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विमर्श

सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक

जोतीराव गोविंदराव फुले

अनुक्रम आर्यभट्ट ब्राह्मणों के वेद और उनकी सार्वजनिक सत्‍य से तुलना पीछे     आगे

गोविंदराव गणपतराव काळे : मुहम्‍मदी लोग अपने धर्म के मूसा, दाऊद, सुलेमान आदि महान पुरुषों के ग्रंथों के अनुवाद और हजरत मुहम्‍मद पैगबर के पवित्र कुरान का अनुवाद करके अन्‍य सभी लोगों के लिए सुलभ नहीं करते, फिर भी उनके धर्म की किताबों अन्‍य मानव समाज को सुनना चाहिए और पढ़ना चाहिए या उस प्रकार से आचरण करना चाहिए, इसके लिए वे किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाते, इसका मतलब क्या है?

जोतीराव फुले : अन्‍य सभी लोगों ने कुरान के अनुसार आचरण करना शुरू किया तो मुसलिम लोगों को बहुत ही खुशी होती है क्‍योंकि वे ऐसा समझते हैं कि कुरान बहुत ही पवित्र ग्रंथ है और दुनिया के सभी लोगों ने उसके सिद्धांतों के अनुसार आचरण किया तो उनमें सही में मानवता का संचार होगा।

गोविंदराव : उसी प्रकार ईसाई धर्म के प्रमुख ग्रंथ बाइबल को ईसाई लोगों के अलावा दुनिया के सभी लोगों को अपनी निर्मल बुद्धि से पढ़ना चाहिए। इसलिए उन्‍होंने अधिकांश अलग-अलग भाषाओं में उसका अनुवाद करके सबके लिए सुलभ किया है। और इसी आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि वह सार्वजनिक ईश्‍वर प्रणी सत्‍य के नाम को सार्थक करने वाला है।

जोतीराव : उस संबंध में तेरे को कुछ भी लगे किंतु बाइबल में किसी भी प्रकार की पसंदगी-नापसंदगी नहीं होने पर भी उसका उपयोग सभी मानव प्राणी कर सकते हैं। यह होने पर भी धूर्त ब्राह्मणों के अज्ञानी शूद्र चहेते लोग अपने ग्रंथों में इस प्रकार से लिखते हैं कि "अंग्रेज लोगों की सत्ता इस देश में कायम हुई तो उन्‍होंने यहाँ अंग्रेजी स्‍कूलों की स्‍थापना करके और पादरियों की ओर से अपने ख्रिस्‍ती धर्म का उपदेश दिलवाकर इस देश में जो आस्तिकता थी उसका नाश करवाया। इसी की वजह से अंग्रेजी ज्ञान को पढ़ने वाले लोग हमारे (आर्य धूर्त ब्राह्मणों के) शास्‍त्र (धर्मशास्‍त्र) झूठे हैं और अज्ञान से भरे पड़े हैं, ऐसा मानने लगे हैं।" इसको किस प्रकार की बुद्धिमानी माननी चाहिए?

गोविंदराव : उसी प्रकार आर्य भट्ट ब्राहम्णों के वेद सार्वजनिक ईश्‍वर प्रणीत सत्‍य के नाम को शोभा देने वाले हैं या नहीं?

जोतीराव : धूर्त आर्य ब्राहम्णों ने जिन शूद्रादि-अतिशूद्रों को अपना गुलाम बनाया उनको छोड़ दीजिए लेकिन उन्‍होंने अपने आर्य ब्राह्मणों के अलावा अन्‍य परधर्मी अंग्रेज, फ्रेंच, आदि म्‍लेच्‍छों का केवल कुछ धन की लालच दिखाने पर वेदों को दिखाया और पढ़ाया भी। लेकिन इनके अलावा उन्‍होंने और किसी को अपने वेदों की जरा-सी झलकी भी नहीं दिखाई। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि आर्यों के मुख्‍य वेद सार्वजनिक ईश्‍वर प्रणीतसत्‍य के नाम को बिलकुल ही शोभा देने लायक नहीं है। फिर प्राचीनकाल में धूर्त आर्य ब्राह्मण लोग ज्ञानवान, धर्मवादी, नीतिमान थे, ऐसा कहने वाले बकवादी शूद्रों को किस प्रकार के नास्तिक कहना चाहिए?

गोविंदराव : इस दुनिया में रहनेवाले अन्‍य सभी धर्मों के लोगों के साथ धूर्त ब्राह्मणों का व्‍यवहार चाहे किसी भी प्रकार को हो, लेकिन आर्यों ने प्रचीनकाल में धनुर्विद्या के बल पर और किसी जमाने में आर्यों के धूर्त ऋषियों ने अपने स्‍वार्थी ग्रंथों के द्वारा धूर्तता से जिनको दास-अनुदास बनाया हुआ है अर्थात् शूद्रादि-अतिशूद्रों को बिलकुल ही न तो वे लोग वेद सुनने देते हैं और न पढ़ने देते हैं, इसका रहस्‍य क्या होना चाहिए?

जोतीराव : इसमें नकली आर्यों का कौन-सा रहस्‍य छिपा हुआ है, इसके बारे में तू धूर्त आर्य ब्राह्मणों को ही पूछ सकता है, वे ही लोग इसके बारे में तेरे को कुछ सही जानकारी दे सकते हैं।

गोविंदराव : धूर्त आर्य ब्राह्मण हथेली पर कील सह लेने वाले पूरे पाखंडी हैं। वे अपने वेदों के रहस्‍य के बारे में अन्‍य किसी को कभी भी कुछ नहीं बताएँगे, फिर यहाँ मेरे जैसे साधारण आदमी की तो बात ही अलग है। इसलिए आप ही कृपया उनके बारे में कुछ बताएँगे तो बहुत ही अच्‍छा होगा।

जोतीराव : नहीं रे बाबा, नहीं! वेदों का रहस्‍य तेरे को समझाने का अभी समय नहीं आया है। क्‍योंकि अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्र लोग अब भी अनपढ़ हैं। इसलिए यदि वे आम रास्‍ते पर धूर्त आर्य ब्राह्मणों की धोती पकड़कर उनके साथ उन वेदों के बारे में शास्‍त्रार्थ करने लगें तो उन अनाड़ी लोगों को कौन समझाता रहेगा।

गोविंदराव : वे लोग कुछ भी क्‍यों न हों, लेकिन इस परमन्‍यायी अंग्रेज सरकार के राज में ईश्‍वर को याद करते हुए जो सत्‍य है, उसको दुनिया के सामने रखिए। अब इसके बारे में धूर्त आर्य ब्राह्मणों से बहुत डरने की कोई आवश्‍यकता नहीं।

जोतीराव : अरे बाबा, अटल धूर्त आर्य ब्राह्मण पाखंडियों ने पाप और पुण्‍य का कोई विधि निषेध नहीं माना। उन्‍होंने हम सभी के निर्माता के प्रति द्रोह करके उसकी जगह पर वे स्‍वयं अहंब्रह्म-मतलब अन्‍य सभी अज्ञानीजनों के भूदवे-बन बैठे। उन्‍होंने उनमें से केवल शूद्रादि-अतिशूद्र मूर्ख जनों को बड़ी बेशर्मी से हमेशा के लिए खुलेआम तरह-तरह की धोखेबाजी करके लूट लिया है और आज भी वे लोग उनको चूस रहे हैं। लेकिन जब मैंने उनकी धोखेबाजी के विरोध में कुछ मात्रा में खुले आम बोलना शुरू किया तो उन्‍होंने सारे बलिस्‍थान (देश-भर) में मेरे विरोध में भूँकना शुरू कर दिया और इस तरह से मुझे बदनाम करना शुरू कर दिया कि मैं ब्राह्मण और उनके काल्‍पनिक ब्रह्मा का बड़ा शत्रु बन गया हूँ। और अधिकांश शूद्रादि-अतिशूद्र के अज्ञानी होने की वजह से धूर्त ब्राह्मणों ने बड़ी चतुराई से उनको मेरी ही बुराई करने के लिए लगाया है। इसीलिए धूर्त आर्य ब्राह्मणों की धोखेबाजी बाहर प्रकट होने का समय अभी आया नहीं।

गोविंदराव : अधिकांश शूद्रादि-अतिशूद्रों को, उनके अज्ञानी होने की वजह से, धूर्त आर्य ब्राह्मणों ने हम पर पत्‍थर फेंकने के लिए कहा। तब भी हमें अपना पवित्र मानवीय कार्य करने में किसी भी प्रकार की न्‍यूनता नहीं रखनी चाहिए। जब यह हमारे सत्‍यशोधक समाजी जनों का ध्‍येय ही है तो फिर हम को ऐसे सत्‍य शून्‍य, आर्यभट्ट ब्राह्मणों के कुतर्कों से क्‍यों डरना चाहिए? यदि तुम लोग कमर कस कर इस बेरहम आर्य ब्राह्मणों के मरियल वेदों को बाहर निकालकर उनकी सार्वजनिक ईश्‍वर प्रणीत सत्‍य से तुलना करके दिखाओगे तो करोड़ों शूद्रादि-अतिशूद्र लोगों के पाँव इस धरती पर हमेशा-हमेशा के लिए टिक जाएँगे, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकतीं।

जोतीराव : वेदों की रचना हुई तभी से धूर्त आर्य ब्राह्मणों ने अपने मरियल वेद यदि बिल में छुपाकर रखे हैं, तो उनको उनके बिल से बाहर निकालकर उन वेदों में से ऋग्‍वेद का अभी पूरी तरह से प्राकृत भाषा में अनुवाद कराके उसकी सार्वजनिक ईश्‍वर प्रणीत सत्‍य से किस प्रकार तुलना करनी चाहिए?

गोविंदराव : यदि धूर्त आर्य ब्राह्मणों ने प्रारंभ से आज तक अपने वेद छुपाकर रखे हैं, तो घोड़े की तरह उनके पेट के नीचे क्या गड़बड़ है?

जोतीराव : वेदों के पेट के नीचे घोड़े की एक भँवरी की तरह बहुत बड़ा राज छुपा हुआ है। वह यह कि कंगाल आर्य लोगों ने सबसे पहले जब ईरान से अपना काला मुँह करके धनुर्विद्या के बल पर जिद से लड़ने वाले धनी क्षत्रियों के सुवर्णमय बलिस्‍थान में आए, उस समय यहाँ उनके जानी दुश्‍मन कई प्रकार के लोग थे। उनको आर्य लोग नफरत से दस्‍यु कहते थे। फिलहाल हम शूद्रों में महामुनि गोसाइयों में गिरी, पुरी, भारथी आदि दशनामी (बदनाम) जाति के लोग हैं। इसी शब्‍द का मूल 'दस्‍यु' लगता है, ऐसा अनुमान किया जा सकता है। (लुटेरे बाद में दास) महाअरि के महार, महरा; क्षुद्र को शूद्र कहने लगे। दस्‍युओं में से कई लोग राज्‍य धुरंधर, महाप्रतापी प्रसिद्ध थे, उनको यवन लोग इर्षा से दुश्‍मन और प्रेम से दोस्‍त कहते थे। (दुश्‍मन और दोस्‍त इन शब्‍दों का मूल दस्‍यु है, ऐसा अनुमान किया जा सकता है।) इनमें मुख्‍य लोगों के नाम निम्‍न प्रकार से थे-जिसके शरीर का कद ऊँचा और बहुत मजबूत था, जो शरीर से विशाल-विकराल थे, उनको डर से डरपोक ब्राह्मण राक्षस (रावण) कहते थे। जिन लोगों के चेहरे क्रूर और भयंकर दिखाई देते थे उनको डरपोक आर्य अचरज से उग्र कहते थे, जो लोग हमेशा आर्यों को तंग करके उनको परेशान करते थे, उनको वे नफरत से पिशाच कहते थे। जो लोग हमेशा आर्यों को परेशान करने में खुशी मनाते थे उनको आर्य लोग घृणा से बेचैन होकर असुर कहते थे। इसके अलावा यज्ञ के बहाने घोड़े, गौ भूँजकर खालेवाले आर्यों की अवधि का विध्‍वंस करके जो उनको हर तरह से परेशान करते थे उनको आर्य लोग अजास, यक्ष, शिग्रव, किकाट (कैकाड़ी) आदि कहते थे। और ये सभी दस्‍युगण (आर्यों के दुश्‍मन) काले वर्ण के थे और उनमें से जो हमेशा-हमेशा आर्यों के धर्म से नफरत करते उनको पूरी तरह से उनसे अरुचि हो गई थी। निर्दय आर्य लोग उनकी सारी देह की बड़ी क्रूरता से चमड़ी उधेड़ते थे। इसके बारे में आर्यों के पवित्र समझे गए वेदों में पर्याप्‍त प्रमाण मिलते हैं। इस संबंध में वेदों में कहा गया है कि, "त्‍वयंकृष्‍णामरंधवत्" अर्थात् उन्‍होंने काले लोगों की चमड़ी उधेड़ी। इसके अलावा अंग्रेज, फ्रेंच, जर्मन और अमेरिकन लोगों के महान पुरुषों के लेखों में निर्दय आर्यभट्ट ब्राह्मणों के अमर्याद दुष्‍ट कृत्‍यों के बारे में सशक्‍त प्रमाण मिलते हैं।

गोविंदराव : इस तरह से आर्य ब्राह्मणों के वेदों में यदि जबर्दस्‍त जहरीला राज छुपा हुआ है तो आर्य लोगों को वेद रूपी घोड़े को मैदान में उतारकर उसको फिलहाल बाजार में खड़ा नहीं करना चाहिए। इतना ही नहीं, उन्‍हें अपने वेद रूपी घोड़ों को शूद्रादि-अतिशूद्रों की नजरों के सामने भी खड़ा नहीं करना चाहिए, यही मैं कहना चाहता हूँ। क्‍योंकि यदि धूर्त आर्य ब्राह्मणों ने उस तरह से करने का प्रयास किया तो जो शूद्रादि-अतिशूद्र उनसे आज तक सताए गए हैं उनकी किस प्रकार से और कितनी बेइज्‍जती करेंगे, इसकी तो मैं कल्‍पना भी नहीं कर सकता। लेकिन आपके इस कलम से जो लिखा जा रहा है इस कारण से आर्य धूर्त ब्राह्मणों ने अपने वेदों को प्राकृत भाषा में अनुवाद करके तमाम लोगों के सामने रखा तो वे दोषमुक्‍त होंगे या नहीं?

जोतीराव : यदि उन्‍होंने उस तरह से किया तो उनको कोई भी आदमी दोष नहीं देगा। लेकिन धूर्त आर्य ब्राह्मणों द्वारा अपने कपड़े में छुपाकर रखे हुए वेदों को प्राकृत भाषा में अनुवाद करके आज तक आम लोगों के सामने लाना संभव नहीं हुआ, इसलिए आज भी उनसे इस तरह करना संभव नहीं होगा। इसका पहला कारण यह है कि क्रूर आर्यभट्ट ब्राह्मणों ने शूद्रादि-अतिशूद्र, भील, खोंड, राक्षस, पिशाच आदि लोगों को विनाश के कगार पर पहुँचा दिया, इसके कई प्रमाण आर्यों के वेदों में उपलब्‍ध हैं। दूसरा कारण यह है कि बाद में आर्यों के मुकुंदराज, ज्ञानोबा, रामदास, मोरोपंत, वामन आदि साधुओं ने बच्चों का खेल खेलकर वेदों में कल्पित ब्रह्म की रूपरेखा तैयार की है उनकी यह रूपरेखा टूट करके चूर-चूर हो जाएगी, इस डर से धूर्त आर्य ब्राह्मण स्‍वयं तैयार होकर खुले दिल से वेदों का अनुवाद करके कभी भी लोगों के सामने नहीं लाएँगे, ऐसा मुझे लगता है।

गोविंदराव : आप कहते हैं कि वेदों में शूद्रादि-अतिशूद्र, भील, खोंड, राक्षस, पिशाच आदि लोगों का विनाश करने के बारे में लिखा गया है और सभी धूर्त आर्य ब्राह्मण बड़े घमंड से कहते हैं कि सभी मानव प्राणियों के उद्धार के लिए ईश्‍वर ने वेदों की रचना की है।

जोतीराव : आर्य ब्राह्मणों का इस तरह से कहना बिलकुल झूठ है। क्‍योंकि हम सभी के निर्माणकर्ता ने यदि सभी मानव प्राणियों के उद्धार के लिए वेदों की रचना की होती तो वेदों का आज तक दुनिया की तमाम भाषाओं में अनुवाद हो गया होता और आर्य ब्राह्मणों के अलावा इन्‍य लोगों पर यह नौबत न आई होती कि वेदों को केवल मृत कठिन संस्‍कृत भाषा में ही रखकर केवल ब्राह्मण पंडित ही उनको उपयोग में लाते और बाकी वे लोग उनके मुँह ताकते रहते। इसी की वजह से स्‍वार्थी आर्यों के वेद और सार्वजनिक ईश्‍वर-प्रणीत सत्‍य में सही क्या है और झूठ क्या है, यह खोजने का कोई रास्‍ता ही नहीं है।

गोविंदराव : क्‍यों तात्‍यासाहब, यदि सभी आर्य ब्राह्मणों की सच में लाचारी है, यह कहा जाए तो आज के कई धूर्त आर्य ब्राह्मण राजद्रोही-बागी वासुदेव फड़के के बारे में और मनगढ़ंत रामायण, भागवत, सत्‍यनारायण कथा आदि के बारे में बड़े-बड़े कूड़े के ढेर की तरह ग्रंथों की रचना कर रहे हैं और अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्रों के मन भ्रष्‍ट करके खराब कर रहे हैं, परंतु आज तक वेदों का अनुवाद करके उनको दुनिया के सामने रखने की योग्‍यता उनमें नहीं आई है, इसकी वजह क्या है?

जोतीराव : धूर्त आर्य ब्राह्मण षण्‍ढ बाजीराव पेशवा ने अपने नापाक पेशवाई के काल में रात और दिन खेतों में काम करके बर्बाद हुए अन्‍य जातियों के शूद्रादि-अतिशूद्र अपाहिज बूढ़ों की एक छदाम की भी मदद नहीं की, लेकिन जो आर्य ब्राह्मण अपनी लाचारी की वजह से अपने में वेदों का अनुवाद करने की योग्‍यता नहीं ला सके उन अपने स्‍वजाति के पाखंडी भिक्षुकों को उसने लाखों रुपयों की मदद कैसे की और हर साल पानी की तरह पैसा बहाकर एक जाति के लिए ही मौज-मस्‍ती करने के सभी अवसर उपलब्‍ध करवाए, इसका मतलब क्या है? ऐसे धनी और अमीर आर्य बाजीराव में वेदों का अनुवाद कराने के पीछे कोई लाचारी रही होगी, यह कहना क्या शोभा देगा? उसी प्रकार कई ब्राह्मण भिक्षुक कथापाठ करके अपने नकली धर्म की आड़ में अज्ञानी शूद्रों की रियासतों से-आज के शिंदे, होलकर, गायकवाड़ आदि की सरकारों से-लाखों रुपया हड़प लेते हैं फिर भी उनमें वेदों का अनुवाद करके सबके सामने लाने की योग्‍यता नहीं है, इसको किस प्रकार की धूर्तता कहना चाहिए?

गोविंदराव : खैर, धूर्त आर्य ब्राह्मणों ने आज तक यदि अपने वेदों को आम लोगों के सामने नहीं रखा तो हम लोगों ने भी क्या यह प्रयास किया है कि वेदों के अंधं पाखंड को खोलकर अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्रों के सामने रखें? अब इसको क्या कहा जाना चाहिए?

जोतीराव : इन धूर्त आर्य ब्राह्मणों ने आज तक हम शूद्रादि-अतिशूद्रों को संस्‍कृत पढ़ने का अधिकार नहीं दिया था, इसीलिए हमको उनके वेदों के पाखंड को, रहस्‍य को खोजकर निकालने का कोई रास्‍ता ही नहीं मिला था, लेकिन कर्नल लिग्रयाण्‍ड जेकब, वुइल्‍संस आदि कई दयावान यूरोपियन सज्‍जनों को हम शूद्रादि-अतिशूद्रों की दया आई और उन्‍होंने वेदों के पाखंड को खोलकर सारी दुनिया के सामने रखा। इसके प्रमाण यूरोपियन लेखकों के लेखों में मिलते हैं।

गोविंदराव : कर्नल लिग्रयाण्‍ड जेकब, बुइल्‍संस आदि सज्‍जनों को हम गरीब-अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्रों पर दया आई और उन्‍होंने वेदों के पाखंड को बाहर आम जनता के सामने रखने का प्रयास किया, यह तो बहुत ही अच्‍छी बात है, लेकिन उन्‍होंने धूर्त ब्राह्मणों की जाल से उत्‍पीड़ित हम सभी शूद्रादि-अतिशूद्रों को मुक्‍त करने के संबंध में न तो कुछ प्रयास किया है और न कुछ सोचा ही है। इसीलिए मैं उनके राजषड्यंत्र को या डरपोकपन को दोष दे रहा हूँ, क्‍योंकि अंग्रेज लोगों में से कुछ लोगों को यदि धूर्त ब्राह्मणों ने जोर-जुल्‍म करके गुलाम बना लिया होता तो उन्‍होंने धूर्त ब्राह्मणों और उनके वेदों की धज्जियाँ उधेड़कर रख दी होतीं और अपनी जाति के अंग्रेज लोगों को आर्यों की दासता से मुक्‍त करने के लिए कभी आगे-पीछे नहीं देखा होता।

जोतीराव : किंतु कर्नल लिग्रयाण्‍ड जेकव, वुइल्‍संस आदि सज्‍जन बेचारे क्या करेंगे, यह बात हम अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्रों के दिलों-दिमाग पर असर करने की योग्‍यता हम में नही आई थी। हम लोग केवल जुल्‍म से पकड़कर ले जाए गए काले गुलामों की तरह खानदानी गुलाम हो गए थे। उन्‍होंने यदि उस तरह से उस समय किया होता तो हमारे अनपढ़ अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्रों के पुरखों ने धूर्त आर्यों के बहकाने से, कल के आर्य (मंगल) के चपाती विद्रोह की तरह, बेगुनाह यूरोपियन लोगों के साथा बड़ा उत्‍पात मचा दिया होता और तब लाखों शूद्रादि-अतिशूद्र तथा अंग्रेज लोगों ने अपनी जान को गाँवा दिया होता।

गोविंदराव : कर्नललिग्रयांड जेकब सज्‍जन व्‍यक्ति की तरह आप अब अकेले नहीं हैं। महाराष्‍ट्" के अंग्रेजी पढ़े-लिखे कुछ आर्य ब्राह्मण पूरी तरह पवित्र मन से साथ नहीं होने के बावजूद ऊपरी दिखावे के लिए ही क्‍यों न हो आपके मत का समर्थन करेंगे, इस तरह की संभावना है। उसी प्रकार सैकड़ों शूद्रादि-अतिशूद्र लोग सत्‍य का स्‍मरण करके निश्चित रूप से आपके विचारों का समर्थन करेंगे, इस बात का मुझे पूरा विश्‍वास है। इसलिए धूर्त आर्य ब्राह्मणों के वेद-विवाद में वे उलझते रहे, लेकिन आप लोगों ने उनकी किसी भी तरह की परवाह करने के बजाय व उनके वेदों की परवाह करने के बजाय सभी धूर्त आर्य ब्राह्मणों के पिछले और आज के व्‍यवहार से ईश्‍वर-प्रणीत सार्वजनिक सत्‍य की तुलना की तो सारी सच्‍चाई अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्रों की समझ में आ जाएगी और इससे उनका कल्‍याण ही होने वाला है।

जोतीराव : हम सभी के निर्माता के निर्माण किए हुए इस विशाल अवकाश में अनंत सूर्यमंडल है। उसी प्रकार इन उपग्रहों की अनंत हलचलों की व्‍यवस्‍था किस प्रकार से की गई है, उन सभी बातों का ज्ञान प्राप्‍त होना मानव समाज की बुद्धि की क्षमता के बाहर की चीज है। मानवों की बुद्धि पल-पल विनाश होने वाली है। किंतु जिस पृथ्‍वी पर हम लोग रहते हैं उस पृथ्‍वी पर सभी जीव प्राणियों के अलावा हम मानव प्राणियों के लिए परमात्‍मा ने क्या-क्या व्‍यवस्‍था करके रखी है, इन तमाम बातों के बारे में आर्यों के पास कोई विशेष जानकारी नहीं थी, क्‍योंकि इस समय तक निर्माणकर्ता के बारे में मनुष्‍य के जो कर्तव्‍य हैं और जिनका अनुभव हर व्‍यक्ति को है और उसी तरह मनुष्‍यों को अपने पड़ोसियों के साथ किस प्रकार से व्‍यवहार करना चाहिए इसके बारे में हर व्‍यक्ति को अनुभव है, यह बात सभी लोग सिद्ध कर सकते हैं। इन दोनों सिद्धांतों के बारे में सभी आर्य ब्राह्मणों को और उनके वेद-रचयिताओं को बिलकुल ही ज्ञान नहीं हुआ था। यह बात ब्राह्मणों के आज के और पिछली सदियों के जनविरोधी, जगविरोधी व्‍यवहार से सिद्ध होती है।

गोविंदराव : हम सभी के निर्माता के प्रति मनुष्‍यों का कर्तव्‍य क्या है, इसका अनुभव हर मनुष्‍य को है। लेकिन उस संबंध में सभी आर्यों को और उनके वेद-रचयिता ऋषियों को बिलकुल ही ज्ञान नहीं था, इस संबंध में यदि सबसे पहले आपने विश्‍लेषण किया तो बहुत ही अच्‍छा होगा।

जोतीराव : आर्य लोगों के वेदों में सभी आर्य ब्राह्मण यहाँ केवल अकेले सूर्य को देवता मानकर उसके नाम से पाठ करके पूजा करते थे। इससे यह सिद्ध होता है कि इस विशाल अवकाश के अनंत सूर्यमंडलों के निर्माणकर्ता के बारे में आर्यों को कोई ज्ञान नहीं था।

गोविंदराव : आर्यों के वेदों के आधार पर सभी आर्य ब्राह्मण सूर्यनारायण के अलावा किसी तत्‍व को देव मानकर उसकी पूजा करते थे या नहीं?

जोतीराव : आर्यों के वेदों में इस बात की भी चर्चा है कि सभी आर्य ब्राह्मण सूर्यनारायण के अलावा अग्नि तत्‍व को भी मुख्‍य देवता मानते थे और उसकी पूजा करते समय उसके सामने उसके नाम से गौ, भेड़, बैल आदि अर्पण करते थे। और उन गूँगे जानवरों के मुँह से आवाज नहीं निकलनी चाहिए, इसलिए उनके मुँह में कपड़े के गोले ठूँसते थे। उसी प्रकार सोमरस (शराब) के घड़े में से शराब देकर उनकी गरदन पर मुक्‍के से वार करते थे जिसका परिणाम यह होता था कि उनकी जान खत्‍म हो जाती थी और ये लोग उनका मांस खाते थे।

गोविंदराव : आर्य लोग पहले के जमाने में गौ-बैलों को और आजकल भेड़ों को बेहाल करके उनकी जान लेते हैं। ये लोग मुसलिमों की तरह एकदम एक झटके से वार करके इनका कत्‍ल करके क्‍यों नहीं खाते? इसके पीछे क्या रहस्‍य होना चाहिए?

जोतीराव : आर्यों को मुसलिमों की तरह हलाल का मांस पसंद नहीं है। उनकी मान्‍यता है कि मुसलमानों की तरह जानवरों का छूरी से गला काटने से शरीर का खून (सत्तव) निरर्थक चला जाता है और जानवरों के मांस में जिस प्रकार का स्‍वाद होना चाहिए उस प्रकार का रहता नहीं। यही पुरातन काल के और आजकल के आर्यों की समझ है। यही जानवरों को वैसे मारने का रहस्‍य है। इसीलिए गौ-बैल का और भेड़ों का मांस भूँजने के लिए अग्नि देवता को प्रसन्‍न करने का विधान किया गया है। लेकिन इससे यह सिद्ध होता है कि सभी जीव प्राणियों के प्रति दया भाव रखने वाले हम सभी के निर्माता ने अमंगल भोजन केवल आर्य ब्राह्मणों के खाने के लिए गौ, बैल, भेड़ों को पैदा किया होगा, इस प्रकार का सिद्धांत निकलता है।

गोविंदराव : फिलहाल इन बातों को एक ओर रखो। लेकिन जिंदे गौ-बैलों को और भेड़ों को मुक्‍के से मार करके उनकी जान लेकर उनका मांस खाने वाले अमंगल आर्य ब्राह्मण और रोग से ग्रस्‍त या अपाहिज या बीमारी की वजह से मरे हुए या अपने-आप मरे हुए जानवरों का मांस खानेवाले गरीब-लाचार मातंग-महार इन दोनों में आप किसको निर्दयी और क्रूर मानेंगे?

जोतीराव : इन दोनों में धूर्त आर्य ब्राह्मणों को ही पूरी तरह से निर्दयी और क्रूर कहना चाहिए, यही न्यायोचित है।

गोविंदराव : आप किस न्‍यास से गरीब-लाचार मातंग-महारों को निर्दयी कहकर क्रूर मान सकते हैं? इसके लिए आपके पास क्या आधार है?

जोतीराव : अरे, यहाँ तू बीच में ही न्‍याय कहाँ से ले आया? अमंगल खाऊ आर्य ब्राह्मण मोटै-ताजे गौ-भेड़ों की जान लेकर उनका मांस बड़ी रुचि से बेहिचक खाते हैं। इसका मल आधार धूर्त आर्य ब्राह्मण ऋषियों के ताड़पत्तों पर लिख-कर रखे हुए वेद हैं।

गोविंदराव : आर्य ऋषियों के ताड़पत्रों पर लिखकर रखे हुए वेदों में आधार होने का मतलब है धूर्त ब्राह्मणों को मनचाहे वह सब बेधड़क करना चाहिए, उनको न मन की लज्‍जा है और न जनों की। लेकिन उनको हम सभी के निर्माता का भी डर नहीं लगता, इसका मतलब क्या होना चाहिए?

जोतीराव : धूर्त आर्य ब्राह्मणों के मन को हम सभी के निर्माता का बिलकुल ही डर नहीं लगता। क्‍योंकि वे वेदांती होकर भृगु ब्राह्मण की तरह काल्‍पनिक विष्‍णु देवता को लात मारकर खुद स्‍वयं अहंब्रह्म या भूदेव होकर हम सभी के निर्माता को पाँवों तले रौंदने में आगे-पीछे नहीं देखते, तो फिर उनमें निर्माता के प्रति डर की भावना कहाँ से होगी?

गोविंदराव : इसके अलावा आर्य लोग गौ-बैल-भेड़ (खास तौर पर काली-कपिलागौ) खाने में पुण्‍य मानते थे, फिर उन्‍होंने आगे बौद्ध धर्म के डर से जबकि मांस खाना छोड़ दिया, तब भी फिलहाल वे शुद्ध होने के बहाने गौ मांस की बजाय गो मूत्र पीते हैं और अपने-आपको पवित्र मानते हैं, अब इसको क्या कहना चाहिए?

जोतीराव : पुरातन काल के ब्राह्मण पुण्‍य-प्राप्ति के लिए यज्ञ और श्राद्धकर्म में गौ-भेड़ों की हत्‍या करके उनका मांस खाते थे, लेकिन लोक लज्‍जा के लिए आजकल के ब्राह्मण गोमूत्र पीकर अपने-आपको पवित्र मान लेते हैं। इसी आधार पर अब तू ही सोच कि सभी धूर्त आर्य ब्राह्मणों के आचरण में किसी भी प्रकार का चिरकाल तक बंधन नहीं होता है। वे लोग किस समय अपना पेट पालने के लिए क्या करेंगे, इसके बारे में कोई अनुमान नहीं लगा सकता।

गोविंदराव : अब एक बहुत अच्‍छी बात ध्‍यान में आई है, यह बताइए, 'अठरावर्णानां ब्राह्मणों गुरु:' होने पर भी वे मानवीय शूद्रादि-अतिशूद्रों का मैला खाने वाले गौ-पशु के पेशाब को भी शुद्ध मान कर पी लेते हैं लेकिन वे लोग सबसे उत्तम अतिशुद्ध मानव का यदि भोजन करते समय स्‍पर्श हुआ तो इसे एकदम अपवित्र, अशुद्ध मानते हैं, उसका छूना भी पसंद नहीं करते, इस बात को किस चीज का आधार होना चाहिए?

जोतीराव : शूद्रादि-अतिशूद्र मानव के केवल अज्ञानी होने की वजह से धूर्त आर्य ब्राह्मण मजाकिया पशु बंदर से लेकर रेंगने वाले जहरीले साँपों की पूजा करने में शर्माते नहीं। उसी प्रकार शूद्रादि-अतिशूद्रों ने जिनको नीच मानकर लेन-देन बंद कर दिया ऐसी वेश्‍याओं और रंडियों के साथ वे लोग बड़ी बेशर्मी से खाना-पीना आदि सारा व्‍यवहार करते हैं और उसी में आनंद मानते हैं। फिर धूर्त आर्य ब्राह्मणों के पास सबसे उत्तम अतिशूद्रों को नीच मानने का आधार ही क्या है? इसलिए तुम जरा सोचो; फिर बड़ी आसानी से सारी बातें तुम्‍हारे ध्‍यान में आ जाएँगी।

गोविंदराव : इस सारे पिछले इतिहास से यह सिद्ध होता है कि आर्य ब्राह्मण अपने वेदों को ईसाई लोगों की तरह आम आदमी को पढ़ने के लिए उपलब्‍ध नहीं कर देते तो सही में बहुत ही धूर्त हैं और उनके वैसा करते ही वेदों का महत्‍व एकदम कम हो जाएगा, यह सिद्ध होता है।

जोतीराव : धूर्त आर्य ब्राह्मणों ने अपने वेदों को आम आदमी से छुपाकर रखा, इसी की वजह से अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्रों में वेदों की खोखली प्रतिष्‍ठा (महत्‍तव) बढ़ी है, लेकिन इसके बाद उनके द्वारा ईसाई लोगों के बाइबल की तरह अपने वेदों को आम आदमी के पढ़ने के लिए खुला करके उनका प्राकृत भाषा में अनुवाद करके प्रकाशित करते ही खुद उन धूर्त ब्राह्मणों को भी वेदों पर नुक्‍ता चीनी करनी पड़ेगी। और तब बाजार की नटनी (कोल्‍हाटणी) भी वेदों की बेइज्‍जती करने में आगे-पीछे नहीं सोचेगी, इस बात को मैं बड़ी जिम्‍मेदारी के साथ कह रहा हूँ।

गोविंदराव : तो फिर आर्यों के वेदों में सारी दुनिया के लिए बोध पाने लायक बिलकुल कुछ भी नहीं, ऐसा आपका कहना है?

जोतीराव : तू इस तरह से कैसे कह रहा है? वेदों में नीति आदि के बारे में जो कुछ कहा गया है, वह सारा अपने जाति के स्‍वार्थी धूर्त ब्राह्मणों के हित में इस्‍तेमाल किया गया है। और इसे सभी पराजित शूद्रादि-अतिशूद्र, भील, केवट और म्‍लेच्‍छ आदि लोगों को मंजूर करना पड़ा है और उससे उन सभी का बिलकुल कल्‍याण होने वाला नहीं है।

गोविंदराव : दूसरी बात, आपने पहले कहा है कि 'मनुष्‍य को अपने पड़ोसियों के साथ किस प्रकार से व्‍यवहार करना चाहिए", इसके बारे में हर व्‍यक्ति को अपने स्‍वयं के अनुभव से आसानी से सिद्ध करना संभव होगा, इस सिद्धांत के बारे में सभी आर्य लोगों को और उनके वेदकर्ताओं को बिलकुल ही ज्ञान नहीं था। इसके बारे में अभी थोड़ा-सा स्‍पष्‍टीकरण देंगे तो बहुत ही अच्‍छा होगा।

जोतीराव : हम सभी के निर्माता ने सभी जीव प्राणियों को पैदा करते समय मनुष्‍य प्राणी को जन्‍म के समय से ही स्‍वतंत्र प्राणी के रूप में पैदा किया है और उनको आपस में सभी समान हकों का उपभोग करने के लिए समर्थ बनाया है, इसी की वजह से हर आदमी गाँव में और क्षेत्र में अधिकारों के पद संभालने के काबिल है।

गोविंदराव : इससे यह स्‍पष्‍ट होता है कि सभी मनुष्‍य सभी प्रकार के कार करने के लिए समान रूप से हकदार हैं, फिर आर्य धूर्त ब्राह्मण किस वजह से शूद्रादि-अतिशूद्रों को अपने दास और अनुदास बनाकर उनके स्‍वामी बन गए हैं? यह कौन-सा न्‍याय है?

जोतीराव : धूर्त आर्य ब्रह्मण बिलकुल अन्‍याय से शूद्रादि-अतिशूद्रों के स्‍वामी बन गए हैं। इसीलिए हम सभी के निर्माता को गुस्‍सा आया और उसने मुगल, पठान, पोर्तुगीज, फ्रेंच और अंग्रेज आदि इन सभी लोगों के द्वारा धूर्त आर्य-ब्राह्मणों के भोग-एश्वर्य को नष्‍ट करके इनको उनका गुलाम बनाया।

गोविंदराव : हम सभी के निर्माता ने मुसलिम और ईसाई आदि लोगों के द्वारा आर्य ब्राह्मणों के भोग-ऐश्‍वर्य को नष्‍ट करके मुसलिमों और ईसाइयों को इनका स्‍वामी बनाया, लेकिन उससे हम शूद्रादि-अतिशूद्रों का किस प्रकार से लाभ हुआ है, इसके बारे में मुझे साफ तौर पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है।

जोतीराव : अरे, बाबा! हम सभी का निर्माता परम दयालु और परम न्‍यायी है। और तू कहता है कि उसके न्‍याय के बारे में स्‍पष्‍ट रूप से कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है, इसलिए मुझे तेरे ऊपर बड़ी दया आ रही है, क्‍योंकि सबसे छोटी चींटी की इंद्रियों का और उन इंद्रियों के काम का हम कभी विचार ही नहीं करते, फिर भी उसको बेफजूल परेशान करने की किसी की हिम्‍मत नहीं। उसी प्रकार इस सबसे उत्तम मानव-प्राणी की इंद्रियों का, उसके दस इंद्रियों और उसके ज्ञान की महत्ता के बारे में जब हम सोचने लगते हैं तो हमको उसका अंदाज ही नहीं लगता और ऐसे मानवों में से शूद्रादि-अतिशूद्रों के ऊपर पहले तलवार के बल पर और आजकल धोखेबाजी के बल पर धनी आर्य मानव बने हुए हैं। इसीलिए सर्वन्‍यासी अपने सभी के निर्माता ने शूद्रादि-अतिशूद्रों के बारे में धूर्त ब्राह्मणों को सजा देकर उनको होश में लाने के लिए पहले मुसलिमों को और आजकल ईसार्इ लोगों को आर्य ब्राह्मणों का मालिक बनाया है, यह बात एकदम सही है।

गोविंदराव : मुसलिम लोगों ने शूद्रादि-अतिशूद्रों के बारे में धूर्त ब्राह्मणों को किस प्रकार की सजा दी है, इसके बारे में यदि आप संक्षिप्‍त में विवेचन करेंगे तो बहुत ही अच्‍छा होगा।

जोतीराव : मुसलिम लोगों ने धूर्त आर्य ब्राह्मणों की पत्‍थर की मूर्तियों को तोड़-फोड़ कर रख दिया और उन्‍होंने आर्यों के जुल्‍म से दास तथा अनुदास बनाए गए शूद्रादि-अतिशूद्रों के समूह के समूह को उनकी गुलामी से मुक्‍त करके मुसलिम धर्म में अपना करके मुसलिम समाज में सम्मिलित कर लिया। इतना ही नहीं, उन सभी के साथ रोटी और बेटी का व्‍यवहार शुरू करके उन सभी को सभी कामों में बराबरी का हक दिया और सभी को अपनी तरह सुखी बना करके रखा तो आर्यभट्ट ब्राह्मण उनके मुँह की ओर देखते ही रह गए।

गोविंदराव : उसी प्रकार ईसाई लोगों ने शूद्रादि अतिशूद्रों के बारे में धूर्त ब्राह्मणों को होश में जाने के लिए किस-किस प्रकार की सजा दी, इसके बारे में यदि थोड़ा-सा विवेचन करेंगे तो बहुत ही अच्‍छा होगा।

जोतीराव : सबसे पहले कर्नल लिग्रयाण्ड जेकब, सर विलियम जोंस आदि अंगेज विद्वानों ने धूर्त ब्राह्मणों के वेद, स्‍मृतियों, संहिताओं आदि का भंडाफोड़ किया। उन्‍होंने उन ग्रंथों, धर्मशास्‍त्रों में शूद्रादि-अतिशूद्रों के बारे में जो कुछ कहा गया है तथा इन लोगों का क्षत्रियत्‍व निकालकर उनको किस-किस तरह से सताया गया है, इसके बारे में सारे इतिहास की जाँच-पड़ताल करके आम आदमी के सामने रखा है। इसी की वजह से हम सभी शूद्रदि-अतिशूद्रों की आँखें खुल गईं और सभी धूर्त ब्राह्मणों का ब्रह्मजाल हम सभी की नजरों के सामने अपने-आप नाच रहा है।

गोविंदराव : कर्नल लिग्रयाण्ड जेकब, सर विलियम जोंस आदि विद्वान पुरुषों ने धूर्त आर्य ब्राह्मणों के ब्रह्मजाल को जब सामने रखा, तब भी हमारी अंग्रेज सरकार ने हम शूद्रादि-अतिशूद्रों की मुक्ति के लिए कुछ भी प्रयास नहीं किया, इसका बड़ा आश्चर्य हो रहा है।

जोतीराव : धूर्त आर्य ब्राह्मणों के पुरखों ने शूद्रादि-अतिशूद्रों के बारे में जो ब्रह्म-षड्यंत्र रखा था उसकी जानकारी उनको प्राप्‍त हुई। उस बात पर उनको पूरा यकीन आ गया और उनको अफसोस भी हुआ। तब उन्‍होंने स्‍वयं दखल देकर शूद्रादि-अतिशूद्रों को नीच मानकर उनको उनकी जिंदगी से तबाह करना निषिद्ध ठहराया, इसलिए सबसे पहले अंग्रेज सरकार ने इस सारे बलिस्‍थान के शूद्रादि-अतिशूद्रों के टैक्‍स से प्राप्‍त पैसा खर्च करके ब्राह्मणों के बच्चों को सही ज्ञान हो, इसलिए जगह-जगह अंग्रेजी स्‍कूलों की स्‍थापना करवाई, और उनके लिए मुक्‍त शिक्षा का प्रबंध किया गया।

गाविंदराव : शूद्रादि-अतिशूद्र अपनी मेहनत से जो कुछ रुपया कमाते थे, उसमें से सरकार को जो टैक्‍स के रूप में देते थे उन पैसों से सरकार ने धूर्त आर्य ब्राह्मणों के बच्चों के लिए सबसे पहले अंग्रेजी स्‍कूलों की स्‍थापना की और उन्‍हें शिक्षित किया गया, यह बात सही है लेकिन उनके बच्चों ने पढ़-लिखकर अंत में क्या किया, इस संबंध में जब हम सोचने लग जाएँगे तो शूद्रादि-अतिशूद्रों की आँखें खुल जाएँगी।

जोतीराव : अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्रों की मेहनत की कमाई से टैक्‍स के रूप में दिए गए पैसों से धूर्त आर्य ब्राह्मणों के बच्‍चे पढ़-लिखकर जब शिक्षित हुए तब वे अपने पुरखों की हर गलतियों का निषेध करने की बजाय समर्थन करने लगे। वे अपने पुरखों के बनावटी धर्म के बारे में, जो भीतर से पूरी तरह राजनीतिक है, लिखे गए ब्रह्म-बाजीगरी पर परदा डालने के लिए प्रयास कर रहे हैं। उन्‍होंने फिलहाल बड़ी कुटिलता से अपना बचाव करने के लिए अपनी आँखों पर पट्टी डालकर बड़ी बेसबरी से ब्रह्म समाज और प्रार्थना समाज की स्‍थापना की है। उन्‍होंने अपने उन समाजों में ईसाई धर्म की सारी अच्‍छी-अच्‍छी बातें चुरा करके अपने काल्‍पनिक ब्राह्माजी की ओर से आँखें बंद कर रखी हैं और सभी अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्रों के मन में पुन: एक तरह का ब्रह्म-घोटाला पैदा करने का प्रयास शुरू कर दिया है।

गोविंदराव : इन समाजों के अलावा धूर्त आर्य ब्राह्मणों के बच्चों ने अन्‍य कुछ सभाएँ स्‍थापित की हैं या नहीं?

जोतीराव : धूर्त आर्य ब्राह्मणों के बच्चों ने जो सभाएँ स्‍थापित की हैं उनमें मुख्‍य हैं : पूना की सार्वजनिक सभा और नेशनल कांग्रेस। बस, यही दो मुख्‍य संस्‍थाएँ स्‍थापित की गई हैं, ऐसा मैंने सुना है।

गोविंदराव : उनके इस सार्वजनिक सभा के शुद्ध कुलनाम से इस सभा में कुनबी, माली, धनगर, केवट, भील आदि किसान लोग सदस्‍य होंगे या नहीं?

जोतीराव : तुम्‍हारे कहने के अनुसार कुनबी आदि किसान लोगों का इस सभा के सदस्‍य होना असंभव है, ऐसा मुझे लगता है।

गोविंदराव : तो फिर बनिया-पंसारी का धंधा करने वाले गूजर, मारवाड़ी आदि दुकानदार और कपड़ा-लत्ता बेचने वाले जुलाहा, बुनकर, खत्री आदि लोग इस सभा के सदस्‍य होंगे या नहीं?

जोतीराव : मैंने यह सुना है कि गूजर, मारवाड़ी आदि दुकानदार और कपड़ा-लत्ता बेचने वाले जुलाहा, बुनकर आदि लोगों का इस सभा से कोई संबंध ही नहीं है।

गोविंदराव : खैर, कोई बात नहीं। लेकिन लुहार, सुनार, बढ़ई, चमार, कुम्‍हार, नाई, धोबी आदि बारह जातियों के (बलुते) लोग और मातंग, भट, जोशी आदि मिलकर बारह जातियों के (आलुते) लोग भी इस सभा के सदस्‍य हैं या नहीं?

जोतीराव : अरे, इस सभा में बारह पिछड़ी या अछूत जातियों के लोग होंगे इसकी तो कल्‍पना ही नहीं की जा सकती, उनका नाम ही मत लो। लेकिन अन्‍य बारह जातियों में से ब्राह्मण जोशी, उपाधी आदि जाति के लोगों की संख्‍या इस सभा में काफी है। इनके जो लोग सरकारी कर्मचारी हैं वे खुले रूप से इस सभा के सदस्‍य नहीं हैं, लेकिन उनके लिहाज के लिए अन्‍य जाति के पाँच-पचीस लोगों को सदस्‍य बना लिया गया है। उनमें से एक-दो तो अमीर हैं और कुछ वकील, कुछ कर्मचारी हैं।

गोविंदराव : महोदय, इस बलिस्‍थान में आज सभी मिलाकर बीस करोड़ लोग रहते हैं और उनमें दो करोड़ आर्य ब्राह्मण हैं। फिर पूना के ब्राह्मणों ने उनमें से पाँच-पचीस अन्‍य जातियों के लोगों को इकट्ठा कर लिया और सभा स्‍थापित की तो क्या वह सार्वजनिक सभा हो गई?

जोतीराव : तुम्‍हारा कहना बिलकुल सही है, क्‍योंकि महारों की लाचार अवस्‍था के बारे में सोच-विचार करने के लिए इस सार्वजनिक सभा में ब्राह्मण सदस्‍यों ने महार सदस्‍यों को अपने साथ में लेकर कभी बातचीत भी की है? या उनकी लाचार अवस्‍था के बारे में उन्‍होंने कभी सरकार को सूचित भी किया है, ऐसा मैंने कभी नहीं सुना है।

गोविंदराव : लेकिन एक सार्वजनिक छोकरी के घरौंदे के समान इस सभा में बैठ-कर गप मारनेवाला एक व्‍यक्ति कह रहा है कि इस सभा के रेकार्ड में जितनी अर्जियाँ हैं उनमें से एक भी अर्जी कोई ऐसी नहीं है कि जिसमें एक ही वर्ग का या एक ही जाति का संबंध है।

जोतीराव : उनका कहना बिलकुल सही है। क्‍योंकि उनको ऐसा लगता है कि, हमारे अलावा इस दुनिया में और कोई व्‍यक्ति बुद्धिमान नहीं है। लेकिन तुम इस तरह से कल्‍पना करो कि आज सरकार ने इस प्रकार का एलान किया है कि जिस किसी को संस्‍कृत, मराठी और अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान है और जो इन भाषाओं में पत्राचार कर सकता है एसे महार या मातंग जाति के व्‍यक्ति को हर माह डेढ़ हजार रुपया दिया जाएगा। क्या इस पद के लिए कुछ महार या मातंग जाति के उम्‍मीदवार को चुना जाएगा?

गोविंदराव : इस पद के लिए एक भी महार या मातंग उम्‍मीदवार नहीं चुना जाएगा।

जोतीराव : उसी प्रकार हम हिंदुओं को कलेक्‍टर का पद मिलना चाहिए, जैसे यूरोपियन लोगों को अंग्रेज सरकार देती है, इस तरह हिंदू शब्‍द का गोल-मोल (अनिश्चित) प्रयोग करके कुछ अर्जियाँ सार्वजनिक सभा के दफ्तर में होंगी। लेकिन वे अर्जियाँ अनपढ़ शूद्रादि-अतिशूद्रों के किस काम की? क्‍योंकि हिंदू शब्‍द का गोलमाल प्रयोग करके उसका पूरा लाभ उठाने वाले अकेले ब्राह्मण हैं! वाह रे सभा! और वाह रे उसका दोमुँहा रेकार्ड!

गोविंदराव : अब इस नेशनल कांग्रेस के बारे में कुछ समझाइए, जिससे कि हमारी भोली-भाली सरकार की आँखें खुल जाएँगी और शूद्रादि-अतिशूद्रों की भी आँखें खुल जाएँगी और इन दोनों का कुछ लाभ हुआ तो अच्‍छा ही होगा।

जोतीराव : बता रहा हूँ, सुनो-आर्यों के पाखंडी, स्‍वार्थी धर्म की वजह से धूर्त आर्य ब्राह्मण अज्ञानी शूद्रों को नीच मानते हैं। अज्ञानी शूद्र अज्ञानी महारों को नीच मानते हैं। और अज्ञानी महार लोग मातंग को नीच मानते हैं। लेकिन अतिशुद्ध धूर्त आर्य ब्राह्मण शूद्रादि-अतिशूद्रों को नीच मान कर ही नहीं रुकते, बल्कि उन्‍होंने इन सभी लोगों में आपस में रोटी-व्‍यवहार और बेटी-व्‍यवहार नहीं होना चाहिए, इसलिए प्रतिबंध भी लगाए हैं। मतलब उन सभी के भिन्‍न-भिन्‍न प्रकार के आचार-विचार, खाना-पीना, रस्‍म-रिवाज आपस में एक-दूसरे से मेल नहीं खाते। फिर ऐसे अट्ठारह प्रकार के लोगों में एकता होकर उनकी चटपटी नमकीन, मतलब, एकजान जीव (एकात्‍म समाज) 'Nation' कैसे बन सकेगा? अरे, ये धूर्त आर्य ब्राह्मण सारी दुनिया के लोगों को नीच मानते हैं और उनसे घृणा, नफरत करते हैं। ये लोग केवल अपने स्‍वार्थ के लिए अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्रों को किस समय किस गड्ढ़े में डाल देंगे, इसका कोई अंदाज नहीं। इसीलिए आर्य ब्राह्मण एकधर्मी अमेरिकी या फ्रेंच आदि यूरोपियन लोगों की नकल करके सैकड़ों नेशनल कांग्रेस स्‍थापित कर लें, फिर भी उनके नेशनल कांग्रेस में समझदार शूद्रादि-अतिशूद्र व्‍यक्ति कभी भी सदस्‍य नहीं होगा, इस बात का मुझे पूरा भरोसा है। क्‍योंकि, वैसा करने से हमारी दयालु अंग्रेज सरकार शूद्रादि-अतिशूद्रों की ओर कोई ध्‍यान नहीं देगी।

गोविंदराव : समझदार शूद्रादि-अतिशूद्र लोग यदि उनके नेशनल कांग्रेस में सदस्‍य नहीं होगे तो उस सभा में यूरोपियन मि. हंटर साहब जो अंग्रेज सरकार को इस तरह अकल की बातें बताते हैं कि हिंदू लोगों को बड़ी-बड़ी नौकरियाँ देनी चाहिए, इसका क्या परिणाम होगा?

जोतीराव : मतलब, हिंदुओं में ब्राह्मणों के अलावा शूद्रादि-अतिशूद्र, भील, केवट आदि लोगों के बारे में मि. हंटर साहब को कोई जानकारी नहीं है। इसलिए वे केवल उस तरह की बेवकूफी कर रहे हैं। उसी तरह पहले लार्ड रियन गव्‍हर्नर जनरल साहब द्वारा हिंदुओं के शुद्रादि-अतिशूद्रों के बारे में, भील, केवट आदि लोगों के बारे में जानकारी हासिल करने की बजाय अकेले आर्य ब्राह्मणों को हिंदू समझकर उनको म्‍युनिसीपालिटी का अधिकार देने की वजह से अन्‍य सभी अनार्थ लोगों को कितनी परेशानी सहनी पड़ती है, इसका जरा तुम लोग ही विचार करो तो सब कुछ तुम्‍हारी समझ में आ जाएगा।

गोविंदराव : फिर भी इस नेशनल कांग्रेस में शूद्रादि-अतिशूद्रों को सदस्‍य होकर ब्राह्मणों के साथ अपने उचित हक सरकार से माँगने में कौन-सी आपत्ति है, इसके लिए किसने उनके हाथ को पकड़ रखा है, इस तरह की बात एक शैकीन ब्राह्मणों की नकल करने वाला पाखंडी व्‍यक्ति कर रहा है।

जोतीराव : मैं इस समय उस पाखंडी के बारे में कुछ भी बोलना नहीं चाहता। छोड़ दीजिए उसको! यहाँ उसका नाम लेने का भी कोई मतलब नहीं। किंतु मैं यहाँ तुमसे कुछ सवाल करता हूँ। वह इस प्रकार से कि आज तक धूर्त-ब्राह्मणों ने शूद्रों को संस्‍कृत पढ़ने की मनाही की थी या नहीं? उसी प्रकार उन्‍होंने अतिशूद्रों के बच्चों को आज तक स्‍कूल में प्रवेश पाने पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी या नहीं? फिर उनमें तहसीलदार की कचहरी में निचले दर्जे की कारकुनी का काम करने की भी योग्‍यता कहाँ से आएगी? फिर बलिस्‍थान के कुशल लोगों को "कला-कौशल में यूरोपियन लोगों की बराबरी करके सारी दुनिया के लोगों के साथ चलने की तैयारी रखिए, वरना ठहरो या मरो!" यह कहने वाले साढ़े तीन सयाने चुगलखोर नारद मुनि के पीछे लगने से क्या फायदा? लेकिन ऐसे नादानी ही नहीं बल्कि शरारत का समर्थन करने को अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्रों को व्‍यापार का लालच दिखाकर वेदों की गठरी ढोनेवाला उचक्‍का, धूर्त आर्य ब्राह्मणों का महरा माना गया है, उनको उनका छोटा भाई कहना चाहिए!

गोविंदराव : आज तक धूर्त ब्राह्मणों ने शूद्रों को संस्‍कृत पढ़ने नहीं दिया। उसी तरह उन्‍होंने अतिशूद्रों के बच्चों को आज तक स्‍कूल में पढ़ने नहीं दिया। इसी की वजह से मातंग-महारों के बच्चों को तहसीलदार की कचहरी में मामूली लिपिक का काम करने की भी योग्‍यता नहीं आई, यह बात पूरी तरह सच है।

जोतीराव : खैर, इस निष्‍पक्ष अंग्रेज सरकार के राज में सभी मातंग-महारों के बच्चों को शिक्षा मिलना संभव है। और यदि ऐसा होता है तो उन सभी लोगों को इकट्ठा होकर पूर्व गव्‍हर्नर लार्ड रिपन और मि. हंटर साहब को आगे करके महारानी व्हिक्‍टोरिया माँ साहब के सामने जाकर उनको ऐसे पूछा जा सकता है कि आज तक यदि धूर्त ब्राह्मणों ने हमको पढ़ने-लिखने नहीं दिया तो फिर आज हमको उनकी तरह शिक्षित होने तक अकेले आर्य धूर्त ब्राह्मणों को बड़े-बड़े सरकारी पदों पर नौकरियाँ दी गईं तो फिर वे लोग हम लोगों को पुन: दूसरे रास्‍ते से विनाश के कगार पर खड़े करेंगे या नहीं? इस तरह का सवाल आज के अंग्रेज सरकार को पूछा गया तो वे क्या जवाब देंगे?

गोविंदराव : इस सवाल का जवाब देने की बजाय वे दोनों लोग निस्‍संदेह अपनी गरदनें नीचे झुका देंगे। और शर्म से नजरे टेढ़ी करके बुर्का पहने पाखंडी की मुँह की ओर देखकर उसके नाम से उँगलियाँ चबाते रहेंगे। इसके अलावा उनके पास दूसरा कोई रास्‍ता नहीं रहेगा। फिर आगे क्या होगा?

जोतीराव : इसलिए इस बलिस्‍थान के सभी शूद्रादि-अतिशूद्र लोग, भील, केवट आदि सभी लोग जब तक शिक्षित होकर सोच-विचार करने योग्‍य नहीं बनते तब तक वे सभी संगठित हुए बगैर एकात्‍म राष्‍ट्र (Nation) बना नहीं सकते। यह सच्‍चाई के होने पर भी अकेले बाहरी आक्रामक आर्य ब्राह्मण लोगों ने नेशनल कांग्रेस की स्‍थापना की, तब भी उससे क्या होने वाला है?

गोविंदराव : मतलब शूद्रादि-अतिशूदों के घर के पास स्‍कूल होने पर भी उन्‍होंने अपने बच्चों को स्‍कूल नहीं भेजा तो उनके बच्चों को उदासीन ब्राह्मणों को अपने कंधों पर उठाकर स्‍कूल पहुँचाना चाहिए, यही सिद्ध होता है।

जोतीराव : ब्राह्मणों ने आज तक शूद्रों को संस्‍कृत पढ़ने और अतिशूद्रों को स्‍कूल में जाने पर पावंदी लगा दी थी। उनकी इस मूर्खता के कारण ही उन्‍होंने यह किया लेकिन अब उनके काल्‍पनिक ब्राह्माजी ने, महापिता ने भी शूद्रादि-अतिशूद्रों के बच्चों को अपने कंधों पर उठाकर उनको हर दिन स्‍कूल में पहुँचाया और घर लाकर छोड़ देने का काम किया, तब भी सभी धूर्त ब्राह्मण प्राचीन काल से किए हुए अपराध से मुक्‍त नहीं हो सकते, क्‍योंकि ज्ञान खानदानी चीज नहीं है।

गोविंदराव : अपनी अंग्रेज सरकार ने कुछ दिन पहले धूर्त आर्य ब्राह्मणों को ही सभी शूद्रादि-अतिशूद्रों को शिक्ष्ज्ञित करने का काम सौंप दिया था। लेकिन आज अपनी निष्‍पक्ष अंग्रेज सरकार की ओर से सभी जातियों के बच्चों को स्‍कूल में प्रवेश देने की छूट देने पर ही अतिशूद्रों के बच्‍चे पढ़-लिखकर शिक्षित हुए हैं और बड़े-बड़े सरकारी पदों पर काम कर रहे हैा, यह न मैंने देखा है और न सुना है। इसकी सही वजह क्या होनी चाहिए?

जोतीराव : अपनी अंग्रेज सरकार ने सभी जातियों के बच्चों को स्‍कूल में प्रवेश देने की छूट तो दी है तब भी अतिशूद्रों की जाति में अध्‍यापक तैयार करने के संबंध में उन्‍होंने कोई व्‍यवस्‍था नहीं की। यही वजह है कि आर्य धर्मानुयायी भट्ट ब्राह्मण अध्‍यापकों के द्वारा अतिशूद्रों के बच्‍चे शिक्षित होकर बड़े अफसर कभी नहीं होंगे। इस संबंध में हमारी भोली-भाली सरकार ने कुछ विचार भी किया है या नहीं? क्‍योंकि आर्य लोगों के एकतरफा ग्रंथों में शूद्रादि-अतिशूद्रों को ज्ञान न देने के बारे में पूरी व्‍यवस्‍था करके रख दी गई है, इधर धूर्त आर्य ब्राह्मण अपना पेट पालने के लिए पढ़-लिखकर तैयार हैं। स्‍वार्थी ब्राह्मण अध्‍यापकों द्वारा गाँव-खेड़ों के अतिशूद्रों के बच्‍चे स्‍कूल में पढ़कर शिक्षित होंगे, ऐसा मुझे बिलकुल नहीं लगता।

गोविंदराव : अंग्रेज सरकार के शिक्षा विभाग में पक्षपात होने की वजह से सभी धूर्त आर्य ब्राह्मणों के बच्चों को पढ़-लिखकर तैयार होते ही, भले ही सरकारी या फौजी दफ्तर में नौकरी नहीं मिलती तब भी अन्‍य सभी विभागों में उनको बड़ी आसानी से नौकरी मिल जाती है। लेकिन शूद्रादि-अतिशूद्र अज्ञानी हैं इसलिए आजादी किस चीज का नाम है यह उन्‍हें बिलकुल ही समझ में नहीं आता, इसी की वजह से धूर्त ब्राह्मण कर्मचारी उनको किस-किस तरह से चूसते होंगे, यह बात अब अच्‍छी तरह मेरी समझ में आई है। लेकिन वेदसंहिता काल से लेकर आज तक-आर्य ब्राह्मणों के शासन काल तक-हर व्‍यक्ति को उन्‍होंने स्‍वयं कमाए हुए धन-दौलत का उपभोग करने की सहूलियत दी थी या नहीं?

जोतीराव : प्राचीन काल में आर्य ब्राह्मणों के शासनकाल में किसी शूद्र ने अपनी जान को दाँव पर लगाकर आर्य पुरोहित और उसके परिवार के सभी व्‍यक्तियों की जान बचाई ऐसी स्थिति में वह बड़ी उदारता से उस जवाँमर्द शूद्र को अपनी दासता से मुक्‍त कर देता था। लेकिन उसके मुक्‍त होते ही दूसरा कोई जहरीला आर्य ब्राह्मण उस परोपकारी शूद्र को पकड़कर उसको अपने बाप की जायदाद समझकर अपनी गुलामी करने के लिए मजबूर कर देता था। इसी तरह अकाल में आर्य ब्राह्मण को शूद्र की संपत्ति का मनचाहा उपभोग करना चाहिए, इस तरह की बात मनुसंहिता में कही गई है। इतना ही नहीं, शूद्र की स्‍वपत्‍नी का पावित्र्य किसी आर्य ब्राह्मणों ने नष्‍ट किया तो उसे नाममात्र के लिए चौदह रुपया दंड देना पड़ता था। लेकिन आर्य ब्राह्मण की किसी इश्‍कबाज औरत ने कसी शूद्र के पीछे लगकर अपना मतलब निकाल लिया तो उसके लिए उस ब्राह्मण औरत को छूट देकर उस शूद्र के मुँह में सीसा पिघलाकर डाला जाता और उसके लिंग को भी काट देने की सजा दी जाती थी।

गोविंदराव : इस तरह सभी धूर्त आर्य ब्राह्मणों ने पराजित शूद्रादि-अतिशूद्रों के साथ जो अमानवीय बर्ताव किया, वह सुनने में भी मुझे लज्‍जा आती है।

जोतीराव : धूर्त ब्राह्मणों ने शूद्रादि-अतिशूद्रों के साथ जो अमानवीय बर्ताव किया, उसको सुनने में भी तुम्‍हे लज्‍जा आती है, यह तो उचित ही है, क्‍योंकि तुम्‍हें इस दयालु अंग्रेज सरकार के राज में मनुष्‍यतापूर्ण व्‍यवहार प्राप्‍त हुआ है। लेकिन धूर्त ब्राह्मणों के पुरखों द्वारा प्राचीन काल में अपने शूद्रादि-अतिशूद्रों के पुरखों को बेहद परेशानी में डालते समय उनको कुछ भी लज्‍जा नहीं आती थी और आज भी आर्यों के वंशज शूद्रादि-अतिशूद्रों को अपने पाखंडी, नकली धर्म के बारे में बताते हैं तथा राजनीतिक काम में तरह-तरह के दाँव-पेंच खेलकर हम लोगों को मूर्ख बनाने में शर्माते नहीं। इससे यही सिद्ध होता है कि आर्य ब्राह्मणों में मनुष्‍यता नाम की कोई चीज ही नहीं है।

गोविंदराव : तात्‍या साहब! आर्यों ने जो कुछ किया वह अब पुन: लौटकर आने वाला नहीं है। अब इसके लिए उन्‍हें क्या करना चाहिए?

जोतराव : अब इसके लिए इलाज एक ही है कि सभी आर्य ब्राह्मण लोग स्‍वयं को बड़ी बेशर्मी से 'अहम् ब्रह्म' कहलवा लेते हैं इसके लिए उन्‍हें शर्म महसूस करनी चाहिए, उन्‍हें हर तरह के सत्‍य को पहचान करके उसके अनुसार अपना व्‍यवहार रखना चाहिए। तब तो सभी शू्द्रादि-अतिशूद्र, भील, केवट, जुलाहे आदि लोग उनके प्राचीन तथा आज के सभी नीच कर्मों के लिए सभी अपराधों के लिए बदला लेने की बजाय उनको क्षमा कर देंगे।

गोविंदराव : लेकिन सारी दुनिया के मानव प्राणी आर्यों को छि:-छि:, थू-थू करते हैं, इसके बारे में आपका क्या कहना है?

जोतीराव : सभी आर्य ब्राह्मण अपने पाखंडी ग्रंथों को गड्ढे में डालकर जब सभी मानव नर प्राणियों के साथ सत्‍य व्‍यवहार करने लगेंगे, तब सारी दुनिया के सभी मानव नर-नारी आर्यों के कल्‍याण की कामना करेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं। यह विषय कुछ ज्‍यादा ही विस्‍तार में चला गया है, इसलिए हम अब यहीं रुक जाएँगे।


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