकलना; उमड़ना 3. {ला-अ.} क्रोध, अभिमान आदि का आवेश होना।

उबहना (सं.) [क्रि-स.] 1. हथियार खींचना या उठाना 2. कहीं से पानी उलीचना 3. कुएँ से पानी खींचना 4. खेत जोतना। [क्रि-अ.] 1. ऊपर उठना; उभरना 2. प्रगट होना; खुलना।

उबाऊ [वि.] ऊब पैदा करने वाला; उबाने वाला।

उबाऊपन [सं-पु.] ऊबने की स्थिति या भाव; ऊबने की दशा।

उबाना [क्रि-स.] किसी के मन को अपनी बातों या व्यवहार से उकता देना; बोर करना।

उबारना [क्रि-स.] परेशानी या समस्या से बचाना, उद्धार करना।

उबारा [सं-पु.] पालतू पशुओं के पानी पीने के लिए कुओं के पास बनाया जाने वाला कुंड; चरही।

उबाल [सं-पु.] 1. उबलने की क्रिया 2. उफान; जोश 3. {ला-अ.} अभिमान, क्रोध आदि का आवेश।

उबालना (सं.) [क्रि-स.] 1. पानी, दूध आदि तरल पदार्थ को आग पर रखकर इतना गरम करना कि वह फेन के साथ ऊपर उठ आए 2. खौलाना 3. चावल आलू आदि जैसे पदार्थों को पककर नर्म होने तक उबलने देना।

उबासी (सं.) [सं-स्त्री.] थकान, नींद आदि के कारण शरीर शिथिल होने पर मुँह फाड़कर ज़ोर से हवा अंदर खींचने की अनायास होने वाली क्रिया; जँभाई; जमुहाई।

उभय (सं.) [वि.] 1. दोनों 2. जिन दो का उल्लेख हो रहा हो।

उभय कथामुख (सं.) [सं-पु.] (पत्रकारिता) समाचार के भूत और भविष्य दोनों की चर्चा वाला कथामुख समाचार पत्र में शीर्षक का एक प्रकार।

उभयचर (सं.) [वि.] जल और स्थल दोनों में रहने वाला जीव, जैसे- कछुआ, मेढ़क आदि।

उभयतः (सं.) [क्रि.वि.] 1. दोनों प्रकार से 2. दोनों पक्षों से; दोनों ओर से।

उभयनिष्ठ (सं.) [वि.] 1. जिसकी निष्ठा दोनों पक्षों में हो 2. दोनों में सम्मलित होने वाला; (कॉमन)।

उभयमुखी (सं.) [वि.] 1. जिसके दोनों ओर मुख हों 2. जिस व्यक्ति की प्रवृत्ति या गति दो भिन्न दिशाओं में समान रूप से हो।

उभयलिंग (सं.) [सं-पु.] (व्याकरण) वह संज्ञा जिसका उपयोग स्त्रीलिंग और पुल्लिंग दोनों में होता है, हिंदी व्याकरण में उभय-लिंग नहीं होता।

उभयलिंगी (सं.) [वि.] ऐसे जीव जिनमें पुल्लिंग और स्त्रीलिंग दोनों के चिह्न या लक्षण हों, जैसे- केंचुआ।

उभयसंकट (सं.) [सं-पु.] 1. ऐसी स्थिति जिसमें दोनों ही ओर से संकट की संभावना या आशंका हो 2. जहाँ व्यक्ति के लिए दो विकल्पों में से एक चुनना कठिन हो; धर्मसंकट; (डायलेमा)।

उभयात्मक (सं.) [वि.] 1. दो पक्षों के योग से बना हुआ; जिसका संबंध दो पक्षों में दोनों से हो 2. दोनों प्रकारों या रूपों से युक्त।

उभयालंकार (सं.) [सं-पु.] ऐसा अलंकार जिसमें शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों का योग हो।

उभरना (सं.) [क्रि-अ.] 1. उकसना; नीचे के तल से उठ या निकलकर ऊपर आना 2. प्रकट होना; पैदा होना; उत्पन्न होना 3. दबी बातें खुलना; उजागर होना 4. विद्रोही प्रवृत्ति होना।

उभार [सं-पु.] 1. उभरने की क्रिया; उठान 2. उभरे हुए होने की अवस्था 3. फैलाव; उठाव 4. ऊँचाई; ऊँचापन 5. {ला-अ.} वृद्धि।

उभारदार (हिं.+फ़ा.) [वि.] 1. उभरा या उठा हुआ 2. फूला हुआ; सतह से उभरा हुआ।

उभारना [क्रि-स.] 1. किसी को उभरने के लिए प्रवृत्त करना; ऊपर लाना 2. बढ़ाना 3. उत्तेजित या उत्साहित करना; उकसाना।

उमंग (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मन में होने वाला आनंद और उत्साह; उल्लास 2. चित्त का उभार; जोश; उल्लासपूर्ण आकांक्षा, जैसे- मन में आगे बढ़ने की उमंग 3. सुखदायक मनोवेग।

उमगना [क्रि-अ.] 1. उमंग से भरकर ऊपर उठना; उमड़ना 2. उल्लास में होना; हुलसना; जोश में आना।

उमड़-घुमड़ [क्रि.वि.] चारों ओर से घिरकर एकत्रित होना; छाना, जैसे- बादल उमड़-घुमड़ कर आ रहे हैं।

उमड़ना [क्रि-अ.] 1. नदी, तालाब आदि के पानी का आधिक्य के कारण ऊपर उठना, उतराकर बह चलना 2. उठकर फैलना; छाना; घेरना, जैसे- बादल उमड़ना 3. अधिक संख्या में आ जाना, जैसे- संगीत के कार्यक्रम में भीड़ उमड़ पड़ी।

उमदा (अ.) [वि.] दे. उम्दा।

उमर (अ.) [सं-स्त्री.] दे. उम्र।

उमरकैद (अ.) [सं-स्त्री.] दे. उम्रकैद।

उमरा (अ.) [सं-पु.] 'अमीर' का बहुवचन; अमीर या सरदार वर्ग के लोग; धनिक जन।

उमराव (अ.) [सं-पु.] ('अमीर' का बहुवचन) प्रतिष्ठित; अमीर; कुलीन समाज; धनिक; धनवान जन।

उमस (सं.) [सं-स्त्री.] वर्षा ऋतु की ऐसी गरमी जो हवा बंद हो जाने पर लगती है; बरसात की नमी युक्त गरमी।

उमा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हिमालय की पुत्री; पार्वती; गौरी; शिव की पत्नी 2. कांति; शोभा।

उमाकांत (सं.) [सं-पु.] उमा अर्थात पार्वती के पति; उमेश; शंकर; शिव; महादेव।

उमासुत (सं.) [सं-पु.] 1. पार्वती के पुत्र 2. कार्तिकेय और गणेश।

उमाह [सं-पु.] मन में उत्पन्न होने वाला वह सुखदायक मनोवेग जो कोई प्रिय या अभीष्ट काम करने के लिए होता है; उमंग; तरंग; लहर।

उमेठना (सं.) [क्रि-स.] 1. कपड़े आदि किसी वस्तु को मरोड़ते हुए ऐंठना 2. वस्तु को इस प्रकार ऐंठना कि उसमें बल पड़ जाएँ 3. (किसी के कान) घुमाकर मरोड़ना।

उमेठवाँ [वि.] जिसमें उमेठन की तिरछी सलवटें पड़ी हों; ऐंठनदार।

उमेश (सं.) [सं-पु.] उमा अर्थात पार्वती के पति; उमापति; उमाकांत; शंकर; महादेव; शिव।

उम्दगी (अ.) [सं-स्त्री.] उम्दा या बढ़िया होने का गुण; ख़ूबी; श्रेष्ठता।

उम्दा (अ.) [ वि.] 1. उत्तम; श्रेष्ठ; उमदा 2. अच्छा; बढ़िया।

उम्मत (अ.) [सं-स्त्री.] 1. किसी धर्म, ख़ास कर पैगंबरी धर्म के समस्त अनुयायी 2. धर्म समुदाय या समाज, जैसे- मुसलमान, यहूदी।

उम्मीद (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. आशा; अपेक्षा 2. आसरा; भरोसा; सहारा।

उम्मीदवार (फ़ा.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जिसने किसी पद या नौकरी की आशा में उसके लिए अरज़ी दे रखी हो; नौकरी का प्रार्थी 2. चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति; किसी पद पर चुने जाने का प्रत्याशी। [वि.] आशा या उम्मीद रखने वाला; आशान्वित।

उम्मीदवारी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] उम्मीदवार होने का भाव; प्रत्याशी होना।

उम्मेद (फ़ा.) [सं-स्त्री.] दे. उम्मीद।

उम्र (अ.) [सं-स्त्री.] 1. वय; अवस्था, जैसे- इस बच्चे की उम्र पाँच वर्ष है 2. आयु; सारा जीवन-काल, जैसे- उन्होंने सारी उम्र काम किया 3. जन्म से लेकर अब तक का जीवन काल या बीता हुआ जीवन काल; उमर 4. वह अवधि जिसमें कोई वस्तु उपकरण आदि चालू हालत में या उपयोग में रहे, जैसे- इस मशीन की उम्र 15 वर्ष है, अर्थात यह मशीन 15 वर्ष तक चलेगी।

उम्रदराज़ (अ.+फ़ा.) [वि.] लंबी उम्र वाला; वयोवृद्ध।

उर (सं.) [सं-पु.] 1. हृदय; मन; चित्त, जैसे- उमंगें उर में लहराती हैं 2. छाती; सीना; वक्षस्थल, जैसे- उर पर लहराता उत्तरीय।

उरग (सं.) [सं-पु.] साँप; सर्प; नाग; जो उर अर्थात छाती के बल चलता हो।

उरगारि (सं.) [सं-पु.] 1. साँपों का शत्रु; गरुड़ 2. एक अत्यंत सुंदर बड़ा पक्षी जिसकी पंखनुमा पूँछ लंबी होती है; मोर।

उरण (सं.) [सं-पु.] 1. भेड़ा; मेढ़ा 2. सौर मंडल का एक ग्रह; वरुण; (यूरेनस)।

उरद (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार की दाल; माष; माँह 2. वह पौधा जिसकी फलियों के दाने से यह दाल बनती है।

उरला [वि.] 1. इस तरफ़ का; इधर का 2. पीछे का; पिछला 3. 'परला' (उस तरफ़) का विलोम।

उरस्त्राण (सं.) [सं-पु.] युद्ध में छाती की रक्षा करने के लिए उस पर बाँधा जाने वाला कवच; बख़्तर।

उरा (सं.) [सं-स्त्री.] सौर जगत का वह ग्रह जिसपर हम लोग निवास करते हैं; पृथ्वी; धरती।

उरु (सं.) [सं-पु.] कमर के नीचे और घुटनों के ऊपर का अंग; जंघा; जाँघ। [वि.] 1. लंबा-चौड़ा; विस्तृत 2. विशाल; बड़ा।

उरूज (अ.) [सं-पु.] 1. उन्नति; उत्थान 2. ऊपर उठना; चढ़ना 3. शीर्ष बिंदु, जैसे- उसकी तकदीर का सितारा अभी उरूज पर है 4. वृद्धि; बढ़ती।

उरेब (फ़ा.) [ वि.] 1. टेढ़ा; तिरछा 2. धूर्तता और कपटपूर्ण।

उरेहना [क्रि-स.] 1. तस्वीर बनाना; चित्र आँकना 2. आलेखन।

उरोज (सं.) [सं-पु.] स्त्री की छाती; स्तन; वक्ष; कुच; पयोधर।

उरोस्थि (सं.) [सं-स्त्री.] उरोज या वक्ष के पास की हड्डी जो पसलियों को परस्पर जोड़ती है; (स्टर्नम)।

उर्दू (तु.) [सं-स्त्री.] भाषा; ऐसी हिंदी जिसमें अरबी-फ़ारसी भाषा के शब्द अधिक मात्रा में होते हैं और जो फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है। [सं-पु.] 1. लश्कर या छावनी का बाज़ार; बाज़ार 2. सेनावास 3. फ़ौज़ी छावनी या पड़ाव।

उर्दूए-मु-अल्ला (तु.+अ.) [सं-स्त्री.] 1. परिष्कृत-परिनिष्ठित उर्दू भाषा; टकसाली उर्दू 2. दरबार या कचहरी की भाषा।

उर्फ (अ.) [सं-पु.] 1. पुकारने का नाम; उपनाम 2. मुख्य नाम के अतिरिक्त दूसरा छोटा या चलतू नाम; उपाख्य, जैसे- 'दिनकर', ' निराला', 'उग्र' आदि।

उर्मि (सं.) [सं-स्त्री.] छोटी लहर; तरंग।

उर्मिल (सं.) [वि.] 1. जिस जल में छोटी-छोटी लहरें उठ रही हों 2. लहरदार; चुन्नटदार (वस्त्र)।

उर्मिला (सं.) [सं-स्त्री.] (रामायण) राजा जनक की पुत्री जिसका विवाह लक्ष्मण के साथ हुआ था।

उर्वर (सं.) [वि.] 1. उपजाऊ (भूमि); अधिक उत्पादन-शक्तिवाली (ज़मीन); (फ़र्टाइल) 2. {ला-अ.} जिस दिमाग में नए-नए और उपयोगी विचार आते हैं।

उर्वरक (सं.) [सं-पु.] 1. खाद जो खेतों की उपज बढ़ाती है 2. वे प्रकृतिदत्त वस्तुएँ जो खाद का काम करती हैं, जैसे- गोबर, सड़े पत्ते आदि।

उर्वरता (सं.) [सं-स्त्री.] उर्वर होने की अवस्था; उपजाऊपन।

उर्वरा (सं.) [वि.] उर्वर; उपजाऊ [सं-स्त्री.] 1. उर्वर भूमि; उपजाऊ भूमि 2. पृथ्वी; भूमि; ज़मीन 3. एक अप्सरा का नाम।

उर्वरीकरण (सं.) [सं-पु.] बंजर भूमि को उर्वर बनाने की प्रक्रिया।

उर्वशी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (पुराण) इंद्रलोक की एक अप्सरा जिसका विवाह राजा पुरूरवा से हुआ था 2. एक प्राचीन तीर्थ।

उर्वी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पृथ्वी; धरती; भूमि; ज़मीन 3. विस्तृत तल या क्षेत्र। [वि.] 1. विस्तृत; विशाल 2. सपाट।

उर्वीजा (सं.) [सं-स्त्री.] सीता; जानकी। [वि.] {अ-अ.} पृथ्वी से उत्पन्न; जिसका जन्म पृथ्वी से हुआ हो (केवल स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के साथ)।

उर्वीश (सं.) [सं-पु.] पृथ्वी का स्वामी; राजा।

उर्स (अ.) [सं-पु.] 1. मुसलमानों में किसी संत की निधन-तिथि पर होने वाला समारोह; मुसलमान पीर का वार्षिकोत्सव 2. निधन की मजलिस या शादी वगैरह के मौकों पर दिया जाने वाला भोज।

उलंघना [क्रि-स.] 1. लाँघना 2. किसी आदेश या आज्ञा का उल्लंघन करना या उसके प्रतिकूल व्यवहार करना।

उलझन [सं-स्त्री.] 1. किन्हीं दो या अधिक वस्तुओं, एक वस्तु के विभिन्न अंगों या धागे जैसी एक वस्तु के विभिन्न हिस्सों के परस्पर लिपटने और फँसने से बनी गुत्थी या गाँठें; अटकाव 2. उलझने की क्रिया या भाव 3. झगड़े-झंझट की स्थिति 4. किसी निष्कर्ष पर न पहुँचने का भाव; असमंजस; दुविधा की स्थिति 5. बाधा; समस्या; कठिनाई 6. चिंता; फ़िक्र।

उलझना [क्रि-अ.] 1. अनावश्यक ही किसी घटना या विवाद में लिप्त होने की क्रिया; 'सुलझना' का विलोम 2. फँस जाना 3. अटक जाना 4. आसक्त होना; लीन होना।

उलझाना [क्रि-स.] 1. फँसाना; लगाए रखना, जैसे- बातों में उलझाना 2. लोगों को आपस में लड़ाना, जैसे- उसे लोगों को उलझाने में बड़ा मज़ा आता है।

उलझाव [सं-पु.] 1. बखेड़ा 2. उलझन।

उलझौंहाँ [वि.] 1. जिसकी प्रवृत्ति उलझने या उलझाने की हो 2. फँसाने वाला 3. लुभाने वाला 4. लड़ाई-झगड़ा करने या कराने वाला; झगड़ालू।

उलटना [क्रि-अ.] 1. ऊपर का नीचे, नीचे का ऊपर होना; औंधा होना 2. ऊपर नीचे होना; घूमना; पलटना 3. पीछे की ओर पलटना; मुड़ना 4. लुढ़कना 5. स्थिति विपरीत होना।

उलटना-पुलटना [क्रि-स.] 1. किसी वस्तु या वस्तुओं को ऊपर-नीचे या इधर-उधर करना 2. अस्त-व्यस्त करना 3. गड़बड़ करना 4. परिवर्तन करना 5. पुस्तक आदि के पृष्ठों को आगे-पीछे करना।

उलट-पलट [सं-स्त्री.] निश्चत स्थान या क्रम से इधर-उधर कर देने की क्रिया; अव्यवस्थित होना।

उलटफेर [सं-पु.] परिवर्तन; बदलाव; क्रांति।

उलटबाँसी [सं-स्त्री.] सीधी बात को टेढ़े ढंग से कहना; जिस कथन में असंभवता या अंतर्विरोध प्रतीत हो किंतु वास्तव में कोई गहरा अर्थ छिपा हो, जैसे- 'बरसै कंबल, भीजै पानी' (कबीरदास)।

उलटा [वि.] 1. जो सीधा न हो 2. औंधा 3. क्रम-विरुद्ध; इधर का उधर 4. विरुद्ध; विपरीत 5. विलोम; विपर्यय 5. अनुचित; अयुक्त। [क्रि.वि.] 1. विरुद्ध क्रम से 2. व्यवस्था के विपरीत।

उलटाना [क्रि-स.] 1. पलटाना; लौटाना 2. उलट देना; औंधा करना 3. लुढ़काना 4. पीछे फेरना।

उलटा-पुलटा [वि.] 1. बेसिर-पैर का; क्रमविहीन 2. इधर का उधर; अंडबंड।

उलटा-पुलटी [सं-स्त्री.] उलट-पलट।

उलटाव [सं-पु.] 1. उलटने की क्रिया या भाव 2. पीछे की ओर पलटने या लौटने की क्रिया या स्थिति 3. फेर; बदलाव।

उलटी [सं-स्त्री.] 1. वमन; कै 2. पलटी; कलाबाज़ी [वि.] उलटा का स्त्रीलिंग रूप। [मु.] -साँस चलना : मरणासन्न होना। -गंगा बहना : अनहोनी होना। -माला फेरना : किसी का अहित करना। -सीधी सुनाना : भला-बुरा कहना।

उलटे [अव्य.] 1. विपरीत दिशा या स्थिति में 2. विपरीत व्यवस्था से; विरुद्ध न्याय से, जैसे- उसे मदद करनी चाहिए थी, उलटे उसने धोखा दिया 3. जैसा होना चाहिए उसका विपरीत; क्रम, नियम, प्रथा आदि के विपरीत।

उलथा [सं-पु.] 1. नृत्य में ताल के साथ उछल-उछल कर घूमने की क्रिया 2. कलाबाज़ी 3. करवट।

उलफ़त (अ.) [सं-स्त्री.] प्यार; मुहब्बत; स्नेह; प्रेम।

उलमा (अ.) [सं-पु.] (आलिम का बहुवचन) विद्वान जन।

उलाँघना [क्रि-स.] 1. आज्ञा का उल्लंघन करना; न मानना 2. लाँघना, जैसे- हनुमान समुद्र लाँघ गए।

उलार [सं-पु.] बोझ के कारण पीछे की ओर होने वाला झुकाव। [वि.] असंतुलित बोझ से पीछे की ओर झुका हुआ, जैसे- पीछे ज़्यादा लोगों के चढ़ जाने से ताँगा उलार हो गया।

उलाहना [सं-पु.] उपालंभ; प्यार भरी शिकायत। [क्रि-स.] शिकवा करना; दोष देना।

उलिंद (सं.) [सं-पु.] 1. शिव 2. एक प्राचीन देश का नाम।

उलीचना (सं.) [क्रि-स.] जल भरे पात्र को हाथ, किसी पात्र या मशीन द्वारा खाली करना, जैसे- नाव से पानी उलीचना।

उलूक (सं.) [सं-पु.] 1. उल्लू नाम का पक्षी; घुग्घू 2. इंद्र 3. कणाद ऋषि का एक नाम।

उलूक दर्शन (सं.) [सं-पु.] कणाद ऋषि का दर्शन, जो वैशेषिक दर्शन कहलाता है।

उलूखल (सं.) [सं-पु.] 1. लकड़ी का बना एक लंबा गहरा बरतन जिसमें मूसल नामक मोटे लंबे सोंटे से अनाज मसाले आदि कूटे जाते हैं; ओखली; ऊखल 2. खल; खरल।

उलूम (अ.) [सं-पु.] (इल्म का बहुवचन) अनेक प्रकार के इल्म या शास्त्र; विद्याएँ।

उल्का (सं.) [सं-स्त्री.] 1. आकाशीय पिंडों से टूटकर धरती पर आ गिरने वाले पत्थरों या चट्टानों जैसे खंड जिनके धरती के वातावरण में प्रवेश करने पर घर्षण के कारण प्रकाश की लकीर-सी बन जाती है; टूटते हुए तारे; (मीटिऑर) 2. प्रकाश के लिए जलाई गई लकड़ी; मशाल।

उल्कापात (सं.) [सं-पु.] 1. आकाश से उल्काओं का गिरना 2. तारा टूटना 3. {ला-अ.} उत्पात; विघ्न बाधा।

उल्काश्म (सं.) [सं-पु.] पृथ्वी पर गिरी हुई उल्का जो पत्थरों जैसी दिखाई देती है।

उल्टा-सीधा [क्रि.वि.] अस्त-व्यस्त; इधर-उधर, जैसे- सारा कमरा उलटा-सीधा हो गया 2. बकवास; अनुचित ढंग से बोलना, जैसे- वह कुछ भी उलटा-सीधा बोलता रहता है।

उल्था [सं-पु.] एक भाषा से दूसरी भाषा में किया गया अनुवाद; भाषांतर; तरजुमा; (ट्रांसलेशन)।

उल्फ़त (अ.) [सं-स्त्री.] 1. वह मनोवृत्ति जो किसी को बहुत अच्छा समझकर सदा उसके साथ या पास रहने की प्रेरणा देती है; प्रेम; प्यार; इश्क; प्रीति 2. दोस्तों या मित्रों में होने वाला पारस्परिक संबंध; मित्रता; दोस्ती; याराना।

उल्लंघन (सं.) [सं-पु.] 1. किसी निश्चित व्यवस्था, निर्देश, नियम या विधि के विरुद्ध जाना 2. अपने लिए हुए निश्चय या प्रतिज्ञा को तोड़ना 3. सीमा का अतिक्रमण करना; लाँघना।

उल्लंघित (सं.) [वि.] 1. जिस बात या आज्ञा का जान-बूझकर पालन न किया गया हो 2. वह अधिकार या कार्यक्षेत्र जिसमें अनुचित रूप से प्रवेश किया गया हो।

उल्लसन (सं.) [सं-पु.] 1. उल्लसित होना; अत्यधिक प्रसन्न होना 2. चमकना 3. सुशोभित होना 4. आनंद के कारण होने वाला रोमांच।

उल्लसित (सं.) [वि.] 1. मुदित; प्रफुल्लित; आनंदित 2. प्रकाशित; चमकता हुआ; निकला हुआ (खड्ग) 3. पुलकित; रोमांचित।

उल्लाप (सं.) [सं-पु.] 1. चापलूसी; चाटुकारी 2. अपमानकारक शब्द 3. चीख-पुकार; आर्तनाद 4. रोग या भावावेश के कारण परिवर्तित स्वर 5. ऊँचे स्वर से बुलाना; पुकारना।

उल्लापक (सं.) [वि.] 1. उल्लाप करने वाला 2. ख़ुशामदी; चाटुकार।

उल्लाला (सं.) [सं-पु.] (काव्यशास्त्र) एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।

उल्लास (सं.) [सं-पु.] 1. हर्ष; प्रसन्नता; आनंद 2. प्रकाश; झलक; चमक 3. ग्रंथ का अध्याय, पर्व या प्रकरण 4. रोमांच; पुलक 5. एक अलंकार जिसमें एक के गुण-दोषों से दूसरे के गुण-दोषों को बतलाया जाता है 6. ग्रंथ का एक भाग।

उल्लासक (सं.) [वि.] 1. प्रसन्नता या ख़ुशी देने वाला 2. उल्लास या हर्ष उत्पन्न करने वाला।

उल्लिखित (सं.) [वि.] 1. जिसका उल्लेख पहले हो चुका हो 2. पत्थर या अन्य किसी कठोर सतह पर खोदकर चित्रित किया हुआ; उत्कीर्ण 3. लिखित; चित्रित।

उल्लू (सं.) [सं-पु.] 1. उलूक पक्षी जो प्रायः उजाड़ जगहों में रहता है तथा जिसे दिन में दिखाई नहीं देता; धन की देवी लक्ष्मी का वाहन 2. {ला-अ.} बहुत मूर्ख व्यक्ति; बेवकूफ़। [मु.] -सीधा करना : अपना स्वार्थ सिद्ध करना।

उल्लेख (सं.) [सं-पु.] 1. वर्णन; चर्चा; ज़िक्र 2. लिखने की क्रिया; लिखाई; लिखना 3. चित्र खींचना 4. (साहित्य) एक अलंकार जिसमें विषय या द्रष्टा के भिन्न होने पर एक ही वस्तु के भिन्न-भिन्न रूपों में दिखाई देने का वर्णन होता है।

उल्लेखन (सं.) [सं-पु.] 1. उल्लेख करना 2. लिखना या वर्णन करना 3. चित्र आँकना।

उल्लेखनीय (सं.) [वि.] 1. जिसका उल्लेख करना आवश्यक या उचित हो; उल्लेख करने योग्य 2. लिखे जाने के योग्य।

उल्लेख्य (सं.) [वि.] उल्लेखनीय।

उल्लोल (सं.) [वि.] अति चंचल। [सं-पु.] लहर; हिलोर; तरंग।

उल्व (सं.) [सं-पु.] 1. वह झिल्ली जिसमें बच्चा बँधा हुआ गर्भाशय से निकलता है, आँवल 2. गर्भाशय।

उशीर (सं.) [सं-पु.] गाँड़र नामक एक प्रकार की घास की जड़ जो अत्यंत सुगंधित होती है और जिसे सुखाकर अनेक कामों में लाया जाता है; खस जिसकी चिलमन (चिक), शरबत आदि बनते हैं।

उषसी (सं.) [सं-स्त्री.] संध्या का समय; सांध्य वेला।

उषा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सुबह होने के कुछ पहले का मंद प्रकाश; भोर; प्रभात; तड़का; ब्रह्म वेला 2. अरुणोदय की लाली 3. बाणासुर की कन्या जिसका विवाह अनिरुद्ध से हुआ था।

उषाकाल (सं.) [सं-पु.] सुबह या भोर की बेला; प्रभात; तड़का; सवेरा।

उषागान (सं.) [सं-पु.] सुबह के समय होने वाला गायन; प्रभाती।

उष्ट्र (सं.) एक ऊँचा चौपाया जो सवारी और बोझ लादने के काम आता है और अधिकतर रेगिस्तान में पाया जाता है; ऊँट।

उष्ण (सं.) [ वि.] 1. जो ताप उत्पन्न करे; गरम; तप्त 2. गरम तासीर वाला; तीखा 3. चतुर 4. जो क्रोध, प्रेम आदि भावों के प्रभाव में हो। [सं-पु.] 1. ग्रीष्म ऋतु 2. धूप 3. प्याज़ 4. गहरी लंबी साँस।

उष्ण-कटिबंध (सं.) [सं-पु.] पृथ्वी का वह भूभाग जो कर्क और मकर रेखाओं के बीच में पड़ता है तथा जिसमें बहुत अधिक गरमी पड़ती है; (ट्रॉपिक्स)।

उष्णता (सं.) [सं-स्त्री.] तपन; गरमी; ताप; उष्ण होने का गुण या भाव।

उष्णांक (सं.) [सं-पु.] दे. उष्मांक।

उष्णीष (सं.) [सं-पु.] 1. पगड़ी; साफा 2. मुकुट; ताज।

उष्म (सं.) [सं-पु.] दे. उष्मा।

उष्मज (सं.) [सं-पु.] 1. गंदगी से पैदा होने वाले कीड़े, जैसे- खटमल, मच्छर 2. पसीने से उत्पन्न कीट, जैसे- जूँ। [वि.] गरमी से उत्पन्न।

उष्मांक (सं.) [सं-पु.] ताप की इकाई; कैलोरी।

उष्मा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ताप; गरमी 2. धूप।

उष्माघात (सं.) [सं-पु.] कड़ी धूप से होने वाला विकार; ग्रीष्माघात; लू-लगना; (हीटस्ट्रोक; सनस्ट्रोक)।

उस (सं.) [सर्व.] 1. (व्याकरण) "वह" सर्वनाम का तिर्यक रूप अर्थात किसी परसर्ग के पहले आने वाला रूप, जैसे- उसने, उसका, उससे आदि 2. एक सार्वनामिक विशेषण।

उसकन (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार की छाल या घास जिससे बरतन माँजते हैं; जूना; कूचा।

उसनना [क्रि-स.] उबालना; पकाना।

उसाँस (सं.) [सं-पु.] 1. ऊपर को खींची गई गहरी साँस; उच्छवास; उसास 2. किसी मानसिक कष्ट के कारण ली गई गहरी साँस।

उसारना [क्रि-स.] 1. हटाना; दूर करना; टालना 2. बनाकर खड़ा या तैयार करना 3. बाहर निकालना।

उसास (सं.) [सं-स्त्री.] दे. उसाँस।

उसूल (अ.) [सं-पु.] सिद्धांत; नियम।

उसूलन (अ.) [क्रि.वि.] नियम या कायदे के अनुसार; सिद्धांततः।

उसूली (अ.) [वि.] 1. उसूल संबंधी; उसूल का 2. सैद्धांतिक 3. उसूल का पालन करने वाला।

उस्तरा (फ़ा.) [सं-पु.] बाल मूँड़ने का तेज़ धार वाला उपकरण; नाई की छुरी।

उस्ताद (फ़ा.) [सं-पु.] 1. फ़ारसी और उर्दू में गुरु के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द 2. फ़न में प्रवीण; दक्ष; चतुर जैसे- वे अपने फ़न के उस्ताद हैं 3. गायन, नृत्य आदि कलाओं की शिक्षा देने वाला।

उस्तादी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. उस्ताद या गुरु होने की क़ाबिलियत 2. शिक्षण-वृत्ति 3. {व्यं-अ.} चतुराई; चालाकी; धूर्तता।

उस्तानी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. उस्ताद की पत्नी; गुरुआइन 2. शिक्षिका; अध्यापिका।

उहूँ [अव्य.] मुँह लगभग बंद करके उच्चरित ध्वनि जिसका आशय असहमति या इनकार सूचक होता है।


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