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					हनुमान वाटिका 
				
					कनकमहल के निकट 
					हनुमान वाटिका 
					जिसमें अजर-अमर 
					साधारणजन के देवता 
					एकादशवें रुद्र 
					महापराक्रमी, ज्ञानी, 
					कवियों में शिरोमणि 
					रामभक्त हनुमान 
					माता जानकी के 
					चरणों में लगाए हुए ध्यान 
					उनकी रक्षा-हित सन्नद्ध 
					विनम्रता का प्रतिमान 
					मूर्त करते हुए 
					उपस्थित। 
					हनुमान वाटिका में 
					आज भी 
					बंदरों की चहलपहल, 
					उछलकूद,खों-खों और 
					क्याँव-क्याँव 
					पूरे माहौल को 
					किए रहती राम और सीतामय। 
					उन्हें देखते हैं 
					तो याद हमें आता है 
					आदि मानव से मनुष्य बनने के प्रसंग में 
					आखिरकार 
					वे ही थे जिन्होंने हमें 
					प्रगति का, 
					विकास कादिखाया रास्ता। 
					अलग बात है कि हम 
					भटक ही नहीं गए, 
					प्रगतिचक्र को 
					हमने घुमा दिया उलटा 
					और लगे चलने 
					उस ओर ही 
					जहाँ अंततः 
					मिलेगा हमको 
					वही आदिमानव 
					जो देख हमें उछलेगा-कूदेगा, 
					हर्ष मनाएगा। 
					क्योंकि दूर होगा 
					उसका अकेलापन 
					फिलवक्त 
					यह विडंबना है हमारी 
					जिस बिंदु पर 
					खड़े हैं हम आज 
					उसके दोनों ओर हनुमान 
					हमसे हैं 
					कोसों दूर! 
					मनुजता की यात्रा में 
					एक ओर हमें 
					देने को अभय 
					और दूसरी ओर 
					बढ़ते हुए 
					हमारे भीतर के 
					क्रूर पशुरूपी हिंस्र-दैत्य का 
					अपनी एक ही 
					मुष्ठिका के प्रहार से 
					अंत कर देने को। 
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