अ+ अ-
|
एक ताड़ का झुरमुट...
जिसके पार इक झोंपड़ी है
घास फूस, बाँस और सरकंडे की...
दिलों का रंग है
कुछ नीला और
कुछ नारंगी है...
जो इत्मिनान से पड़ा है यहाँ
अनंतता की जमी हुई धुंध में
और महासागर के उस पार...
गिरिजाघर है...
लान हैं
कचहरियाँ हैं...
चित्रशालाएँ हैं...
महासागर के उस पार
गिरिजाघर और
छतों पर कहवे घर
कोर्ट और कला दीर्घाएँ
और दूसरी ओर समंदर
जो इतना चमकदार है जैसे कि
खाली गिलास से झाँकता चिरायते का शर्बत
पगले पेंटर द्वारा रखे गए
बेहतर और कानूनी
गहराइयों के संग्रह हैं
यहाँ
नामरहित कुलचिह्न हैं
तुम्हारी रोशनी और अँधेरों का
एक बदजात है ये...
जो सब बेखौफ कहता है !!
|
|