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विमर्श

सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक

जोतीराव गोविंदराव फुले


गुंडीराम धोंडीराम प्रवासी : तर्क शब्‍द के कितने अर्थ होते हैं?

जोतीराव गोविंदराव फुले : तर्क शब्‍द के तीन प्रकार के अर्थ होते हैं। इसका पहला अर्थ है, प्रत्‍यक्ष कर्ता के आधार से कर्म का ज्ञान होता है और कर्म के आधार से कर्ता का ज्ञान होता है। दूसरा अर्थ है, पदार्थों के लक्षण दर्शन से कर्मों का ज्ञान होता है, और तीसरा प्रकार है, कई बातों के बारे में कई प्रकार से केवल मन के आकार की लहरें होती हैं, जिनमें दृढ़ता नहीं होती।

गुंडीराम : पहला प्रकार, कर्ता के आधार से कर्म का और कर्म के आधार से कर्ता का ज्ञान होता है, वह किस प्रकार?

जोतीराव : मकड़ी ने जाला बनाया, चमगादड़ ने घोंसला बनाया और मनुष्‍य ने हथियार बनाए-इस वाक्‍य में जाला, घोंसला और ह‍थियार के कर्ता मकड़ी चमगादड़ और मनुष्‍य हैं। उसी प्रकार मकड़ी, चमगादड़ और मनुष्‍य के कर्म जाला, घोंसला और हथियार हैं। इस तरह पहले प्रकार के तर्क का ज्ञान होता है।

गुंडीराम : दूसरा प्रकार, पदार्थ के लक्षण दर्शन से कर्म का जो ज्ञान होता है, वह किस प्रकार?

जोतीराव : हमें कर्ता के लक्षण से कर्म का ज्ञान होता है। इसके आधार पर उसका कर्ता अदृश्‍य होना चाहिए, इस तरह का अनुमान होता है। जैसे, हवा से जहाज का डूबना, बिजली से मनुष्‍य का मरना और मन में कुतर्क का आना। इस वाक्‍य में जहाज, मनुष्‍य और कुतर्क इनके कर्ता-हवा, बिजली और मन हैं और हवा, बिजली और मन इनके कर्म जहाज, मनुष्‍य और कुतर्क हैं। इस प्रकार दूसरे तक का ज्ञान होता है।

गुंडीराम : तीसरा प्रकार, कई बातों के बारे में कई तरह की मन में जो लहरें होती हैं, जिनमें दृढ़ता नहीं होती, वह किस प्रकार?

जोतीराव : जिसमें कर्ता के बिना कर्म होता है और उसके साक्षात्‍कार के बारे में या लक्षण के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं होता। जिसको भी देखिए वे सभी अनुमान से भँगेड़ी की तरह जैसे मनगढ़ंत बोल रहे होते हैं। इसके बारे में महाभारत के धूर्त ब्राह्मणों ने अज्ञानी लोगों से अपना मतलब निकालने के लिए हम सभी के निर्माणकर्ता के स्‍थान पर बड़ी चतुराई से अष्‍ट पहलू बालबोध काले कृष्‍ण की कल्‍पना की, और उन्‍होंने लोभी अर्जुन को ऐसा उपदेश दिया कि बाद में उसी का गीता नाम दे दिया गया। कुछ समय के बाद जब इस देश में जवाँमर्द मुसलिमों का राज आया तब अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्रों को पवित्र कुरान के सार्वजनिक सत्‍य का आकर्षण होगा और वे मुसलिम होने लगेंगे, इस डर से धूर्त देशस्‍थ ब्राह्मण आलंदीकर ज्ञानेश्‍वर ने गीता के उपदेशों को ही स्‍वीकार करके उस पर 'ज्ञानेश्‍वरी' नाम के ग्रंथ की रचना की। उस सारे ग्रंथ को ध्‍यान से पढ़ने के बाद धूर्त आर्य धर्म का छक्‍के-पंजे वाला अंधा आध्‍यात्मिक विवेचन सभी लोगों के दिमाग में बड़ी आसानी से समझ में आएगा।

गुंडीराम : यहाँ उसके बारे में यदि संक्षिप्‍त में विवेचन करने की मेहरबानी करेंगे तो बहुत ही अच्‍छा होगा।


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