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विमर्श

सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक

जोतीराव गोविंदराव फुले

अनुक्रम आसमान के ग्रह पीछे     आगे

बलवंतराव हरी साकवलकर : आसमान के ग्रह अपने इस भूमंडल के मानव नारी-पुरुषों को कष्‍ट देते हैं, यह ग्रहशास्‍त्रों के जानकारों का कहना है। क्या यह बात सच है?

जोतीराव फुले : इस सारे विशाल आसमान में अनंत ग्रह और तारे हैं। उनमें से सूर्य और चंद्रमा दोनों हमारे सबसे निकट के ग्रह हैं। इस धरती पर जितने भी जलचर हैं, भूचर हैं, वनचर है और वनस्‍पति हैं उन सभी के ये प्राण जीवन हैं, यह बात किसी विवाद से परे हैा उसी प्रकार बाकी शनि आदि ग्रह अकेले मानव नारी-पुरुषों को कष्‍ट देते हैं, इस बात को सिद्ध नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार शनि आदि ग्रहों के भ्रमण के संबंधों से किसी समय अपने इस धरती के सभी जीव प्राणियों को कभी कुछ लाभ भी हो सकता है या कभी कुछ अहित भी होने की संभावना है। फिर भी उन सभी प्राणियों में वे केवल मानव नारी को या पुरुष को ही कष्‍ट देते हैं, यह सिद्ध करना असंभव है। क्‍योंकि शनि ग्रह का भूप्रदेश इतना विशाल है कि उसके निर्वाह के लिए चार चंद्रमा हैं और उसको हम सभी के निर्माता ने कुछ काम तय करके दिए हैं। लेकिन उन सभी कामों को दूर रखकर वह इस धरती के किसी मानव व्‍यक्ति को कष्‍ट देता है और उस कष्‍ट से मुक्ति पाने के लिए अज्ञानी लोगों द्वारा धूर्त आर्य ब्राह्मण, जोशी-पुरोहित को भारी-भरकम दक्षिणा देने पर ही ये उपाय किए जा सकते हैं। पेट भरने के लिए यह सीधी-सादी कमाई ब्राह्मण पुरोहितों की धोखाधड़ी है।

बलवंतराव : उसी तरह आसमान के मेष और वृषभ ग्रह की इस भूमंडल के चौपाए बैल और भेड़ों के साथ टक्‍कर होती है। यहीं से आगे बढ़कर वे ग्रह यहाँ के किसी दो पैरवाले मानव नारी-पुरुषों की राशि में आकर उनको कष्‍ट देने लगते हैं, इसका मतलब क्या है?

जोतीराव : अरे, उनके इस भूमंडल के चौपाए भाई-बहनों को मतलब बैल को जन्‍म देनेवाली गौ को, भेड़ों को क्रूर आर्य ब्राह्मण खाने के बहाने यज्ञस्‍थलों पर ले जाते थे और उनको मुक्‍के से मार-मारकर उनकी हत्‍या करते थे फिर वे लोग उनका मांस गीदड़ों की तरह खाते थे। तब भी उन ग्रहों ने उस समय उन आर्य ब्राह्मणों का कुछ भी नुकसान नहीं किया। लेकिन आज के सतयुग में यदि गौ-भेड़ों को भगवान की कृपा से जबान होती तो उन्‍होंने धूर्त आर्य ग्रंथकारों की नाक तोड़ने में किसी भी प्रकार की परवाह न की होती।

बलवंतराव : लेकिन आर्यों के ग्रहशास्‍त्र के पंडित आकाश के तारों के संबंध में नारी-पुरुषों के जन्‍म के समय के आधार पर उनके नाम के आदि अक्षर खोजते हैं और उन आदि अक्षरों के आधार पर उनकी जन्‍मकुंडली बनाते हैं, और उसमें उनको आगे क्या-क्या फायदे होने वाले हैं और क्या-क्या आपत्तियाँ आ सकती हैं इसका भविष्‍यकथन भी लिख देते हैं, इस संबंध में यहाँ कुछ विवेचन करके समझाएँगे तो बहुत ही अच्‍छा होगा।

जोतीराव : आकाश में सत्तईस नक्षत्र हैं, उनके साथ मानव नारी-पुरुषों के मूल नाम का सिद्धांत सिद्ध करने के लिए यहाँ सत्ताईस नक्षत्रों और बारह राशियों के नाम तय किए हुए हैं। उन नक्षत्रों और राशियों में से कुछ के नाम नाममात्र को ले रहा हूँ। वे इस प्रकार हैं : नक्षत्र-अश्विनी, भरणी, कृतिका और रोहिणी आदि और राशियाँ-मेष, वृषभ आदि। अब हर दिन का एक नक्षत्र होता है। उसके केवल चार हिस्‍से करके पहले हिस्‍से को पहला चरण, दूसरे हिस्‍से को दूसरा चरण आदि तय किए हुए हैं। ऐसे हर चरण का एक अक्षर निश्चित है। अगर अगर किसी नारी या पुरुष का जन्‍म अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में हुआ तो उसके नाम का पहला अक्षर 'चु' होता है, दूसरे चरण में हुआ तो उसका पहला अक्षर 'चे' होता है, तीसरे चरण में हुआ तो उसका पहला अक्षर 'चो' होता है और चौथे चरण में हुआ तो उसका पहला अक्षर 'ला' होता है। भरणी नक्षत्र के पहले चरण में हुआ तो उसके नाम का पहला अक्षर 'ली' होता है। दूसरे चरण में हुआ तो उसका पहला अक्षर 'लू' होता है, तीसरे चरण में हुआ तो उसका पहला अक्षर 'ले' होता है, और चौथे चरण में हुआ तो उसका पहला अक्षर 'लो' होता है। कृतिका नक्षत्र के पहले चरण में हुआ तो उसके नाम का पहला अक्षर 'अ' होता है, दूसरे चरण में हुआ तो उसका पहला अक्षर 'इ' होता है आदि। इसके आधार पर मानव नारी-पुरुष का जन्‍म होते समय किस नक्षत्र का कौन-सा चरण था यह समझनेवाले लोग शायद ही मिलेंगे। इसमें नक्षत्र के पहले और दूसरे चरण की संधि होते समय पल-भर के शतांश की उथल-पुथल होते ही चे का चू या चू का चे होने की संभावना रहती है। उसी तरह अश्विनी के चार चरण, भरणी के चार चरण और कृतिका का पहला चरण इस प्रकार कुल नौ चरण एक मेष राशि में होते हैं। अब मेष और वृषभ राशि की मेष राशि या मेष राशि की वृषभ राशि होने की संभावना रहती है। उन सभी के आधार पर मानव नारी-पुरुष का जन्‍म होते समय कंडाल के पानी में कटोरी डालकर घटिका देखनेवाले बहुत ही कम लोग हैं। लेकिन पाँच हाथ के माप से या लगाम से सूरज या कोई रात का सितारा गिनने वाले लोग बहुत मिलेंगे। इसीके आधार पर आर्यों के ग्रहशास्त्र के पंडित लोग लड़के-लड़कियों की जन्‍म कुंडलियाँ किस प्रकार से बनाते हैं, इसके बारे में आपको सही जानकारी होगी ही, इसके अलावा आप लोग पेशवा सवाई माधवराव की जन्‍म कुंडली पढ़कर देखिए, फिर आपको ब्राह्मण जोशियों की धोखेबाजी अच्‍छी तरह समझ में आ जाएगी।

बलवंतराव : अच्‍छी बात याद आई। मानव नारी-पुरुष बच्चों ने अपनी माँ की कोख से पैदा होने के समय के संबंध में आर्य ग्रहशास्‍त्र पंडितों ने जो मान्‍यताएँ प्रचारित की हैं उनके बारे में आपने कहा है, यह बहुत ही अच्‍छा हुआ। लेकिन सभी मानव नारी-पुरुष जब अपनी माता की कोख में होते हैं और जब वे (पेट में) सात माह के, आठ माह के, नौ माह के होते हैं अर्थात् जब वे प्रत्‍यक्ष सजीव प्राणी होते हैं तब से उसको उनके जन्‍म होने का सही समय मानना चाहिए या माँ की कोख से बाहर आने के तुरंत बाद के समय को उनके जन्‍म का सही समय मानना चाहिए, इन दोनों में सही समय कौन-सा है? इसके बारे में स्‍पष्‍टीकरण करके बताएँगे तो बहुत ही अच्‍छा होगा।

जोतीराव : इसके बारे में आर्यों के ग्रहशास्‍त्र के पंडितों ने इस काम में केवल अपना पेट पालने के लिए ज्‍योतिषशास्‍त्र में मनगढ़ंत पाखंडों की ईजाद की है। क्‍योंकि मानव नारी की कोख में प्राण-प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त होने पर या कोख के बाहर आने पर बालकों के जन्‍म के ये दोनों समय सही समय नहीं हैं। किंतु नारी-पुरुष एक ही स्‍थान में एकांत में समागम करते हैं, तब नारी की कोख में मानव पुरुष अपने स्‍वयं के स्‍वयंभू जीव के बीज को बोता है। इसके हिसाब से आर्यों के ग्रहशास्‍त्र के पंडितों ने यदि नारी-पुरुषों से उनके समागम के समय की सही जानकारी हासिल करके जन्‍मकुंडली बनाने की परंपरा शुरू की होती तो उन सभी को मजाक के लिए ही सही इस समय अच्‍छा कहा गया होता।

बलवंतराव : मानव पुरुष जब स्‍वयं अपनी नारी की कोख में जन्‍म ग्रहण करता है, तब वह अपने जैसा मानव पुरुष ही नहीं पैदा होता, बल्कि वही हमेशा या बारी-बारी से नर या नारी होकर जन्‍म ग्रहण करता है, इसके बारे में हम सभी के निर्माता ने अपने हाथ में किस मूल चीज को रखा है, उसका आप कृपा करके यदि यहाँ कुछ स्‍पष्‍टीकरण करेंगे तो आपकी तमाम मानव प्राणियों पर बड़ी मेहरबानी होगी।

जोतीराव : हम सभी के निर्माता ने सभी जीव प्राणियों को पैदा किया है। उन सभी जीव प्राणियों के साथ ही मानव पुरुष जब स्‍वयं नारी की कोख में जन्‍म ग्रहण करता है तब वह अपने जैसा मानव पुरुष होकर पैदा नहीं होता। बल्कि वही हमेशा या बारी-बारी से नारी या पुरुष होकर जन्‍म ग्रहण करता है। इसके लिए हम सभी के निर्माता ने अपने हाथ में किस मूल चीज को रखा है, इसके बारे में बताने की यह उचित जगह नहीं है। वैसा करने से यहाँ यह विषय काफी बड़ा हो जाएगा और उसको पढ़ने में मेरे अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्र भाइयों को और अन्‍य सभी लोगों को मजा नहीं आएगा। इसी की वजह से हम सभी के निर्माता की सत्ता के बारे में अन्‍य किसी समय मैं विस्‍तार से स्‍पष्‍टीकरण करूँगा।


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