अ+ अ-
|
कुछ जून ने बुना
कुछ जुलाई ने
नदी ने थोड़ा साथ दिया
थोड़ा पहाड़ ने
बुनने में रस्सी मूँज की।
प्रभु की प्रभुताई बाँधी जायेगी
यम की चतुराई
हाथी का बल
सोने-चाँदी का छल बाँधा जायेगा
बाँधा जायेगा
विषधर का विष
कुछ पाप बाँधा जायेगा
कुछ झूठ बाँधा जायेगा
रीति तुम चुप रहना
नीति मत होना उदास।
|
|