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विमर्श

सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक

जोतीराव गोविंदराव फुले


(वर)

मराठी : देवाचे नियमा प्रमाण धरुनिचाले तझें कूळ गे।।

सत्‍यानें अवध्‍यांत श्रेष्‍ठ असशी तैसेचहि त्‍वत्‍सगे।।

आज्ञान्‍या समदृष्टिनें शिकविशी, तूं ज्ञानत्‍या दाविशी।।

प्रीतीनें वरितों तला अजि तुझी ऐकून किर्ती अशी।।

शुभमंगलम सावधान ।।1।।

हिंदी : भगवान के नियमों की प्रमाणता पर, आचरण है तेरे कल का।।

सत्‍य में सबसे श्रेष्‍ठ है, वही गुण तेरे संबंधियों का।।

अज्ञानी को समदृष्टि से पढ़ाती, तू ज्ञान उनको दिखाती ।।

प्रीत से ब्‍याहता हूँ तुझे अरी, तेरी ऐसी सुनकर कीर्ति।।

शुभमंगल सावधान ।।1।।

( कन्‍या)

मराठी : मनीशी जरी त्‍वां दिलें अनुदिनीं, कर्त्‍या समाधानसें ।।

आम्‍हां सर्व स्त्रियां असे बहु पिडा, हें नेणशी तूं कसें।।

स्‍वातंत्र्यानुभवाची ओळख आम्‍हां, झाली नसे मानशीं।।

यासाठीं अधिकार देशिल स्त्रियां, घे आण त्‍याची अशी।।

शुभमंगल सावधान ।।2।।

हिंदी : तुझे दिया यद्यपि मानता नित्‍यप्रति, कर्ता समाधानी जैसे।।

हम सभी नारियों के जीवन में है पीड़ा, जानेगा तू कैसे।।

स्‍वतंत्रतानुभव की पहचान हमें, नहीं है मनुष्‍यों के।

इसलिए अधिकार दे नारी को, खाना पड़ेगा कसम तुझको।।

शुभमंगल सावधान ।।

(वर)

मराठी : स्‍थापाया अधिकार मी झटतसें, या बायकांचे सदा ।।

खर्चाया न मनीं मीं भीं किमपिही, सर्वस्‍व माझें कदा।।

मानीतों सकला स्त्रियांस बहिणी, तूं एकली मत्प्रिया।।

कर्त्‍याचें भय मी मनांत तुजला, ठेवीन पोसावया।।

शुभमंगल सावधान ।।3।।

हिंदी : अधिकार दिलाने मैं झगड़ता हूँ, नारियों के लिए सदा।।

खर्च की परवाह नहीं मुझे, इससे कभी न था मैं जुदा।।

समझता हूँ सारी नारी को बहन, तू अकेली मेरी प्रिया।।

कर्ता का डर मन में मेरे तुझको, पालने का वचन दिया।।

शुभमंगल सावधान ।।3।।

(कन्‍या)

मराठी : बंधूवत्‍मजला समस्‍त असली, त्‍वद्भिन्‍न जे कीं नर।।

आज्ञाभंग तुझा करीन न कदां, मी सत्‍य कर्त्‍यावर।।

ठेवोनी अवधाचि भार झटुंया, लोकां कराया हिता।।

हाताला धरुनी तुला वरितसें, सर्वापुढ़ें मी अतां।।

शुभमंगल सावधान ।।4।।

हिंदी : भाई समान सभी हैं मुझको, तू अकेला मेरा वर।।

आज्ञाभंग कभी न करूँगी तेरा, मैं अटल सत्‍य कर्ता पर।।

लीजिए सारा बोझ लड़ेंगे, करेंगे जनता का हित।। सभी के सामने ब्‍याहती तुझसे, हाथ में देकर हाथ।।

शुभमंगल सावधान।।4।।

सत्‍यवादी नारी-पुरुषों का आशीर्वाद

मराठी : आभारा बहु मानिजे आपुलिया, माता-पित्‍यांचे सदा।।

मित्रांचे तुमच्‍या, तसेच असती जे इष्‍ट त्‍यांचे वदा।।

वृद्धां पंगु सहाय द्या मुलिमुलां, विद्या तया शीकवा।।

हर्षे वृष्टि करा फुलांचि अवधे, टाळी अतां वाजवा।।

शुभमंगल सावधान ।।5।।

हिंदी : आभार बहुत मानिये अपने माता-पिता के सदा।।

मित्रों के तुम्‍हारे वैसे ही हैं जो, वांछित न हो उनसे जुदा।।

वृद्ध पंगु सहाय दो बच्‍चे-बच्‍ची, ज्ञान उनको पढ़ाओ।।

खुशी से फूल बरसाओ सभी, ताली अभी बजाओ।।

शुभमंगल सावधान ।।5।।

वर (प्रतिज्ञा)

मैं आज से तुमको अपनी पत्‍नी स्‍वीकार करता हूँ। मैं मानव पंचों के सामने यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि आज से मैं अपने मन में किसी भी प्रकार की गलत धारणा न रखूँगा और एक पल-भर के लिए तुम्‍हारे कहने का अनादर नहीं करुँगा। इसलिए हम सभी के निर्माणकर्ता और अपने कुलदेवता का स्‍मरण करते हुए प्रतिज्ञा कर रहा हूँ।

कन्‍या (प्रतिज्ञा)

मैं आज से तुमको अपने पति के रूप में स्‍वीकार करती हूँ। मैं मानव पाँच पंचों के सामने प्रतिज्ञा करती हूँ कि आज से मैं अपने मन में किसी भी प्रकार की गलत धारणा अपने मन में न रखूँगी और एक पल-भर के लिए तुम्‍हारे कहने का अनादर नहीं करूँगी। इसलिए हम सभी के निर्माणकर्ता और अपने कुलदेवता का स्‍मरण करते हुए प्रतिज्ञा कर रही हूँ।

अंत में दूल्‍हा और कन्‍या को सभी दोस्‍तों को, संबंधियों को मिलने के बाद उन्‍हें बड़ी खुशी से किसी भी धर्म की या देश की पसंदगी-नापसंदगी का ख्‍याल किए बगैर सभी मानव भाइयों में जो अनाथ-बेसहारा लड़के-लड़कियाँ हैं, अंधे-अपाहिज लोग हैं, उनको अपनी क्षमता के अनुसार दान बाँटते हुए अपने घर या अपने गाँव चले जाना चाहिए।

दुष्‍ट आचरण

लक्ष्‍मण मानाजी पाटील, मगर : हम सभी के निर्माता ने सभी जीव प्राणियों को पैदा करते समय केवल नारी-पुरुष को ही सोच-विचार करने की बुद्धि दी है, उनको ही परिशुद्ध किया है, यही यदि आपका सिद्धांत है तो फिर इस दुनिया में कुछ नारी-पुरुष दुष्‍ट आचरण करने वाले क्‍यों हुए हैं?

जोतीराव : इस सारी धरती पर रहने वाले कुछ मानव नारी-पुरुष आलसी, काम-चोर होने की वजह से दुष्‍ट आचरण करने वाले हुए हैं।

लक्ष्‍मण : इस बात को स्‍पष्‍ट करने के लिए यदि आप कोई प्रत्‍यक्ष उदाहरण देंगे, तो सभी मानव नारी-पुरुषों पर आपकी बड़ी मेहरबानी होगी।

जोतीराव : सबसे पहले, उन आलसी मानव नारी-पुरुषों ने अपने पास-पड़ौस के लोगों को पूछे बगैर जब उनकी चीजें चुराकर ले जाने लगे, तब सभी मानव नारी-पुरुषों को अपने-अपने खेतों-बागों के काम करने के लिए जाने से पहले हर घर-मालिक को अपने परिवार के एक व्‍यक्ति को घर में रखवाली करने के लिए रखना पड़ा। उन सभी पर अपने-अपने घर की रखवाली करने की मुसीबत आ पड़ी। और इस मुसीबत को हल करने के लिए सारी दुनिया के मानव समाज को कुछ मानव नौकर रखना जरूरी हो गया। उनको अपनी आवश्‍यकताओं की चीजों का निर्माण करने के लिए समय मिलना मुश्किल हो गया। वे लाखों रुपया मूल्‍य के ताले बनाने में व्‍यस्‍त हो गए। इसी की वजह से सारी दुनिया के मानव नारी-पुरुषों का कितना समय बेकार गया होगा और आर्थिक रूप से उनकी कितनी हानि हो गई होगी और आज भी हो रही है, इसकी तो मैं कल्‍पना कर सकता हूँ, लेकिन यह शब्‍दों में व्‍यक्‍त नहीं कर सकता।

लक्ष्‍मण : खैर, लेकिन सभी मानव नारी-पुरुषों ने अपने-अपने घर की चीजों के बचाव के लिए ताले खरीदना शुरू किया जिससे उनके घर की सभी चीजें सुरक्षित हो गईं परंतु वे क्या सही में सुखी हुए होंगे?

जोतीराव : अरे, ये आदत से पक्‍के चोर बने हुए लोग मानव कारीगरों के बनाए तालों की बाधाओं से कहाँ रुकने वाले हैं! लेकिन उनमें से (नारियों को छोड़कर) कुछ पुरुष चोर अपनी जान को दाँव पर लगाकर एक स्‍थल पर इकट्ठा होकर अपने चेहरे को काले रंग से रँगवाकर, फिर उस पर चूने की सफेद बिंदियाँ गोदवाकर, एक हाथ में मशाल और दूसरे हाथ में नंगी तलवारें लेकर रास्‍ते में गोखरू फैलाकर, लोगों को मारने के लिए जगह-जगह छोटी-छोटी ढेर लगाते थे - और सभी गाँववासियों की परवाह किए बगैर उनके सामने बेशर्म होकर 'हर-हर महादेव' या 'दीनदीन' के शेरगुल में धनवान लोगों के घर पर डाका डालते थे। और जोर-जबर्दस्‍ती से उनके घरों में घुस-कर उनके मकानों के ताले तोड़कर उनके घरों को लूटकर ले जाने लगे।

लक्ष्‍मण : फिर गाँववासी लोग क्या करते थे?

जोतीराव : गाँव में डाका पड़ने लगा, तब गाँव और उसके पास-पड़ौस के लोगों ने अपने-अपने निर्वाह के सभी साधन दूर रख दिए और गाँव के सभी नारी-पुरुष इकट्ठे होकर, अपने सिर पर मिट्टी की टोकनियाँ ढोकर सारे गाँव के चारों ओर दीवारें खड़ी कीं और उन दीवारों में जगह-जगह पर बड़े-बड़े दरवाजे लगवाए। फिर उनकी सुरक्षा के लिए आपस में चंदा इकट्ठा करके उन्‍होंने नगरद्वार रक्षक की नियुक्ति करके उसको वेतन के रूप में कुछ देने लगे।

लक्ष्‍मण : फिर लुटेरे कौन-से तरीके अपनाते हैं, इसके बारे में पूछकर मैं आपको और ज्‍यादा परेशान नहीं करना चाहता, लेकिन मैं सिर्फ इतना पूछना चाहता हूँ कि मूल मानव पुरुषों में किस वजह से चोर पैदा हुए?

जोतीराव : परिवार में मुखिया हैं माँ या बाप, गाँव के मुखिया हैं चौधरी-चौधराइन, क्षेत्र के मुखिया हैं देशमुख या दोमुखानी, धरती पर मुखिया हैं महारानी या महाराजा, लेकिन इन तमाम मुखियाओं में सत्‍य का पालन करने की तमन्‍ना बिलकुल न होने की वजह से वे अपने बाल-बच्चों पर सख्‍त निगरानी रखने की बजाय उनको मनचाहे आचरण करने की सहूलियत देते हैं, उसी प्रकार उचित समय पर उनकी सही शिक्षा का भी प्रबंध नहीं करते। इसी की वजह से सारी दुनिया में चोरी, डकैती, लूट आदि सभी तरह के दुष्‍ट आचरणों का प्रसार हुआ है और हो रहा है।

लक्ष्‍मण : इसलिए इस बलिस्‍थान की मुखिया महारानी माँ साब सरकार को अपने अधिकार की प्रजा के लड़के-लड़कियों को आलसी होने से बचाना चाहिए और उनकी उचित समय पर उचित शिक्षा का प्रबंध करना चाहिए। जिससे सारे बलिस्‍थान में चोरी, डकैती, लूट आदि सभी प्रकार के दुष्‍ट आचरणों का जो प्रसार हुआ है, उन पर पूरी तरह से नियंत्रण पाया जा सके।

जोतीराव : अरे बाबा, अपनी रानी साहिबा इस बलिस्‍थान के सभी किसानों से जितनी लगान वसूल करती हैं, उसकी तो मैं यहाँ बात भी नहीं कर रहा हूँ। लेकिन मैं तुमको यह पूछना चाहता हूँ कि यह अपनी दयालु रानी साहिबा बलिस्‍थान के अज्ञानी किसानों से जितना लोकल फंड जोर-जुल्‍म से वसूल करती हैं, वह सारा रुपया उन्‍होंने सभी शुद्रादि-अतिशूद्र किसानों के बाल-बच्चों के लिए स्‍कूलों की स्‍थापना करने में खर्च किया है और उन स्‍कूलों में उनको खेती के बारे में सभी तरह का ज्ञान देने की व्‍यवस्‍था की है? उसी प्रकार यहाँ के सभी नकली, पाखंडी, धर्मभ्रष्‍ट धर्माचार्य और बागी ब्राह्मण पांडे और पेशवाओं की जाति के; जो अपने को स्‍वयं ही उच्‍च मानते हैं और दूसरों को नीच समझते हैं-ऐसे लोगों पर किसी भी प्रकार का यकीन नहीं रखें और केवल यूरोपियन कर्मचारियों के ही द्वारा उन पैसों को खर्च करवाएँ, तो क्या उन स्‍कूलों से किसानों में आज की तुलना में ज्‍यादा चोर पैदा होंगे, ऐसा तुमको लगता है?

लक्ष्‍मण : सचमुच सरकार ने किसानों के स्‍कूलों में उपरोक्‍त तरह के लोगों की अध्‍यापकों के पदों पर यदि नियुक्तियाँ नहीं कीं तो पहले की तरह शूद्रादि-अतिशूद्र किसानों के बच्‍चे चोर नहीं बनेंगे। बल्कि वे लगातार काम में व्‍यस्‍त हो जाएँगे, इससे उनमें ज्‍यादा-से-ज्‍यादा लोग कर्मकुशल होंगे और वे लोग इन ब्राह्मणों, में मुफ्तखोर-चोर जैसे लोगों के पीछे पागल नहीं होंगे। वे लोग अपनी सरकार को किसी भी प्रकार की हानि पहुँचाए बिना बड़े उत्‍साह से ज्‍यादा-से-ज्‍यादा टैक्‍स देने के लिए समर्थ होंगे, इस बात को मैं प्रतिज्ञा के साथ कह सकता हूँ। लेकिन अपनी सरकार को बलिस्‍थान में किसानों के स्‍कूलों के अलावा अन्‍य किस-किस प्रकार के लोगों के लिए स्‍कूल खोलने चाहिए?

जोतीराव : अपनी दयालु सरकार को इस बलिस्‍थान में किसानों के स्‍कूलों के अलावा घिसाड़ी, लुहार, बढ़ई, बेलदार, बुनकर, चमार, सुनार, माली, नाई, धोबी, दर्जी आदि कारीगर जातियों के बच्चों के लिए तरह-तरह के स्‍कूल खोलने चाहिए और उन स्‍कूलों में उन सभी के हुनर के लिए आवश्‍यक सभी प्रकार की शिक्षा देने के लिए साधारण खर्च की व्‍यवस्‍था करनी चाहिए। उन सभी स्‍कूलों में कर्मकुशल कारीगरों के बच्‍चे जैसे संस्‍कार प्राप्‍त करके निकलेंगे, उनमें शायद ही कोई चोर बने, इस बात को मैं बड़े यकीन के साथ कह सकता हूँ।

लक्ष्‍मण : इस बलिस्‍थान के सभी कारीगरों के बच्चों के लिए स्‍कूलों की स्‍थापना करने के लिए अपनी सरकार को रैयत के किस फंड से खर्च करना चाहिए? क्‍योंकि कारीगर लोग (जाति) किसानों की तरह सरकार को लोकल फंड नहीं देते।

जोतीराव : यदि यही हमारी सरकार का कहना है तो यहाँ उनकी धारणाएँ कुछ गलत लगती हैं, यही कहना चाहिए, क्‍योंकि उन्‍हें संभव हो तो किसानों से वसूल किए हुए टैक्‍स के रॉयल फंड से कुछ रुपया खर्च करना चाहिए और कारीगर लोगों के बच्चों के लिए स्‍कूलों का निर्माण करके वे यूरोपीय और अमेरिकी महाद्वीपों के कारीगरों की तरह साधारण मूल्‍य पर हल, हेंगा, बीज बोने का औजार, खुरपी, हँसिया, फावड़ा आदि तरह-तरह के औजार लगातार आसानी से जब किसानों के लिए बनाएँगे, तब किसान लोग अपनी सरकार को ज्‍यादा टैक्‍स देने के लिए आसानी से समर्थ होंगे। इससे सारे बलिस्‍थान के क्षत्रियों की और सरकार की प्रशंसा होगी और उनकी इस दुनिया में बड़ी ख्‍याति होगी, इसमें कोई संदेह नहीं।

लक्ष्‍मण : सरकार ने सभी किसानों के बच्चों के लिए और कारीगरों (जाति) के बच्चों के लिए स्‍कूल शुरू किए और उन्‍होंने धूर्त आर्य पुराणिकों के जलील करने पर अपने बच्चों को यदि उन स्‍कूलों में पढ़ने के लिए ही नहीं भेजा तो वहाँ अपनी सरकार को किस प्रकार के उपाय खोजने चाहिए?

जोतीराव : सभी अज्ञानी किसानों और कारीगरों (जाति) ने अपने-अपने बच्चों को उनके स्‍कूलों में यदि समझदारी से नहीं भेजा तो सरकार को ऐसे नासमझ लोगों के बच्चों के स्‍कूल में भेजने के बारे में बेशक जबर्दस्‍ती करनी चाहिए और उस तरह का कानून भी बनाना चाहिए। उसी तरह सरकारी अधिकारियों के द्वारा उन सभी लोगों में इस तरह की समझ बनानी चाहिए कि यदि आपने अपने बच्चों को उनके स्‍कूलों में नहीं भेजा तो वे बच्‍चे खाली रहने से निठल्‍ले बन जाएँगे। इससे उनको सख्‍त-से-सख्‍त सजा होगी, पाँव में बेड़ियाँ पड़ेंगी और फिर सरकार को ही उनकी देखभाल करनी पड़ेगी। उसी तरह तुम्‍हारे बच्‍चे खाली रहने से पक्‍के चोर होने के बाद पास-पड़ौस के लोगों के घरों पर डाका डालेंगे और ऐसा करके यदि सरकार को चोट पहुँचाएँगे तो सरकार उनको कालेपानी की भी सजा दे सकती है, और इसके लिए सारा खर्च फिर सरकार को ही करना पड़ेगा। उसी प्रकार तुम्‍हारे बच्‍चे उस खालीपन से बेशर्म बागी बन जाएँगे और हर प्रांत में जाकर वहाँ के गाँवों को लूटेंगे और कुछ घरों को जलाकर लोगों का खूनखराबा करेंगे, उनकी धन-दौलत को लूटेंगे, उनके बीवी-बच्चों को तबाह-बर्बाद करने लगेंगे और यदि वहाँ के सारे व्‍यापार में तबाही मचाएँगे तो सरकार को मजबूरी से उनमें से कई बागियों को तोपों के निशाने बनाकर, बाकी बागियों को फाँसी के फंदे पर टाँगना होगा। और इसके लिए जब सरकार को पुलिस रखनी पड़ेगी तब उस तमाम खर्चे का बोझ तुम किसानों को और कारीगरों को बर्दाश्‍त करना पड़ेगा, इतना ही नहीं, तुम्‍हारे बच्चों के ऐसे चोर, लुटेरे और बागी होने पर सरकार को मजबूरन उनको सजा देनी पड़ेगी और रास्‍ते में जगह-जगह पर जब वे घुमाएँगे, तब तुम लोगों को उन बागियों के माँ-बाप होने की वजह से शर्म महसूस करनी पडेगी और अपने मुँह काले करने पड़ेंगे और तुम्‍हारी बेसहारा-दुर्बल बहू-बेटियों को बेहद दुख सहना होगा। तुम्‍हारे भाई-बहनों के नाम पर कलंक लग जाएगा और तुम्‍हारे रिश्‍तेदारों का कोई आदर सम्‍मान नहीं करेगा। तुम्‍हारे दोस्‍तों को लज्‍जा अनुभव होगी और उनको महफिल में गर्दन नीचे झुकानी पड़ेगी। उसी प्रकार तुम लोगों ने अपने बच्चों को उनके स्‍कूलों में यदि नहीं भेजा तो वे आवारा होकर उम्र में आते ही काले कृष्‍ण की तरह बेशर्म होकर व्‍यभिचार करने लगेंगे जिससे वे स्‍वभाव से सदाचारी सभी लोगों की नफरत के हकदार बन जाएंगे और उनके लिए सभी लोगों के साथ भयानक झगड़े, मारकाट, खूनखराबा करना पड़ेगा और फिर उन पर कड़ी निगरानी रखने के लिए सरकार को अस्‍थायी फौज रखनी पड़ेगी। उसके लिए जो कुछ खर्च आएगा, उसका बोझ तुम किसानों और कारीगरों की ही छाती पर आ पड़ेगा। उसी तरह तुम लोगों ने बच्चों को उनके स्‍कूलों में यदि नहीं भेजा तो वे बच्‍चे उम्र में आने के बाद अपना पेट पालने के लिए धूर्त, आर्य ब्राह्मणों के नकली काजिया दलाल कुलकर्णियों के पिछलग्‍गू बनकर गाँव के बेगुनाह सज्‍जन लोगों के विरोध में झूठी गवाही देकर उन पर झूठे इल्‍जाम लगाएँगे, और सरकार के विरोध में नकली कागजात और नकली नोट छापकर पक्‍के झूठे जब बन जाएँगे तब सरकार को इसका इंसाफ करने के लिए वेतनभोगी न्‍यायाधीशों की नियुक्तियाँ करनी पड़ेंगी। उन सभी का खर्च किसानों और कारीगरों के सर पर बोझ के रूप में लद जाएगा। सारांश, दुनिया के सभी लोगों को अपने-अपने बच्चों को स्‍कूल में भरती करवाकर उनको सत्‍यज्ञान विद्या देने से ही वे सभी आसानी से सद्गुणी होंगे और फिर कोई भी राष्ट्र किसी और राष्‍ट्र पर हमले नहीं करेंगे, और इसी से सारी दुनिया में जगह-जगह पर किसानों और कारीगरों की मेहनत का करोड़ों रुपया खर्च करके फालतू फौज रखने की मुसीबत उस सरकार पर नहीं आएगी। इस बात को यदि तुम समझ लोगे तो फिर कोई समस्‍या ही नहीं रहेगी।

लक्ष्‍मण : क्‍यों तात्‍या साहब, चोरों से भी ज्‍यादा गुनहगार कौन है?

जोतीराव : चोरों के गुनाहों के बारे में मैंने तुमको पहले ही इस चर्चा में बताया है। लेकिन इस धरती पर जो कुछ लोग अपने स्‍वार्थ के लिए नास्तिक हुए हैं, जिन्‍होंने हम सभी के निर्माणकर्ता को निकाल बाहर किया है और उसकी जगह उन्‍होंने पराजित किए हुए अज्ञानी लोगों के स्‍वयं अहंब्रह्म या भूदेव बनकर उनको अपने से दूर रखकर नीच समझते हैं, ऐसे धूर्त स्‍वार्थी लोगों के स्‍कूलों में शिक्षित हुए बच्‍चे पक्‍के जालिम चोर बने हैं।

लक्ष्‍मण : अब यहाँ इन जालिम चोरों के बारे में कुछ जानकारी देंगे, तो बहुत ही अच्‍छा होगा।

जोतीराव : अज्ञानी लाचार चोर पेट के लिए चोरी करते हैं, लेकिन स्‍कूल में पढ़े नास्तिक चोरों में कुछ लोग सरकार से महीने के महीने वेतन और गाड़ी-घोड़े के लिए यात्रा-खर्च भी लेते हैं और सरकार के सेवक बनते हैं और सरकार की नौकरी ईमानदारी से करने के बजाय अज्ञानी रैयत का न्‍याय करते समय उनसे रिश्‍वत खाकर वे ही लोग अपने घर में बेशर्मी से शुद्धता का दिखावा करके लोगों की आँखों में धूल झोंकते हैं।

लक्ष्‍मण : अज्ञानी रैयत से रिश्‍वत खाले वाले बेशर्म अछूते (ब्राह्मण) सरकारी नौकरों को फिलहाल बगैर किराए के घर में मौज करने के लिए छोड़ दीजिए। लेकिन उनमें से कई लोग सरकारी कर्मचारियों को फँसवाकर अज्ञानी लेागों में अपनी धाक जमाने के लिए सरकार से बिना वेतन के ऑनरेरी मजिस्‍ट्रेट के पदों को स्‍वीकार करते हैं, इसके बारे में आपका क्या विचार है?

जोतीराव : उनमें से कई लोग ऐसे होते हैं जिनको कुछ भी ज्ञान नहीं होता, काम-चलाऊ भी नहीं। उनको दुनिया का कुछ भी अनुभव नहीं होता। जिनको मैट्रिकुलेशन का इम्‍तहान किसको कहना चाहिए यह भी मालूम नहीं होता, ऐसे अनजान मूर्ख लोग बड़े खानदानों के सरदारों के बेटे होने से ही ऑनरेरी मैजिस्‍ट्रेट के ओहदे पा जाते हैं। अरे, इनमें से कई लोगों को अपने घर का संसार और बीवी-बच्चों की सही देखभाल करने तक की अकल नहीं होती, तो फिर वे अज्ञानी शूद्रों के साथ इंसाफ कैसे कर सकते हैं? जो लोग अपनी जाति की खोखली श्रेष्‍ठता का घमंड करते हैं और बाकी की तमाम जातियों के लोगों को नीच मानते हैं, फिर उन्‍होंने जिनको नीच समझा, उन लोगों को अपने न्‍याय के नाम पर गाली-गलौज क्‍यों करना चाहिए?

लक्ष्‍मण : इसी तरह सभी बूढ़े पेंशनर अनुभवी और युक्तिबाज कुलकर्णी (पटवारी), ट-फ करने वाले पाटील (मुखिया) लोग बगैर वेतन लिए भी बिचौलिया का काम करते हैं, इसके बारे में आपका क्या विचार है?

जोतीराव : पिुजरापोल के जानवरों की तरह सरकारी नौकरी करके जर्जर हुए पेंशनभोगी अनुभवी लोग और युक्तिबाज कुलकर्णी, ट-फ करने वाले मूर्ख मुखिया को अपने दबाव में रखकर उसकी किसी भी प्रकार की परवाह किए बगैर जो सभी लोगों को नीच समझकर अपनी जाति की श्रेष्‍ठता का घमंड दिखाते हैं, ऐसे दुनिया के लोगों से नफरत करने वालों से अज्ञानी लोगों को सही इंसाफ मिलेगा और उनका कल्‍याण होगा यह कहना बड़ा मुश्किल है।

लक्ष्‍मण : उसी प्रकार सरकार से किसी भी प्रकार की तनख्‍वाह न लेते हुए सभी युवा या बूढ़े अनुभवी लोगों के म्‍युनिसिपैलिटी के सदस्‍य हो जाने की वजह से बाकी तमाम जातियों के लोगों का कुछ कल्‍याण भी होता है या नहीं इसके बारे में आपका क्या विचार है?

जोतीराव : अरे, तुम्‍हारे इन सभी म्‍युनिसिपैलिटियों में धूर्त ब्राह्मणों के राज में नीच समझे गए चमारों, बुनकरों, मातंगों, लुहारों, सुनारों, महारों, बढ़इयों, धोबियों, धनगरों आदि लोगों में से एक भी आदमी इसका सदस्‍य है? अगर हो तो बताइए?

लक्ष्‍मण : आर्य ब्राह्मणों ने जिनको छल-कपट से नीच समझा है उन शूद्रों का और अतिशूद्रों का एक भी आदमी म्‍युनिसिपैलिटी में सदस्‍य नहीं है, क्‍योंकि उन लोगों में अभी तक म्‍युनिसिपैलिटी में जाने योग्‍य पढ़ा-लिखा जानकार आदमी आज तक हुआ ही नहीं।

जोतीराव : फिर अंग्रेजों के पौने दो अकलमंद गव्‍हर्नर जनरल लार्ड रिपन जैसे सरकारी नौकर ने इन आर्य ब्राह्मणों द्वारा नीचे समझे गए अतिशूद्रों के बारे में अच्‍छा गंभीर विचार किए बगैर किस आधार पर इस बलिस्‍थान के लोगों को म्‍युनिसिपैलिटी का अधिकार दिया? क्‍योंकि उदाहरण के रूप में, इस पूना शहर की म्‍युनिसिपैलिटी का अधिकार सरकार ने अब अपने पास नहीं रखा बल्कि सभी जातियों के लोगों के हाथों में दे दिया, जिसकी वजह से यूरोपियन कलेक्‍टरों जैसे बड़े-बड़े सरकारी अफसर इस शहर की स्थिति की ओर झाँककर भी नहीं देखते और वहाँ के सदस्‍यों की लापरवाही की वजह से आज इस म्‍युनिसिपैलिटी के स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारी की हरामखोरी से सभी लोग अच्‍छी तरह परिचित हैं। उनका यह हरामखोरी का धंधा, जिसके लिए रैयत का रुपया-पैसा खर्च होता है और गंजपेठ में जो अव्‍यवस्‍था फैलाई गई है उस सबको अपनी आँखों से देखते ही उस अधिकारी के बारे में जिसको नफरत नहीं होगी, ऐसा आदमी शायद ही मिलेगा। क्‍योंकि किराए के टट्टू की उसके दलाल यजमानों ने उसको सही रास्‍ते पर चलाने के लिए, कितनी भी लगाम खींची, तब भी वह होश में आकर सही रास्‍ते पर नहीं चला। इसीलिए अतिशूद्र किसान समझदार होकर जब तक अपना कोड़ा बदन के चारों ओर लपेटकर उनको मनचाही मार नहीं लगाते तब तक वे उनके होश ठिकाने नहीं लगा पाएँगे। समझ लो।

लक्ष्‍मण : उसी तरह झूठे कागजात बनाकर चालाकी से बोलने वाले से ज्‍यादा दोषी कौन है?

जोतीराव : झूठे कागजात बनाकर चालाकी से बोलनेवालों से भी ज्‍यादा दोषी उसको मानना चाहिए, जो हम सभी के निर्माता के नाम से स्‍वयं की कल्‍पना से नकली धर्मग्रंथों की रचना करता है और अज्ञानी शूद्रादि को लूटता है, उनकी मेहनत पर अपने बाल-बच्चों को पालता है।

लक्ष्‍मण : अब उसके लिए हमें कौन-सा खास इलाज करना चाहिए, इसके बारे में हम सभी लोगों को समझाएँगे तो बहुत ही अच्छा होगा।

जोतीराव : इसका एकमात्र इलाज यही है कि आर्य ब्राह्मणों ने जिनको नीच कहा है उन तमाम शूद्रादि-अतिशूद्रों को, भील और ढिमर आदि मानव भाइयों को अपने-अपने लड़के-लड़कियों को स्‍कूल में भेजना चाहिए और उन सभी को सत्‍यज्ञान की शिक्षा दिलाने की शुरुआत कर देनी चाहिए। मतलब, कुछ समय के बाद हम सभी के लड़के-लड़कियों को सत्‍यज्ञान की प्राप्ति होते ही उनमें से शायद कोई सत्‍पुरुष पैदा होगा जो हम सभी की समाधि पर फूल बरसाकर, हम सभी में जान डालेगा, हम सभी को जगाएगा, स्‍वसंतोष से मैं इस तरह की भविष्‍यवाणी कर रहा हूँ।


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