hindisamay head


अ+ अ-

कविता

जीवन, जीवन

अर्सेनी तर्कोव्‍स्‍की

अनुवाद - वरयाम सिंह


भविष्‍यवाणियों पर कोई विश्‍वास नहीं।
भय नहीं अपशकुनों का।
भागा नहीं हूँ झूठ और मक्‍कारी से
न जहर के भय से
और, मृत्‍यु तो है ही नहीं इस संसार में।

अमर्त्‍य हैं सब। अनश्‍वर है सब कुछ।
जरूरत नहीं मौत से डरने की
न सत्रह की उम्र में, न सत्‍तर में।
कुछ है तो वह है सच्‍चाई और रोशनी
अंधकार और मौत हैं ही नहीं इस संसार में।

हम सब खड़े हैं समुद्र के तट पर
और मैं अनेकों में एक हूँ जो खींचते हैं जाल
और मछलियों के झुंड की तरह सामने पाते हैं आमर्त्‍यता।

घर क्‍यों ढहेगा जब हम रह रहे हों उसके भीतर?
मैं आमंत्रित कर सकता हूँ किसी भी शताब्‍दी को,
प्रवेश कर सकता हूँ
बना सकता हूँ घर किसी भी काल में।
इसीलिए तो मेरे साथ एक मेज पर बैठे हैं
तुम्‍हारे बच्‍चे और पत्नियाँ,
परदादा और पोतों के लिए एक ही मेज है।
इस क्षण पूरा हो रहा है भविष्‍य
और यदि मैं हाथ उठाऊँ-
पाँचों किरणें रह जायेंगी तुम्‍हारे पास।
अतीत के हर दिन पर लगा रखे हैं ताले
काल को नापा है मैंने पटवारी की जरीब से
उसके बीच से गुजरा हूँ जैसे उराल प्रदेश के बीच से।

अपनी उम्र मैंने कद के मुताबिक चुनी है।
हम बढ़ रहे थे दक्षिण की ओर,
स्‍तैपी के ऊपर पकड़े रखी धूल,
धुआँ उठ रहा था घास में से,
बिगाड़ दिया था उसे लुहार के लाड़-प्‍यार ने।
अपनी मूँछों से नाल छुई उसने, भविष्‍यवाणी की,
साधुओं की तरह डराया मौत से।

घोड़े की जीन के सुपुर्द की मैंने अपनी किस्‍मत,
मैं आज भी भविष्‍य के किसी समय में
बच्‍चे की तरह उठ खड़ा होता हूँ बर्फ-गाड़ी पर।
मेरे लिए पर्याप्‍त है मेरी अपनी अमर्त्‍यता,
बस, युगों तक गतिशील रहे रक्‍त मेरा
खुशी-खुशी दे दूँगा जिन्दगी
स्‍नेह के विश्‍वसनीय कोने की खातिर।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में अर्सेनी तर्कोव्‍स्‍की की रचनाएँ