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विमर्श

सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक

जोतीराव गोविंदराव फुले

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गणपतराव दर्याजी थोरात, पेंशनर : शादी का मतलब क्या है?

जोतीराव फुले : हम सभी के निर्माता ने जितने जीव प्राणी पैदा किए हैं, उसमें उसने मानव नारी-पुरुषों को एक तरह से सोच-विचार करने की बुद्धि और अकल दी है, वे उसकी सहायता से सभी मानव प्राणियों के बीच कुछ नासमझ उपद्रवी लोगों को कलह, अशांति पैदा करने का अवसर न मिलने दें, इसलिए सभी की सलाह से यह तय किया गया हो कि हर एक मानव पुरुष और नारी दोनों अपने अंतिम समय तक एक-दूसरे के साथी और सहयोगी होकर एक-मन से आचरण करके अपने जीवन में सुख की प्राप्ति करेंगे। इस तरह एक दूसरे से जो कुछ स्‍वीकार करने की परिपाटी चली है, उसी को शादी कहा जाता है।

गणपतराव : मानव लड़के-लड़कियों को किन गुणों के आधार पर एक-दूसरे से शादी करनी चाहिए, इसके बारे में कुछ नियम हों तो हमको समझाइए, तो बहुत अच्‍छा होगा।

जोतीराव : मानव लड़के-लड़कियों का एक-दूसरे के किन गुणों के आधार पर एक-दूसरे के साथ शादी करनी चाहिए, इसके बारे में कोई भी तय नियम नहीं है। कई लड़कियों के माता-पिता 'हमारी लड़की कुछ दिनों तक खाएगी-पिएगी, पहनेगी-ओढ़ेगी और मौज करेगी' इस आशा से बगैर उनकी स्‍वीकृति लिए उनको धनवनों के घर बहू बनाकर भेज देते हैं। कई लड़कों के माता-पिता हमारा लड़का कुछ दिनों तक खाएगा-पिएगा, पहनेगा-ओढ़ेगा और मौज करेगा' इस विचार से बगैर उनकी अनुमति के अमीर-उमरावों राजा-रजवाड़ों को दमाद बना देते हैं। कई लड़कियाँ युवा लड़के की बदसूरती की बगैर परवाह किए उसके केवल साहस पर फिदा होकर उसको अपना शौहर बनाती हैं। कई लड़के युवा लड़कियों की बदचलनी की परवाह किए बिना उनकी केवल खूबसूरती पर फिदा होकर उनको अपनी बीवी बनाते हैं। परंतु नियमित विवाह में लड़के-लड़कियों के अपने माता-पिता, बुजुर्ग, छोटे भाइयों, मित्रों, रिश्‍तेदारों से सलाह-मशविरा करके उन्‍हें खुद आगे-पीछे का सोच-विचार करना चाहिए। और दुलहन या दूल्‍हे के घर में या सत्‍यशोधक समाज सभागृह में दुलहन और दूल्‍हे को एक-दूसरे के आमने-सामने आसन पर बैठकर या खड़े होकर पंचों के सामने निम्‍न प्रकार की अपनी-अपनी प्रतिज्ञाओं की मंगल गाथाओं का स्‍वयं क्रम से उच्‍चार करके शादी संपन्‍न करानी चाहिए। इस तरह से शादी संपन्‍न होने पर हम सभी के निर्माता को बहुत ही खुशी होती है।


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