ऋ
हिंदी वर्णमाला का एक वर्ण। संस्कृत में यह स्वर माना गया है। हिंदी में इसका ध्वनिगत मूल्य [रि] है। लेकिन यह एक विशिष्ट वर्ण है, क्योंकि 'ऋ' की मात्रा भी
होती है और मात्रा केवल स्वर की होती है। इसलिए इसको स्वर वर्ण तो कहा जा सकता है जबकि इसका ध्वनिगत मूल्य [व्यंजन+स्वर] है।
ऋकार
(सं.) [सं-पु.] 'ऋ' अक्षर और उसकी ध्वनि।
ऋक्
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. स्तुति 2. वेद की ऋचा या मंत्र; ऋग्वेद का मंत्र। [सं-पु.] ऋग्वेद।
ऋक्-तंत्र
(सं.) [सं-पु.] सामवेद का परिशिष्ट।
ऋक्ष
(सं.) [सं-पु.] 1. रीछ; भालू 2. एक तारा-पुंज 3. नक्षत्र; राशि 4. कृतिका मंडल के वे सात तारे जिन्हें सप्तर्षि कहा जाता है।
ऋक्षपति
(सं.) [सं-पु.] 1. रीछों के राजा जांबवान; ऋक्षनाथ; ऋक्षराज 2. चंद्रमा।
ऋक्षराज
(सं.) [सं-पु.] ऋक्षपति; जांबवान।
ऋक्षवान
(सं.) [सं-पु.] एक पर्वत; रैवतक नामक पर्वत का वह अंश जो नर्मदा नदी के किनारे-किनारे गुजरात तक चला गया है।
ऋक्-संहिता
(सं.) [सं-स्त्री.] ऋग्वेद के मंत्रों का समुच्चय या संग्रह।
ऋग्वेद
(सं.) [सं-पु.] चारों वेदों में प्रथम वेद; सबसे प्राचीन और पद्यमय वेद।
ऋग्वेदीय
(सं.) [वि.] ऋग्वेद से संबद्ध।
ऋचा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. पद्यमय अथवा गेय वेद-मंत्र 2. स्तोत्र।
ऋचीक
(सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) भृगुवंश में जन्मे एक ऋषि; जमदग्नि के पिता 2. एक प्राचीन देश का नाम।
ऋच्छ
(सं.) [सं-पु.] रीछ; भालू।
ऋजिमा
(सं.) [सं-स्त्री.] सरलता; सीधापन।
ऋजु
(सं.) [वि.] 1. सीधा; सरल 2. {ला-अ.} सरलहृदय; कुटिलता से रहित।
ऋजुकाय
(सं.) [सं-पु.] 1. सीधी और सतर कायावाला; जिसका शरीर सीधा हो 2. सीधे खड़े होकर तपस्या करने वाले ऋषि-मुनियों के लिए प्रयुक्त शब्द 3. (पुराण) कश्यप ऋषि।
ऋजुकोण
(सं.) [सं-पु.] (ज्यामिति) 180 अंश का कोण अर्थात वह कोण जो दो समकोण के बराबर हो 2. सरल रेखा।
ऋजुक्षेत्र
(सं.) [सं-पु.] कई सीधी रेखाओं से घिरा क्षेत्र।
ऋजुता
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. सरलता; सीधापन 2. छल-कपटहीन प्रवृत्ति।
ऋजुरेखीय
(सं.) [वि.] सीधा; सरल; ऋजु।
ऋण
(सं.) [सं-पु.] 1. कर्ज़; उधार; उधारी; देनदारी 2. किसी से ब्याज पर लिया गया धन 3. कृतज्ञता; अहसान या उपकार 4. देय 5. गणित में घटाने का चिह्न (-)। [वि.] खाते,
गणित आदि में जो ऋण के रूप में हो। -उतारना : कर्ज़ चुकाना।
ऋणग्रस्त
(सं.) [वि.] जिसे ऋण चुकाना हो; ऋणग्राही; देनदार; मकरूज़; कर्ज़ में डूबा हुआ।
ऋण-त्रय
(सं.) [सं-पु.] तीन प्रकार के ऋणों का समूह- देवऋण, ऋषिऋण तथा पितृऋण।
ऋणदाता
(सं.) [वि.] ऋण देने वाला; जिसने किसी को कर्ज़ दिया हो।
ऋणदास
(सं.) [सं-पु.] वह व्यक्ति जिसका ऋण चुकाकर उसे बदले में अपना दास बना लिया गया हो।
ऋणदासता
(सं.) [सं-स्त्री.] उधार या ऋण चुकाने के लिए ऋणदाता के यहाँ दास के रूप में काम करने की प्रथा।
ऋणपक्ष
(सं.) [सं-पु.] बही खाते आदि में वह कॉलम या स्तंभ जिसमें किसी को दी हुई वस्तु का मूल्य, तिथि, विवरण आदि अंकित किया जाता है।
ऋणपत्र
(सं.) [सं-पु.] 1. ऋण स्वीकृति का पत्र; ऋण ग्रहण सूचक-पत्र 2. रुक्का; (बॉन्ड)।
ऋणपरिसमापन
(सं.) [सं-पु.] 1. पूरा ऋण चुकता कर देने की अवस्था 2. {ला-अ.} किसी की चुभती हुई बात का तपाकसे ऐसा उत्तर देना कि वह अवाक हो जाए।
ऋणमुक्त
(सं.) [वि.] जिसने ऋण चुका दिया हो; उऋण।
ऋणमुक्ति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. ऋण से छुटकारा; कर्ज़ मुक्ति 2. उऋण होने का भाव।
ऋणमोक्ष
(सं.) [सं-पु.] कर्ज़ से मुक्त होना; ऋण का चुकाया जाना।
ऋणविद्युत
(सं.) [सं-पु.] 1. (भौतिकी) विकर्षण उत्पन्न करने वाली बिजली; विकर्षक विद्युत; (नेगटिव चार्ज) 2. ऋण आवेश।
ऋणशोधन
(सं.) [सं-पु.] ऋण वापस (अदा) करना; ऋण अदायगी।
ऋण-स्थगन
(सं.) [सं-पु.] राज्य प्रशासन या न्यायालय के आदेश से बैंक आदि वित्तीय संस्थाओं द्वारा लोगों के ऋण या कर्ज़ की अदायगी अस्थायी रूप से बंद कर दिया जाना;
(मॉरटॉरिअम)।
ऋणात्मक
(सं.) [वि.] 1. नकारात्मक; अभावात्मक; (नेगटिव)।
ऋणी
(सं.) [वि.] 1. जिसने ऋण या कर्ज़ लिया हो; देनदार 2. {ला-अ.} जिसपर किसी का उपकार हो; उपकृत; अनुगृहीत। [मु.] -होना : किसी के उपकार या अहसान
को मानना।
ऋतंभर
(सं.) [सं-पु.] सृष्टि का स्वामी; परमेश्वर। [वि.] सत्य का धारण एवं पालन करने वाला।
ऋतंभरा
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. सत्य को धारण और पुष्ट करने वाली एक चित्तवृत्ति 2. सदा एक समान रहने वाली सात्विक और निर्मल बुद्धि। [वि.] सत्य को धारण या पोषण करने
वाली।
ऋत
(सं.) [सं-पु.] 1. सत्य; सृष्टि का आदि तत्व 2. मोक्ष; मुक्ति 3. यज्ञ 4. कर्मों का फल 5. उंच्छवृत्ति अर्थात अनाज की कटाई के बाद जो दाने खेतों में गिरे रह
जाते हैं उन्हें एकत्र करके जीविका निर्वाह करना। [वि.] 1. सत्य; सच्चा 2. नैतिक; उचित 3. प्रकाशित; दीप्त।
ऋति
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. समृद्धि; मंगल; कल्याण 2. अभ्युदय 3. अपवाद; निंदा; बदनामी 4. स्पर्धा।
ऋतु
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. मौसम; प्राकृतिक अवस्थाओं के अनुसार वातावरण में होने वाले परिवर्तन 2. वातावरण के अनुसार वर्ष के छह परिवर्तन- ग्रीष्म, वर्षा, शरद,
हेमंत, शिशिर, बसंत 3. रजोदर्शन के अनुसार वह समय जिसमें स्त्रियाँ गर्भधारण के योग्य होती हैं।
ऋतुकर
(सं.) [सं-पु.] वृक्ष; वन जो पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखकर ऋतुचक्र को व्यवस्थित करते हैं।
ऋतुकाल
(सं.) [सं-पु.] रजोदर्शन या मासिक धर्म के पश्चात सोलह दिन का वह समय जो स्त्रियों के गर्भ धारण करने योग्य माना जाता है।
ऋतुचर्या
(सं.) [सं-स्त्री.] ऋतु के अनुसार आहार-विहार का पालन; गरमी, वर्षा आदि ऋतुओं के अनुसार अनुकूल आहार-विहार।
ऋतुदान
(सं.) [सं-पु.] 1. गर्भाधान 2. ऋतुकाल बीतने पर संतान की इच्छा से किया जाने वाला संभोग।
ऋतुनाथ
(सं.) [सं-पु.] ऋतुओं का नाथ (स्वामी) अर्थात बसंत; ऋतुपति; ऋतुराज; मधुमास।
ऋतुपति
(सं.) [सं-पु.] ऋतुओं का स्वामी बसंत; ऋतुराज; मधुमास।
ऋतुप्राप्त
(सं.) [वि.] 1. जो ऋतु को प्राप्त हो, रजोदर्शनवाली (स्त्री) 2. फल देने के योग्य वृक्ष।
ऋतुफल
(सं.) [सं-पु.] 1. विशिष्ट मौसम में उत्पन्न या होने वाला फल, जैसे- ककड़ी, आम आदि 2. मौसमी फल।
ऋतुमती
(सं.) [वि.] 1. रजस्वला; पुष्पवती; जिस स्त्री का मासिकधर्म आरंभ हो गया हो 2. गर्भधारण के योग्य।
ऋतुराज
(सं.) [सं-पु.] 1. वसंत ऋतु; मधुमास 2. ऋतुओं में सबसे सुखद ऋतु।
ऋतुवती
(सं.) [वि.] दे. ऋतुमती।
ऋतुविज्ञान
(सं.) [सं-पु.] वह विज्ञान जिसमें वायुमंडल में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर मौसम में परिवर्तनों का अनुमान किया जाता है; (मीटिअरॉलजी)।
ऋतुविपर्यय
(सं.) [सं-पु.] ऋतु विशिष्ट के विपरीत लक्षण का दिखाई देना; ऋतु के विपरीत घटना, जैसे-जाड़े में लू चलना।
ऋतुवेला
(सं.) [सं-स्त्री.] ऋतुकाल।
ऋतुसंधि
(सं.) [सं-स्त्री.] दो ऋतुओं का मिलन; वह समय जब एक ऋतु समाप्त और अगली ऋतु आरंभ होती है।
ऋतुस्नाता
(सं.) [सं-स्त्री.] मध्यकालीन प्रथा के अनुसार माहवारी के चौथे दिन स्नान करके शुद्ध हो जाने वाली स्त्री।
ऋतुस्नान
(सं.) [सं-पु.] मध्यकालीन प्रथा के अनुसार माहवारी के पश्चात प्रायः चौथे दिन स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला स्नान।
ऋद्ध
(सं.) [वि.] 1. सुखी; संपन्न 2. जिसकी वृद्धि हो रही हो; वर्धमान।
ऋद्धि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. समृद्धि; संपन्नता 2. विभूति 3. गणेश की एक परिचारिका 4. दवा हेतु प्रयुक्त एक लता का नाम; प्राणदा।
ऋद्धि-सिद्धि
(सं.) [सं-स्त्री.] 1. (पुराण) गणेश की दो परिचारिकाएँ 2. समस्त प्रकार का वैभव।
ऋभु
(सं.) [वि.] 1. देवता 2. समूह में विचरण करने वाले गणदेवताओं में से एक।
ऋषभ
(सं.) [सं-पु.] 1. वृषभ; बैल 2. श्रेष्ठ व्यक्ति; महापुरुष 3. भारतीय संगीत के सात स्वरों में दूसरा स्वर- 'रे' 4. विष्णु का एक अवतार। [वि.] उत्तम; श्रेष्ठ।
ऋषभकूट
(सं.) [सं-पु.] दक्षिण भारत में स्थित एक पर्वत।
ऋषभदेव
(सं.) [सं-पु.] 1. जैन धर्म के आदि तीर्थंकर 2. राजा नाभि के पुत्र जो विष्णु के चौबीस अवतारों में से एक माने जाते हैं।
ऋषभध्वज
(सं.) [सं-पु.] शिव, जिनकी ध्वजा में ऋषभ (बैल) का चिह्न रहता है।
ऋषि
(सं.) [सं-पु.] 1. वेद-मंत्रों का ज्ञाता तथा द्रष्टा; मंत्रद्रष्टा 2. आध्यात्मिक और भौतिक तत्वों का ज्ञाता 3. तपस्वी; मनस्वी; ज्ञानी; मुनि 4. सच्चरित्र और
त्यागी 5. {ला-अ.} प्रकाश की किरण।
ऋषिऋण
(सं.) [सं-पु.] (हिंदू धर्म) तीन प्रकार के ऋणों (देवऋण, ऋषिऋण तथा पितृऋण) में से एक, जिससे मुक्त होने के लिए शिक्षित और विद्वान होना अनिवार्य माना गया है।
ऋषिकल्प
(सं.) [वि.] ऋषि के समान गुणोंवाला; ऋषि-तुल्य।
ऋषिकुल
(सं.) [सं-पु.] ऋषि का आश्रम; गुरु-कुल; वह स्थान या आश्रम जहाँ ब्रह्मचारी विद्या अर्जन करते हैं।
ऋषिकेश
(सं.) [सं-पु.] भारत के उत्तराखंड राज्य का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल; एक प्राचीन पर्वतीय स्थल जहाँ ऋषि, मुनि आदि तपस्या किया करते थे; हृषीकेश।
ऋषिपंचमी
(सं.) [सं-स्त्री.] भादों महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को स्त्रियों द्वारा रखा जाने वाला एक धार्मिक व्रत।
ऋषिपत्तन
(सं.) [सं-पु.] वाराणसी के पास स्थित एक प्राचीन उपवन; वर्तमान सारनाथ।
ऋषीक
(सं.) [सं-पु.] 1. एक प्राचीन पवित्र देश 2. ऋषीक देश के निवासी 3. ऋषिपुत्र 4. एक प्रकार का तृण या घास।
ऋष्यक
(सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का मृग; चित्तीदार सफ़ेद पैरों वाला बारहसिंघा।
ऋष्यमूक
(सं.) [सं-पु.] (रामायण) वर्तमान कर्नाटक राज्य में स्थित एक पर्वत; राम ने वनवास में सुग्रीव के साथ इस पर्वत पर कुछ दिन बिताए थे।
ऋष्यशृंग
(सं.) [सं-पु.] (रामायण) एक मुनि जिनसे अयोध्या के सूर्यवंशी राजा दशरथ की कन्या शांता ब्याही गई थी; विभांडक ऋषि के पुत्र; शृंगी ऋषि।