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कविता

बदसूरत लड़की

निकोलाई जबोलोत्स्की

अनुवाद - वरयाम सिंह


खेल रहे दूसरे बच्‍चों के बीच
मेंढक-जैसी लग रही है यह लड़की

घटिया-सी कमीज निक्‍कर के अंदर
बिखरे हुए लाल भूरे रंग के घुँघराले बाल
तीखा और बदसूरत नाक-नक्श।
उसकी उम्र के दो बच्‍चों को
उनके पिताओं ने खरीद दी हैं साइकिलें।
भोजन की जल्‍दी नहीं आज उन्‍हें
आँगन में साइकिल चलाते भूल गये वे लड़की को
पर वह भाग रही है उनके पीछे।
चुरायी खुशी जैसे अपनी हो
समा नहीं पा रही है उसके हृदय में।
मस्‍त है लड़की, हँस रही है
पूरी तरह जीवन-लय की लपेट में।

ईर्ष्‍या तनिक भी नहीं, न कोई बुरे इरादे।
उनसे अभी बहुत दूर है यह प्राणी।
सब कुछ नया-नया है उसके लिए
दूसरों के लिए जो बेजान है, उसके लिए जिंदा है।
यह देखते हुए इच्‍छा नहीं यह सोचने की
कि एक दिन आयेगा जब यह लड़की रोयेगी
देखेगी डरे हुए कि दूसरी सहेलियों के बीच
वह कुछ नहीं, बस बदसूरत लड़की है।
मन चाहता है विश्‍वास करना
कि हृदय कोई खिलौना नहीं
तोड़ा नहीं जा सकता एक झटके में।

मन चाहता है विश्‍वास करना
कि यह निष्‍कलुष ज्‍वाला जो जल रही है उसके भीतर
अपने ऊपर ले लेगी उसकी सारी पीड़ाओं को
पिघला देगी भारी-से-भारी पत्‍थर।
भले ही सुंदर नहीं उसके नाक-नक्श
पर ऐसा कुछ नहीं जो न खींचे कल्‍पनाओं को।

उसके हृदय का शिशु सुलभ सौंदर्य
दिखाई दे रहा है उसकी हर मुद्रा में
और यदि यह दिख रहा है तो इसके अतिरिक्‍त
सौंदर्य और होता क्‍या है,
क्‍यों देवत्‍व प्रदान किया जाता है उसे?
सौंदर्य वर्तन है क्‍या जिसमें केवल रिक्‍तता है
या बर्तन में प्रज्‍वलित आग है सौंदर्य?

 


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