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मकान बन रहे ऊँचे और ऊँचे
वास्तुकारों की अमर रहे क्रीर्ति!
पर मनुष्य तो कुछ और चाहता है
जो है उससे बेहतर।
लिखी जा रही है पुस्तकें एक-से-एक अच्छी
संभव नहीं सबको पढ़ पाना,
पर मनुष्य तो कुछ और चाहता है
जो है उसे बेहतर।
सूक्ष्म और सूक्ष्म हो रही हैं इंद्रियाँ
उनकी संख्या पाँच नहीं छह है
पर मनुष्य तो कुछ और चाहता है
जो है उससे बेहतर।
चाहता है जानना जो अभी अज्ञात है
छिपा है जो रहस्यों के पीछे
छठी इंद्रिय के स्थान पर
आ रही है अब सातवीं।
इस सातवीं इंद्रिय की
अलग-अलग हो रही है व्याख्याएँ
संभव है - यह वो सहज योग्यता हो
जिसके बल पर स्पष्ट देखा जा सकता है भविष्य को।
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